Header Ads Widget

New Post

6/recent/ticker-posts
Telegram Join Whatsapp Channel Whatsapp Follow

आप डूुबलिकेट वेबसाइट से बचे दुनिया का एकमात्र वेबसाइट यही है Bharati Bhawan और ये आपको पैसे पेमेंट करने को कभी नहीं बोलते है क्योंकि यहाँ सब के सब सामग्री फ्री में उपलब्ध कराया जाता है धन्यवाद !

Class 10th Bharati Bhawan History | Nationalism in Europe: Rise and Development | Long Answer Questions | क्लास 10 भारती भवन इतिहास | यूरोप में राष्ट्रवाद : उदय और विकास | दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

 

Class 10th Bharati Bhawan History  Nationalism in Europe Rise and Development  Long Answer Questions  क्लास 10 भारती भवन इतिहास  यूरोप में राष्ट्रवाद  उदय और विकास  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
Bharati Bhawan 

1. 1848 की क्रान्तियों के प्रभावों की समीक्षा कीजिए |

उत्तर :- 1848 की क्रान्ति के बाद लुई फिलिप फ्रांस का राजा बना | वह एक उदारवादी शासक था, परन्तु बहुत महत्वाकांक्षी था | 1840 में उसने गीजो को प्रधानमंत्री नियुक्त किया | गीजो प्रतिक्रियावादी था और किसी भी प्रकार के सुधार का विरोध था | खाद्यान की कमी और बढाती बेरोजगारी की समस्या से लुइ सरकार की आलोचना होने लगी | इस स्थिति की ओर राजा का ध्यान आकर्षित करने के लिए सुधारवादी दल के नेता ठेयार्स ने 22 फरवरी 1848 में पेरिस में एक विशाल '' सुधार भोज '' का आयोजन किया | लुइ ने इस पर रोक लगा दी | पेरिस के एक समूह ने पेरिस की गलियों में जुलुस निकालकर राजशाही के विरोध में नारे लगाए | लुई फिलिप ने घबराकर गिजो को बरखास्त कर सुधार लागू करने की घोषणा की | परन्तु उत्तेजित जनता पर पुलिस ने गोली चला दी जिसे अनेक लोग मारे गए | क्रोधित जनता ने राजमहले को घेर लिया | विवश होकर राजा राजगद्दी छोड़कर इंग्लैण्ड चल गया |  

1848 की क्रान्ति का प्रभाव इटली में भी हुआ | 1848 में इतालवी राज्यों में विद्रोह की चिनगारी सुलग गई | मिलान और पॉप के राज्य में विद्रोह हो गया | राजा चार्ल्स एलबर्ट ने इटली के राष्ट्रवादियों से मिलकर आस्ट्रिया के विरुद्ध आरम्भ कर दिया | कुछ समय के लिए लोम्बार्ड और वेनेशिया से आस्ट्रिया का आधिपत्य समाप्त हो गया | 

1848 की फ्रांसीसी क्रान्ति ने जर्मन राष्ट्रवाद को भी भड़का दिया | इस क्रान्ति ने मेटरनिक के युग का अंत कर दिया | जर्मन राष्ट्रवादियों ने 18 मई 1848 को पुराने संसद की बैठक फ्रैंकफर्ट में बुलाई | इस संसद में सम्पूर्ण जर्मन राष्ट्र के लिए एक संविधान का प्रारूप तैयार किया गया | यहाँ वह भी निर्णय लिया गया की फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ जर्मन राष्ट्र का नेत्रत्व करेगा | परन्तु फ्रेडरिक ने इनकार कर दिया क्योंकि वह आस्ट्रियाई संघर्ष से वचना चाहता था | संसद में कुलीनों और सैनिको ने भी विरोध किया जिससे की फ्रैन्क्फार्ड संसद को भंग करना पडा |  

1848 की क्रांतियों में आस्ट्रिया प्रतिक्रियावादी शक्तियों का केंद्र था | मेतारानिक को आस्ट्रिया छोड़कर भागना पड़ा जिससे सम्पूर्ण मेटरनिक व्यवस्था समाप्त हो गई | इसके बाद इटली की राजनीतिक में पुनह मेजिनी का आगमन हुआ | कालान्तर में आस्ट्रिया द्वारा इटली के कुछ भागों पर आक्रमण किए जाने लगे जिसमे आर्दिनिया के शाशक चार्ल्स एलबर्ट की पराजय हो गई | पौलैंड में भी राष्ट्रवादी भावना के कारण रुसी शाशन के विरुद्ध विद्रोह शुरू हो गए थे | प्ररन्तु इन्हें इंग्लैण्ड तथा फ्रांस की सहायता नहीं मिल सकी | इस समय रूस ने पौलेंड के व्द्रोह को कुचल दिया |  

