Class 10th Science Chapter 2 Respiratory (श्वशन) | Bharati Bhawan Biology | Long Type Question with Answer
personBharati Bhawan
October 19, 2020
2
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Bharati Bhawan Biology
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :-
1. अवायवीय एवं वायवीय श्वाशन के विभेदों को स्पष्ट करें |
उत्तर :- (i)अवायवीय श्वशन की ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है , जबकि वायवीय श्वशन ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है |
(ii) अवायवीय श्वशन की पूरी क्रिया कोशिका द्रव में होती है जबकि वायवीय श्वशन में क्रिया का प्रथम चरण कोशिका द्रव में तथा द्वितीय कॉन्ड्रिया चरण माइटो में होता है |
(iii) अवायवीय श्वशन में ग्लूकोज का आंशिक ऑक्सीजन होता है जबकि वायवीय श्वशन में ग्लूकोज ऑक्सीजन के पश्चात होता है |
(iv) अवायवीय श्वशन में ऑक्सीकरण के पश्चात पायरूवेट इथेनॉल या लैक्टिक अम्ल का निर्माण करता है तथा CO2 निकलता है जबकि वायवीय श्वशन में ग्लूकोज ऑक्सीकरण के पश्चात कार्बन डाइ-ऑक्साइड एवं जल का निर्माण होता है |
(v) अवायवीय श्वशन में कम ऊर्जा मुक्त होता है जबकि वायवीय श्वशन में अधिक ऊर्जा मुक्त होता है |
2. पायरूवेट के विखण्डन के विभिन्न पथों के बारे में लिखें |
उत्तर :- पायरूवेट के विखण्डन के विभिन्न पथ निम्नलिखित है-
(i) पायरूवेट ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में इथेनॉल एवं कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है | यह क्रिया किण्वन कहलाती है जो यीस्ट में होता है |
(ii) ऑक्सीजन के अभाव में हमारी पेशियों में पायरूवेट से लैक्टिक अम्ल का निर्माण होता है | हमारी पेशी कोशिकाओं में अधिक मात्रा में लैक्टिक अम्ल के संचय से दर्द होने लगता है | बहुत ज्यादा चलने या दौड़ने के बाद हमारी मांसपेशियों में इसी कारण क्रैम्प या तकलीफ होती है |
(iii) ऑक्सीजन की उपस्थिति में पायरूवेट का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है एवं कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल का निर्माण होता है | चूँकि यह क्रिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में होती है, अतः इसे वायवीय श्वशन |
3. स्थलीय कीटों में श्वशन अंगों की रचना तथा श्वशन विधि का वर्णन करे |
उत्तर :- स्थलीय कीटों में श्वशन अंगों की रचना -
स्थलीय कीटों में श्वशन अंगों की रचना
स्थलीय कीटों में श्वशन विधि- ट्रैकिया द्वारा श्वशन कीटों जैसे टिड़्डा तथा तिलचट्टा में होता है | ट्रैकिया शरीर के भीतर स्थित अत्यंत शाखित, हवा भरी नलिकाएँ है जो एक ओर सीधे उत्तकों के संपर्क में होती है तथा दूसरी ओर शरीर की सतह पर श्वासारन्ध्र नामक छिद्रों के द्वारा खुलती है |
यहाँ ध्यान देने योग्य बात कीटों में ट्रैकिया के द्वारा श्वशन में गैसों का आदान-प्रदान रक्त के माध्यम से नहीं होता है | इसका कारण यह है की कीटों के रक्त में हीमोग्लोबिन या उसके जैसे रंजक ऑक्सीजन को बाँधने की क्षमता हो, नहीं पाए जाते है |
4. मछली श्वशन अंग की रचना तथा श्वशन विधि का वर्णन करे |
उत्तर :-मछली के श्वशन अंगों की रचना -
मछली के श्वशन अंगों की रचना
मछली में श्वशन विधि - प्रत्येक मछली में गिल्स दो समूहों में पाए जाते है | गिल्स के प्रत्येक समूह सिर के पार्श्व भाग में आँख के ठीक पीछे स्थित होते है | प्रत्येक समूह में कई गिल्स आगे से पीछे की ओर श्रृंखलाबद्ध तरीके से व्यवस्थित होते है | हर गिल एक छाती थैली में स्थित होती है जिसे गिल कोष्ठ कहते है | गिल कोष्ठ एक ओर आहारनाल की ग्रसनी या फैरिंक्स में खुलता है तथा दूसरी ओर शरीर बाहर खुलता है |
मछलियों में जल की धारा मुख से आहारनाल के फैरिंक्स में पहुँचता है | यहाँ जल की धारा में स्थित भोजन तो फैरिंक्स से ग्रासनली में चला जाता है, परन्तु जल गिल कोष्ठों में तथा फिर शरीर के बाहर चला जाता है | इस प्रकार, गिल्स लगातार जल के संपर्क में रहते है जिससे जल में घुले ऑक्सीजन गिल्स की रक्त वाहिनियों में स्थित रक्त में चला जाता है तथा रक्त का कार्बन डाइऑक्साइड जल में चला जाता है |
