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Class 10th Bharati Bhawan Geography Chapter 7 | Bihar Board Class X Bharti Bhawan Bhugol | कक्षा 10वीं भारती भवन भूगोल अध्याय 7 कृषि संसाधन | लघु उत्तरीय प्रश्न

Class 10th Bharati Bhawan Geography Chapter 7  Bihar Board Class X Bharti Bhawan Bhugol  कक्षा 10वीं भारती भवन भूगोल अध्याय 7 कृषि संसाधन  लघु उत्तरीय प्रश्न
Class 10th Bharati Bhawan Geography
लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रशन 1:-- भारत में कृषि के लिए कौन सी भौगोलिक सुविधाएं प्राप्त है?

उत्तर:-- भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत में कृषि के लिए निम्नलिखित भौगोलिक सुविधाएं प्राप्त है---

(1) भारत में कृषि के लिए विशाल भूमि क्षेत्र है ।

(2) भारत में कृषि का प्रतिशत भी उच्च मिलता है ।

(3) भारत में बहुत उपजाऊ मिट्टी उपलब्ध है ।

(4) भारत में जलवायु की अनुकूलता पाई जाती है।

(5) भारत में फसलों के लिए लंबा वर्धनकाल पाया जाता है ।

अतः उपरोक्त विचार बिंदुओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत में कृषि के लिए अनुकूल भौगोलिक सुविधाएं प्राप्त है। इन भौगोलिक सुविधाओं के कारण ही भारत एक कृषि प्रधान देश है।

प्रशन 2:-- भारत किन कृषि जन्य पदार्थो का निर्यात करता है? किन्ही पांच का उल्लेख करें।

उत्तर:-- भारत एक कृषि प्रधान देश है।यहां कृषि कार्य करने के लिए अनेक भौगोलिक सुविधाएं पाई जाती है। भारत में अनेक व्यावसायिक फसलों का भी उत्पादन होता है। इन व्यासायिक फसलों के उत्पादन से न केवल यहां की जनता का भरण पोषण होता है, बल्कि इनका निर्यात भी किया जाता है। इन व्यावसायिक  फसलों के निर्यात से भारत को विदेशी मुफ्त  की प्राप्ति होती है। भारत विभिन्न कृषि जन्य पदार्थो या फसलों का निर्यात करता है। इनमें से पांच इस प्रकार है---

(1) गन्ना (2) तेलहन (3) तंबाकू (4) मसाले तथा (5) रबर । इसके अतिरिक्त भारत आलू ,रबल, कपास, फलों, जूट इत्यादि का भी निर्यात करता है।

प्रशन 3:-- भारत में कृषि की दो प्रमुख ऋतुएं  कौन-कौन हैं? उनमें उगाई जाने वाली फसलों को किन अलग-अलग दो नामों से पुकारा जाता है?

उत्तर:-- भारत में कृषि की दो प्रमुख ऋतुएं खरीफ और रब्बी ऋतुएं हैं। इन दोनों ऋतुओं का विवेचन इस प्रकार है--- 

(1) खरीफ:-- मानसून पूर्व की ऋतु जिसमें खेत जोतकर धान की रोपाई के लिए खेतों में बीच डाल दिए जाते हैं और वर्षा की प्रतीक्षा की जाती है। वर्षा शुरू होते ही कृषि कार्य जोर पकड़ने लगते हैं। जून-जुलाई में फसलों की खेती आरंभ होती है और मानसूनी वर्षा की समाप्ति तक फसलें पक कर तैयार हो जाती है। धान, ज्वार बाजरा, मकई, मूंगफली, जूट, कपास और अरहर (इस दल्हन को पकने में अधिक समय लगता है) की फसलों की खेती इसी ऋतु में की जाती है। ये खरीफ फसलें कहलाती है।

(2) रबी:-- वर्षा ऋतु के बाद और जाड़ा आरंभ होने पर जिन फसलों की खेती की जाती है वे रबी फसले कहलाते हैं, जैसे--  गेहूं ,चना, मटर, सरसों आदि ये ऋतु रबी  की ऋतु कहलाती है जिसमें नवंबर में बुवाई और अप्रैल-मई में इन फसलों की कटाई की जाती है ।

प्रशन 4:-- पश्चिमोत्तर भारत की प्रमुख उद्दान्न फसल कौन है? उसके तीन सबसे अधिक उत्पादक राज्य कौन कौन हैं? किन दो व्यावसायिक फसलों की खेती से उसे होड़ लेनी पड़ती है?