यूरोप में जहाँ भी क्रान्तियाँ हुई उनमे एक समान बात थी | वे सभी क्रान्तिकारी प्रतिक्रियावादी और निरंकुश शासन से मुक्ति चाहते थे | राष्ट्र उनके लिए सर्वित्तम था, व्यक्ति नहीं | वे सभी उदारवाद और राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित थे तथा उनकी मांगे वैधानिक शासन की थी | इटली और जर्मनी क्रान्ति द्वारा एकीकृत राष्ट्र का निर्माण करना चाहते थे |

2. राष्ट्रवाद के उदय का यूरोप और विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तर :- 18वीं 19वीं शताव्दियों में यूरोप में जिस राष्ट्रवाद की लहर चली, उसके व्यापक और दूरगामी प्रभाव यूरोप और विश्व पर पडा जो निम्नलिखित है 

(i) राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित होकर अनेक राष्ट्रों में क्रांतिकारी और आन्दोलन हुए जिसके परिणामस्वरूप अनेक नए राष्ट्रों का उदय हुआ | इटली और जर्मनी के एकीकृत राष्ट्रों का उदय भी इसी का परिणाम था | 

(ii) यूरोपीय राष्टवाद के विकास का प्रभाव एशिया और अफ्रीका में भी पडा | यूरोपीय उपनिवेशियों के अधिपत्य के विरुद्ध वहाँ भी औपनिवेशिक शासन से मुक्त के लिए राष्ट्रिय आन्दोलन आरम्भ हो गए |  

(iii) भारतीय राष्ट्रवादी भी यूरोपीय राष्ट्रवाद से प्रभावित हुए | मैसूर के टीपू सुल्तान ने फ्रांसीसी क्रान्ति से प्रभावित होकर जैकोबिन क्लब की स्थापना की एवं स्वयं इसका सदस्य भी बना | उसने अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टम में स्वतंत्र का प्रतिक वृक्ष समर्थक बन गए | 

(iv) धर्म सुधार आन्दोलन के भारतीय नेताओं ने भी राष्ट्रवादी भावनाओं से प्रभावित होकर राष्ट्रीय आन्दोलन को अपना समर्थन दिया | राजा राममोहन राय अंतराराष्ट्रीयता के समर्थक बन गए | 

(v) राष्ट्रवाद के विकास ने प्रतिक्रियावादी शक्तियों और निरंकुश शासनको के प्रभाव को कमजोर कर दिया | 

(vi) राष्ट्रवाद का नाकारात्मक प्रभाव भी पड़ा | 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से राष्टवाद संकीर्ण राष्ट्रवाद में बदल गया | प्रत्येक राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हित की दुहाई देकर उचित-अनुचित सब कार्य करने लगे |  

3. यूनान का स्वतंत्रता संग्राम क्यों हुआ ? इसका क्या परिणाम हुआ ?

