जैव प्रक्रम
किसी जीव द्वारा पोषक पदार्थों को ग्रहण करना वह उनका उपयोग करना पोषण कहलाता है
* स्वपोषी पोषण- हरे पौधे एवं जी कुछ जीवाणु का कार्बनिक पदार्थों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल्द से अपना भोजन स्वयम बनाते हैं इन्हें स्वपोषी कहते हैं
* विषमपोषी- जंतु तथा कवक अपना भोजन अन्य जंतु या पौधों से प्राप्त करते है
* प्रकाश संश्लेषण- इस प्रकरण में निम्नलिखित घटनाएं होती है
(i) क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करना
(ii) प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करना तथा जल अनु का हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन में अपघटन
(iii) कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन
* एक कोशिक जीवो में भोजन संपूर्ण सतह से लिया जाता है
* मनुष्य में पोषण- मनुष्य में खाए गए भोजन का भंडारण आहार नली के अंदर कई चरणों में होता है बचा हुआ भोजन क्षुद्रांत में अवशोषित कर के शरीर की सभी कोशिकाओं में भेज दिया जाता है
* शोषण प्रकरण में गोल्फ कोर्स जैसी जटिल कार्बनिक यौगिकों का विखंडन होता है और एटीपी के रूप में ऊर्जा का निर्मोचन होता है
* शोषण वायविय या अवायविय हो सकता है वायवीय शोषण से जीव को अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है
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* जंतुओं में पर्यावरण से ऑक्सीजन लेने एवं उत्पादित कार्बन डाइऑक्साइड की छुटकारा पाने के लिए भिन्न प्रकार के अंगों का विकास हुआ है
* मनुष्य में वायु शरीर के अंदर नासा द्वारा जाती है और कंठ द्वारा फुफ्फुस मे प्रवाहित होती है
* मानव में वहन:- वन मनुष्य में ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, भोजन तथा उत्सर्जित उत्पाद सरीखे पदार्थ का वाहन परिसंचरण तंत्र करता है
* परिसंचरण तंत्र में ह्रदय रुधिर तथा रुधिर वाहिकाएं होती है
* पादपों में परिवहन:- पादप वाहन तंत्र पत्तियों से भंडारित उर्जा युक्त पदार्थ तथा जड़ों से कच्ची सामग्री का वहन करेगा
* जाइलम:- मृदा से प्राप्त जल और खनिज लवणों को वाहन करता है
* फ्लोएम:- पत्तियों से जहां प्रकाश संश्लेषण के उत्पाद संश्लेषित होते हैं पौधे के अन्य भागों तक वहन करता है
* वाष्प उत्सर्जन:- पादप में वायवीय भागों द्वारा वाष्प के अंदर में जल की हानि वाष्पोत्सर्जन कहलाती है
*उत्सर्जन :- वह जब प्रक्रम जिसमें उपापचय ही क्रियाओं में जनित नाइट्रोजन युक्त पदार्थों का निष्कासन होता उत्सर्जन कहलाता है
* मानव के उत्सर्जन तंत्र में एक जोड़ा ब्रिक, एक जोड़ मूत्र वाहिनी, एक मूत्राशय तथा एक मूत्रमार्ग होता है
* मनुष्य में उत्सर्जन उत्पाद विलय नाइट्रोजन ई योगिक के रूप में व्रिक्कानु नेफ्रॉन द्वारा निकाले जाते हैं
