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BSEB Class 10th Exam 2022 | According to New Syllabus | निबंध लेखन 10 अंक | निबंध कैसे लिखें | निबंध कैसे लिखते हैं

BSEB Class 10th Exam 2021 | According to New Syllabus | निबंध लेखन 10 अंक | निबंध कैसे लिखें | निबंध कैसे लिखते हैं

1. कोरोना महामारी
विषय प्रवेश : कोरोना जिसे COVID-19 के नाम से जाना जाता है यह नई बीमारी है यह वायरस जनित है संपूर्ण विश्व में कोरोनावायरस का माहौल पैदा कर दिया है|

उत्पत्ति : चीन के वाहन शहर में चमगादड़ ओं में या बीमारी फैली जैसा कि लोग कहते हैं| कुछ का मानना है कि चीन की प्रयोगशाला जिसमें वायरस पर प्रयोग किया जाता है (वुहान शहर) में एक लिक कर संपूर्ण विश्व में फैल गया|

लक्षण : इस बीमारी में सूखा खांसी बुखार सर्दी के सामान्य लक्षण होते हैं अंत तक सांस नली संक्रमण से व्यक्ति असमय काल के गाल में चला जाता है|

प्रसार : यह बीमारी छिकने, थूकने एवं स्पर्श से फैलती है| अतः इसका प्रसार रोकना जरूरी है|

रोकथाम : इस बीमारी का प्रसार रोकने में 20 मिनट तक साबुन से हाथ धोना मास्क लगाना दस्ताने का प्रयोग करना बाहर से आने पर स्नान करना रोज वस्त्र साफ एवं स्वच्छ पहनना एवं हाथ को सैनिटाइजर से साफ करना इसके रोकथाम के उपाय हैं|

उपसंहार : कोरोनावायरस की दवा अभी नहीं बनी है संपूर्ण विश्व में इस बीमारी ने हाहाकार मचा दिया है | चीन स्पेन अमेरिका ब्रिटेन इटली और ऑस्ट्रेलिया रूस आदि जैसे विकसित देशों में इससे मरने वालों की संख्या लाखों में पहुंची गई है|
भारत में इस रोग की शुरुआत में ही लॉकडाउन लगा दिया गया है| सभी घर में रहकर सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक दूरी) कर इस बीमारी से प्रतिकार कर रहे हैं इसकी दवा अभी नहीं है परंतु सर्वत्र इसकी दवा की खोज के लिए शुद्ध किए जा रहे हैं|

2. बाल मजदूरी
भूमिका : बाल मजदूरी एक विकट राष्ट्रीय समस्या है| यह बाल शोषण और सुरक्षा से जुड़ी गंभीर समस्या है| आज भारत में बच्चों के समग्र विकास हेतु बाल सुरक्षा अधिनियम लागू है| सुप्रीम कोर्ट की सख्त हिदायत है कि बच्चों के शोषण और उत्पीड़न एक सामाजिक अपराध है लगभग 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को निशुल्क शिक्षा सुरक्षा और शोषण मुक्त जीवन राज्य की नैतिक जिम्मेदारी बनती है|

कारण : बाल मजदूरी का प्रधान कारण अशिक्षा और गरीबी है और शिक्षित परिवार के लोग बच्चों को पढ़ाने की जगह चाय की दुकान पर बड़े-बड़े रेस्तरां में बड़ी-बड़ी जहरीली गैस गोदामों में अथवा पक्षियों में काम पर भेज देते हैं जो बच्चे राष्ट्र के भविष्य हैं जिनका जीवन फूल के समान कोमल होता है वह सोशल दोहन और उत्पीड़न के शिकार बन जाते हैं उनके ऊपर तरह-तरह के जुर्म और शोषण होते हैं यह बाल शोषण मानव अधिकार आयोग के नियमों के खिलाफ 11 जरूरी बाल उत्पीड़न है हमें इसे अविलंब रोकना चाहिए|

लाभ हानि : बाल मजदूरी का अर्थ है कि 14 साल तक कि किसी बच्चे को बहका कर अल्प वेतन देकर काम लेना बाल मजदूरी है इस शोषण को दंडनीय अपराध माना गया है | बाल मजदूरी के कारण बच्चे और शिक्षित और सुरक्षित और उत्पीड़ित होते हैं अक्सर गरीब अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल में भेजने की वजह होटलों ढाबा फुटपाथ ई दुकानों में भेज देते हैं जहां उनका आर्थिक शोषण होता है| जिन बच्चों के हाथ में लेट होना चाहिए उन बच्चों के हाथ में प्लेट होता है बाल मजदूरी को रोकने के लिए इस लिए सख्त कानून बनाने की जरूरत है केवल कानून बना देने मात्र से सरकार बच नहीं सकती इसके लिए गरीबी व बेरोजगारी को दूर करने की जरूरत है|

