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Class 10th Bharati Bhawan Geography Chapter 10 (बिहार: संसाधन एवं उपयोग) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रशन 1:-- बिहार की किन्ही पांच प्रमुख फसलों का नाम लिखिए। उनमें से किसी एक के उत्पादन की भौगोलिक दशाओं एवं उत्पादन क्षेत्रों का वर्णन करें।

उत्तर:-- बिहार राज्य में जिन खाद्यान्न का उत्पादन कृषि द्वारा होता है उनमें प्रमुख हैं--चावल, गेहूं, जौ,मकई दलहन तेलहन, सब्जी और विभिन्न प्रकार के फल। इनमें धान के उत्पादन के लिए निम्न भौगोलिक दशाएं उपयुक्त होती है --- 

(1) मानसुनी  जलवायु,

(2) उच्च तापमान (20 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस तक)

(3) ग्रीष्मकालीन अधिक वर्षा (वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक) ( कम वर्षा  वाले क्षेत्रों में सिंचाई की उत्तम व्यवस्था), 

(4) समतल भूमि (ताकि खेतों में जल जमा रहे),

(5) जलोढ़ मिट्टी

(6) पर्याप्त जनसंख्या में सस्ते श्रमिक ।

बिहार में धान की खेती मुख्य मुख्यत: उत्तर के मैदानी भाग में होती है जहां वर्षा से भरपूर जल की प्राप्ति होती है। बिहार में उत्तरी चंपारण, रोहतास, औरंगाबाद बक्सर और भोजपुर प्रमुख धान उत्पादक जिले हैं जहां सिंचाई और जलोढ़ मिट्टी की सुविधा प्राप्त है और मानसूनी जलवायु क्षेत्र में पड़ता है।

फसलों की उपज बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक पद्धति अपनाई जा रहे हैं जिससे उत्पादन भी बढ़ा है। 2009-10 में बिहार में 55 लाख  टन धान का उत्पादन हुआ था।

Class 10th Bharati Bhawan Geography Chapter 10 (बिहार संसाधन एवं उपयोग) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रशन 2:-- बिहार में औद्योगिक विकास की संभावना पर अपना विचार प्रस्तुत करें।

उत्तर:-- बिहार एक कृषि प्रधान राज्य हैं। यहां खनिज संपदा की कमी है। इसलिए यहां खनिज पर आधारित उद्योग का विकास बहुत अधिक नहीं किया जा सकता है। हां ,कृषि से उत्पादित कच्चा माल और शक्ति के साधनों की कमी नहीं है। बिहार गन्ना और जूट आदि का प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं ।शक्ति के साधनों के रूप में नदी घाटियां जल शक्ति प्रदान करने में सक्षम है। घनी जनसंख्या मिलने के कारण श्रमिकों का अभाव नहीं है। इसलिए बिहार में कृषि उत्पाद पर आधारित उद्योग को बढ़ावा दिया जा सकता है। इस प्रकार हल्के उद्योगों में चीनी , सिगरेट, अभ्रक की छिलाई और वन उद्योग को बढ़ावा दिया जा सकता है।

घरेलू उद्योग के रूप में चावल तैयार करने ,दाल तैयार करने, तेल निकालने, रस्सी बनाने ,बीड़ी बनाने, मधुमक्खी पालने,लाह तैयार करने और रेशम के कीड़े पालने जैसे उद्योग को बढ़ावा दिया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त प्लास्टिक उद्योग, धान की भूसी से बिजली उत्पादन करने की मिल, कागज बनाने का उद्योग, धान की भूसी से बिजली उत्पादन करने की बड़ी संभावनाएं हैं।सूती वस्त्र उद्योग को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। सरकार को इस दिशा में विचार करते हुए सहयोग करना चाहिए जिससे रोजगार के अवसर भी उपलब्ध होंगे।

प्रशन 3:-- बिहार में पर्यटन के विकास के लिए क्या उपाय उपेक्षित हैं?

