प्रशन 1 _प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन के विभिन्न स्त्रोतो का वर्णन करें ?
उत्तर:- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन के निम्नलिखित स्त्रोत हैं :-
(1) वेद
(2) वेदांग
(3) रामायण एवं महाभारत
(4) पुरान एवं स्मृतियां
(5) अब्राहम साहित्य
(6) लौकिक साहित्य
(7) जीवनियां
(8) विदेशियों की देन
(1) वेद:- वेद के जरिए भी हमलोगों को इतिहास की जानकारी मिलती है। चार काल में चार वेद आये ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद इन चारों से हमें इतिहास की जानकारी मिलती है चारों वेद चार अलग-अलग समय में लिखा गया था।जिसे पढ़कर हमें चारों समय की जानकारी मिलती है तथा हमें पता चलता है कि उस समय का इतिहास कैसा था ।
(2) वेदांग:- उस समय में चारों वेदों से निकाल कर वेदांग निकाला गया है।वेदांग छः होते हैं-शिक्षा, कल्प,व्याकरण,निरूक्त,छन्द और ज़्योतिष इनसे प्राचीन धर्म समाज व ज्ञान प्राप्त होता है ।
(3) रामायण एवं महाभारत:- रामायण एवं महाभारत दोनों अलग-अलग ग्रंथ है जिसे पढ़कर हमें उस समय के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है
(4) पूरान एवं स्मृतियां:- पूरानो की संख्या 18 होती है तथा पूरान में किसी भी एक वंश के सभी बादशाहों की बादशाही की पूरी जानकारी लिखी जाती है ,कि किस बादशाह के समय में कितना विकास हुआ था । उसका शासनकाल कैसा था जिससे हमें उस समय की इतिहास की जानकारी मिलती है ।
(5) अब्राहम साहित्य:- अब्राहम साहित्य के द्वारा भी हमें भारतीय इतिहास की जानकारी मिलती है। जो बौद्ध धर्म और जैन धर्म द्वारा निर्मित की गई है। बौद्ध धर्म और जैन धर्म के सिद्धांतो को इन्हीं साहित्यको द्वारा लिखा गया है ।
(6) लौकिक साहित्य :- किसी भी बड़े बुढे की सुनीं हुई कहानी से भी हमें उस समय के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है जैसे--- लौकिक साहित्य में बताया गया है कि बड़े-बड़े तालाबों को दैंत एक ही रात में खोदकर चलें जाते थे।
(7) जीवनियां:- जीवनियां से भी हमलोगो को भारतीय इतिहास की काफी जानकारी मिलती है। उस समय के बादशाह के बादशाही के बारे में जीवनियां लिखी जाती थी और उसके जीवन की सभी बात लिखी जाती थी जिसे पढ़कर हमें उस समय के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है।
(8) विदेशियों की देन:- लोग उस समय में अलग-अलग देशों के आते थे और हमारे भारत के बारे में ग्रन्थ लिखते थे जिसे पढ़कर हमें उस समय के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है।
निष्कर्ष:- प्राचीन भारत के इतिहास को जानने का जो भी स्त्रोत अब तक प्राप्त हुआ है। उनमें प्राचीन भारतीय इतिहास स्पष्टता दिखाई पड़ती है।साहित्यक स्त्रोत से उस समय के इतिहास का पता चलता है जिस समय में इसका निर्माण किया गया था। पुरातात्विक सामग्री हमें उस समय के कला के बारे में बताता है। मुद्राएँ एवं सिक्के प्राचीन भारत के राजाओं एवं उनके वंश परम्परा की जानकारी होती है।
प्रशन 2:- हड़प्पा संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:- हड़प्पा संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित थी----
