Header Ads Widget

New Post

6/recent/ticker-posts
Telegram Join Whatsapp Channel Whatsapp Follow

आप डूुबलिकेट वेबसाइट से बचे दुनिया का एकमात्र वेबसाइट यही है Bharati Bhawan और ये आपको पैसे पेमेंट करने को कभी नहीं बोलते है क्योंकि यहाँ सब के सब सामग्री फ्री में उपलब्ध कराया जाता है धन्यवाद !

Class 9th Bharati Bhawan History | Chapter 8 Agriculture and Farming Societies | Long Answer Question | क्लास 9वीं भारती भवन इतिहास | अध्याय 8 कृषि और खेतिहर समाज | दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Class 9th Bharati Bhawan History  Chapter 8 Agriculture and Farming Societies  Long Answer Question  क्लास 9वीं भारती भवन इतिहास  अध्याय 8 कृषि और खेतिहर समाज  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
www.BharatiBhawan.org

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

।. भारत में कृषि का आरंभ एवं विकास कैसे हुआ? औपनिवेशिक शासन का कृषि एवं घकों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- सिंधु घाटी की सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) में कृषि का प्रमाण मिलता है। हड़मा सभ्यता के पतन के बाद भी कृषि का विकास होता रहा। लोहे के कृषि उपकरणों के व्यवहार से कृषि का विस्तार हुआ । प्रत्येक राजवंश ने कृषि को प्रोत्साहन दिया। राज्य को सबसे अधिक आमदनी भूमि से मिलनेवाली लगान से ही होती थी। अत: 18वीं-19वीं शताब्दी तक सभी भारतीय राज्यों ने कृषि को प्रोत्साहन देने एवं किसानों को आर्थिक सहायता देने की नीति अपनाई। 
(i) भारत को कच्चा माल का निर्यातक बनाना- आरंभ में अँगरेज भारत में व्यापारी के रूप में आए । वे भारतीय उत्पादों एवं निर्मित सामानों को यूरोपीय बाजारों में बेचकर मुनाफा कमाते थे, परंतु इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति एवं बंगाल में अंगरेजी सत्ता की स्थापना के साथ ही इस व्यवस्था में परिवर्तन आया । इस्ट इंडिया कंपनी ने अब भारत को कच्चा माल का निर्यातक, जिनकी इंगलैंड के उद्योगों को चलाने में आवश्यकता थी तथा भारत को इंगलैंड में बने सामानों का बिक्री का बाजार बना दिया। इसका खेती और खेतिहरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा । 
(ii) किसानों पर लगान को बोझ- 1765 में ईस्ट इंडिया कंपनी को मुगल बादशाह ने ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी, अर्थात् लगान वसूलने का अधिकार दे दिया। फलतः कंपनी ने अधिक-से-अधिक लगान वसूली की नीति अपनाई । जिसे खेतिहरों और कृषक इतनी अधिक दयनीय बना दी कि वे खेतिहर से मजदूर बन गए।
(iii) कृषि का वाणिज्यीकरण- ईस्ट इंडिया कंपनी ने कृषि के वाणिज्यीकरण की नीति भी अपनाई । जिससे गन्ना, कपास, जूट, नील और अफीम की खेती को बढ़ावा दिया गया । बागवानी को भी प्रोत्साहित किया गया। चाय और कॉफी बागान स्थापित किए । अफीम और नील की खेती में किसानों का शोषण हुआ । नील की खेती के विरुद्ध बंगाल में नील विद्रोह हुआ। चंपारण के किसानों को निलहों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए गाँधीजी ने वहाँ सत्याग्रह किया।
2. भारत कृषि प्रधान देश है'? क्या आप इससे सहमत हैं ? कारण स्पष्ट करें। 
