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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. प्रथम विश्वयुद्ध के प्रमुख कारणों का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर- प्रथम विश्वयुद्ध के प्रमुख कारण निम्न हैं
I. यूरोप की शक्ति सन्तुलन का बिगड़ना- 1987 में जर्मनी के एकीकरण के पूर्व यूरोपीय राजनीति में जर्मनी की महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं थी, परंतु बिस्मार्क के नेतृत्व में एक शक्तिशाली जर्मन राष्ट्र का उदय हुआ। इससे यूरोपीय शक्ति-संतुलन गड़बड़ा गया । इंगलैंड और फ्रांस के लिए जर्मनी एक चुनौती बन गया । इससे यूरोपीय राष्ट्रों में प्रतिस्पर्धा की भावना बढ़ी।
II. गुप्त संधियाँ एवं गुटों का निर्माण— जर्मनी के एकीकरण के पश्चात् वहाँ के चांसलर बिस्मार्क ने अपने देश को यूरोपीय राजनीति में प्रभावशाली बनाने के लिए तथा फ्रांस को यूरोप की राजनीति में तटस्थ बनाए रखने के लिए गुप्त संधियों की नीतियाँ अपनाई। उसने ऑस्ट्रिया-हंगरी (1879) के साथ द्वैध संधि की । रूस (1881 और 1887) के मैत्री संधि की गई । फलस्वरूप यूरोप में एक नए गुट का निर्माण हुआ जिसे त्रिगुट कहा जाता है। इसमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी एवं इटली सम्मिलित थे। कुछ दिनों के पश्चात् रूस, इंगलैंड और फ्रांस का त्रिराष्ट्रीय समझौता गुट का निर्माण हुआ । इस प्रकार, आपसी तनाव और मतभेद बढ़ता गया जो विश्वशांति के लिए घातक प्रमाणित हुआ।
III. जर्मनी और फ्रांस की शत्रुता— जर्मनी एवं फ्रांस के मध्य पुरानी दुश्मनी थी । जर्मनी के एकीकरण के दौरान बिस्मार्क ने फ्रांस के धनी प्रदेश अल्लसेस लोरेन पर अधिकार कर लिया था। मोरक्को में भी फ्रांसीसी हितों को क्षति पहुँची गयी थी। इसलिए, फ्रांस का जमत उर्मनी के विरुद्ध था।
IV. साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा- साम्राज्यवादी देशों का साम्राज्य विस्तार के लिए आपसी प्रतिद्वंद्विता एवं हितों की टकराहट प्रथम विश्वयुद्ध का मूल कारण माना जा सकता है । जर्मनी और इटली जब बाद में उपनिवेशवादी दौड़ में सम्मिलित हुए तो उनके विस्तार के लिए बहुत कम संभावना थी। अतः, इन लोगों ने उपनिवेशवादी विस्तार की एक नई नीति अपनाई । यह नीति थी दूसरे राष्ट्रों के उपनिवेशों पर बलपूर्वक अधिकार कर अपनी स्थिति सुदृढ़ करने की।
V. सैन्यवाद- साम्राज्यवाद के समान सैन्यवाद ने भी प्रथम विश्वयुद्ध को निकट ला दिया। प्रत्येक राष्ट्र अपनी सुरक्षा एवं विस्तारवादी नीति को कार्यान्वित करने के लिए अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण एवं उनकी खरीद-बिक्री में लग गया। फलतः युद्ध के लिए अस्त्र-शस्त्र बनाए गए। के इस प्रकार, पूरा यूरोप चिंगारी के ढेर पर बैठ गया, बस विस्फोट होने की देरी थी। यह बिस्फोट 1914 में हुआ।
VI. तात्कालिक कारण- सेराजेवो हत्याकांड प्रथम विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण बना ऑस्ट्रिया के युवराज आर्क ड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की बोस्निया की राजधानी सेराजेवो में हत्या ।
2. प्रथम विश्वयुद्ध के महत्त्वपूर्ण परिणामों का उल्लेख करें।