1. नगर प्रधान सभ्यता
2. शांति प्रधान सभ्यता
3. व्यापार प्रधान सभ्यता
4. कांस्य सभ्यता
5.द्विदेवता मूलक सभ्यता
6. आर्थिक जीवन
7. सामाजिक जीवन
8. धार्मिक जीवन
9. लिपि का ज्ञान
10. कला
1. नगर प्रधान सभ्यता:-हड़प्पा सभ्यता एक नगर प्रधान सभ्यता थी। खुदाई से पता चलता है कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो कभी बड़े विशाल तथा सुंदरनगर थे, उस समय का घर पक्के का होता था। उस समय में पक्के भवनों एवं सड़कों, नालियों, स्नानागरो सब को साफ रखते थे। वे लोग नालियों को ढक कर रखते थे। वे लोग साफ -सफाई पर पूरा ध्यान देते थे।
2. शांति प्रधान सभ्यता:- हड़प्पा सभ्यता एक शांति प्रधान सभ्यता थी। खुदाई में ढ़ाल, कवच,टोप, हथियार आदि नहीं मिले हैं। परंतु कहा गया है कि उसमें लड़ने झगड़ने वाला कोई नहीं था। उसमें हथियार, धनुष, भाले, कुल्हाड़ी आदि मिले हैं यह सब सामान अपनी रक्षा करने के लिए रखते थे।
3. व्यापार प्रधान सभ्यता:- हड़प्पा सभ्यता व्यापार प्रधान सभ्यता थी। वे लोग एक देश से दूसरे देश जाकर अपना व्यापार करते थे। सुमेरिया, ईरान ,मिश्र आदि अनेक देशों के साथ संबंध स्थापित था।
4. कांस्य सभ्यता:- हड़प्पा सभ्यता एक कांस्य कालीन सभ्यता थी।इसमें कांस्य कालीन की बहुत कुछ विशेषताएं दिखाई देती हैं।
5. द्विदेवता मूलक सभ्यता:-हड़प्पा निवासियों का धर्म द्विदेवता मूलक था। वहां एक नारी की मूर्ति थी एक पुरुष की मूर्ति थी, जो देवी भगवान को मानते थे।
6. आर्थिक जीवन:-हड़प्पा सभ्यता के लोगों का मुख्य पेशा कृषि था। वे लोग गेहूं, जौ,गन्ना, कपास आदि उत्पन्न करते थे। हड़प्पा में विशाल स्नानागार भी प्राप्त हुआ था। येलोग गाय, बैल, बकरी, हाथी,कुत्ते भेड़ तथा सूअर आदि को पालते थे। यह लोग विभिन्न प्रकार के व्यवसाय करते थे तथा उनका देश-विदेश में भी व्यापार होता था।
7. सामाजिक जीवन:-हड़प्पा सभ्यता का समाज मातृसत्तात्मक था।समाज में स्त्रियों को उच्च स्थान प्राप्त था, हड़प्पा निवासी सूती तथा ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे।पुरुष धोती पहनते थे, स्त्रियां घागरे का प्रयोग करती थी। सिंधु घाटी के लोग दाढ़ी रखते थे तथा स्त्रियां विभिन्न प्रकार का सिंगार करती थी। स्त्री पुरुष दोनों ही आभूषण पहनते थे नृत्य तथा गाने का भी प्रचलन था, शिकार का भी प्रचलन था, मृतक संस्कार तीन प्रकार के थे---
(a) शव को जलाना
(b) शव को दफनाना
(c) शव को खुला में छोड़ना।
8. धार्मिक जीवन:-धार्मिक जीवन में मातृ देवी की पूजा करते थे। वे लोग देवी-देवताओं की पूजा करते थे, तथा वे लोग अग्नि,जल, वायु, सूर्य, नाग तथा पीपल के वृक्ष की पूजा करते थे तथा वे लोग बरगद तुलसी आदि की भी उपासना करते थे। ये लोग भूत-प्रेत जादू टोने में भी विश्वास रखते थे। यह लोग देवी-देवताओं को खुश करने के लिए पशु बलि भी दी जाती थी।
9. लिपि का ज्ञान:- हड़प्पा निवासी को लिपि का विज्ञान हो चुका था यानी लिखने का विज्ञान हो चुका था ।जिसके माध्यम से वे अपने विचारों की अभिव्यक्ति करते थे।