* पादपों में उत्सर्जन:- पादप अपशिष्ट पदार्थों से छुटकारा प्राप्त करने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग करते हैं उदाहरण के लिए अपशिष्ट पदार्थ को सिक्का रितिका में संचित किए जा सकते हैं या गोंद व रेजीन के रूप में तथा गिरती पतियों द्वारा दूर किया जा सकता है या यह अपने आसपास की मृदा में उत्सर्जित कर देते हैं
नियंत्रण एवं समन्वय
*तंत्रिका कोशिका:- वह विशिष्ट कोशिका है जो सजीवों में अलग-अलग अनुक्रिया करती है उन्हें तंत्री कोशिकांग कहते हैं जैसे प्रकाश, उस्मा, ठंड तथा दाब के प्रति विभिन्न जिवों में अलग-अलग अनुक्रिया
* तंत्रिका प्रणाली:- तंत्रिका प्रणाली शरीर के विभिन्न अंगों की सामान्य क्रियाओं में नियंत्रण तथा समन्वय करती है तथा बाह्य वातावरण के साथ प्रतिक्रिया भी करती है
* अंतः स्रावी या हार्मोन तंत्र:- जिन अंग तंत्र द्वारा विभिन्न जैविक क्रियाओं के नियंत्रण एवं समन्वय का कार्य होता है उन्हें अंतः स्रावी या हारमोंस तंत्र कहते हैं
* पादप हार्मोन:- पादपों में नियंत्रण एवं समन्वय का कार्य रासायनिक पदार्थों द्वारा निष्पादित होता है जिसे पादप हार्मोन या फाइटोहार्मोस कहते हैं जैसे ऑक्सीजन, जिबरेलिन, साइटोकाइनिन, ऐव्सिसिक अम्ल तथा एलिथिन
* अनुवर्तन:- पादपों के अंगो का उद्दीपन की दिशा में गति करना अनुवर्तन कहलाता है
* प्रकाश अनुवर्तन:- पादपों के अंगो का उद्दीपन की दिशा प्रकाश की दिशा में होना प्रकाश अनुवर्तन कहलाता है
* गुरुत्वानुवर्तन :- पादपों की जड़ों का गुरुत्व बल की दिशा में अर्थात जमीन में नीचे की ओर संचालन होना गुरुत्व अनुवर्तन कहलाता है
* रसायनानुवर्तन :- पादपों में रासायनिक उद्दीपन ओं के कारण होने वाले संचालन को रसायनानुवर्तन कहते हैं
* अनुकुन्चन गतिया :- पादपों में संचालन ना तो उद्दीपन की और ना ही उससे दूर हो ऐसी गति को अनुकुन्चन गति कहते हैं जैसे छुईमुई के पौधे की पत्तियां छूने पर झुकती है
* अल्प प्रदीप्तिकाली पौधे :- अल्प प्रदीप्तिकाली पौधे के फूल दिन के नियत प्रकाश की अपेक्षा कम देर तक रहने वाले प्रकाश में उत्पन्न होते हैं
* दिवस निरपेक्ष पौधे :- जिन पादपों के फूलों पर प्रकाश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता उन्हें दिवस निरपेक्ष पौधे कहते है
* प्रकाश कालिता :- प्रतिदिन पौधे पर पड़ने वाले प्रकाश की अवधि के प्रति उसकी वृद्धि, जनन में होने वाली क्रिया को प्रकाश कालिता कहते हैं
* स्फिति गति:- कोशिका के भीतर अधिक जल होने से कोशिका पूरी तरह तक जाती है तथा कठोर हो जाती है इसे स्फिति गति कहते हैं
* स्पर्श अनुवर्तन गति:- स्पोर्ट्स के प्रेरित गति को स्पर्श अनुवर्तन गति कहते हैं
* अनुवर्ती गति :- एक दिशा से आने वाले बाबू दीपन से होने वाली गति को अनुवर्ती गति कहते है