उत्तर– (i)साम्राज्यों का अंत- प्रथम विश्वयुद्ध में जिन बड़े साम्राज्यों ने केन्द्रीय राष्ट्रों के साथ भाग लिया था उनका युद्ध के बाद पतन हो गया। पेरिश शांति सम्मेलन के परिणामस्वरूप ऑस्ट्रिया-हंगरी सम्राज्य बिखर गया। जर्मनी में होहेन-जोलन और ऑस्ट्रिया-हंगरी में हैप्सुबर्ग राजवंश का शासन समाप्त हो गया। वहाँ गणतंत्र की स्थापना हुई। इसी प्रकार, 1917 में रूसी क्रांति के परिणामस्वरूप रूस में रोमोनेव राजवंश की सत्ता समाप्त हो गई एवं गणतंत्र की स्थापना हुई। तुर्की का आटोमक साम्राज्य भी समाप्त हो गया।
(ii) विश्व मानचित्र में परिवर्तन- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद विश्व मानचित्र में परिवर्तन आया । साम्राज्यों के विघटन के साथ ही पोलैंड चेकोस्लोवाकिया, युगोस्लाविया जैसे नए राष्ट्रों का उदय हुआ। ऑस्ट्रिया जर्मनी, फ्रांस और रूस की सीमाएँ बदल गई। इसी प्रकार जापान को भी अनेक नए क्षेत्र प्राप्त हुए । इराक को ब्रिटिश एवं सीरिया को फ्रांसीसी संरक्षण में रख दिया गया । फिलस्तीन ब्रिटेन को दे दिया गया ।
(iii)सोवियत संघ का उदय- प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान रूस में एक क्रांति हुई। इसके परिवरूप रूसी साम्राज्य के स्थान पर सोवियत संघ का उदय हुआ। जारशाही का स्थान समाजवादी सरकार ने ले लिया ।
(iv) विश्व राजनीति पर से यूरोप का प्रभाव कमजोर पड़ना- युद्ध के पूर्व तक विश्व राजनीति में यूरोप की अग्रणी भूमिका थी। जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस के इर्द-गिर्द राजनीति घूमती थी, परंतु 1918 के बाद यह स्थिति बदल गई । युद्धोत्तर कारण में अमरीका का दबदबा बढ़ गया।
(v) अधिनायकवाद का उदय- प्रथम विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप अधिनायकवाद का उदय हुआ । वर्साय की संधि का सहारा लेकर जर्मनी में हिटलर और उसकी नाजी पार्टी ने सत्ता हथिया ली। नाजीवाद ने एक नया राजनीतिक दर्शन दिया ।
जर्मनी के समान इटली में भी मुसोलिनी के नेतृत्व में फासीवाद का उदय हुआ। अत: मित्र राष्ट्रों के प्रति इटली की कटुता बढ़ती गई। हिटलर के समान मुसोलिनी ने भी सारी सत्ता अपने हाथों में केन्द्रित कर ली।
(vi) द्वितीय विश्वयुद्ध का बीजारोपण- प्रथम विश्वयुद्ध ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज भी बो दिए । पराजित राष्ट्रों के साथ जिस प्रकार का व्यवहार किया गया इससे वे अपने को अपमानित समझने लगे। उन राष्ट्रों में पुनः उग्र राष्ट्रीयता प्रभावी बन गई।
(vii) विश्वशांति स्थापना का प्रयास- प्रथम विश्वयुद्ध में जन-धन की भारी क्षति को देखकर भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति को रोकने के लिए तत्कालीन राजनीतिज्ञों प्रयास आरंभ कर दिए । अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन की इसमें प्रमुख भूमिका थी। फलतः, जनवरी 1920 में राष्ट्रसंघ की स्थापना की गई। दुर्भाग्यवश राष्ट्रसंघ अपने उद्देश्यों में विफल रहा। इसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण ढंग से समाधान कर युद्ध की विभीषिका को रोकने का प्रयास करना।
3. क्या आप मानते हैं कि "वर्साय की संधि आरोपित संधि थी?" स्पष्ट करें।
