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Class 12th Sociology Short Questions | Bihar Board 2nd Year Exam Sociology Answers | BSEB Exam Class XII Question and Answers

Class 12th Sociology Short Questions  Bihar Board 2nd Year Exam Sociology Answers  BSEB Exam Class XII Question and Answers

प्रश्न 1 से 20 तक के प्रश्नों के उत्तर के लिए क्लिक करे 

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प्रशन 21:—— जनजाति की विशेषताएं बताएं।

उत्तर :- जनजाति की निम्नलिखित विशेषताएं हैं---

1. जनजाति परिवारों या परिवारों के समूह का संकलन है।

2. प्रत्येक जनजाति है कि निश्चित भूभाग में रहती है।

3. इन जनजातियों की अपनी एक अलग भाषा होती है।

4. प्रत्येक जनजाति का अपना एक नाम होता है। जैसे-- खसी, गारो, गोंडा संथाल।

5. इन जनजातियों में अंतर विवाह प्रथा कि मान्य होती है अर्थात एक जनजाति के लोग अपनी ही जनजाति के समूह में वैवाहिक संबंध जोड़ते हैं।  

6. प्रत्येक जनजाति की अपनी एक स्वीकृति होती है ।

7. उनका अपना एक राजनीतिक संगठन होता है ।

8. इनके विवाह, रीति रिवाज तथा व्यवसाय से  इनकी पहचान कायम होती है।

प्रशन 22:- जनजाति की विशेषताएं।

उत्तर:- जनजाति की निम्नलिखित विशेषताएं बतलाएं जा सकते हैं--

1. जनजाति परिवारों या परिवारों के समूह का संकलन है।

2. प्रत्येक जनजाति एक निश्चित भूभाग में रहती हैं।

3. इन जनजातियों की अपनी एक अलग भाषा होती हैं।

4. प्रत्येक जनजाति का अपना एक नाम होता है। जैसे-- खसी , गारो, गोंड, संथाल।

5. इन जनजातियों में अंर्तविवाह प्रथा ही मान्य होती हैं। अर्थात एक जनजाति के लोग अपनी की जनजाति के समूह में वैवाहिक संबंध जोड़ते हैं।

6. प्रत्येक जनजाति की अपनी एक संस्कृति होती है।

7. उनका अपना एक राजनीतिक संगठन होता है।

8. इनके विवाह, रीति रिवाज तथा व्यवसाय सेन की पहचान कायम होती है।

मैकाइवर और पेज के अनुसार, परिवार एक समूह होता है जो ऐसे लेंगीय संबंधों पर आधारित होता है जो बच्चों को जन्म देने और उनका लालन पोषण करने की दृष्टि से पर्याप्त निश्चित और अस्थाई होते हैं।

इलियट और मेरिल के अनुसार, परिवार एक जैविक सामाजिक इकाई है जो पति पत्नी और उनके बच्चों से मिलकर बनती है। परिवार को एक सामाजिक संस्था या समाज द्वारा मान्य संगठन भी माना जाता है जिससे निश्चित मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है।

प्रशन 23:- परिवार के कार्य को स्पष्ट करें।

उत्तर:- परिवार का महत्व इसके द्वारा निम्नलिखित कार्य से आंका जा सकता है--

1. प्राणिशास्त्रीय कार्य:- परिवार के प्राणी शास्त्रीय कार्य निम्नलिखित हैं--

(1) यौन इच्छा की पूर्ति:- परिवार का प्रथम कार्य स्त्री पुरुष की यौन इच्छा की पूर्ति करना है। विवाह के द्वारा समाज स्त्री पुरुष के यौन संबंधों को सामाजिक स्वीकृति प्रदान करता है।

(2) संतानोंत्पत्ती:- संतान की कामना करना प्रत्येक  स्त्री पुरुष के लिए स्वाभाविक हैं। विवाह तथा परिवार की संस्थाओं के दायरे में उत्पन्न हुई संतान को वैध संतान माना जाता है।

(3) संतान का लालन-पालन:- परिवार का कार्य केवल प्रजनन अथवा संतानोत्पत्ति ही नहीं है, बल्कि संतान का लालन-पालन भी है।

(4) भोजन की व्यवस्था:- परिवार अपने सदस्यों के लिए भोजन की व्यवस्था करता है, जो सभी की एक मौलिक एवं आधारभूत आवश्यकता है।

2. सामाजिक कार्य:- परिवार के अनेक प्रकार के सामाजिक कार्य हैं। इसके प्रमुख सामाजिक कार्य निम्नांकित हैं---

