1. समाजवादी दर्शन क्या है ?
उत्तर- समाजवाद उत्पादन में मुख्यत: निजी स्वामित्व की जगह सामूहिक स्वामित्व या धन के समान वितरण पर जोर देता है। समाजवादी शोषण उन्मुक्त समाज की स्थापना चाहते हैं। के समाजवादी व्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसके अंतर्गत उत्पादन के सभी साधनों कारखानों तथा विपणन में सरकार का एकाधिकार हो। ऐसी व्यवस्था में उत्पादन निजी लाभ के लिए न होकर सारे समाज के लिए होता है।
2 रॉबर्ट ओवेन का संक्षिप्त परिचय दें?
उत्तर- इंगलैंड में समाजवाद का प्रवर्तक रॉबर्ट ओवेन को माना जाता है। इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप श्रमिकों के शोषण को रोकने हेतु ओवेन ने एक आदेश समाज की स्थापना का प्रयास किया। उसके स्कॉटलैंड को न्यू लूनार्क नामक स्थान पर एक आदर्श कारखाना और मजदूरों के आवास की व्यवस्था की। इसमें श्रमिकों को अच्छा भोजन, आवास और उचित मजदूरी देने की व्यवस्था की गयी। श्रमिकों की शिक्षा, चिकित्सा की भी व्यवस्था की गई। साथ ही काम के घंटे घटाए गए और बल मजदूरी समाप्त की गयी। ओवेन के इस प्रयास से मुनाफा में वृद्धि हुई इससे वह संतुष्ट हुआ।
3. कार्ल मार्क्स के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर- समाजवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने में कार्ल मार्क्स (1818-1883) की महत्वपूर्ण भूमिका है। मार्क्स का जन्म जर्मनी के राइन प्रांत के ट्रियर नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ था। मार्क्स पर रूसो, मांटेस्क्यू एवं हीगेल के विचारधारा का गहरा प्रभाव था। मार्क्स और एंगेल्स ने मिलकर 1848 में कम्यूनिस्ट मेनिफेस्टो अथवा साम्यवादी घोषणापत्र प्रकाशित किया। मार्क्स ने पूँजीवाद की घोर भर्त्सना की और श्रमिकों के हक की बात उठाई। मजदूरों को अपने हक के लिए लड़ने को उसने उत्प्रेरित किया। उसने नारा दिया "दुनिया के मजदूरों एक हो।" मार्क्स ने अपनी विख्यात पुस्तक दास कैपिटल का प्रकाशन 1867 में किया। इस "समाजवादियों का बाइबिल" कहा जाता है। मार्क्सवादी दर्शन साम्यवाद के नाम से विख्यात हुआ।
4. 1917 ई. की क्रांति के समय रूस में किस राजवंश का शासन था? इस शासन का स्वरूप क्या था?
उत्तर- 1917 ई. की क्रांति के पूर्व रूस में रोमानांव वंश का शासन था। इस वंश के शासन का स्वरूप स्वेच्छाचारी राजतंत्र था। इस वंश के शासकों ने स्वेच्छाचारी राजतंत्र की स्थापना की। रूस का सम्राट जार अपने आपको का ईश्वर का प्रतिनिधि समझता था। वह सर्वशक्तिशाली था। राज्य की सारी शक्तियाँ उसी के हाथों में केन्द्रित थी। उसकी सना पर किसी का नियंत्रण नहीं था। राज्य के अतिरिक्त वह रूसी चर्च का भी प्रधान था। राज्य अतिरिक्त वह रूसी चर्च का भी प्रधान था। प्रजा जार और उसके अधिकारियों से भयभीत और त्रस्त रहती थी।
5. निहिलिस्ट से आप क्या समझते हैं ? रूस पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- रूसी नागरिकों का एक वर्ग ऐसा था जो चाहता था कि रूस में सुधार आन्दोलन जार के द्वारा किए जाएँ। जार एलेक्जेंडर द्वितीय ने कई सुधार कार्यक्रम भी चलाए, परंतु इससे सुधारवादी संतुष्ट नहीं हुए। इनमें से कुछ ने निहिलिस्ट आंदोलन आरंभ किया। ये निहिलस्ट के नाम से जाने जाते थे। ये स्थापित व्यवस्था को आतंक का सहारा लेकर समाप्त करना चाहते थे। 1881 में जार एलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या निहिलस्टों ने कर दी। इन निहिलिस्टो के विचारों से प्रभावित होकर क्रांतिकारी जारशाही के विरुद्ध एकजुट होने लगे।
