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Bharati Bhawan Class 9th Biology | Chapter 6 Food Processing Animal | Long Answer Question | भारती भवन क्लास 9वीं जीवविज्ञान | अध्याय 6 खाद्य संसाधन-पशु | दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. पशुपालन से होनेवाले आर्थिक लाभों का विवरण दें। पशुपालन के निम्नलिखित आर्थिक लाभ हैं
उत्तर- (i) दुग्ध उत्पादन - दुधारू पशुओं की अत्यधिक संख्या होने के बावजूद हमारे देश में दूध का उत्पादन संतोषजनक नहीं है। हमारे देश में एक गाय औसतन करीब 200 kg दूध प्रति वर्ष देती है, जबकि यह औसत आस्ट्रेलिया और नीदरलैण्ड में 3500 kg तथा स्वीडन में 3000 kg प्रतिवर्ष है। अतः पशुपालन विज्ञान के अध्ययन से उन्नत नस्ल के अधिक दुधारू पशु प्रजनन के द्वारा प्राप्त किये जा सकते हैं।
(ii) मास उत्पादन- जनसंख्या के अनुरूप भोजन की बढ़ती आवश्यकता की पूर्ति के लिये अधिक पुष्ट, मांसल तथा जल्दी बढ़नेवाली नस्ल की मुर्गियाँ प्रजनन के द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं। इसी प्रकार इच्छित गुण वाले, उन्नत नस्ल के भेड़, बकरी, सूअर आदि मांस-उत्पादक पशुओं को प्रजनन के द्वारा पशुविज्ञान के अध्ययन से प्राप्त किया जा सकता है।
(iii) अण्डा उत्पादन- जनसंख्या के अनुरूप हमारे देश में अण्डे की खपत दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। बढ़ते माँगों की पूर्ति के लिये अण्डा देनेवाली उन्नत किस्म की मुर्गियाँ प्रजनन के द्वारा प्राप्त की जाती हैं। जिससे बाजार में इसकी कीमत बढ़ जाती है जिससे अच्छी कीमत पर बेचा जाता है।
(iv) मछली उत्पादन- हमारे देश में मृदु जल की मछलियों के उत्पादन बढ़ाने की संभावना में बहुत अधिक है। इसके उत्पादन के आय में अच्छी बढ़ोत्तरी होती है।
(v) पशुओं के मल-मूत्र का समुचित उपयोग— हमारे देश में गोबर का उपयोग सामान्यतः जलावन के रूप में किया जाता है। पशुओं के मल-मूत्र से बायोगैस का उत्पादन हो सकता हैं उपयोग खाद के रूप में भी किया जा सकता है।
(vi) ऊन उत्पादन–अन्य ऊन उत्पादक देशों की तुलना में हमारा देश बहुत पीछे है। पशुपालन के सिद्धांतों और तकनीक का इस्तेमाल कर ऊन-उत्पादक भेड़ों, अंगोरा किस्म के खरगोश की नस्ल सुधार कर ऊन का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है जिससे आर्थिक लाभ होता है।  
2. अधिक अण्डे और मांस के उत्पादन हेतु मुर्गी पालन में कैसे सुधार लाया जा सकता है ? वर्णन करें।
उत्तर- अधिक अण्डे और मांस के उत्पादन के लिये विदेशी उच्च नस्लों की मुर्गियों का पालन करना चाहिये। साथ ही संकर नस्ल की ज्यादा उत्पाद देनेवाली मुर्गियों का पालन किया जाना चाहिये, क्योंकि इन मुर्गियाँ का खुराक भी कम है। साथ ही मांस और अण्डे भी ज्यादा मात्रा में देती हैं। मुर्गीपालन के लिये उनके आहार में सुधार किया जाना चाहिये। उनको सन्तुलित खुराक में में भी अन्य पशुओं की भाँति उचित मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज, विटामिन तथा जल होना चाहिये। उन्हें विभिन्न प्रकार के महीन दले हुये अनाज, जैसे चावल की भूसी, गेहूँ, चोकर, मक्का, बाजरा, मूंगफली की खली आदि की खुराक देनी चाहिये। साथ ही कैल्सियम और फॉस्फोरस की उचित मात्रा भोजन में मिलाकर देनी चाहिये।
मुर्गीपालन के लिये आवास भी बहुत जरूरी है। वे वर्षा, कड़ी धूप, अत्यधिक ठण्ड तथा परभक्षियों से सुरक्षित रह सकें। आवास साफ-सुथरे, सूखे तथा हवादार होने चाहिये। यह ध्यान रखना चाहिये कि उस आवास में मुर्गियों की संख्या ज्यादा न हो।
मुर्गीपालन के लिये मुर्गियों को रोगों से बचाव, तन्दुरूस्ती, अच्छी उत्पाद तथा प्रजनन के लिये उनके खुराक में विटामिन-A दिया जाना चाहिये। इसके लिये मुर्गियों के भोजन में महीन कटी शाक-सब्जी मिला देना चाहिये। अधिक अण्डे तथा मांस देनेवाली मुर्गियों को संक्रमण से सुरक्षा के लिये उन्हें टीका लगाना चाहिये, ताकि उनमें रोग-निरोधक क्षमता रहे।