उत्तर- भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ की 70% जनसंख्या कृषि कार्य में संलग्न है। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग है। भारत की कुल भूमि का लगभग 51 प्रतिशत भाग कृषि योग्य है। भारत की राष्ट्रीय आय में 35% योगदान कृषि का है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व कृषि बहुत समय तक अस्थिर रही और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कुछ वर्षों तक भारतीय कृषि निर्वाहन-कृषि ही बनी रही। भारत के समग्र आर्थिक विकास के लिए वैज्ञानिक एवं उन्नत कृषि की योजनाएं बनाई गई। इसी के फलस्वरूप 1960 में भारत में हरित क्रांति की नीति अपनाई गई। कुछ जिलों में सघन कृषि के कार्यक्रम चलाये गये। उन्नत बीज, खाद, नई तकनीक एवं मशीनों के उपयोग तथा सिंचाई के साधनों के व्यवहार से कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई। वर्तमान समय में कृषि एवं कृषकों के विकास के लिए सरकारी सहायता उपलब्ध करायी जा रही है। खाद्यान्न के अतिरिक्त बागवानी एवं वाणिज्यिक कृषि पर बल दिया जा रहा है। भारत में कृषि एवं कृषकों. की समस्याओं का निराकरण करने का प्रयास किया जा रहा है।
3. बिहार में कृषि के अविकसित होने के कारणों की विवेचना करें। 
उत्तर- कृषि के अविकसित होने के अनेक कारण हैं ।
(i) कृषि पर जनसंख्या का बढ़ता दबाव । (ii) छोटे-छोटे और बिखरे खेत । (iii) अनुपस्थित भू-स्वामित्व । (iv) खेती का पुराना परंपरागत ढंग । (v) उत्तम बीज का उपयोग नहीं होना । (vi) नई तकनीक का व्यवहार नहीं होना । (viii) सिंचाई के साधनों की कमी यहाँ की कृषि मॉनसूनी वर्षा पर निर्भर है। इसलिए, यहाँ की कृषि “मॉनसून के साथ जुआ" कहा गया है । (ix) बिहार में कृषि-विपणन की दोषपूर्ण व्यवस्था के कारण किसानों को कृषि उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है । अतः छोटे किसान खेती छोड़कर बिहार से पलायन कर रहे हैं। अन्य राज्यों में वे श्रमिकों के रूप में अथवा औद्योगिक संस्थानों में काम करते हैं। कृषि के विकास के लिए उन्हें खेतों से बाँधे रखना आवश्यक है।
4. भारत में प्रचलित विभिन्न प्रकार की खेतियों का संक्षिप्त विवरण दें। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में इनका क्या महत्त्व है ?
उत्तर- (i) झूम खेती- इस प्रकार की खेती वन्य और पहाड़ी भागों में प्रचलित थी। कुछ आदिवासी आज भी इस प्रकार की खेती करते हैं । बरसात के पहले जंगल के एक निश्चित भूभाग में आग लगा दी जाती है। इससे जमीन समतल एवं कृषि-योग्य बन जाती है । जले हुए राख पर बीज छिड़क दिया जाता है । वर्षा होने पर बीज में पौधे निकल आते हैं। जले हुए राख से भूमि में नाइट्रोजन की मात्रा भी बढ़ जाती है। इससे जमीन उपजाऊ हो जाती है। कुछ वर्षों तक वहाँ खेती करने के बाद उस स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर यही प्रक्रिया दोहराई जाती है। इससे वननाशन भी नहीं होता है और आवश्यकतानुसार कृषि उत्पादन भी होता है।
(ii) पारंपरिक खेती- पारंपरिक कृषि पद्धति में जमीन को हल-बैल की सहायता से जोतकर उसमें बीज की बुआई कर खेती की जाती है । खेतों की सिंचाई वर्षा या उपलब्ध कृत्रिम साधनों जैसे कुआँ, जलाशय, नहर आदि द्वारा की जाती है । इस प्रकार की खेती में मानव-श्रम का अधिकतम उपयोग किया जाता है।
(iii) गहन खेती- कुछ क्षेत्रों में विकसित गहन खेती भी की जाती है । इस प्रकार की खेती उन क्षेत्रों में की जाती है जहाँ सिंचाई के प्रचुर मात्रा में साधन उपलब्ध है । ऐसे क्षेत्रों के किसान उर्वरकों एवं कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। कृषि में आधुनिक कृषि यंत्रों का भी व्यवहार किया जाता है । फसल भी एक से अधिक उगाए जाते हैं। नई तकनीक के व्यवहार से गहन खेती में प्रति हेक्टेयर उपज में वृद्धि हुई है । 
