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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. जनजातीय समाज एवं धर्म की विवेचना करें।
उत्तर- भारत में जनजातियों की बहुत बड़ी संख्या है । ये भारत के विभिन्न भागों में बसी हैं—अरुणाचल प्रदेश, असम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, झारखंड, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान इत्यादि । भारत में सबसे बड़ी झील जनजाति है । दूसरी जनजाति गोंड है। भारत की तीसरी बड़ी जनजाति संथाल है। अन्य जनजातियों में मुंडा, ओरॉव, हो, संथाल है। अन्य जनजातियों में मुंडा, ओरॉव, हो, गोंड, चेरो, कोल, पहाड़ियाँ तथा मील का उल्लेख किया जा सकता है । यद्यपि इन सभी जनजातियों की अपनी-अपनी भाषा, संस्कृति एवं धार्मिक प्रथाएँ हैं । आदिवासी पर्व त्योहार धूम-धाम से मनाते थे । उरॉव जतरा (मेला) का उल्लासपूर्वक आयोजन करते थे । जनजातीय समाज पर गाँव के मुखिया, जिसे संथाल माँझी, ओरॉव पाहन, मुंडा मुंडा तथा पहाडिया सरदार कहते हैं, का यथेष्ट प्रभाव था। आदिवासी बुरी आत्माओं और भूत-प्रेतों से भयभीत होकर बैगा अथवा ओझा की शरण लेते थे। 'डाइनकुरी' (नजर लगाना) का अंधविश्वास भी जनजातियों में व्यापक था । संथालों का मुख्य पर्व सोहराई, ओरॉवों का करमा तथा मुंडाओं कर सरहुल है जो चैत्र शुल्क तृतीया तिथि को मनाया जाता है।
2. जनजातियों की प्रशासनिक-राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था का परिचय दें।
उत्तर- आरंभ में आदिवासियों की राजनीतिक-प्रशासनिक व्यवस्था सहज थी। शासन का विकेन्द्रीकरण किया गया था। प्रशासन की आधारशिला पंचायत थी। इसका मुख्य कार्य आपसी विवादों को सुलझाना था। पंचायत पूरे गाँव की व्यवस्था देखती थी। पंचायत पर गाँव के मुखिया का नियंत्रण रहता था । प्रत्येक जनजाति की अपनी पंचायत होती थी। संथालों में इसे परमाणिक कहा जाता था। कोल्हन क्षेत्र में 30-35 गाँवों के संयुक्त प्रधान को मानकी कहा जाता था। अनेक गाँवों को मिलाकर (5-30) परहा नामक प्रशासनिक इकाई का गठन किया जाता था। इसका प्रधान परहा राजा होता था। इस प्रकार, जनजातियों की प्रारंभिक प्रशासनिक-राजनीतिक संरचना गाँव, पंचायत और मुखिया पर टिकी हुई थी। .
आर्थिक स्थिति- आदिवासियों की परंपरागत अर्थव्यवस्था आखेट और अस्थायी कृषि पर आश्रित थी। वे जंगलों में शिकार करते, कंद-मूल, शहद इत्यादि एकत्रित करते थे। झूम खेती का प्रचलन था। बाद में जंगलों को साफ कर स्थाई खेती की प्रथा आरंभ हुई। साफ कर स्थायी खेती की प्रथा आरंभ हुई। आरंभ में जमीन पर संपूर्ण गाँव या समुदाय का स्वामित्व था। परंतु, धीरे-धीरे भूमि पर निजी अधिकार की अवधारणा उत्पन्न हुई । ज्वार, बाजरा, धान की खेती मुख्य रूप से होती थी । गाय, बैल, बकरी, मुर्गी, बत्तख आदि पाले जाते थे। अनेक प्रकार के दस्तकारी अथवा कुटीर उद्योग का भी प्रचलन था जैसे पत्ता, बाँस के समान बनाना, रस्सी बुनना इत्यादि । आदिवासी हाथी दाँत, मसालों रबर लाह और तसर का काम करते थे एवं इनका व्यापार भी करते थे। असुर जनजाति लोहा गलाने का भी काम करती थी। मुद्रा के स्थान पर वस्तु-विनिमय एवं कौड़ियों का प्रचलन था। गैर-आदिवासी क्षेत्रों के संपर्क में आने से अर्थव्यवस्था में परिवर्तन आया। बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के विकास और शहरीकरण की प्रक्रिया के कारण जनजातीय अर्थव्यवस्था परिवर्तित हो गई।
3. औपनिवेशिक सरकार ने भारतीय वन्य जीवन के प्रति नई नीति क्यों अपनाई?
