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Class XII 2022 Exam Political Science | Bihar Board Exam 2022 | BSEB Class 12th Most VVI Question

Class XII 2022 Exam Political Science | Bihar Board Exam 2022 | BSEB Class 12th Most VVI Question

प्रशन :--- 1 से 19 तक के उत्तर के लिए क्लिक करे 

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प्रशन 20:-- क्षेत्रीय दलों के उदय के कारणों पर प्रकाश डालिए।

या:क्षेत्रीय दलों के उदय पर एक टिप्पणी लिखें।

उत्तर: भारत में क्षेत्रीय दलों का होना अति आवश्यक है। छत्तीसगढ़ के होने के कारण है

(1) भारत एक विशाल देश है, जिसमें विभिन्न भाषाओं, धर्मो तथा जातियों के लोग रहते हैं। अनेक क्षेत्रीय दलों का निर्माण जाति, धर्म एवं भाषा के आधार पर हुआ है।

(2) भारत एक विस्तृत देश है जिसकी भौगोलिक बनावट में विभिन्न हटाएं पाई जाती है। विभिन्न क्षेत्रों की अपनी समस्याएं तथा आवश्यकताएं है। इनकी पूर्ति के लिए विभिन्न क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ है।

चुनाव में भी किसी एक दल को बहुमत नहीं मिला। जिसके कारण कांग्रेस के नेतृत्व मैं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का निर्माण किया गया,जिसमें कई क्षेत्रीय दलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। केंद्र में सरकार स्थापित करने के अलावा अनेकों राज्यों मैं भिन्न-भिन्न क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने सरकारें बनाई है।

वर्तमान समय गठबंधन सरकारों का है, जिसमें छोटे दलों का महत्व बढ़ना एक स्वाभाविक घटना है।

** क्षेत्रीय दलों के उदय के कारण:-- क्षेत्रीय दलों के उदय के कारण निम्नलिखित हैं----

(1) राष्ट्रीय छवि के नेताओं का अभाव है जिसके कारण स्थानीय स्तर के चतुर क्षेत्रीय नेताओं ने अपनी स्थिति को शक्तिशाली बनाने हेतु जातिवाद, क्षेत्रवाद, संम्त्रदायवाद जैसे तत्व का सहारा लिया।

(2) देश में चुनाव संबंधी ऐसा कोई कानून नहीं है,जो न्यूनतम सीमा के नीचे मत पाने वाले दलों के प्रतिनिधित्व को अमान्य कर सके।

(3) सभी दलों ने अपने विचारधारा को त्याग कर पूर्ण रूप से अवसरवादी राजनीति का सहारा लिया है, जिससे ऐसी अवांछनीय स्थिति पैदा हुई है।

(4) वर्तमान समय में कोई ऐसी पार्टी नहीं है जो सारे देश में अपना प्रभाव दिखा कर सके। ताकि क्षेत्रीय दलों की महत्ता घटे।

प्रशन 21:-- भारत की साझी राजनीति के कारणों को विश्लेषण करें।

या:-- भारत में गठबंधन की राजनीति की आवश्यकता पर प्रकाश डालें।

उत्तर:-- भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्लेषतया 1989 के बाद से गठबंधन की सरकारों कलयुग शुरू हो गया। इसके मुख्य कारण इस प्रकार हैं---

1. कांग्रेस के आधिपत्य की समाप्ति

2. क्षेत्रीय दलों में  वृद्धि

3. दलबदल

4. क्षेत्रीय हितों की उपेक्षा

1. कांग्रेस के अधिपत्य की समाप्ति:-- 1967 में चौथे आम चुनाव में कई राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकार बनी। लेकिन केंद्र में कांग्रेस का अधिपत्य बना रहा। 1977 में पहली बार केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार बनी । लेकिन जनता पार्टी द्वारा बनाई गई सरकार भी थोड़े समय तक रही और कांग्रेस का अधिपत्य स्थापित हो गया।

2. क्षेत्रीय दलों में वृद्धि:-- क्षेत्रीय दलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी। इन दलों ने राष्ट्रीय दलों का महत्व कमजोर कर दिया। क्षेत्रीय दलों की बढ़ती संख्या के कारण किसी भी एक राष्ट्रीय दल को लोकसभा या विधानसभा में बहुमत मिलना कठिन हो गया। इससे राजनीतिक दल आपस में गठबंधन कर सरकार बनाने लगे।

