1. पशुपालन की परिभाषा दें।
उत्तर- पशुपालन विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत पालतू पशुओं के भोजन, आवास, स्वास्थ्य, प्रजनन आदि पक्षों का अध्ययन किया जाता है।
2. उपयोगिता के आधार पर पालतू पशुओं के वर्गों का उल्लेख उदाहरण के साथ करें।
उत्तर- उपयोगिता के आधार पर पालतू पशुओं के वर्गों का वर्णन इस प्रकार है—(i) पशुधन (ii) कुक्कुट पालन (iii) मत्स्य पालन (iv) मधुमक्खी पालन।
(i) पशुधन- पशुधन का पालन-पोषण आर्थिक लाभ के लिये किया जाता है। जैसे—दूध, मांस, चमड़ा आदि के उत्पादन तथा आर्थिक विकास के लिये उनके श्रम का उपयोग करने के उद्देश्य से किया जाता है। उदाहरण—गाय, भैंस, बैल, साँढ़, बकरी इत्यादि।
(ii) कुक्कुट पालन- कुक्कुटों का पालन अण्डे तथा मांस के लिये किया जाता है। इनमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पायी जाती है। उदाहरण-मुर्गी, बत्तख, टर्की तथा हंस इत्यादि।
(iii) मत्स्य पालन- मछली का पालन पौष्टिक भोजन के अतिरिक्त तेल, उर्वरक जैसे अन्य उपयोगी पदार्थ के लिये किया जाता है। उदाहरण-मछली (रोहू, कतला, हिलसा तथा सार्डी), झींगा, केकड़ा, लॉब्सटर इत्यादि।
(iv) मधुमक्खी पालन- मधुमक्खी पालन आर्थिक लाभ के लिये किया जाता है जिससे शहद तथा मधुमोम प्राप्त होते हैं। उदाहरण-मधुमक्खी।
3. पशुपालन के अध्ययन के किन-किन क्षेत्रों में सुधार लाया जा सकता है ?
उत्तर- पशुपालन के अध्ययन में निम्नलिखित क्षेत्रों में सुधार लाया जा सकता है
(i) दुग्ध उत्पादन- दुधारू पशुओं की अत्यधिक संख्या होने के बावजूद हमारे देश में दूध का उत्पादन संतोषजनक नहीं है। हमारे देश में एक गाय औसतन करीब 200 kg दूध प्रति वर्ष देती है, जबकि यह औसत आस्ट्रेलिया और नीदरलैण्ड में 3500 kg तथा स्वीडन में 3000 kg प्रतिवर्ष है। अतः पशुपालन विज्ञान के अध्ययन से उन्नत नस्ल के अधिक दुधारू पशु प्रजनन के द्वारा प्राप्त किये जा सकते हैं। उनके रख-रखाव की उचित व्यवस्था की जा सकती है।
(ii) मास उत्पादन– जनसंख्या के अनुरूप भोजन की बढ़ती आवश्यकता की पूर्ति के लिये अधिक पुष्ट, मांसल तथा जल्दी बढ़नेवाली नस्ल की मुर्गियाँ प्रजनन के द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं। इसी प्रकार इच्छित गुण वाले, उन्नत नस्ल के भेड़, बकरी, सूअर आदि मांस-उत्पादक पशुओं को प्रजनन के द्वारा पशुविज्ञान के अध्ययन से प्राप्त किया जा सकता है। हमारे देश में प्रति व्यक्ति भोजन के - रूप में मांस की वार्षिक खपत सिर्फ 131 g है जबकि अमेरिका में यह 1318 kg है।
(iii) अण्डा उत्पादन– जनसंख्या के अनुरूप हमारे देश में अण्डे की खपत दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। बढ़ते माँगों की पूर्ति के लिये अण्डा देनेवाली उन्नत किस्म की मुर्गियाँ प्रजनन के द्वारा प्राप्त की जाती हैं। हमारे देश में भोजन के रूप में अण्डे की प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत मात्रा 6 है जबकि अमेरिका में यह 295 है।
