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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. मोनेरा की विशेषताओं को लिखें।उत्तर- मोनेरा की विशेषतायें या लक्षण निम्नलिखित हैं
(i) इनमें केंद्रककाय (Nucleoid) पाया जाता है। सुस्पष्ट केंद्रक नहीं होता है।
(ii) कुछ में कोशिकाभित्ति होती है।
(iii) ये स्वयंपोषी/परपोषी होते हैं। कुछ विषमपोषी भी।
(iv) उदाहरण-नीले-हरे शैवाल (Blue-Green Algae), सायनोबैक्टीरिया तथा माइकोप्लाज्मा आदि।
2 शैवाल कवक से किस प्रकार भिन्न हैं? दोनों का एक-एक-एक उदाहरण दें |
उत्तर :- कवक :- (i) कवक यूकैरियोटिक जीव है लेकिन प्रकाश-संश्लेषण में असमर्थ है |
(ii) कवक बहुकोशिकीय होते है |
(iii) उदाहरण - मशरूम
शैवाल :- (i) शैवाल पादप जगत का सबसे सरल जलीय जीव है जो प्रकाश-संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करता है |
(ii) कुछ शैवाल एककोशिकीय होते है, जैसे- क्लेमाईडोमोनस जबकि अन्य बहुकोशिकीय धागे की तरह संरचना वाले होते है | जैसे - स्पाईरोगाइरा |
(iii) उदाहरण - ऐगारे |
3. क्रिप्टोगेम्स एवं फैनरोगेम्स के विभेदों को स्पस्ट करे |
उत्तर :- क्रिप्टोगेम्स :- (i) क्रिप्टोगेम्स के पौधे बीजरहित होते है |
(ii) इसमें वास्तविक जड़, तना तथा पत्ती नहीं होती है |
(iii) इनमे सामान्यत संवहन तंत्र नहीं रहता है, लेकिन उच्च कोटि के क्रिप्टोगेम्समें संवहन तंत्र उपस्थित रहता है |
(iv) इनको तीन विभागों में बाँटा गया है -
(a) तैलोफाईटा (b) ब्रायोफाईटा (c) टेरीडोफाईटा
फैनरोगेम्स :- (i) इनमे उच्च कोटि की बीजरहित पौधों को सम्मिलित किया गया है |
(ii) इनमे वास्तविक जड़, तना और पत्ती होते है |
(iii) इनमे संवहन तंत्र उपस्थित रहता है |
(iv) इनको दो विभागों में बाँटा गया है -
(a) जिम्नोस्पर्म या अनावृत बीजी (नाग्नाबिजी) (b) एंजियोस्पर्म या आवृतबीजी |
4. जिम्नोस्पर्म के मुख्य लक्षणों को लिखों |
उत्तर- जिम्नोस्पर्म के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं
(i) इनमें फूल का अभाव होता है।
(ii) ये पौधे बहुवर्षी, सदाबहार (Evergreen) एवं काष्ठीय (woody) होते हैं।
(iii) इन पौधों में जड़ें, तना एवं पत्तियाँ विकसित होती हैं।
(iv) इनका मुख्य उदाहरण साइकस (Cycas) एवं पाइनस (Pinus) के पौधे हैं। इनकी जड़ों में शैवाल सहजीवी की तरह रहते हैं।
(v) साइकस ताड़ जैसा (Palm-like) मरुद्भिदी पौधा है जिसमें तना लंबा, मोटा तथा अशाखित होता है। इसके सिरे पर अनेक हरी पत्तियाँ गोलाकार ढंग से एक मुकुट जैसा रचना बनाती हैं। इसमें नर एवं मादा पौधे अलग-अलग होते हैं।
(vi) इन पौधों के बीज फूलों के भीतर नहीं बनते इसलिये बीजों के बाहर फल का कोई आवरण भी नहीं होता है। यही कारण है कि ऐसे बीजों को नग्नबीजी भी कहा जाता है। बीज आवरण से ढंका नहीं होता, इसलिये इन्हें अनावृतबीजी भी कहते हैं।
5. द्विबीजपत्री तथा एकबीजपत्री पौधों को किन आधारों पर विभाजित किया जाता है ?