उत्तर:-- पश्चिमोत्तर भारत की प्रमुख उद्यान फसल गेहूं है। इसे पीसकर आद्र बनाया जाता है। इसके तीन सबसे अधिक उत्पादक राज्य पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश हैं। गेहूं की फसल को गन्ना और कपास नामक व्यावसायिक फसलों की खेती से होड़ लेनी पड़ती है।

प्रशन 5:-- भारत की दो शुष्क खद्दन्न फसलें कौन-कौन है? उनके प्रमुख उत्पादक राज्यों के नाम लिखें।

उत्तर:-- भारत की दो शुष्क खद्दान्न फसलें ज्वार तथा बाजरा है।ज्वार के सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश है तथा बाजरा की सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर  प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक और तमिलनाडु है।

प्रशन 6:-- मकई के पांच प्रमुख उत्पादक राज्य कौन कौन हैं? गरीब किसानों के लिए इसका बड़ा महत्व है। कैसे? 

उत्तर:-- मकई के पांच प्रमुख उत्पादक राज्य बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और मध्य प्रदेश हैं। ये पांच राज्य मिलकर भारत के तीन चौथाई मकई उत्पन्न करते हैं।

मकई मुख्यत: भदई फसल है और तीन चार महीनों में तैयार हो जाती है। रबी और धान की फसलों के कटने के समय जो लंबी अवधि आती है उसी बीच यह तैयार होता है अतः गरीब किसानों के लिए इसका बड़ा महत्व है। चूंकि यह फसल कम समय में ही तैयार हो जाता है जो किसानों के लिए बहुत लाभदायक होता है।

प्रशन 7:-- हमारे खाद्यान्नो के भावी बजट पर टिप्पणी लिखें।

उत्तर:-- प्रारंभ से ही भारत कृषि प्रधान देश रहा है। भारत में खदानों की बढ़ोतरी दिन प्रतिदिन हो रही है। पिछले लगभग 55 वर्षों में यह 65 करोड़ टन से बढ़कर 22 करोड़ टन पहुंच गया है। लेकिन इस अवधि में जनसंख्या का घनत्व भी बढ़ा है। जनसंख्या का घनत्व बढ़ने से खदानों के भंडारों में कमी होगी। 2011 की जनगणना के अनुसार अभी भारत में 121 करोड़ जनसंख्या हो गई है। यानी 2001 की जनगणना के मुकाबले में यह लगभग 21 करोड़ बढ़ गई है। अतः खदानों के बढ़ोतरी के साथ साथ जनसंख्या का घनत्व भी बढ़ा है । अतः बढ़ी हुई जनसंख्या को खदान उपलब्ध कराने के लिए और अधिक बढ़ोतरी की जरूरत महसूस हो गई है। साथ ही हमें जनसंख्या पर नियंत्रण रखना होगा। जनसंख्या के नियंत्रित होने से खदानों का भविष्य में उचित उपयोग कर खदान के कमी होने की समस्या से छुटकारा मिलेगा और भावी पीढ़ी को खदान की कमी महसूस नहीं होगी।

प्रशन 8:-- भारत की दो प्रमुख पेय फसलें कौन-कौन है? उनके उत्पादन की भौगोलिक दशाओं में क्या समानता और असमानता मिलती है? 