उत्तर :- यूनान का पाना गौरवमय अतीत रहा है | यूनानी सभ्यता की साहित्यिक प्रगति, विचार, दर्शन, कला, चिकित्सा विज्ञान आदि की उपलब्धियाँ युनानियाँ के लिए प्रेरणास्रोत थे | परन्तु इसके बावजूद भी यूनान तुर्की सामारज्य के अधीन था | फ्रांसीसी क्रान्ति से यूनानियों में भी राष्ट्रीयता की भावना की लहर जागी क्योंकि धर्म, जाती और संस्कृति के आधार पर इसकी पहचान एक थी | फलत तुर्की शासन से अलग होने के लिए आन्दोलन चलाए जाने लगे | क्रान्ति के नेतृत्व के लिए यूनान में शक्तिशाली मध्यवर्ती का उदय भी हो चुका था | हितेरिया नामक संस्था की स्थापना ओडेसा नामक स्थान पर की गयी जिसका उद्देश्य तुर्की शासन को यूनान से निष्काषित कर उसे स्वतंत्र बनाया था | यूनान में विस्फोटक स्थिति तब और बन गई जब तुर्की शासकों के द्वारा यूनानी स्वतंत्रता संग्राम में संगलन लोगों को बुरी तरह कुचलना शुरू किया गया | 1821 ई० में अलेक्जेंडर चीन सिलान्ती के नेतृत्व में यूनान में विद्रोह शुरू हो गया | कवियों और कलाकारों ने यूनान को यूरोपीय सभ्यता का पालन बताकर राष्ट्रवादियों के लिए समर्थन जुटाया | 1829 ई० में एड्रियानोपुल की संधि द्वारा तुर्की की नाममात्र की अधीनता में यूनान को स्वतंत्रता देने की बात तय हुई | मगर 1832 ई० में यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित का दिया गया | बाबेरिया के राजकुमार ओटो को यूनान का शासक बनाया गया |  

4. इटली के एकीकरण के विभिन्न चरणों को इंगित करें | 

उत्तर :- इटली के एकीकरण चार चरणों में पूरा हुआ | 

(i) ज्युसेपे मेत्सिनी के नेतृत्व में :- मेजिनी गणतंत्रत्रात्मक दल का नेता था | उसने अपने निर्वासन काल में गणतंत्रवादी उद्देश्ययों के प्रचार के लिए यंग इटली नामक और यंग यूरोप की स्थापना की थी | यद्धपि इटली के एकीकरण के लिए 1831 तथा 1848 में दो क्रांतिकारी प्रयास किए गए थे, परन्तु वे दोनों असफल रहे | 

(ii) काउंट काबुर के नेतृत्व में :- काबुर 1858 में पिदमौंट का मंत्री प्रमुख था | उसका मुख्य लक्ष्य आस्ट्रिया से इटली के उद्धार को प्रभावित करना था | वह न तो क्रांतिकारी था और न ही गणतंत्रवादी परंतू उसे इटली का वास्तविक निर्माता माना जाता है | उसने फ्रांस के साथ एक चतुर कूटनीति गठबंधन कायम किया और इसके माध्यम से 1859 में आस्ट्रियाई सेवाओं को परास्त करने में सफलता प्राप्त की |  

(iii) गैरीबाल्डी के नेतृत्व में :- गैरीबाल्डी '' लाल  कुर्ती '' नामक क्रांतिकारी आन्दोलन का नायक था | 1860 में उसने दक्षिणी इटली तथा दो सिसलियों की राजधानी में पदयात्रा की और स्थानीय कृषकों का समर्थन प्राप्त कर स्पेन के शासको को हटाने में सफल हुआ | 

(iv) विक्टर इमैनुएल द्वितीय :- 1861 में रोम और वेनेशिया को छोड़कर समाप्त इटली की इतालवी संसद के प्रतिनिधि टुरिन में एकत्र हुए और उन्होंने इटली के राजा के रूप में विक्टर इमैनुएल द्वितीय को विधिवत रूप से स्वीकार किया | 1870 में विक्टर इमैनुएल ने रोम पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया | 1875 में रोम को इटली की राजधानी बनाया गया |  

5. जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करें | 

उत्तर :- (i) 1848 की फ्रैंकफर्ट संसद :- प्रशा ने नरेश फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ के नेतृत्व में फ्रैंकफर्ट संसद ने जर्मनी के एकीकरण के लिए भरसक प्रयास किए परन्तु वे असफल रहे | यद्धपि जर्मन लोगों में 1848 के पहले ही राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो चुकी थी | राष्ट्रीयता की भावना मध्यवर्गीय जर्मन लोगों में बहुत अधिक है | 

(ii) प्रशा के नेतृत्व में एकीकरण :- राष्ट्र निर्माण की इस उदारवादी विचारधारा को राजशाही और फौजी ताकतों के विरुद्ध कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा जिन्हें प्रशा के बड़े भूस्वामियों ने भी समर्थन दिया था उसके बाद प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आन्दोलन का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया | प्रशा का प्रधानमंत्री ऑटो वां विस्मार्क इस प्रक्रिया का जनक था जिसने प्रशा की सेना और नौकरशाही की मदद ली | 

