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Bihar Board Class 12th Political Science Most V.V.I Question 2022 | बिहार बोर्ड 2022 में पूछे जाने महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर

Bihar Board Class 12th Political Science Most V.V.I Question 2022  बिहार बोर्ड 2022 में पूछे जाने महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर

प्रशन 1:- राज्य पुनर्गठन आयोग का काम क्या था? इसकी प्रमुख सिफारिश क्या थी ? 

या:- राज्य पुनर्गठन आयोग के क्या उद्देश्य थे?

उत्तर :- राज्य पुनर्गठन का आयोग 1955 में राज्यों की सीमाओं के  पुनर्निर्धारण  के लिए हुआ था। इसके अध्यक्ष फजल अली एवं सदस्यों की संख्या 2 थी। इसके गठन के निम्न कारण बताए जा सकते हैं ---

1. औपनिवेशिक शासन के समय प्रांतों की सीमाएं प्रशासनिक सुविधा के लिहाज से तय की गई थी या ब्रिटिश सरकार ने जितने क्षेत्र को जीत लिया है । उतना क्षेत्र को एक अलग प्रांत मान लिया जाता था। प्रांतों की सीमा इस बात से भी तय होती थी  कि  किसी रजवाड़े के अंतर्गत इतना इलाका शामिल है।

2. आजादी और बंटवारे के बाद स्थितियां बदली । हमारे नेताओं को चिंता हुई की अगर भाषा के आधार पर प्रांत बनाए गए तो इससे अव्यवस्था फैल सकती है तथा देश के टूटने का खतरा पैदा हो सकता है।

3. केंद्रीय नेतृत्व के इस फैसले को स्थानीय नेताओं और लोगों ने चुनौती दी । पुराने मद्रास प्रांत के तेलुगु भाषी क्षेत्रों में विरोध भड़क उठा। पुराने मद्रास प्रांत में आज के तमिल नाडु और आंध्रप्रदेश शामिल थे। इसके कुछ हिस्से मौजूदा केरल एवं कर्नाटक में भी है।

4. केंद्र सरकार हां ना की दुविधा में थी और उसकी इस मनोदशा से इस आंदोलन ने जोर पकड़ा। कांग्रेस के नेता और दिग्गज गांधीवादी , पट्टी श्री रामू ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए। 56 दिनों की भूख हड़ताल के बाद उसकी मृत्यु हो गई।

5. 1952 के दिसंबर में प्रधानमंत्री ने आंध्रप्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने की घोषणा की।

6. आंध्र प्रदेश के गठन के साथ ही देश के दूसरे हिस्सों में भी भाषायी आधार पर राज्यों की गठित करने का संघर्ष हुआ। इन संघर्षों से बाध्य होकर केंद्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया।

7. जनता के दबाव में आखिरकार नेतृत्व ने भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन आयोग बनाया। राज्यों के पुनर्गठन की घटना को आज 60 साल से भी अधिक समय हो गया।

8. रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहां बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए।

9. इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ।10. इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए।

प्रशन 2:- राष्ट्र निर्माण से आप क्या समझते हैं ? भारत के समक्ष राष्ट्र निर्माण की चुनौतियों का विवेचना कीजिए।

उत्तर :- देश के प्रांतों या क्षेत्रों का ऐसा गठन या पुनर्गठन किया जाए जिसे लोग वैध मानले , ताकि  राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था सुचारू रूप से काम कर सके ।

** ऐसे तो स्वतंत्र भारत के समक्ष अनेक समस्याएं और चुनौतियां थी, उनमें से तीन प्रमुख चुनौतियां थी, जिन पर काबू पाए बिना हम अपने देश की एकता को बचाने में कामयाब नहीं रह सकते थे, जो निम्नलिखित हैं ---

1. राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखना

2. देश में लोकतंत्र बहाल करने की चुनौती

3. पूरे समाज के विकास और भलाई को सुनिश्चित करने की चुनौती 

1. राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखना :- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने का प्रश्न प्रथम चुनौती थी। देश विभाजन के समय ऐसा लगा की एकता  समाप्त हो जाएगी। स्वतंत्र भारत के लिए राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखने का प्रश्न एकमात्र उद्देश्य हो गया। विविधता में एकता का सिद्धांत समाप्त हो गया।

2. देश में लोकतंत्र बहाल करने की चुनौती:- देश विभाजन के चलते हैं हिंसा और संप्रदायिक दंगों के बाद देश को एक ऐसा मोड़ पर खड़ा कर दिया था जहां हम महसूस करने लगे थे कि देश लोकतंत्र को बहाल करके ही राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता की रक्षा की जा सकती है।

इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए संसदीय शासन प्रणाली के आधार पर देश में प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र की स्थापना की गई।

3. पूरे समाज के विकास और भलाई को सुनिश्चित करने की चुनौती:- स्वतंत्र भारत की यह भी  जिम्मेदारी थी कि वह संपूर्ण समाज की भलाई के लिए ऐसी कार्य योजनाओं को संचालित करें। जिससे देश का सम्यक विकास हो सके। कार्य ऐसी होनी चाहिए जिससे पूरे देश के नागरिकों के बीच समानता स्थापित होने के साथ-साथ सामाजिक रुप से समूह के हितों की रक्षा हो सके। स्वतंत्र भारत के सम्मुख संपूर्ण समाज के विकास और भलाई को सुनिश्चित करना एक ऐसे जिम्मेदारी थी जिसे भारत को चुनौती के रूप में स्वीकार करना था।

