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Class 10th Bharati Bhawan Biology Chapter 8 Long Type Question Answer | Bihar Board Class 10 Exam | कक्षा 10वीं भारती भवन अध्याय 8 हमारा पर्यावरण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Class 10th Bharati Bhawan Biology Chapter 8 Long Type Question Answer | Bihar Board Class 10 Exam | कक्षा 10वीं भारती भवन अध्याय 8 हमारा पर्यावरण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
Class 10 Bharati Bhawan Biology

1. पारिस्थितिक तंत्र की संरचना का संक्षिप्त वर्णन करें |

उत्तर :- पारिस्थितिक तंत्र जीवमंडल की एक स्वपोषी संरचनात्मक एवं कार्यात्मक ईकाई होता है | यह ऊर्जा के लिए पूर्ण रूप से सूर्य पर निर्भर रहता है | पारिस्थितिक तंत्र के मुख्य अवयव दो है- 1. अजैव अवयव 2. जैव अवयव 

इन दोनों के सम्मिलित रूप से पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण होता है | मृदा, वायु, जल, प्रकाश, ताप आदि अजैव घटक है | हरे पौधे, मनुष्य, अन्य सजीव आदि जैव घटक है | किसी क्षेत्र के अजैव एवं जैव घटकों में लगातार पारंपरिक क्रिया होती रहती है | दोनों एक-दुसरे को प्रभावित करते है | अपने अस्तित्व के लिए दोनों एक-दुसरे पर निर्भर करते है |

अगर हम किसी बगीचे का अवलोकन करने पर देखते है तो विभिन्न प्रकार के छोटे एवं बड़े पेड़-पौधे, आस-पास में विभिन्न प्रकार की तितलियों, कीड़े,पक्षी, मेढक आदि दिखाई देंगे | इन जीवों के बीच पारस्परिक क्रिया होती रहती है | जिससे इनकी वृद्धि, जनन एवं अन्य जैविक क्रियाएँ प्रभावित होती है | तालाब भी पारिस्थितिक तंत्र का एक अच्छा उदाहरण है |

Class 10th Bharati Bhawan Biology Chapter 8 Long Type Question Answer | Bihar Board Class 10 Exam | कक्षा 10वीं भारती भवन अध्याय 8 हमारा पर्यावरण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
Biology

2. पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह किस प्रकार होता है ?

उत्तर :- जीवमंडल में ऊर्जा का मूल स्रोत सौर ऊर्जा है | उत्पादक इसे प्रकाश संश्लेषण क्रिया के दौरान ग्रहण करते है | प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा रासायनिक ऊर्जा कार्बोहाइड्रेट के रूप में मुक्त होती है | जो पौधे में अनेक रूपों में संचित रहती है | जब हरे पौधे को शाकाहारी जंतु खाते है | तब यह संचित ऊर्जा स्थानांतरित होकर इन जंतुओं यानी प्राथमिक उपभोक्ता में चली जाती है | इसके कुछ ऊर्जा उष्मा के रूप में मुक्त हो जाती है | शेष संचित ऊर्जा उसके शरीर में संचित रहती है | जब द्वितीय उपभोक्ता उसे खाता है तो वह ऊर्जा उसमे स्थानांतरित हो जाता है | इस तरह द्वितीयक उपभोक्ता से ऊर्जा तृतीयक उपभोक्ता | इस प्रकार ऊर्जा का प्रवाह होता है |

ऊर्जा का प्रवाह सदा एक दिशा में ही जाता है | आहार श्रृंखला के प्रत्येक पोशी स्तर पर कुल ऊर्जा के 10 प्रतिशत ऊर्जा का ही स्थानान्तरण अगले पोशी स्तर को हो पाता है तथा 90 प्रतिशत ऊर्जा का व्यवहार विभिन्न प्रकार से हो जाता है | इस प्रकार विभिन्न पोशी स्तरों पर उपलब्ध होने वाले ऊर्जा में उत्तरोत्तर कमी होती जाती है |

इस प्रकार हम पाते है की अधिकतम ऊर्जा उत्पादक स्टार पर संचित है तथा इस ऊर्जा में हर पोशी स्टार पर उत्तरोत्तर कमी आती है | इस तरह ऊर्जा का प्रवाह होता है |

Class 10th Bharati Bhawan Biology Chapter 8 Long Type Question Answer | Bihar Board Class 10 Exam | कक्षा 10वीं भारती भवन अध्याय 8 हमारा पर्यावरण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
Biology


3. पीड़कनाशी अगर अपघटित न हो तो आहार श्रृंखला में उसका क्या प्रभाव पड़ेगा ?