उत्तर:-- बिहार में पर्यटन के विकास के लिए निम्नलिखित उपाय उपेक्षित है---

(1) यहां अधारभूत संरचना का विकास करना होगा।

(2) यहां परिवहन के साधनों का भी विकास करना होगा ।

(3) यहां होटल, सड़क, रेलमार्ग, मनोरंजक वातावरण का निर्माण करना होगा।

(4)यहां की कानून व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करना होगा तथा नए कानून व्यवस्था की स्थापना करनी होगी।

(5) यहां की टूटी फूटी इमारतों का मरम्मत करना होगा ।

(6) यहां ऐतिहासिक तथा धार्मिक स्थलों का भी निर्माण करना होगा ।

(7) साथ ही यहां के नागरिकों को अतिथि देवो भव: का भी अर्थ समझना होगा।

प्रशन 4:-- ऊर्जा उत्पादन में बिहार की स्थिति पर प्रकाश डालें।

उत्तर:-- उद्योगों को चलाने, विकास की गाड़ी को आगे बढ़ाने में उर्जा के साधन की आवश्यकता होती है। बिहार के पास 592.1 मेगावाट ताप विद्युत  47.1 मेगावाट जल विद्युत तथा 5 मेगावाट  नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में उत्पादन है। परंतु ताप विद्युत केंद्र की स्थिति अच्छी नहीं है। मुजफ्फरपुर का ताप विद्युत केंद्र बंद पड़ा है। बरौनी से भी 30 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है और लागत भी अधिक पड़ती है अर्थात उत्पादन खर्च महंगा है।

वर्तमान में बिहार को 900 मेगावाट बिजली की आवश्यकता है जो कभी कभी 1000 मेगावाट तक पहुंच जाती है। केंद्रीय क्षेत्रों से बिजली खरीद कर बिहार अपना काम चलाता है। नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन से 959 मेगावाट चुखा पनबिजली से  80 मेगावाट तथा मांग बढ़ने पर रंगीत बिजली से 21 मेगावाट बिजली खरीदी जाती है। इस प्रकार राज्य कोष का बहुत धन इसी पर खर्चा हो जाता है। वह भी इस स्थिति में जब बिहार में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत बहुत कम मात्र 7 किलोवाट  प्रतिवर्ष है। जबकि राष्ट्रीय औसत खपत 354.75 किलोवाट प्रतिवर्ष है।

प्रशन 5:-- उद्योगों के विकास के लिए बिहार सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की विवेचना करें।

उत्तर:-- उद्योगों के विकास के लिए बिहार सरकार द्वारा उठाए गए कदम इस प्रकार है---

(1) औद्योगिक इकाइयों की स्थापना एवं उद्यमियों की सहायता करने के लिए उद्योग मित्र नाम से एक संस्था बनाई गई है। इससे 2004 से 2007 तक के 4 वर्षों में क्रमशः 443, 957 , 717 एवं 512 उद्यमियों को लाभ मिला ।

(2) फतुहा में सुदृढ़  औद्योगिक क्षेत्र, बेगूसराय, हाजीपुर में 100-100 एकर में फ्रूट पार्क तथा बिहटा, हाजीपुर में 100-100 एकड़ में वृहत औद्योगिक  पार्क की स्थापना की गई।

(3) पटना हवाई अड्डा परिसरों में एयर कार्गो कंपलेक्स बनाए गए हैं ।

(4) सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा नॉलेज सिटी आई० टी० भवन आई० टी ० पार्क आई० टी० अकादमी , आई० टी० फीयर्स एंड कॉन्फ्रेंस इत्यादि का विकास किया गया है।

(5) किसी प्रकार के फोन से ,15531 नंबर पर डायल करने से राज्य की कोई सूचना प्राप्त की जा सकती है।

