Bharati Bhawan
1. पौधों में सरल ऊत्तक जटिल से किस प्रकार भिन्न है, उदाहरण सहित लिखें |
उत्तर :- सरल ऊत्तक :- एक ही प्रकार की कोशिकाओं के बने होते है | उदाहरण - मृदुतक, श्लेशोतक एवं द्रिधोतक ऊत्तक
जटिल उत्तक :- ये एक से अधिक प्रकार की कोशिकाओं के बने होते है | दारु तथा फ्लोएम
2. स्थिति के आधार पर विभाज्योताकी ऊत्तक के विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें|
उत्तर :- (i) शीर्षस्थ विभाज्योतकी उत्तक :- यह तने, जड़ v शाखा के अग्र भाग पर उपस्थित होते है |
(ii) अंतर्वेशी विभाज्योतकी उत्तक :- ये पत्तियों के आधार एकबिजपत्री पत्तियों में जैसे घास, गाँठो के ऊपर (घास के पर्वो के आधार के निचे) और गाँठो के निचे (पर्वो के ऊपर वाले भाग के ऊपर) पाए जाते है |
(iii) पाश्र्विय विभाज्योतकी उत्तक :- यह संवहन बंडलों में पाया जाता है तथा कैंबियम के नाम से जाना जाता है | ऐसे विबज्योताकी जो अधिकतर द्विबीजपत्री पौधों में पाए जाते है, को कारक कैंबियम कहते है | ये पौधों की मोटाई बढ़ने में सहायता करते है |
3. मृदुतक की संरचना एवं कार्यों का वर्णन करें |
उत्तर :- मृदुतक कोशिकाओं जीवित, गोलाकार, अंडाकार, बहुभुजी या अनियमित आकार की होती है | कोशिका में सघन कोशिकाद्रव्य एवं एक केन्द्रक पाया जता है | इनकी कोशिकाभित्ति पतली एवं सेल्युलोज की बनी होती है | इस प्रकार की कोशिकाओं के बीच रिक्त या अंतरकोशिकीय स्थान रहता है | कोशिकाओं के बीच एक बड़ी रासधानी रहती है | यह नए तने, मूल एवं पत्तियों के एपिडर्मिस और कार्टेक्स में पाया जाता है |
मृदुतक के कार्य - मृदुतक के निम्नलखित कार्य है
(i) एपिडर्मिस के रु में यह पौधों का सरक्षण करता है |
(ii) पौधे के हरे भागों में खासकर पत्तियों में यह भोजन का निर्माण करता है |
(iii) यह ऊत्तक संचित क्षेत्र में भोजन का संचय करता है | उत्सर्जित पदार्थ, जैसे- गोंद, रेजिन, टैनिन आदि को भी संचित करता है |
(iv) यह ऊत्तक भोजन के पार्श्व चालन में सहायक होता है |
(v) इनमे पाए जानेवाले अन्त्रकोशिकीय स्थान गैसीय विनिमय में सहायक होते है |
4. स्थुलाकोंन ऊत्तक एवं मृदुतक में क्या अंतर है ? स्थुलाकोंन ऊत्तक के कार्यों का वर्णन करें |
उत्तर :- स्थुलाकोंन ऊत्तक :- (i) यह पौधों में पर्याप्त मात्रा में उपस्थित होता है |
(ii) इसमे अन्त्रकिशिकीय स्थान भी है और नहीं भी |
मृदुतक ऊत्तक :- (i) यह बाह्य त्वचा से निचे उपस्थित होता है |
(ii) इसमे अन्त्रकोशिकीय स्थान नहीं होता है |
स्थुलाकोंन ऊत्तक के कार्य -
(i) यह पौधों को यांत्रिक सहायता प्रदान करता है |
(ii) जब इनमे हरितलवक या क्लोरोप्लास्त पाया जाता है तब ये भोजन का निर्माण करता है |
5. कोशिकाभित्ति के आधार पर पैरेनकाइम, कौलेनाकाइमा एवं स्कलेरेनकाइम के बीच अंतर को स्पष्ट करें |
उत्तर :- पैरेनकाइम :- (i) यह गोल, महीन कोशिका भित्ति वाली कोशिकाओं का बना होता है जिनमे केन्द्रक विद्धमान होता है तथा उनके बीच अन्त्रकोशिकीय स्थान पाए जाते है | ये सजीव होती है |
(ii) कोशिका भित्ति पेक्टिन तथा सेल्युलोज की बनी होती है |