उत्तर- प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् जनवरी 1919 में पेरिस ने एक शांति सम्मेलन का आयोजन किया, इसमें कई संधियाँ की गई जिनमें वर्साय की संधि एक महत्वपूर्ण संधि थी जो विजित देशों और जर्मनी के बीच हुई थी। इसमें जर्मनीको राजनीतिक, सैनिक एवं आर्थिक दृष्टि से पंगु बना दिया। इसकी शर्ते विजयी राष्ट्रों द्वारा जर्मनी पर जबरदस्ती लादी गई थी।
हिटलर शासन में आते ही संधि को नकार कर अपनी शक्ति बढ़ानी आरंभ कर दी। नाजीदल ने वर्साय की संधि के विरूद्ध जनमत को अपने पक्ष में कर लिया। कहा जाता है कि वर्साय की संधि में दूसरे विश्वयुद्ध के बीज निहित थे। इसलिए, वर्साय की संधि को आरोपित संधि कहते हैं।
4. द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रमुख कारणों का उल्लेख करें
उत्तर- (i) वर्साय की अपमानजनक संधि- वर्साय की संधि के शर्तों के अनुसार जर्मन साम्राज्य का एक बड़ा भाग मित्र राष्ट्रों ने उससे छीनकर आपस में बाँट लिया। उसे सैनिक और आर्थिक दृष्टि से पंगु बना दिया गया। अतः, जर्मन वर्साय की संधि को "एक राष्ट्रीय कलंक" मानते थे। 66
(ii) तानाशाही शक्तियों का उदय- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में तानाशाही शक्तियों का उदय और विकास हुआ। इटली में मुसोलनी और जर्मनी में हिटलर तानाशाह बन बैठे। मुसोलिनी ने फासीवाद की स्थापना कर सारी शक्ति अपने हाथों में केन्द्रित कर ली। हिटलर ने नाजीवाद की स्थापना की तथा जर्मनी का तानाशाह बन बैठा । दोनों ने आक्रामक नीति अपनाई। दोनों ने राष्ट्रसंघ की सदस्यता त्याग दी । उनकी नीतियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध को अवश्यंभावी बना दिया।
(iii) साम्राज्यवादी प्रवृति- द्वितीय विश्वयुद्ध का एक प्रमुख कारण बना साम्राज्यवाद । प्रत्येक साम्राज्यवादवादी शक्ति अपने साम्राज्य की विस्तार कर अपनी शक्ति और धन में वृद्धि करना चाहता था। इससे साम्राज्यवादी राष्ट्रों में प्रतिस्पर्धा आरंभ हुई। आगे चलकर विश्वयुद्ध का कारण बना।
(iv) यूरोपीय गुरबंदी- जर्मनी, इटली और जापान का त्रिगुट बना । ये राष्ट्र धुरी राष्ट्र के के नाम से विख्यात हुए। फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और रूस का अलग गुट बना जो मित्र राष्ट्र कहलाया । गुटबंदी ने एक-दूसरे के विरुद्ध आशंका, घृणा और विद्वेष की भावना जगा दी।
(v) राष्ट्रसंघ की विफलता- द्वितीय विश्वयुद्ध का प्रमुख कारण राष्ट्रसंघ की विफलता थी। इसकी स्थापना युद्धों की पुनरावृत्ति को रोकने एवं विश्वशांति को बनाए रखने के लिए भी गई थी। परंतु यह अपने उद्देश्यों में विफल गई थी। परंतु यह अपने उद्देश्यों में विफल रही। यह महाशक्तियों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं कर सकी। अपनी निजी सेना के अभाव, बड़े राष्ट्रों के दबाव तथा अन्य बहुत-सी दुर्बलताओं के कारण राष्ट्रसंघ की उपयोगिता समाप्त हो गई।
(vi) युद्ध के तात्कालिक कारण- अप्रैल, 1938 में हिटलर ने पोलैंड से डॉजिंग बंदरगाह तथा पौलिश गलियारा जर्मनी वापस करने की माँग की । पोलैंड ने इसे स्वीकार नहीं किया । हिटलर । ने 1 सितम्बर, 1939 को पोलैंड पर आक्रमण कर दिया। 3 सितम्बर को ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस प्रकार, दूसरा युद्ध आरंभ हो गया।
5. द्वितीय विश्वयुद्ध के क्या परिणाम हुए?
