Class 10th Bharati Bhawan Geography |
प्रशन 1:--भारतीय अर्थतंत्र में कृषि का क्या महत्व है? कृषि की विशेषताओं पर प्रकाश डालें।
उत्तर:-- भारतीय अर्थतंत्र में कृषि का निम्नलिखित महत्व है---
(1) भारत की 70% आबादी रोजगार और अजीविका के लिए कृषि पर आश्रित हैं।
(2) देश के सकल राष्ट्रीय उत्पादन में कृषि का योगदान 22% ही है । फिर भी बहुत सारे उद्योगों को कच्चा माल कृषि उत्पादन से ही मिलता है।
(3) कृषि उत्पादन से ही देश की इतनी बड़ी जनसंख्या को खदान की आपूर्ति होती है । अगर ऐसा ना हो तो खदान आयात करना पड़ेगा। आज देश खदान में आत्मनिर्भर है। इतना ही नहीं विकट परिस्थिति के लिए खदान का अच्छा भंडारण भी है ।
(4) कृषि के अनेक उत्पादन में भारत विश्व में पहले दूसरे एवं तीसरे स्थान पर हैं।
(5) अनेक कृषि उत्पादन का भारत निर्यातक है जिससे विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है ।
(6) कृषि ने अनेक उद्योगों को विकसित होने का अवसर प्रदान किया है ।
* भारतीय कृषि की विशेषताएं:-- भारत का एक बड़ा भूभाग कृषि योग्य हैं। यहां की जलवायु और उपजाऊ मिट्टी कृषि कार्य को बढ़ावा प्रदान करते हैं। भारत में कहीं एक फसल कहीं दो फसल और कहीं तीन तीन फसल तक उगाई जाती हैं। भारत में फसलों की अदला-बदली भी की जाती है, यहां अनाज की फसलों के बाद दलहन की खेती की जाती हैं। इससे मिट्टी में उर्वरक सकती बनी रहती है। यहां मिश्रित कृषि का भी प्रचलन है जिसमें गेहूं चना और सरसों की खेती एक साथ की जाती है।
प्रशन 2:--राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में कृषि के योगदान की समीक्षा करें ।
उत्तर:-- भारत में कृषि को राष्ट्रीय अर्थतंत्र की रीढ़ माना जाता है। देश के 70% लोग रोजगार और आजीविका के लिए कृषि पर आश्रित है।
कई कृषि उत्पाद विदेशों को निर्यात किए जाते हैं। जिससे अच्छी विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है, जैसे गरम मसाला, चाय, कपास, जूट, कहवा, फल आदि। कई कृषि उत्पाद भारतीय उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करते हैं। जैसे--- गन्ना, कपास, जूट जड़ी, बूटियां आदि। इन उद्योगों के विकास से देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती हैं।
देश की स्वतंत्रता के दशक में भारत को खदान का आयात करना पड़ता था। परंतु अब यह निर्यातक देश बन गया है। देश में खदानों का भंडार भी सुरक्षित है। चाय, दूध, फल के उत्पादन में भारत विश्व में सबसे आगे बढ़ गया है। गेहूं, चीनी में दूसरे स्थान पर और चावल तंबाकू के उत्पादन में तीसरे स्थान पर है। उन्नत किस्म के बीज, उर्वरक तथा उत्पादन के दौरान फलों और सब्जियों को तोड़ने, परिवहन, भंडारण की नई तकनीक से यह विकास संभव हो पाया है। फिर भी बढ़ती हुई आबादी के लिए और अधिक उत्पादन हेतु अधिक प्रयास की आवश्यकता है।
प्रशन 3 :-- गेहूं की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों की विवेचना करें।
उत्तर:-- गेहूं दूसरी महत्वपूर्ण खाद्य फसल है। गेहूं शीतोष्ण फसल है। चावल की तरह ही चीन के बाद भारत गेहूं का दूसरा उत्पादक देश है। इसकी निम्नलिखित दशाएं उपयुक्त है---
