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प्रशन 24:-- आधुनिकीकरण क्या है? भारतीय समाज पर आधुनिकीकरण के प्रभावों का वर्णन करें।
या:-- भारत में आधुनिकीकरण के परिणामों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:--
आधुनिकीकरण शब्द
मूलतः अंग्रेजी भाषा के आधुनिक शब्द से बना है। आधुनिकता का अर्थ है गत्यात्मकता
और गत्यात्मकता का अर्थ है बदले हुए विचारों ,मूल्यों (समानता, प्रजातांत्रिक, वैज्ञानिक
,स्वतंत्रतावादी) आदि आधुनिक मूल्यों को आत्मसात करना। इस प्रकार
आधुनिकीकरण की प्रक्रिया विश्व संस्कृति का प्रसार है जो उन्नत प्रविधि, ज्ञान, शिक्षा, विज्ञान, जीवन
के बारे में विवेकपूर्ण दृष्टिकोण, सामाजिक संबंधों
के बारे में लौकिक विचारधारा, जन भावना, न्याय की भावना
के आधार पर विकसित हुई है, जिनका संबंध एक प्रकार के आधुनिक जीवन के लिए
एक विकल्प के चयन से है।
**आधुनिकीकरण का प्रभाव या
परिणाम:-- आधुनिकीकरण का प्रभाव या परिणाम निम्नलिखित हैं---
1. जन जीवन में परिवर्तन
2. धर्मनिरपेक्ष ,प्रजातांत्रिक तथा लोक कल्याणकारी राज्य की
स्थापना
3. तीव्र आर्थिक विकास
4. औद्योगिकरण
5. समान अधिकार
1. जन
जीवन में परिवर्तन:-- आधुनिकीकरण के
परिणाम स्वरूप व्यवहारो, रहन सहन , खानपान ,वेशभूषा, व्यवहार, परिवार
,सामाजिक संबंध, सामाजिक व्यवस्था, नैतिक, शिक्षा, धर्म, प्रथा, विचार, दृष्टिकोण
आदि में व्यापक परिवर्तन हुए।
2. धर्मनिरपेक्ष,
प्रजातांत्रिक तथा लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना:-- आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए भारतीय संविधान सभा
द्वारा भारत में ब्रिटिश मॉडल पर आधारित धर्मनिरपेक्ष प्रजातांत्रिक एवं लोक
कल्याणकारी राज्य एवं समाज के स्थापना के लिए संविधान का निर्माण किया गया जिससे
आधुनिकता को प्रबल पर श्रेय मिला।
3. तीव्र
आर्थिक विकास:-- भारत में आधुनिकीकरण को बल देने के लिए
राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि, भूमि के
अतिरिक्त श्रम का निष्कासन, विनियोग
की प्रेरणा, बचत का महत्व, धन का समान वितरण, वितरण
प्रति व्यक्ति एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि, रोजगार के
अवसरों में वृद्धि आदि प्रयास किए गए।
4. औद्योगिकरण:-- औद्योगिकरण के द्वारा भी भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को तेज
करने का प्रयास किया गया। इसके लिए सिंचाई, बिजली ,लघु
एवं कुटीर उद्योग ,सहकारिता आंदोलन ,कृषि विकास, औद्योगिक
उत्पादन एवं उपभोग, परिवहन
एवं संचार के साधनों आदि में तेजी से वृद्धि की गई। केंद्र सरकार ने 34
उपक्रमों को राजकीय उपक्रम घोषित करके औद्योगिकरण की प्रक्रिया को तेज गति प्रदान
की।
5. समान
अधिकार:-- स्वतंत्रता के बाद भारतीय समाज के सामाजिक एवं
सांस्कृतिक जीवन में तीव्र आधुनिकीकरण हुआ। भारतीय संविधान में समस्त धर्मों, जातियों
तथा वर्ग वादी के नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करके सामाजिक, आर्थिक
तथा राजनीतिक न्याय के सिद्धांत की स्थापना की।
प्रशन25:—संस्कृतिकरण क्या है? भारतीय जाति व्यवस्था में परिवर्तन लाने में इसकी भूमिका की चर्चा
करें।
उत्तर:—
एम.एन.