(iv) मछली उत्पादन- हमारे देश में मृदु जल की मछलियों के उत्पादन बढ़ाने की संभावना बहुत अधिक है। इस विज्ञान के अध्ययन से अण्डे से बच्चे का सफल निष्कासन, मछलियों के - आकार में समुचित वृद्धि, उनका उचित रख-रखाव, रोगों से बचाव आदि संबंधित बातें सीखी जा सकती हैं।
(v) पशुओं के मल- मूत्र का समुचित उपयोग हमारे देश में गोबर का उपयोग सामान्यतः जलावन के रूप में किया जाता है। पशुओं के मल-मूत्र से बायोगैस का उत्पादन हो सकता है। इनका उपयोग खाद के रूप में भी किया जा सकता है।
(vi) कार्य- क्षमता में बढ़ोतरी- पश्चिमी देशों की अपेक्षा हमारे देश के पालतू पशुओं में कार्य करने की क्षमता बहुत कम है। पशुपालन के सिद्धांतों का सही अनुपालन कर ऐसे पालतू पशुओं की कार्यक्षमता बढ़ायी जा सकती है।
(vii) ऊन उत्पादन- अन्य ऊन उत्पादक देशों की तुलना में हमारा देश बहुत पीछे है। पशुपालन के सिद्धांतों और तकनीक का इस्तेमाल कर ऊन-उत्पादक भेड़ों, अंगोरा किस्म के खरगोश की नस्ल सुधार कर ऊन का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। ।
4. भारतीय गायों और भैंसों की प्रमुख प्रजातियाँ कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर- भारतीय गायों की प्रमुख प्रजातियाँ निम्नलिखित हैं-(i) साहीवाल (ii) गीर (iii) रेडसिंधी (iv) थर्पाकर (v) हरयानवी।
भारतीय भैंसों की प्रमुख प्रजातियाँ निम्नलिखित हैं—(i) नागपुरी, (ii) सुर्ती, (iii) नौली-रवि, (iv) मेहसाना, (v) जाफराबादी।
5.रुक्षांश क्या है ? ये पशुओं को कैसे प्राप्त होते हैं ?
उत्तर- रुक्षांश पशुधन के लिये एक आहार है। इसमें पोषक तत्व काफी कम पाये जाते हैं। परन्तु पेट भरने के लिये तथा आहारनाल के समुचित कार्य के लिये आहार में इनकी उचित मात्रा में होना आवश्यक है। ये पशुओं को भूसा, चोकर, चारा, जैसे ज्वार, बाजरा, रागि, मकई, फली, जैसे बरसीम, लूसर्न, लोबिया आदि से प्राप्त होते है |
6. हमारे देश में दूध का औसत उत्पादन कम होने का क्या कारण है ?
उत्तर- हमारे देश में दूध का औसत उत्पादन बहुत कम है। इसका मुख्य कारण दुधारू पशु को दिये जानेवाला निम्न स्तर का आहार है। दुधारू पशु के आहार में हरा चारा का होना अत्यंत आवश्यक है। हरा चारा में विटामिन A की बहुलता रहती है। इसमें एक रंजित पदार्थ कैरोटिन होता है। यही कैरोटिन आँत और यकृत में पहुँचकर विटामिन A में परिवर्तित हो जाता है जिससे आवश्यकतानुसार शरीर को पौष्टिक तत्व मिलता रहता है। इसके अतिरिक्त पर्याप्त मात्रा में हरे चारे तथा पेयजल का न होना, निम्नस्तरीय देशी नस्ल के दुधारू पशु का जमावड़ा न होना तथा दुधारू पशुओं का न होना, दूध के औसत उत्पादन को और देशों की तुलना में हमारे देशों की तुलना में बहुत कम है।
