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Class 10th Bharati Bhawan Political Science | Chapter 2 Impact of Ethnic, Sexual and Communal Discrimination on Democratic Politics | Very Short and Short Answer Questions | भारती भवन कक्षा 10 राजनीतिकशास्त्र | अध्याय 2 जातीय, लैंगिक एवं साम्प्रदायिक विभेद का लोकतांत्रिक राजनीति पर प्रभाव | अतिलघु और लघु उत्तरीय प्रश्न

Class 10th Bharati Bhawan Political Science  Chapter 2 Impact of Ethnic, Sexual and Communal Discrimination on Democratic Politics  Very Short and Short Answer Questions  भारती भवन कक्षा 10 राजनीतिकशास्त्र  अध्याय 2 जातीय, लैंगिक एवं साम्प्रदायिक विभेद का लोकतांत्रिक राजनीति पर प्रभाव  अतिलघु और लघु उत्तरीय प्रश्न
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न :

1. श्रम का लैंगिक विभाजन क्या है ?

उत्तर :- श्रम के लैंगिक विभाजन के अंतर्गत महिलाओं को घर के अन्दर के सारे कामों को पूरा करना होता था तथा पुरुषों को घर के बाहर के कार्यों को सौंपा गया | 

2. भ्रूण-हत्या से आप क्या समझते है ?

उत्तर :- वर्त्तमान में अत्याधुनिक उपकरणों से गर्भ में ही शिशु (भ्रूण) के लिंग की जानकारी प्राप्त कर ली जाती है और पुत्री के जन्म होने की उम्मीद पर गर्भ में ही उसकी हत्या कर दी जाती है | इसे ही भ्रूण-हत्या कहा जाता है |

3. महिलाओं के सशक्तिकरण से आप क्या समझते है ?

उत्तर :- महिलाएं आज राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी पिछड़ी हुई है | नारियों के विकास के बिना समाज के विकास की बात करना गलत है | महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति जागृत होना ही महिला सशक्तिकरण है | 

4. जाती व्यवस्था पर जगजीवन राम का क्या विचार था ?

उत्तर :- जाती व्यवस्था पर स्वर्गीय बाबू जगजीवन राम का कहना था की एक आदमी अपना सन कुछ छोड़ सकता है, परन्तु वह जाती-व्यवस्था में अपने विकास को तिलांजलि नहीं दे सकता |  

5. धर्म निरपेक्षता का क्या अर्थ है ?

उत्तर :- धर्म निरपेक्षता का अर्थ है धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करना तथा किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म में विश्वास रखने पर आजादी देना |

लघु उत्तरीय प्रश्न :

1. लैंगिक विभेद से आप क्या समझते है ?

उत्तर :- लिंग के आधार पर होनेवाले विभेद को लैंगिक विभेद कहते है | लिंग के आधार पर समाज दो वर्गों में बांटा रहता है | महिला एवं पुरुष इनमे असमानता सर्वत्र व्याप्त है | जैविक दृष्टिकोण से तो दोनों में असमानता स्वाभाविक है, परन्तु दोनों के बीच सामाजिक विभेद भी बने रहते है | आधुनिक युग में महिला एवं पुरुष के बीच लिंग के आधार पर विभेद एक सामाजिक समस्या बन गई है  |

2. समाज में नारी की दयनीय स्थिति के लिए उत्तरदायी कारणों का वर्णन करें | 

उत्तर :- प्राचीन काल में समाज में नारियों का गौरवपूर्ण स्थान था | उन्हें पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे तथा वे अपने घर की सामग्री मानी जाती थी | उन्हें गृहलक्ष्मी केनाम से सुशोभित किया जाता था | यह विश्वास व्याप्त था की जहाँ नारी का सम्मान होता है वहाँ देवता का निवास होता है |परन्तु धीरे-धीरे नारियों की स्थिति समाज में दयनीय होती गई जिसके निम्नलिखित प्रमुख कारण रहे है- 

(i) महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार 

(ii) श्रम का लैंगिक विभाजन 

(iii) स्त्रीभ्रूण-हत्या 

(iv) बाल विवाह तथा सटी प्रथा 

(v) शिक्षा का अभाव 

(vi) राजनीति अधिकारों का अभाव इत्यादि |  

3. महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने की जरुरत के लिए कोई दो कारण बताएँ | 