उत्तर-नई नीति के निम्नलिखित कारण थे
(i) औपनिवेशिक सरकार वनों को अनुत्पादक मानना- औपनिवेशिक शासक जंगलों को काटकर कृषि का विस्तार करना चाहते थे जिससे बढ़ती जनसंख्या को आवास, कृषि और अनाज की सुविधा उपलब्ध कराई जा सके । कृषि के विस्तार के साथ-साथ भू-राजस्व की वृद्धि की भी संभावना थी। इससे सरकार की आर्थिक सिथति सुदृढ़ होती । फलतः 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध और 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में बड़े पैमाने पर जंगलों को काटकर कृषियोग्य भूमि का विस्तार किया गया।
(ii) ब्रिटिश साम्राज्य के आवश्यकताओं को पूरा करना- औपनिवेशिक काल में वननाशन का दूसरा महत्त्वपूर्ण कारण था ब्रिटिश साम्राज्य की आवश्यकताओं को पूरा करना। ब्रिटिश सरकार अपने यहाँ की अनाज की कमी की पूर्ति भारतीय कृषि का विस्तार कम करना चाहती थी। साथ ही वह वाणिज्यिक फसलों के उत्पादन जैसे जूट, गन्ना, कपास को बढ़ावा देना चाहती थी जिनकी यूरोप में बहुत अधिक माँग थी।
(iii) ब्रिटिश जहाजरानी के लिए लकड़ी की आवश्यकता- भारत में वननाशन का एक प्रमुख कारण यह था कि 19वीं शताब्दी के आरंभ तक इंगलैंड में बलूत पेड़ के जंगल तेजी से घटते जा रहे थे। इस पेड़ की लकड़ी का उपयोग जहाजरानी में किया जाता था। इसकी आपूर्ति कम होने से इंगलैंड की शाही नौ सेना के आपूर्ति किलए भीषण समस्या उठ खड़ी हुई। भारत के जंगलों में ऐसे पर्याप्त लंबे, सीधे तने वाले कठोर और मजबूत वृक्ष थे जैसे सागवान, सखुआ इत्यादि जिनका उपयोग जहाजों के निर्माण में हो सकता था। फलतः, भारत में जंगलों को काटकर उसकी लकड़ी इंगलैंड को निर्यात की जाने लगी।
(iv) भारत में रेल का विस्तार- भारत में भी औपनिवेशिक शासकों को लकड़ी की आवश्यकता थी। 19वीं शताब्दी के पाँचवें दशक में भारत में रेल का आरंभ किया गया। रेल इंजन बिछाने के लिए लकड़ी के पटरों की आवश्यकता थी। अतः जैसे-जैसे रेल का विकास होता गया वैसे-वैसे जंगलों की कटाई में भी तीव्रता आई। साथ ही जिस मार्ग से रेल लाइन निकाली -
गई उसके इर्द-गिर्द के जंगल भी काट दिए गए।
(v) जंगलों के स्थान पर बागवानी को बढ़ावा देने की नीति- भारत में औपनिवेशिक काल में बड़े स्तर पर जंगलों की कटाई का एक अन्य कारण था। अँगरेजों ने अपने व्यापारिक लाभ के लिए प्राकृतिक जंगलों को काटकर वहाँ बगान लगवाने की नीति अपनाई । इन बगानों में रबर, चाय और कॉफी के उत्पादन को बढ़ावा दिया गया । इनकी यूरोप में बहुत अधिक माँग थी। अँगरेज व्यापारी इनका निर्यात कर धन कमाना चाहते थे। इसलिए, औपनिवेशिक सरकार । ने भारत में वनों के विस्तार के स्थान पर बागवानी को बढ़ावा देने की नीति अपनायी ।
4. तिलका मांझी के जीवन एवं क्रियाकलापों पर प्रकाश डालें।