श्रीनिवास के अनुसार, संस्कृतिकरण परिवर्तन की वह प्रक्रिया हे, जो
हमारी वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में अनेक ऐसे परिवर्तनों को स्पष्ट करती है जिनका
परंपरागत संस्कृत में कोई स्थान नहीं था। शब्दों में कहा जा सकता है कि
संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत निम्न जातियां उच्च जातियों की
संस्कृति की विशेषताओं को ग्रहण करके जाति संरचना मैं अपनी प्रस्थिति को उँचा
उठाने का प्रयत्न करती हैं।
संस्कृतिकरण की भूमिका
(1) निम्न
जातियों की जीवनशैली में परिवर्तन:—प्राचीन
जाति व्यवस्था में निबंध जातियां सामाजिक, आर्थिक और
धार्मिक अधिकारों को वंचित थी, परंतु वर्तमान समय में एक नई चेतना जाग्रत होने
के कारण इन अधिकारों मैं समानता देखने को मिलती है।
(2) जातिगत
नियमों की कठोरता में कमी:—संस्कृतिकरण
के कारण जातिगत परंपरागत नियम तेजी से
कमजोर हो रही है। जातियों के बीच सामाजिक संपर्क बढ़ रहे हैं और राजनीति, शिक्षा, प्रशासन
और उद्योग मैं निम्न जाति या तेजी से आगे बढ़ रही है।
(3) अंतर्जातीय
संबंधों में परिवर्तन:—संस्कृतिकरण के
प्रभाव से विभिन्न जातियों के बीच सांस्कृतिक विवेद कम होते गए, उनके
बीच की समाजिक दूरी भी कम होने लगी है।
(4) असंस्कृतिकरण
मे वृध्दि:—परंपरागत पर जब उच्च जातियों का एकाधिकार
समाप्त हो गया तो ब्राह्मण और क्षात्रिय भी चमड़े,शराब और बीड़ी
बनाने जैसे को अपनाने लगे और निम्न जातियों की तरह उच्च जातियों में भी मांस और
मदिरा का उपयोग भी बढ़ने लगा।
इस प्रकार संस्कृतिकरण से भारतीय समाज में बहुत ही बड़ा परिवर्तन
देखने को मिलता है।
प्रशन26:—धर्म निरपेक्षीकरण पर एक निबंध लिखें।
या. धर्म निरपेक्षता की आवश्यकता की चर्चा करें।
उत्तर:—
धर्मनिरपेक्षता
का तात्पर्य एक विशिष्ट विचारधारा से है तथा यह शब्द ठोस रूप से विचारधारा तमक
नेतृत्व की ओर संकेत करता है। पीटर बर्गर के अनुसार धर्मनिरपेक्षता व प्रक्रिया है
जिसके द्वारा समाज व संस्कृति के विभागों को धार्मिक एवं प्रतीकों के प्रभाव से दूर
रखा जाता है।
धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा इस विचार पर आधारित है कि राज्य पर चर्च
आधारित धर्म अधिकारियों, जैसे—पादरी, पण्डित,मुल्लाह
अथवा खलीफा का नियंत्रण नहीं होगा। धर्मनिरपेक्षता की सबसे प्रमुख पहचान बुद्धि
वाद है। धर्मनिरपेक्षता समाज धर्म के विरुद्ध नहीं है बल्कि या अंधविश्वास, असहिष्णुता, धर्मांधता
एवं प्रगति विरोध का कट्टर विरोधी है। किसी समाज का जन्म धर्मनिरपेक्ष समाज के रूप
में नहीं होता, बल्कि आज जो समाज धर्मनिरपेक्ष समाज के रूप में माने जाते हैं वे कवि
पारंपरिक (धार्मिक/पवित्र) समाज थे तथा बाद में परिवर्तित होकर वही धर्मनिरपेक्ष
समाज बन गए। इस परिवर्तन में धर्मनिरपेक्ष करण की प्रक्रिया क्रियाशील रहती है।
यद्यपि भारतीय संविधान में भारत को एकदम मिनिमम और अब पंथनिरपेक्ष
राष्ट्र घोषित किया गया है पर हकीकत यह है कि समय-समय पर सांप्रदायिक तनाव तथा
दंगे होते रहे हैं जो हमारे धर्म निरपेक्ष मस्तिष्क पर कलंककार्तिका है सच देखा जाए तो सांप्रदायिकता