प्रशन 3. भारत में राष्ट्र निर्माण संबंधित समस्याओं का वर्णन करें।

उत्तर:- यहां एक संवैधानिक व्यवस्था है , जो पूरे देश पर लागू है तथा जिसका पालन सभी के द्वारा किया जाता है। विविधता के बावजूद यह एकता पाई जाती है। संकट के समय में कई अवसरों पर संपूर्ण राष्ट्र ने एकता का परिचय दिया है। आवागमन , रीति रिवाज, धार्मिक सद्भाव आदि के आधार पर एकात्मक दृष्टिकोण अपनाने पर बल दिया जाता है। इसके बावजूद राष्ट्र निर्माण में भारत अब भी  निम्नलिखित समस्याओं का सामना कर रहा है -----

1. संविधान का संकट

2. अलगाववाद

3. आतंकवाद

4. गरीबी एवं बेरोजगारी

5. केंद्र के प्रति राज्यों के दृष्टिकोण में भिन्नता

1. संविधान का संकट:-भारत का संविधान विभिन्न चुनौतियों का सामना करने वाला है । फिर भी यहां संविधान की भावना के उल्लंघन की प्रवृत्ति बढ़ रही है। संविधान को दायित्व निर्वाह का आधार नहीं मानकर शक्ति के दुरुपयोग आधार माना जाता है। परिणाम स्वरूप अनेक  समस्याएं उत्पन्न होते हैं।

2. अलगाववाद:- भारत स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जल्द ही देशी  राज्यों के विलय करने में सफल रहा। राजनीतिक एकीकरण का पटेल के नेतृत्व में अच्छा उदाहरण पेश किया गया। इसके बावजूद भारत में अलगाववादी प्रवृतियां बनी हुई है , भारतीय राष्ट्र निर्माण के मार्ग में बाधक हैं।

3. आतंकवाद:- हमारे भारत में आतंकवाद का भी खतरा भारत राष्ट्र निर्माण में बाधक है। भारत में आतंकी गतिविधियां भी जोर शोर से चल रही है। इनमें कुछ विदेशी शक्तियों द्वारा पोषित है, तो कुछ आंतरिक समस्याओं से जुड़ी हैं। आतंकवाद का अस्तित्व यह बतलाता है कि भारत में सत्ता की पहुंच से कुछ संगठन बाहर है या उन पर नियंत्रण अभी नहीं हो पाया है।

4. गरीबी एवं बेरोजगारी:-गरीबी एवं बेरोजगारी की राष्ट्र निर्माण के मार्ग में बाधक है। क्योंकि राष्ट्र का एक आधार यह भी है कि राष्ट्र के प्रति लोगों के मन में स्वभाविक लगाओ हो, गरीबी और बेरोजगारी लोगों को अलग-थलग कर देती हैं। वे लोग यह सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि राष्ट्र उनके लिए सहायक नहीं है। जो राजनीतिक उदासीनता का कारण बनता है। यह राष्ट्र के विरुद्ध बहुत बड़ी बाधा है।

5. केंद्र के प्रति राज्यों के दृष्टिकोण में भिन्नता:-भारत में संघात्मक व्यवस्था है , यहां केंद्र तथा राज्यों के बीच अच्छा संबंध रहना चाहिए। किंतु कई राज्यों को केंद्र से उनकी उपेक्षा की शिकायत रहती है। यह स्थिति भी राष्ट्र निर्माण के लिए रुकावट है। संविधान की धारा 356 का राज्यों में प्रयोग इसका सबसे बुरा पक्ष है। इस संबंध में सहमति बनाने की आवश्यकता है।

प्रशन 4:- केंद्र और राज्यों के बीच संबंध को स्थापित करें।

उत्तर:- संविधान के आधार पर संघ तथा राज्यों के संबंधों को तीन भागों में विभाजित किया गया है-------

1. केंद्र तथा राज्यों के बीच विधायी संबंध

2. केंद्र तथा राज्यों के बीच प्रशासनिक संबंध

3. केंद्र तथा राज्यों के बीच वित्तीय संबंध

1. केंद्र तथा राज्यों के बीच विधा यी संबंध:- केंद्र व राज्यों के बीच विधायी  संबंधो का संचालन  उन तीनों सूचियों के आधार पर होता है जिन्हें संघ सूची, राज्य सूची व समवर्ती सूची का नाम दिया गया है।

2. केंद्र तथा राज्यों के बीच प्रशासनिक संबंध:- भारतीय संविधान 11 वें भाग के दूसरे अध्याय में केंद्र तथा राज्यों के बीच प्रशासनिक संबंधों की चर्चा की गई है। संविधान के अनु 73 के अनुसार केंद्र की प्रशासनिक शक्ति उन विषयों तक सीमित है। जिन पर संसद को विधि निर्माण के अधिकार प्राप्त है। इसी प्रकार संविधान के अनु 162 के अनुसार, राज्यों को प्रशासनिक शक्तियां उन विषयों तक सीमित है जिन पर राज्य विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार है।

