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प्रशन 19:--- क्षेत्रवाद क्या है? क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
या:-- क्षेत्रवाद से आप क्या समझते हैं?
इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:--
भारत में जिन समस्याओं ने सामाजिक राजनीतिक
जीवन में अपना प्रभाव विस्तृत किया है, उनमें
क्षेत्रवाद भी एक है। क्षेत्रवाद किसी राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के नागरिकों की
एक संकुचित धारणा है जिसके कारण किसी क्षेत्र विशेष के व्यक्ति राष्ट्र की तुलना
में अपने ही क्षेत्र के हितों और स्वार्थों की पूर्ति की मांग करने लगते हैं।
स्वाधीनता प्राप्ति के बाद देश के सभी क्षेत्रों का विकास संतुलित
रूप से नहीं हो पाया जिसके कारण क्षेत्रीय भावनाओं को बल मिला और क्षेत्रवाद का
उदय हुआ।
संक्षेप में क्षेत्रवाद या क्षेत्रीय एक क्षेत्र विशेष में निवास
करने वालों के अपने क्षेत्र के प्रति वह विशेष लगा हुआ अपनेपन की भावना है जिसे
कुछ सामान्य आदर्श व्यवहार, विचार तथा विश्वास के रूप में अभिव्यक्त किया
जाता है।
** क्षेत्रवाद
की विशेषताएं
:-
1. क्षेत्रवाद स्थानीय देशभक्ति का एक विघटित
स्वरूप है जिसमें विशेष क्षेत्र के हितों को अधिक महत्वपूर्ण समझा जाता है।
2. क्षेत्रीय नेतृत्व के द्वारा नियोजित रूप से
क्षेत्रीय भावनाओं का प्रसार किया जाता है।
3. क्षेत्रवाद में पक्षपात का समावेश होता है।
4. इस मनोवृति में एक विशेष क्षेत्र को एक पृथक
राजनीतिक तथा सामाजिक इकाई के रूप में देखा जाता है।
5. संस्कृतिक विरासत में भिन्नता होने से इसके
प्रभावों में भी वृद्धि होती हैं।
6. क्षेत्रवाद का सीधा संबंध राजनीतिक और सरकार
में प्रतिनिधित्व से है ।
7. क्षेत्रवाद का आधार यह निर्मल विश्वास भी है।
क्षेत्रीय आधार पर संगठित हुए बिना उस क्षेत्र को सरकार द्वारा अधिक सुविधाएं
प्राप्त नहीं हो सकती।
प्रशन 20:-- भारत में उदारीकरण के प्रभावों की विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर:--
भूमंडलीकरण एवं
उदारीकरण की नीतियों के परिणाम स्वरूप भारत में पिछले एक दशक के दौरान अनेक
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष परिवर्तन हुए हैं---
1. संचार के क्षेत्र में उत्तम सेवाएं
2. विदेशी खाद्द प्रसंस्करण मैकडोनाल्ड, कैलोग, कंपनियों
का आगमन
3. उत्पादकों में प्रतिस्पर्धा
4. आय तथा उपभोग में वृद्धि
1. संचार
के क्षेत्र में उत्तम सेवाएं:--- इस दौरान संचार
के क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन हुए हैं। टेलीफोन तथा मोबाइल सेवाओं की वृद्धि ,रंगीन
टेलीविजन तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामानों की सस्ती दर पर उपलब्धता विशेष उल्लेखनीय
हैं।
2. विदेशी
खाद्य प्रसंस्करण मैकडोनाल्ड, कैलोग, कंपनियों
का आगमन:-- भारत में पेप्सी, कोका कोला ,जैसी
फूड सॉफ्ट ड्रिंक कंपनियों के प्रवेश से बाजार में इनके शीतल पर और अन्य खाद्य
उत्पादों की बाढ़ सी आ गई है।
3. उत्पादकों
में प्रतिस्पर्धा:--- भारत में लगभग