हमारी राष्ट्रीय पहचान का अपमान है। स्वतंत्र भारत में हिंदू मुस्लिम, हिंदू
सीख, मुस्लिम सिख और हिंदू ईसाई संबंधों में कटुता देखी जा सकती है।
निसंदेह यह कटुता हमारी धर्मनिरपेक्षता के मार्ग में बाधक है। बाधक कारक और कई है
जैसे—साक्षरता का निम्न स्तर, पड़ोसी राष्ट्र
से तनावपूर्ण संबंध, अतीत की कड़वी यादें, राजनेताओं की
चालबाजी ओ एवं निस्वार्थ, प्रेस की नकारात्मक भूमिका इत्यादि।
प्रशन27:—वैश्वीकरण क्या है? इसके सामाजिक प्रभाव की चर्चा करें।
उत्तर:—
वैश्वीकरण
से तात्पर्य आर्थिक, सामाजिक, प्रौद्योगिकी य, संस्कृतिक और
राजनीतिक परिवर्तनों की एक जटिल श्रृंखला, जिसने विविध
प्रकार एवं स्थानों के लोगों को और आर्थिक कार्यकर्ताओं में पारस्परिक निर्भरता, एकीकरण
और अंत क्रिया को बढ़ावा दिया है। जब 1980 के अंतिम दशक
में भारत ने आर्थिक युग के दौर में प्रवेश किया , तो इसका मुख्य
कारण उदारवादी आर्थिक नीति थी इसी बदलाव से भूमंडलीकरण के युग की शुरुआत हुई।
(1) संचार
के क्षेत्र में उत्तम सेवाएं:—इस
दौरान संचार के क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन हुए हैं पूर्व राम टेलीफोन तथा
मोबाइल सेवाओं की वृध्दि,रगीन
टेलीविजन तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामानों की सस्ती दर पर उपलब्धता विशेष
उल्लेखनीय है।
2. विदेशी
खाद्द प्रसंस्करण कंपनियों का आगमन:-- भारत में पेप्सी, कोका
कोला जैसी फूड सॉफ्ट ड्रिंक कंपनियों के प्रवेश से,बाजार में शीतल
पेय और इनके अन्य खाद्य उत्पादों की बाढ़ सी आ गई है।
3. आय
तथा उपभोग में वृध्दि:-- वैश्वीकरण तथा
उदारीकरण के फल स्वरुप अनेक क्षेत्रों में भारत में तेजी से प्रगति हुई है फार्मा, इंश्योरेंस, सॉफ्टवेयर, टेलीकॉम, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्रोडक्ट्स, इंफ्रास्ट्रक्चर, संगठित
बाजार, होटल, एयरलाइंस, बैंकिंग तथा वित्त सेवाएं ऐसे कई क्षेत्र हैं
जहां लोगों को रोजगार मिला और कैरियर तेरी से आगे बढ़ा। अधिक आय से लोगों ने अपने
जीवन के स्तर को ऊपर उठाने के लिए अधिक वस्तुओं पर खर्चा किया। इससे बाजार का सर्वांगीण विकास हुआ।
वैश्वीकरण की प्रक्रिया का भारतीय सामाजिक जीवन पर इसका काफी प्रभाव
पड़ा है। भारत के अनेक सांस्कृतिक विशेषताओं जैसे वेशभूषा, खानपान, शिष्टता
के तरीकों, सम्मान प्रदर्शन और नैतिक मूल्यों पर धीरे-धीरे पश्चिमी देशों की
संस्कृति का प्रभाव बढ़ने लगा है। पहले यह प्रभाव केवल नगरों तक ही सीमित था लेकिन
अब ग्रामीण जीवन में भी पश्चिमी ढंग के व्यवहार स्पष्ट होने लगे हैं।
प्रशन 28:-- भूमंडलीकरण से क्या अभिप्राय है? भूमंडलीकरण के विशिष्ट लक्षणों या विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:--
भूमंडलीकरण
राष्ट्रों की राजनीतिक सीमाओं के आर पार आर्थिक लेनदेन की प्रक्रियाओं और उनके
प्रबंध का प्रवाह है। विश्व अर्थव्यवस्था में आया खुलापन, आपसी
जुड़ाव और परस्पर निर्भरता के फैलाव को भूमंडलीकरण कहा जाता है। दूसरे शब्दों में
इसे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण की प्रक्रिया