7.दुधारू पशुओं को रोगाणुओं से होनेवाले प्रमुख रोगों तथा उनके लक्षणों का उल्लेख करें।
उत्तर- दुधारू पशुओं को रोगाणुओं से होने वाले प्रमुख रोग हैं—(i) खुर एवं मुँह के रोग (ii) चेचक (iii) क्षयरोग (iv) एंथ्रेक्स (v) रिंगवर्म।
उपर्युक्त रोगों के लक्षण इस प्रकार हैं
(i) खून एवं मुँह के रोग वायरस द्वारा फैलते हैं। इसके अन्तर्गत खुर एवं मुंह में छाले, अधिक लार का बनना, भूख न होना, सुस्ती, उच्च ज्वर के साथ कैंपकपी इत्यादि लक्षण होते हैं।
(ii) चेचक भी वायरस द्वारा दुधारू पशुओं में होते हैं। इसके अन्तर्गत शरीर पर छोटे-छोटे दाने तथा उच्च ज्वर इसके प्रमुख लक्षण हैं। -
(iii) क्षयरोग बैक्टीरिया द्वारा दुधारू पशुओं में होते हैं। इसके अन्तर्गत धन, हाथ, फेफड़ा संक्रमित होते हैं। साथ-ही-साथ ज्वर इत्यादि भी दुधारू पशुओं में इसके लक्षण होते हैं।
(iv) एंथ्रेक्स भी बैक्टीरिया द्वारा दुधारू पशुओं में होने वाले रोग हैं। इसके अन्तर्गत पशुओं जाता है, बुखार रहता है तथा दूध में कमी हो जाती है।
(v) रिंगवर्म कवक द्वारा दुधारू पशुओं में फैलते हैं। इसके प्रमुख लक्षणों में दुधारू पशुओं में खुजली का पाया जाना है।
8. कृत्रिम वीर्य सेचन के लाभ क्या हैं ?
उत्तर- कृत्रिम वीर्य सेवन के लाभ निम्नलिखित हैं
(i) इस विधि से अधिक उत्पादन वाले उच्च नस्लों के पशुओं (जैसे—दुधारू गाय-भैंस, मुर्गियाँ) का विकास होता है।
(ii) पशुओं के प्रजनन की यह एक सस्ती विधि है। जैसे एक साँढ़ के वीर्य से करीब 3000 गायों को निषेचित किया जा सकता है।
(iii) परिरक्षित वर्ग को सुगमता से दूसरे सुदूर स्थानों पर ले जाया जा सकता है। स्वास्थ्यकर तथा भरोसे योग्य विधि है।
(iv) यह ज्यादा स्वास्थ्यकर तथा भरोसे योग्य विधि है |
(v) इस विधि के द्वारा उन्नत नस्ल का परिरक्षित वीर्य सालोंभर हर जगह उपलब्ध हो सकते हैं।
(vi) इसके द्वारा विदेशों से उन्नत नस्लों के वीर्य आयात कर देशी किस्मों के पशुओं के नस्ल का सुधार किया जाता है।
9. अण्डा देनेवाली मुर्गियों का आहार कैसा होना चाहिये?
उत्तर- अण्डा देनेवाली मुर्गियों के आहार में खनिज का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। शरीर और अण्डे के वर्धन तथा अण्डे की खोल की बनावट के लिये कई प्रकार की खनिजों की जरूरत है। इनमें कैल्सियम और फॉस्फोरस प्रमुख हैं। खनिज की पूर्ति के लिये, बोनमील, सीत या पत्थर का चूर्ण तथा नमक इनके भोजन में दिया जाना चाहिये।
10. हमारे देश में अधिक दूध देनेवाली संकर के तीन गायों का नाम लिखें। इन्हें किन-किन नस्लों के संकरण से विकसित किया गया है ?