6. बौद्धिक जागरण ने रूसी क्रांति को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर- 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में रूस में बौद्धिक जागरण हुआ जिसने लोगों को निरंकुश राजतंत्र के विरुद्ध बगावत करने की प्रेरणा दी। अनेक विख्यात लेखकों और बुद्धिजीवियों लियो टॉलस्टाय, ईरान तुर्गनेव, फ्योदोर दोस्तोवस्की, मैक्सिम गोर्की ने अपनी रचनाओं द्वारा सामाजिक अन्याय एवं भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था का विरोध कर एक नए प्रगतिशील समाज के निर्माण का आह्वान किया। रूसी लोग विशेषतः किसान और मजदूर, कार्ल मार्क्स के दर्शन से गहरे रूप से प्रभावित हुए। वे शोषण और अत्याचार विरुद्ध संघर्ष करने को तत्पर हो गए।
क्स्क्सफ्द 7. मेन्शिविकों और बोल्शेविको के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर- 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से रूस में राजनीतिक दलों का उत्कर्ष हुआ। कार्ल मार्क्स के एक प्रशंसक और समर्थक लेखानीव ने 1883 में रूसी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना की। इस दल ने मजदूरों को संघर्ष के लिए संगठित करना आरंभ किया। 1903 में संगठनात्मक मुद्दों को लेकर सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी दो दलों में विभक्त हो गया। मेन्शेविक (अल्पमत वाले) तथा वोल्शेविक (बहुमत वाले) मेन्शेविक संवैधानिक रूप से देश में राजनीतिक परिवर्तन चाहते थे तथा मध्यवर्गीय क्रांति के समर्थक थे। परंतु बोल्शेविक इसे असंभव मानते थे तथा क्रांति के. द्वारा परिवर्तन लाना चाहते थे जिसमें मजदूरों की विशेष भूमिका हो।
8. सोवितय संघ में प्रतिक्रांति क्यों हुई? बोल्शेविक सरकार ने इसका सामना कैसे किया?
उत्तर- बोल्शेविक क्रांति की नीतियों से वैसे लोग व्यग्र हो गए जिनकी संपत्ति और अधिकारों को नई सरकार ने छीन लिया था। अतः सामंत, पादरी, पूँजीपति नौकरशाह सरकार के विरोधी बन गए। वे सरकार का तख्ता पलटने का प्रयास कर रहे थे। उन्हें विदेशी सहायता भी प्राप्त थी। लेनिन ने प्रति क्रांतिकारियों का कठोरतापूर्वक दमन करने का निश्चय किया। इसके लिए चेका नामक विशेष पुलिस दस्ता का गठन किया गया। इसने निर्मतापूर्वक हजारों षड्यंत्रकारियों को मौत के घाट उतार दिया। चेका के लाल आतंक ने प्रड्यंत्रकारियों की कमर तोड़ दी।
9. कौमिण्टन की स्थापना क्यों की गई? इसका क्या महत्व था?
उत्तर- मार्क्सवाद का प्रचार करने एवं विश्व के सभी मजदूरों को संगठित करने के उद्देश्य से विभिन्न देशों के साम्यवादी दलों के प्रतिनिधि मास्को में एकत्रित हुए। सभी देशों की साम्यवादी पार्टियों का एक संघ बनाया गया जो कोमिण्टर्न कहलाया। इसका मुख्य कार्य विश्व में क्रांति का प्रचार करना एवं साम्यवादियों की सहायता करना था। कौमिण्टर्न का नेतृत्व रूस के साम्यवादी दल के पास रहा। लेनिन के इस कार्य से पूँजीवादी देशों में बेचैनी फैल गयी। रूस से मधुर संबंध बनाने को वे बाह्य हो गए। इंगलैंड ने 1921 में रूस से व्यापारिक संधि कर ली। 1924 तक इटली, जर्मनी, इंगलैंड ने रूस की बोल्शेविक सरकार को मान्यता प्रदान कर दी।
10. नई आर्थिक नीति (NEP) पर एक टिप्पणी लिखें?
उत्तर- लेनिन ने 1921 में एक नई आर्थिक नीति (NEP) लागू की। इसके अनुसार सीमित रूप से किसानों और पूँजीपतियों को व्यक्तिगत संपत्ति रखने की अनुमति दी गई। यह नीति कारगर हुई। खेती की पैदावार बढ़ी तथा उद्योग-धंधों में भी उत्पादन बढ़ा। इससे रूस समृद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ा। नई आर्थिक नीति की कुछ मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं
(i) किसानों से अनाज की जबरन उगाही बन्द कर दी गई। अनाज के बदले उन्हें निश्चित कर देने को कहा गया। शेष अनाज का उपयोग किसान अपनी इच्छानुसार कर सकता था।
(ii) सैद्धांतिक रूप से जमीन पर राज्य का अधिकार मानते हुए भी व्यावहारिक रूप से किसानों को जमीन का स्वामित्व दिया गया।
11. रूसीकरण की नीति क्रांति हेतु कहाँ तक उत्तरदायी थी?