10. कला:- उन लोगों को कला करना भी आ गया था। हड़प्पा की खुदाई में कुछ मोहरे मिले हैं। बर्तनों के अवशेष, शास्त्र, खिलौने,मुद्राओं पर की गई नक्काशी को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि उन लोगों को कला का भी ज्ञान हो चुका था।
निष्कर्ष:---हड़प्पा संस्कृति भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता है। हड़प्पा संस्कृति में कई प्रकार के आविष्कार हो चुके थे ।जैसे --नगर योजना की कला, आर्थिक जीवन का विकास, सामाजिक जीवन में बदलाव, धार्मिक जीवन में वृद्धि, कला और दस्तकारी में वृद्धि तथा राजनीतिक जीवन में सुधार हुए। सिंधु नदी के कारण इन्हें सस्ता यातायात सुविधा प्राप्त हुआ। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि नगर निर्माण और व्यापारिक संबंध को माना जाता है।
प्रशन 3:- हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:- हड़प्पा सभ्यता का पतन कैसे हुआ इस विषय में अभी तक वैज्ञानिकों में वाद विवाद है।हड़प्पा सभ्यता के पतन का असली कारण अभी तक पता नहीं चला है, जो भी निष्कर्ष इसके पतन को लेकर निकाला गया है, वो वहां मिले अवशेषों पर ही आधारित है।
»» हड़प्पा सभ्यता के निम्नलिखित कारण बताए गए हैं---
1. बाढ़
2. सूखा
3. बाहरी आक्रमण
4. महामारी
5. सिंधु नदी में मार्ग परिवर्तन
1. बाढ़:- वैज्ञानिकों का कहना है कि यहां हर साल बाढ़ आती थी जिसकी वजह से इस सभ्यता का कितनी बार निर्माण हुआ था, पर अतः इस का पतन हो गया।
2. सूखा:-कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि सूखे की वजह से इस सभ्यता का पतन हुआ। क्योंकि सूखे पड़ने के कारण पानी के लिए वह लोग तड़प तड़प कर मर गए।
3. बाहरी आक्रमण:-कुछ वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि यहां पर लगातार बाहरी आक्रमण होते थे। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि इस सभ्यता का पतन बाहरी आक्रमण से भी हुआ।
4. महामारी:-उस समय वहां एक बीमारी हवा के रूप में आई थी, जो वहां के लोगों में धीरे-धीरे फैलने लगी क्योंकि वहां की खुदाई के दौरान जो भी कंगाल मिले हैं ,उन सब में आधे से ज्यादो की मौत की वजह उस बीमारी को बताया जाता है।
5. सिंधु नदी में मार्ग परिवर्तन:- कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार सिंधु नदी जिस नदी के तट पर स्थित थी उस नदी की धारा का रुख मोड़ दिया गया था।अतः नदियों के मार्ग परिवर्तन को इस के पतन का कारण माना गया है।
निष्कर्ष:-- हड़प्पा सभ्यता का असल कारण क्या था इस विषय पर वैज्ञानिकों में वाद विवाद है। जो भी निष्कर्ष इसके पतन को लेकर निकाला गया है वो वहां मिले अवशेषों पर ही आधारित है। जैसे हम यह कह सकते हैं कि बाढ़ ,सूखा ,बाहरी आक्रमण, महामारी ,सिंधु नदी में मार्ग परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषित वातावरण, आर्थिक मंदी आदि की वजह से इसका पतन हुआ। इस प्रकार की सभी कारणों से मिलकर हड़प्पा सभ्यता के नगरों का विनाश हुआ।
प्रशन 4:- मोहनजोदड़ो की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:- मोहनजोदड़ो की विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है---
1. दो भागों में विभाजन
