दीर्घ उत्तीय प्रश्न :- |
1. विभिन्न प्रकार के अलैंगिक जनन का सचित्र एवं संक्षिप्त विवरण दें |
उत्तर :- अलैंगिक जनन में अकेला जीव ही अपनी संतति पैदा करता है | इस प्रक्रिया में नर तथा मादा युग्मकों का निर्माण नहीं होता | अलैंगिक जनन की कई विधियाँ है, जैसे- विखंडन, मुकुलन, खंडन, बीजाणुओं द्वारा कायिक प्रवर्धन आदि |
अलैंगिक जनन की विधियाँ -
(a) विखंडन :- जब जीव पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है तब यह दो भागों में विभाजित हो जाता है | पहले केन्द्रक का विभाजन होता है, उसके बाद कोशिका द्रव्य का विखंडन के द्वारा जब दो जीव बनते है तो उसे द्विखंदन कहते है | जैसे-अमीबा |
अमीबा में द्विविभाजन |
(b) मुकुलन :- यीस्ट, हईड्रा एवं एनी जीवों के शारीर पर एक उभार की तरह की संरचना बनती है जिसे मुकुलन कहते है | शारीर का केन्द्रक दो भागो में विभाजित हो जाता है और उनमे से एक केन्द्रक मुकुलन में आ जाता है | मुकुलन पैत्रिक जीव से अलग होकर वृद्धि करता है और पूर्ण विकसित जीव बन जाता है |
यीस्ट में मुकुलन |
(c) खंडन :- इस विधि में जीव दो या अधिक खंडो में टूट जाते है और ये खंड वृद्धि करके पूर्ण विकसित जीव बन जाते है | उदाहरण स्पाईरोगायरा तथा छपटे कृमि |
(d) जीवाणुओं द्वारा :- बीजाणु कोशिका की विरामी अवस्था है जिसमे प्रतिकूल परिस्थिति में कोशिका की रक्षा के लिए उसके चारो ओर एक मोटी भित्ति बन जाती है | अनुकूल परिस्थिति में मोटी भित्ति टूट जाती है और बीजाणु सामान्य विधि से जनन करता ही और वृद्धि करके पूर्ण विकसित जीव बन जाता है | इस विधि द्वारा जनन करने के कुछ उदाहरण है -म्युकर, फर्न अथवा माँस |
2. ऊतक संवर्धन कैसे संपन्न होता ? कायिक प्रवर्धन के लाभों का उल्लेख कें |
उत्तर :- इस विधि में पौधे के ऊतक के एक छोटे-से भाग को काट लेते है | इस ऊत्तक को उचित परिस्थितियों में पोषक माध्यम में रखते है | ऊत्तक से एक अनियमित ऊर्ध्व सा बन जाता है जिसे कैलस कहते है | कैलस का उपयोग पुनगुणन में किया जाता है | इस ऊत्तक का छोटा-सा भाग किसी अन्य माध्यम में रखते है जो पौधे में विभेदन किक्रिया को उत्तेजित करता है | इस पौधे को गमलों या भूमि में लगा दिया जाता है और उसको परिक्व होने तक वृद्धि करने दिया जाता है | ऊत्तक संवर्धन से आजकल आर्किड, गुलदाउदी, शतावरी तथा बहुत-से अन्य पौधे तैयार किये जाते है |
लाभ :- (i) सभी नायेपौधे मात्र पौधे के समान होते है | इस प्रकार एक अच्छे गुणों वाले पौधे से कलम द्वारा उसके सामान ही अनेक पौधे तैयार किये जाते है |
(ii) फलों द्वारा उत्पन्न उन सभी बीज समान नहीं होते परन्तु कायिक जनन द्वारा उत्पन्न पौधों में पूर्ण समानता होती है |
(iii) कायिक जनन द्वारा नए पौधे थोड़े समय में ही प्राप्त हो जाते है |
(iv) वे पौधे जी बीज द्वारा सरलता से प्राप्त नहीं किए जा सकते, कायिक जनन द्वारा प्राप्त किये जा सकते है | जैसे-केला, अंगूर |
3. परागण से लेकर बीज बनने तक की क्रिया को संक्षेप में उदधृत करें |