* न्यूरॉन:- न्यूरॉन तंत्रिका तंत्र की एक इकाई है इसमें डेंडराल तथा एक्शन होते हैं यह एक अंग से संवेदी आवेग को दूसरे अंगों तक ले जाते हैं यह तंत्रिका ए केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को शरीर के अन्य भागों के साथ जोड़ती है
* सिनेप्स :- वह संपर्क बिंदु जो एक न्यूरॉन के एक्शन की अन्य शाखाओं एवं दूसरे न्यूरॉन के डेंड्र्यों के बीच बनता है सिनेप्स कहलाता है
* तंत्रीप्रेशी :- सिनेप्स पर बनने वाले हुए रसायन जो समवर्ती न्यूरॉन से आवेग को आगे संचालित करते हैं तांत्रि पेश कहलाते हैं
* मोटर पथिकाएं :- यह एक विशेष प्रकार की तंत्रिका कोशिकाएं हैं जो मस्तिष्क से प्राप्त सूचनाओं को शरीर के प्रभाव कारी अंगों तक पहुंचाते हैं
* ग्रंथि:- ग्रंथि मुख्यतः हुए अंग होते हैं जो एक या अधिक विशेष रासायनिक तत्व उत्पन्न करते हैं
* मास्टर ग्रंथि:- पिट्यूटरी ग्रंथि को मास्टर ग्रंथि कहते हैं
*फेरोमोन :- फेरोमोन अवैध स्राव होते हैं जो एक व्यक्ति जीव द्वारा स्रावित होते हैं लेकिन हुए प्रभाव किसी दूसरे व्यक्ति जीव पर डालते हैं
* फाइटोहार्मोन :- यह वृद्धि नियामक होते हैं जो पौधे के एक भाग से उत्पन्न होता है तथा पौधे के अन्य भागों में क्रिया को प्रेरित करता है
* अभीग्राहक :- यह वह विशेष अंग होते हैं जो प्रकाश धोनी और गंध आदि के द्वारा बाहरी सूचनाओं का पता लगाते हैं
* बसंतीकरण :- पौधों में पुष्पा की क्रिया को बसंती करण कहते हैं
* प्रतिवर्ती क्रिया :- किसी उद्दीपन से होने वाली स्वचालित जल्दी से और अनेक चिड़िया को प्रतिवर्ती क्रिया कहते हैं
* सिग्माइड वक्र :- आरेख द्वारा वृद्धि के सामान्य रूप के निरूपण को सिग्माइड कहते हैं
* स्वायत्त तंत्रिका तंत्र :- शरीर में सामान्य क्रियाओं के नियंत्रण के अतिरिक्त आंतरिक अंगों की बहुत सी किया तंत्रिकाओं के अन्य समूहों द्वारा नियंत्रित होती है जिसे स्वास्थ्य तंत्रिका तंत्र कहते हैं यह एक प्रेरक तंत्र है इसे लड़ो या भाग जाओ सिंडोँम भी कहते हैं
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जीव जनन कैसे करते हैं
* जनन :- जीवो में अपने जैसे जीवो को उत्पन्न करने की प्रक्रिया को जनन कहते हैं जनन प्रक्रिया पर वृध्दि, परिपक्वता और पर्यावरण में कारक का प्रभाव पड़ता है
* अलैंगिक जनन :- अलैंगिक जनन में संतति केवल एक ही जनक से पैदा होती है जैसे स्पंजो और हाइड्रा में पाया जाता है
* लैंगिक जनन :- इस प्रकार के जनन में दो भिन्न-भिन्न लिंग वाले जीवो एक नर और एक मादा हिस्सा लेते हैं
* उदयलिंगता :- जिन प्राणियों में नर तथा मादा दोनों ही जननांग एक ही शरीर में विद्यमान होते हैं ऐसे प्राणियों को उभयलिंगता कहते हैं जैसे कछुआ
*द्विृृॠपता :- कशेरुकी प्राणियों में जिनमें नर तथा मादा संरचनात्मक रूप से अलग होते हैं ऐसे प्राणियों को निरूपित अलैंगिक कहा जाता है