3. पालतू पशुओं के आवास को क्या विशेषता होनी चाहिये?
उत्तर- पालतू पशुओं के आवास स्वच्छ, सूखा तथा हवादार होना चाहिये। आवास इस तरह का होना चाहिये कि पालतू पशुओं को प्रतिकूल मौसम, जैसे वर्षा, कड़ी धूप तथा अत्यधिक ठण्ड से सुरक्षा मिले। आवास का प्रबंध इस प्रकार का होना चाहिये कि वह पालतू पशुओं को रोग उत्पन्न करनेवाले जीवों तथा भक्षकों से सुरक्षित रखे। मवेशियों के मल-मूत्र तथा अन्य गंदगी का इनके आवास से उचित निकास की व्यवस्था होनी चाहिये। मवेशियों के आवास के फर्श को पक्का बना होना भी लाभकारी है।

4. विभिन्न पशु रोगों के लक्षण तथा उनके नियंत्रण के उपायों का विवरण दें। 
उत्तर- पशुओं के रोग ज्यादातर वायरस, बैक्टीरिया तथा कवक या फंजाई के कारण होते हैं। इन रोगों से पशु कमजोर हो जाते हैं तथा उनके उत्पाद में कमी आ जाती है। :
पशुओं में रोग फैलानेवाले रोगाणु गंदे, अंधेरे, नमी वाले अस्वास्थ्यकर स्थानों पर ही पनपते हैं। अतः पशुओं के आवास को साफ-सुथरा और स्वास्थ्यकर बनाकर बहुत-सी बीमारियों को नियंत्रण किया जा सकता है। स्वास्थ्यकर आवास के साथ-साथ पशुओं के शरीर की नियमित रूप से सफाई होना भी अनिवार्य है। सामान्य संक्रामक रोगों के बचाव के लिये पशुओं को समय-समय पर टीका लगाना अत्यंत आवश्यक है। पौष्टिक तथा सन्तुलित आहार पशुओं में रोग निरोधक क्षमता बढ़ाते हैं।

5. कृत्रिम वीर्यसेचन क्या है ? इन्हें किन-किन चरणों में पूरा किया जाता है? 
उत्तर- कृत्रिम विधि से वीर्य को मादा के योनि में प्रविष्ट करना कृत्रिम वीर्यसेचन कहलाता
है। प्रजननकर्ता के लिये यह विधि वरदान साबित हुयी है। इसके द्वारा पशुओं की गुणवत्ता में आशातीत वृद्धि हुयी है। कृत्रिम वीर्यसेचन निम्नलिखित चरणों में पूरा होता है
(i) वीर्य का संचयन- उत्तम गुणों वाले उन्नत नस्ल के एक नर पशु को कृत्रिम तरीके से उत्तेजित कर उसके वीर्य का संचय किया जाता है। नर पशु को उत्तेजित करने के लिये यांत्रिक या वैद्युत विधियों का इस्तेमाल किया जाता है। अब अपने देश के कई संस्थानों में वीर्य बैंक स्थापित किये गये हैं, जहाँ उपलब्ध उत्तम नस्लों के वीर्यों का सीधे संग्रह किया जा सकता है।
(ii) वीर्य का परिरक्षण- संचित वीर्य को अत्यंत इण्डा तापक्रम पर रखा जाता है या इन्हें रासायनिक विधि से परिरक्षित किया जाता है। फिर इन्हें पतला कर छोटी-छोटी शीशियों में बंद करके रखा जाता है।
(iii) निषेचन के लिये वीर्य को प्रविष्ट करना- परिरक्षित वीर्य को चयन किये गये मादा के योनि में सूई के द्वारा प्रविष्ट कराकर मादा के अण्डे को निषेचित किया जाता है। वीर्य संचयन के लिये तंदुरूस्त और अच्छे नस्ल के नर पशु का चुनाव करना चाहिये जिससे संचित वीर्य उच्च गुणों के हों।