उपसंहार : बच्चों को स्कूल भेजकर उन्हें निशुल्क शिक्षण की सुविधा देकर ही हम बाल मजदूरी को कम कर सकते हैं इसके लिए बाल जागरूकता एवं शोषण मुक्त सामाजिक व्यवस्था लानी होगी|

3. डाकिया
भूमिका : डाकिया एक बहुत ही उपयोगी व्यक्ति है और वह बड़ा ही परिश्रम शील व्यक्ति है उनका काम पत्रों पार्सल ओ मनी और डरो को लोगों तक पहुंचाना है|

कार्य की महत्ता : थैले में क्या और पत्र होते हैं जिसको उसे वितरित करना होता है सर्वप्रथम डाक पत्रों का छात्रावास चयन करता है तथा छात्र अनुसार पत्रों का अपने थैले में रखता है और वह साइकिल उठाकर अपना कर्तव्य निभाने के लिए चल देता है|
डाकिए का कार्य बड़ा कठिन तथा थका देने वाला होता है एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले में एक गली से दूसरी गली में तथा एक घर से दूसरे घर तक पत्रों को पहुंचाना होता है| धीरे-धीरे हर क्षेत्र हर मोहल्ला हर घर उसकी याद में समा जाता है|

पोशाक : वाह खाकी वर्दी पहनता है और कहा कि टोपी पहनता है वह सदैव अपने हाथ चमड़े का थैला रखता है जिसे वह अपने कंधे पर लटकाए रखता है|
खुशी एवं गम दोनों संदेशों का वाहक : लोग उसकी प्रतीक्षा व्याकुल होकर करते हैं| कुछ को वह सुखद समाचार लाकर देते हैं तो कुछ को वह दुखद समाचार| हुआ रोजाना काम करता है गर्मी, बरसात या सर्दी हो उसे तो अपना कर्तव्य पूरा करना है|

उपसंहार : डाकिए को विनम्र होना चाहिए हमें भी उसके प्रति दया पूर्ण व्यवहार करना चाहिए डाकियो को स्वास्थ्य तथा हष्ट पुष्ट होना चाहिए तभी वह अपने कर्तव्यों का पालन ठीक ढंग से कर सकता है डाकिया कभी-कभी लापरवाही भी दिखाता है| वह कभी गलत स्थान पर पत्र डाल जात है जिसमें महत्वपूर्ण सूचना होती है जो पत्र प्राप्त करने वाले को नहीं मिल पाता है और संचार हीनता के कारण बड़ी हानि हो जाती है|

4. पुस्तकालय
भूमिका : पुस्तकालय का अर्थ पुस्तक + आलय अर्थात पुस्तकें रखने का स्थान पुस्तकालय मौन अध्ययन का संस्थान है जहां हम बैठकर ज्ञान अर्जन करते हैं|

महत्त्व : पुस्तकालयों के अनेक लाभ है| सभी पुस्तकों को खरीदना हर किसी के लिए संभव नहीं है इसके लिए लोग पुस्तकालय का सहारा लेते हैं| इन पुस्तकालयों से निर्धन व्यक्ति भी लाभ उठा सकता है पुस्तकालय से हम अपनी रूचि के अनुसार विभिन्न पुस्तकें प्राप्त कर अपना ज्ञानार्जन कर सकते हैं|

प्रकार : पुस्तकालय भिन्न भिन्न प्रकार के हो सकते हैं| कई विद्या प्रेमी अपने उपयोग के लिए अपने घर पर ही पुस्तकालय की स्थापना कर लेते हैं| ऐसे पुस्तकालय व्यक्तिगत पुस्तकालय कहलाते हैं| सार्वजनिक रूप योगिता की दृष्टि से इनका महत्व कम होता है|
दूसरे प्रकार की पस्तकालय स्कूलों और कॉलेजों में होते हैं| इनमें बहुत उन पुस्तकों का संग्रह होता है जो पाठ्य विषयों से संबंधित होती है सार्वजनिक उपयोग में इस प्रकार के पुस्तकालय भी नहीं आते हैं| इनका उपयोग छात्र और अध्यापक ही करते हैं परंतु ज्ञान अर्जन और शिक्षा के पूर्णता में इनका सार्वजनिक महत्व है| इनके बिना विद्यालयों का कल्पना नहीं की जा सकती|
तीसरे प्रकार के पुस्तकालय राष्ट्रीय पुस्तकालय कहलाते हैं| आर्थिक दृष्टि से संपन्न होने के कारण इन पुस्तकालयों में देश-विदेश में छपी भाषाओं और विषयों की पुस्तकों का विशाल संग्रह होता है| इनका उपयोग भी बड़े-बड़े विद्वानों द्वारा होता है| चौथे प्रकार के पुस्तकालय संचालन सार्वजनिक संस्थाओं के द्वारा होता है|

