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प्रशन 31:—बिहार में पंचायती राज व्यवस्था के गुण दोषों का वर्णन करें।
या:—ग्रामीण विकास में पंचायती राज की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:—
पंचायती
राज की स्थापना के लिए भारत सरकार द्वारा गठित 1957 ईस्वी में
बलवंत राय मेहता समिति ने सिफारिश की थी पूर्णविराम इस समिति ने कहा कि प्रत्येक
राज्य में जिला स्तर पर जिला परिषदों, प्रखंड स्तर पर
पंचायत समितियों तथा ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायतों की स्थापना होनी चाहिए। उसने या
भी कहा कि इन स्वायत्त संस्थाओं को स्थानीय मामलों के अतिरिक्त योजना तथा विकास
संबंधी कार्य भी सौंपना चाहिए। पंचायतों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा
होगा। इसके बाद प्रखंड स्तर पर पंचायत समिति का संगठन पंचायतों के मुखिया तथा उस
क्षेत्र के अन्य संस्थाओं के प्रतिनिधियों द्वारा होगा। जिला परिषद का संगठन
पंचायत समितियों के प्रमुख एवं कुछ अन्य संस्थाओं के प्रतिनिधियों द्वारा होगा।
पक्ष में तर्क :—
इस
अधिनियम के प्रमुख पक्ष (लाभ) निम्नलिखित हैं---
**यह पंचायतों को स्वशासी संस्थाओं के रूप में स्वीकार करता है।
** यह पंचायतों को आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजना बनाने
हेतु शक्ति और उत्तरदायित्व प्रदान करता है।
** यह 20 लाख से अधिक जनसंख्या वाले राज्य, ब्लॉक और जिला
स्तर पर समान त्रिस्तरीय शक्ति पंचायतों की स्थापना के लिए प्रबंध करता है।
** यह पंचायतों के संगठन अधिकार और कार्य, वित्तीय
व्यवस्था तथा चुनाव एवं समाज के कमजोर वर्गों के लिए पंचायत के विभिन्न स्तरों पर
स्थानों के आरक्षण के लिए दिशा निर्देश देता है।
** संविधान के 73वें संशोधन स्वशासन मैं लोगों की भागीदारी के
लिए संवैधानिक गारंटी प्रदान की गई।
** पंचायत अधिनियम 1996 के अनुसार देश के विभिन्न राज्यों में जान
जाती है क्षेत्रों में भी पंचायतों के गठन कार्य को प्रभावी बना दिया है।
विपक्ष में तर्क:
** अधिकारियों में परस्पर
तनाव:—पंचायतों
से संबंध सरकारी एवं गैर सरकारी सदस्यों में तनावपूर्ण संबंधों के कारण पंचायतें
ठीक से कार्य नहीं कर पाती।
** वित्त
का अभाव:—धन के अभाव के कारण पंचायत और विकास कार्य करने
में असफल रही है।
** जातिवाद:—जातिवाद
के कारण पंचायतें जातियों का अखाड़ा बन गई और निर्णय कार्य ठीक से नहीं कर पाई।
** दलबंदी
:—ग्रामों में पाई जाने वाली दल बंदी के कारण
लोगों ने अपने-अपने दलिया ही तो की पूर्ति परी अधिक जोर दिया, परिणाम
स्वरूप ग्रामीण विकास का लक्ष्य पूरा नहीं हो सका।
प्रशन 32:—हरित क्रांति के सामाजिक आर्थिक परिणामों पर एक निबंध लिखिए।
या:—हरित क्रांति के समाज पर प्रभाव का उल्लेख करें।
उत्तर:—
हरित
क्रांति ने खाद्य स्थिति का सुधार करने में निश्चित रूप से महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई है। ब्रिटिश शासनकाल में ग्रामों एवं कृषि के विकास पर कोई ज्यादा ध्यान
नहीं दिया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद औद्योगिकरण और कृषि विकास को संतुलित