6. जलीय संवर्धन, समुद्री संवर्धन ( मेरी कल्चर ) तथा प्रग्रहण मत्स्यन में अनर स्पष्ट करें
उत्तर- प्रग्रहण मत्स्यन - प्राकृतिक स्रोतों से मछलियों के पकड़ने को कैत्वर फिशरी कहते है | जैसे- नदी या समुद्र से 
मेरी कल्चर - समुद्री जीवों जैसे पंखयुक्त मछलियों (जैसे मुलेट) प्रान मस्सल, आएस्तर और समुद्री खर-पतवार को समुद्र जल में संवर्धन को मेरी कल्चर कहते है |
जल संवर्धन - मछली तथा जलीय भोजन का उत्पादन किसी स्रोत जैसे लैगून में करना एक्वा कल्चर कहलाता है |

7.समुद्री मत्स्यकी क्या है ? विवरण दें।
उत्तर- समुद्री मत्स्यकी कार्यक्रम के अन्तर्गत समुद्री मछलियों तथा कवचीय मछलियों का संवर्धन एवं उत्पादन किया जाता है। हमारे देश का लगभग 7500 किलोमीटर का समुद्रीतट समुद्री मछली संसाधन क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त सभी प्रकार के समुद्री वासस्थानों जैसे सतही जल, समुद्री गहराई आदि विस्तृत क्षेत्रों से मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। मृदुजल मिश्रित समुद्री जल जैसे नदी मुख या एस्चुरी तथा लैगून भी महत्वपूर्ण मछली संसाधन क्षेत्र हैं।
आधुनिक मत्स्यकी में समुद्री मछलियों के समूहों के रहने के स्थानों का निर्धारण सैटेलाइट तथा प्रतिध्वनि गंभीर मापी जैसे इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों द्वारा किया जाता है। फिर उन्हें विशेष प्रकार की नौकाओं तथा जालों की मदद से पकड़ा जाता है।
सार्डिन, एनकोभीज, सीयर फिश, टूना, बील फिश, मैक्रेल, बौंबे डक, सिल्वर बेलिज, हिलसा, पॉमफ्रेट, मुलेट, भेटकी तथा पर्लस्पॉट इत्यादि आर्थिक महत्व की समुद्री मछलियाँ हैं। इनका उपयोग भोजन में होता है। आलंकारिक या सजावटी समुद्री मछलियों की प्रमुख प्रजातियाँ क्लाउन फिश तथा डैमसेल फिश हैं। प्रमुख समुद्री कवचीय मछलियाँ जिनका उपयोग भोज्य पदार्थों के रूप में होता है, वे हैं—झींगा, महाचिंगट या लॉब्सटर, सीप, केकड़े इत्यादि। मुलेट, भेटकी, पर्लस्पॉट जैसी पखयुक्त मछलियों तथा झींगा जैसी कवचीय मछलियों का समुद्री जल में संवर्धन भी किया जाता है। संवर्धित मोतियों के उत्पादन के लिये ऑएस्टर का भी संवर्धन किया जाता है। समुद्री मछलियों का संवर्धन समुद्री संवर्धन कहलाता है। समुद्री मछलियों तथा मृदुजलीय मछलियों के संवर्धन की मूल तकनीक करीब-करीब एक ही प्रकार की होती हैं।  