3. दल बदल:--- भारत में दल बदल विरोधी कानून होने के बावजूद भी दल बदल की प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगा पाई है। दल बदल के कारण सरकारों का अनेक बार पतन हुआ और जो नई सरकारे बनी वह भी गठबंधन करके बनी।

4. क्षेत्रीय हितों की उपेक्षा:-- प्राय: केंद्र में बनी राष्ट्रीय दलों की सरकारों ने क्षेत्रीय हितों की उपेक्षा की है। क्षेत्रीय स्तर के दलों ने मुद्दों पर आधारित राजनीति के अनुसार गठबंधन कारी दौर की शुरुआत की।

 

इन सभी कारणों के बावजूद भारत में गठबंधन की राजनीति समय की आवश्यकता है, इसे नकारा नहीं जा सकता लोकसभा 2009 के चुनाव परिणामों से यह स्वमेव  सिद्ध है।

प्रशन 22:-- भारत की मौजूदा बहुदलीय व्यवस्था के क्या फायदे हैं।

उत्तर:-- भारत में बहुदलीय प्रणाली हैं। कई विद्वानों का विचार है कि भारत में बहुदलीय प्रणाली उचित ढंग से कार्य नहीं कर पा रही है तथा यह भारतीय लोकतंत्र के लिए बनाएं पैदा कर रही है।  अतः भारत को द्बिदलीय  प्रणाली अपना आनी चाहिए। परंतु पिछले 20 सालों के अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बहुदलीय प्रणाली से भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को निम्नलिखित फायदे हुए हैं---

1. विभिन्न मतों का प्रतिनिधित्व:-- बहुदलीय प्रणाली के कारण भारतीय राजनीति में सभी वर्गो तथा हितों को प्रतिनिधित्व मिल जाता है। इस प्रणाली से वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना होती है ।

2. मतदाताओं को अधिक स्वतंत्रता:---- अधिक दलों के गाना मतदाताओं को अपने वोट का प्रयोग करने के लिए अधिक स्वतंत्रताएं होती हैं। मतदाताओं के लिए अपने विचारों से मिलते जुलते दल को वोट देना आसान हो जाता है।

3. राष्ट्र दो गुटों में नहीं बंटता:-- बहुदलीय प्रणाली होने के कारण भारत कभी भी दो विरोधी गुटों में विभाजित नहीं हुआ।

4. मंत्रिमंडल की तानाशाही स्थापित नहीं होती:--- बहुदलीय प्रणाली के कारण भारत में मंत्रिमंडल तानाशाही नहीं बन सकता।

प्रशन 23:--- भारत की नई आर्थिक नीति के प्रमुख लक्षणों की विवेचना करें।

उत्तर:--- कोई राज्य दुनिया से कट कर या अंतरराष्ट्रीय प्रवृत्तियों के प्रभाव से बचकर नहीं रह सकता। जब 1991 में नरसिंहराव ने अपनी सरकार बनाई तो उन्हें अपने वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के परामर्श को मानकर नई आर्थिक नीति अपनानी परि। इसके मुख्य लक्षणों को इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है----

1. नेहरू इंग्लिश समाजवाद से प्रभावित थे, अतः उन्होंने आर्थिक क्षेत्र में राज्य के अधिकाधिक नियंत्रण को अनिवार्य समझा। उन्होंने मिश्रित अर्थव्यवस्था को सराहा। पंचवर्षीय योजनाओं में सार्वजनिक क्षेत्र को बढ़ाने पर जोर दिया गया। पहले जमींदारी का  उन्मूलन और फिर जीवन बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया गया।

2. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को घाटे से बचाने के लिए  विनी वेशीकरण की प्रक्रिया अपनाई गई। सार्वजनिक उद्यम में निजी हिस्सेदारों का अनुपात बढ़ा दिया गया।

3. निजी संस्थाओं को अपने उद्योग की अनुमति दी गई तथा एकाधिकार को रोकने वाले उद्यमों के अधिकार क्षेत्र या उसके हस्तक्षेप में कमी की गई।