रूप में विकसित करने का प्रयास पं जवाहरलाल नेहरू ने किया । प्रथम पंचवर्षीय योजना
में कृषि योजनाओं को प्रमुखता दी गई। आज हरित क्रांति केवल एक खाद्दान आंदोलन ही
नहीं वरन इसने तकनीकी नवाचार को शीघ्रता से आत्मसात करने की क्षमता भी दिखाई है और
ग्रामीण सामाजिक प्रबंधों को निपुणता के साथ संचालित भी किया है। हरित क्रांति के
परिणाम स्वरूप कृषि में दूसरे खाद्य पदार्थों को भी महत्व दिया जाने लगा, जैसे:—सूरजमुखी, सोयाबीन
और ग्रीष्म काल मैं होने वाले मूंगफली और मूंग फसलों के उत्पाद में भी क्रांतिकारी
बढ़ोतरी हुई। हरित क्रांति का ग्रामीण आर्थिक सामाजिक व्यवस्था पर प्रभाव निबंध
प्रकार समझाया जा सकता है—
(1) किसान
की आर्थिक स्थिति में क्रांतिकारी सुधार:—उत्पाद
के प्रति एकड़ कई बढ़ोतरी से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है और उनके
जीवन स्तर में भी गुणात्मक सुधार हो रहा है।
(2) रोजगार
में वृद्धि:—हरित क्रांति ने शिक्षित युवा वर्ग को अपनी ओर
आकर्षित किया। मौसमी बेरोजगारी को दूर करने में हरित क्रांति का महत्वपूर्ण योगदान
है। क्योंकि उन्नत बीजों के प्रयोग से परंपरागत वर्ष में एक या दो फसल के अस्थान
पर कई फसलें उगाई जाती है।
(3) असमान
विकास:—हरित क्रांति ने आसमान को बढ़ाने में सहयोग
दिया है। दे संपन्न किसान जिनके पास आधुनिक उपकरण, नवीन तकनीकी
ज्ञान,उन्नत बीज एवं खाद व सीमांत किसान इन सुविधाओं में वंचित रहे जिसके
कारण हरित क्रांति का लाभ छोटे किसान वर्ग तक नहीं पहुंच पाया।
(4) भारत
में हरित क्रांति एवं साबित हुई क्योंकि इस प्रक्रिया के द्वारा धनवान और अधिक
धनवान होता चला गया तथा निर्धन और अधिक निर्धन हो गया। उदाहरण के तौर पर गांव से
बाहर कृषि मजदूरों के रोजगार और उनकी मजदूरी में अच्छी वृद्धि हुई। लेकिन स्थानीय
तौर पर कृषि मजदूरों की स्थिति बिगड़ती गई क्योंकि उन्हें अपने गांव में बहुत कम
मजदूरी मिलती थी जो महंगाई के दौर में पेट भरने के लिए पर्याप्त नहीं थी। पहले
उन्हें मजदूरी के रूप में आन्न मिलता था, जिससे वह
संतुष्ट थे।
प्रशन33:— जनसंचार क्या है? संचार साधनों का सामाजिक परिवर्तन में भूमिका स्पष्ट करें।
उत्तर:—
जन
का अर्थ है व्यक्तियों का समुदाय या समूह संचार का अर्थ एक बात को दूसरे
व्यक्तियों तक उसी रूप में पहुंचाना या संप्रेषित करना। जब हम कुछ विशेष साधनों के
द्वारा एक बड़े समूह या समुदाय के लोगों तक कोई विशेष सूचना या स्वाद पहुंचाते हैं
तब इसी को जनसंचार कहा जाता है। विल्सन ने कहा कि,जनसंचार एक ऐसी
प्रक्रिया है जिसके द्वारा ए किया कुछ विचारों को आने के साधनों के द्वारा पूरे
समुदाय तक पहुंचाया जाता है।’’’ लैपियर के शब्दों में जनसंचार उन साधनों की
संपूर्णता है जिनके द्वारा एक दूसरे से बहुत दूर लोगों को कुछ विचारों का प्रसार
कर के सामाजिक और विचार इस क्षेत्र में उनकी सहभागिता को बढ़ाया जाता है। आज का
मीडिया संस्थान संकलन हेतु फोन से लेकर लैपटॉप तक धरल्ले से उपयोग कर रहा है
समाचार पत्रों के कार्यलय कंप्यूटर व इंटरनेट से लैस हैं। संवाददाता से लेकर