8. समुद्री मत्स्यकी तथा अन्तःस्थली मत्स्यकी में अन्तर स्पष्ट करें। 
उत्तर- समुद्री मत्स्यकी 
(i) इसके अन्तर्गत समुद्री मछलियों तथा कवचीय मछलियों का संवर्धन एवं उत्पादन किया जाता है।
(ii) इसके अन्तर्गत समुद्री वासस्थानों में जैसे सतही जल, समुद्री गहरायी आदि विस्तृत क्षेत्रों से मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। 
(iii) समुद्री मत्स्यकी में हिलसा, सार्डी, सीयर फिश, बौंबे डक साथ ही साथ सजावटी समुद्री मछलियों की प्रमुख प्रजातियाँ ब्लाउन फिश तथा डैमसिल फिश पकड़ी जाती हैं।
अन्तःस्थली मत्स्यकी
(i) इसके अन्तर्गत मृदुजलीय मछलियों तथा कुछ प्रजाति के कवचीय मछलियों (जैसे मृदुजलीय झींगा) का संवर्धन एवं उत्पादन किया जाता है। 
(ii) इसके अन्तर्गत नदी, तालाब, पोखर, झील नहर, नाले के मदुजल स्रोतों से मछलियाँ पकड़ी जाती हैं।
(iii) अन्तः स्थली मत्स्यकी में रोहू-कतला मंगुर, सिंघी, गरई इत्यादि पकड़ी जाती है |

9.मिश्रित मछली संवर्धन का विवरण दें।
उत्तर- मदुजलीय मछली उत्पादन में वृद्धि करने के उद्देश्य से मिश्रित मछली संवर्धन विधि अपनानी चाहिये। मिश्रित मछली संवर्धन विधि में कई प्रजातियों की मछलियों का संवर्धन एक तालाब में एक ही समय में किया जाता है। ऐसे संवर्धन में इस बात का विशेष ध्यान रखना पड़ता है कि संवर्धन की जानेवाली प्रजातियों की आवश्यकतायें एक ही प्रकार की न हों। अगर उनकी आवश्यकतायें समान होंगी तो उनके बीच आपसी प्रतिस्पर्धा होने लगेगी जिससे उनका विकास ठीक नहीं हो पायेगा। इस बात को ध्यान में रखकर संवर्धन हेतु मछलियों की ऐसी प्रजातियों का चुनाव किया जाता है जो तालाब के विभिन्न गहरायी वाले क्षेत्रों में क्रियाशील रहती हैं। उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति उस क्षेत्र विशेष में ही हो जाता है। उदाहरण के लिये कतला, रोहू, मृगल, कॉमन कॉर्प तथा ग्रास कॉर्प का संवर्धन एक ही तालाब में एक ही समय सफलतापूर्वक किया जा सकता है। ये प्रजातियाँ तालाब के अलग-अलग गहरायी वाले क्षेत्रों से अपना आहार प्राप्त करती हैं। अतः आहार के लिये इनमें आपसी प्रतिस्पर्धा नहीं होती है तथा तालाब के सारे क्षेत्रों में उपलब्ध आहार का उपयोग हो जाता है। जैसे कतला तालाब के सतही जल से अपना भोजन लेती है। रोहू तालाब के मध्य क्षेत्र से तथा मृगल एवं कॉमन कार्प तालाब के तली से अपना भोजन प्राप्त करती है जबकि ग्रास कार्प जलीय खरपतवार खाती हैं। इस तरह भोजन के लिये इनमें आपसी संघर्ष नहीं होता है तथा सभी में सामान्य वृद्धि होती है।
मिश्रित मछली संवर्धन की सफलता तालाब की गहरायी, लंबाई-चौड़ाई तथा उसके जल एवं मृदा की गुणवत्ता पर भी निर्भर करता है।