उत्तर :- आहार श्रृंखला का एक आयाम यह है की हमारी जानकारी के बिना ही कुछ हानिकारक रासायनिक पदार्थ आहार श्रृंखला से होते हुए हमारे शरीर में प्रविष्ट हो जाते है | हम जानते है की जल प्रदुषण किस प्रकार होता है | इसका यह कारण है की विभिन्न फसलों को रोग एवं पिड़को से बचाने के लिए पीड़कनाशी एवं रसायनों का अत्यधिक प्रयोग है | ये रसायन बहाकर मिट्टियों में अथवा जल स्रोत में चले जाते है | मिटटी से इन पदार्थो का पौधे द्वारा जल एवं खनिजो के साथ-साथ अवशोषण हो जाता है तथा जलाशयों से यह जलिए पौधे एवं जंतुओं में प्रवेश कर पाते है |

वास्तव में पिदाकनाशी का अपघटन आहार श्रंखला में नहीं होता है | ये पोशी स्तर पर उत्तरोत्तर जनक होते है जाते है | जिसके कारण हमारे खाद्दान में ये उपस्थित रहते है |

4. किसी पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न प्रकार के उपभोक्ता के बारे में समझाएँ |

उत्तर :- (i) प्राथमिक उपभोक्ता :- वनों में पाए जाने वाले सभी शाकाहारी जन्तुओ को इसके अंतर्गत सम्मिलित कियागया है | जो शाकाहारी जंतु हरे पेड़ पौधे से अपना भोजन प्राप्त करते है | इन्हें प्राथमिक उपभोक्ता कहते है |

उदाहरण - हिरन,बन्दर, गाय, गिलहरी,  हाथी 

(ii) द्वितीयक उपभोक्ता :- इसके अंतर्गत मांसाहारी जंतुओं को सम्मिलित किया गया है क्योंकि ये प्राथमिक श्रेणी में उपभोक्ता तथा शाकाहारी जंतुओं से अपना भोजन प्राप्त करते है | चूँकि ये प्राथमिक श्रेणी के उपभोक्ता को खाकर अपना होजान प्प्राप्त करते है | इन्हें द्वितीयक उपभोक्ता कहते है |

उदाहरण - गिरगिट, लोमड़ी, साँप, छिपकली 

(iii) तृतीयक उपभोक्ता :- सर्बोच्च मांसाहारी जन्तुओ को इसके अंतर्गत सम्मिलित किया गया है | ये जंतु तृतीयक श्रेणी के उपभोक्ता को खाकर अपना भोजन प्राप्त करते है तथा इसके पश्चात इन्हें खाने वाले अन्य जंतु नहीं होते है | इसलिए इन्हें सर्वाहरी भी कहा जाता है |

उदाहरण - बाघ, चिता, शेर  

5. ओजोन छिद्र से आप क्या समझते है ? यह कैसे उत्पन्न होता है ? इसमे होनेवाली हानियों के बारे में लिखें |

उत्तर :- वैज्ञानिकों के अध्ययन से यह पता चलता है की 1980 के बाद ओजोन स्तर में तीव्रता से गिरावट आई है | अन्टार्कटिका के ऊपर ओजोन के स्तर में इतनी कमी आई है की इसे ओजोन छिद्र की संज्ञा दी जाती है |

विभिन्न रासायनिक कारणों से ओजोन परत की छाती बहुत तेजी से हो रही है| क्लोरोफ्लोरोकार्बन की वृद्धि के कारण ओजोन परत में छिद्र उत्पन्न हो गए हैं| जिनसे सूरज के प्रकाश में विद्यमान पराबैंगनी विकिरण ने सीधे पृथ्वी पर आने लगती है जो कैंसर और त्वचा रोगों के कारण बन रहे हैं| 1998 तक क्लोरोफ्लोरोकार्बन में प्रयोग में 50% की कमी करने की बात कही गई| सन् 1992 में मटेरियल प्रोटोकॉल की मीटिंग में 1996 तथा सीएफसीएस पर धीरे-धीरे रोक लगाने को स्वीकार किया गया| अब क्लोरोफ्लोरोकार्बन की जगह हाइड्रो फ्लोरो कार्बन ओं का प्रयोग आरंभ किया गया है| जिसमें ओजोन परत को क्षति पहुंचाने वाले क्लोरीन या ब्रोमीन नहीं है| जनसामान्य में इसके प्रति भी सजग लगभग नहीं है| ओजोन परत पराबैंगनी किरणों का अवशोषण कर लेती है|

इस क्षति को सीमित करने के लिए 1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम में सर्वसम्मति यही बनी है कि क्लोरोफ्लोरोकार्बन के उत्पादक को 1986 के स्तर पर सीमित रखा जाए इसमें होने वाले निम्नलिखित हानियां है|

(i) इनका प्रभाव त्वचा पर पड़ता है जिससे त्वचा के कैंसर की संभावना बढ़ जाती है|

(ii) पौधों में वृद्धि दर कम हो जाती है|

(iii) यह सूक्ष्म जीवों तथा घटकों को मारती है इससे परिवर्तन में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है|

(iv) यह पौधों में पिगमेंटो को नष्ट कर देती है|

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