2. दीवारों में घिरा होना
3. ऊंचे चबूतरे पर निर्माण
4. सुनियोजित ढंग से नालियों का निर्माण
5. दोनों शहरों में अंतर
1. दो भागों में विभाजन:- मोहनजोदड़ो दो भागों में बटा हुआ था। ऊपर के भाग को दुर्ग और नीचे के भाग को निकला कहा जाता था।
2. दीवारों में घिरा होना:- मोहनजोदारो के दुर्ग वाले हिस्से और निचले हिस्से में दीवार बनाई गई थी। जिस को दो भागों में बांटा गया था।
3. ऊंचे चबूतरे पर निर्माण:-मोहनजोदारो में हर घर का निर्माण ऊंचे चबूतरे पर किया जाता था।
4. सुनियोजित ढंग से नालियों का निर्माण:-यहां नालियों का निर्माण सुनियोजित ढंग से किया जाता था , ताकि पानी रुके नहीं और साफ रहे। वह लोग साफ सफाई पर पूरा ध्यान देते थे।
5. दोनों शहरों में अंतर:- दुर्ग शहर के लोग दुर्ग में और निचले शहर के लोग निचले में रहते थे। सब लोग अपने अपने शहर में रहते थे।
प्रशन 5:-चंद्रगुप्त मौर्य की जीवनी एवं उपलब्धियों की विवेचना करें।
उत्तर:- चंद्रगुप्त मौर्य का जीवन वृत्त---
1. चंद्रगुप्त का प्रारंभिक जीवन
2. चाणाक़्य से मित्रता
3. नंद वंश के विरुद्ध विद्रोह अग्नि भड़काना
4. सिकंदर की सहायता प्राप्त करने का प्रयत्न
5.चंद्रगुप्त मौर्य एक विजेता के रूप में पंजाब पर अधिकार
6. मगध राज्य पर आक्रमण
7. दक्षिण भारत पर विजय
8. चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य विस्तार
9. चंद्रगुप्त की मृत्यु
1. चंद्रगुप्त का प्रारंभिक जीवन:- चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म लगभग 345 ईसा पूर्व में हुआ था। इनके पिता शत्रुओं द्वारा भगाए जाने पर पाटलिपुत्र में आकर रहने लगे थे। चंद्रगुप्त के पिता ने नंद राजा की सेवा में नौकरी कर ली थी, परंतु नंद राजा और चंद्रगुप्त के पिता के बीच कुछ अनबन हुई जिसके कारण नंद राजा ने चंद्रगुप्त के पिता को मरवा डाला। उस समय चंद्रगुप्त अपनी मां के गर्भ में था। चंद्रगुप्त की मां उसी पाटलिपुत्र में छिपकर रह रही थी जब चंद्रगुप्त बड़ा हुआ तो वह नंद राजा की सेना में नौकरी कर ली और वह अपनी साहस से उच्च अधिकारी बन गया, जो नंद राजा को अच्छा नहीं लगा और चंद्रगुप्त की हत्या करवाने की सूची लेकिन चंद्रगुप्त को इस बात का पता चल गया और वह पाटलिपुत्र से भाग गया। इस घटना से चंद्रगुप्त मौर्य के दिमाग में नंद राजा को समाप्त करने का धुन सवार हो गया।
2. चाणाक्य से मित्रता:- इसी समय चंद्रगुप्त की मित्रता चाणाक्य नामक एक विद्वान ब्राह्मण से हुई। चाणाक्य का भी नंद राजा ने बहुत अपमान किया था। इसलिए चाणाक्य ने भी नंद राजा (वंश) को अंत करने की प्रतिज्ञा की थी और चंद्रगुप्त चाणाक्य ने सहायक योजना बनाई।
3. नंद वंश के विरुद्ध विद्रोह अग्नि भरकाना:- चंद्रगुप्त एवं चाणाक्य ने नंद राजा के विरुद्ध करने में जुट गया। तैयारियां करने के बाद उन्होंने मगध पर आक्रमण किया , जिसको नंद राजा ने बुरी तरह से विफल कर दिया । चंद्रगुप्त और चाणाक्य मगध राज्य से भाग गए वे मगध पर आक्रमण करने की योजना बनाने लगे।