(1) बालक का समाजीकरण:- परिवार का प्रमुख तथा महत्वपूर्ण सामाजिक कार्य बालक का सामाजिकरण करना है, उठने बैठने तथा बात करने का शिष्टाचार आदि बालक परिवार से ही सीखता है। बाल्यावस्था में ही नहीं बल्कि ,जीवन भर परिवार किसी न किसी रूप में समाजीकरण की प्रक्रिया में योगदान करता है।

(2) सदस्यों को सामाजिक स्थिति प्रदान करना:- परिवार की स्थिति के अनुसार उसके सदस्यों को समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त होती हैं उन विराम परिवार की सामाजिक स्थिति के अनुसार ही यह निश्चित किया जाता है कि उसके सदस्यों को किन लोगों में उठना बैठना चाहिए। वैवाहिक संबंधों की स्थापना भी इसी आधार पर की जाती है।

(3) सदस्यों की सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना:- परिवार ही एक ऐसा संगठन है जो व्यक्ति के सामाजिक सम्मान सुरक्षा प्रदान करता है।

प्रशन 24:- वर्ण और जाति में अंतर करें।

उत्तर:- 1 वर्ण तथा जाति के अंतर को निम्नलिखित रुप में समझा जा सकता है--

1. वर्ण विभाजन का आधार व्यक्ति के गुण और कर्म है ,जबकि जाति की सदस्यता व्यक्ति को पूर्णता जन्म अथवा वंशानुक्रम से प्राप्त होती है।

2. वर्ण व्यवस्था चार प्रमुख व्यवसायिक समूहो के विभाजन पर आधारित हैं, जबकि जाति व्यवस्था के अंतर्गत हजारों जातियों और उप जातियों का समावेश है।

3. वर्ण समानता की नीति पर आधारित है लेकिन जातियों का विभाजन  असमानता वादी हैं।

प्रशन 25:- जाति व्यवस्था के गुण अथवा कार्य बताइए।

उत्तर:- जाति व्यवस्था के गुण---डॉक्टर जी एस घुरिये ने जाति व्यवस्था की संरचना तथा इसके प्रमुख नियमों के गुणों की विवेचना की है---

1. जाति व्यवस्था समाज के खंडनात्मक विभाजन को स्पष्ट करती हैं।

2. विभिन्न जातियों के बीच ऊंच-नीच का एक स्पष्ट संस्करण होता है।

3. विभिन्न जातियों के बीच खानपान तथा सामाजिक संपर्क पर अनेक प्रतिबंध होते हैं।

4. जाति व्यवस्था अनेक नागरिक तथा धार्मिक निर्योग्यताओं तथा विशेषाधिकारों से संबंधित है।

5. यह व्यवस्था व्यवसाय के स्वतंत्र चुनाव पर प्रतिबंध लगाती हैं।

6. यह व्यवस्था अनेक विवाह संबंधी प्रतिबंधों पर आधारित है।

प्रशन 26:- जाति व्यवस्था में आधुनिक परिवर्तनों को समझाइए।

उत्तर:- जाति व्यवस्था में आधुनिक परिवर्तन:

1. ब्राह्मणों के प्रभुत्व में कमी

2. जातिगत संस्तरण में परिवर्तन

3. खानपान के प्रतिबंधों में परिवर्तन

4. व्यवस्था के चुनाव में स्वतंत्रता

5. विवाह संबंधी नियमों में परिवर्तन

6. जातियों के संबंधों में परिवर्तन

7. जन्म के महत्व में कमी तथा

8. जाति संगठनों के रूप में परिवर्तन।

आधुनिक समाज का प्रभाव जाति व्यवस्था में कई परिवर्तन कर रहा है तथा जाति की महत्ता को समाप्त कर दिया है तथा आधुनिक परिवारों के द्वारा समाज में जाति व्यवस्था अपने अनुसार बना ली है।

प्रशन 27:- जनजातीय समाजों की प्रमुख विशेषताओं की चर्चा करें।

उत्तर:- जनजाति की प्रकृति को इसकी कुछ प्रमुख विशेषताओं के आधार पर निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है---

1. क्षेत्रीय समूह:- जनजाति का एक ऐसा क्षेत्रीय समूह है जो किसी निश्चित भूभाग पर निवास करता है। कुछ जनजातियां आजीविका उपार्जित करने के लिए स्थान परिवर्तन भी करती रहती हैं, लेकिन इसके बाद भी वह किसी ना किसी निश्चित क्षेत्र में ही जीवन व्यतीत करती है।