(iv) फसल चक्र- लगातार लंबे समय तक एक ही प्रकार की फसल उर्वरा शक्ति कमजोर पड़ जाती है । इसे रोकने के लिए दो खाद्यान्नों के मध्य एक दलहनी पौधे को लगाया जाता है । फसल बदलने की इस पद्धति को फसल चक्र कहते हैं । यह पद्धति जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में सहायक होती है |
(v) मिश्रित खेती- इस प्रकार की खेती में एक ही खेत में एक ही समय में दो-तीन फसलें उगाई जाती हैं इससे यह लाभ होता है कि एक ही समय में विभिन्न प्रकार के और अधिक फसल उगाए जा सकते हैं।
(vi) रोपण या बागांनी खेती- इसे झाड़ी कृषि अथवा वृक्ष कृषि भी कहा जाता है । इसमें व्यापार के उद्देश्य से झाड़ीनुमा पौधे या पेड़ लगाए जाते हैं। एक बार इन्हें लगाने से उनसे वर्षों उत्पादन लिया जाता है । बगान के रूप में भूमि का उपयोग होने के कारण इसे बागानी खेती भी कहा जाता है |
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार की खेतियों की अत्यधिक आवश्यकता है । ग्रामीण समुदाय का बहुत बड़ा भाग कृषि पर ही आश्रित है।
अतः कृषकों की आय बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि वे आधुनिक संसाधनों का उपयोग कर विभिन्न प्रकार की खेतियाँ करें । आधुनिक खेती करने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। इससे उत्पादन अधिक होता है । कृषि उत्पाद में वृद्धि होने से किसानों को लाभ होता है। नगदी फसलों और बागानी उत्पादों को बेचकर किसान धन कमाते हैं । इससे किसानों की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होती है।  
5. बिहार की प्रमुख व्यावसायिक फसलों पर निबंध लिखें।
उत्तर- गन्ना- गन्ना अथवा गुड़ बिहार की मुद्रादायिणी फसलों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण से है । गन्ना तृण प्रजाति का पौधा है जो सामान्यतः तीन मीटर तक ऊँचा होता है । इसकी धड़ रस भरा रहता है जिसे पेरकर रस निकाला जाता है । इस रस से गुड़ और चीनी बनाई जाती है। गन्ना की बुआई फरवरी-मार्च महीने में की जाती है । नवंबर-दिसम्बर तक गन्ना की फसल तैयार हो जाती है । बिहार में गन्ना की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उपलब्ध हैं। इसकी खेती के लिए उष्ण एवं तर जलवायु, भारी दोमट मिट्टी तथा मानव श्रम की आवश्यकता होती है जो बिहार में उपलब्ध है। आजादी के पूर्व बिहार भारत का प्रमुख गन्ना उत्पादक क्षेत्र था। औपनिवेशिक काल में बिहार को चीनी का कटोरा कहा जाता था ।
केला- बिहार में मुख्यतः ‘चीनिया' और 'सिंगापुरी' केला उगाया जाता है । कहीं-कहीं 'मालभोग' केला भी होता है । चीनिया एवं मालभोग केला पीला छाल का एवं सिंगापुरी हरा छाल का होता है । हाजीपुर का चीनिया केला अपने स्वाद के लिए विख्यात है । केला की खेती के लिए गर्म एवं नम जलवायु तथा दोमट मिट्टी आवश्यक होती है । केला के पौधे मई से अगस्त महीनों के बीच लगाए जाते हैं । केला की बागवानी से किसानों की आर्थिक स्थिति एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हुई है।
लीची-  बिहार का दूसरा विख्यात फल लीची है । संपूर्ण भारत में सबसे अधिक लीची बिहार में ही होती है। लीची का उत्पादन मुख्यतः वैशाली (हाजीपुर) एवं मुजफ्फ रपुर जिला में होता है । मुजफ्फरपुर की शाही लीची की माँग भारत के विभिन्न भागों के अतिरिक्त विदेशों में भी है। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है
6. अमेरिका में गेहूं की खेती पर एक निबंध लिखें। 