(1) फसल:--रबी तथा अनाज की फसल ।
(2) वर्षा:-- 75 सेंटीमीटर से कम। फसल कटते समय वर्षा हानिकारक है।
(3) तापमान:-- बोते समय ठंडा तथा आद्र तापमान आवश्यक है। तापमान 10 डिग्री सैंटीमीटर से 15 डिग्री सेंटीमीटर तक होना चाहिए। गेहूं काटते समय तापमान 20 डिग्री सेंटीमीटर से 30 डिग्री सेंटीमीटर के मध्य होना चाहिए।
(4) मृदा :-- दोमट मिट्टी। जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए।
(5) उत्पादक राज्य:-- गेहूं की कृषि भारत के उत्तरी- पश्चिमी भागो तक सीमित है। पंजाब, हरियाणा, उत्तरी राजस्थान , उत्तरी गुजरात तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश। अब भारत गेहूं के निर्यात की स्थिति में है।
प्रशन 4:-- भारतीय कृषि पर भूमंडलीकरण के प्रभाव पर एक निबंध लिखें।
उत्तर:-- भूमंडलीकरण का उद्देश्य है हमारे राष्ट्रीय अर्थतंत्र का विश्व अर्थतंत्र से जुड़ना। विश्व का बाजार सबके लिए मुक्त हो। इससे अच्छे किस्म का सामान उचित मूल्य पर कहीं भी पहुंचाया जा सकेगा।
भारतीय कृषि के विकास के लिए उपयुक्त जलवायु, मिट्टी और श्रमिकों का सहारा लेकर किसान उन्नत किस्म के खदानों तथा अन्य कृषि उत्पादों को विश्व बाजार में प्रवेश करा सकेंगे । इसमें प्रतिस्पर्धा का सामना होगा। सामना करने के लिए उन्नत तकनीकी उपायों का सहारा लेना होगा। भारतीय कृषि में अधिकाधिक विकास करने की आवश्यकता है।
भूमंडलीकरण भारत के लिए कोई नया कार्य नहीं है। प्राचीन समय से ही भारतीय सामान विदेशी में जाया करता था और विदेशों से आवश्यक सामग्री भारतीय बाजारों में बिकते थे। परंतु 1990 से वैधानिक रूप से भूमंडलीकरण और उदारीकरण की नीति अपनाने के बाद विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा के कारण कृषि के क्षेत्र में उन्नत तकनीक और मशीनों का प्रयोग बढ़ रहा है। साथ ही खदानों की अपेक्षा व्यापारिक फसल के उत्पादन को बढ़ावा मिल रहा है।
प्रशन 5:--शस्य गहनता क्या है? इसको प्रभावित करने वाले कारकों की चर्चा करें।
उत्तर:-- एक ही कृषि में एक ही भूमि पर एक से अधिक फसलों को उगाकर कुल उत्पादन में वृद्धि करना ही शस्य गहनता कहलाता है। उदाहरण द्वारा इसे समझा जा सकता है--- आपके पास 3 हेक्टेयर भूमि है। एक वर्ष में तुम धान की फसल बोकर धान उपजाते हो, उसके बाद रबी के समय उसी 3 हेक्टेयर में तुम गेहूं बोकर उसकी फसल काटते हो, फिर जायद फसल के समय कम अवधि में तैयार होने वाली मूंग की फसल बोकर उसकी कटाई कर लेते हैं तो सच मायने में तुम्हारे पास 3 हेक्टेयर जमीन है किंतु एक वर्ष में तुम इसी भूमि से तीन बार फसलों का उत्पादन करते हो तो तुमने 3 गुना 3 बराबर 9 हेक्टेयर जमीन में उत्पन्न होने वाली फसल का लाभ उठा लिया ।
प्रशन 6:-- आद्रता के उपलब्ध साधनों के आधार पर कृषि के प्रकारों की जानकारी दें। शुष्क भूमि या बारानी कृषि की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:-- आद्रता के उपलब्ध साधनों के आधार पर कृषि के दो प्रकार होते हैं---