(iii) बिस्मार्क का योगदान :- बिस्मार्क प्रशा के उन महान सपूतों में से एक था जिसने सेना और नौकरशाही की मदद से जर्मन के एकीकरण का उत्कृष्ट प्रयास किया | उसका मानना था की जर्मनी के एकीकरण में सफलता राजकुमारों द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है न की लोगों द्वारा | वह प्रशा के जर्मनी में विलय द्वारा नहीं बल्कि प्रशा का जर्मनी तक विस्तार के द्वारा इस उद्देश्य को पूरा करना चाहता था |  

(iv) तीन युद्ध :- बिस्मार्क के जर्मन एकीकरण का उदेश्य सात वर्ष में आस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस से तीन युद्धों द्वारा हुआ जो 1864 से 1870 के बीच लड़े गए | 

यूनानी स्वतंत्रता संग्राम के परिणाम :- यूनानियों ने लम्बे और कठिन संघर्ष के बाद आटोमन साम्राज्य के अत्याचारी शासन से मुक्ति पाई | यूनान के स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र का उदय हुआ | यद्धपि इस प्रक्रिया में गणतंत्र की स्थापना नहीं हो सकी परन्तु राष्ट्र के उद्देश्य ने मेटरनिक की प्रतिक्रियावादी निति को गहरी ठेस लगाईं | यूनानियों के विजय से 1830 के क्रांतिकारियों को प्रेरणा मिली | बाल्कन क्षेत्र के अन्य इसाई राज्यों में भी राष्ट्रवादी आन्दोलन आरंभ करने की चाह बढ़ी |  

6. यूरोपीय राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति का क्या योगदान था ?

उत्तर :- यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति की अहम् भूमिका रही | कला, साहित्य और संगीत ने राष्ट्रवादी भावनाओं को गढ़ने और व्यक्त करने में सहयोग दिया | इसके कई उदाहरण हमें फ्रांस, इटली, यूनान और जर्मनी में देखने को मिलते है | राष्ट्रप्रेम की भावना का प्रसार कलाकारों, विचारकों, साहित्यकारों, कवियों, संगीतकारों आदि ने संस्कृति को उधार बनाकर किया | इसके निम्नलिखित उदाहरण यूरोप में देखने को मिलते है -

(i) फ्रेडरिक सारयु का कल्पनादर्श :- फ्रांसीसी कलाकार फ्रेडिक सारयु ने एक कल्पनादर्श की रचना अपने चित्रों के द्वारा की जिसमे आदर्श समाज की कल्पना की गई | इन चित्रों में विभिन्न राष्ट्रों की पहचान कपड़ों और प्रतीक चिन्हों द्वारा एक राष्ट्र-राज्य के रूप में की गई | 

(ii) रुमानीवाद :- रुमानीवाद एक ऐसा सांस्कृतिक आन्दोलन था जो एक विशिष्ट प्रकार के राष्ट्रवाद का प्रचार किया | आमतौर पर रूमानी कलाकारों और कवियों ने तर्क-वितर्क और विज्ञान के महिमामंडल की आलोचना की और उसकी जगह भावनाओं, अंतरदृष्टि और रहस्यवादी भावनाओं पर अधिक बल दिया | उनका प्रयास था की सामूहिक विरासत और संस्कृति को राष्ट्र का आधार बनाया जाए |  

(iii) लोक परंपराएँ :- जर्मनी के चिन्तक योहान गाटफ्रिड का मानना था की सच्ची जर्मन संस्कृति आम लोगों में निहित थी | राष्ट्र की अभिव्यक्ति लोकगीतों, लोकनृत्य और जन्काव्य से प्रकट होती थी इसलिए राष्ट्र निर्माण के लिए इनका संकलन आवश्यक था | निरक्षर लोगों में राष्ट्रीय भावना संगीत, लोककथा के द्वारा जीवित रखी गई | कैरोल कुर्पिस्की ने राष्ट्रीय संघर्ष का पाने आपेरा और संगीत से गुनामान किया | 

(iv) भाषा :- भाषा ने भी राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में मह्हत्वपूर्ण भूमिका निभाई | रुसी कब्जे के बाद पोलिश भाषा को स्कूलों में बलपूर्वक हटाकर रुसी भाषा को जबरन लादा गया | 1831 के पोलिश विद्रोह को यद्धपि रूस ने कुचल दिया | राष्ट्रवाद के विरोध के लिए भाषा को एक हथियार बनाया | धार्मिक शिक्षा और चर्च में पोलिश भाषा का व्यवहार किया गया | इसका परिणाम यह हुआ की पादरियों और विशपों को दण्डित कर साइबेरिया भेज दिया गया | पोलिश भाषा रुसी प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष के प्रतिक के रूप में देखि जाने लगी |

7. 1848 में उदारवादी क्रांतिकारियों ने किन राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को बधाबा दिया ?

