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Class 10th Bharati Bhawan Geography Chapter 8 निर्माण संशोधन | कक्षा 10वीं भारती भवन भूगोल अध्याय 8 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Class 10th Bharati Bhawan Geography Chapter 8 निर्माण संशोधन  कक्षा 10वीं भारती भवन भूगोल अध्याय 8 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
Class 10th Bharati Bhawan Geography

प्रशन 1:-- भारत में लोहा इस्पात उद्योग के विकास का सकारण विवरण दें।

उत्तर:-- लोहा इस्पात उद्योग खनिज पर आधारित उद्योगों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण उद्योग है। जिस पर आधुनिक युग के छोटे बड़े सभी उद्योग आश्रित हैं। भारत में लौह इस्पात उद्योग का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। दिल्ली स्थित जंगरहित और लौह स्तंभ भारत में प्राचीन काल से ही निर्मित होने वाले उत्तम किस्म के इस्पात का एक सुंदर उदाहरण है। आधुनिक लोहा और इस्पात कारखानों की स्थापना सन 1779 ई० में तमिलनाडु के दक्षिण में अकार्ट जिले में की गई थी।सभी कच्चे मालों की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं होने के कारण यह कारखाना असफल रहा। पुनः 1874 पश्चिम बंगाल में कुल्टी नामक स्थान पर बराकर लौह कंपनी स्थापित हुई जिससे ब्रिटिश सरकार ने सर 1882 में  अपने नियंत्रण में ले लिया 1891 ईसवी में हीरापुर में एक इस्पात कारखाने की स्थापना की गई। 1936 ईस्वी में इसे कुल्टी कारखाने में मिलाकर 1952 में इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी का नाम दिया गया। स्वतंत्रता के पूर्व श्री जमशेद जी टाटा के द्वारा एक महत्वपूर्ण प्रयास के तहत 1907 में  साकची नामक स्थान पर एक इस्पात कारखाना की स्थापना की गई जो अभी टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी के रूप में देश के निजी क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण कारखाना है।

स्वतंत्रता के बाद भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत 6 नवीन कारखानों की स्थापना की गई हैं।ये हैं--- राउरकेला (उड़ीसा), भिलाई (मध्य प्रदेश), विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश), बोकारो, दुर्गापुर सलेम। उड़ीसा के पाराद्वीप और कर्नाटक के विजयनगर  में अन्य कारखानों का निर्माण हो रहा है। नवीन औद्योगिक नीति के तहत निजी क्षेत्र में इस उद्योग का तेजी से विकास हो रहा है।

भारत में लोहा इस्पात उद्योग का विकास बहुत तेजी गति से हो रहा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि यहां उच्च कोटि का हेमाटाइट और मैग्नेटाइट लौह अयस्क मिलता है जिसमें, 50% से 70% तक लोहांश पाया जाता है। झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक इसका बहुमूल्य है । कोयले की प्राप्ति रानीगंज, झुरिया, गिरिडीह और बोकारो कोयला क्षेत्रों से की जाती है। गालक के रूप में प्रयुक्त होने वाले खनिजों की भी यहां कमी नहीं है।

प्रशन 2:-- भारत में सूती कपड़े या चीनी उद्योग का विकास किन क्षेत्रों में और किन कारणों से हुआ है? विस्तृत विवरण दें।

उत्तर:-- भारत सूती वस्त्र का निर्माता प्राचीन काल से रहा है । मुगल कालीन भारत में ढ़ांका का मलमल विश्वविख्यात था। परंतु इंग्लैंड के औद्योगिक क्रांति ने इसे बर्बाद कर दिया। आज फिर सूती वस्त्र उद्योग देश का बड़ा उद्योग बन गया है। औद्योगिक उत्पादन में इसका 20% योगदान है। इस उद्योग में लगभग डेढ़ करोड़ लोग लगे हैं। भारत में कुल निर्यात में इसका योगदान 20% है।

सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना सबसे अधिक महाराष्ट्र और गुजरात राज्य में हुआ है। महाराष्ट्र में 122 कारखाने स्थापित है। केवल मुंबई महानगर में 62 कारखाने स्थापित है। गुजरात दूसरा बड़ा वस्त्र उत्पादक राज्य है। यहां 120 कारखाना स्थापित है जिनमें 72 कारखाने अहमदाबाद में स्थापित है।

महाराष्ट्र और गुजरात राज्य में वस्त्र उद्योग की विकास का मुख्य कारण है कपास की पर्याप्त उपलब्धता, कपास एवं मशीनरी के आयात निर्यात की सुविधा मुंबई और कांडला बंदरगाह से प्राप्त है। कुशल कारीगर की उपलब्धता है।

इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल में भी सूती वस्त्र उद्योग का अच्छा विकास हुआ है। इन जगहों पर सस्ते श्रमिक परिवहन के साधन जल विद्युत की सुविधा उपलब्ध होने के कारण विकास में मदद मिला है। चीनी उद्योग कृषि पर आधारित उद्योग है। इसका कच्चा माल गन्ना  है। चीनी उद्योग को गन्ना उत्पादक क्षेत्र में ही स्थापित करना उपयुक्त होता है। इसलिए चीनी मिलें गन्ना उत्पादक राज्यों में मुख्य रूप से स्थापित की गई हैं।

उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा राज्यों में चीनी की मिले स्थापित की गई हैं।

* उत्तर भारत में चीनी की लगभग 100 मिलें हैं‌। यहां इसके लिए निम्नांकित  सुविधाएं उपलब्ध है---

(1) गन्ने की अच्छी खेती

(2) परिवहन की अच्छी व्यवस्था

(3) सस्ते श्रमिक और घरेलू बाजार।

* महाराष्ट्र में चीनी मिलों के लिए निम्नांकित सुविधाएं प्राप्त है---

(1) गन्ने की प्रतिहेक्टेयर उपज अधिक, रस का अधिक मीठा होना और रस अधिक निकलना।

(2) उपयुक्त जलवायु।

(3) यहां चीनी की मिले स्वंय गन्ने की खेती करती है।

(4) समुद्र तट के कारण निर्यात की सुविधा।

चीनी उत्पादन में आज महाराष्ट्र देश में प्रथम स्थान प्राप्त कर चुका है।

प्रशन 3:-- उद्योगों की स्थापना के प्रमुख कारकों का वर्णन करें। भारत में औद्योगिक विकास की समस्याओं का उल्लेख करें।

उत्तर:-- उद्योगों की स्थापना के कई कारक होते हैं। जैसे--- कच्चे माल की प्राप्ति, जलवायु, राजनीतिक स्थिरता, ऐतिहासिक स्थिति, पूंजी, शक्ति, आपूर्ति, यातायात की सुविधा ,राष्ट्रीय नीति, संरक्षण, बाजार, श्रमिक या मानव संसाधन आदि।

कृषि प्रधान भारतवर्ष में औद्योगिक विकास भी तेजी से हो रहा है। औद्योगिक विकास से कई समस्याएं दूर हो सकती है।किंतु विकास के राह में अनेकों समस्याएं सामने आती है जिनमें कुछ समस्याएं निम्नलिखित है--- 

(1) कई ऐसे उद्योग हैं जिनमें आधुनिक संयंत्र नहीं है जिससे उत्पादन कम होता है जैसे --उत्तर भारत की चीनी मिलें और पश्चिम बंगाल की  जूट मिलों में ।

(2) कुछ उद्योगों के गोण उत्पादों का समुचित उद्योग होना चाहिए।जैसे रबर की बढ़ती मांग को देखकर खनिज तेल के अवांछनीय पदार्थों से रासायनिक रबर तैयार किए जा सकते हैं।

(3) कुछ क्षेत्रों में प्राकृतिक संपदा का उपयोग उद्योगों के विकास में नहीं हो पा रहा है। जैसे उत्तरी पूर्वी राज्यों में कागज बनाने की संपदा उपलब्ध है जिसका उपयोग न कर कागज का आयात किया जाता है।

(4) कुटीर उद्योग और लघु उद्योग का पुनर्गठन आधुनिक ढंग से नहीं किया जा रहा है।

(5) यातायात के साधनों का विकास होना चाहिए। अभी भी बहुत सारे क्षेत्र रेल साधनों से वंचित है।