* विखंडन :- इस विधि में एक कोशिकीय जीव दो संतति कोशिकाओं में विभाजित होता और तब इनमें से प्रत्येक एक वयस्क जीव में वृद्धि करता है जैसा हाइड्रा
* बहु विखंडन :- इस प्रकार के विखंडन जहां दो नहीं अपितु कई व्यस्त ही उत्पन्न होते हैं ऐसे विखंडन को बहु विखंडन कहते हैं जैसे मलेरिया परजीवी
* मुकुलन :- बहुकोशिकीय जीवो में बार-बार विभाजन होने से एक उदार बन जाता है इस पर सोमवार को मुक्लन कहते हैं यह मुकुलन बड़ा होकर एक नए जिम में बन जाता है इस संपूर्ण क्रिया को मुकुलन कहते
* पुनर्जनन :- खंडित शारीरिक भागों को पुनः प्राप्त करने की जीव की क्षमता पुनर्जन्म है
* युग्मक जनन :- वह प्रक्रिया जिसके द्वारा अंडाणु और शुक्राणु मिलकर युग्मक बनाते हैं युग्मक जनन कहलाती है यह युग्मक निषेचन नामक प्रक्रिया द्वारा प्रसपर जुड़ जाते हैं
* अंड प्रजक :- जिन जंतुओं में बाहें परिवर्धन होता उसे अंड प्रजक कहते हैं जैसे की मछलियां
* सजीव प्रजक :- जिन जंतुओं में आंतरिक परिवर्तन होता है और जो बच्चे पैदा करते हैं वह सजीव रजत कॉल आते हैं जैसे स्तनधारी प्राणी
* अनिषेक जनन :- अनिषेक जनन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति जीव एक और निषेचित अंडे से उत्पन्न होता है कुछ कीटों में शुक्राणुओं तथा निषेचित ना होने वाले अंडानो से नर उत्पन्न होते हैं जो अंडाणु होते
*स्पोर :- बहू खंडन के मामले में प्रत्येक संतति कोशिका को स्पोर कहते हैं
* कायिक जनन :- इस विधि में जर, तना, पत्तियां या अन्य विशिष्ट भाग जनक पौधे से अलग होकर नए पौधों का रूप ले लेता है जैसे शकरकंद
* सूक्ष्म प्रवर्धन :- पौधों की कोशिकाओं उत्तर को और किसी अंग का संवर्धन करके पौधों के लिए इस्तेमाल किया जाता है तो सूक्ष्म प्रवर्धन कहलाता है
* रजोनिवृत्ति :- राजोद चक्र के समापन को रजोनिवृत्ति कहते हैं
* कृत्रिम गर्भाधान :- किन्ही अन्य तरीकों से गर्भाधान को कृत्रिम गर्भाधान कहते हैं
* ट्यूबेक्टमी :- गर्भधारण को रोकने के लिए एंड वाहिनी के एक भाग को काटकर अलग करने की समय क्रिया को ट्यूबेक्टमी कहते हैं
* नर गैमिट :- यह स्त्रीकेसर के ही एक भाग पराग कोष के अंदर बनते हैं पराग कोष के भीतर माइक्रो स्पॉन्जिया होते हैं माइक्रोस्पोर कोशिकाओं में म्यूजिक होता है तथा चार चार अगुणित माइक्रोस्पोर बनते हैं माइक्रो स्कूल की बाहरी दीवार एक साइन तथा भीतरी एंड टाइम होती है परागकण के भीतर नर ज्ञानी बनता है इसलिए इसे गैमिटोफाइट कहा जाता है
*मादा गैमिट :- यह अंडाशय के भीतर बीजांड के अंदर बनते हैं सीन अर्जित कोशिकाएं निषेचन की क्रिया में सहायता करती है जिसमें यह प्राग नली को एंड कोशिका की ओर निर्दिष्ट कर देते हैं पराग कणों का उसी स्पीशीज या किसी अन्य स्पीशीज के किसी फूल के बर्तिका ग्रह पर पहुंचना परागकण कहलाता है