उत्तर- बीजों में बीजपत्र की संख्या के आधार पर इसे दो भागों में बाँटा गया है
एकबीजपत्री या मोनोकॉटिलोडस- बीजों में केवल एक ही बीजपत्र मौजूद रहता है। इसीलिये इन्हें एकबीजपत्री कहते हैं। इसमें पतली पत्ती पर शिराविन्यास समानान्तर होता है। इनके संवहन बंडल (जाइलम एवं फ्लोएम) फैले हुये रहते हैं। इनमें रेशेदार जड़तंत्र होता है। उदाहरणधान, बाँस, घास, गेहूँ, नारियल, ईख, तार इत्यादि।
द्विबीजपत्री बा डाइकॉटिलीडन्स- द्विबीजपत्री बीजों में दो बीजपत्र मौजूद होते हैं। इसलिये इन्हें द्विबीजपत्री भी कहते हैं। इनकी पत्तियों में जालिकावत शिराविन्यास रहता है। इनमें पाया जानेवाला संवहन बण्डल वलयाकार रूप में रहता है। इनका जड़तंत्र अधिमूल एवं इसकी शाखाओं के साथ फैला रहता है। उदाहरण—आम, बरगद, कटहल, लीची आदि के वृक्षा
6. जंतु जगत के प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर- जन्तु जगत की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित
(i) ये बहुकोशिकीय (Multicellular) तथा यूकरियोटी (Eukaryote) होते हैं।
(ii) जन्तु परपोषी या विषमपोषी होते हैं अर्थात् क्लोरोफिल अनुपस्थित रहने के कारण जन्तु अपने भोजन का संश्लेषण स्वयं नहीं करते हैं। बल्कि भोजन के लिये ये अन्य जीवों (पौधों एवं जन्तुओं) पर निर्भर होते हैं। आवश्यकता से अधिक मात्रा में ग्रहण किये गये भोज्य पदार्थ जैसे कार्बोहाइड्रेट का संचय ये ग्लाइकोजन के रूप में करते हैं।
(iii) इनका शरीर द्विस्तरीय या डिप्लोब्लास्टिक अथवा त्रिस्तरीय या ट्रिप्लोब्लास्टिक होता है। जन्तुओं का शरीर जब दो जनन-स्तरों एक्टोडर्म तथा एंडोडर्म का बना होता है तब वे द्विस्तरीय परन्तु वैसे जन्तु जिनके शरीर के निर्माण में इन दो जनन-स्तरों के अतिरिक्त तीसरा जनन स्तर मिसोडर्म भी सम्मिलित होता है, ट्रिप्लोब्लास्टिक कहलाते हैं।
(iv) जन्तु प्रायः चलायमान होते हैं। जन्तु कहलाते हैं।
(v) शरीर का आकार निम्नलिखित प्रकार का हो सकता है--(a) द्विपार्श्व सममित (b) अरीय सममित (c) असममित।
(vi) वास्तविक देहगुहा या सीलोम मौजूद हो भी सकता है या नहीं भी। शरीर की दीवार और आहारनाल के बीच की जगह को देहगुहा कहते हैं। जब इस देहगुहा के चारों ओर भ्रूण के मेसोडर्म की एक परत होती है तब'देहगुहा को सीलोम कहते हैं।
(vii) बाह्यकंकाल अथवा अंत:कंकाल का होना या नहीं होना।
(viii) उपांगों का पाया जाना या नहीं पाया जाना। उपांग संधित अथवा असंधित हो सकते हैं।
(ix) नोटोकॉर्ड एवं आहारनाल का पाया जाना अथवा नहीं पाया जाना।
(x) उच्च कोटि के जन्तुओं में तंत्रिका तंत्र तथा पेशीतंत्र पाये जाते हैं।
7. वर्ग एफिबिया के विशेषताओं का उदाहरण सहित वर्णन करें ये उभयचर क्यों कहलाते हैं?