उत्तर- सोवियत रूस विभिन्न राष्ट्रीयताओं का देश था। यहाँ मुख्यतः स्लाव जाति के लोग रहते थे। इनके अतिरिक्त फिन, पोल, जर्मन, यहूदी आदि अन्य जातियों के लोग भी थे। ये भिन्न-भिन्न भाषा तथा संस्कृति के लोग थे। परन्तु रूस के अल्पसंख्यक समूह जार निकोलस द्वितीय द्वारा जारी की गयी रूसीकरण की नीति से परेशान था। इसके अनुसार जार ने देश के सभी लोगों पर रूसी भाषा, शिक्षा और संस्कृति लादने का प्रयास किया। 1863 ई० में इस नीति के विरूद्ध पोलो ने विद्रोह किया तो उनका निर्दयतापूर्वक दमन किया गया। इस प्रकार रूसी राजतंत्र के प्रति उनका आक्रोश बढ़ता गया जो क्रांति के लिए उत्तरदायी साबित हुआ।
12. प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय ने क्रान्ति हेतु मार्ग प्रशस्त किया। कैसे?
उत्तर- प्रथम विश्वयुद्ध में रूस मित्र राष्ट्रों की ओर से शामिल हुआ था। जार का मानना था कि युद्ध के अवसर पर जनता सरकार का समर्थन करेगी तथा देश में आंतरिक विद्रोह कमजोर पड़ जाएगा। परंतु जार की यह इच्छा पूरी न हो सकी। प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की लगातार हार होती गयी। सैनिकों के पास न तो अच्छे अस्त्र-शस्त्र थे और न ही पर्याप्त मात्रा में रसद। रूसी सेना की कमान स्वयं जार ने संभाल रखी थी। पराजय उसकी प्रतिष्ठा को गहरा आघात लगा। इस स्थिति से रूसी जनता और अधिक कुछ हो गयी तथा पूरी तरह से जारशाही को समाप्त करने के लिए कटिबद्ध हो गयी। अंतत: प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय क्रांति का तात्कालिक कारण बना।
13. कम्युनिस्ट इंटरनेशनल का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- कम्युनिस्ट इंटरनेशनल एक संस्था थी जिसकी स्थापना प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1919 में हुई थी। इस संस्था का उद्देश्य साम्यवाद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित करना था। इसके प्रभाव से अनेक देशों में साम्यवादी संगठनों की स्थापना हुई। साथ ही, अनेक प्रजातंत्रीय देशों में राजनीतिक समानता के साथ-साथ सामाजिक एवं आर्थिक समानता लाने का भी प्रयास किया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के आरंभ होने पर इस संस्था को भंग कर दिया गया।
14. 'सोवियत' से क्या समझते हैं?
उत्तर- रूस में राजनीतिक संगठन के सबसे निचले स्तर पर स्थानीय समितियाँ थी जिन्हें 'सोवियत' कहा जाता था। आरंभ में यह मजदूरों के प्रतिनिधियों की परिषद थी जिसकी स्थापना हड़तालों के संचालन के लिए की गई थी, पर शीघ्र ही यह राजनतिक सत्ता का उपकरण बन गई। मजदूरों की भाँति किसानों की परिषदों या सोवियतों का निर्माण हुआ। भी सोवियतों के प्रतिनिधि एक राष्ट्रीय कांग्रेस का संगठनं करते थे।
15. 'खूनी रविवार' से क्या समझते हैं ? इस घटना का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- रूस में जार के शासन से लोग तंग आ गए थे। उसका अत्याचार अत्यंत बढ़ गया था। इसलिए 22 जनवरी (पुराने कैलेंडर में 9 जनवरी 1905) को मजदूर अपने परिवारों के साथ एक शांतिपूर्ण जुलूस में जार से मिलने और उसे एक प्रार्थनापत्र देने के लिए उसके सेंट पीटर्सबर्ग स्थित महल की ओर जा रहे थे। उसी समय सैनिकों ने उनपर गोलियाँ बरसा दीं। फलतः, एक हजार से अधिक मजदूर मारे गए तथा कई हजार घायल हुए। चूँकि यह घटना रविवार के दिन हुई थी, इसलिए इस दिन को 'खूनी रविवार' कहा जाता है।
खूनी रविवार के नरसंहार की खबर बिजली की तरह पूरे रूस में फैल गई। इसके बाद सारे देश में उथल-पुथल मच गया। सेना तथा नौसेना में विद्रोह हो गया। पोतेम्किन' नामक जंगी जहाज के नाविक भी क्रांतिकारियों से जा मिले। इस समय संगठन एक नए रूप में उभरा जिसे सोवियत, अर्थात मजदूरों के प्रतिनिधियों की परिषद कहा जाता है। 1917 की क्रांति में इस संगठन की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।
16. 1917 की क्रांति के समय रूस में किस राजवंश का शासन था? इस शासन का क्या स्वरूप था?