कौलेनाकाइमा :- (i) यह बहुभुजी कोशिकाओं का बना होता है | उनके बीच अंतर्कोशिकीय स्थान नहीं होते है | ये सजीव होते है |
(ii) कोशिका भित्ति पेक्टिन एवं सेल्युलोज की बनी होती है |
स्कलेरेनकाइम :- (i) यह मोटी भित्ति वाली कोशिकाओं का बना होता है जो आकार में लम्बी अथवा अनियमित होती है | ये कोशिकाएँ मृत होती है |
(ii) इनकी कोशिका भित्ति लिग्निन की बनी होती है |
6. पत्तियों के एपिडर्मिस पर पाए जानेवाली रंध्र की संरचना तथा कार्य का विवरण दें |
उतर :- पौधों की पत्ती की बाह्य त्वचा में अनेक छिद्र होते है, इन्हें रंध्र या स्टोमेटा कहते है | स्टोमेटा वृक्क के आकार वाली दो रक्षी कोशिकाओं से घिरी रहती है | इन छिद्रों द्वारा वायुमंडल से गैसों तथा जलवाष्प का आदान-प्रदान होता है | इन्ही छिद्रों द्वारा वाश्पौत्सर्जन की क्रिया संपन्न होती है |
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रंध्र के मुख्य कार्य -
(i) वाष्पोउत्सर्जन :- वाश्पौत्सर्जन के दौरान जल वाष्प भी रंध्रों द्वारा ही बाहर निकलती है |
(ii) गैसों का आदान-प्रदान - प्रकाश संश्लेषण एवं श्वष्ण के दौरान वातावरण से गैसों का विनिमय रंध्रो द्वारा ही होता है |
7. कॉर्क कोशिका की रचना एवं कार्यों को स्पष्ट करें |
उत्तर :- समय के साथ-साथ जड़ तथा ताना जैसे-जैसे पुराने होते जाते है, इनके बाहरी ऊत्तक विभाजित होकर कॉर्क कोशिका या छाल का निर्माण करते है |इनकी कोशिकाएँ मृत होती है एवं इनके बीचोबीच स्थान में अंतर्कोशिकीय स्थान नहीं होता है | ये कोशिकाएं त्रिज्यक रूप में व्यवस्थित रहती है | इन कोशिकाओं की दीवार मोटी होती है, इसका कारण इसपर सुबेरिन नामक कार्बनिक पदार्थ का जमा होना है | इसलिए इनकी भित्ति से जल एवं गैस नहीं जा सकती है, इन कोशिकाओं में जीवद्रव्य नहीं होता है |
कॉर्क के कार्य -
(i) यह सुरक्षात्मक कवच का काम कराती है |
(ii) इसे बोतल का कॉर्क एवं खेल के सामान बनाने में इस्तेमाल किया जाता है |
(iii) यह विद्धुत्रोधी एव्न्न उष्मारोधी का कार्य भी करती है |
8. जाइलम ऊत्तक की रचना एवं कार्यों का वर्णन करें |
उत्तर :- (i) वाहिनिकाएं :- इनकी कोशिका लम्बी, जिवाद्र्व्यहिन्न, दोनों सिरों पर नुकीली तथा मृत होती है | कोशिकाभित्ति मोटी एवं स्थुलित होती है | वाहिनिकाएं संवहनी पौधे की प्राथमिक तथा द्वितीयक जाइलम दोनों में ही पायी जाती है |
(ii) वाहिकाएं :- इनकी कोशिकाएँ मृत एवं लम्बी नली के समान होती है | कभी-कभी स्थुलित भित्तियाँ विभिन्न तरह से मोटी होकर वलयाकार, सर्पिलाकार, सीढ़ीनुमा, गरती, जालिकारुपी वाहिकाएं बनाती है | ये वाहिकाएं एन्जियोस्पर्म पौधों के प्राथमिक एवं द्वितीयक जाइलम में पायी जाती है |
(iii) जाइलम तंतु :- ये लंबे, शंकुरुपी तथा स्थुलित भित्तिवाले मृत कोशिका है और प्राय काष्ठिय द्विबीजपत्री पौधों में पाए जाते है |
(iv) जाइलम मिदुतक :- इसकी कोशिकाएँ प्राय पैरेनाकैमेट्स एवं जीवित होती है |
जाइलम ऊत्तक के कार्य -
(i) ये पौधों को यांत्रिक सहायता प्रदान करती है |
