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Class 12th Sociology Short Questions Answers | Bihar Board Class XII Exam 2022 | BSEB Inter 2nd Year Most VVI Question

Class 12th Sociology Short Questions Answers  Bihar Board Class XII Exam 2022  BSEB Inter 2nd Year Most VVI Question

प्रश्न 1 से 52 तक के प्रश्नों के उत्तर के लिए क्लिक करे 

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प्रशन 53:-- पूर्वाग्रह की विवेचना कीजिए।

उत्तर:-- पूर्वाग्रह से अभिप्राय उन पूर्व कल्पित धारणाओं या विश्वासों से है जो हम एक दूसरे समूह के प्रति अपने मन में रखते हैं। पूर्वाग्रह का शाब्दिक अर्थ “पूर्व निर्णय” है अर्थात पर्याप्त परमाणों या साक्ष्यों के अभाव में किसी विश्वास, धारणा या सुनी सुनाई बातों के आधार पर पहले से ही उसके बारे में विचार बना लेना कि वह ऐसा होगा या ऐसा नहीं होगा। पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यक्ति के पूर्व कल्पित विचार या निर्णय प्राय: सुनी सुनाई बातों पर आधारित होते हैं जिनकी कोई ठोस बुनियाद नहीं होती है और विरोधी साक्ष्य देने पर भी पूर्वाग्रहों को आसानी से बदला नहीं जा सकता। पूर्वाग्रह जन्मजात नहीं होते, किंतु इन्हें अनुवांशिक रूप से प्राप्त करने की क्षमताएं अवश्य होती हैं। यह सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार की हो सकती है, किंतु पूर्वाग्रह शब्द का प्रयोग अधिकांशतः नकारात्मक या विरोधात्मक स्थितियों के लिए किया जाता है। ऐसी रूढढ़धारनाएं होती है जिनकी वास्तविकता का परिक्षण नहीं किया जा सकता है।

प्रशन 54:-- जातिवाद का क्या अर्थ है?

उत्तर:-- जातिवाद एक उग्र भावना है जो एक जाति के सदस्यों को बिना किसी कारण के अपनी जाति के लोगों का पक्ष लेने के लिए प्रेरित करती है? चाहे। इससे अन्य समूहों के हितों में कितनी ही बाधा क्यों न पहुंचती हो? वर्तमान जीवन में हमारा समाज केवल चार वर्णों में विभाजित नहीं है ,बल्कि प्रत्येक वर्ण सैकड़ों जातियों और उप जातियों में विभाजित है। इन सभी उप जातियों के बीच भी ऊंच-नीच का संस्करण विद्यमान है तथा प्रत्येक उपजाति अपने स्वार्थ को सर्वोच्च महत्व देने का प्रयत्न करती है उस जन्मार्ग संक्षेप में अपनी जाति के प्रति पक्षपात की यही संकीर्ण भावना जातिवाद है

प्रशन 55:-- जातिवाद सामाजिक एकता में बाधक कैसे हैं?

उत्तर:--जातिवाद हमारे समाज की एक बहुत बड़ी बुराई है । प्रारंभ में वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर बनाई गई थी,परंतु धीरे-धीरे यह जाति प्रथा में बदलती गई जो जन्म के आधार पर मानी जाने लगी। व्यक्ति का समाजिक अस्तित्व पेशे का  चुनाव , शादी विवाह, खानपान और जीवन के बहुत से अन्य प्रश्न जाति प्रथा के नियंत्रण में आ गए। जातिवाद की भावना हमारे संविधान द्वारा वर्णित लक्ष्यों (जैसे--देश की एकता और अखंडता) की अवहेलना करती है। जाति वैमनस्य के कारण सामाजिक वातावरण दूषित होता है। जातिवाद के कारण ही संकीर्ण निष्ठाअओं को प्रोत्साहन मिलता है।

जातिवाद सामाजिक एकीकरण के रास्ते में अनेक गंभीर बाधाएं उत्पन्न की है। यद्यपि संवैधानिक रूप से जाती, धर्म और वंश के बंधन दूर कर दिए गए हैं, लेकिन जातिवादी इन विभेदों को आज भी जीवित बनाए हुए हैं।

प्रशन 56:--धर्मनिरपेक्षीकरण क्या है?

उत्तर:-- धर्मनिरपेक्षीकरण का एक अर्थ राजनीतिक है और दूसरा समाजशास्त्रीय। राजनीतिक आधार पर धर्मनिरपेक्षीकरण वह विशेषता है जिसके अनुसार राज्य द्वारा सभी धर्मों को समानता के दृष्टिकोण से देखा जाता है। समाजशास्त्रीय आधार पर श्रीनिवास ने लिखा है कि धर्मनिरपेक्षीकरण का तात्पर्य है कि जिसे पहले धार्मिक माना जाता था, उसे अब वैसा नहीं माना जाता। इस आधार पर यह प्रक्रिया धार्मिक विश्वासों की जगह तर्कपूर्ण विचारों और सांसारिक सफलताओं को अधिक महत्व देती है। भारतीय समाज की  संस्कृति में परिवर्तन लाने में धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रमुख भूमिका है। इसके प्रभाव से पवित्रता और अपवित्रता संबंधी परंपरागत विचार बदलने लगे, कर्मकांडो का प्रभाव कम हो गया, ब्राह्मणों पुरोहितों की परिस्थिति गिरने लगी, सामाजिक संरचना में अनेक नए परिवर्तन हुए,कानूनों के द्वारा परंपरागत धार्मिक व्यवहारों  में परिवर्तन होने लगे तथा ग्रामीण समुदाय में भी लोगों के व्यवहारों में परिवर्तन आरंभ हो गए।

प्रशन 57:-- पितृसत्ता किसे कहा गया?

