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प्रशन37:—हिंदू विवाह विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:—
(1) ब्रहा विवाह:—ब्रहा विवाह सर्वश्रेष्ठ विवाह माना गया है। इस विवाह में कन्या को अच्छे वस्त्रो में भली-भांती अलंकृत कर, विद्वान तथा शीलवान वर को बुलाकर कन्या का पिता कन्या का दान करें तो ऐसे विवाह को ब्रहा विवाह कहा जाता है।ब्रहा विवाह एक प्रकार का दान होता है,
जिसके अनुसार कन्या का पिता अपनी कन्या के लिए अच्छा वर ढूंढकर वर को अपने घर आने को आमंत्रित करता है।इस प्रकार के विवाहों के लिए होम, पानी ग्रहण और सप्तपति का होना आवश्यक है। शिव और पार्वती का विवाह इसी विधि से ही हुआ था।
(2) देव विवाह:—इस विवाह में कन्या का पिता एक यज्ञ कराता है। उसमें अनेक योग्य अविवाहित पुरोहितों को बुलाया जाता है और जो रोहित ठीक ढंग से उस यज्ञ को पूरा करता है,पुष्प रोहित को कन्या का दान कर दिया जाता है। या विवाह इस कारण देव विवाह कहलाता है कि इसमें वर्ग की खोज नहीं करनी पड़ती, बल्कि जो रोहित यज्ञ कराता है,उसे ही कन्यादान कर दी जाती है परंतु आधुनिक काल में इस प्रकार का विवाह प्रचलित नहीं है। क्योंकि आज पुरोहित या त्रषियो का इतना महत्व नहीं है जितना पहले था।
(3) आर्य विवाह:—पहले त्रषि लोग विवाह नहीं करते थे। यदि कोई त्रषि विवाह करना चाहता था तो उसे अपने ससुर को एक गाय तथा बैल अथवा इनके दो जोड़े कन्या के माता-पिता को देने होते थे ताकि या प्रमाणित हो जाय कि त्रषि अब विवाह बंधन को स्वीकार करना चाहते हैं। यादें विवाह से हीन विवाह माना जाता है। इस प्रकार का विवाह आधुनिक काल में प्रचलित नहीं है।
(4) प्रजापत्य विवाह:—ब्रहा विवाह की तरह इस विवाह मैं भी किसी प्रकार की दिखावटी नहीं की जाती है। वर तथा कन्या को यज्ञशाला में बैठाकर तथा सत्कार पूर्वक यह आदेश दिया जाता था कि तुम दोनों एक साथ ही धर्म का आचरण करो तथा तुम दोनों का जीवन समृद्धि साली और सुखी होवे। इस विवाह में प्रधानता संतान उत्पन्न करने को दी जाती है। अनेक लेखक इसे अलग विवाह ही नहीं मानते क्योंकि इसमें तथा ब्रहा विवाह में कोई विशेष अंतर नहीं है इसमें लड़की के माता-पिता नव दंपति को प्रत्यक्ष आशीर्वाद देते हैं कि तुम दोनों मिलकर गृहस्त आश्रम का पालन करना।
(5) गन्धर्व या प्रेम विवाह:—या विवाह लड़के तथा लड़की के परस्पर प्रेम के कारण होता है ऐसे विवाह आधुनिक युग में पाए जाते हैं तथा पुराने काल में भी प्रचलित थे। कामसूत्र मैं इस विवाह को आदर्श विवाह माना गया है। यह विवाद दोनों की इच्छा पर आश्रित है। इसलिए कुछ विद्वानों के विचार श्रेया विवाह उचित है। नारद ने भी इस विवाह को उचित माना है।
प्रशन38:—मुस्लिम विवाह के भेदों का वर्णन करें।
उत्तर:—
मुस्लिम विवाह के मुख्य दो प्रकार है—निकाह या अन्द और मुताह। यह निम्नलिखित
है—
(1) निकाह:—निकाह मुसलमानों में सर्वाधिक प्रचलित और स्थाई युवा है। निकाह पढ़ने का काम का जी, मुल्ला या मौलवी द्वारा होता है। यह कार्य कन्या के घर पर होता है। निकाह पढ़ने के पहले मौलवी दो गवाहों को दुल्हन के पास भेजता है जो उसे उसके दूल्हा के बारे में सूचना देते है और उससे निकाह पढ़वाने की स्वीकृति मांगते हैं। अपनी स्वीकृति देते समय दुल्हन को निकाह के रजिस्टर में हस्ताक्षर करने पड़ते हैं। उसके दस्तखत के प्रमाणीकरण के लिए यह गवाह भी उस में दस्तखत करते हैं। इसके बाद दूल्हे की स्वीकृति के लिए भी दो गवाह उसके पास आते हैं और दस्तखत करते हैं इस कार्यक्रम के बाद का जिया मौलवी निगाह पढ़ते हैं। निकाह के समय दुल्हन के पिता की उपस्थिति वर्जित होती है। निकाह पढ़ते समय दूल्हा दुल्हन के बीच एक पर्दा की दीवार होती है। इस निकाह मैं मेहर की रकम तब निर्धारित होती है जब का जिओ द्वारा निकाह की रस्म अदा होती है।