* स्व-बंध्यता :- एक ही फूल के परागकण उसी फूल के वर्तिका घर पर आ पहुंचे तब यह निषेचन कराने में अक्षम होते हैं इसे स्व-बंध्यता है तो कहते हैं
*परागण—परागकणों के परागकोष से वर्तिकान में स्थानांतरण को कहते हैं। परागण कहते हैं।
*अंडोत्सर्ग—अंडाशय में से अंडे का निकलना अंडोत्सर्ग कहलाता है।
*कोर्म-प्रकंद की एक संघनित नस्त को कोर्म-कोलो कैशिया ऐमोर्कोफैलस (Corm Colocasia Amorphophallus) जिमीकंद भी कहते हैं।
*कलम- इस पद्धति में एक छोटी-सी शाखा को जमीन में उग रहे पौधों में धंसा दिया जाता है। जमीन में उगा हुआ पौधा एक स्टॉक के रूप में कार्य करता है और रोगों के लिए प्रतिरोधी होता है। इस स्टॉक को ही कलम (Scion या graft) कहते हैं।
*कैलस—सूक्ष्म प्रवर्धन तकनीक में किसी पौधे में से ऊतक का एक छोटा-सा टुकड़ा, अंग अथवा एक एकल कोशिंका निकालकर उसे पोषक माध्यम से भरे एक निर्जलीकृत पात्र में रख दिया जाता हैं। ऊतक बहुत तीव्रता के साथ वृद्धि करके एक असंगठित संवृति बना देता है, जिसे कैलस कहते हैं।
*निषेचन—वह प्रक्रिया जब शुक्राणु तथा अंडे की कोशिकाओं का उनके केंद्रकों सहित समेकन होकर युग्मनज बनता है, उसे निषेचन कहते हैं।
*विदलन- ऐसी प्रक्रिया जब युग्मनज में बार-बार कोशिकाओं का विभाजन होकर बहुसंख्यक सभाजन कोशिकाएँ बनती हैं।
*कशेरुकी जनन प्रक्रिया- कशेरुकी प्राणी केवल लैंगिक रूप से ही जनन कर सकते हैं कशेरुकी प्राणियों में लैंगिक द्विरूपता है। युग्मक एक प्रक्रिया द्वारा बनते हैं, जिसे युग्मक जनन कहते हैं नर के वृषण में होने वाले शुक्राणु जनन से शुक्राणु बनते हैं और मादा के अंडाशय
में होने वाले अंड जनन से अंडाणु बनते हैं। युग्मक (शुक्राणु और अंडाणु) निषेचन नामक प्रक्रिया द्वारा परस्पर जुड़ जाते हैं। यह कार्य मैथुन के द्वारा होता है।
*सजीव प्रजक- ऐसे जंतु जिनमें आंतरिक निषेचन होता है और जिनमें बच्चे पैदा होते हैं सजीव प्रजक कहते हैं। जैसे-स्तनधारी
*अंड प्रजक- जिन जंतुओं में बाह्य निषेचन होता है और जो जंतु अंडे देते हैं अंड प्रजक कहलाते हैं। जैसे-कीट, मछलियाँ।
*गुप्त वृषणता- वृषणों के वृषणकोश में न उतरने के कारण बंध्यता आ जाती है। क्योंकि उदरीय गुहा के उच्चतर तापमान पर शुक्राणु जनन की प्रक्रिया नहीं हो पाती। इस स्थिति को गुप्त वृषणता कहते हैं।
*शिश्न– शिश्न नर का बाह्य जनन अंग होता है। शिश्न का शीर्ष अत्यधिक संवेदनशील होता है। मैथुन के समय वीर्य इसमें से निकलता हैं।
*प्रॉस्टेट ग्रंथि– प्रॉस्टेट ग्रंथि एक क्षारीय स्राव छोड़ती है, जो शुक्राणुओं को पोषण प्रदान करता है और मूत्र की अम्लता को उदासीन कर देता है।
*वार्थोलिन ग्रंथियाँ- वार्थोलिन ग्रंथियाँ मैथुन और प्रसव के समय श्लेष्मा का स्राव करती है ताकि योनि (मादा जननांग) चिकनी बनी रहे।
