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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. राष्ट्रसंघ की स्थापना कैसे हुई ? स्पष्ट करें।
उत्तर---प्रथम विश्वयुद्ध के समाप्ति के बाद अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों के शांतिपूर्ण निष्पादन एवं विश्वशांति की स्थापना के उद्देश्य से राष्ट्रसंघ की स्थापना की गई । सामान्यतः, यह माना जाता है कि राष्ट्रसंघ संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन के 'दिमाग की उपज' था। 1918 में उन्होंने विश्वशांति की स्थापना के लिए सुप्रसिद्ध चौदह-सूत्री सिद्धांत का प्रतिपादन किया । चौदहवें सूत्र में विश्वशांति को बनाए रखने के लिए राष्ट्रों के संगठन की बात कही गई। नि:संदेह, राष्ट्रसंघ्न की स्थापना में अमेरिकी राष्ट्रपति की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी, परंतु प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ही अनेक राजनीतिज्ञ इस प्रकार के संगठन की स्थापना बल दे रहे थे। ऐसे राजनीतिज्ञों में प्रमुख थे-ब्रिटेन के रॉबर्ट सेसिल (Robert Cocil), दक्षिण अफ्रीका के जान स्मट्स तथा फ्रांस के लियो बुर्जियो इन सबों के सम्मिलित प्रयासों से 10 जनवरी, 1920 को जिस दिन वर्साय की संधि व्यवहार में आई, राष्ट्रसंघ भी अस्तित्व में आया ।
2. राष्ट्रसंघ के गठन पर प्रकाश डालें।
उत्तर- राष्ट्रसंघ को सुचारू रूप से चलाने के लिए वृहत् व्यवस्था की गई। राष्ट्रसंघ की पहली धारा में सदस्य-राष्ट्रों की सूची एवं दूसरी धारा में इसके तीन प्रमुख अंगों का उल्लेख किया गया। इसके प्रमुख अंग थे—(i) जेनरल एसेंबली (ii) कौंसिल तथा (iii) अंतरराष्ट्रीय न्यायालय इनके अतिरिक्त सचिवालय तथा विशिष्ट विषयों से संबद्ध अनेक सहायक संगठन एवं समितियाँ स्थापित की गईं जिनमें सबसे अधिक विख्यात है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन इनके अतिरिक्त संरक्षण समिति, सैनिक समिति तथा निरस्त्रीकरण समिति भी गठित की गई। राष्ट्रसंघ का मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जेनेवा नगर में स्थापित किया गया ।
राष्ट्रसंघ के असफलता के कारणों पर प्रकाश डालें।
उत्तर- (i)शांति समझौते से राष्ट्रसंघ का संबद्ध होना—राष्ट्रसंघ की विफलता का एक प्रमुख कारण था कि यह शांति सम्मेलन द्वारा की गई संधियों से संबद्ध था। इस सम्मेलन और इन संधियों से पराजित राष्ट्र विशेषकर जर्मनी अत्यंत असंतुष्ट था। ऐसे राष्ट्रों का मानना था कि राष्ट्रसंघ विजित राष्ट्रों का संगठन था जिसका उद्देश्य बड़ी शक्तियों के हितों को देखना था। इसलिए जब असंतुष्ट और पराजित राष्ट्र शक्तिशाली बन गए तो उन लोगों ने राष्ट्रसंघ की उपेक्षा करनी आरंभ कर दी।
(ii) संयुक्त राज्य अमेरिका का अलग रहना- यद्यपि राष्ट्रसंघ की स्थापना में अमेरिका की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। वह स्वयं सदस्य नहीं बना। 1920 में अमेरिकी सिनेट ने राष्ट्रसंघ और वर्साय संधि को मान्यता प्रदान नहीं की। विल्सन के लाख प्रयासों के बावजूद अमेरिकी सिनेट ने अमेरिका को राष्ट्रसंघ में सम्मिलित होने की अनुमति नहीं दी । फलतः, राष्ट्रसंघ को विश्व के एक शक्तिशाली राष्ट्र का सहयोग एवं समर्थन नहीं मिल सका। इससे यह आरंभ से ही एक दुर्बल संस्था बन गई।