उत्तर :- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नारियों के जीवन में एक नया मोड़ आया | लिंग समानता के सिद्धांत को स्वीकार किया गया | भारतीय संविधान में भी उन्हें पुरुशूं के समान अधिकार दी गए है | संविधान में लिंग के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव करने की इजाजत नहीं डी गई है | महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने की जरूरत के लिए कारण निम्नलिखित है- 

(i) महिलाओं में शिक्षा का स्तर ऊँचा उठाना - महिलाओं के बीच शिक्षा का प्रसार कर उनकी स्थिति में सुधार लाया जा सकता है | 

(ii) महिला सशक्तिकरण - महिलाओं को राजनीतिक अधिकार पुरुषों की तुलना में काफी बाद में प्राप्त हुए | अब महिलाओं में भी राजनीतिक चेतना जागृत हो चुकी है तथा अब वे भी पुरुषों के समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त करने में संघर्षरत है |  

4. भारत की संसद तथा राज्य विधानमंडलों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति पर प्रकाश डालें | 

उत्तर :- महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में विभिन्न प्रयासों का ही फल है की उनकी आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति निरंतर सुधर रही है, परंतु राजनीतिक स्थिति अभी भी दयनीय बनी हुई है | संसद एवं राज्य विधानमंडलों में उनकी भूमिका नगण्य है | केन्द्रीय तथा राज्य मंत्रिपरिषद में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है | भारत की संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व भी विश्व के अन्य देशों की संसदों की तुलना में बहुत कम है | भारत में 8.3 प्रतिशत ही महिलाओं का प्रतिनिधित्व प्राप्त है | भारत की लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगभग 11 प्रतिशत है वहीँ भारत के राज्य विधानामंडलों में तो यह 4 प्रतिशत ही है | भारत के लगभग सभी राजनीतिक दलों ने अपने चुनावी घोशानापत्र में संसद और राज्य विधानमंडलों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का वायदा किया है जो वर्षों से इस आशय का विधेयक संसद में लंबित है |  

5. विभिन्न तरह की सांप्रदायिक राजनीति का सोदाहरण उल्लेख करें | 

उत्तर :- सामाजिक विभेद के एक प्रकारों में धार्मिक विभेद एवं सांप्रदायिक विभेद भी है | धार्मिक विभेद के कारण जी विश्व में सांप्रदायिक विभेद भी देखने को मिलता है | इस विभेद का राजनीति से गहरा संबंध होता हिया  |विभिन्न तरह ही सांप्रदायिक राजनीति निम्नलिखित है-

सांप्रदायिकता की सोच प्राय अपने धार्मिक समुदाय का प्रमुख राजनीति में बरकरार रखना चाहता है | जो लोग बहुसंख्या समुदाय के होते है उनकी यह कोशिश बहुसंख्यकवाद का रूप ले लेती है  |उदाहरणार्थ श्रीलंका में सिंहलियों का बहुसंख्यकवाद |  जहाँ लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार ने भी सिंहली समुदाय की प्रभुता कायम करने के लिए अपने बहुसंख्यक परस्ती के तहत कई कदम उठाए | 

सांप्रदायिकता के आधार पर राजनीति गोलबंदी सांप्रदायिकता का दूसरा रूप है | इस हेतु पवित्र प्रतीकों, धर्म गुरुओं और भावनात्मक अपीलों का सहारा लिया जाता है | निर्वाचन के वक्त हम अक्सर ऐसा देखते है की किसी ख़ास धर्म के अनुयायियों से किसी पार्टी विशेष के पक्ष में मतदान करने की अपील कराई जाती है | 

अंत में सांप्रदायिकता का भयावह रूप तब हम देखते है जब संप्रदाय के आधार पर हिंसा दंगा और नरसंहार होता है  |विभाजन से पहले और बाद में भी कई जगहों पर बड़े पैमाने पर संन्प्रदायिका हिंसा हुई है  |

6. सांप्रदायिकता से आप क्या समझते है ? इसके मुख्य तत्व बताएँ | 

उत्तर :- जब हम यह कहते है की धर्म की समुदाय का निर्माण करती है तो सांप्रदायिक राजनीति जन्म लेने लगती है और इस अवधारणा पर आधारित सोच ही सांप्रदायिकता है  |सांप्रदायिकता का सही अर्थ है अपने धर्म को अन्य धर्मों से ऊँचा मानना | अपने धार्मिक हितों के लिए राष्ट्रहित का बलिदान कर देना सांप्रदायिकता है | 