संपादक नीतियों के आधार पर अंतिम रूप दिया जाता है। समाचारों को भविष्य के लिए
सुरक्षित रखने हेतु सीधी में बैकअप लिया जाता है। आधुनिक प्रौद्योगिकी के मध्य से
ही समाचार पत्रों या समाचार चैनलों ने अपनी वेबसाइट भी स्थापित की है, जीने
न्यूज़ पोर्टल के रूप में जाना जाता है। इस प्रकार आज मीडिया ने सूचना
प्रौद्योगिकी के साथ तारतम्यता स्थापित कर ली है। इस प्रकार समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन
से शुरू हुआ प्रौद्योगिकी विकास का सिलसिला बेतार के तार सेल्यूलर फोन, इंटरनेट
से गुजरते हुए सेटेलाइट युग में प्रवेश कर चुका है। आज की पीढ़ी नई प्रौद्योगिकी
के प्रयोग की इतनी अधिक अभ्यासत हो गई है कि इसके बिना उनका जीना नामुमकिन सा लगता
है।
प्रशन34:— भारत के प्रमुख जनजातियां आंदोलनों की विवेचना करें।
उत्तर:—
भारत
के प्रमुख जनजातीय आंदोलन निबंध लिखित है—
(1) संथाल
विद्रोह:—औपनिवेशिक शासन व्यवस्था तथा शोषण के खिलाफ
सिद्धू कान्हु द्वारा संचालित संथाल जनजाति के लोगों ने इस का सूत्रपात किया।
(2) बिरसा
आंदोलन:—बिरसा आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रा संग्राम को
एक नई दिशा प्रदान की। इसके नेता बिरसा मुंडा ने जनजातियों को एक नई राह दिखलाई।
इन्होंने आदिवासियों में जनमत का निर्माण किया। 25 दिसंबर, 18 से
99 को इस आंदोलन की शुरुआत हुई।
(3) ताना
भगत आंदोलन:—ताना भगत उरांव जनजाति की एक शाखा है। या
आंदोलन कृषि अर्थव्यवस्था,जनजातीय संस्कृति तथा समानता से संबंधित है।
इसकी शुरुआत 1914 ईस्वी में जतरा भगत के नेतृत्व में हुई।
(4) झारखंड
आंदोलन:—स्वतंत्रता के बाद विभिन्न राजनीतिक तथा
सांस्कृतिक संगठनों के द्वारा झारखंड आंदोलन की शुरुआत की गई इसके फलस्वरूप 15
नवंबर, 2000 को झारखंड राज्य की स्थापना की गई।
(5) बोडो
आंदोलन:—1950 ईस्वी में असम
के बोर्ड भाषाई जनजातियों ने पृथक राज्य की स्थापना के लिए इस आंदोलन की शुरुआत की
जो अभी तक जारी है। इन आंदोलनों के अतिरिक्त नागा आंदोलन, मीजो
आंदोलन,खासी विद्रोह, वीर भगत आंदोलन, आदि प्रमुख
जनजाति आंदोलन है।
प्रशन35:— भारत में महिला आंदोलन पर एक समाजशास्त्रीय निबंध लिखें।
उत्तर:—
20
वीं सदी के प्रारंभ में राष्ट्रीय तथा स्थानीय स्तर पर महिलाओं के संगठनों में
वृद्धि देखी गई। विमेंस इंडिया एसोसिएशन, डब्ल्यू० आई० ए०,(1971) ऑल
इंडिया कान्फ्रेंस (अखिर भारतीय महिला
कॉन्फ्रेंस)ए०आई०डब्ल्यू०
(1926) नेशनल काउंसिल फॉर विमेन इन इंडिया (भारत में
महिलाओं की राष्ट्रीय काउंसिल) एन० सी ० डब्ल्यू० आई०)ऐसे नाम है जिन्हें सभी
जानते हैं जबकि इनमें से कई की शुरुआत सीमित कार्य क्षेत्र से हुई है। इनका कार्य
क्षेत्र समय के साथ विस्तृत हुआ। उदाहरण के लिए प्रारंभ मे ए.आई.डब्ल्यू.सी. का मत
था कि महिला कल्याण तथा राजनीति आपस में असंबंध है। कुछ वर्ष बाद उसके अध्यक्षीय
भाषण में कहा गया, क्या भारतीय पुरुष अथवा स्वतंत्र हो सकते हैं यदि भारत गुलाम रहे? हम
अपनी राष्ट्रीय स्वतंत्रता जो कि सभी महान सुधारों का आधार है, के बारे
में चुप कैसे रह सकते हैं ?