उत्तर :- परागकोष से परागकणों का वर्तिकाग्र तक स्थानान्तरण परगन कहलाता है | फूल के पुन्केषर में परागकोष होते है, जो परागकण उत्पन्न करते है | स्त्रीकेसर के तीन भाग होते है - अंडाशय, वर्तिका और वर्तिकाग्र | परागण के बाद परागण से एक नाली निकलती है जिसे परागनली कहते है | पराग नली में दो नर युग्मक होते है इनमे से एक युग्मक पराग नली में से होता हुआ बीजांड तक पहुँचता है | यह बीजांड के साथ संलयन करता है जिससे युग्मनज बनता है दूसरा नर युग्मक दो ध्रुवीय केन्द्रक से मिलकर प्राथमिक एन्दोस्प्र्म ( भ्रूणकोष ) केन्द्रक बनाता है जिससे अंत में एंडोस्पर्म बनता है | इस प्रकार उच्चवर्गीय पौधे दोहरी निषेचन क्रिया प्रदर्षित करते है |
निषेचन केबाद फूल की पंखुड़ियाँ, पुंकेसर, वर्तिका तथा वर्तिकाग्र गिर जाते है | बाह्य दल सुख जाते है और अंडाशय पर लगे रहते है | अंडाशय शीघ्रता से वृद्धि करता है और इनमे स्थित कोशिकाएं विभाजित होकर वृद्धि करती है बीज का बनना आरम्भ हो जाता है |बीज में एक शिशु पौधे अथवा भ्रूण होता है | भ्रूण में एक छोटी जड़ (मूल जड़) एक छोटा प्ररोह (प्रांकुर) तथा बीजपत्र होते है | बीजपत्र में भोजन संचित रहता है |
समयानुसार बीज सख्त होकर सुख जाता है | यह्बीज प्रतिकूल परिस्थिति में जीवित रह सकता है | अंडाशय की दीवार भी सख्त हो सकती है और एक फली बन जाती है निषेचन के बाद सारे अंडाशय को फल कहते है |
4.पादप में लैंगिक एवं अलैंगिक जनन के विभेदों का विवरण दें |
उत्तर :- लैंगिक जनन (Sexual Reproduction) :- एक पौधे के फूल में लैंगिक जनन होता है | पुंकेसर नर जनन अंग और स्त्रीकेसर मादा जनन अंग है | परागकण पुन्केअस्र के परागकोष में पैदा होते है | परागकण दो नर युग्मक पैदा करता है | अंडाशय के अन्दर अंडाणु होते है जिसके केन्द्रक के अन्दर मेगास्पोर होता है | मेगास्पोर से भ्रूण थैली का विकास होता है जिसमे मादा युग्मक होता है | परागण द्वारा परागकण स्त्रीकेसर के वर्तिकाग्र तक पहुँचते है | निषेचन के बाद अंडाशय परिक्व होकर फल बन जाता है | बीजांड वीजों में और अंडाशय भित्ति में बदल जाती है |
अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) :- अलैंगिक जनन में संतान एक जीव से उत्पन्न होती है | अलैंगिक जनन के मुख्य प्रकार है \ द्विखंडन, बहुखंडन, मुकुलन, खंडन, बीजाणुओं द्वारा तथा कायिक प्रवर्धन |
जब पौधों के कोई कायिकभाग जैसे पत्अती, तना और जड़ नया पौधा पैदा करती है, तो इस क्मरिया को कायिक प्रूरवर्दधन कहते है| कुछ पौधे जैसे अमरूद अथवा शकरकंद की अपस्थानिक जड़ों पर छोटी-छोटी कलियाँ होती है, जिनसे नए पौधे उत्पन्न होते है | ब्रायोफिलम की पत्तियाँ के किनारों पर खांचों में स्थित अपस्थानिक कलियाँ होती है, जिनसे नए पौधे उत्पन्न होते है | रोपण में ऐच्छिक पौधे की कलम को वृक्ष के स्कंध प् लगा देते है| कायिक प्रवर्धन की ओर भी बहुत-सी विधियाँ है, जैसे कलम, दाब कलम तथा ऊत्तक संवर्धन | कायिक प्रवर्धन द्वारा उगाए गए पौधे अपने पैत्रिक पौधों के बिल्कुल सामान होते है |
5. पुष्प की अनुदैर्ध्य काट का एक स्वच्छ नामांकित चित्र बनाएँ |
उत्तर :-
6. यौवनारंभ या प्युबर्टी के समय किशोर बालक-बालिकाओं के शारीर में होनेवाले परिवर्तन का वर्णन करे |
उत्तर :- किशोर अवस्था में होनेवाले कुछ परिवर्तन बालक एवं बालिकाओं में एकसमान होते है | जैसे काँख एवं दोनों जंघाओं के बीच तथा बाह्य जननांग के समीप बाल आने लगते है | टाँगों तथा बाजुओं पर कोमल बाल उगने लगते है | त्वचा कुछ तैलीय होने लगती है | इस अवस्था में चेहरों पर फुंसियों का निकलना भी प्रारंभ हो सकता है |