4. सिकंदर की सहायता प्राप्त करने का प्रयत्न:- नंद राजाओं पर आक्रमण करने के लिए चंद्रगुप्त मौर्य सिकंदर के पास गए , परंतु चंद्रगुप्त के स्वतंत्र विचारों के कारण सिकंदर उससे आप प्रसन्न हो गए और उसे मरवाने की आज्ञा दे दी। परंतु चंद्रगुप्त किसी तरह से वहां से भाग गए।अब तो नंद राजा के साथ-साथ यूनानीयों को भी भारत से निकालने का निश्चय कर लिया था।
5. चंद्रगुप्त मौर्य एक विजेता के रूप में पंजाब पर अधिकार :- अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए चंद्रगुप्त और चाणाक्य ने पश्चिम उत्तर प्रदेश की जनता को विदेशियों के विरुद्ध भड़काना शुरू कर दिया। सिकंदर को भारत से चले जाने के बाद भारतीयों ने यूनानीयों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। चंद्रगुप्त इन विद्रोह का नेतृत्व किया और यूनानी यों को पंजाब से भगाना प्रारंभ किया। यूनानी सैनिक भारत छोड़कर भाग गए और जो रह गए उसे मरवा दिया। इस प्रकार चंद्रगुप्त ने पूरे पंजाब पर अपना अधिकार कर लिया।
6. मगध राज्य पर आक्रमण:- पंजाब को अपने अधिकार में करने के बाद उसने मगध राज्य पर आक्रमण कर दिया, और उसकी सेना आगे बढ़ती हुई पाटलिपुत्र के नजदीक पहुंच गई नंद राजा धनानंद की पराजय हुई और वह मारा गया। अब 322 ईसा पूर्व चंद्रगुप्त मगध के सिंहासन पर बैठ गया और चाणाक्य ने उसका राज्यभिषेक किया।
7. दक्षिण भारत पर विजय :- अधिकांश विद्वानों के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने दक्षिण भारत पर भी अधिकार किया था। क्योंकि अशोक का साम्राज्य मैसूर तक फैला था , चूंकि अशोक ने कलिंग के अलावा अन्य किसी प्रदेश पर विजय प्राप्त नहीं की, इसलिए दक्षिण भारत पर विजय का श्रेय चंद्रगुप्त मौर्य को दिया जाता है।
8. चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य विस्तार :-उनके विजय प्राप्त करने के बाद चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने साम्राज्य की सीमाएं उत्तर- पश्चिम में हिंदू कुश से लेकर पूर्व में बंगाल तक तथा उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में तिनावली तक फैला था। इतना विशाल साम्राज्य भारत में कभी नहीं स्थापित हुआ था।
9. चंद्रगुप्त की मृत्यु :- चंद्रगुप्त मौर्य ने लगभग 24 वर्ष तक शासन किया। प्रारंम्भ से वह ब्राह्मण था, परंतु जीवन के अंतिम में वह जैन धर्म अपना लिया ।
»» निष्कर्ष :-चंद्रगुप्त चौथी शताब्दी में सम्राट बना था । और उसने नंद वंश को हराकर मगध पर अपनी विजय पताका फहराई थी। उसने उस समय के नंद वंश के शासक धनानंद को हराकर राजगद्दी अपने कब्जे में ले ली थी चंद्रगुप्त मौर्य एक अच्छा सैनिक , एक अच्छा सेनानायक , एक अच्छा योद्धा तथा एक अच्छा शासक सिद्ध हुआ। चंद्रगुप्त का बचपन काफी अभाव और कष्ट में बीता। उसे नंद वंश के विरुद्ध विद्रोह करने का दंड मिला और उसका परिणाम यह हुआ कि उसे अपना जान बचाकर वहां से भागना पड़ा। उसी दौरान उसकी मित्रता चाणाक्य से हुई और फिर उसके बाद उसने मगध पर आक्रमण किया , किंतु हार गया। वह अपनी जान बचाकर भाग गया और पंजाब को जीतने के बाद पुनः मगध पर विजय प्राप्त कर ली।
प्रशन 6:-मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों का वर्णन करें ।
उत्तर :- मौर्य साम्राज्य के पतन के निम्नलिखित कारण थे ---