उत्तर:-- भारत का दो प्रमुख पेय फसल (1) चाय (2) कहवा है । इनके उत्पादन के लिए भौगोलिक दशाओं में लगभग समानता पाई जाती है। चाय और कहवा दोनों महत्वपूर्ण पेय फसल है। दोनों के लिए निम्नांकित भौगोलिक दशाओं की आवश्यकता होती है--- 

(1) उच्च तापमान:-- चाय और कॉफी उत्पादन के लिए वर्ष भर 20०C से 30 ०C तापमान की आवश्यकता होती है। दोनों ही छाया पसंद पौधा है।

(2) अधिक वर्षा:-- 200 सेंटीमीटर से अधिक वार्षिक वर्षा दोनों ही उपज के लिए उपयुक्त मानी जाती है।

(3) ढ़ालू भूमि:-- दोनों की पैदावार के लिए ढ़ालू भूमि आवश्यक होती है। क्योंकि अधिक वर्षा होने पर भी इनके पौधों की जड़ों में जल का जमाव नहीं होना चाहिए। जल का जमाव हानिकारक होता है।

प्रशन 9:-- भारत की दो रेशेदार फसलों के नाम लिखें । किसे सुनहरा रेशा और किसे उजला सोना कहा जाता है। दोनों की उत्पादन दशाओं में क्या भिन्नता पाई जाती है? 

उत्तर:-- भारत में दो रेशेदार फसल हैं --(1) जूट (2) कपास ।

जूट को सुनहरा रेशा और कपास को उजला सोना कहा जाता है। इनके उत्पादन के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाओं में अंतर पाया जाता है --- 

(1) जूट की खेती के लिए उच्च तापमान और जलवायु की आवश्यकता होती है। तापमान 25०C से 35०C तक आवश्यक है। जबकि कपास के लिए 21 डिग्री सेल्सियस  से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता है ।

(2) जूट के लिए 200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा जबकि वर्षा कम यानी 75 सेंटीमीटर से 100 सेंटीमीटर ही वर्षा आवश्यक होती है।

(3) जूट की खेती के लिए समतल भूमि और जलोढ़ मिट्टी उत्तम मानी जाती है जबकि कपास की खेती के लिए काली मिट्टी उत्तम होती है ।

(4) जूट के लिए जलाशय का होना आवश्यक है तो दूसरी और कपास के लिए अंतिम समय में तेज धूप होना आवश्यक है।

प्रशन 10:-- तेलहन फसलों के नाम लिखें और उनके उत्पादन क्षेत्रों का विवरण दें।

उत्तर:-- भारत में अनेक प्रकार के तेलहन फसल उगाए जाते हैं जिनके नाम निम्न है --- 

(1) मूंगफली:-- यह एक तेलहन फसल है। इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र  है। इसका सबसे बड़ा उत्पादक गुजरात राज्य हैं ।

(2) तिल :-- यह भी एक प्रमुख तेलहन फसल है। इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्र उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात हैं।

(3) राई और सरसों:-- यह भी प्रमुख तेलहन फसल है। इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों  में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश प्रमुख हैं।

(4) नारियल:-- यह भी एक प्रमुख तेलहन फसल है । इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में केरल प्रमुख है।

(5) अलसी या तीसी:-- यह भी एक प्रमुख तेलहन फसल है। इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र , पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक प्रमुख है।

(6) अंडी या रेड़ी:-- यह भी एक प्रमुख तेलहन फसल है। इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्र आंध्र प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक हैं।

(7) बिनौला:-- यह भी एक प्रमुख तेलहन फसल है। इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक ,मध्य प्रदेश ,आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु प्रमुख हैं।

प्रशन 11:-- किस तेलहन फसल के उत्पादन में भारत विश्व में अग्रणी है? इसके महत्वपूर्ण उत्पादन क्षेत्र बताएं।

उत्तर:-- राई और सरसों जैसे तेलहन फसलों के उत्पादन में भारत विश्व में अग्रणी है।

* राई और सरसों के उत्पादन क्षेत्र:-- इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश प्रमुख है।

प्रशन 12:-- किन राज्यों के तटीय क्षेत्र गरम मसालों की खेती के लिए प्रसिद्ध है? प्रमुख मसालों के नाम लिखें।