(ii) ये जड़ से जल एवं खनिज लवण को पत्ती तक पहुंचाती है |
(iii) यह भोजन संग्रह का कार्य करता है |
9. फ्लोएम ऊतक क्या है ? यह कहाँ पाया जाता है ? इसके कार्यों का वर्णन करें|
उत्तर- फ्लोएम एक जटिल एवं जीवित ऊतक है। जाइलम की तरह फ्लोएम भी पौधे की जड़, ना एवं पत्तियों में पाया जाता है।
फ्लोएम के कार्य
(i) यह पत्ती से पौधों के विभिन्न भागों में खाद्य पदार्थ का संवहन करता है।
(ii) यह पौधों को यांत्रिक सहायता प्रदान करता है।
(iii) यह नलिका द्वारा तैयार भोजन पत्तियों से संचय अंग और संचय अंग से पौधों के वृद्धि क्षेत्र में जाता है, जहाँ इसकी आवश्यकता पड़ती है।
10. ऊतक क्या है ? जन्तु ऊतक कितने प्रकार के होते हैं ? किसी एक का कार्यसहित वर्णन करें।
उत्तर- ऊतक ऐसी कोशिकाओं के समूह हैं जो उत्पत्ति, सरचना तथा कार्य के दृष्टिकोण से एक प्रकार की होती हैं। विभिन्न प्रकार के ऊतक मिलकर एक सुव्यवस्थित अंग का निर्माण करते हैं।
जन्तु-ऊतक चार प्रकार के होते हैं जो निम्न हैं
(i) उपकला या एपिथीलियमी ऊतक
(ii) संयोजी ऊतक
(iii) पेशी ऊतक
(iv) तंत्रिका ऊतक
(i) उपकला या एपिथीलियमी उत्तक—एपिथीलियमी ऊतक अंगों की बाहरी पतली परत तथा आन्तरिक अंगों की भीतरी स्तर का निर्माण करती है। ऐसे ऊतकों में अन्तर कोशिकीय स्थान अर्थात् कोशिकाओं के बीच के स्थान नहीं होते हैं। इनकी कोशिकायें एक-दूसरे से करीब-करीब सही होती हैं। ऐसे ऊतक अंगों की रक्षा करते हैं। ये विसरण, स्रवण तथा अवशोषण में सहायता करते हैं।
एपिथीलियमी ऊतक के कार्य- (a) त्वचा की बाह्य परत का निर्माण करना। (b) कोमल अंगों की बाहरी परत बनाकर उनकी रक्षा करना। (c) पोषक पदार्थों के अवशोषण में सहायता करना। (d) व्यर्थ पदार्थों के निष्कासन में सहायता करना।
11. एपिथीलियमी ऊतक कहाँ पाया जाता है ? इसकी विशेषताओं और कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर- एपिथीलियमी ऊतक जन्तु ऊतक में पाया जाता है। ये अंगों की बाहरी पतली तरल तथा आन्तरिक अंगों की भीतरी स्तर का निर्माण करती हैं। ऐसे ऊतक में अन्तरकोशिकीय स्थान अर्थात् कोशिकाओं के बीच के स्थान नहीं होते हैं। इनकी कोशिकायें एक-दूसरे से करीब-करीब सटी होती हैं। ऐसे ऊतक अंगों की रक्षा करते हैं। ये विसरण, स्रवण तथा अवशोषण में सहायता करते हैं। कोशिकाओं का भित्ति के रूप में पाये जाने के कारण इसे बहुत अच्छा रक्षक ऊतक माना जाता है। हमारी त्वचा, मुँह का बाह्य आवरण, फेफड़े इत्यादि सभी एपिथीलियम ऊतक के बने होते हैं।
एपिथीलियमी ऊतक की विशेषताएँ–(i) ये एक विशेष उप-प्रकार में समान कोशिकाओं ये के बने होते हैं। (ii) कोशिकाओं के बीच अन्तरकोशिकीय अवकाश नहीं होते हैं।
एपिथीलियमी ऊतक के कार्य—(a) त्वचा की बाह्य परत का निर्माण करना।
(b) कोमल अंगों की बाहरी परत बनाकर उनकी रक्षा करना।
(c) पोषक पदार्थों के अवशोषण में सहायता करना।
(d) व्यर्थ पदार्थों के निष्कासन में सहायता करना।
12. संयोजी ऊतक क्या है ? किसी एक प्रकार के संयोजी ऊतक का कार्यसहित वर्णन करें|