(2) मुताह:—या विवाह अस्थाई विवाह होती है। इसमें शादी की कुछ अवधि निश्चित कर दी जाती है। जिसके बाद शादी अपने आप टूट जाती है। यह अवधि, हफ्तो, महीनों या वर्षों तक की हो सकती है। मेहर के लिए भी शादी में कुछ सर्च होती है। इसमें यदि पति पत्नी के साथ रहने वाली अवधि निश्चित कर दी गई है और मेहर निश्चित नहीं हैतो या शादी वैध है लेकिन यदि मेरा निश्चित है और सहवास की अवधि निश्चित नहीं है तो यह यह शादी अवैध है। यौन संबंध हो जाने पर औरत को निश्चित मेहर पाने का हक है लेकिन भरण पोषण का अधिकार नहीं होता है।
(3)फासिद विवाह:—यदि विवाह के बीच कुछ कठिनाइयां (फसाद) सामने आती हो और उन्हें दून किए बिना ही विवाह कर लिया जाए तो ऐसे विवाह को फासीद विवाह कहा जाता है। उदहारणार्थ, यदि कोई मुस्लिम मूर्तिपूजक स्त्री से विवाह कर लेत ब यह फासीद विवाह कहलायेगा। यदि बाद में स्त्री धर्म परिवर्तन के द्वारा अपना धर्म बदल कर मुसलमान हो जाए तबयही विवाह निकाह या सही विवाह हो जाता है।
(4) बातिल विवाह:—इस प्रकार के विवाह का कोई भी आधार गलत हो जाने पर विवाह का समझौता शुन्य हो जाता है और शुन्य होने पर किसी भी प्रकार के कर्तव्य या उत्तरदायित्व नहीं
होते ।
प्रशन39:—हिंदू विवाह के नियमों को लिखें।
उत्तर:—
प्रत्येक समाज विवाह साथी चुनने के बारे में कुछ निश्चित नियम होते हैं जिनके अंतर्गत यह बताया जाता है कि उसे जीवन साथी का चुनाव किस समूह एवं लोगों में से करना है और किन का परिहार करना है। हिंदू विवाह से संबंधित सभी निषेधो या चित्र को हम
अंतर्विवाह, बहिर्विवाह, अनुलोम एवं प्रतिलोम की श्रेणियों में बांट सकते हैं। इन चारों का अध्ययन इस प्रकार है—
(1) अंतर्विवाह:—का तात्पर्य है कि एक व्यक्ति अपने जीवन साथी का चुनाव अपने ही समूह में से करें। वैदिक एवं उत्तर वैदिक काल में द्रिजो(ब्राह्मण, क्षत्रिय, एवं वैश्य) का एक ही वर्ण था और द्विज वन के लोग अपने वार्ड में ही विवाह करते थे। शूद्र वर्ण पृथक था। स्मृति काल में अन्तर्वर्ण विवाहो को स्वीकृति प्रदान की गई थी। लेकिन जब एक वर्णकई जातियों एवं उप जातियों में विभक्त हुआ तो विवाह का दायरा सीमित होता गया और लोग अपनी ही जाति एवं उपजाति में विवाह करने लगे और इसे ही अंतर्विवाह माना जाने लगा।
(2) बहिर्विवाह:—बहिर्विवाह से तात्पर्य है कि एक व्यक्ति जिस समूह का सदस्य है उससे बाहर विवाह करें। हिंदुओं में बहिर्विवाह के नियमों के अनुसार एक व्यक्ति को अपने परिवार, गोत्र,प्रवर, पिण्ड एवं जाति के कुछ समूहों से बाहर विवाह करना चाहिए।
(3) अनुलोम विवाह:—जब एक उच्च वर्ण,
जाति, उपजाति,कुल एवं गोत्र के लड़के का विवाह ऐसी लड़की से किया जाए जिसका वर्ण, जाति, उपजाति, कुल एवं वंश लड़के से नीचे हो तो ऐसे विवाह को अनुलोम या कुलीन विवाह कहते हैं। दूसरे शब्दों में, इस प्रकार के विवाह मैं लड़का उच्च सामाजिक समूह का होता है और लड़की निम्न सामाजिक समूह की। उदाहरण के लिए, एक ब्राह्मण लड़के का विवाह एक क्षत्रिय या वैश्य लड़कों से होता है तो इसे हम अनुलोम विवाह कहेंगे।
(4) प्रतिलोम विवाह:—अंतर्जातीय विवाह का दूसरा रुप होता है प्रतिलोम विवाह। यह विवाह अनुलोम विवाह का उल्टा है। इसमें नीची जातियों के पुरुष ऊंची जातियों की स्त्रियों से विवाह करते हैं। यद्यपि मनु के समय इस प्रकार के विवाह की प्रथा थी लेकिन मनु ने इसकी घोर निंदा की है। उस समय भी और आज भी ब्राह्मण स्त्री तथा शूद्र पुरुष उज्जवल की स्त्री के साथ यौन संबंध संबंध स्थापित करता है तो उसे सर्वाजानिक अस्थान बे कुत्ते से चुनाव देना या जलती हुई लोहे की लाट में बांध देना चाहिए।
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