उत्तर- तिलका मांझी का जन्म 1750 में सुल्तानगंज (भागलपुर, बिहार) के तिलकपुर महीसी ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम साद्रा मुर्मु था। तिलका माँझी बचपन से ही कुशाग्र में बुद्धि के थे। उन्हें तीर चलाने में महारत हासिल थी। वे आदिवासियों की दयनीय स्थिति देखकर खिल्लन रहा करते थे। वे कंपनी शासन और जमींदारी शोषण के प्रबल विरोधी थे। उनके विचारों से प्रभावित होकर अनेक युवक इनके साथ हो लिए । इन लोगों ने सरकार-जमींदार विरोधी एक संगठन बना लिया एवं तिलका को अपना नेता एवं नायक चुन लिया। राजमहल पाकुड़, गोड्डा एवं दुमका के निकटवर्ती क्षेत्र में बड़ी संख्या में पहाड़िया जनजाति के लोग थे|
1770 में बंगाल-बिहार में भीषण दुर्भिक्ष पड़ा जिससे पहाड़िया भी बुरी तरह प्रभावित हुए। इसके बावजूद जबरदस्ती मालगुजारी और जमीन बेदखली की प्रक्रिया चलती रही। इससे जमींदारों और लगान वसूलने वालों के विरुद्ध प्रतिक्रया बढी । तिलका माँझी और उनका संगठन आगे बढ़ा । जमींदारी अत्याचारों का विरोध किया जाने लगा। इससे जमींदार के मुंशी और लठैतों के अत्याचार करने के लिए दंडित किया जाने लगा। इससे जमींदारों में भय व्याप्त गया। दूसरी ओर तिलका माँझी की लोकप्रियता बढ़ती गई । उसने तिलकपुर को अपनी गतिविधियों का केन्द्र बनाकर सशस्त्र संघर्ष आरंभ कर दिया। इसको दबाने के लिए 1778 में ऑगस्टस वलीवलैंड, जो 'झिलमीली साहब' के नाम से विख्यात थे, को भागलपुर जिला का कलक्टर नियुक्त किया गया। 13 जनवरी, 1784 को तिलका सड़क के किनारे एक ताड़ के वृक्ष पर चढ़कर तीर-धुनष के साथ छिप गया । इसा बीच जब क्लीवलैंड घोड़ा पर सवार होकर उसके सामने से गुजरा तो तिलका ने तीर मारकर उस पायल कर दिया। वह घोड़ा से गिर पड़ा तथा उसकी तत्काल मृत्यु हो गई।
एक आदिवासी सरदार जौराह ने धोखे से तिलका को गिरफ्तार कर भागलपुर के अधिकारियों को सौंप दिया। उसे भगालपुर के बीच चौराहा पर बरगद के पेड़ पर टाँगकर सरेआम फाँसी दे दी गई। तिलका माँझी की शहादत 1855-56 के संथाल-हुल का प्रेरणास्रोत बन गया।
5. कोल विद्रोह के कारण एवं इसके स्वरूप का वर्णन करें।
उत्तर- कोल विद्रोह (1831-32) आदिवासियों का जन आंदोलन था। इस आंदोलन का आरंभ ‘दिकू' के विरुद्ध हुआ। परंतु आगे चलकर यह राज-विरोधी हो गया । यह आंदोलन भी छोटानागपुर में हुआ। इसमें मुंडा, उरॉव एवं अन्य जनजातियों ने भाग लिया।
कारण-- बंगाल में अँगरेजी शासन की स्थापना के साथ ही कोलो के सामाजिक-आर्थिक जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन आने लगा । स्थायी बंदोबस्ती के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में नवोदित जमींदारों (मानकी या महतो) एवं महाजनों का एक सशक्त वर्ग अपने कर्मचारियों एवं गुमाश्तों -के साथ आकर बसने लगा । इन सब लोगों ने कोलों का शारीरिक एवं आर्थिक शोषण आरंभ किया। बाहरी लोगों ने आदिवासियों की स्त्रियों की इज्जत लूटनी भी आरंभ कर दी। पुलिस और न्यायालय भी दिकुओं का ही साथ देती थी। फलतः, कोल आक्रोशित होकर विद्रोह के लिए कटिबद्ध हो गए।