(6) औद्योगिक केंद्रों को भरपूर बिजली की आपूर्ति होनी चाहिए। ब्रेकडाउन पर नियंत्रण करना चाहिए।

(7) औद्योगिक क्षेत्रों में राजनीतिक माहौल बिगड़ता जा रहा है जिससे श्रमिकों की समस्या उत्पन्न हो रही है। इस पर नियंत्रण की आवश्यकता है।

प्रशन 4:-- इनमें से किन्हीं दो उद्योगों का भौगोलिक वितरण प्रस्तुत करें--(क) सीमेंट (ख) परिवहन (ग) पेट्रो रसायन और (घ) रेशमी वस्त्र।

उत्तर:-- भारत में विभिन्न उद्योग धंधों को स्थापित करके उसे चलाया जाता है जिन में सीमेंट उद्योग, परिवहन उद्योग ,पेट्रो रसायन उद्योग तथा रेशमी वस्त्र उद्योग का भी महत्वपूर्ण स्थान है। इन उद्योग धंधों से बहुत से लोगों को रोजगार प्राप्त होता है और देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।

इन सभी प्रस्तुत उद्योगों का भौगोलिक वितरण के संबंध में पूर्ण जानकारी की बातें अपेक्षित हैं।

प्रशन 5:-- उद्योगों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए?

उत्तर:-- जब से भारत में औद्योगिकीकरण शुरुआत हुई है, तब से भारत में उद्योगों का विकास बहुत तेजी से हुआ है। उद्योगों के विकास होने से यहां आर्थिक विकास हुआ है और लोगों को रोजगार के भी अवसर अधिक मात्रा में उपलब्ध हुए हैं। लेकिन उद्योगों के विकास होने से एक ओर अच्छे परिणाम देखने को मिल रहे हैं तो दूसरी ओर इसके बुरे परिणाम भी हमें झेलने पड़ रहे हैं। उद्योगों के विकास होने से प्रदूषण को बढ़ावा मिला है। जो मानव और जीव जंतुओं के लिए हानिकारक है। लेकिन विगत वर्षों में सरकार द्वारा उचित कदम उठाए गए हैं।

* उद्योगों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए--- 

(1) कारखानों में ऊंची शिवन्या लगाई जाए , चिमनियों में इलेक्ट्रोस्टेटिक अवक्षेपन, स्क्रबर उपकरण तथा गैसीय प्रदूषक पदार्थों को पृथक करने के लिए उपकरण लगाए जाए।

(2) तापीय विद्युत की जगह जल विद्युत का उपयोग कर वायु प्रदूषण में कमी लाई जा सकती।

(3) नदियों में गर्म जल तथा अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने से पहले उनका शोधन कर लिया जाए। औद्योगिक कचरों से मिले जल की भौतिक, जैविक तथा रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा शोधन कर पुनः चक्रण द्वारा पुनः प्रयोग योग्य बनाया जाए।

(4) मशीनों ,उपकरणों तथा जनरेटरों में साइलेंसर लगा कर ध्वनि प्रदूषण को रोका जाए। कारखानों में कार्यरत श्रमिकों को कानो पर शोर नियंत्रण उपकरण पहनने के लिए प्रेरित किया जाए।

(5) भूमि पर औद्योगिक कचरों को बहुत दिनों तक जमा होने से रोका जाए। अतः स्पष्ट है कि कल करखानें वाले उद्योगों के बढ़ने से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है। प्राकृतिक पर्यावरण की गुणवत्ता घटने लगती है। इसलिए इसे रोकने के लिए समुचित कदम उठाए जाने चाहिए।

 ये भी पढ़ें ... 

Class 10 Geography Notes Chapter 1

Class 10 Geography Notes Chapter 2

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Class 10 Geography Chapter 2 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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Class 10 Geography Chapter 3 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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Class 10 Geography Chapter 3 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Class 10 Geography Chapter 4 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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Class 10 Geography Chapter 5 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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Class 10 Geography Chapter 6 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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Class 10 Geography Chapter 7 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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