4. सरकार ने विदेशी पूंजी के  निवेश को प्रोत्साहन दिया। उन्हें किसी महत्वपूर्ण उद्योग में 51% निवेश तक करने की अनुमति दी गई।

5. सर्वजनिक उद्दमों  की कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए उन्हें स्वायत्तता दी गई तथा उनके प्रबंध मंडलों को अधिक व्यवसायिक बना दिया गया।

6. विदेशी तकनीकी व विदेशी विशेषज्ञों के आगमन को छूट मिल गई।

प्रशन 24:-- शीत युद्ध ( cold war) का अर्थ, प्रकृति एवं कारणों का वर्णन करें।

उत्तर:--- द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद विश्व राजनीति दो गुटों में बट गया । एक अमेरिका के नेतृत्व में पूंजीवादी देशों का पश्चिमी गुट रहा तो दूसरा सोवियत संघ के नेतृत्व में पूर्वी देशों का साम्यवादी गुट। इन दोनों गुटों के बीच पारस्परिक प्रतिद्वंदिता बढ़ती गई तथा दोनों ही गुट एक दूसरे को समाप्त करने की खुली इच्छा का भी परिचय देने लगे। ऐसा लगने लगा कि शीघ्र ही विश्व को तीसरे विश्वयुद्ध का सामना करना पड़ेगा।

शीत युद्ध का अर्थ वास्तविक किया प्रत्यक्ष युद्ध नहीं है, बल्कि युद्ध की पृष्ठभूमि है। युद्ध का उन्माद है, इसमें युद्ध की भाषाएं बोली जाती है, किंतु सरहदों पर गोली नहीं चलती है। शीत युद्ध में परस्पर विरोधी गुटो द्वारा सामरिक अस्त्रो का विकास किया जाता है--- उसके निर्माण पर काफी खर्च किए जाते हैं, समर्थकों की संख्या बढ़ाने के प्रयास किए जाते हैं। एक दूसरे की नीतियों एवं कार्यक्रमों की आलोचना की जाती है।

** शीत युद्ध के कारण:-- शीत युद्ध के कारण निम्नलिखित बतलाए जा सकते हैं-----

1. द्वितीय विश्व युद्ध के समय सोवियत संघ तथा अमेरिका एवं ब्रिटेन के बीच वैचारिक दूरी बढ़ती गई। माल्टा सम्मेलन की भावना के निरादर का आरोप सोवियत संघ पर लगाया गया ।

2. जर्मनी का बंटवारा दोनों गुटों के द्वारा कर दिया गया। पूर्वी जर्मनी पर सोवियत नियंत्रण स्थापित हो गया।

3. ईरान में सोवियत संघ किस सेनाओं ने जमावड़ा बना रखा था, जिसका विरोधी ब्रिटेन करता था।

4. दोनों ही गुट परस्पर विरोधी प्रचार करते थे जिससे   अविश्वास, कलह, घृणा की स्थिति बनती थी।

5. परस्पर  अविश्वास का ही परिणाम था कि सुरक्षा परिषद में इन गुटों के अग्रणी देशों को निषेधाधिकार दिया गया। बे अपने वर्चस्वकारी स्थिति को बनाए रखना चाहते थे।

6. अमेरिका पूर्वी यूरोप में सोवियत संघ के विस्तार वादी नीति का विरोध करता था। इस प्रकार शीत युद्ध विभिन्न कारणों से अस्तित्व में आया ।

प्रशन 25:-- संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य क्या थे ?