सांप्रदायिकता के तीन तत्व बताए गए है - 

(i) एक धर्म के अनुयायियों की धार्मिक कार्यों के साथ-साथ राजनीतिक आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक हितों में भागीदारी | 

(ii) एक धर्म के अनुयायियों के लौकिक हित दुसरे धर्म के अनुयायियों से भिन्न होते है | 

(iii) उनके हित एक-दुसरे से भिन्न ही नहीं, बल्कि परस्पर विरोधी होते है |  

7. सांप्रदायिकता की भावना को अंग्रेजों ने क्यों और कैसे उभारा ?

उत्तर :- सांप्रदायिकता भारतीय राजनीति के लिए अभिशाप सिद्ध हुई | इसके विकास की कहानी ब्रिटिश राज की स्थापना से शुरू होती है | अंग्रेजों ने देखा की भारतीयों में अभूतपूर्व एकता है तथा सभी संप्रदाय के लोगों के बीच प्रेम और सदभाव व्याप्त है | भारत के स्वाधीनता संग्राम में सभी संप्रदाय के लोग एकजुट है | अंग्रेज किसी भी कीमत पर देश का शासन अपने हाथों से जाने देना नहीं चाहते थे  |उन्होंने फुट डालो और शासन करो की निति को गले लगाया | वे यह समझ गए थे की ब्रिटिश शासन का हित मुसलमानों को प्रोत्साहित कर उन्हें कांग्रेस के आन्दोलन से अलग रखने में ही है | अंग्रेजो ने मुसलमानों का समर्थन करते हुए 1906 में स्थापित मुस्लिम लीग तथा 1909 के मौले-मिन्टो सुधार में मुस्लिमो के लिए अलग से निर्वाचन में स्थान की बात कर सांप्रदायिकता की भावना को उभारा जिससे कांग्रेस के आन्दोलन मे बाधा उपस्थित होने लगी |  

8. धार्मिक संप्रदायवाद भारतीय लोकतंत्र के लिए किस प्रकार खतरनाक है ?

उत्तर :- भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है | राज्य का कोई अपना धर्म नहीं है | इस बात ये तनिक भी संदेह नहीं की सांप्रदायवाद की भावना धर्मनिरपेक्षता के मार्ग में तथा भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक है | भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सभी को अपना-अपना धर्म को मानने की आजादी डी गई है | लेकिन यहाँ कभी हिन्दुओं तथा मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को उकसाकर साम्प्रदायिक दंगे कराए जाने की कोशिश होती है, जिससे लोकतंत्र का अस्तित्व खतरे में पद जाने की संभावना बन जाती है | 

9. भारत में धार्मिक सांप्रदायिकता के कोई तीन प्रभावों का उल्लेख कीजिए | 

उत्तर :- (i) 1947 में भारत का विभाजन कर मुसलमान बुल क्षेत्र को पाकिस्तान बना |

(ii) अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी को भी इसी उन्माद का शिकार होना पडा | 

(iii) आए दिन काश्मीर हो रहे आतंकवादी हमले भी संप्रदायवाद का ही दें है  |

10. सांप्रदायिकता से क्या तात्पर्य है ? इसे लोकतंत्र के लिए खतरा क्यों माना जाता हिया ?

उत्तर :- सांप्रदायिकता का सही अर्थ है अपने धर्म को अन्य धर्मो से ऊँचा मानना | अपने धार्मिक हितों के लिए राष्ट्रहित का भी बलिदान कर देना सांप्रदायिकता है | सांप्रदायिकता धर्म के नाम पर घृणा फैलती है | यह एक विष के समान है जो मानव को मानव से घृणा करना सिखाता है | इस संकुचित मनोवृति के कारण एक धर्म के अनुयायी दुसरे धर्म के अनुयायियों अथवा एक समुदाय को लोग दुसरे समुदाय के लोगो के खून के प्यासे हो जाते है | 

सांप्रदायिकता के कारण एक समुदाय के लोग दुसरे समुदाय के लोगों से दुश्मन जैसा व्यवहार करने लगते है जिससे सान्प्रादायिका दंगा होने लगते है | इसके कारण राष्ट्रीय एकता खतरे में पद जाती है जो लोकतंत्र के लिए खतरा उत्पन्न कर देती है |  