(iii) अन्य बड़ी शक्तियों का अलग रहना- अमेरिका के समान ही जर्मनी और रूस भी लंबे समय तक राष्ट्रसंघ से अलग रहे । 1925 की लोका! संधि द्वारा जर्मनी राष्ट्रसंघ का सदस्य बना । हिटलर इससे प्रसन्न नहीं था; क्योंकि राष्ट्रसंघ वर्साय की अपमानजनक संधि से जुड़ा हुआ था । अतः, 1933 में हिटलर ने स्वयं राष्ट्रसंघ की सदस्यता त्याग दी। आगे चलकर जापान, टली जैसे बड़ी शक्तियों का समर्थन नहीं मिल सका। 1934 में रूस राष्ट्रसंघ का सदस्य बना। अन्य राष्ट्रों में यह भावना घर कर गई कि राष्ट्रसंघ सिर्फ ब्रिटेन, फ्रांस और रूस के हितों की साधना के लिए बना है। ऐसी स्थिति में इसकी सफलता संदिग्ध थी। ।
(iv) ब्रिटेन और फ्रांस की तुष्टीकरण की नीति- राष्ट्रसंघ की असफलता का एक अन्य कारण जर्मनी और इटली के प्रति फ्रांस-ब्रिटेन की नीति थी। वे रूस की साम्यवादी व्यवस्था के विरुद्ध थे। अत: इन देशों ने फासिस्ट शक्तियों के प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाई । इस प्रकार अनेक कारणों से राष्ट्रसंघ अपने उद्देश्यों की पूर्ति में विफल रहा।
4. संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की प्रक्रिया का उल्लेख करें।
उत्तर- द्वितीय विश्वयुद्ध के समय राष्ट्रसंघ निष्क्रिय बना रहा । युद्ध की विभीषिका एवं विनाश को देखते हुए तथा भविष्य में विश्व को युद्ध से बचाए रखने के उद्देश्य से पुनः एक अंतरराष्ट्रीय संस्था की स्थापना की आवश्यकता महसूस की गई। इस संस्था को राष्ट्रसंघ से अधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली बनाने की आवश्यकता थी। अतः, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ही इसके लिए प्रयास आरंभ कर दिए गए। 12 जून, 1941 को जेम्स पैलेस घोषणा जारी की गई। 14 अगस्त, 1941 को ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने एक संयुक्त घोषणापत्र जारी किया जिसे अटलांटिक चार्टर कहा जाता है |
इसमें विश्वशांति की स्थापना के लिए कुछ सिद्धांतों का उल्लेख किया गया। मास्को सम्मेलन (1943) और तेहरान सम्मेलन (1943) प्रमुख हैं। 1944 में संयुक्त राज्य अमेरिका के इंबरटोन ओक्स नामक स्थान पर सोवियत संघ, अमेरिका, ब्रिटेन और चीन के नेतागणों का एक सम्मेलन हुआ । इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र स्थापित करने की योजना बनाई गई। तत्पश्चात् 25 अप्रैल से लेकर 26 जून, 1945 तक सेन फ्रांसिस्को में एक अन्य सम्मेलन आयोजित किया गया । इस सम्मेलन में 50 राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र अधिकार पत्र तैयार किया गया। इसमें संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के उद्देश्य, इसके गठन तथा इसके विभिन्न अंगों का वर्णन किया गया। चार्टर में 111 धाराएँ थीं। सम्मेलन में उपस्थित सभी राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने इस चार्टर पर हस्ताक्षर किए। 24 अक्टूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र की विधिवत् स्थापना की गई।
5. संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंगों के गठन और कार्यों पर प्रकाश डालें।
उत्तर-(i) जेनरल एसेम्बली- यह सदस्य-राष्ट्रों की आम सभा है । संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य-राष्ट्र आम सभा के सदस्य होते हैं। आम सभा की बैठक सामान्यतः प्रतिवर्ष एक बार सितम्बर होती है। परंतु, आवश्यकतानुसार इसकी बैठक एक से अधिक बार भी बुलाई जा सकती है । प्रत्येक वार्णिक अधिवेशन की अध्यक्षता के लिए सदस्य-राष्ट्रों के प्रतिनिधियों में से एक का निर्वाचन किया जाता है। आम सभा के अन्तर्गत अनेक समितियाँ हैं जैसे राजनीतिक एवं सुरक्षात्मक समिति, विशेष राजनीतिक समिति, वैधानिक समिति इत्यादि ।
