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Class 10th Bharati Bhawan Geography | Chapter 4 Forest and Wildlife Resources | Long Type Questions | कक्षा 10वीं भारती भवन भूगोल अध्याय 4 वन और वन्य प्राणी संसाधन | दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Class 10th Bharati Bhawan Geography  Chapter 4 Forest and Wildlife Resources  Long Type Questions  कक्षा 10वीं भारती भवन भूगोल अध्याय 4 वन और वन्य प्राणी संसाधन  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
Class 10th Bharati Bhawan Geography

प्रशन 1:-- विभिन्न प्रकार के भारतीय वनों का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत करें। इनमें किसे सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है और क्यों ?

उत्तर:-- धरातलीय स्वरूप, मिट्टी और जलवायु की दशाओं में विविधता के कारण भारत में विभिन्न प्रकार के वन पाए जाते हैं जो निम्न प्रकार के हैं ---

1. चिरहरित वन या सदाबहार वन 

2. पर्णपाती वन या पतझड़ वन 

3. पर्वतीय  वन या कोंधारी वन

4. डेल्टाई वन या ज्वारीय वन 

5. कंटीले वन या मरुस्थलीय वन  

1. सदाबहार वन:-- भारत में सदाबहार वन सघन होते हैं। इन्हें काटना, वनों से बाहर निकालना और उपयोग में लाना कठिन होता है। इनकी लकड़ी कड़ी होती है। इनमें कई जाति के वृक्ष एक साथ मिलते हैं। अधिक वर्षा और दलदली भूमि के कारण यातायात में कठिनाई होती है। इसलिए लकड़ियों का सही उपयोग नहीं हो पाता है। इनमें एबाणी और महोगनी मुख्य वृक्ष पाए जाते हैं।

2. पतझड़ वन:-- यह आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इनमें सागवान और साल मुख्य वृक्ष पाए जाते हैं । अन्य वृक्षों में अंजन, चंदन, चिरौंजी, हरे वहेड़ा, आंवला, शहतूत, बरगद, पीपल, कटहल, आम, जामुन, नीम, नारियल, बांस, मानसूनी वन के रूप में पाए जाते हैं। ये न तो अधिक घने होते हैं और न ही इनकी लकड़ी अधिक कठोर होती है। इनकी लकड़िया उपयोगी होती है।

3. कोंधारी वन:-- ह वन पर्वत के अधिक ऊंचाई पर पाए जाते हैं। इनमें देवदार, चीड़, हेमलॉक स्प्रुस जाति के पेड़ पाए जाते हैं। इनकी लकड़ीयां मुलायम होती है। इन्हें काटना और उपयोग में लाना आसान होता है।

4. ज्वारीय वन:-- तटीय भागों में इस प्रकार के वन पाए जाते हैं। इनमें वृक्षों की बहतायत रहती है। लकड़ीयां जलावन और छोटी नाव बनाने में काम आती है। इनमें सुंदरी वृक्ष , केवड़ा मैंग्रोव, शिर्डी तेरा हीरे तेरा हिरिटिरा गरोन आदि मुख्य वृक्ष है, ताड़ और नारियल के वृक्ष भी मिलते हैं ।

5. मरुस्थलीय वन:-- यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों  में पाए जाते हैं। इनमें बबूल एवं खजूर के पेड़ पाए जाते हैं। नागफनी और कैक्टस जाति की झाड़ियां भी पाई जाती है।

प्रशन 2:-- भारत में वन संपदा की वृद्धि के उपायों पर प्रकाश डालें।

उत्तर:-- भारत में वन संपदा की वृद्धि के वन संरक्षण से हो सकती है। वन संपदा की वृद्धि के लिए विभिन्न उपाय किए जा सकते हैं जो निम्नलिखित हैं---

(1) काटे गए वृक्ष या क्षेत्र पर पुनः वृक्षारोपण करना चाहिए।

(2) वनों से केवल परिपक्व वृक्षों को काटना चाहिए ।

(3) वनों में अग्निरक्षा पथ और अग्निरोधक पथ की व्यवस्था करनी चाहिए ।

(4) वृक्षों को बीमारियों एवं कीटाणुओं  से बचाव हेतु वायुयान द्वारा दवा छिड़काव की व्यवस्था करनी चाहिए।