इन परिवर्तनों के अतिरिक्त किशोर बालक-बालिअओं के शारीर में अलग-अलग प्रकार के कुछ परिवर्तन भी होने लगते है | जैसे- किशोर बालिकाओं के स्तनों में उभार आने लगता है | स्तन के केंद्र में स्थित स्तनाग्र के चारो ओर की त्वचा का रंग ज्यादा गाढा होने लगता है | मासिक चक्र प्रारंभ हो जाता है | किशोर बालक में मूँछ और दाढ़ी का उगना प्रारंभ होने लगता है | स्वरयंत्र या लैरिंक्स के परिपक्वता के कारण आवाज में भारीपन आने लगते है | वृष्ण में नर युग्मक शुक्राणु बनने लगते है | नर मैथुन अंग शिशन के आकार में कुछ वृद्धि होने लगते है | मासिक भावनाओं के प्रभाव से कभी-कभी शिशन के आकार में सामान्य से ज्यादा अस्थायी वृद्धि तथा कठोरता आने लगते है |
7. पुरुष के आतंरिक जनन अंगों का वर्णन करें |
उत्तर :- मनुष्य के नर जनन तंत्र में निम्नलिखित अंग आते है -
(i) वृष्ण :- मनुष्य में एक जोड़ी वृष्ण होते है जो वृष्ण कोष में बंद रहते है | वृष्ण में शुक्राणु उत्पन्न होते है | वृष्ण से शुक्राणु निकलने के बाद लगभग 48 घंटे तक जीवित रहते है | शुक्राणुओं का निर्माण शुक्रजनन कहलाता है | वृष्ण कोष शुक्राणुओं को शारीर के ताप से 1-30 Cनिम्न ताप प्रदान करते है | वृष्ण के कार्य-
(क) शुक्राणु उत्पन्न करना, (ख) नर लिंग हारामोंन-टेस्टोस्टेरोन की उत्पत्ति तथा श्रावण |
यदि वृष्ण देहगुहा में ही रह जाते है तो बन्ध्यता उत्पन्न होती है |
(ii) एपीडीडीमिस :- यह एक नलिकाकार संरचना होती है जो वृष्ण के साथ मजबूती से जुडी रहती है | यह सेमिनिफेरस नलिकाओं से जुडी रहती है और शुक्राणुओं के लिए एक संचय घर का कार्य करती है |
(iii) शुक्राशय :- एसीडीडीमिस से शुक्राणु वाहिनी द्वारा शुक्राणु शुक्राशय में आते है जहाँ ये पूरी तरह परिपक्व होते है तथा इनमे कुछ स्राव मिल जाते है |
(iv) प्रोस्टेट ग्रंथि :- यह ग्रंथि कुछ विशिष्ट गंध या स्राव स्रावित करती है जो की शुक्र रस में मिल जाते है |
(v) मूत्र मार्ग :- यह वह मार्ग है जिसमे से होकर मूत्र बाहर आता है | यह मूत्र मार्ग एक पेशीय अंग से निकलता है जिसे शिशन कहते है | शिशन का उपयोग मूत्र करने के साथ-साथ शुक्राणुओं (शुक्ररस) को निकालने के लिए भी किया जाता है |
8. स्त्री में लैंगिक चक्र का वर्णन करें |
उत्तर :- स्त्रियों में मासिक धर्म :- स्त्रियों में यह चक्र 13-15 वर्ष की आयु में प्रारंभ होता है | यह यौवनावस्था होती है | स्त्रियों में मासिक धर्म 28 दिन का होता है | यही समय अंडाणु का पूर्ण जीवन काल होता है | इसकी अवस्थाएं निम्नलिखित है -
(i) 1-5वें दिन तक पुराना अंडाणु रजोधर्म के समय बाहर आता है | अंडाशय में नए अंडाणु की वृद्धि प्रारंभ हो जाते है |
(ii) 6-12वें दिन तक अंडाशय से अंडाणु परिपक्व होकर ग्रेफियन फालिकिल बन जाता है |
(iii) 13-14वें दिन में ग्राफियन फालिकिल अंडाशय से बाहर आकर अन्दवाहिनी में पहुँच जाता है | ये अण्डोत्सर्ग कहलाता है |
(iv) 15-16वें दिन अंडाणु अंडवाहिनी और फिर गर्भाशय में आकर शुक्राणु से मिलाने की प्रतीक्षा करता है | यदि इस बीच निषेचन होता है तो अंडाणु युग्मनज में परिवर्तन हो जाता है, जो विकास करके 9 माह में शिशु बनकर जन्म लेता है |
(v) निषेचन नहीं होता है तो 17-18 वें दिन तक यह निष्क्रिय हो जाता है | 28 दिन बाद रजोधर्म से बाहर आता है |