3. केंद्र तथा राज्यों के बीच वित्तीय संबंध:- संघीय शासन व्यवस्था में केंद्र तथा राज्यों की सरकारों के बीच केवल विधाई और प्रशासनिक शक्तियों का ही विभाजन नहीं होता बल्कि वित्तीय स्रोतों का भी बंटवारा होता है। अनु 268 केंद्र और राज्यों में राजस्वो के वितरण की व्यवस्था करता है। राज्य सूची में राज्यों को कर लगाने का अधिकार है। संघ सूची में केंद्र सरकार को कर लगाने का अधिकार तथा समवर्ती सूची में अवश्य है, लेकिन केवल कुछ ही करो का उल्लेख है।

प्रशन 5:-भारतीय संघ में रजवाड़ों के विलय की विवेचना करें ।

या:- स्वतंत्रता के बाद देशी राजाओं के विलय पर निबंध लिखें।

उत्तर:-15 अगस्त 1947 को जिस ब्रिटिश अधिनियम द्वारा भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, उसी अधिनियम में यह कहा गया है कि देशी रियासतें, जिनकी संख्या करीब 565 थी, स्वतंत्रता तभी रह सकते हैं जब  अपनी इच्छा से भारत या पाकिस्तान में विलय कर सकते हैं। भारत की राजनीतिक और भौगोलिक पहचान के लिए यह एक गंभीर समस्या थी। भारत की तत्कालीन सरकार ने  इन देशी  रियासतों को को भारत में विलय कराने के लिए प्रयास करने का निर्णय लिया। दो परिपत्र भारत सरकार द्वारा देसी रियासतों के लिए जारी किए गए। प्रथम, यथास्थिति बनाए रखने के लिए समझौते का परिपत्र---जो आवागमन , मुद्रा परिचालन आदि से संबंधित था । इस पर सभी रियासतों ने स्वीकृति प्रदान कर दी। द्वितीय भारत सरकार के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने से संबंधित था। सरदार पटेल, जो गृह मंत्री के रूप में इस दायित्व से जुड़े थे, की सूझबूझ तथा दबाव के कारण तीन ऐसी रियासतों को छोड़कर सबो ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए।

विलय पत्र पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले तीन देशी रियासतें थी-----जूनागढ़ , हैदराबाद और कश्मीर।

प्रशन 6:- हरित क्रांति क्या है? हरित क्रांति के सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलू बतलाइए।

उत्तर:-  भारत और पाकिस्तान के युद्ध के दौरान अमेरिका ने कृषि पर रोक लगाई, तथा 1966 ईस्वी में भारत को अकाल के  कारण गंभीर संकटों का सामना करना पड़ा। इसी कारण कृषि क्षेत्र में एक नई तकनीकी को अपनाई गई, जिससे खाद पदार्थ के उत्पादन में काफी वृद्धि हुई जिसे हम हरित क्रांति कहते हैं।

* हरित क्रांति के उद्देश्य :

हरित क्रांति के निम्नलिखित उद्देश्य थे-------

* हरित क्रांति का सबसे मुख्य उद्देश्य भारत में कृषि क्षेत्र का विकास करना था।

* इसका दूसरा प्रमुख उद्देश्य था साल में दो मौसमी फसलें उगाई जाए, एक फसल प्राकृतिक वर्षा के आधार पर और दूसरी कृत्रिम वर्षा के आधार पर।

* हरित क्रांति का उद्देश्य अच्छे बीजों का प्रयोग करना था। इसके लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का 1965 एवं 1973 में पुनर्गठन किया गया।

** सकारात्मक पहलू: हरित क्रांति के निम्नलिखित सकारात्मक पहलू बताए जा सकते हैं----

(1) हरित क्रांति के कारण खद्दान उत्पादन में वृद्धि हुई । अन्न  के मामले में भारत आत्मनिर्भर हो गया।

(2) हरित क्रांति के कारण भूखमरी की स्थिति दूर हुई । अनाज की कमी दूर होने के कारण ग्रामीण क्षेत्र में भी इसका लाभ हुआ।

(3) हरित क्रांति के कारण भारत को अन्न  के लिए विदेशी निर्भरता में कमी आई। वस्तुतः इसके लिए अपमानजनक ढंग से अमेरिका आदि देशों पर भारत को निर्भर करना पड़ता था।

** नकारात्मक पहलू: हरित क्रांति के निम्नलिखित नकारात्मक पहलू बदला ले जा सकते हैं----- 

(1) अमीर किसान वर्ग का उदय हुआ, जबकि भूमिहीन किसानों की स्थिति और खराब हो गई।

(2) कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण के उपयोग के कारण रोजगार के अवसरों में कमी आई। परिणाम स्वरूप ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ी और मजदूर शहरों की ओर पलायन होने लगे।

(3) बेरोजगारी का प्रभाव नक्सलवादी आंदोलन को बढ़ाने में भी रहा।

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