आन्दोलन का स्वरूप- 1831 में सिंहभूम के सोनपुर परगना से कोलों का विद्रोह आरंभ हुआ । बगावत का तात्कालिक कारण था कुछ कोल महिलाओं का अपहरण । कोलों ने विद्रोह आरंभ कर दिया । दिकुओं की हत्या की गई, उनके घरों में आग लगा दी गई एवं उनकी संपत्ति लूट ली गई । दिकुओं को आदिवासी क्षेत्रों से बाहर वापस जाने को कहा गया । समूचा आदिवासी क्षेत्र अशांत हो गया हत्या एवं लूट-मार का आतंक व्याप्त गया। सिंहभूम, राँची, मानभूम और पलाम में भी यह विद्रोह फैल गया। आदिवासियों ने अँगरेजों को भी अपने क्रोध का निशाना बनाया। सरकारी खजाना लूटा गया तथा आग लगाकर थाना-कचहरी नष्ट कर दिए गए । पुलिस-दारोगा एवं चौकीदार की हत्या की गई तथा बचे हुए कर्मचारियों को भगाने पर मजबूर किया गया। सिखों एवं मुसलमानों के बागान एवं दुकान नष्ट कर दिए गए । बनियों और महाजनों क भी यही हाल हुआ । ब्राह्मण, राजपूत जैसे उच्चवर्गीय हिंदू, जुलाहे, बनिए, कर्मी, दुसाध, तेली एवं सिख कोलों के आतंक के सबसे बड़े शिकार बने । लोहार, बढ़ई, ग्वाला आदि कोलों के निर्देश पर विद्रोह में भाग लिया।
6. संथाल विद्रोह पर एक निबंध लिखें।
उत्तर- कोलों के बाद संथालों का व्यापक विद्रोह हुआ। अँगरेजी सरकार के विरुद्ध 1857 के पूर्व होनेवाला यह सबसे बड़ा विद्रोह था। इस विद्रोह का प्रसार छोटानागपुर, सिंहभूम (झारखंड), संथाल परगना (बिहार) तथा वीरभूम और बाँकूड़ा (बंगाल) जिलों तक था। संथाल इसे हुए अथवा मुक्ति संग्राम मानते थे।
कारण-- इनका जीवन जंगल और जमीन पर टिका हुआ था। स्थायी बंदोबस्ती के बाद संथालों के हाथ से उनकी जमीन निकलती गई । इनके साथ ही जमींदारों, महाजनों, साहूकारों और सरकारी कर्मचारियों का प्रभाव बढ़ने लगा । संथाल इनके शोषण और अत्याचार के शिकार बन गए। महाजन दिए गए कर्ज पर "50-500% सूद" वसूलते थे। इलाके में जब रेलवे लाइन का विस्तार होने लगा तब ठीकेदारों ने भी उनका शारीरिक और आर्थिक शोषण किया । ऐसी स्थिति में संथालों के समक्ष संघर्ष करने के अतिरिक्त अन्य कोई रास्ता नहीं था।
विद्रोह का स्वरूप एवं नेतृत्व-1855 तक संथालों की सहनशक्ति जवाब दे गई। चार संथाल भाइयों सिद्धू, कान्हू, चाँद और भैरव ने संथालों को संगठित किया। जुलाई, 1855 में संथालों का विद्रोह विधिवत् आरंभ हो गया । विलियम हंटर के अनुसार 'करीब बीस हजार संथाल इस संघर्ष में मारे गए ।' गाँव के गाँव जलाकर राख कर दिए गए । सिद्धू और कान्हू गिरफ्तार कर मार डाले गए । बचे हुए अन्य संथाल नेताओं का भी यही हाल हुआ । नेताओं की गिरफ्तारी से संथालों का मनोबल टूट गया तथा विद्रोह विफल हो गया ।
संथाल विद्रोह का महत्व-संथाल-हुल विफल होकर भी निरर्थक नहीं हुआ। इसके दूरगामी परिणाम हुए । सरकार ने समझ लिया कि संथालों की उचित शिकायतों पर ध्यान दिए बिना उन पर शासन करना दुष्कर था। इसलिए सरकार ने कुछ सुधार कार्य किए।
7. के जीवन एवं उनके कार्यों की समीक्षा करें।
