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Class 12th Sociology Short Answers Question | Most VVI Question for Bihar Board Exam 2022 | BSEB 2nd Year Important Question

Class 12th Sociology Short Answers Question | Most VVI Question for Bihar Board Exam 2022 | BSEB 2nd Year Important Question

प्रश्न 1 से 30 तक के प्रश्नों के उत्तर के लिए क्लिक करे 

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प्रशन 31:-- सामाजिक परिवर्तन में  आर्थिक कारक की भूमिका क्या है?

उत्तर:—सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक संबंधों, सामाजिक संरचना, सामाजिक संस्थाओं अथवा संस्थाओं के परस्पर संबंधों में होने वाला परिवर्तन है। सामाजिक परिवर्तन के अनेक कारण हैं जिनमें * जनसंख्या तमक कारक,* जैविकीय कारक,* संस्कृतिक,* भौगोलिक और* मनोवैज्ञानिक कारक प्रमुख है। सामाजिक परिवर्तन में आर्थिक कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पूंजी का विकास, श्रम विभाजन और विदेशी करण जीवन का उच्च स्तर, आर्थिक संकट, बेरोजगारी और निर्धनता प्रमुख आर्थिक कारक है। आर्थिक कारकों का समाज पर काफी प्रभाव पड़ता है। कार्ल मार्क्स ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या आर्थिक  आधारों परी की है। उनके अनुसार उत्पादन के साधनों में परिवर्तन से उत्पादन की शक्तियों और संबंधों में भी परिवर्तन होते रहते हैं जिन से आर्थिक संरचना प्रभावित होती है। आर्थिक संरचना सभी प्रकार के संबंधों को निर्धारित करती है।

प्रशन32:—बाजारीकरण से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर:— उदारीकरण वकीरिया नीतियों की एक श्रृंखला है, जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण (सरकारी स्वामित्व की कंपनियों को निजी हाथों को भेजना), पूंजी, श्रम और व्यापार पर सरकारी नियमों में ढील, विभिन्न दरों में कटौती जिससे विदेशी सामान का आसानी से आयात किया जा सके और विदेशी कंपनियां भारत में अपने उद्योगों की स्थापना कर सके तुम ग्राम इस प्रकार के नए प्रावधानोंऔर परिवर्तनों को बाजारीकरण की संज्ञा दी जाती है जिस में सरकारी हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं होती है। बजा आधारित प्रक्रियाओं द्वारा ही सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक समस्याओं को सुलझाया जाता है। उदारीकरण या बाजारीकरण के दौर में आर्थिक नियंत्रण ढीले पड़ जाते हैं। उद्योगों का अधिकाधिक संख्या में निजी करण होने लगता है और मजदूरी तथा मूल्यों से सरकारी नियंत्रण बिल्कुल समाप्त हो जाता है।

प्रशन33:—मंदी किसे कहते हैं?

उत्तर:— जब निर्मित वस्तुओं का उत्पादन अधिक हो और उपभोक्ता कम हो तो मंदी की स्थिति कहलाती है। दूसरे शब्दों में जब बाजार में सामान कम हो और खरीदने वाले ज्यादा तो तेजी की स्थिति बनती है ठीक इसके विपरीत बाजार में सामग्री ज्यादा और खरीदार कम हो तो मंदी की स्थिति होती है। अभी पूरी दुनिया मंदी के दौर से गुजर रही है। मांग नहीं होने के कारण कारखाने बंद होने लगते हैं और छंटनी के कारण लोग बेकार होने लगते हैं अर्थात तेजी के ठीक विपरीत स्थिति मंदी होती है।

प्रशन34:—साप्ताहिक बाजार के लाभों का वर्णन करें।

उत्तर:—साप्ताहिक बाजार की चर्चा सर्वप्रथम एल्फ्रेड गेल ने की थी। साप्ताहिक बाजार सप्ताह में एक बार लगने वाला बाजार है, जो गांव या कस्बा में लगता है। इसमें सब्जी तथा रोजमर्रा कि उपयोग होने वाली वस्तु का बाजार, बाजार के बाहरी हिस्सों में लगाया जाता है। इसमें क्रेता और विक्रेता दोनों निम्न या निम्न मध्यम वर्ग के लोग होते हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां मिलने वाली वस्तुएं सस्ती होती है, क्योंकि इन वस्तुओं पर कर नहीं लगाया जाता । बहुत ही कम दरों पर कर लगाया जाता है।

प्रशन35:—सीमांतीकरण का क्या अर्थ है?

उत्तर:—सामाजिक असमानता और बहिष्कार का एक नया ग्रुप आज विशेष समुदायों के सीमांतीकरण के रूप में सामने आया है। सीमांतीकृत भारत में जनजातीय जीवन से संबंधीत एक प्रमुख समस्या है।सीमांतीकरण अप्रत्यक्ष शोषण का वह रूप है जिसमें किस समुदाय को समुचित सुविधाएं ना मिल पाने के कारण वह हंसीए पर चला जाता है तथा विकास के लाभों को प्राप्त नहीं कर पाता। जनजातियों में सीमांत्ता के सात मुख्य कारण है—

*अपने धर्म का तिरस्कार * परंपरागत सामाजिक संगठन के प्रति संदेह * अपनी मूल भाषा का परित्याग * जादू तथा धर्म संबंधी विश्वासो का घटता हुआ प्रभाव * बाहरी समूह की संस्कृति के दुष्प्रभाव * बढ़ता हुआ जातिगत संस्तरण एवं * परंपराओं की शून्यता।