1. अशोक के आयोग के उत्तराधिकारी
2. ब्राह्मणों द्वारा विरोध
3. धन का अभाव
4. अधिकारियों (कर्मचारियों) के अत्याचार
5. सैनिक शक्ति की कमी
6. उत्तराधिकारी के निश्चित नियम का अभाव
7. साम्राज्य की विघटनकारी प्रवृत्ति
8. आंतरिक व्यवस्था
9. यवनों का आक्रमण
10. संकट अर्थव्यवस्था
11. अन्याय कारण
1. अशोक के अयोग्य उत्तराधिकारी:-मौर्य वंश में चंद्रगुप्त मौर्य एवं अशोक शक्तिशाली शासक थे, परंतु अशोक के उत्तराधिकारी दशरथ वृहद्रथ आदि अयोग्य एवं निर्बल थे। जिस कारण मौर्य वंश का पतन हो गया। क्योंकि ना तो वे देश में शांति बनाए रखें और ना ही आक्रमणकारियों का मुकाबला कर सके।
अतः अशोक के बाद मौर्य वंश में जितने भी शासक आए वह सब इतने बड़े साम्राज्य को नहीं संभाल पाए जिस कारण 50 वर्ष के अंदर ही मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया।
2. ब्राह्मणों द्वारा विरोध:-मौर्य वंश का मुख्य कारण ब्राह्मणों द्वारा विरोध किए जाने पर हुआ , क्योंकि मौर्य वंश का निर्माण ब्राह्मणों द्वारा ही हुआ और जब वे ही इस वंश का विरोध करने लगे तो इस कारण से मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया।
3. धन का अभाव :-अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार - प्रसार में इतने धन खर्च किए की उनका राजकोष ही खाली हो गया , और जब धन नहीं रहा तो राज्य को चलाना मुश्किल हो गया जिस वजह से मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया।
4. अधिकारियों (कर्मचारियों) के अत्याचार :-मौर्य वंश का साम्राज्य इतना बड़ा था कि सबको अपनी देखरेख में रखना मुश्किल हो गया ।इसलिए हर राज्यो में कर्मचारियों को उपलब्ध करवाया गया था, जो अपनी क्रूरता को वहां के निवासियों पर बरसाया करता था। जिससे तंग अगर वहां के निवासियों विद्रोह करना शुरू कर दिए जिस वजह से मौर्य वंश का पतन हो गया।
5. सैनिक शक्ति में कमी:- कलिंग युद्ध के बाद अशोक युद्ध नहीं करने का निश्चय किया, उसने सैनिक शक्ति बढ़ाने की ओर ध्यान नहीं दिया। जिसके कारण मौर्य वंश की सैनिक शक्ति कम हो गई और मौर्य वंश का पतन हो गया।
6. उत्तराधिकारी के निश्चित नियम का अभाव:-मौर्य काल में उत्तराधिकारी के निश्चित नियम के अभाव में घरेलू समस्या सामने आई इसमें शासक बनने के लिए अपने ही भाइयों को मरवाने जैसा काम हुआ जिस कारण मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया।
7. साम्राज्य की विघटनकारी प्रवृत्ति:-मौर्य साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण विघटनकारी प्रवृत्ति भी है । मौर्य साम्राज्य के जो लोग थे वह सिर्फ अपने राजधानी और अपने बीच वाले भाग पर ध्यान देते थे दुर्ग के राज्यों को छोड़ देते थे। जिस कारण दुर्ग के लोग अपने आप को स्वतंत्र घोषित कर लिए थे, और वे लोग अलग-अलग राज्यों की स्थापना कर रहे थे जिस कारण राज्य छोटे-छोटे टुकड़ों में बट गया और मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया।