आम सभा का मुख्य कार्य विश्व की समस्याओं पर विचार करना, विश्वशांति के लिए । अंतरराष्ट्रीय सहयोग तथा निरस्त्रीकरण के उपायों पर विचार करना एवं उनपर परामर्श देना है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर से संबद्ध सभी विषयों पर विचार करना, सुरक्षा परिषद के 10 अस्थायी तथा आर्थिक और सामाजिक परिषद के 18 सदस्यों का निर्वाचन करना सुरक्षा परिषद की सहमति से अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के 15 न्यायाधीश हैं। आम सभा और सुरक्षापरिषद इसकी नियुक्ति करती है।
संरक्षण परिषद- संरक्षण परिषद् या न्यास परिषद उन उपनिवेशों एवं प्रदेशों की व्यवस्था देखती है जो संयुक्त राष्ट्र के अधीन हैं।
आर्थिक और सामाजिक परिषद्-इसका मुख्य उद्देश्य विश्व को अधिक समृद्धिशाली, सुखी और न्यायपरक बनाने का प्रयास करना है । परिषद अर्थव्यवस्था सामाजिक व्यवस्था, शिक्षा एवं संस्कृति के विकास तथा स्वास्थ्य एवं चिकित्सा की व्यवस्था को देखती है । इस परिषद में आम सभा द्वारा निर्वाचित सदस्य होते हैं । सदस्यों का चुनाव तीन वर्षों के लिए किया जाता है। इनमें से एक-तिहाई सदस्य हर वर्ष बदल जाते हैं और उनके स्थान पर नए सदस्य नियुक्त किए जाते हैं। सदस्यों की संख्या 27 है।
6. राष्ट्रसंघ की उपलब्धियों का मूल्यांकन करें।
उत्तर-1. राजनीतिक क्षेत्र में कार्य- अपने आरंभिक चरण में राष्ट्रसंघ ने विभिन्न राष्ट्रों के आपसी मतभेदों और झगड़ों को सुलझाने का सफल प्रयास किया
(i) 1920 में आयरलैंड द्वीपसमूह के प्रश्न पर स्वेडन और फिनलैंड में झगड़ा आरंभ हुआ। राष्ट्रसंघ ने इसमें मध्यस्थता कर आयरलैंड द्वीपसमूह फिनलैंड को देने का निर्णय किया इसे दोनों पक्षों ने स्वीकार कर लिया।
(ii) साइलेशिया के प्रश्न पर जर्मनी और पोलैंड में विवाद आरंभ हुआ क्योंकि ऊपरी साइलेशिया महत्त्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र था। दोनों पक्ष इस पर अधिकार करना चाहते थे। 1921 में राष्ट्रसंघ के निर्णयानुसार इस क्षेत्र को जर्मनी और पोलैंड में विभक्त कर दिया गया।
(iii) 1921 में ही युनान और युगोस्लाविया के बीच अल्टेनिया की सीमा को लेकर विवाद हुआ, राष्ट्रसंघ ने इसे शांतिपूर्वक सुलझा दिया।
(iv) 1923 में लेटेशिया को लेकर संघर्ष आरंभ हुआ । राष्ट्रसंघ ने मध्यस्थता कर लेटेशिया पुनः कोलम्बिया को दिलवा दिया ।
(v) 1923 में चेकोस्लोवाकिया और पोलैंड के सीमा संबंधी विवाद को राष्ट्रसंघ ने सुलझाया।
II. गैर-राजनीतिक कार्य- गैर राजनीतिक क्षेत्र में भी राष्ट्रसंघ ने सराहनीय कार्य किए।
(i) आर्थिक एवं राजस्व सम्बन्धी–1921-22 में राष्ट्रसंघ ने ऑस्ट्रिया को अंतरराष्ट्रीय कर्ज देकर बचा लिया। इसी प्रकार, राष्ट्रसंघ ने बुल्गेरिया, युनान एवं हंगरी को भी आर्थिक सहायता दी।
(ii) स्वास्थ्य एवं चिकित्सा- पूर्वी यूरोप में फैले टाइफाइड एवं हैजा जैसे संक्रामक रोगों को रोकने का प्रयास किया । एशिया माइनर से लोटनेवाले शरणार्थी अपने साथ संक्रामक रोगों के कीटाणु साथ लाते थे। उनकी चिकित्सा एवं रोगों की रोकथाम की व्यवस्था राष्ट्रसंघ ने की। ।