(5) सामाजिक वानिकी, क्षतिपूर्ति वानिकी कार्यक्रम का प्रचार प्रसार करना चाहिए।

(6) अपार्टमेंट स्वीकृति के लिए निश्चित क्षेत्र पर वृक्षारोपण की व्यवस्था करनी चाहिए।

(7) अवैध कटाई पर अंकुश लगाना चाहिए ।

(8) समाज में वृक्ष की महत्ता के प्रति लोगों को जागरूक करना चाहिए।

(9)जंगल क्षेत्र को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रयत्न करना चाहिए जिसके तहत पेड़ लगाओ अभियान को तेजी से लागू करना चाहिए।

(10) वनों की वृद्धि के लिए लोगों में अधिक से अधिक पेड़ लगाने की प्रेरणा उत्पन्न करनी चाहिए। विशेष रूप से परती और बेकार पड़ी हुई भूमि पर अधिक से अधिक पेड़ लगाना चाहिए।

प्रशन 3:-- भारत में वन्य प्राणियों की विविधता देखते बनती है। इस कथन की पुष्टि उदाहरण देते हुए करें।

उत्तर:-- भारत में वन्य प्राणियों की विविधता देखते बनती है। इस कथन की पुष्टि करने के लिए भारत में पाए जाने वाले विभिन्न वन्य प्राणियों का विवेचन करना जरूरी है। चूंकि भारत में विभिन्न प्रकार के वन्य प्राणी पाए जाते हैं। इसलिए यह कहा जाता है कि हमारे देश में वन्य प्राणियों की विविधता देखते बनती हैं।

हमारे देश में विभिन्न प्रकार के वन्य प्राणी और उसकी प्रजातियां पाई जाती है। उदाहरण के लिए बाघ, शेर, गेंडा, हाथी, हिरण, बारहसिंघा, वनैला, सूअर, बंदर और लंगूर, घरियाल, मोर अनेक प्रकार के सांप इत्यादि पाए जाते हैं। जो जीव जगत और परिस्थितिकी संतुलन के लिए आवश्यक है। ये  वन्य प्राणी  देश के विभिन्न वन क्षेत्रों में पाए जाते हैं। अतः यह कथन बिल्कुल सही है कि भारत में वन्य प्राणियों की विविधता देखते बनती है।

प्रशन 4:-- वन्य प्राणियों के संरक्षण की आवश्यकता बताते हुए इनके संरक्षण के उपाय बताएं।

उत्तर:-- वन्य प्राणियों का संरक्षण बहुत आवश्यक है। क्योंकि इससे जानवरों और पक्षियों की रक्षा होती है। साथ ही पारितंत्र का संतुलन बना रहता है। वन्य प्राणियों से समाज को अनेक लाभ है। इसलिए इनका संरक्षण करना आवश्यक है । वन्य प्राणी देखने में सुंदर होते हैं , जो मनोरंजन के साधन भी है , पर्यटक लोग इसे देखते हैं। वन्य प्राणी शिकार के लिए भी उपयुक्त है। साथ ही कृषि के लिए भी लाभदायक सिद्ध होते हैं। बहुत से छोटे जानवर जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं उसे मांसाहारी वन्य पक्षी खा जाते जिससे समाज को लाभ मिलता है। वन्य प्राणियों से बहुमूल्य पदार्थ भी प्राप्त होते हैं। इसलिए इनका संरक्षण करना आवश्यक है। संकटापन्न प्राणियों के संरक्षण के विशेष उपाय किए जा रहे हैं। इस विषय में समयिक गणना की जाती है जिसमें उनकी नवीन स्थिति का पता किया जा सके। बाघ परियोजना एक सफल कार्यक्रम है। देश के विभिन्न भागों में 16 बाघ परियोजनाएं चल रही है। इसी प्रकार गैंडा परियोजना आसाम में विकसित की गई है। भारतीय मैना राजस्थान और मालवा की दूसरी संकटापन्न प्रजाति की परियोजना है। यद्यपि शेर की भी संख्या घट रही है। देश में जैव विभिनता के संरक्षण के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। इस योजना के अंतर्गत पहला जैव आरक्षित क्षेत्र नीलगिरी में स्थापित किया गया। इसके अंतर्गत 5500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र फैला है जो केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु की सीमा पर है। इस प्रकार के 13 क्षेत्र है। देश में 63 राष्ट्रीय उद्यान, 358 वन्य जीव अभ्यारण्य  , 35 चिड़ियाघर है जो 130000 14 किलोमीटर क्षेत्र को घेरे हैं। वन्य जीव संरक्षण आवश्यक है, क्योंकि---  