लाभ : पुस्तक ना खरीद सकने वाले व्यक्ति ग्रामीण समुदाय पुस्तकालय की पुस्तकों को पढ़कर लाभ उठाते है|

उपसंहार : पुस्तकालय हमारे जीवन में प्रभावशाली महत्व रखते हैं| आज आधुनिकता के दौर में पुस्तकालयों का महत्व नई पीढ़ी इंटरनेट एवं गूगल सर्च कर प्राप्त कर रहा है जो अत्यंत ही  सोचनीय बात है|

5. राष्ट्रीय एकता / भारतीय एकता
भूमिका : किसी भी राष्ट्र की उन्नति का एक मूल मंत्र है| राष्ट्रीय एकता जिस राष्ट्र में एकता है वहां समृद्धि है शांति है| जहां एकता नहीं है वह गरीबी है गुलामी है|

राष्ट्रीय एकता का महत्व : अपना देश भारत एक विशाल देश है| यहां हिंदू है मुसलमान है ठीक है इस आई है अनेक धर्म है| अनेक उप धर्म है विविध भाषाएं हैं| विभिन्न बोलियां हैं साथ ही विभिन्न भागों में रहने वाले लोगों की जीवन पद्धति भी भिन्न-भिन्न है सबके खाने और पहनने का अपना-अपना ढंग है| इसलिए देश में राष्ट्रीय एकता की अत्यंत आवश्यकता है|

बाधाएं और दूर करने के उपाय : वस्तुतः आज हमारी राष्ट्रीय एकता पर खतरा उपस्थित है| चारों ओर राष्ट्रीय एकता को तोड़ने वाली शक्तियां सिर उठा रही है| देशी-विदेशी की समस्या है अगले पिछले की तकरार है 10 दिन में हिंदू विरोधी आंदोलन है तो कश्मीर असम में अलगाववाद की आग फैली है| हिंदू और मुस्लिम का झगड़ा अलग मुंह बाए खड़ा है वस्तुतः यह संक्रांति काल है और हमें अपनी स्वतंत्रता को बचाए रखने के लिए राष्ट्रीय एकता कायम करनी होगी इसके बिना हमारी कोई गति नहीं है|
आज लोगों को बताने की जरूरत है कि राष्ट्र सर्वोपरि है इसमें ना कोई छोटा है और नारा सबकी अपनी-अपनी भूमिका है| जैसे पांचों उंगलियां छोटी-बड़ी और अलग-अलग है किंतु सब मिल जाती है तो बड़े से बड़े कार्स को शहर संपन्न कर डालती है वैसे ही हम सब मिलकर बड़ा से बड़ा काम आसानी से कर सकते हैं|

उपसंहार : राष्ट्रीय एकता आज समय की आवश्यकता है| एक से बढ़कर कोई वस्तु नहीं है शेख सादी ने कहा भी है कि यदि चिड़िया एकता कर ले तो शेर की खाल खींच सकती है| फिर हम तो आदमी है बताइए राष्ट्रीय एकता कायम करने का संकल्प लेकर जुट जाएं कौन है जो आगे टिकेगा |

6. समय का महत्व
भूमिका : कहते हैं कि समय अमूल्य धन है यह प्रत्येक मनुष्य को बिना दाने दिए प्राप्त होता है| किंतु किसी भी कीमत पर इसे लौटाया नहीं जा सकता| एक बार जाकर यह फिर वापस नहीं आता इसीलिए मारवाड़ कबीर ने कहा है|
काल करे सो आज कर आज करे सो अब
पल में प्रलय होएगी बहुरि करोगे कब

समय के सदुपयोग से लाभ : समय अत्यंत महत्वपूर्ण है समय से ही ऋतु आती जाती है| समय पर ही पर ही फल फूल आते हैं| सूरज और चांद भी अपने समय पर ही उदय अस्त होते हैं| इनमें कहीं व्यवधान नहीं होता यही कारण है कि प्रकृति कायम है|