उत्तर- संकर नस्ल की तीन गायें करण स्विस, करन फ्राइस तथा फ्रिसवाल हैं। करन स्विस को भारतीय नुस्ल के साहीवाल तथा स्वीट्जरलैंड की नस्ल ब्राउन स्विस से विकसित किया गया है।
करन फ्राइस को भारतीय नस्ल थर्पाकर तथा हॉलैंड की नस्ल की प्रजाति हॉल्सटाइन-फ्रीसिऑन से विकसित किया गया है।
फ्रिसवाल को भारतीय नस्ल के साहीवाल तथा हॉलैंड की नस्ल हॉल्सटाइन-फ्रीसिऑन से विकसित किया गया है।
11.हमारे देश में विकसित की गयी संकर नस्ल की मुर्गियाँ कौन-कौन-सी हैं ? इनकी विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर- हमारे देश में विकसित की गयी संकर नस्ल की, ज्यादा उत्पाद देनेवाली मुर्गियाँ ILS-82, HH-260 तथा B-77 हैं। इनमें से ILS-82 तथा B-77 तकरीबन 200 अण्डे प्रतिवर्ष तथा HH-260 प्रतिवर्ष 260 तक अण्डे देती है।
विशेषतायें- संकर नस्ल की मुर्गियों में केवल अण्डजनन क्षमता ही अधिक नहीं होती है, बल्कि इनकी खुराक भी कम होती है। एक सामान्य देशी नस्ल की मुर्गी 12 अण्डा देने के लिये जहाँ 6 kg भोजन खाती है। वहाँ ऐसी संकर नस्ल वाली मुर्गी मात्र 2 kg भोजन करती है। 1 kg मांस देनेवाली देशी मुर्गी इस अवस्था तक की वृद्धि के लिये जहाँ 5-6 kg तक भोजन करती है वहाँ ठीक ऐसी ही अवस्था तक की वृद्धि के लिये संकर नस्ल की उन्नत किस्म की मुर्गी मात्र 2-3 kg भोजन करती है। संकर नस्ल वाली मुर्गियाँ शीघ्र परिपक्व हो जाती हैं तथा इनकी मृत्यु-दर भी कम है।
हैं।
12. लेअर तथा ब्रौलर मुर्गियों की क्या विशेषतायें हैं ?
उत्तर- लेअर मुर्गियाँ ज्यादा अण्डे देनेवाली होती हैं, जबकि ब्रौलर मुर्गियों से अधिक मांस प्राप्त होते है |
13. मिश्रित मछली संवर्धन क्या है ?
उत्तर- मदुजलीय मछली उत्पादन में वृद्धि करने के उद्देश्य से मिश्रित मछली संवर्धन विधि अपनाई जानी चाहिये। मिश्रित मछली संवर्धन विधि में कई प्रजातियों की मछलियों का संवर्धन एक तालाब में एक ही समय किया जाता है।
14. व्यावसायिक दृष्टिकोण से मधुमक्खियों की चार प्रजातियाँ कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर- व्यावसायिक स्तर पर मधु-उत्पादक के लिये मधुमक्खियों की चार प्रजातियाँ निम्नलिखित हैं
(i) सामान्य भारतीय मधुमक्खी-एपिस सेरना इंडिका
(ii) शैव मधुमक्ख-एपिस डोरसेटा
(iii) लिटिल मधुमक्खी-एपिस फ्लोरी
(iv) इटली मधुमक्खी-एपिस मेलीफेरा।
15. कार्यकर्ता या सेवक मधुमक्खियाँ शहद का निर्माण कैसे करती हैं,
उत्तर- कार्यकर्ता द्वारा एकत्र किये गये परागकण तथा मकरंद ही इनके भोजन हैं। कार्यकर्ता के आहारनाल में परागकण तथा मकरंद में कई प्रकार के जीव रासायनिक परिवर्तन के बाद शहद या मधु का निर्माण होता है। इसी मधु को कार्यकर्ता छत्ते में संचित रखते हैं।
16. मधुमोम हमारे लिये किस प्रकार उपयोगी हैं ?
उत्तर- मधुमोम हमारे लिये कई प्रकार से उपयोगी होता है। जैसे इसका व्यवहार प्रसाधन सामग्री, मोमबत्ती, विभिन्न प्रकार के पॉलिश, दाढी बनाने के उपयोग में आनेवाले क्रीम के उत्पादन में किया जाता है।
Class 9th Biology Chapter 1 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
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