8. आंतरिक व्यवस्था:- मौर्य साम्राज्य की विशालता को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि इतने बड़े साम्राज्य पर नियंत्रण रखना असंभव था। वह लोग का जो तरीका था वह गलत था उसमें था कि जो बच जाएगा और जो ताकतवर रहेगा वही राजगद्दी पर बैठेगा इस कारण राजदरबार ढीला पड़ गया और उसकी शक्ति में कमी आ गई। जिसका लाभ उठाकर प्रांतीय अधिकारी शक्तिशाली और स्वतंत्र होने लगा जिस कारण साम्राज्य की स्थिति खराब हो गई और मौर्य वंश का पतन हो गया।
9. यवनों का आक्रमण:- यवनों का आक्रमणकारी यानी जंगलों के जो आक्रमणकारी थे वे लोग मगध पर आक्रमण करते थे। और वहां पर आतंक मचाते थे जिस कारण धीरे धीरे मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया।
10. संकट अर्थव्यवस्था:- वह लोग हमेशा ही अपने में लड़ते थे जिस कारण उनका पैसा खत्म हो गया यहां इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि जब भी प्रशासन कमजोर पड़ेगा राज्य की आर्थिक स्थिति कमजोर होगी ही भले ही अर्थव्यवस्था कितना भी विकसित रही हो । इस कारण अर्थव्यवस्था भी मौर्य साम्राज्य के पतन का कारण बनी।
11. अन्याय कारण:- उपयुक्त कारणों के अलावा भी कुछ और ऐसे अन्याय कारण थे जिन्होंने मौर्य साम्राज्य को पतन की खाई में गिरा दिया केंद्र का प्रशासन व्यवस्था तभी सही रूप से चल सकती है जब राजा योग्य और शक्तिशाली हो। प्रारंभ में शासन व्यवस्था ठीक चल रही थी, किंतु कमजोर और अयोग्य शासक के समय गड़बड़ा गई। अधिकारियों पर से नियंत्रण खत्म हो गया वे लोग खुद को स्वतंत्र घोषित कर बैठे और राजा को ही अपने शिकंजे में कस लिया।
अतः राष्ट्रीयता की भावना का अभाव भी मौर्य साम्राज्य के पतन का कारण बनी।
प्रशन 7:- महाजनपदों से आप क्या समझते हैं ? महाजनपदों की राजनीतिक अवस्था का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:- महाजनपद को प्रात: आरंभिक राज्यो, नगरों , लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्के के विकास के साथ जोड़ा जाता था। बौद्ध ग्रंथ एवं जैन ग्रंथ में हमें इन 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है -----
(1) काशी, (2) कौशल, (3) मगध, (4) मल्ल, (5) बज्जि, (6) अंग, (7) छेदी, (8) वत्स, (9) कुरू, (10) पांचाल, (11) मत्सय, (12) सूरसेन, (13) अशमक, (14) अवंती, (15) गांधार, (16) कम्बोज
»» प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी होती थी जो एक किलो, दीवारों से घिरी होती थी। किले बंद राजधानियों के रखरखाव और प्रारंभिक सेनाओं और नौकरशाही के लिए भारी आर्थिक स्रोत की जरूरत होती थी।
* उस समय तीन प्रकार की शासन प्रणालियां अस्तित्व थी ---
1. राजतंत्रात्मक शासन
2. गणतंत्रात्मक शासन
3. कुलीन तंत्र
1. राजतंत्रात्मक शासन:-इनमें राज्य का प्रमुख राजा था ।इनमें अंग, मगध, काशी, कौशल , छेदी, वत्स, कुरु,पांचाल , मत्सय, शूरसेन, अश्मक, अवंती, गंधार तथा कंबोज प्रमुख थे ।
2. गणतंत्रात्मक शासन:- इसमें 8 राज्य सम्मिलित थे। प्रत्येक गांव के सरदार को राजा कहा जाता था किसी भी कार्य को करने के लिए 8 राज्यों के राजा मिलकर फैसला करते थे।
3. कुलीन तंत्र:- इसमें शक्तिशाली एवं पैसे वाले लोग शासन करते थे।
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