उत्तर- (i) घन-जन का भीषण संहार- इस युद्ध में तीन करोड़ लोग मारे गये जिनमें सर्वाधिक संख्या रुसियों की थी। अनुमानतः सिर्फ ब्रिटेन में ही दो हजार करोड़ रुपए मूल्य की संपत्ति नष्ट हुई।
(ii) औपनिवेशिक युग का अंत- द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सभी साम्राज्यवादी राज्यों को एक-एक कर अपने उपनिवेशों से हाथ धोना पड़ा । उपनिवेशों में राष्ट्रीयता की लहर तेज हो गई। स्वतंत्रता आंदोलन तेज हो गए । फलतः, एशिया के अनेक देश यूरोपीय दासता से मुक्त हो गए।
(iii) फासीवादी शक्तियों का सफाया- युद्ध में पराजित होने के बाद धुरी राष्ट्रों के दुर्दिन आ गए । जर्मन साम्राज्य का बड़ा भाग उससे छिन गया । इटली को अपने सभी अफ्रीकी उपनिवेश खोने पड़े । जापान ने भी जिन क्षेत्रों पर अधिकार किया उसे वापस करना पड़ा । इन राष्ट्रों की आर्थिक-सैनिक स्थिति भी दयनीय हो गई।
(iv) इंगलैंड की स्थिति का कमजोर पड़ना- अब तक विश्व राजनीति में इंगलैंड (ब्रिटेन) की प्रमुख भूमिका थी। वह एक शक्तिशाली राष्ट्र था, परंतु द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उसकी स्थिति दुर्बल हो गई। उसके सभी उपनिवेश स्वतंत्र हो गए तथा विश्व राजनीति में उसका दबदबा घट गया।
(v) रूस और अमेरिका की शक्ति में वृद्धि- द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात जर्मनी, इटली, ब्रिटेन और फ्रांस के स्थान पर सोवियत रूस और अमेरिका का प्रभाव राजनीति में बढ़ गया। इन्हीं दोनों देशों के इर्द-गिर्द युद्धोत्तर राजनीति चलने लगे।
(vi) विश्व का दो खेमों में विभाजन- द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ विश्व की दो महान शक्तियाँ बन गईं । अमेरिका पूँजीवाद और रूस साम्यवाद का समर्थक था। अतः यूरोपीय और एशियाई देश सहायता के लिए रूस-अमेरिका की ओर आकृष्ट हुए । दोनों ने अविकसित और विकासशील देशों को अपने प्रभाव में लेना आरंभ कर दिया। फलतः, विश्व राष्ट्र दो खेमों में बँट गए ।
(vii) जर्मनी का विघटन- द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी को दो भागों में विभक्त कर दिया गया । पश्चिमी जर्मनी और पूर्वी जर्मनी । पश्चिमी जर्मनी को इंगलैंड, अमेरिका और फ्रांस तथा पूर्वी जर्मनी को सोवियत संघ के संरक्षण में रखा गया । बर्लिन में दिवार बनाकर इसका विभाजन किया गया। ।
(viii) संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना- द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एक अंतरराष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता पुनः प्रतीत हुई जिससे कि जिससे कि विश्वशांति बनाई रखी जा सके एवं विश्वयुद्ध की पुनरावृत्ति को रोका जा सके। 1945 में संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना की गई। यह अभी भी कार्यरत है।
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