11. जातिवाद किस प्रकार भारतीय लोकतंत्र के लिए एक चुनौती है ? वर्णन कीजिए | 

उत्तर :- लोकतांत्रिक व्यवस्था में जाती की भूमिका सदैव ही महत्वपूर्ण रही है | लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना एवं निर्वाचन की राजनीति में जाती की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है | भारत की सामाजिक समस्याओं में जातिवाद की समस्या मुख्य मानी जाती है | आज सम्पूर्ण देश जातिवाद का शिकार बन गया है | इसके कारण उंच-नीच, आमिर-गरीब, अस्पृश्यता आदि कुत्सित भावनाओं का जन्म हो गया है | आज भारत में चार जातियों के बीच तीन उपजातियों हो गई है जो राष्ट्रीय एकता और प्रजातंत्र के लिए खतरनाक है | लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चनौती बनी हुई है | 

12. दो सामाजिक बुराइयों के नाम बताएँ जो अभी भारतीय समाज में विद्धमान है | 

उत्तर :- जातीवाद और छुआछुत 

13. भारतीय समाज पर जातिवाद के दो कुप्रभावं का उल्लेख कीजिए | 

उत्तर :- (i) विभिन्न जातियों के लोग एक दुसरे को अश्रद्धा और घृणा की दृष्टि से देखते है | इसके परिणामस्वरूप लोगों में असमानता एवं फुट की भावना बढाती है | 

(ii) जातिवाद के कारण राष्ट्र अनेक प्रतियोगी समूहों एवं टुकड़ो में बंट जाता है जिससे राष्ट्रीय एकता पर कुठाराघात होता है |  

14. सिर्फ जाती के आधार पर ही चुनाव नहीं लादे जा सकते | इसके कोई दो कारण बताएँ | 

उत्तर :- राजनीति में जाती के बढ़ाते प्रभाव से यह निष्कर्ष लेना सही नहीं होगा की चुनाव में जाती की ही भूमिका सर्वोपरि है | कभी-कभी तो ऐसा भी होता है की किसी विशेष जाती बहुलावाले निर्वाचन क्षेत्र में अधिकांश राजनीतिक दल उसी जाती के उम्मीदवार को खड़ा कर देते है | परिणामस्वरूप दो मुख्य विकल्प सामने आते है | बहुल जाती के मतदाता किसी विशेष राजनीतिक दल के उम्मीदवारों को सफल बनाने के लिए एकजुट हो जाते है |  यदि ऐसा नहीं हो सका तो बहुल जाती के अधिकांश मतदाता दूसरी जाती के मतदाताओं से एक नया समीकरण बनाकर बाजी मार लेते है | ऐसी अवस्था में कई उम्मीदवारों को अपनी जाती विशेष के वोट बैंक पर नजर रखने पर भी मुँह की खानी पड़ती है | स्पष्ट है की सिर्फ जाति के आधार पर चुनाव नहीं लादे जा सकते | 

15. भारत में किस तरह जातिगत असमानताएँ अभी भी विद्धमान है ? स्पष्ट करें | 

उत्तर :- भारत में आज भी जातिगत असमानताएँ तथा विभेद समाज में विद्धमान है | एक जातिविशेष में भी कई तरह की असमानताएँ विद्धमान है जैसे- गरीब और आमिर शोषक और शोषित का विभेद आदि | सवर्णों और दलितों के बीच जातिगत असमानताएँ तथा अगदी और पिछड़ी जातियों के बीच जातिगत असमानता आज भी विद्धमान है |  

16. भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है ? इसके पक्ष में दो तर्क दें | 

उत्तर :- भारतीय संविधान के अनुसार भारत में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की गई है | इसके पक्ष में दो तर्क निम्नलिखित है -

(i) हमारे देश में किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है | श्रीलंका में बौद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम और इंग्लैण्ड में ईसाई धर्म का जो दर्जा दिया गया है, उसके विपरीत भारत का संबिधान किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता  |

(ii) संविधान में हर नागरिक को यह स्वतन्त्र दी गई है की अपने विश्वास से वह किसी धर्म को अंगीकार कर सकता है | इस आधार पर उसे किसी किसी अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता है | प्रत्येक धर्मावलंबियों को अपने धर्म का पालन करने अथवा शांतिपूर्ण ढंग से प्रचार करने का अधिकार है |

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