उत्तर- बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर, 1875 को तमाड़ के निकट उलिहातू गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम सुगना मुंडा था। उनका बचपन गरीबी एवं कष्ट में बीता तथापि उन्होंने शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने चाईबासा के मिशन स्कूल से शिक्षा प्राप्त की । वे शिकार करने, बाँसुरी बजाने तथा निशानेबाजी में भी प्रवीण थे। कुछ समय के लिए ईसाई धर्म भी अपनाया, परंतु बाद में इसे छोड़ दिया। उन्होंने यज्ञोपवीत धारण किया, शाकाहारी बन गये और वैष्णव में धर्म अपनाया । वे नियमित रूप से कीर्तन करते और लोगों को उपदेश देते । वे मुडाओं में प्रचलित अंधविश्वासों को दूर करना चाहते थे। उन्होंने एकेश्वरवाद पर बल दिया एवं सिंगबोंगा को सर्वोच्च देवता मानकर उसकी पूजा करने को कहा । वे आदिवासियों में प्रचलित सामाजिक बुराइयों जैसे मधपान, पशुबलि आदि का अंत करना चाहते थे। उन्होंने शुद्ध आचरण एवं हृदय की शुद्धता पर बल दिया। उन्हें सम्मान से धरती आबा कहा जाने लगा। प्रशासन ने 1895 में धोखे से बिरसा और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया। दो वर्ष जेल की सजा हुई । मुंडाओं में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई।
नवंबर, 1897 में महारानी विक्टोरिया के शासन के हीरक जयंती के अवसर पर बिरसा एवं उनके साथियों को जेल से रिहा कर दिया गया। जेल से रिहा होकर बिरसा अब मुंडाओं को सशस्त्र क्रांति के लिए संगठित करने लगे। उन्होंने घोषणा की कि 'महारानी राज्य समाप्त हो गया है और हमारा राज्य आरंभ हो गया। (अबुआ राज एटेजाना महारानी राज टुंडू)।
25 सितंबर, 1899 को क्रिसमस के दिन बिरसा मुंडा का व्यापक और हिंसक विद्रोह आरंभ हुआ। सबसे पहले ईसाई धर्म में परिवर्तित मुंडाओं, ईसाई मिशनरियों के विरुद्ध असंतोष बढ़ गया। पुलिस मुंडाओं के क्रोध का विशेष शिकार बनी । राँची और इसके निकटवर्ती क्षेत्र तथा संपूर्ण छोटानागपुर विद्रोह के प्रभाव में आ गया। ।
सरकार ने बिरसा को पकड़ने के लिए 500 रुपए का इनाम घोषित किया गया । इनाम के लालच में कुछ स्थानीय लोगों ने बिरसा को 3 मार्च, 1990 को पकड़वा दिया। उन्हें गिरफ्तार कर राँची जेल में रखा गया। मुकदमा के दौरान ही 9 जून, 1900 को जेल में बिरसा की हैजा से मृत्यु हो गई।
1902 से 1910 के बीच राँची जिला की पैमाइश एवं बंदोवस्ती की व्यवस्था की गई। गुमला और खूटी अनुमंडलों की स्थापना की गई। 1908 में छोटानागपुर काश्तकारी कानून पारित किया गया। मुंडाओं के खूटकट्टी अधिकार को, जिनकी रक्षा के लिए बिरसा ने संघर्ष किया था, सरकार ने मान लिया । मुंडाओं को बगारी से भी मुक्ति मिल गई । इससे मुंडाओं की स्थिति में सुधार हुआ । मुंडा आज भी बिरसा को अपना भगवान मानते हैं। घर-घर में उनकी प्रशंसा में लोकगीत गाए जाते हैं।
Hello My Dear, ये पोस्ट आपको कैसा लगा कृपया अवश्य बताइए और साथ में आपको क्या चाहिए वो बताइए ताकि मैं आपके लिए कुछ कर सकूँ धन्यवाद |