सभी उत्पादों के निर्माण में कंपनियों का एकाधिकार समाप्त हो चुका है। उदारीकरण के
इस दौर में अब कोई भी फर्म या कंपनी किसी
भी वस्तु या सेवा के निर्माण में आसानी से आ सकती हैं। उसका प्रत्यक्ष लाभ
उपभोक्ता को मिला है जिससे वस्तुओं में अधिक वैरायटी और वह भी मुनासिब दामों में
मिली है।
4. आय
तथा उपभोग में वृद्धि:--- भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण के फल स्वरुप अनेक क्षेत्रों में भारत में
तेजी से प्रगति हुई है फार्मा , इंश्योरेंस, सॉफ्टवेयर, टेलीकॉम, इलेक्ट्रॉनिक्स
,प्रोडक्ट्स, इंफ्रास्ट्रक्चर, संगठित बाजार, होटल
,एयरलाइंस, बैंकिंग तथा वित्त सेवाएं ऐसे कई औद्योगिक
क्षेत्र हैं जहां लोगों को रोजगार मिला और कैरियर तेजी से आगे बढ़ा। बढ़ोतरी तथा
अधिक आय से लोगों ने अपने जीवन के स्तर को ऊपर उठाने के लिए अधिक वस्तुओं पर खर्चा
किया। इससे बाजारों का सर्वांगीण विकास हुआ।
प्रशन 21:-- औद्योगिक करण से आप क्या समझते हैं?
सामाजिक परिवर्तन में इसके प्रभाव का उल्लेख करें।
या:-- भारत में औद्योगिकरण के प्रभावों महत्व का उल्लेख
कीजिए। 2017,2019 Most vvi Question
उत्तर:--
वर्तमान
औद्योगिकरण का जन्म औद्योगिक क्रांति का ही परिणाम है। औद्यो-गिकरण एक ऐसी
प्रक्रिया है जिसमें लघु एवं कुटीर उद्योग का स्थान बड़े पैमाने के उद्योग ले लेते
हैं। उद्योग में जनशक्ति का प्रयोग किया जाता है और उत्पाद मशीनों की सहायता से
होता है ऐसी स्थिति में उत्पादन विशाल मात्रा में और तीव्र गति से होने लगता है।
** औद्योगीकरण
के प्रभाव:-- औद्योगीकरण के प्रभाव को हम निम्न आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं---
1. नगरीकरण
2. समाज में वर्ग भेद
3. नवीन विचारधाराओं का जन्म
4. गंदी और घनी बस्ती
5. स्त्रियों के कार्य भार में कमी
6. यातायात के साधनों का प्रभाव
7. कारखाना पद्धति का विकास
1. नगरीकरण:-- औद्योगिकरण के कारण अनेक नए औद्योगिक नगर विकसित हुए हैं। कारखानों
में हजारों श्रमिकों को काम मिलने लगा है। गांव मे असंख्या लोग काम की तलाश में नगरों में आते
हैं। इनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अनेक होटलों, दुकानों
,स्कूलों ,कॉलेज ,बैंक तथा मकानों
का निर्माण व्यापक पैमाने पर होता है। जहां बड़े कारखाने स्थापित होते ,हैं
वहां नए-नए नगर बस जाते हैं।
2. समाज
में वर्ग भेद:--- औद्योगिकरण का सबसे बड़ा प्रभाव यह है कि इससे
समाज में वर्ग भेद उत्पन्न हो जाता है। धनी और निर्धन के बीच अंतर बढ़ जाता है।
श्रमिकों और पूंजीपतियों के बीच संघर्ष का कारण
यह औद्योगिकरण ही है।
3. नवीन
विचारधाराओं का जन्म:--- औद्योगिक वर्ग
संघर्ष तथा नगरीकरण से नवीन विचारधाराओं का उदय हुआ है। जिन शहरों में बड़े
कारखाने हैं वहां साम्यवादी विचारधारा का बोलबाला है। हड़ताल और तालाबंदी की
स्थिति देखने को मिलती है।
4. गंदी
और घनी बस्तियां:--- औद्योगिक नगरों में कारखानों के आसपास गंदी
बस्तियां बस जाती है। उनका युवक-युवतियों और बच्चों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
5. स्त्रियों