उत्तर- वह ऊतक जो एक अंग को दूसरे अंग से या एक ऊतक को दूसरे ऊतक से जोड़ता है, उसे संयोजी ऊतक कहते हैं। संयोजी ऊतक की कोशिकायें एक गाढ़े तरल पदार्थ में डूबी होती हैं, उसे मैट्रिक्स कहते हैं। मैट्रिक्स उपास्थि की तरह ठोस या फिर रक्त की तरह पतला भी हो सकता है। इस ऊतक में कोशिकाओं की संख्या कम होती है तथा अन्तर-कोशिकीय पदार्थ अधिक होता है। संयोजी ऊतक आंतरिक अंगों के रिक्त स्थानों में भरी रहती है। इसके अतिरिक्त ये रक्त नलिकाओं एवं तंत्रिका के चारों ओर तथा अस्थिमज्जा (Bone Marrow) में पायी जाती है।
संयोजी ऊतक तीन प्रकार के होते हैं(i) वास्तविक संयोजी ऊतक (ii) कंकाल ऊतक (iii) तरल ऊतक या संवहन ऊतक।
वास्तविक संयोजी ऊतक का कार्यसहित वर्णन इस प्रकार है
वास्तविक संयोजी ऊतक - इसके अन्तर्गत निम्नलिखित ऊतक है
एरियोलर ऊतक :- ये बहुतायत में मिलनेवाले ऊतक हैं। इस ऊतक के आधारद्रव्य या मैट्रिक्स में कई प्रकार की कोशिकाओं तथा दो प्रकार के तन्तु (श्वेत एवं पीला) पाये जाते हैं। कोशिकायें निम्नलिखित प्रकार की होती हैं
(a) फाइब्रोब्लास्ट—फाइब्रोब्लास्ट चपटी, शाखीय होती हैं तथा ये तंतु बनाती हैं।
(b) हिस्टोसाइट्स :- हिस्टोसाइट्स चपटी, अनियमित आकार की केंद्रकयुक्त होती हैं। ये जीवाणुओं का भक्षण करती हैं।
(c) प्लाज्मा कोशिकायें :- प्लाज्मा कोशिकायें गोलाकार या अण्डाकार होती हैं। ये एंटीबॉडी का निर्माण करती हैं।
(d) मास्ट कोशिकायें :- मास्ट कोशिकायें केंद्रकयुक्त गोलाकार या अण्डाकार होती हैं। ये रुधिर वाहिनियों को फैलाने के लिये हिस्टामिन (प्रोटीन), रुधिर के एंटीकोएमुलेट के लिए हिपैरिन (कार्बोहाइड्रेट) तथा रुधिर वाहिनियों को सिकुड़ने के लिये सीरोटोनिन नामक प्रोटीन स्रावित करती है।
(e) इस ऊतक में विभिन्न प्रकार के श्वेत कण, जैसे लिम्फोसाइट, इओसिनोफिल, न्यूट्रोफिल भी पाये जाते हैं।
इन कोशिकाओं के अतिरिक्त मैट्रिक्स में दो प्रकार के तन्तु पाये जाते हैं
(i) श्वेत तन्तु :- ये अशाखीय तथा अलचीले होते हैं। ये कॉलेजन नामक रसायन से बने होते हैं।
(ii) पीला तन्तु :- ये शाखीय या अशाखीय तथा लचीले होते हैं। ये एलास्टिन नामक पदार्थ से बनते हैं।
एरियोलर ऊतक के कार्य
(i) यह त्वचा एवं मांसपेशियों अथवा दो मांसपेशियों को जोड़ने का कार्य करता है।
(ii) यह विभिन्न आन्तरिक रचनाओं को ढीले रूप से बाँधकर उन्हें अपने स्थान पर रखने में मदद करता है। ।
(iii) लिम्फोसाइट का संबंध एंटीबॉडी-संश्लेषण से है।
13. रक्त या रुधिर की संरचना का वर्णन करें।
उत्तर :- रक्त या रुधिर एक संवाहन अथवा संयोजी ऊतक है। इनका अन्तरकोशिकीय पदार्थ तरल होता है, जिसमें कोशिकायें बिखरी रहती हैं। इसलिए इन्हें तरल ऊतक कहते हैं। रक्त या रुधिर के तरल भाग को प्लाज्मा कहते हैं। इसमें रुधिर कणिकायें तैरती रहती हैं।
प्लाज्मा—यह हल्के पीले रंग का चिपचिपा और थोड़ा क्षारीय द्रव्य है, जो आयतन के हिसाब से सारे रुधिर का 55% भाग है। शेष 45% में रुधिर कणिकायें होते हैं। प्लाज्मा में 90% भाग जल है, एवं शेष 20% में प्रोटीन तथा कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थ होते हैं।