प्रशन 6:-- कृषि की विभिन्न समस्याओं पर प्रकाश डालें।

उत्तर:-- बिहार की 90% आबादी गांवों में रहती है और 80% जनसंख्या कृषि पर आश्रित है। इसके बावजूद यहां का प्रति हेक्टेयर उत्पादन अन्य राज्यों की अपेक्षा कम है। बिहार राज्य कृषि संबंधी अनेक समस्याओं से जूझ रहा है।

(1) मिट्टी कटाव एवं गुणवत्ता का ह्रास :-- भारी वर्षा और बाढ़ के कारण मिट्टी का कटाव होता है एवं लगातार रसायनिक खादों के उपयोग से भी मिट्टी का ह्रास होता है।

(2) घटिया बीजों का उपयोग:-- उच्च कोटि के बीज का उपयोग नहीं होने के कारण प्रति एकड़ उपज अन्य राज्यों की अपेक्षा कम होती है।

(3) खेतों का आकार छोटा होना:-- खेतों के छोटा होने से वैज्ञानिक पद्धति से खेती संभव नहीं हो पाता है ।

(4) सिंचाई की समस्या:-- कृषि मानसून पर आधारित है। कृषि भूमि की मात्र 46% पर ही सिंचाई उपलब्ध है।

(5) बाढ़:-- प्रत्येक साल नदियों के मार्ग बदलने से नदी मार्ग से बाहर निकली हुई भूमि पर अधिपत्य को लेकर बाहुबलियों एवं नक्सलियों का आतंक दियरा प्रदेश की एक समस्या बन गई है। इन सभी समस्याओं के अलावें पूंजी का अभाव, पशुओं की दयनीय स्थिति, किसानों में रूढ़िवादिता,जनसंख्या, आर्थिक, सामाजिक, समस्याएं कृषि विकास के लिए बाधक है।

प्रशन 7:-- बिहार के वनों का वर्णन करें।

उत्तर:-- बिहार में कुल भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 6.65 प्रतिशत भाग ही वनाच्छादित है । राष्ट्रीय नीति के अनुसार 33.3 प्रतिशत भाग पर वन होने चाहिए।लेकिन बिहार में वनों की लगातार कटाई तथा वन क्षेत्र को कृषि क्षेत्रों में बदल दिए जाने के कारण यहां के वन लुप्त होते जा रहे हैं। यहां के वन मानसूनी प्रकार के पर्णपाती (पतझड़) वाले अर्थात इन वनों के पेड़ वर्ष में एक बार अपने पत्ते झाड़ देते हैं।

*बिहार में दो प्रकार के वन पाए जाते हैं:---

(1) आद्र पर्णपाती वन:-- इस प्रकार के वन मुख्यत: पश्चिमी चंपारण के सोमेश्वर और दूर की श्रेणियों की ढ़ालो पर तथा सहरसा, पूर्णिया एवं अररिया के उत्तरीय तराई क्षेत्र में (197 वर्ग किलोमीटर में) पाए जाते हैं। आम ,जामुन ,कटहल, सखुओ, पलास, पीपल, सेमल, अमलतास, बरगद ,करंज, केन, गंभार आदि के पेड़ इन वनों में बहुतायत से उगते हैं।

(2) शुष्क पर्णपाती वन:-- शुष्क पर्णपाती वनों में भी पर्याय: वहीं पेड़ उगते हैं, किंतु उनका आकार छोटा होता है। इस प्रकार के वनों में शीशम, महुआ, पलास, बबूल, खजूर और बांस मुख्य रूप से उगते हैं। ऐसे वन  मैदानी भागों में पाए जाने के कारण कृषि कार्य एवं आवास हेतु तेजी से काटे जा रहे हैं। बिहार में गया, दक्षिणी मुंगेर तथा दक्षिणी भागलपुर में इस प्रकार के वन सघनता से मिलते हैं।