*स्व-परागण— किसी पुष्प के परागकोष से उसी पुष्प के अथवा उस पौधे के अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र तक, परागकणों का स्थानांतरण स्वपरागण कहलाता है।
*पर-परागण- एक पुष्प के परागकोष से उसी जाति के दूसरे पौधों के पुष्प के वर्तिकान तक परागकों का स्थानांतरण पर-परागण कहलाता है।
*परागनलिका- पौधों में परागण के बाद निषेचन की क्रिया होती है। जब परागकण वर्तिकान पर एकत्रित हो जाते हैं, तब उनका अंकुरण हो तो और उनमें से एक नली को जो वर्तिका में प्रवेश करती है, परागनलिका कहते हैं।
*युग्मक-संलयन– नर तथा मादा युग्मकों का संलयन युग्मक संलयन कहलाता है और इससे युग्मनज बनता है।
*त्रिसंलयन- इस संलयन क्रिया में तीन केंद्रक होते हैं। एक युग्मक तथा दो ध्रुवीय केंद्रक। अतः प्रत्येक भ्रूणकोष में दो संलयन, युग्मक-संलयन तथा त्रिसंलयन होने की क्रियाविधि को दोहरा निषेचन भी कहते हैं।
*वृषणकोष- वृषण उदर गुहा के बाहर छोटे आशयनुमा माँसल संरचना में रहते हैं, जिसे वृषणकोष कहते हैं।
*शुक्रवाहिनी– पुरुषों के संपूर्ण जनन काल में वृषण से शुक्राणु उत्पन्न होते रहते हैं। दोनों वृषणों में एक लंबी नली निकलती है जिसे शुक्रवाहिनी कहते हैं।
*मूत्रमार्ग—यह मूत्राशय से आने वाली नली से जुड़कर एक उभय नली बनाती है, जिसे मूत्रमार्ग कहते हैं।
*डिंबवाहिनी नली- अंडाशय के पश्च भाग के समीप एक कीप के समान संरचना होती है, जो आगे जाकर लंबी कुंडलित नलिका बनाती है, इसे डिंबवाहिनी कहते हैं।
*ऋतुस्त्राव रजोधर्म- स्त्रियों में निषेचन न होने की अवस्था में गर्भाशय की आंतरिक मोटी भित्ति रक्त वाहिनियों के साथ टूटकर रक्तस्राव के रूप में योनिमार्ग से बाहर आती है। इस प्रक्रिया को ऋतुस्राव रजोधर्म कहते हैं।
*आर्तव चक्र- स्त्रियों में प्रत्येक 28 दिन बाद अंडाशय तथा गर्भाशय में होने वाली घटना ऋतुस्राव द्वारा चिह्नित होती है। इसे ही आर्तव चक्र या स्त्रियों का लैंगिक चक्र कहते हैं। यौवनारंभ के समय रजोधर्म के प्रारंभ को रजोदर्शन कहते हैं।
* रोपण- भ्रूण तथा गर्भाशय के निकट संलग्नता को रोपण कहते हैं।
*अपरा- रोपण की क्रिया के बाद गर्भाशय की दीवार तथा भ्रूण के बीच एक विशेष ऊतक विकसित होता है जिसे अपरा कहते हैं। भ्रूण के विकास के लिए सभी प्रक्रिया अपरा द्वारा होती है।
*लैंगिक संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases "STD")- ऐसे संक्रामक रोग जो लैंगिक संसर्ग द्वारा एक संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति तक फैल जाते हैं। ऐसे रोगों को लैंगिक संचारित रोग कहते हैं। जैसे-सुजाक, आतशक, ट्रायकोमोनसता तथा AIDS.
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Hello My Dear, ये पोस्ट आपको कैसा लगा कृपया अवश्य बताइए और साथ में आपको क्या चाहिए वो बताइए ताकि मैं आपके लिए कुछ कर सकूँ धन्यवाद |