के कार्य भार में कमी:--- मशीन के उपयोग
से स्त्रियों का काम सरल और कम परिश्रम बाला हो गया है। उन्हें भी पुरुषों के समान
व्यवसायिक कार्य के लिए पर्याप्त समय मिलने लगा है।
6. यातायात
के साधनों का प्रभाव:--- सामाजिक संबंधों
की स्थापना पर संदेश वाहन के साधनों का विशेष प्रभाव पड़ता है। विभिन्न
उद्योग में मशीनों के प्रयोग से व्यापार
का विकास हुआ है। आवागमन के साधनों ने व्यापार को बढ़ाने और बाजार का विस्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
है। यातायात के साधनों के कारण अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन को बढ़ावा मिला है और
सांस्कृतिक आदान-प्रदान में वृद्धि हुई है।
7. कारखाना
पद्धति का विकास:-- बड़े कारखानों की स्थापना से कुटीर उद्योगों का
पतन हुआ है और उनके स्थान पर बड़े कारखानों की स्थापना हुई जिससे वहां कार्य करने
वाले लोगों के रहन-सहन पर प्रभाव पड़ा है। कारखानों ने संबंधित व्यक्तियों के आपसी
संबंधों को औचारिक बना दिया है।
प्रशन 22:-- लौकिकता क्या है? इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।
या:-- लौकीकीकरण क्या है?
इसकी विशेषताओं की विवेचना करें।
उत्तर:--
पहले जिन
वस्तुओं को धार्मिक दृष्टि से देखा जाता था उसके स्थान पर उन्हें तार्किक, बौद्धिक
एवं दृष्टिकोण से देखते हैं, इसे ही लौकिकता कहा जाता है। अब लोग किसी भी
सामाजिक, संस्कृतिक ,आर्थिक, राजनीतिक ,नैतिक
घटना व वस्तु की व्याख्या ईश्वर, परलोक एवं धर्म के संदर्भ में न कर वैज्ञानिकता
एवं तार्किकता के आधार पर करने लगे हैं। इस प्रकार लौकिक दृष्टिकोण को वैज्ञानिक
दृष्टिकोण कहा जा सकता है। विलबर्ट मूर ने कहां की मानवीय कार्यों में धर्म की
भूमिका के संघर्ष में तार्किक भाव द्वारा स्थान ग्रहण करना ही लौकीकी करण है।
** अलौकिकता
की विशेषताएं:-- अलौकिकता की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--
1. धार्मिकता
का ह्रास:-- अलौकिकता की वृद्धि होने पर धर्म का प्रभाव
क्षीण होता जाता है और मानवीय व्यवहार तथा
समाजिक घटनाओं की व्याख्या करने में धर्म के हस्तक्षेप को उचित नहीं माना जाता है।
2. बुद्धिवाद
का महत्व:-- अलौकिकता में तर्क को अधिक महत्व दिया जाता है
और प्रत्येक सांसारिक घटना की व्याख्या तर्क तथा कार्य कारण के आधार पर की जाती
है।
3. वैज्ञानिक
अवधारणा:-- लौकिकता एक वैज्ञानिक अवधारणा है जिसमें किसी
भी घटना की व्याख्या कार्य कारण के आधार पर वैज्ञानिक नियमों और सिद्धांतों के
आधार पर की जाती है न कि भावुकता और धार्मिक आधार पर।
4. विभेदीकरण:-- लौकिकता में विभेदीकरण को बढ़ाया जाता है अर्थात सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक
व नैतिक पक्ष एक दूसरे से अलग कर दिए जाते
हैं। इन कार्यों को करने वाले लोग अलग-अलग होते हैं।
5. धर्म
की स्वतंत्रता:-- लौकिकता में व्यक्ति को किसी भी धर्म को अपनाने
तथा किसी भी धार्मिक संगठन की सदस्यता ग्रहण करने की स्वतंत्रता होती हैं और
धार्मिक क्षेत्र में सामान्यता राज्य का कोई हस्तक्षेप नहीं होता।
6. तटस्थ