या:-- संयुक्त राष्ट्र संघ का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।

2012,2015,2017,2019   Most vvi Question

उत्तर:-- संयुक्त राष्ट्र एक ऐसी अंतरराष्ट्रीय संस्था है जिसकी स्थापना युद्ध को रोकने, आपसी शांति और भाईचारा स्थापित करने तथा जन कल्याण के कार्य करने के लिए की गई है। आजकल संसार के छोटे बड़े लगभग 192 देश इसके सदस्य हैं। इस संस्था की विधिवत स्थापना 24 अक्टूबर 1945 ईस्वी को हुई थी। इस संस्था का मुख्य कार्यालय न्यूयॉर्क, अमेरिका में है।

** उद्देश्य:--

1. अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखना।

2. भिन्न-भिन्न राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना।

3. आपसे सहयोग द्वारा आर्थिक, सामाजिक, संस्कृतिक तथा मानवीय ढंग की अंतरराष्ट्रीय समस्याओं को हल करना।

4. ऊपर दिए गए हितों की पूर्ति के लिए भिन्न-भिन्न राष्ट्रों की कार्यवाही में तालमेल करना।

5. उपरोक्त उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए राष्ट्रों के बीच समन्वय कायम करना।

** जिन सिद्धांतों के आधार पर संयुक्त राष्ट्र का निर्माण हुआ, वे निम्न है---

1. संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य समान हैं ।

2. प्रत्येक सदस्य राष्ट्र चार्टर के प्रति अपने दायित्व को निभाने के लिए वचनबद्ध है ।

3. सब सदस्य राष्ट्र पारस्परिक झगड़े शांतिमय तरीकों से इस प्रकार निपटाने को वचनबद्ध है जिससे किसी भी प्रकार शांति, सुरक्षा और न्याय भंग ना हो।

4. प्रत्येक सदस्य राष्ट्र एक दूसरे की स्वतंत्रता और प्रादेशिक अखंडता को बनाए रखना ।

5. कोई भी सदस्य राष्ट्र चार्टर के विरुद्ध काम करने वाले देश की सहायता नहीं करेगा ।

6. संयुक्त राष्ट्र को प्रत्येक सदस्य राष्ट्र सहायता एवं सहयोग प्रदान करेगा ।

7. संयुक्त राष्ट्र किसी भी सदस्य राष्ट्र के आंतरिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा ।

प्रशन 26:--- सार्क की भूमिका पर प्रकाश डालें।

उत्तर:-- सार्क या दक्षेस भारतीय उपमहाद्वीप के देशों का संगठन है। सार्क में भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, मालदीव कथा श्री लंका कुल 7 देश है। अफगानिस्तान को यह सदस्यता दी गई है। बर्मा में सैनिक शासन होने के कारण उसे शामिल करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई गई है।

** सार्क की सीमा या दोष:--- सार्क की भूमिका व्यापक है। अपनी भूमिका में अगर संगठन सफल हो जाए तो इस क्षेत्र के देशों में विकास की नई किरण फैल सकती है। फिर भी सार्क की कई सीमाएं हैं---

1. इस संगठन पर भारत और पाकिस्तान की प्रतिद्वंदिता की स्थिति की काली छाया देखी जा सकती है।

2. इस संगठन में केवल "अच्छी इच्छाओं"का प्रतिपादन किया जाता है। इसके क्रियान्वयन  पर ना तो ध्यान दिया जाता है ना ही इसकी शक्ति संगठन के पास हैं।

3. इस संगठन क्षेत्र के देशों में पाई जाने वाली आंतरिक समस्या या  द्बिपक्षीय समस्या को दूर करने में कोई दिलचस्पी नहीं लिया।

4. संगठन में भारत को शक्तिशाली माना जाता है तथा भारत के प्रति सदस्य देशों में संशय का भाव रहता है ।

5. इसके सम्मेलन सभी देशों के प्रतिनिधित्व की उपस्थिति अनिवार्य है। भारत तथा पाकिस्तान के तनावपूर्ण संबंधों के कारण कई बार इनके प्रतिनिधि अपनी उपस्थिति पर सहमति नहीं दिखलाई, जिसके कारण सम्मेलन स्थगित करना पड़ा।

6. सार्क के देशों में प्रजातांत्रिक व्यवस्था को अनिवार्य शर्त के रूप में नहीं रखा गया है। पाकिस्तान में कई बार सैन्य शासन के बावजूद सार्क की ओर से कोई आपत्ति नहीं की जाती है हम देखते हैं कि यातायात तथा संचार के क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग की संभावनाएं बड़ी है , फिर भी वे अपर्याप्त हैं।

प्रशन27:— आसियान क्या है? आसियान की भूमिका एवं महत्व पर प्रकाश डालें। (2011,13)