कहा जा सकता है। उन्मुक्त व्यापार की इस व्यवस्था के पीछे सोच यह है कि अमेरिका
कम्प्यूटर जैसे माल उत्पादित करें जो उसके लिए सुलभ है और भारत चावल जैसे माल
उत्पादित करें जो उसके लिए सुलभ है।भारत चावल निर्यात करके कंप्यूटर आयात करेगा
जिससे दोनों देशों को लाभ होगा। भूमंडलीकरण की कुछ ऐसी विशेषताएं जिससे ऐसा लगता
है कि एक नए प्रकार के अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक, आर्थिक और
सामाजिक व्यवस्था की स्थापना की तरह हम प्रवृत्त हो रहे हैं। यह विशेषताएं इस प्रकार हैं ----
1. यातायात और संचार साधनों में हुए क्रांतिकारी
विकास के चलते भौगोलिक दूरियां सिमट गई हैं । अब न केवल व्यापार, तकनीकी
एवं सेवा क्षेत्र, बल्कि लोगों का भी सीमा पार आवागमन सस्ता एवं सुगम हो गया है उन
विराम कंप्यूटर और इंटरनेट भी तेजी से दुनिया को जोड़ रहा है।
2. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कि दूरदराज पहुंचने एक
ग्लोबल संस्कृति की स्थापना कर दी है। जींस, टीशर्ट ,फास्ट
फूड, पॉप संगीत, हॉलीवुड फिल्म एवं सेटेलाइट, टेलीविजन
की संस्कृति आज के हर नवयुवक की संस्कृति है, चाहे वह दुनिया
के किसी भी कोने से हो। उपभोक्तावाद भीआज एक तरह से समूचे विश्व की संस्कृति बन
गया है। इतना ही नहीं ,भ्रष्टाचार एवं अपराध करने के तरीके भी अब सारे
विश्व में एक से हो गए हैं।
3. श्रम
बाजार विश्वव्यापी हो गया है।
4. शिक्षा का भूमंडलीकरण हो गया है। अमेरिका जैसे
औद्योगिक देशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने जो विदेशी विद्यार्थी जाते हैं ,उनमें
से अधिकांश वहीं रह जाते हैं। दूसरी तरफ आज अनेक विकासशील देशों के शिक्षा
संस्थानों के पाठ्यक्रम भी विश्वस्तरीय हो गए हैं जिससे यहां शिक्षा प्राप्त कर
रहे विद्यार्थी विश्व में कहीं भी रोजगार पा सकते हैं ।
5. ब्रांडेड से शुरू हुई पेशेवरों की आवाजाही ने
काफी जोर पकड़ लिया है। आज वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर
और शिक्षाविद तो विदेशों की तरफ खींच हो रहे हैं, साथ ही वकील, वास्तुविद, अकाउंटेंट
,प्रबंधक, बैंक एवं कंप्यूटर विशेषज्ञ आदि का विदेश
आवागमन भी अब पूंजी प्रवाह की तरह लचीला हो गया है।
प्रशन29:— पर्यावरण आंदोलन क्या है? भारत के पर्यावरण आंदोलनों की चर्चा करें।
उत्तर:—
भारतीय
समाज में प्रर्यावरण की सुरक्षा बहुत प्राचीन काल से यहाँ की सांस्कृतिक एवं
धार्मिक विशेषता रही है।धर्मशास्त्रियों मैं राजा का यह कर्तव्य निर्धारित किया
गया कि उसके किसी कार्य से जंगलों, नदियों तथा
विभिन्न प्राणियों को कोई हानि ना हो। वास्तव में हमारे वायुमंडल में अनेक प्रकार
की जैसे-जैसे ऑक्सीजन, नाइट्रोजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड पाई जाती है।
इन में ऑक्सीजन की मात्रा सबसे अधिक होती है। यही जीवनदायिनी गैस है जो सभी
प्राणियों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां, जल
की मात्रा तथा वायुमंडल की शुद्धता ऑक्सीजन के प्रमुख स्त्रोत है। यही कारण है कि
व्यक्ति के संपूर्ण पर्यावरण में वृक्षों और जल का प्रमुख स्थान रहा है। भारत में