(1) सिंचित कृषि
(2) बारानी या वर्षा आधारित कृषि ।
(1) सिंचित कृषि:--फसलों में सिंचाई करने के दो उद्देश्य हैं--
(क) फसल की रक्षा के निमित्त सिंचाई या रक्षित संचाई ।
(ख) अत्यधिक उत्पादन की दृष्टि से की गई सिंचाई ।
(क) रक्षित संचाई:-- इसमें संचाई उसी प्रकार की जाती हैं जब समय पर वर्षा नहीं हो पाती है और भूमि की नमी समाप्त होने लगती है। जिन क्षेत्रों में सिंचाई के साधनों का अभाव है वहां कुएं या तालाब से इस प्रकार की सिंचाई की जाती है।
(ख) उत्पादक संचाई:-- खरीफ फसलों को अत्यधिक सिंचाई या जल की आवश्यकता पड़ती है। वही उन्नत बीजों की फसलों तथा रासायनिक उर्वरकों के उपयोग के समय भी मिट्टी में पर्याप्त नमी आवश्यक होती है। अन्यथा फसल के खराब होने का भय रहता है।इसलिए इनमें भी सिंचाई अधिक करनी पड़ती है। गन्ने की फसल को वर्षा होने तक बार बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। इसी प्रकार सब्जियों की फसलों को जो जायत के साथ तैयार की जाती है, प्राय; निरंतर सींचना पड़ता है।
बारानी या वर्षा आधारित कृषि:-- भारत में प्राय: 38.67% भू भाग पर बारानी खेती होती है । इस वर्षा पर निर्भर कृषि के दो वर्ग हैं--(क) शुष्क भूमि कृषि एवं (ख) आद्र भूमि कृषि।
(क) शुष्क भूमि कृषि:-- 75 सेंटीमीटर से कम वर्षा के क्षेत्रों में कुछ चुनी हुई फसलें ही उगाई जाती हैं।ये फसलें शुष्कता को सहन करने में समक्ष होती है, जैसे-- ज्वार, बाजरा, मूंग, कपास, चना इत्यादि। शुष्कता सहन करने वाली फसलों की प्रमुख पहचान यह है कि इनकी पत्तियों की निचली सतह पर रोएं होते हैं इनसे जल का बाष्पन कम होता है।
(ख) आद्र भूमि कृषि:-- भारत के कुछ भागों में वर्षा काल में पर्याप्त वर्षा होती है तथा कहीं-कहीं बाढ़ भी आ जाती है। बाढ़ जहां नयी उर्वरक मिट्टी की परत जमा करती हैं वहीं कई भागों में इससे मृदा अपरदन की समस्या भी उत्पन्न होती हैं। इसलिए खेतों की मेड़ और अधिक मजबूत बनाई जाती है धान, गन्ना और जूट के उत्पादन के लिए यह आदर्श स्थिति है। साथ ही मक्का, खीरा, ककरी, खरबूज इत्यादि की इन क्षेत्रों में अधिक होती है ।
"शुष्क भूमि या बारानी कृषि की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं---
(1) वर्षा जल के संग्रहण की विभिन्न विधियों का प्रयोग विभिन्ना स्थानों पर पारंपरिक रूप से किया जाता है। इस संग्रहित जल का उपयोग वर्षा के शेष समय में किया जाता है।
(2) तालाबों और छोटे-छोटे अवरोधों से वर्षा जल को व्यर्थ बहने से रोका जाता है। यहां भूमिगत जल के पुनर्भरण के काम में आता है।
(3)शुष्क भूमि के क्षेत्रों में आद्रता की कमी के कारण मृदा में हयूमस जीवांश की मात्रा कम रहती है ।
(4) तेज हवा, आंधी ,लू के समय मिट्टी की ऊपरी परत का कटाव अधिक होता है।
(5) कुछ अपवादों को छोड़कर इन क्षेत्रों में पर्याय: गरीब किसान ही बसे होते हैं, जो न तो उन्नत बीज खरीद सकते हैं और न ही उर्वरक पूंजी के अभाव में कृषि का उत्पादन भी कम हो पाता है।
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