(iii) सामाजिक कार्य- राष्ट्रसंघ के प्रयासों से लाखों युद्धबंदियों एवं शरणार्थियों को यातनागृहों एवं जेलों से मुक्त होकर अपने घर वापस लौटने में सहायता मिली। उनके निवास एवं पुनर्वास में राष्ट्रसंघ ने सहायता पहुँचाई । इसने दास-प्रथा एवं स्त्रियों तथा बच्चों की खरीद-बिक्री को रोकने का प्रयास किया। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की व्यवस्था की गई । नशीले एवं मादक पदार्थों जैसे अफीम के सेबन एवं व्यापार पर भी रोक लगाई गई । बाल-कल्याण की योजनाएँ लागू की गई। स्त्रियों एवं श्रमिकों की स्थिति में सुधार लाने के प्रयास भी किए गए । राष्ट्रसंघ ने मानवीय मूल्यों के विकास पर भी ध्यान दिया। इस प्रकार सामाजिक क्षेत्र में राष्ट्रसंघ की उपलब्धियाँ राजनीतिक उपलब्धियों की तुलना में अधिक प्रभावशाली थीं।
7. संयुक्त राष्ट्र की दुर्बलताओं की विवेचना करें।
उत्तर-(i) निषेधाधिकार का प्रश्न- संयुक्त राष्ट्र की सबसे बड़ी समस्या निषेधाधिकार अथा वीटो' का प्रश्न है । यह अधिकार सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों को ही प्राप्त है वीटो के अधिकार का प्रयोग कर शक्तिशाली राष्ट्र कभी-कभी कोई निर्णय ही नहीं लेने देते हैं। इससे संयुक्त राष्ट्र की कार्यवाही पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है
(ii) स्थायी सेना की कमी— संयुक्त राष्ट्र के पास अपनी स्थायी सेना नहीं है। भावश्यकतानुसार सदस्य-राष्ट्रों की सहायता से संयुक्त राष्ट्र सेना की व्यवस्था करता है । अत: किसी बड़े अंतरराष्ट्रीय झगड़े को सेना के बल पर सुलझाने में संयुक्त राष्ट्र सर्वथा असमर्थ है।
(iii) धन की कमी- संयुक्त राष्ट्र के पास अपनी स्थायी सेना नहीं है । आवश्यकतानुसार सदस्य-राष्ट्रों की सहायता से संयुक्त राष्ट्र सेना की व्यवस्था करता है। अतः, किसी बड़े अंतरराष्ट्रीय झगड़े को सेना के बल पर सुलझाने में संयुक्त राष्ट्र सर्वथा असमर्थ है।
(iv) प्रभावशाली राष्ट्रों की गुटबंदी- संयुक्त राष्ट्र प्रभावशाली राष्ट्रों की प्रभाव में आ जाता है। ऐसे राष्ट्र अपनी गुट बनाकर संयुक्त राष्ट्र पर दबाव डालते हैं। उदाहरण के लिए, विकसित राष्ट्रों का गुट जी-8, सामरिक रूप से शक्तिशाली राष्ट्रों का गुट जैसे नाटो, सीटो, गुट संयुक्त राष्ट्र की कार्यवाहियों को प्रभावित करते हैं। वारसा
(v) औद्योगिक राष्ट्रों की महत्वाकांक्षाएं- औद्योगिक राष्ट्र परिवर्तित साम्राज्यवादी नीति अपनाकर आर्थिक साम्राज्यवाद की नीति अपना रहे हैं। इसके माध्यम से वे अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं की पूर्ति कर रहे हैं। इससे विश्व पुनः विकसित और विकासशील गुटों में बँट रहा है । संयुक्त राष्ट्र इसे नहीं रोक सका है। ।
(vi) आंतरिक मामलों में अहस्तक्षेप की नीति- संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार संयुक्त राष्ट्र किसी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है । इसका लाभ उठाकर अनेक राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र की उपेक्षा करते हैं और अनेक विवादस्पद प्रश्नों को इसके समझ नहीं ले जाते हैं। इससे विश्व-शांति एवं सुरक्षा के भंग होने का खतरा सदैव बना रहता है।
(vii) सुरक्षा परिषद में क्षेत्रीय असंतुलन- सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों को जिस प्रकार मनोनीत किया गया है उससे संयुक्त राष्ट्र में यूरोपीय राष्ट्रों का प्रभुत्व बना रहता है । पाँच में से तीन सदस्य यूरोप के हैं । एशियाई देशों में सिर्फ चीन को प्रतिनिधित्व दिया गया है । अतः, यूरोपीय राष्ट्र अमेरिका के साथ मिलकर मनमानी करते हैं।
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