या:-- वंश के आधार पर परिवारों के भेदों को लिखिए।

उत्तर:-- पितृसत्ता के मानने वालों का कहना है कि शुरु-शुरु के परिवारों में  पिता अथवा पुरुष की प्रधानता थी। एकाधिकार व ईष्र्या इन दो भावनाओं के कारण पुरुष स्त्री पर अपना स्वामित्व जमा लेता है। इस सिद्धांत का प्रतिपादन पहले पहल प्लेटो तथा अरस्तु ने किया था।ऐसे परिवार में पिता की प्रधानता होती है और समस्त विषयों में वह ही सर्वसर्वा रहता है, परिवार के अन्य सदस्यों को उसी के आज्ञा का पालन करना होता है। भारत में अधिकांश परिवार पितृसत्तात्मक ही है।अधिकांश हिंदू परिवारों का रूप पितृसत्तात्मक ही है।

*वंश के आधार पर भी परिवार के दो प्रकार हैं--

1. पितृवंशीय परिवार:--वंश परंपरा पिता से चलती है और पिता के वंश का ही महत्व होता है।परिवार की संपत्ति पिता से पुत्र को हस्तांतरित होती है। भारत में अधिकांशतः  परिवार पितृवंशीय होते हैं।

2. मातृवंशीय परिवार:--इस परिवार में वंश परंपरा माता से चलती है। ऐसे परिवारों में माता के वंश का ही महत्व सर्वोपरि होता है। परिवार की संपत्ति माता से उसकी पुत्री को हस्तांतरित होती है। मालाबार के नायर लोगों में ऐसे परिवार पाए जाते हैं।

प्रशन 58:-- नातेदारी की नीतियों की व्याख्या करें।

उत्तर:-- नातेदारी की नीतियां: एक नातेदारी समूह से संबंधित लोगों के व्यवहारों को नियंत्रित करने के लिए अनेक रीति रिवाज विकसित किए जाते हैं। व्यवहार के इन सभी ढंगों को हम नातेदारी की रीतियां कहते हैं। कुछ रीतियां परिहार व कुछ परिहास संबंधों को स्पष्ट करती है।

*भारत में नातेदारी व्यवस्था:-- समाजशास्त्रियों ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों में नातेदारी से संबंधित विभिन्न पक्षों की विवेचना इस प्रकार की है---

वंशक्रम पर आधारित दृष्टिकोण:-- उन लोगों का समूह जो एक वंश से संबंधित बहुत से लोग सम्मिलित होते हैं। वंश समूह के तीन प्रकार अधिक प्रचलित है---

(1) पितृवंशीय समूह 

(2) मातृवंशीय समूह 

(3) द्विपक्षीय  वंश समूह

प्रशन 59:-- सांप्रदायिकता क्या है?

उत्तर:-- संविधान द्वारा भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है, फिर भी भारतीय राजनीति में धर्म की एक विशेष भूमिका रही है। भारत में धार्मिक विभिन्नता के कारण समाज में विभिन्न प्रकार के तनाव पैदा होते हैं और इन तनाव को बढ़ाने में राजनीतिज्ञ भी भूमिका अदा करते हैं। इस तरह धार्मिक उन्माद जो सांप्रदायिकता का रूप ले लेता है, भारतीय राजनीति के लिए एक कैंसर बन गया है। यही संप्रदायिकता एक विशेष स्तर पर पहुंचकर हिंसा का रूप ले लेती है।

संप्रदायिकता के अंतर्गत सभी भावनाएं व क्रियाकलाप आ जाते हैं जिनमें किसी धर्म अथवा भाषा के आधार पर किसी समूह विशेष के हितों पर बल दिया जाय और उन हितों को राष्ट्रीय हितों से ऊपर प्राथमिकता दी जाय तथा उस समूह में पृथकता की भावना उत्पन्न की जाय या उस को प्रोत्साहन दिया जाए

प्रशन 60:-- भारत में सांप्रदायिकता के उत्तरदायी कारकों को स्पष्ट करें।

उत्तर:-- संप्रदायवाद संकीर्ण तथा कट्टरवादी मानसिकता का सूचक है जो लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए घातक है। भारत में धार्मिक कट्टरता तथा संकीर्णता साधारणतः अशिक्षा, जागरूकता की कमी, नृजातीय केंद्रीकता, सामाजिक आर्थिक समानता, प्रशासनिक शिथिलता तथा राजनीतिक निहित स्वार्थ के कारण पाई जाती है। आज देशव्यापी स्तर पर इसने भारत वासियों को परेशानी में डाल दिया है। राष्ट्रीय एकता की भावना भी इसे पूर्णतः समाप्त करने में सफल होगी।

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