10. मधुमक्खी पालन पर एक लेख लिखें।
उत्तर- आर्थिक लाभ के लिये मधुमक्खियों का पालन-पोषण तथा प्रबंधन मधुमक्खी पालन कहलाता है। मधुमक्खियों से हमें शहद या मधु तथा मधुमोम प्राप्त होते हैं। इन उत्पादों के अतिरिक्त परागण में मधुमक्खियों का बहुत बड़ा योगदान होता है।
मधुमक्खी एक संघचारी कीट है, अर्थात् ये समूह में एक उपनिवेश या कॉलनी बनाकर रहते हैं। इनका निवास मधुमक्खी का छत्ता कहलाता है। मधुमक्खी के एक छत्ते में तीन प्रकार की जातियाँ होती हैं। एक छत्ते में सामान्यतः एक रानी मधुमक्खी, कुछ नर मधुमक्खी या ड्रोन तथा कई कार्यकर्ता या सेवक होते हैं। इन जातियों में श्रम-विभाजन पाया जाता है। अर्थात् एक जाति या वर्ग किसी विशेष प्रकार के कार्य का ही सम्पादन करता है। रानी मधुमक्खी का काम मात्र अण्डे देना है। ड्रोन का कार्य रानी मधुमक्खी को अण्डे देने के लिये निषेचित करना है। इन कार्यों के अतिरिक्त छत्ते की बाकी सभी कार्यों का संपादन कार्यकर्ता या सेवक करते हैं। जैसे छत्ते का निर्माण करना एवं मरम्मत करना, भोजन के लिये फूलों से परागकण एवं मकरंद एकत्रित कर छत्ते में लाना, छत्ते की सफाई एवं सुरक्षा, बढ़ते लार्वा को भोजन कराना इत्यादि कार्यों का संपादन कार्यकर्ता ही करते हैं।
कार्यकर्ता द्वारा एकत्र किये गये परागकण एवं मकरंद ही इनके भोजन हैं। कार्यकर्ता के आहारनाल में परागकण तथा मकरंद में कई प्रकार के जीव रासायनिक परिवर्तन के बाद शहद या मधु का निर्माण होता है। यह इसी मधु को कार्यकर्ता छत्ते में संचित रखते हैं। मधुमक्खी से प्राप्त होने वाले मधु या शहद हमारे लिये एक अत्यंत पौष्टिक भोज्य पदार्थ है। शहद में खनिज लौह तथा कैल्सियम प्रचुर मात्रा में होता है। इसका उपयोग आयुर्वेदिक औषधि बनाने में किया जाता है। प्राकृतिक रोगाणुरोधक भी होता है।
मधुमक्खी के छत्ते का निर्माण कार्यकर्ताओं द्वारा स्रावित मोम से होता है। यह मोम मधुमोम कहलाता है। मधुमोम हमारे लिये भी कई प्रकार से उपयोगी होता है। इसका व्यवहार प्रसाधन सामग्री, मोमबत्ती, विभिन्न प्रकार के पॉलिश, दाढ़ी बनाने के उपयोग में आनेवाले क्रीम के उत्पादन में किया जाता है। 
सामान्यतः मधुमक्खियाँ अपने छत्ते पेड़ की डालियों के ऊपर या पुराने भवनों की छत एवं दीवारों के बीच के कोने जैसे सुरक्षित स्थानों पर बनाती हैं। परन्तु मधुमक्खी पालन के लिये कृत्रिम मधुमक्खी पेटिका का उपयोग किया जाता है। इन कृत्रिम पेटिकाओं को फुलवारी या बागानों में या अन्य खुले स्थानों में रखा जाता है। फुलवारी या बागान जहाँ से मधुमक्खियाँ परागकण तथा मकरंद एकत्र करती हैं चारागाइ कहलाता है। मधु की गुणवत्ता चारागाह में उपलब्ध फूलों की किस्मों पर निर्भर करता है। मधु का स्वाद भी फूलों के किस्मों पर ही निर्भर करता है। मधुमक्खी पालन एक अत्यंत कुशलता एवं सावधानी से किये जानेवाला कार्य है। ऐसे कृत्रिम मधुमक्खी पेटिकाओं से मधु निकालते समय एक विशेष प्रकार के वस्त्र तथा दस्तानों की आवश्यकता होती से है। इस प्रकार मधुमक्खी पालन आर्थिक लाभ को बढ़ावा देने वाला एक अच्छा व्यवसाय है, जो बहुत ही कुशलता एवं दक्षता से चलायी जाती है, अतः कहा जा सकता है कि मधुमक्खी पालन एक व्यवसायी के लिये एक अच्छा और लाभ कमाने वाला व्यवसाय है।

Class 9th Biology Chapter 1 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

Class 9th Biology Chapter 1 लघु उत्तरीय प्रश्न

Class 9th Biology Chapter 1 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Class 9th Biology Chapter 2 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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Class 9th Biology Chapter 3 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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Class 9th Biology Chapter 4 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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Class 9th Biology Chapter 5 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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Class 9th Biology Chapter 6 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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