समय के दुरुपयोग से हानि : जैसे प्रकृति में समय की महत्ता है वैसे ही मानव के लिए भी समय महत्वपूर्ण है| सच कहे तो मानव जीवन की सफलता का रहस्य भी समय के समुचित उपयोग में ही छिपा है| सबको समान रूप से दिन के 24 घंटे उपलब्ध होते हैं जो इनका उपयोग करते हैं| वे गुमनामी में खो जाते हैं या बदनामी ओढ़ लेते हैं| वह जिंदगी भर सकते और पछताते हैं| सचमुच समय निर्मम न्यायधीश है जो सबको उनकी करनी के अनुरूप पुरस्कृत या दंडित करता है|
समय पर काम करने से योग्यता हासिल हो जाती है| योग्य व्यक्ति अपना काम उपयुक्त ढंग से करता है और सफल होता है| लोग उसके गुण गाते हैं| एक प्रसिद्ध लेखक का कहना है कि वह व्यक्ति महान है जो कहता है कि मेरे पास समय का अभाव है|
निष्कर्ष : अतः हमें समय पर सभी काम करने की आदत डालनी चाहिए छन छन का लेखा-जोखा तैयार करना चाहिए और उसी के अनुसार काम करना चाहिए| क्योंकि क्षण से मिनट मिनट से घंटे और घंटे से दिन सप्ताह माह और वर्ष बनते हैं|

7. दहेज : एक सामाजिक कलंक या,
 दहेज : समस्या और समाधान अथवा,
दहेज - प्रथा - एक अभिशाप
भूमिका : दहेज प्रथा भारतीय जनता और समाज के माथे पर कलंक का सबसे बड़ा टिका है| इस दैत्य ने ना जाने कितनी युवतियों को कुंवारी रहने पर मजबूर किया है| कितने घरों को बर्बाद किया है और न जाने कितनी कन्याएं इन की बलिवेदी पर जल मरी है|

प्राचीन और वर्तमान स्वरूप और आधार : वस्तुतः दहेज उसे कहते हैं जो पुत्री के विवाह में पिता की ओर से उपहार के रूप में दिया जाता है| पहले यह युटुब कहा जाता था आज इसे दहेज कहते हैं| इन दिनों इसके स्वरूप में जरा अंतर हो गया है| पहले यह दहेज बाध्यता नहीं थी लेकिन इन दिनों इस दहेज बात देता है और दहेज के तय हो जाने पर ही विवाह किया जाता है| इस दहेज का आधार है लड़के के पिता की संपत्ति लड़के की शिक्षा नौकरी इस पर यदि लड़का सुंदर और गुणवान हो तो क्या कहना जैसे सोने में सुहागा लीजिए जितना दहेज आप लेना चाहते हैं लगाइए बोली बहुत से लोग तो अपने बच्चों को इसलिए पढ़ाते हैं कि अधिक दहेज मिलेगा आज यह दशा है कि दहेज निश्चित है मजिस्ट्रेट डॉक्टर इंजीनियर की रानी चपरासी सब के भाव निश्चित है|

दहेज का परिणाम : सच्ची बात तो यह है कि दहेज अब प्रेम का उपहार नहीं प्रतिष्ठा का सूचक है| जिस के पुत्र को जितना अधिक दहेज मिलता है| वह उतना ही अधिक प्रतिष्ठित माना जाता है यही बात लड़की की और भी है जो जितना अधिक दहेज देता है| वह उतना ही इज्जतदार माना जाता है इस प्रकार दहेज का दानव दोनों ही पक्षों को समान रूप से खाता है|

सामाजिक कलंक : वस्तुत आया सामाजिक कलंक है| आज देश के इस कलंक को मिटाने की जरूरत है या ठीक है कि इसे निपटाने के लिए उपदेश दिए जाते हैं| लेकिन मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की की भांति यह रोग बढ़ता ही गया सरकार ने भी कानून बनाए हैं जरूर लेकिन कानून से ही सिर्फ कुछ होने वाला नहीं है| लोगों की मनोवृति में परिवर्तन अत्यंत आवश्यक है इसके बिना कानून सिर्फ किताबों में रह जाएगा और आज तक यही हुआ है|

उन्मूलन एवं उपसंहार : इस प्रथा को दूर करने के लिए नवयुवक नवयुवक तीनों को ही आगे आना पड़ेगा और यह प्रण करना होगा कि वह दहेज ना लेंगे और ना देंगे तभी या कुरकुरीत रुकेगी और नहीं तो याद अन्नदान अब भारतीय समाज को एक दिन खोकला बनाकर छोड़ेंगे परिणाम होगा कि और अनीतियां व्यभिचार और हत्या तथा आत्महत्या के दलदल में फंसा दिया भारतीय समाज रसातल को चला जाएगा|

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