उत्तर- 1917 की क्रांति के समय रूस में रोमानोव वंश का शासन था। रूस के सम्राट को जार कहा जाता था। रोमानोव वंश के शासकों ने स्वेच्छाचारी राजतंत्र की स्थापना की। रूस निरंकुश राजतंत्र का गढ़ था। राज्य की सारी शक्तियाँ जार के हाथों में केंद्रित थी तथा जार अपने आपको ईश्वर का प्रतिनिधि समझता था। जार को प्रजा के सुख-दुःख की चिंता एकदम नहीं थी। राज्य के कुछ सलाहकार अवश्य होते थे, पर वे उन्हीं थोड़े-से लोगों के बीच से चुने जाते थे जिनके पास प्रचुर संपत्ति होती थी, तथा जो स्वयं जनता का शोषण करते थे। जार रूसी चर्च का भी प्रधान था। वह दिन-रात चापलूसों और चाटुकारों से घिरा रहता था। प्रशासनिक अधिकारी भी मनमानी करते थे जिसके कारण प्रजा जार और उसके अधिकारियों से भयभीत और त्रस्त रहती थी। जार की स्वेच्छाचारिता के कारण प्रजा की स्थिति बिगड़ती गई और उनमें असंतोष बढ़ता गया
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17. 'फरवरी की क्रांति' एवं 'अक्टूबर की क्रांति से क्या समझते हैं? संक्षेप में प्रकाश डालें ।
उत्तर- रूस के जार के विरुद्ध 1917 में दो क्रांतियाँ हुई पहली क्रांति मार्च में हुई जो फरवरी की क्रांति कहलाई तथा दूसरी क्रांति नवंबर महीने में हुई जिसे 'अक्टूबर की क्रांति' कहा जाता है। जार की दयनीय स्थिति का लाभ उठाकर मार्च 1917 में जगह-जगह प्रदर्शन हुए। मजदूरों की हड़ताल हुई जिसमें सैनिक और अन्य लोगों ने भाग लिया। क्रांतिकारियों ने सेंट पीटर्सबर्ग (पेट्रोग्राद या लेनिनग्राद) और मास्को पर अधिकार कर लिया। इस क्रांति के परिणामस्वरूप 15 मार्च 1917 को जार निकोलस द्वितीय को राजगद्दी छोड़नी पड़ी, तथा रूस का पुराना रोमानोव वंश का शासन समाप्त हो गया। पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार जार ने 27 फरवरी, 1917 को गद्दी त्याग दी थी। अतः, रूस की पहली क्रांति 'फरवरी क्रांति' कहलाती है।
मार्च की क्रांति के बाद 1917 में ही दूसरी बार क्रांति हुई। यह क्रांति 7 नवम्बर 1917 को हुर्छ, पर पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार वह दिन 25 अक्टूबर 1917 था अतः यह क्रांति 'बोल्शेविक क्रांति' या 'अक्टूबर क्रांति' कहलाती है। यह क्रांति मेन्शेविकों और बोल्शेविकों के बीच सत्ता के संघर्ष के लिए हुई थी क्योंकि राजतंत्र की समाप्ति के बाद सत्ता मेन्शेविक दल के नेता 'करेन्सकी' के हाथों में आ गई थी। 'करेन्सकी' की सरकार की अलोकप्रियता के कारण सरकार के विरुद्ध असंतोष बढ़ता गया। उसी समय स्विट्जरलैंड से वापस लौटकर बोल्शेविक दल का नेता लेनिन ने 'ट्राटस्की' की सहायता से करेन्सकी की सरकार का तख्ता पलट दिया। करेन्सकी देश छोड़कर भाग गया और शासन की बागडोर लेनिन के हाथों में आ गई और रूस का नवनिर्माण आरंभ हुआ।
Class 10 History Chapter 1 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
Class 10 History Chapter 1 लघु उत्तरीय प्रश्न
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