5. कीटों में ऑक्सीजन सीधे उत्तकों को क्यों पहुँचाता है ? इस विधि में प्रयुक्त रचनाओं का वर्णन कार्यविधि के साथ करें |
उत्तर :- कीटों में ट्रैकिया के द्वारा श्वशन में गैसों का आदान-प्रदान रक्त के माध्यम से वहीं होता है | इसका कारण यह है की कीटों के रक्त में हीमोग्लोबिन या उसके जैसे कोई रंजक जिसमे ऑक्सीजन का बांधने की क्षमता हो, वही पाए जाते है |
कीटों जैसे ग्रासहॉपर, तिलचट्टा, मक्खी आदि के श्वशन की विशेषता यह है की इसमें ऑक्सीजन रक्त के माध्यम से नहीं, बल्कि सीधे उत्तको को पहुँचाता है | इसका कारण रक्त में हीमोग्लोबिन को न होना है |
6. मनुष्य के श्वसनांगो की रचना का वर्णन करें |
उत्तर :- मानव के श्वशन अंग का कार्य शुद्ध वायु को शरीर के भीतर भोजन तथा अशुद्ध वायु को बाहर निकलना है | इसके प्रमुख भाग है-
(i) नासाद्वार एवं नासागुहा :- नासाद्वार से वायु शरीर के भीतर प्रवेश कराती है | नाक में छोटे-छोटे और बारीक बाल होते है जिनसे वायु छन जाती है | उसकी धूल उनसे सपर्श का वहीं रुक जाती है इस मार्ग में श्लेष्मा की परत इस कार्य में सहायता करती है | वायु नम हो जाती
है |
(ii) ग्रसनी :- ग्रसनी ग्लॉटिस नामक छिद्र से श्वासनली में खुलती है | जब हम भोजन करते है तो ग्लॉटिस त्वचा के एक उपास्थिउक्त कपाट एपिग्लॉटिस से ढका रहता है |
मनुष्य के श्वसनांगो की रचना
(iii) श्वास नली :- उपास्थि से बनी हुई श्वासनली गर्दन से निचे आकर श्वासनी बनाती है | यह वलयों से बनी होती है जो सुनिश्चित करते है की वायु मार्ग में रुकावट उत्पन्न न हो |
(iv) फुफ्फुस:- फुफ्फुस के अंदर मार्ग छोटी और छोटी नलिकाओं में विभाजित हो जाते है जो गुब्बारे जैसे रचना में बदल जाता है | इसे कुपिका कहते है | कुपिका एक सतह उपलब्ध कराती है जिससे गैसों का विनिमय हो सकता है | कुपिकाओं की भित्ति में रुधिर वाहिकाओं का विस्तीर्ण जाल होता है |
7. मनुष्य में श्वासन क्रिया का वर्णन करें |
उत्तर :- मानव के श्वसन तंत्र का कार्य शुद्ध वायु को शरीर के भीतर भोजन तथा अशुद्ध वायु को बाहर निकालना है | इसके प्रमुख भाग निम्नलिखित है -
(i) नासाद्वार एवं नासागुहा :- नासाद्वार से वायु शरीर के भीतर प्रवेश कराती है | नाक में छोटे-छोटे और बारीक बाल होते है जिनसे वायु छन जाती है | उसकी धूल उनसे सपर्श का वहीं रुक जाती है इस मार्ग में श्लेष्मा की परत इस कार्य में सहायता करती है | वायु नम हो जाती है |
(ii) ग्रसनी :- ग्रसनी ग्लॉटिस नामक छिद्र से श्वासनली में खुलती है | जब हम भोजन करते है तो ग्लॉटिस त्वचा के एक उपास्थिउक्त कपाट एपिग्लॉटिस से ढका रहता है |
(iii) श्वास नली :- उपास्थि से बनी हुई श्वासनली गर्दन से निचे आकर श्वासनी बनाती है | यह वलयों से बनी होती है जो सुनिश्चित करते है की वायु मार्ग में रुकावट उत्पन्न न हो |
(iv) फुफ्फुस:- फुफ्फुस के अंदर मार्ग छोटी और छोटी नलिकाओं में विभाजित हो जाते है जो गुब्बारे जैसे रचना में बदल जाता है | इसे कुपिका कहते है | कुपिका एक सतह उपलब्ध कराती है जिससे गैसों का विनिमय हो सकता है | कुपिकाओं की भित्ति में रुधिर वाहिकाओं का विस्तीर्ण जाल होता है |
(v) कार्य :- जब हम श्वास अंदर लेते है, हमारी पसलियाँ ऊपर उठती है और हमारा डायफ्राम चपटा हो जाता है | इससे वक्षगुहिका बड़ी हो जाती है और वायु फुफ्फुस के भीतर चूस ली जाती है | वह विस्तृत कुपिकाओं को ढक लेती है | रुधिर शेष शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड कुपिकाओं में छोड़ने के लिए लाता है | कुपिका रुधिर वाहिका का रुधिर कुपिका वायु से ऑक्सीजन लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुंचाता है | श्वशन चक्र के समय जब वायु अंदर और बाहर होती है, फुफ्फुस सदैब वायु का विशेष आयतन रखते है जिससे ऑक्सीजन के अवशोषण तथा कार्बन डाइऑक्साइड के मोचन के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है |
8. श्वसन एवं श्वासोच्छ्वास के बीच क्या अंतर है?