वनों के अभाव के कारण बिहार में वन्यजीवों की कमी है। वनों की कटाई पर रोक, विलुप्त वन क्षेत्र में नया वन लगाने, उद्यानों के विकास तथा कृषि वानिकी पर बल देने के फलस्वरुप वनों का क्षेत्रफल 2008-09 में 6,22,000 हेक्टेयर हो गया है।

प्रशन 8:-- बिहार में नगरों के विकास पर प्रकाश डालें।

उत्तर:--- बिहार में नगरों के विकास की गति काफी धीमी है। वास्तव में नगरीकरण की अवस्था आर्थिक समृद्धि  एवं विकास का सूचक होती है। बिहार की कुल जनसंख्या 10. 38 करोड़ है जबकि राज्य की कुल जनसंख्या का मात्र 11.3 प्रतिशत लोग ही नगरों में निवास करते हैं।। यह भारत का नगरीय जनसंख्या की अपेक्षा काफी कम है। यहां के लगभग 88.7 प्रतिशत आबादी आज भी गांवों में निवास करती है। बिहार में केवल 117. 29 लाख व्यक्ति ही नगरों में निवास करते हैं। एवं नगरीय सुविधा का लाभ उठाते हैं। बिहार भारत में सबसे अधिक घनत्व वाला राज्य है। 1991 की जनगणना के अनुसार यहां छोटे बड़े आकार के नगरों की जनसंख्या 219 थी। 2001 की जनसंख्या के अनुसार यहां 21 बड़े नगर थे । वर्तमान में इनकी संख्या 27 हो गई है।

बिहार के अधिकांश नगरों का अनियमित एवं अनियोजित विकास हुआ है। हाल के वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों की ओर रोजगार की तलाश में पलायन में वृद्धि हुई है। इससे नगरों की स्थिति भी भयानक रूप से प्रभावित हुई है। स्वास्थ्य, संस्कृति एवं परिवहन सुविधाओं के कारण  ध्वनि एवं वायु प्रदूषण की समस्याएं भी विकराल रूप धारण कर रही हैं। बिहार के नगरों के सामने भी अनेक समस्याएं हैं। जैसे-- आवास परिवहन, पेयजल जल निकास, स्वास्थ्य ,प्रदूषण, झुग्गी झोपड़ीयों हिंसा एवं अपराध का बढ़ता ग्राफ इत्यादि।

पटना, नालंदा, राजगीर, गया, वैशाली, बोधगया, उदंतपुरी, सीतामढ़ी प्राचीन नगरों में गिने जाते हैं। मध्यकाल में सासाराम, दरभंगा, पूर्णिया, छपरा, सिवान आदि नगरों का विकास हुआ। ब्रिटिश काल में रेल और विभिन्न उद्योगों के कारण बरौनी ,हाजीपुर, दानापुर, डालमियानगर ,मुंगेर ,जमालपुर, कटिहार इत्यादि नगरों का विकास हुआ।

प्रशन 9:-- बिहार में चीनी उद्योग पर प्रकाश डालें।

उत्तर:-- कदी फसल होने के कारण गन्ने का उत्पादन किया जाता है, यह चीनी उद्योग का कच्चा माल है। बिहार की उपजाऊ मिट्टी में गन्ने का उत्पादन अनेक भागों में किया जाता है। महाराजगंज, पचरुखी, हथुआ, गोपालगंज, मझौलिया, चनपटिया, नरकटियागंज, बगहा, गरौल, सकरी, रैयाम ,लोहट, समस्तीपुर , सिवान ,हसनपुर, गुरारू ,बिहार ,वारसलीगंज इत्यादि स्थानों पर चीनी मिलें स्थापित है।

*चीनी उद्योग के सम्मुख निम्नांकित कुछ कठिनाइयां हैं:--

(1) बिहार की चीनी मिलें बहुत पुरानी है । मशीनों की डिजाइन भी पुरानी है और पर्याय: सभी  घिस गई है।आधुनिक तकनीकों पर काम करने वाली नई मशीनों से उत्पादन अधिक हो सकता है। घाटे के कारण कुछ मिले बंद हो गई है।