उत्तर :- यूरोप में 1848 का वर्ष क्रांतियों का अर्थ था की इस वर्ष फ्रांस, आस्ट्रिया, हंगरी, इटली, पोलैंड, जर्मनी आदि देशों में क्रांतियाँ हुई  |इन क्रांतियों के होने में अनेक परिस्थितियों ने योगदान किया 

(i) निरंकुश शासकों का निकम्मा शासन 

(ii) यूरोप की आर्थिक दशा शोचनीय 

(iii) राजनीतिक जीवन अस्थायीं 

(iv) यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का विकास 

(v) सामाजिक विद्वेष 

(vi) राजनैतिक दलों द्वारा प्रजा में उत्तेजनात्मक भावना जागृत करना  

1848 की क्रान्ति का यूरोपीय देशों की सरकार द्वारा दमन कर दिया गया और इसे आशातीत सफलता प्राप्त नहीं हुई | परन्तु देशों की सरकार असफल भी नहीं कहा जा सकता | इस क्रान्ति से यूरोप की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा | उदारवादी क्रांतिकारियों की 1848 की क्रान्ति का अर्थ था राजतंत्र का अंत और गणतंत्र की स्थापना |

8. '' ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास शेष यूरोप की तुलना में भिन्न था|'' स्पष्ट करें |

उत्तर :- ब्रिटेन में राष्ट्र-राज्य का निर्माण किसी क्रान्ति का परिणाम नहीं था बल्की शांतिपूर्वक संसद के माध्यम से हुआ | ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास यूरोप के शेष देशों से भिन्न था | इसके कई कारण थे -

(i) 18वीं शताब्दी के पहले ब्रिटेन राष्ट्र नहीं था | ब्रिटानी द्वीपसमूह में रहनेवाले निवासी अंग्रेज, वेल्स, स्काटिश या आयरिश की मुख्य पहचान नृजातीय थी | इन सभी की अपनी-अपनी अलग सांस्कृतिक और राजनीतिक परंपराएँ थी | 

(ii) ब्रिटिश राष्ट्र की राजनैतिक शक्ति और आर्थिक समृद्धि में जैसे-जैसे वृद्धि हुई वैसे-वैसे वह द्वीपसमूह के अन्य राष्ट्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करते हुए वहाँ आंग्ल संस्कृति का विकास किया |

(iii) एक लंबे संघर्ष के बाद 1688 में रक्तहीन या गौरवपूर्ण क्रान्ति के माध्यम से समस्त शक्ति आन्ग्लं संसद के हाथों में आ गई | संसद के द्वारा ब्रिटेन में राष्ट्र-राज्य का निर्माण हुआ जिसका केंद इंग्लैण्ड था | 

(iv) स्काटलैंड और आयरलैंड पर प्रभाव स्थापित कर इंग्लैण्ड ने स्काटलैंड के साथ 1707 के एक्ट आप यूनियन द्वारा यूनाइटेड किंगडम आफ ग्रेट ब्रिटेन का गठन हुआ | 

(v) ब्रिटानी पहचान के विकास के लिए स्काटलैंड की ख़ास संस्कृति एवं राजनीतिक संस्थाओं को दबाया गया | उन्हें अपनी गोलिक भाषा बोलने और अपनी राष्ट्रीय पोषक पहनने से रोका गया |