या :दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संघ (आसियान) के मुख्य स्तम्भो और उनके उद्देश्यो के बारे में बताएं।

उत्तर:एशिया के दक्षिण पूर्व के राष्ट्रों ने अपना एक क्षेत्रीय संघटन बनाया जोआसियानके संक्षिप्त नाम से जाना जाता है और यह भी आर्थिक शक्ति का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। आसियान मुख्य रूप से एक क्षेत्रीय आर्थिक संगठन है। जिसने आर्थिक विकास में तेजी लाने से अपनी लोकप्रियता अर्जित की है। इसकी अपनी कोई सैन्य शक्ति नहीं। परंतु इसकी वास्तविक शक्ति अपने सदस्य देशों, सहयोगी देशों और ज्ञान क्षेत्रीय देशों के बीच नियंत्रण संवाद और परामर्श करने,टकराव रहित रास्ता अपनाने और आर्थिक विकास की ओर ध्यान देने की नीति में है। आज विश्व में क्षेत्रीय संगठन की महत्वपूर्ण स्थिति है। इसे विश्व राजनीति में आर्थिक शक्ति का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है।

(1) बेकांक घोषणा:1967ई में इस चित्र  के पाँच देशों ने बैंकाक घोषणा पर हस्ताक्षर करकेआसियानकी अस्थापना की। यह देश थे इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड।आसियानका उद्देश्य मुख्य रूप से आर्थिक विकास को तेज करना और उस के माध्यम से सामाजिक और सांस्कृतिक विकास हासिल करना था। कानून के शासन और संयुक्त राष्ट्रीय के कायदों पर आधारित क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व को बढ़ावा देने भी इसका मुख्य उद्देश्य था पूर्णविराम बाद के वर्षों में ब्रनेई, दारुस्सलाम, वियतनाम, लाओस, मैं म्यांमार और कंबोडिया भी आसियान में शामिल हो गए तथा इसकी सदस्य संख्या दस हो गई।

(2) आसियान शैली:यूरोपी संघ की तरह इसने खुद को राष्ट्रीय संगठन बनाने या उसकी तरह अन्य व्यवस्थाओं को अपने हाथ में लेने का लक्ष्य नहीं करा का। अनौपचारिक, टकराव रहित और सहयोगात्मक मेल मिलाप का नया उदाहरण पेश करके आशियाने काफी यश कमाया है और इसकोआसियान शैली’(आसियान वे) ही कहां जाने लगा है। आसियान के कामकाज में राष्ट्रीय सार्वभौमिकता का सम्मान करना बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है।

(3)2003ई में उद्देश्यों का विस्तार:दुनिया में सबसे तेज रफ्तार से आर्थिक तरक्की करने वाले सदस्य देशों के समूह आसियान ने अब अपने उद्देश्यों को आर्थिक और सामाजिक दायरे से ज्यादा व्यापक बनाया है2003ई में आसियान सामाजिक संस्कृतिक समुदाय नामक तीन स्तंभों के आधार पर आसियान समुदाय बनाने की दिशा में कदम उठाए जो कुछ हद तक यूरोपीय संघ से मिलता जुलता है।

(4) सुरक्षा समुदाय:आसियान सुरक्षा समुदाय क्षेत्रीय विवादों को सैनिक टकराव तक न लें जाने की सहमति पर आधारित है।2003ई तकआसियान के सदस्य देशों ने कई समझौते किए जिनके द्वारा हर सदस्य देश में शांति, निष्पक्षता, सहयोग,अहस्तक्षेप को बढ़ावा देने और राष्ट्रों के आपसी अंतर तथा सप्रंभुता के अधिकारों का सम्मान करने पर अपनी वचनबद्धता जाहिर की।

प्रशन 28:--- खतरे के नए स्रोत कौन से हैं?  मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर:-- समाज के विकास के साथ-साथ उसके समक्ष उपस्थिति चुनौतियां भी बदल जाती हैं। वैश्वीकरण के वर्तमान युग में चुनौतियों का प्रभाव व्यापक होता है। संक्षेप में वर्तमान में खतरों के नए स्रोत निम्नलिखित है---