रुधिर कणिकायें :- ये तीन प्रकार की होती हैं जो इस प्रकार हैं(i) लाल रुधिर कणिकायें (Red blood cells or RBC or Erythrocytes) (ii) श्वेत रुधिर कणिकायें (White blood cells or WBC or leucocytes) (iii) प्लेटलेट्स (Platelets)
(i) लाल रुधिर कणिकायें - मेढ़क में बड़ी तथा अण्डाकार होती हैं एवं प्रत्येक में एक केंद्रक होता है। स्तनी (मनुष्य, खरगोश आदि) में लाल रुधिरकण बाइकॉनकेव या उभयावतल होता है, पर सतह गोलाकार होती है एवं इसमें केंद्रक नहीं होता है। ये लाल अस्थिमज्जा में बनती हैं।
लाल रुधिरकण में एक प्रोटीन रंजक हीमोग्लोबिन होता है, जिसके कारण इन कणों का रंग लाल होता है। हीमोग्लोबिन एक प्रोटीन ग्लोबिन (96%) एवं एक रंजक हीम (4-5%) से बना होता है। हीम अणु के केंद्र में लोहा (Fe) होता है, जिसमें ऑक्सीजन को बाँधने और मुक्त करने की क्षमता होती है।
(ii) श्वेत रुधिर कणिकायें :- ये अनियमित आकृति की केंद्रकयुक्त और हीमोग्लोबिन रहित होती है। इनकी संख्या लाल रुधिरकणों की अपेक्षा बहुत कम होती है। कुछ सूक्ष्मकणों की उपस्थिति के आधार पर इन्हें दो प्रकार का माना जाता है, जिन श्वेत रुधिरकणिकाओं में कण मौजूद हैं, उन्हें ग्रेनुलोसाइट कहते हैं, जैसे न्यूट्रोफिल, इओसिनोफिल और बेसोफिल। इनका केंद्रक पालिवत होता है।
कुछ श्वेत रुधिर कणिकाओं के कोशिकाद्रव्य में कण नहीं पाये जाते हैं इन्हें एग्रेनुलोसाइट कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं—लिम्फोसाइड एवं मोनोसाइट। लिम्फोसाइट एंटीबॉडी के निर्माण में भाग लेती है। अन्य श्वेत रुधिरकणिकायें जीवाणुओं को नष्ट करने का प्रधान कार्य करती है।
(iii) रुधिर प्लेटलेट्स या थ्रोम्बोसाइट्स :- मेढ़क के रुधिर में छोटी-छोटी तर्कु आकार की केंद्रकयुक्त कोशिकायें पायी जाती हैं, इन्हें थ्रोम्बोसाइट कहते हैं। स्तनियों में ये सूक्ष्म, रंगहीन, केंद्रकहीन कुछ गोलाकार, टिकिये के समान होते हैं, इन्हें प्लेटलेट्स कहते हैं। रक्त के थका बनने (Blood Clotting) में मदद करना इनका प्रधान कार्य है।
14. पेशी ऊतक क्या है ? अरेखित तथा रेखित पेशी ऊतकों की रचना एवं कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर:- पेशी ऊतक की कोशिकायें लंबी होती हैं। इन कोशिकाओं के भीतर पाये जाने वाला तरल सार्कोप्लाज्मा कहलाता है। सार्कोप्लाज्या में केंद्रक होता है। जन्तुओं के शारीरिक अंगों में गति पेशी ऊतक के कारण ही होती है।
भौतिकी और कार्यिकी के आधार पर पेशी ऊतक तीन प्रकार की होती है(i) अरेखिक या अनैच्छिक (ii) रेखित या ऐच्छिक (iii) हृदपेशी।
अरेखित और रेखित पेशी ऊतकों का वर्णन इस प्रकार है