(vi) 1801 में विद्रोह को दबाकर आयरलैंड को यूनाइटेड किंगडम में मिला लिया गया |  

9. जुलाई 1830 क्रान्ति का विवरण दें | 

उत्तर :- जुलाई 1830 में चार्ल्स-X के स्वेक्षाचारी शासन के विरुद्ध फ्रांस में क्रान्ति की ज्वाला भड़क उठी | फ्रांस में वियना व्यवस्था के तहत बुर्बो राजबंश को पुनस्थापित किया गया तथा लुई ने 18वीं फ्रांस का राजा बना था | उसने फ्रांस की बदली हुई परिस्थितियों को समझा और फ्रांसीसी जनता पर पुरातन पंथी व्यवस्था को थोपने का प्रयास नहीं किया | उसने प्रतिक्रियावादी तथा सुधारवादी शक्तियों के मध्य सामंजस्य को थोपने का प्रयास किया | उसने सांवैधानिक सुधार की भी घोषणा की |  

पोलिग्नेक ने लुई 18वें द्वारा स्थापित समान नागरिक संहिता के स्थान पर शक्तिशाली अभिजाल वर्ग की स्थापना तथा उसे विशेषाधिकारों से विभषित करने का प्रयास किया | उसने इस कदम को उदारवादियों ने चुनौती तथा क्रान्ति के विरुद्ध शंद्यात्र समझा | प्रतिनिधि सदन एवं दुसरे उदारवादियों ने पोलिग्नेक के विरुद्ध गहरा असंतोष प्रकट किया |चार्ल्स-X ने इस विरोध के प्रति क्रियास्वरूप 25 जुलाई, 1830 ई० को चार अध्यादेशों को जारी कर उदार तत्वों को गलत घोटने का प्रयास किया | इन अध्यादेशों के विरुद्ध पेरिस में क्रान्ति की लहर दौड़ गई | 21-29 जुलाई तक जनता और राजशाही में संघर्ष होता रहा |  

10. इटली के एकीकरण में मेजिनी, काबुर और गैरीबाल्डी के योगदान को बताबें | 

उत्तर :- इटली के एकीकरण में मेजिनी :- मेजिनी को इटली के एकीकरण का पैगंबर कहा जाता है | वह दार्शनिक लेखक राजनेता, गणतंत्र का समर्थन एक कर्मठ कार्यकर्ता था | उसका जन्म 1805 में सार्डिनीया के जिनोआ नगर में हुआ था | 1815 में जब जीनोआ को पीडमौट के अधीन कर दिया गया तब इसका विरोध करनेवाले में मेजिनी भी था | राष्ट्रवादी भावना से प्रेरित होकर उसने गुप्त क्रांतिकारी संगठन कार्बोनारी की सदस्यता ग्रहण की | अपने गणतंत्रवादी उदेश्य के प्रचार के लिए मेजिनी ने 1831 में मार्सेई में यंग इटली तथा 1834 में बर्न में यांगयुरोप की स्थापना की | 

काऊंट काबूर का योगदान :- काऊंट काबूर का जन्म 1819 में हुआ था | उसका मानना था की इटली के एकीकरण के लिए आर्थिक उन्नति एवं सैनिक शक्ति अनिवार्य थी | वह एकीकरण के लिए विदेशी निकालना संभव था | कावुर एक कूटनीतिज्ञ तथा राष्ट्रवादी था | उसका विचार था की सार्डीनिया के नेतृत्व में ही इटली का एकीकरण संभव था |  

गैरीबाल्डी का योगदान :- इटली के एकीकरण में गैरीबाल्डी का भी महत्वपूर्ण योगदान था | उसका जन्म 1807 में नीस में हुआ था | गैरीबाल्डी पेशे से एक नाविक था | बाद में वह काबुर के प्रभाव में आकर संवैधानिक राजतंत्र का पक्षधर बन गया | राष्ट्रवाद से प्रेरित होकर उसने यंग इटली की सदस्यता ग्रहण की | गैरीबाल्डी का मानना था की युद्ध के बिना इटली का एकीकरण संभव नहीं है | उसने सशस्त्र युवकों की एक सेना बनाई जो लाल कुर्ती कहलाए | उसने अपने सैनिकों को लेकर इटली के प्रांत सिसली तथा नेपल्स पर आक्रमण किए | 1862 में गैरीबाल्डी ने रोम पर आक्रमण की योजना बने लेकिन काबुर ने गैरीबाल्डी के इस अभियान का विरोध किया | काबुर ने जहाँ अपनी कूटनीति द्वारा इटली का एकीकरण संभव कर दिया उसी प्रकार गैरीबाल्डी ने अपनी तलवार द्वारा इसे संभव बनाया | 

Post a Comment

0 Comments