उत्तर- 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अमेरिका की कृषि में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया । गोरे अमेरिकनों का प्रसार पूर्व से पश्चिम की ओर हुआ । इस प्रक्रिया में उन लोगों ने पश्चिम में समुद्रतट तक अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक अमेरिकनों का प्रसार अल्वेशियन पठार से लेकर मिसीसीपी नदी घाटी तक हो गया। बाद में आगे बढ़ते हुए वे विशाल मैदानी भाग तक पहुँच गए । इस पूरे क्षेत्र को कृषि योग्य बनाकर कृषि का विस्तार किया गया। इस क्षेत्र में गेहूँ की खेती बड़े स्तर पर की गई। अत: यह क्षेत्र ‘विश्व की रोटी की टोकरी' के नाम से विख्यात हुआ। यहाँ में गेहूँ उत्पादक क्षेत्र की मिट्टी और जलवायु गेहूँ की खेती के लिए उपयुक्त थी। अतः, गेहूँ की खेती बड़े स्तर पर की गई।
अमेरिका की जनसंख्या में होनेवाली वृद्धि के कारण अधिक खाद्यान्न की आवश्यकता हुई। चावल की उपज कम होने के कारण अमेरिकी जनता का मुख्य खाद्यान्न गेहूँ ही था। अतः, गेहूँ की खेती के विकास को बढ़ावा दिया गया ।
वसंतकालीन गेहूँ- यह गेहूँ प्रेयरी के उत्तरी भाग में होता है । इस क्षेत्र की रेड नदी घाटी को 'विश्व की रोटी की टोकरी कहा जाता है ।' गेहूँ की यह फसल तीनचार महीनों में तैयार हो जाती है। यहाँ वसंत ऋतु में गहूँ उपजाया जाता है।
शीतकालीन गेहूं- शीतकालीन गेहूँ की पैदावार संयुक्त राज्य के उत्तर-पूर्वी भाग में होती है । यहाँ उपजाया जानेवाला गेहूँ भी कड़ा होता है । परंतु पूर्वी भाग में अधिक आर्द्रता मिलने के कारण मुलायम गेहूँ की उपज होती है । संयुक्त राज्य अमेरिका का लगभग 80 प्रतिशत गेहूँ इसी क्षेत्र में उपजता है।
7. अमेरिका में कपास की खेती पर एक निबंध लिखें।
उत्तर- कपास की खेती अमेरिका सहित विश्व के अन्य भागों होती है। कपास की रूई को उजला सोना कहा जाता है । कपास का उपयोग सूती वस्त्र निर्माण में होता है । इससे मोटा महीन सूती वस्त्र तैयार किया जाता है । कपास की खेती हजारों वर्ष पहले से होती आई है। वा शताब्दी के आरंभ तक अमेरिका सहित एशिया के बड़े भागों में इसकी खेती बड़े स्तर पर होने लगी।
(i) औद्योगिक क्रांति से इंगलैंड में कपास की मांग- 18वीं शताब्दी में इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति के दौरान वस्त्र उद्योग के लिए कपास की माँग अधिक होने लगी। सिर्फ भारत से इसकी आपूर्ति नहीं हो सकती थी। इसलिए अंगरेज व्यापारी कपास की आपूर्ति के लिए अमेरिका की ओर आकृष्ट हुए।
(ii) अमेरिका के दक्षिणी भाग में कपास का उत्पादन- अमेरिका के दक्षिणी भाग में गुलमों की सहायता से कपास की खेती बड़े स्तर पर करवाई जाती थी। यहाँ पैदा किया जानेवाला कपास उत्तम प्रकार का होता था।
(ii) किंग कॉटन की खेती- 19वीं शताब्दी के मध्य तक अमेरिका में कपास की खेती का विस्तार हुआ। किंग कॉटन दक्षिण अमेरिकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन गया । कपास की खेती गुलामों का प्रमुख रोजगार बन गया।
(iv) अमेरिकी गृहयुद्ध का प्रभाव- 1865 में अमेरिकी गृहयुद्ध की समाप्ति के बाद इंगलैंड में अमेरिकी कपास की माँग पुनः बढ़ गई । इसका मुख्य कारण कपास की गुणवत्ता और आयात में आने वाला कम खर्च था । बढ़ती मांग ने दक्षिणी अमेरिकी राज्यों में कपास की खेती ने पुनः जोर पकड़ लिया।
अमेरिकी कपास पट्टी- वर्तमान समय में विश्व के कपास उत्पादन का लगभग 20 प्रतिशत अमेरिका में होता है। कुछ वर्षों पूर्व अमेरिका ही विश्व में सबसे अधिक कपास उपजानेवाला देश था, परंतु अब यह तीसरे स्थान पर आ गया है । अमेरिका के विस्तृत भाग में कपास की खेती होती है । इस क्षेत्र को कपास पट्टी कहा जाता है । यहाँ कपास के लिए आवश्यक प्रचुर धूप भी मिलती है । कपास के डोड़े में रेशे निकलने के बाद इन्हें तेज धूप मिलना आवश्यक है। जिससे रेशे में चमक और मजबूती आए।

Post a Comment

0 Comments