उत्तर :- (i) श्वशन सजीबो की अति अनिवार्य प्रक्रिया है | इसमें ग्लूकोज अणुओं का ऑक्सीजन कोशिकाओं में होता है | श्वशन वैसी क्रियाओं के सम्मिलित रूप को कहते है, जिसमे बाहरी वातावरण से ऑक्सीजन ग्रहण कर शरीर की कोशिकाओं में पहुंचाया जाता है, जहाँ इसका उपयोग कोशिकीय ईंधन का ऑक्सीकरण कई चरणों में विशिष्ट एंजाइमों की उपस्थिति में करके जैव ऊर्जा ATP का उत्पादन किया जाता है तथा इस प्रक्रिया से उत्त्पन्न CO2 को फिर कोशिकाओं से शरीर के बाहर निकाल दिया जाता है | जबक
ि
श्वासोच्छवास में श्वशन की दोनों अवस्थाएँ प्रश्वास एवं उच्छवास को सम्मिलित रूप से श्वासोच्छोवास कहलाती है | नासिका द्वारा हवा को फेफडे तक पहुँचाता है जहाँ ऑक्सीजन रक्त में चला जाता है तथा रक्त से फेफड़े में आया कार्बन डाइऑक्साइड बीच हवा के साथ बाहर निकल जाता है इस क्रिया को श्वासोच्छोवास या साँस लेना कहते है |
(ii) श्वशन दो क्रिया अर्थात प्रश्वास तथा उच्छवास के द्वारा पूर्ण होता है | जबकि श्वासोच्छोवास में श्वशन की दो अवस्थाएँ-प्रश्वास तथा उच्छावास मिलकर श्वासोच्छवास कहलाती है |
9. कोशिकीय श्वशन का वर्णन करे |
उत्तर :- श्वशन क्रिया में ग्लूकोज अणुओ का ऑक्सीकरण कोशिकाओं में होता है | इसीलिए, इसे कोशिकीय श्वशन कहते है | सम्पूर्ण कोशिकीय श्वशन की दो अवस्थाओं - (i) अवायवीय श्वशन और (ii) वायवीय श्वशन में विभाजित किया गया है |
(i) अवायवीय श्वशन :- यह श्वशन का प्रथम चरण है | जिसके अंतर्गत ग्लूकोज का आंशिक विखंडन ऑक्सीजन की अनुउपस्थित में होता है | इस क्रिया द्वारा एक अणु ग्लूकोज से दो अणु पायरबेट का निर्माण होता है | इस क्रिया कोशिका द्रव में होती है तथा इसका
कोशिकीय श्वशन का वर्णन करे |
प्रत्येक चरण विशिष्ट एंजाइम के द्वारा उत्प्रेरित होता है | इस प्रक्रिया में चूँकि ग्लूकोज-अणु का आंशिक विखंडन होता है, अतः उसमे निहित ऊर्जा पायरूवेट के बंधनों में ही संचित रह जाती है | पायरूवेट आगे की स्थिति निम्नांकित तीन प्रकार सकती है |
(a) पायरूवेट ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में इथेनॉल एवं कार्बन डाइऑक्साइड परिवर्तित हो जाता है | यह क्रिया किण्वन कहलाती है जो यीस्ट में होता है |
(b) ऑक्सीजन के अभाव में हमारी पेशियों में पायरूवेट से लैक्टिक अम्ल का निर्माण होता है | हमारी पेशी कोशिकाओं में अधिक मात्रा में लैक्टिक अम्ल के संयम से दर्द होने लगता है | बहुत ज्यादा चलने या दौड़ने के बाद हमारी मांशपेशियों में इसी कारण क्रैम्प या तकलीफ होने लगता है |
(c) ऑक्सीजन की उपस्थिति में पायरूवेट का पूर्ण आक्सीकरण होता है एवं कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल निर्माण होता है | चूँकि यह क्रिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में होती है, अतः इसे वायवीय श्वशन कहते है |
(ii) वायवीय श्वशन :- श्वशन प्रथम चरण में बना पायरूवेट पूर्ण आक्सीकरण के लिए माइटोकांड्रिया में चला जाता है | यहाँ ऑक्सीजन की उपस्थिति में पायरूवेट का विखंडन होता है | तीन कार्बनवाले पारूवेट अणु विखंडन होकर तीन कार्बन डाइऑक्साइड अणु बनाते है | इसके साथ-साथ जल तथा रासायनिक ऊर्जा भी मुक्त होती है | जो ATP अणुओं में संचित हो जाती है ATP विखंडन से जो ऊर्जा मिलती है उससे कोशिका के अंदर होनेवाली विभिन्न जैव क्रियाएँ संचालित होती है |
Best Of Luck
ReplyDeleteHame bharti bhawan ka all class all book ka question answer chahie kaise milega
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