उत्तर- वर्ग एफिबिया की विशेषतायें ये हैं
(i) यह अनियततापी या शीतरक्तीय जन्तु है।
(ii) इनकी त्वचा ग्रंथिमय होती है। त्वचा पर शल्क नहीं होते हैं।
(iii) श्वसन त्वचा गिल्स और फेफड़े द्वारा होता है।
(iv) अंत:कंकाल अस्थि का बना होता है।
(v) हृदय में तीन कक्ष या वेश्म दो अलिंद एवं एक निलय होते हैं। लाल रुधिरकण केंद्रकयुक्त होता है।
(vi) मूलाशय और मूत्रजननवाहिनी क्लोएका में खुलते हैं।
(vii) बाह्य निषेचन होता है।
(viii) परिवर्धन के समय टैडपोल लार्वा बनता है जो कायांतरण के पश्चात शिशु बनता है। उदाहरण-मेढ़क, टोड, धात्री दादुर, हायला, नेक्ट्यूरस, सैलामेंडर इत्यादि। ये उभयचर इसलिये कहलाते हैं कि ये जल और स्थल दोनों पर निवास करने में सक्षम होते हैं।
8. वर्ग मैमेलिया के लक्षणों का वर्णन करो इस वर्ग के कुछ जन्तुओं के नाम लिखें
उत्तर- वर्ग मैमेलिया के लक्षण निम्नलिखित हैं-
(i) ये नियततापि होते है |
(ii) त्वचा बाल या रोम से ढँका रहता है |
(iii) बाह्य कर्ण उपस्थित है।
(iv) इनमें स्तन पाये जाते हैं। स्तन में नवजात के पोषण के लिए दुग्ध ग्रंथियाँ पायी जाती है |
(v) श्वसन फेफड़े द्वारा होता है।
(vi) हृदय में चार कोष्ठ होते है | लाल रुधिराकन केन्द्र्काहीन होता है |
(vii) इनमें अन्त:निषेचन होता है। मादा शिशुओं को जन्म देती है। हालाँकि स्तनी का एक वर्ग अण्डे भी देते हैं (जैसे इकिडना) तथा एक वर्ग अविकसित शिशु को जन्म देते हैं (जैसे कंगारू)। कंगारू में अविकसित शिशु प्रारंभ में उदर के नीचे स्थित मार्क्सपिया नामक थैली में रहते हैं जहाँ ये दुग्ध ग्रंथि से पोषण प्राप्त करते हैं।
इस वर्ग के कुछ जन्तु इस प्रकार हैं—बतखचोंचा, कंगारू, चमगादड़, गिलहरी, खरहा, चूहा, , कुत्ता, मैकाक, शेर, हाथी, मनुष्य इत्यादि।
9. वर्ग:वाज की विशेषताओं का उल्लेख करो इनके शरीर के कौन-से अंग पंखों में रूपांतरित होते हैं।
उत्तर- एवीज की विशेषतायें इस प्रकार हैं
(i) इस वर्ग के अन्तर्गत पक्षी आते हैं।
(ii) ये नियततापी जन्तु हैं अर्थात इनके शरीर के तापक्रम में वातावरण के तापक्रम के अनुसार परिवर्तन नहीं होता है। ये उड्डयनशील जन्तु हैं।
(iii) शरीर परों से ढंका रहता है।
(iv) जबड़ों में दाँत नहीं होते हैं।
(v) श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है।
(vi) हृदय चार वेश्मों में बँटा होता है।
(vii) कंकाल स्पंजी तथा हल्का होता है।
(viii) ये अण्डज होते हैं अर्थात् अण्डे देनेवाले जन्तु हैं। इनके अण्डे कठोर कवच से घिरे होते हैं। एवीज के अग्रपाद पंखों में रूपान्तरित हो जाते हैं। जो जुड़ने में मदद करते हैं।
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