2. समान भाषा:- एक जनजाति के सभी सदस्य समान भाषा बोलते हैं। भाषा की यही समानता उनमें समानता की चेतना उत्पन्न करती है तथा इसी के द्वारा उनकी सांस्कृतिक विशेषताएं एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती रहती है।

3. बड़ा आकार:- अनेक क्षेत्रीय समूहों की तुलना में जनजाति एक बड़े आकार का मानव समूह है। एक एक जनजाति के सदस्यों की संख्यालाखों में होती हैं। कुछ जनजातियां ऐसी भी हैं जिनकी सदस्य संख्या 30 लाख या इससे भी अधिक है।

4. अंर्तविवाहि समूह:- इसका तात्पर्य है कि प्रत्येक जनजाति में सदस्यों को केवल अपनी जनजाति के अंदर ही विवाह संबंध स्थापित रखना अनिवार्य होता है। इससे जनजाति की बाहरी समूहों  से पृथकता बनी रहती है।

5. सामान्य संस्कृति:- प्रत्येक जनजाति की अपनी एक पृथक संस्कृति होती है तथा प्रत्येक सदस्य को अपनी संस्कृति से संबंधित नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। जनजाति के मुखिया का सर्व प्रमुख काम भी अपनी संस्कृतिक एकता को सुदृढ़ बनाए रखना होता है।

प्रशन 28:- अभिजात वर्ग किसे कहते हैं?

उत्तर:- अभिजात वर्ग व्यक्तियों का ऐसा समूह है जिसके सदस्यों की आर्थिक स्थिति तथा जीवन यापन का ढंग एक जैसा है। वर्ग व्यवस्था का आधार योग्यता, शिक्षा तथा आर्थिक स्थिति है। आज शिक्षा योग्यता और आर्थिक आधार पर कुछ ऊंची, शायरी जातियां वर्ग में परिवर्तित हो गई है। यह पदों चिकित्सा क्षेत्र, प्रबंध कार्यो और प्रौद्योगिकी पर वर्चस्व स्थापित हो गया है। आज सरकारी नीतियों से यह वर्ग सबसे अधिक लाभान्वित है और समाज में सबसे ऊंचा स्थान रखता है।

प्रशन 29:- एकाकी परिवार की विशेषताएं लिखिए।

उत्तर:- एकाकी परिवार आधुनिक औद्योगिक व नगरीय व्यवस्था ने इस प्रकार के परिवारों को प्रोत्साहित किया है। एकाकी परिवार में पति पत्नी उनके अविवाहित बच्चे एक साथ रहते हैं। परिवार में निम्नलिखित नातेदारी संबंध पाए जाते हैं--

* पति पत्नी,पिता-पुत्र,माता पिता,पिता पुत्री,माता पुत्री,भाई भाई,भाई-बहन तथा बहन बहन। आधुनिक परिवार सिकूर  कर छोटा हो गया है, जिसे एकाकी की संज्ञा दी गई है।

*पूरित एकाकी परिवार में पति की विधवा माता या विधु पिता या उसके छोटे अविवाहित भाई तथा बहने होती हैं ।

प्रशन 30:- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिक कारकों की भूमिका क्या है?

उत्तर:- औद्योगिकरण के कारण आज हमारी सामाजिक संरचना में अंतर आ गया है । पहले भारतीय समाज में जमींदारों और कृषकको का ही वर्ग था और सामाजिक वर्गों के आधार पर धर्म और जातियां थी। आज समाज में वर्गों के आधार, व्यवसाई बन गए हैं। व्यवसाय तथा आय के आधार पर आज भारतीय समाज में पूंजीपति वर्ग और मध्यम वर्ग देखे जा सकते हैं। औद्योगिक विकास ने भारतीय गांव में जाति प्रथा, संयुक्त परिवार प्रथा एवं विवाह प्रथा को प्रभावित किया है।

औद्योगिकरण के पूर्व ग्रामीण समुदाय के लोग अपने पुराने रीति-रिवाजों से चिपके हुए थे किंतु औद्योगिकरण आरंभ होने से उनका दृष्टिकोण व्यापक हो रहा है। पहले कृषि  को आजीविका का महत्वपूर्ण साधन माना जाता था। औद्योगिकरण ने समाज में रोजगार के नए अवसर खोले हैं। यातायात के साधनों का विस्तार होने से श्रम की गतिशीलता में वृद्धि हुई है। वास्तव में समाज का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा जिस पर उद्योगी करण का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव ना पड़ा हो।

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