पर्यावरण संबंधी आंदोलनों का मुख्य संबंध जंगलों को काटने से रोकने,वन्य
प्राणियों की रक्षा करने तथा नदियों के प्रदूषण को रोकने से रहा है। पेड़ों को
काटने के विरोध से संबंधित आंदोलनों में चिपको आंदोलन सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।
इसका आरंभ स्वतंत्रता से पहले जोधपूर रियासत में खेजरोली गांव से हुआ था जिसे सन 1970 के
बाद उत्तराखंड में व्यापक रूप से चलाया गया। वन्य प्राणियों की रक्षा के लिए
प्रशांत घाटी आंदोलन सबसे अधिक महत्वपूर्ण है जिसका संबंध केरल राज्य से रहा है। नदियों में बढ़ते हुए प्रदूषण को रोकने
के लिए अनेक आंदोलनों के फल स्वरुप सरकार द्वारा सन 1985
में केंद्रीय गंगा प्राधिकरण की स्थापना की गई। इसके अतिरिक्त जल, वायु
तथा ध्वनि प्रदूषण के विरोध स्वयं सरकार द्वारा व्यापक पर्यतन किए गए।इन्हें मूर्त
रूप देने के लिए सन 1986 में यहां पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम पारित किया
गया। अब भारत के संविधान में 42वां संशोधन करके पर्यावरण सुरक्षा को नागरिकों
के मूल कर्तव्य में सम्मिलित कर लिया गया है।
प्रशन30:—दबाव समूह से आप क्या समझते हैं? भारतीय राजनीति में इसकी भूमिका की चर्चा करें।
उत्तर:—
दबाव
समूह शब्द का प्रयोग स्वर प्रथम 1928 में पीटर और रिकार्ड ने अपनी पुस्तक दबाव की
राजनीति में प्रयुक्त किया था। 2०वीं
सदी के पांचवें दशक के पश्चात दबाव समूह दबाव की राजनीति तथा हित समूह जैसे शब्दों
का निरंतर प्रयोग होता रहा है। दबाव समूह एक औपचारिक संरचना है जो अनेक समूह से
निरंतर संपर्क बनाए रखता है। इसके कई लक्षण राजनीतिक दलों से मिलते हैं,लेकिन
या प्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक प्रक्रियाओं तथा चुनाव आदि में भाग नहीं लेते बल्कि
अपनी क्षमता से सत्ता को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं
भारतीय राजनीति में दबाव समूह की भूमिका
(1) या अवसरवादी ता के आधार पर कार्य करते हैं।
हालांकि यह एक गैर राजनीतिक संगठन है। इसकी कोई राजनीतिक विचारधारा नहीं होती है।
(2) भारतीय राजनीति में दबाव समूहों को संगठन की
पूर्ण स्वतंत्र प्राप्त है।
(3) इसके द्वारा सरकार और जनता के बीच संपर्क की
करी बनने का कार्य किया जाता है।
(4) विभिन्न नीतियों तथा निर्णय के विषय में जनता
की प्रतिक्रिया जानने के लिए या उद्योग से संबंधित कानूनों में संशोधन करने से
पहले सरकार श्रमिक संग ओके नेताओं से परामर्श लेती है।
जैसा कि हम जानते हैं कि लोकतंत्र व्यवस्था में चुनाव का बहुत महत्व
है। विभिन्न राजनीतिक दल या पाटिया चुनाव में भाग लेती है। चुनाव में बहुमत पाने
वाली राजनीतिक पार्टी अपनी सरकार का गठन करती है। चुनाव में भाग लेने वाली विभिन्न
राजनीतिक पार्टियों को बाहर से समर्थन तथा आर्थिक सहायता अचानक में कुछ विशेष समूह
का बहुत बड़ा हाथ होता है। सरकार बनने पर यह समूह अपने हितों को साधते है या अपनी
मांगों को मनवाने के लिए सरकार पर प्राय: दबाव बनाते हैं। इन समूहों को हित समूह
कहते हैं।
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