संगठनात्मक परिवर्तन के अलावा कुछ नए मुद्दे भी थे जिन पर ध्यान दिया
गया। उदाहरण के लिए,महिलाओं के प्रति उत्साह के बारे में वर्षों से अनेक अभियान चलाए गए
हैं। हमने देखा है कि स्कूल के प्रार्थना पत्र मैं पिता तथा माता दोनों के नाम
होते हैं। इसी प्रकार महिलाओं के आंदोलनों के कारण महत्वपूर्ण कानूनी परिवर्तन आए
हैं उन विराम गोस्वामी व रोजगार के मुद्दों की लड़ाई यौन उत्पीड़न तथा दहेज के
विरुद्ध अधिकारों की मांग के साथ लड़ी गई
है।
प्रशन36:—बेरोजगारी के प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:—
बेरोजगारी
के निम्नलिखित प्रकार हैं—
(1) स्व-विषयक
बेकारी:—इसके अंतर्गत बेकारी शामिल है जो व्यक्ति की
अपनी कमियों के कारण उत्पन्न होती है। जैसे, व्यक्ति शारीरिक
या मानसिक रोगों के कारण रोजगार नहीं प्राप्त कर पाता है।
(2) पर
विषयक बेकारी:—इस प्रकार की
बेकारी के लिए व्यक्ति स्वयं उत्तरदाई नहीं होता। कोटि की कोटी की फोटो बेकारी को
चार भागों में बांटा गया है—
(क) मौसमी बेकारी:—यह
बेकारीउद्योग की मौसमी प्रकृति के कारण उत्पन्न होती है। जैसे बर्फ की फैक्ट्रियों
में काम करने वाले लोग जा रहे में बेकार हो जाते हैं और चीनी मिलों में काम करने
वाले लोग गर्मी तथा बरसात में।
(ख) साधारण बेकारी:—कुछ
ना कुछ बेकारी तो हर समाज में होती है क्योंकि बड़ी हुई जनसंख्या के फल स्वरुप काम
की कमी हर समाज में हो जाती है।
(ग) यांत्रिक बेकारी:—आज
कल मिलो और फैक्ट्रियों में मशीन का प्रयोग बढ़ता जा रहा है और जो एक साथ कई
मनुष्य का कार्य कर सकती है। इस प्रकार के यंत्रों के प्रयोग से बेकारी का बढ़ना
स्वाभाविक है। ऑफिसों में भी मशीनों के प्रयोग से क्लर्कों की मांग कम हो गई है इस
प्रकार यांत्रिक बेकारी उत्पन्न होती है।
(घ) चक्रवात बेकारी:—व्यापार
की गति साइकिल के पहिए की भांति होती है जिसने लाभ हानि, उतार
चढ़ाव, उत्थान- पतन बारी बारी से आते रहते हैं। उद्योग और व्यापार की उन्नति
से कार्य बढ़ता है, इसलिए अधिक लोग काम पर रख लिए जाते हैं। किंतु व्यापार के पतन की दशा
में काम कम हो जाता है, इसलिए बहुत से लोग निकाल दिए जाते हैं।
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