अरेखित पेशी - ये पेशियाँ नेत्र की आइरिस (iris) में, वृषण और उसकी नलिकाओं में, मूत्रवाहिनियों और मूत्राशय में तथा रक्तवाहिनियों में पायी जाती हैं। आहारनाल की भित्ति में ये अनुदैर्ध्य और गोलाकार पेशी स्तरों के रूप में दिखायी देती है, अरेखित पेशी या कोशिका तर्कु की आकृति की होती है, जिसमें प्रचुर मात्रा में कोशिकाद्रव्य और एक केंद्रक पाया जाता है। उचित प्रकार के अभिरंजन से इसके अन्दर अनेक पेशी तंतुक देखे जा सकते हैं। अरेखित पेशी का संकुचन जंतु के इच्छाहीन नहीं है। इसीलिये इसे अनैच्छिक पेशी कहते हैं। तंतु पर पट्टियाँ नहीं होती हैं, अतः इसे अरेखिक पेशी तंतु भी कहते हैं। आहारनाल के एक भाग से दूसरे भाग में भोजन का प्रवाह इस पेशी के संकुचन एवं प्रसार के कारण होता रहता है।
रेखित पेशी—ये पेशियाँ जंतु के कंकाल से जुटी रहती हैं और इनमें ऐच्छिक गति होती है। इसलिये इन्हें कंकाल पेशी या ऐच्छिक पेशी भी कहते हैं। यह पेशी अनेक बहुकेंद्रक तंतुओं द्वारा बनती है। प्रत्येक तंतु या कोशिका एक पतली झिल्ली सारकोलेमा से घिरी रहती है। इसके अन्दर के कोशिका द्रव्य को सार्कोप्लाज्म कहते हैं, जिसमें अनेक मायोफाइब्रिल होते हैं। मायोफाइब्रिल पर एकांतर रूप से गाढ़ी और हल्की पट्टियाँ होती हैं। यह पेशी शरीर के बाहु, पैर, गर्दन आदि में पायी जाती है एवं इसका भार शरीर के भार का प्रायः 50% होता है, रेखित पेशियाँ तंत्रिका द्वारा उत्तेजित होती हैं।
15. रक्त एवं लसीका के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर- रक्त या रुधिर के दो मुख्य कार्य हैं—परिवहन एवं ताप नियंत्रण।
(i) रुधिर द्वारा पची भोजन सामग्री (ग्लूकोस, एमीनो अम्ल आदि), अन्तःस्रावी एवं उत्सर्जी पदार्थों गैसों (ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड) आदि का परिवहन विभिन्न अंगों में होता है।
(ii) यकृत और पेशियों में जो ताप उत्पन्न होता है, वह रुधिर द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाया जाता है जिससे शरीर का तापमान नियंत्रित होता है।
(iii) श्वेताणु जीवाणुओं तथा अन्य हानिकारक पदार्थों को नष्ट कर देते हैं।
(iv) प्लेटलेट्स रुधिर को जमाने में मदद करता है।
लसीका के कार्य
(i) लसीका में मौजूद लिम्फोसाइट्स रोगाणुओं जैसे जीवाणुओं का भक्षण कर उनको नष्ट कर संक्रमण से हमारी सुरक्षा करते हैं। -
(ii) यह पोषक पदार्थों का परिवहन करता है।
(iii) लसीका शरीर में असंक्राम्य तंत्र का निर्माण करता है।
16. तंत्रिका ऊतक की इकाई क्या है ? इसका स्वच्छ एवं नामांकित चिक बनायें। (वर्णन की आवश्यकता नहीं है)
उत्तर- तंत्रिका ऊतक की इकाई न्यूरॉन या तंत्रिका कोशिका है।Bharati Bhawan
17. न्यूरॉन या तंत्रिका कोशिका की संरचना का चित्र सहित करें।
उत्तर- तंत्रिका तंत्र की कोशिकाओं को न्यूरॉन कहते हैं। न्यूरॉन तंत्रिका ऊतक की इकाई है। न्यूरॉन के निम्नलिखित भाग होते हैं
(i) एक कोशिकाय या साइटन (cell body or cyton), (ii) कोशिका प्रवर्ध या डेंड्रन (dendron)। डेंड्रन पुनः शाखित होकर पतले-पतले डेंड्राइट्स बनाता है, जो आवेग को साइटन में लाता है एवं (iii) एक लंबा तंत्रिका तंतु जिसे ऐक्सॉन (axon) कहते हैं। ऐक्सॉन आवेग को साइटन से आगे की ओर ले जाता है।Bharati Bhawan
Class 9th Biology Chapter 1 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
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