उत्तर:-- केरल और कर्नाटक के मालाबार तटीय क्षेत्र गरम मसालों की खेती के लिए प्रसिद्ध हैं। दक्षिण भारत मसाले के बीच व्यापार के लिए प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध रहा है। प्रमुख मसालों में मिर्च, लौंग, इलायची, दालचीनी, जावित्री ,अदरक, लहसुन ,हल्दी और तेजपत्ता प्रमुख है।

प्रशन 13:-- रोपण कृषि से आप क्या समझते हैं?

उत्तर:-- रोपण कृषि को व्यापारिक किसी भी कहा जाता है। इसमें झाड़ीनुमा पौधे या पैड़ बागान के रूप में लगाया जाता है। एक बार पेड़ लगाने के बाद कई वर्षों तक इसका उत्पाद लिया जाता है। यह खर्चीली खेती है जिसके रखरखाव में विशेष ध्यान देना पड़ता है। चाय, कॉफी ,रबर गरम मसाले की खेती इसी प्रकार से की जाती है। इस प्रकार की कृषि का लक्ष्य अच्छी पैदावार प्राप्त करना है।

प्रशन 14:-- हरित क्रांति क्या है?

उत्तर:-- 1967-1968 में कृषि उत्पादन बढ़ाने और देश को खदान उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई प्रयास किए गए जिसके अंतर्गत जोत भूमि का नए संकर बीजों का प्रयोग, उर्वरकों के उपयोग को प्रोत्साहन, मृदा संरक्षण एवं भूमि सुधार का कार्यक्रम चलाया गया, सिंचाई का विस्तार और कृषि में नई तकनीकों को अपनाया गया। इस प्रयास से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में गेहूं एवं धान के उत्पादन में जो वृद्धि हुई ,जो सफलता मिली इसे ही हरित क्रांति के नाम से जाना जाता है।

इसी प्रकार के प्रयास और तकनीक का प्रयोग कर पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी गेहूं और चावल के उत्पादन में वृद्धि की गई।

प्रशन 15:-- ऑपरेशन फ्लड क्या है?

उत्तर:-- पशुपालन पर आधारित उद्योगों में दुग्ध उद्योग सर्वप्रमुख हैं। वैज्ञानिक ढंग से दुधारू पशुओं को पालकर दुग्ध व्यवसाय को बढ़ावा दिया जा रहा है। वर्ष 2009 -10 में 12 करोड़ टन से अधिक दूध उत्पादन कर भारत दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में विश्व में पहला स्थान प्राप्त कर चुका है। डेयरी विकास या दुग्ध उत्पादन में वृद्धि से श्वेत क्रांति लाई जा रही है। इस क्रांति को ही ऑपरेशन फ्लड नाम से भी जाना जाता है।इससे देश में बहुत बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी प्राप्त हो रहे हैं।

प्रशन 16:-- भारतीय कृषि को मानसूनी जलवायु किस ढंग से प्रभावित करता है? कारण बताएं।

उत्तर:-- मानसूनी जलवायु भारतीय कृषि को अवश्य प्रभावित करती हैं। भारत एक मानसूनी जलवायु वाला देश है। इसलिए हमारे देश में वर्षा मांनसून से होती है, जो स्वयं निश्चित है। जिस वर्ष मांनसून समय पर एवं पर्याप्त मात्रा में होती है उस वर्ष की कृषि की पैदावार भी अच्छी होती है। इसके विपरीत मांनसून के असामयिक और अपर्याप्त होने पर कृषि उपज कम हो जाती है। यही कारण है कि भारतीय कृषि को मांनसून के साथ जुआ कहा गया है। मांनसूनी जलवायु होने के कारण यदि वर्षा समय पर पर्याप्त मात्रा में हो जाती है तो कृषि कार्य करने में सुविधा होती है। खदान फसलों के साथ-साथ व्यावसायिक फसलों का उत्पादन अच्छी मात्रा में होता है। लेकिन यदि वर्षा समय पर पर्याप्त मात्रा में नहीं होता है और देश भर में वर्षा का वितरण सही रूप से नहीं हो पाता है तो ऐसी हालत में कृषि  पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रशन 17:-- भूमि उपयोग में परिवर्तन किन कारकों के चलते हुआ है? 