1. आतंकवाद

2. पर्यावरण के खतरे

3. महामारियां

4. अन्य खतरे

1. आतंकवाद;---वर्तमान में आतंकवाद एक गंभीर समस्या है, जिस से विकसित व विकासशील सभी देश समान रूप से ग्रसित हैं। कई देशों में आतंकवादी समूहों को शरण स्थली भी प्राप्त है। वर्तमान में सभी देश आतंकवाद की समस्या से निपटने के लिए कटिबंध है। 9 सितंबर 2001 को अमेरिका में आतंकवादी हमले से उपरांत कोई भी देश आतंकवाद के विरुद्ध पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। वर्तमान में खतरा इस बात का है कि आतंकवादी तरीके से आंधी हथियारों व अन्य संहारक हाथियों को भी अर्जित कर सकते हैं।

2. पर्यावरण के खतरे:--- पर्यावरण के कारण आज विश्व में जलवायु परिवर्तन तथा ओजोन छिद्र जैसी समस्या उत्पन्न हो गई है। यह समस्याएं भविष्य में संपूर्ण मानव जाति के लिए गंभीर खतरा है, जनसंख्या वृद्धि, औद्योगिक विकास, वनों की कटाई, वाहनों की वृद्धि आदि के कारण पर्यावरण प्रदूषण व जलवायु परिवर्तन की समस्या गंभीर रूप से धारण कर रही है।

3 . महामारियां:--- नए प्रकार की महामारियां जैसे---एड्स, स्वाइन फ्लू तथा अन्य विषाणु जन्य महमारियां जनता किस वर्ष के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहे हैं। इनमें से कई गंभीर बीमारियों की प्रभावी रोकथाम के उपाय भी उपलब्ध नहीं है।

4. अन्य खतरे:--- अन्य नए खतरो में खद्दान सुरक्षा का संकट, साइबर अपराध, ऊर्जा संकट आदि प्रमुख है। यह संकट विश्व के तमाम क्षेत्रों में आर्थिक व राजनीतिक तनाव को जन्म देते हैं।

प्रशन 29:-- वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का क्या योगदान है?

उत्तर:-- वैश्वीकरण की धारणा तथा विकास में सबसे अधिक योगदान प्रौद्योगिकी का है क्योंकि इसने ही सारे संसार के लोगों का पारस्परिक जुड़ाव किया है और विभिन्न देशों तथा क्षेत्रों को आमने सामने ला खड़ा किया है, उनकी आपसे निर्भरता को बढ़ाया है और साथ ही उन्हें यह महसूस करने पर बाध्य किया है कि वह सब एक ही परिवार के सदस्य हैं। निम्नलिखित तथ्यों इस कथन की पुष्टि करते हैं।

** प्रोद्योगिकी की प्रगति सारे संसार में लोगों, वस्तुओं, पूंजी और विचारों के प्रभाव में आश्चर्यजनक वृद्धि की है। इसकी गतिशीलता बहुत तेज हुई है।

** प्रौद्योगिकी की प्रगति के कारण आज संसार के किसी भी भाग मैं बैठा व्यक्ति हजारों लाखों मिल की दूरी पर घटने वाली घटनाओं से तुरंत ही परिचित हो जाता है। ऐसा महसूस करने लगता है कि वह उसी स्थान पर मौजूद है और उसके आसपास ही घटना घट रही है।

** प्रौद्योगिकी के कारण अपने घर में बैठा व्यक्ति सारे संसार से जुड़ा हुआ महसूस करता है। या घर बैठे ही विदेशों से व्यापार करता है, धन का भुगतान करता है, आपस में बातचीत करता है, यहां तक सम्मेलनों तथा बैठकों में भागीदारी भी करता है।

** प्रौद्योगिकी विभिन्न देशों की संस्कृतियों को टी. वी. तथा  इंटरनेट के माध्यम से अतः  कार्य करने में भूमिका निभाती है और वे एक दूसरे को ऐसे प्रभावित करने लगी जैसे प्रत्यक्ष रूप से, आमने सामने आकर बात चीत करके प्रभावित करते हैं।

अतः वैश्वीकरण के प्रसार में सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान प्रोद्दोगिकी का है।

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