(1) पक्षी और जानवरों की रक्षा होती है।

(2) पारितंत्र संतुलन बना रहता है।

* वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए विभिन्न उपाय किए जा सकते हैं जो निम्नलिखित हैं--

(1) शिकार पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।

(2) पशुओं के झुंड के प्रवेश पर रोक लगाना चाहिए।

(3) अधिक राष्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव अभ्यारय स्थापित किए जाने चाहिए ।

(4) वन्य जीव और बंदी प्रजनन किया जाना चाहिए।

(5) सेमिनार, कार्यशाला आदि का आयोजन किया जाना चाहिए।

(6) पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान किए जाने चाहिए।

(7) प्रजनन के लिए उचित दशाएं प्रदान किए जाने चाहिए ।

प्रशन‌ 5:-- विस्तार से बताएं कि मानव की क्रियाएं  किस प्रकार वन तथा वन्य प्राणियों के ह्रास के कारण है? 

उत्तर:-- वनस्पति प्रकृति का मानव को दिया गया एक अमूल्य उपहार है। ये वनस्पतियां अपने नाना रूपों से मानव के जीवन की रक्षा करते हुए विकास को गतिशील बनाने में सहायक होती है।दुर्भाग्य से विकास के इस दौर में मानव प्रकृति के अमूल्य योगदान को हमेशा याद रख पाते हैं। मानव ने स्वार्थ के वशीभूत होकर प्रकृति का चीरहरण ही करना शुरू कर दिया है।

विकास एक आवश्यक पहलू है,किंतु संतुलित विकास द्वारा ही स्थाई विकास की कल्पना की जा सकती है। मानव ने विकास के नाम पर सड़कों, रेलमार्गो, शहरों का निर्माण करना शुरू किया। इसके लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की गई है । फलत: वनों का नाश तो हुआ ही, वन्य प्राणियों का आश्रय स्थल भी छीनने लगा। आवास हेतु इमारती लकड़ियों की आवश्यकता ने भी वनों का ह्रास करवा दिया। पुनः कृषि में अत्यधिक उपज के लिए अत्यधिक सिंचाई, रासायनिक खाद व रसायनों का प्रयोग किया गया।इसके कारण एक और भूमि निम्नीकरण से वनों को क्षति पहुंची तो दूसरी तरफ रसायनों के द्वारा जनलों के दूषित होने से कई प्राणीजगत के अस्तित्व पर ही खतरा उत्पन्न हो गए। प्रगति के नाम पर कल कारखानों की स्थापना हुई। इससे भी वन कटे। पुनः इन कल कारखानों के धूओं ने जहां वातावरण को प्रदूषित कर अम्लीय वर्षा जैसे अनेक प्रदूषण जनित परिणामों को जन्म दिया वहीं इनके कचरों से अनेक जलस्रोत दूषित हो गए। इससे इन जल स्रोतों का अमृतजल दूषित तो हुए ही, साथ ही  जलीय जीवों के अस्तित्व पर संकट के बादल छाने लगे।

वनों के ह्रास ने  प्राकृतिक संतुलन को गड़बड़ कर दिया। फलत: मौसमजनित समस्या भी सामने आने लगी। इस प्रकार हम देखते हैं कि मानवीय क्रियाओं द्वारा प्राकृतिक वनस्पति व प्राणीजाति का काफी ह्रास  हुआ।

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