उत्तर:-- भूमि उपयोग में परिवर्तन निम्म दो कारकों के चलते हुआ है ---

(1) जनसंख्या में वृद्धि :-- देश की जनसंख्या में वृद्धि स्वाभाविक है और बढ़ती आबादी के लिए निवास और बस्तियों के निर्माण में भूमि के कुछ भाग का उपयोग किया जाता है।

(2) उद्योगों का विकास:-- उद्योगों के विकास से उनकी स्थापना तथा परिवहन के लिए सड़क ,रेलमार्ग बनाने तथा औद्योगिक बस्तियों के निर्माण में कुछ कृषि भूमि का उपयोग किया जाता है।

प्रशन 18:-- कृषि के अतिरिक्त भूमि उपयोग के अन्य कौन-कौन संवर्ग है ?

उत्तर:-- कृषि के अतिरिक्त भूमि उपयोग  के अन्य संवर्ग निम्नलिखित हैं---

(1) वन क्षेत्र (2) बंजर और व्यर्थ भूमि (3) अकृष्य कार्यों में प्रयुक्त भूमि (4) स्थाई चारागाह और घास क्षेत्र (5) बाग बगीचे (6) कृषियोग्य व्यर्थ भूमि (7) पुरातन परती भूमि (8) वर्तमान परती भूमि (9) निबल बोई भूमि ।

प्रशन 19:-- चार खदान फसलों के नाम लिखें। उनमें कौन पश्चिमी भारत की प्रमुख फसल नहीं है? उसके उत्पादन की चार अनुकूल प्रमुख भौगोलिक दशाओं का उल्लेख करें।

उत्तर:-- चार खदान फसलों के नाम ये हैं---(1) चावल (2) गेहूं (3) मकई और (4) दलहन । इनमें चावल पश्चिमी भारत की प्रमुख फसल नहीं।

चावल या  धान के उत्पादन की चार  अनुकूल प्रमुख भौगोलिक दशाएं इस प्रकार है--- 

(1) उच्च तापमान:-- 20 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान आदर्श माना गया है, यद्यपि 16 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी इसकी बुआई की जा सकती है।

(2) ग्रीष्मकालीन पर्याप्त वर्षा:-- पानी धान का बड़ा रसायन होता है। इसके खेतों में कई महीनों तक पानी भरा रहना आवश्यक होता है। जिस क्षेत्र में 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है वहां यह फसल खूब विकसित होती है। वैसे 100-200 सेंटीमीटर ग्रीष्मकालीन वर्षा इसकी खेती के लिए आदर्श है।

(3) समतल भूमि:-- जल खेत में जमा रह सके इसके लिए समतल भूमि का होना आवश्यक है। जहां ऐसी भूमि नहीं होती वहां सीढ़ीनुमा खेत बनाने पड़ते हैं, जैसे पहाड़ी ढ़ालो पर या पठारी भूमि में।

(4) उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी:-- जिस मिट्टी में जल को संचित करने की या आद्र रखने की क्षमता होगी वही धान की खेती के लिए उपयुक्त हो सकती है। यही कारण है कि चिकनी कछारी और डेल्टाई मिट्टी उत्तम मानी जाती है। गंगा का मैदान तटीय मैदान, और ब्रह्मपुत्र घाटी के अतिरिक्त दक्षिण भारत की नदी घाटियों में ऐसी मिट्टी मिला करती है। अतः भारत में धान उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र ये हैं। मिट्टी कम उपजाऊ हो तो खाद्य कर उसे उपजाऊ बनाना आवश्यक है। हरी खाद का प्रयोग स्थाई लाभ पहुंचाता है।

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