सीमांतीकृत के दो रूप होते हैं—

(1) आंतरिक सीमांतीकृत,

(2)बाहरी सीमांतीकरण।

प्रशन36:—आदिम समाज में युवा गृह का वर्णन करें।

उत्तर:— युवा संगठन जनजातियों का एक अनौपचारिक प्रशिक्षण केंद्र है। जहां खेलकूद आमोद, प्रमोद और किस्से कहानी के बीच प्रशिक्षण देने का कार्य होता है। युवा गृह आदि सामाजिक संरचना का एक विशिष्ट स्वरूप है। समाजिक मानव शास्त्री के अध्ययन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि संध्याकाल आरंभ होते ही लड़के लड़कियां युवा गृहों मैं कदम रखते हैं और वही रात व्यतीत करते हैं। यहां उन्हें सांस्कृतिक मूल्यों, आदिम कानूनों एवं धार्मिक त्योहारों के संबंध में जानकारियां दी जाती है। उन्हें नृत्य तथा संगीत का प्रशिक्षणप्रदान किया जाता है। विभिन्न जनजातीय समाज में युवा गृहों को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। डॉ मजूमदार का कहना है कि युवा गृह की सदस्यताएक निश्चित आयु पूरी होने के बाद सभी के लिए अनिवार्य है। यह सामूहिक चेतना तथा शक्ति का प्रतीक है। उरांव जनजाति में युवा गृह को घूमकुड़िया कहा जाता है।

प्रशन37:—आदिम समाज में युवा गृह के महत्व का वर्णन करें।

उत्तर:—युवागृह जनजातीय समाज की एक महत्वपूर्ण संस्था है। इसके द्वारा निम्नलिखित कार्य संपादित किए जाते हैं—

(1) यह एक शैक्षणिक संस्था है, जिसमें समूह की संस्कृति, परंपरा, विश्वास आदि के अनुसार व्यवहार करना सिखाया जाता है।

(2) यह जनजातीय संस्कृति के मूलभूत सिद्धांतों से युवक-युवतियों को बचपन से परिचित करा कर संस्कृति की रक्षा करता है।

(3) इसके अंतर्गत सदस्य सामूहिक रूप से कार्य करते हैं, जिससे पारस्परिक स्नेह, सद्भाव तथा एकता की भावना को  प्रोत्साहन मिलता है।

प्रशन38:—टोटम का अर्थ बताएं।

उत्तर:— टोटम अमेरिकन इंडियन जनजातियों का शब्द है। विविन जनजातीय समूहों ने अपने वंश की उत्पत्ति के संबंध में तरह-तरह की कल्पनाएं की है। यह लोग किसी वृक्ष या पशु पक्षी, सूर्य,चंद्र आदि को ही अपने वंश का मूल पर्व तक मनाते हैं और उसके प्रति विशेष सिद्धा, भक्ति और उदारता का भाव रखते हैं। यह वस्तु, पशु या पक्षी उस जनजाति का टोटल कहलाती है।

प्रशन39:—सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ एवं विशेषताएं बताएं।

उत्तर:—प्रत्येक समाज व्यक्तियों तथा वर्गों की श्रेष्ठता और निमंत्रण के आधार पर कई स्तरों में बांटा होता है। प्रत्येक व्यक्ति की कुशलता एवं क्षमता तथा अधिकार और विशेषाधिकार समान नहीं होते हैं। अतःप्रत्येक समाज को व्यक्तियों की श्रेष्ठ तथा निम्न स्थितियों के आधार पर कई स्तरों में बांटना स्वभाविक है।

समाज के अंतर्गत पाए जाने वाले विभिन्न समूहों का उच्च नीच या छोटे-बड़े के आधार पर विभिन्न स्तरों में बंट जाना ही सामाजिक स्तरीकरण कहलाता है। सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं—

* सामाजिक स्तरीकरण समाज में व्यापक रूप से पाई जाने वाली एक व्यवस्था है।

* सामाजिक स्तरीकरण पीढ़ी दर पीढ़ी बना रहता है।

* सामाजिक स्तरीकरण व्यक्तियों के बीच की विविधता का कार्य ही नहीं बल्कि समाज की एक विशेषता है।

* सामाजिक स्तरीकरण को विश्वास या विचारधारा द्वारा समर्थन प्राप्त होता है।

प्रशन40:—अनुसूचित जाति क्या है?

उत्तर:—अस्पृश्यता वर्ग विभाजन का ही दुष्परिणाम है, इसलिए इससे संबंधित निर्योगयाताए और सामाजिक भेदभाव भी जाति प्रथा के इतिहास से जुड़े रहे हैं। मनुस्मृति में कहा गया है कि, चाण्डालों और स्वपचो को गांव के बाहर रहना चाहिए, दिन में बस्ती में नहीं आना चाहिए तथा अपने बर्तनों के उपयोग को अपने तक ही सीमित रखना चाहिए 1931 में असम के जनगणना आयुक्त ने बाहरी जाति के नाम से संबोधित किया। 1935 में साइमन कमीशन ने अस्पृश्य जातियों के लिए अनुसूचित जाति का नाम दिया । डॉ शर्मा ने अनुसूचित जाति की परिभाषा देते हुए कहा कि, अस्पृश्य जाति आवे है जिनके एक्सप्रेस से एक व्यक्ति अपवित्र हो जाए और उसे पवित्र होने के लिए कुछ अन्य कृत्य करने पड़े।

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