अवधारणा:-- लौकिकता की अवधारणा चूंकि तर्क एवं वैज्ञानिकता
पर आधारित है, अतः यह मूल्यों पर जोर देता है।
प्रशन 23:-- नागरीकरण क्या है? भारतीय समाज पर नगरीकरण के प्रभावों की चर्चा करें।
उत्तर:--
नगरीकरण वह
प्रक्रिया है, जिसके अनुसार न केवल नवीन नगर की स्थापना होती है, बल्कि
गांव तथा कस्बे भी नगरों का रूप धारण करने लगते हैं। नगरीकरण की प्रकृति पर वहां
की परिस्थितियां एवं विशेषताओं का प्रभाव पड़ता है। नगरीकरण के संबंध में
विद्वानों के विचार सर्वमान्य नहीं है।
** भारतीय
समाज पर नगरीकरण का प्रभाव:-- भारतीय समाज पर नगरीकरण का
प्रभाव निम्नलिखित पड़ा---
1. दृष्टिकोण की व्यापकता
2. आत्मनिर्भरता की भावना का विकास
3. अनुकूलन क्षमता में वृद्धि
4. अंधविश्वासों की समाप्ति
5. कुरीतियों की समाप्ति
6. स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में सुधार
7. सामुदायिक भावना का ह्रास
1. दृष्टिकोण
की व्यापकता:-- नगरीकरण के परिणाम स्वरूप भिन्न-भिन्न
रीति-रिवाजों, परंपराओं के लोग एक दूसरे के संपर्क में आते हैं। संचार एवं आवागमन
के साधन सुलभ होने के कारण वहां व्यक्ति देश विदेश की बातों से निरंतर अवगत होता
रहता है जिससे उसका दृष्टिकोण व्यापक होता चला जाता है।
2. आत्मनिर्भरता
की भावना का विकास:-- नगरीय जीवन
प्रतिस्पर्धात्मक होता है, जिसके परिणाम स्वरूप उसमें आत्मनिर्भरता तथा
आत्मविश्वास की भावना विकसित होती हैं।
3. अनुकूलन
क्षमता में वृद्धि:-- नगरीय जीवन
विविधतापूर्ण तथा अनेक भी नेताओं से युक्त होता है। विभिन्न धर्मों, भाषाओं, रीति-रिवाजों
आदि के लोगों को एक साथ रहना पड़ता है, जिसके परिणाम
स्वरूप उनमें एक दूसरे के साथ सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता में वृद्धि होती
है।
4. अंधविश्वासों
की समाप्ति:-- नगरीय जीवन में अधिकतर कार्य परंपराओं के आधार
पर नहीं, बल की उपयोगिता, सुविधा एवं तर्क के आधार पर किए जाते हैं। ऐसी
स्थिति में अंधविश्वासों की समाप्ति तथा तार्किक चिंतन का विकास होना स्वाभाविक
है।
5. कुरीतियों
की समाप्ति:-- नगरीकरण के फल स्वरुप सामाजिक परिवर्तन शीलता बढ़ती है, कूप
मंडूकता का ह्रास होता है कथा तार्किक चिंतन विकसित होता है।
अतः बाल विवाह ,पर्दा प्रथा, दहेज, विधवा
पुनर्विवाह पर निषेध आदि अनेक कुरीतियां समाप्त हो जाती है।
6. स्त्रियों
की सामाजिक स्थिति में सुधार:-- नगरों में पति
पत्नी का संबंध साहचर्य तथा समानता की भावना पर आधारित होता है। अधिकतर परिवारों
में पति-पत्नी दोनों को ही नौकरी करनी पड़ती है,जिसके कारण
स्त्रियों को शिक्षित होना आवश्यक समझा जाता है। ऐसी स्थिति में स्त्रियों की
सामाजिक स्थिति में सुधार होना आवश्यक है।
7. सामुदायिक
भावना का ह्रास:-- नगरीय जीवन मुख्य रूप से व्यक्तिवादी होता है।
व्यक्तिगत अधिकारों तथा दायित्व को सामूहिक हितों की अपेक्षा अधिक महत्व दिया जाता
है, जिसके परिणाम स्वरूप वहां सामाजिक जीवन का विकास नहीं हो पाता है तथा
सामुदायिक भावना कम होने लगती है।
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