(vi) यह चक्र एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्तिरोंन हार्मोन द्वारा नियंत्रित रहता है | स्त्रियों में रजोनिवृति 45-50 वर्ष तक होती है | लड़कों में किशोरावस्था का प्रारंभ 13 से 15 वर्ष में होता है | इनमें कोई चक्र नहीं होता है | शुक्राणुओं का निर्माण जीवन भर होता है |
9. जनसंख्या नियंत्रण के लिए व्यवहार में लाए जानेवाले विभिन्न उपायों का वर्णन करें |
उत्तर :- जनसंख्या नियंत्रण के निम्नलिखित उपाय किए जा सकते है -
1. प्राकृतिक विधि (Natural method) :- अगर कुछ दिनों तक संभोग (मैथुन) को रोक दिया जाए तब उस दौरान स्त्री की योनी में वीर्य का प्रवेश नहीं होगा जिससे अंडाणु-निषेचन की संभावना नहीं रहेगी | अत संभोग के समय का समंजन कर अंडाणु-निषेचन को रोका जा सकता है | सामान्यत मासिक स्राव के 14 वें दिन अंडाशय से परिपक्व अंडाणु निकलते है, अर्थात अण्डोत्सर्ग दो मासिक स्राव के 14 वें दिन के समीप तथा उससे आगे के दिनों में संभोग से दूर रहा जाए तो प्राय अंडाणु का निषेचन नहीं होगा |
2. यांत्रिक विधियों (Machanical method) :- इन दिनों पुरुषों और स्त्रियों, दोनों के लिए अलग-अलग वैज्ञानिक यांत्रिकी तरीके अपनाए जा रहे है जिनसे अंडाणु-निषेचन पर नियंत्रण किया जा सकता है |
पुरुष के लिए कंडोम (condom) का उपयोग सबसे सरल और प्रभावी उपाय है | कंडोम बहुत ही पतले रबर जैसे पदार्थ की बनी होती है जिसे संभोग के पहले शिशन के ऊपर एक आवरण की तरह डाल दिया जाता है | इससे स्खलन के समय वीर्य योनी में प्रवेश न करके इसी में एकत्रित रह जाता है | कंडोम के उपयोग से नर-नारी AIDS जैसे जानलेवा लैंगिक संचारित रोगों से भी बचाते है |
स्त्रियों के लिए डायाफ्राम, कॉपर-T तथा लूप जैसे परिवार नियोजन के साद्धन उपलब्ध है | डायाफ्राम को स्त्री की योनी में डालकर गर्भाशय की ग्रीवा या सर्विक्स में बैठा दिया जाता है | इससे वीर्य फैलोपियन नलिका में प्रवेश नहीं कर पाते है | कॉपर-T तथा लूप धातु या जिससे गर्भाशय की दीवार से बहुत अधिक मात्रा में म्यूकस निकलने लगता है | इसके कारण गर्भाशय की दीवार में भ्रूण का आरोपण नहीं हो पाता है |
3. रासायनिक विधियाँ (Chemical method) :- ऐसी विधियों में विभिन्न रसायनों से निर्मित गर्भ-निरोधक साधनों का उपयोग किया जाता है | जैसे रसायनों से निर्मित ऐसा क्रीम स्त्री की योनी में लगा दिया जाता है जो शुक्राणुओं को नष्ट कर देते है | इससे निषेचन नहीं हो पाता है | कृत्रिम तरीके से विभिन्न रसायनों द्वारा एस्ट्रोजेन तथा प्रोजेस्ट्रोन जैसे हार्मोन बनाए गए है जो गर्भ-निरोधक गोलियों के रूप में उपलब्ध है | स्त्रियाँ जब इनका सेवन करती है तब उनके सामान्य मासिक चक्र बाधित हो जाते है तथा अन्दोत्सर्ग नहीं हो पाता है | यह जनसंख्या-नियंत्रण की अत्यंत सुरक्षित और प्रभावी विधि है |
4. सर्जिकल विधियाँ (Surgical method ) :- इसके अंतर्गत पुरुष नसबंदी किया जाता है | इसमे शल्य-क्रिया द्वारा शुक्रवाहिका को हटाकर धागे से बाँध दिया जाता है जिससे वृष्ण में बनाने वाले शुक्राणुओं का प्रवाह स्त्री की योनी में नहीं हो पाता है | स्त्रियों में होनेवाली इसी प्रकार की शल्य-क्रिया स्त्री नसबंदी कहलाती है | इससे फैलोपियन नलिका को धागे से बाँध दिया जाता है जिससे अंडाशय से अंडाणु निकलते है, परन्तु फैलोपियन नलिका से नीचे गर्भाशय की ओर नहीं जा पाते है | शल्य-क्रिया के द्वारा गर्भाशय में पले रहे भ्रूण को उसके विकास की एक निश्चित अवधि से भीतर योनी के रास्ते बाहर निकाल दिया जाता है | इसे गर्भ का चिकित्सकीय समापन या MTP (Medical Termination of Pregnance ) कहते है | एनी विकसित देशों की तरह हमारे देश में भी MTP को कानून मान्यता प्राप्त है |