(2) 1960 के पहले देश के कुल चीनी उत्पादन का एक तिहाई भाग बिहार से प्राप्त होता था। 2012-13 में मात्र 3.5 लाख  टन चीनी का उत्पादन हो पाया।

(3) बिहार में 10 टन गन्ने से 1 टन चीनी प्राप्त होती है।

(4) गन्ने की फसल में खाद, पानी, निराई, गुड़ाई में बहुत खर्च पड़ता है । मध्यम किसान अपनी सारी पूंजी लगाकर साल भर के बाद जब गन्ना मिलों में पहुंचाते हैं तो उन्हें समय पर गन्ने की कीमत नहीं मिलती है। इससे उनकी आर्थिक कमर टूट जाती है।अतः में गन्ने की खेती बंद कर दूसरी फसलों का उत्पादन करने लगते हैं।

(5) उत्तर भारत के गन्ने से वैसे भी चीनी कुछ कम प्राप्त होती है। साथ ही , मौसम के बार भी मई-जून तक गन्ने की पेराई होती रहती है। फरवरी के बाद धूप के कारण चीनी की मात्रा घट जाती है।

(6) 2004 के बाद से पुनः चीनी उद्योग विकास के मार्ग पर अग्रसर हैं।

प्रशन 10:-- बिहार के तीन प्रमुख नदीघाटी परियोजनाओं का नाम बताएं एवं किसी एक का वर्णन विस्तारपूर्वक करें।

उत्तर:-- बिहार की प्रमुख नदी घाटी परियोजनाएं हैं--

1. कोसी परियोजना

2. गंडक परियोजना

3. सोन परियोजना।

*कोसी परियोजना:-- यह उत्तर पूर्वी बिहार की बड़ी नदी कोसी से संबंधित परियोजना,जो हिमालय से निकलती है और विनाशकारी बाढ़ और बदलती धारा के कारण बिहार का शोक कहलाती है। अपने दोनों ओर की भूमि में यह बालू भर देती है। जिससे कृषि  बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाती है। 1896 में  ब्रिटिश शासनकाल में इस परियोजना की कल्पना की गई थी, परंतु स्वतंत्र भारत में 1955 में से इससे परियोजना के रूप में विकसित करने का प्रयत्न किया गया ।इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य बाढ नियंत्रण था, किंतु बाद में सिंचाई हेतु नेहरे निकालकर कृषि विकास करना और जल विद्युत उत्पन्न कर औद्योगिक विकास करना भी इसमें सम्मिलित किया गया। यह परियोजना भारत और नेपाल सरकारों की सहमति से बनी। बिहार - नेपाल की सीमा पर स्थित हनुमान नगर में नदी के आर-पार बराज बना, फिर दो तटबंध और दो जलमोड़ बांध बनाए गए। बाढ़ के रुक जाने से इस क्षेत्र में होने वाली मलेरिया, घेघा  आदि बीमारियों पर भी काबू पाया गया। इस परियोजना से नदी के दोनों ओर नेहरे निकाली गई और जल विद्युत उत्पन्न करने के लिए शक्तिगृहत बनाए गए। इस परियोजना से उत्पन्न की जा रही जल विद्युत का उपयोग बिहार के अतिरिक्त नेपाल सरकार भी कर रही हैं। अब कोसी क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा से फसलों का उत्पादन बढ़ चला है और मानव बसाव बढ़ रहा है।

Class 10 Geography Notes Chapter 1

Class 10 Geography Notes Chapter 2

Class 10 Geography Chapter 1 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

Class 10 Geography Chapter 1 लघु उत्तरीय प्रश्न

Class 10 Geography Chapter 1 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Class 10 Geography Chapter 2 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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Class 10 Geography Chapter 3 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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Class 10 Geography Chapter 4 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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Class 10 Geography Chapter 5 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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Class 10 Geography Chapter 6 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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