5. सामाजिक जागरूकता :- जनसंख्या-वृद्धि का मानव समाज पर प्रभाव तथा इसके नियंत्रण के लिए विभिन्न साधनों के उपयोग का प्रचार समाचारपत्रों, पत्रिकाओं, दूरदर्शन, पोस्टर या ने प्रचार के सशक्त माध्यमों द्वारा किया जाना अत्यंत आवश्यक है | इससे समाज में परिवार नियोजन के द्वारा जनसंख्या-नियंत्रण के प्रति मानव की जागरूकता बढ़ेगी |
10. लैंगिक जनन संचारित रोग क्या है ?
उत्तर :- यौन संबंध (लैंगिक संयोजन) से होनेवाली संक्रामक रोग को लैंगिक जनन संचारित रोग कहते है | ऐसे रोग कई तरह के रोगाणुओं जैसे बैक्ट्रिया, वायरस, परिजिवी प्रोतोजोआ, यीस्ट जैसे सुक्षमजीवों द्वारा होते है | ऐसे रोगाणु मनुष्य की योनी, मूत्रमार्ग जैसे जननांगों या मुख या गुदा जैसे स्थानों के नम और उष्ण वातावरण में बहते है | उन व्यक्तियों में ऐसे रोगों के होने की संभावना अधिक होती है | जो एक से अधिक व्यक्तियों के साथ लैंगिक संबंध रखते है | मनुष्य में होनेवाले ऐसे प्रमुख रोग निम्नलिखित है -
1. वायरस जनित रोग :- सर्विक्स कैंसर, हर्पिस तथा एड्स मनुष्यों में वायईरसों से होनेवाले प्रमुख रोग है | एड्स, एच. आई. वी. के कारण होनेवाले रोग है |
2. बैक्ट्रिया-जनित रोग :- गोनोरिया, सिफलिस, युरेथ्राईटिस तथा सर्विसईटिस बैक्ट्रिया के संक्रमण से होनेवालीकुछ प्रमुख रोग है |
3. प्रोटोजोआ-जनित रोग :- स्त्रियों के मुत्रजनन नलिकाओं एक प्रकार के प्रोटोजोआ के संक्रमण से होनेवाले रोग ट्राईकोमोनिएसिस है |
Class 10th Biology Chapter 1 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
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Class 10th Biology Chapter 2 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
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Class 10th Biology Chapter 3 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
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Class 10th Biology Chapter 4 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
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Class 10th Biology Chapter 5 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
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Class 10th Biology Chapter 7 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
Class 10th Biology Chapter 7 लघु उत्तरीय प्रश्न
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Class 10th Biology Chapter 8 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
Class 10th Biology Chapter 8 लघु उत्तरीय प्रश्न
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Class 10th Chemistry Chapter 1 Question and Answer
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Class 10th Political Science Chapter 2 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
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