Header Ads Widget

New Post

6/recent/ticker-posts
Telegram Join Whatsapp Channel Whatsapp Follow

आप डूुबलिकेट वेबसाइट से बचे दुनिया का एकमात्र वेबसाइट यही है Bharati Bhawan और ये आपको पैसे पेमेंट करने को कभी नहीं बोलते है क्योंकि यहाँ सब के सब सामग्री फ्री में उपलब्ध कराया जाता है धन्यवाद !

Class 12th Political Science (राजनीतिक विज्ञान) | Bihar Board Exam 2022 Most VVI Question

Class 12th Political Science (राजनीतिक विज्ञान)  Bihar Board Exam 2022 Most VVI Question

 प्रशन
1 से 29 तक के प्रश्नों के उत्तर के लिए क्लिक करे | 

Click Here

प्रशन 30:—पर्यावरण संरक्षण क्या है?

उत्तर: मनुष्य के चारों ओर जो जैविक, अजैविक तथा अन्य घटक पाए जाते हैं, सम्मिलित रूप में उन सभी को हम उसका पर्यावरण कहते हैं। साधारण शब्दों में मनुष्य के आसपास की हवा, जेल, वनस्पति तथा अन्य भौतिक वस्तुओं आदि का सहयोग ही उसका पर्यावरण है। मनुष्य के संदर्भ में यह बात अत्यंत महात्मा की है कि वह अनुकूल पर्यावरण में ही अपना अस्तित्व बनाए रख सकता है।तथा अपनी वृद्धि और विकास का कार्य कर सकता है। विपरीत पर्यावरण में भले ही वह अपना कुछ समय गुजार ले,परंतु लंबे समय तक किया विपरीत स्थिति को संकट में डाल देगी और उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।

पर्यावरण में विभिन्न दिव्य दिव्य घटक एक निश्चित मात्रा में सम्मिलित होते हैं। इनके संगठन में परिवर्तन को हम पर्यावरण प्रदूषण का नाम देते हैं।पर्यावरण का प्रदूषण मनुष्य को संकट में डाल देता है क्योंकि परिस्थितियां उसके अस्तित्व के लिए नकारात्मक सिद्ध होती है। पर्यावरण का प्रदूषण तमाम  प्रकार की समस्याओं को पैदा करता है। जैसे जलवायु परिवर्तन, ओजोन परत का विनाश, वैश्विक ताप वृद्धि, वायु में विषैली गैस से आधी। इस तरह समझनाबहुत ही आसान है कि पर्यावरण का प्रदूषण मनुष्य के अस्तित्व के लिए संकट है। मनुष्य को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए पर्यावरण के संरक्षण की आवश्यकता है।

अतः पर्यावरण संरक्षण का सामान्य अर्थ हैपर्यावरण में आने वाले अनचाहे बदलाव तथा परिवर्तनों को रोकना जिनका मनुष्य के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है,’उदाहरण के लिए, वायु में बढ़ती हुई कार्बन डाई ऑक्सीजन वैश्विक तपन (ग्लोबल वार्मिंग) को बढ़ाती है, अतःकार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के प्रयास पर्यावरण संरक्षण के अंतर्गत आएंगे। मानव जाति की यह सबसे महत्वपूर्णजिम्मेदारी है कि वह पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों में संपूर्ण संपूर्ण भाव को प्रर्दशित करें।

प्रशन 31:—पर्यावरण से आप क्या समझते हैं? पर्यावरणवाद पर एक निबंध लिखिए।

उत्तर: प्रकृति और मानव का संबंध आदिकाल से है। आज औद्योगिकरण के साथ-साथ पर्यावरण की समस्या भी जटिल होती जा रही है। पेंटागन की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि पर्यावरण में आ रहे बदलाव से विश्व को प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ेगा। इससे जानमाल को भारी नुकसान होने की भी संभावना है। पर्यावरण को हो रही क्षति से संबद्ध मस्लो पर नियंत्रण लाना अत्यंत आवश्यक है। सर्वप्रथम हमें पर्यावरण क्या है इसकी जानकारी लेनी है। पृथ्वी के चारों ओर जैव सक्रियता काबा पतला आवरण (जैव मंडल) पर्यावरण कहलाता है। व्यक्ति, जल, स्थल, वन, फसल, मार्ग एवं उद्योग यह सभी जटिल 

परिस्थितिक तंत्र के आगे स्वरूप है। इस प्रकार स्पष्ट है कि पर्यावरण प्रकृति द्वारा प्रदत्त व्यक्ति के लिए एक अनमोल धरोहर है। यह अनमोल धरोहर जब तक संतुलित रहेगी भूमंडलीय मानव जीवन सुखी और संपन्न बना रहेगा जब पृथ्वी के मानक की विकासात्मक क्रियाओं के चलते प्रकृति की स्वच्छता व संतुलन भंग हो जाती है तो इसके चलते प्रदूषण का जन्म होता है। प्रदूषण अनेक प्रकार के होते हैं, जैसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण तथा रेडियोधर्मी प्रदूषण। इसके चलते तापमान ऐसी स्थिति में पर्यावरण संरक्षण में विश्व के राज्यों की भूमिका और दायित्व बढ़ जाता है पर्यावरण की सुरक्षा के प्रश्न उत्तर एवं दक्षिण के विभिन्न राज्यों के बीच ज्ञतभिन्नताएँ है, जिससे चिंताएं बढ़ती जा रही है। विश्वव्यापी समस्या हो गई है और पर्यावरण संरक्षण हेतु विश्व स्तर पर अनेक सम्मेलन आयोजित हो चुके हैं। दिसंबर 1997 में जापान के क्योटो सम्मेलन में लगभग 159 राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने भाग लेकर पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक निर्णय लिया। 1960 के दशक से प्रारंभ पर्यावरण संबंधी विभिन्न मसलों ने आज विश्व के राष्ट्र को चेतावनी दी है कि यदि समय रहते पर्यावरण संरक्षण के भरपूर उपाय नहीं किए गए तो विश्व के राष्ट्रो को अकथनीय विपदाओं का सामना करना पड़ेगा।

प्रशन 32:—अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की क्या भूमिका है?

उत्तर: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक संगठन है जिसकी स्थापना युद्ध प्रांत संसार के विभिन्न देशों ने मिलकर  की है ताकि विश्व के संतुलित विकास को प्रोत्साहित करते हुए एवं विभिन्न मुद्राओं की बहुपरिवर्तनीयता को संभव बनाते हुए विश्व में आर्थिक स्थिरता स्थापित की जाए। इसका 1947 से कार्य आराम हुआ है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की भूमिका का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है

* या संगठन वैश्विक स्तर की वित्त व्यवस्था की देखरेख करता है।

*या मान के आधार पर वित्तीय तथा तकनीकी सहायता प्रदान करता है।

*इस संगठन के 184 देश सदस्य है परंतु प्रत्येक सदस्य की सलाह का वजन समान नहीं है।

*अग्रणी दस सदस्य के 55% मत है। यह देश अमेरिका, जापान, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, कनाडा, रूस, सऊदी अरब और चीन है।

*अकेले अमेरिका के पास 17.4 प्रतिशत मताधिकार है।

प्रशन 33:—विश्व व्यापार संगठन की क्या भूमिका है?

उत्तर: विश्व व्यापार संगठन एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो वैश्वीकरण की नीति को लागू करने का काम करती है। विश्व व्यापार संगठन ने अपने आप को अंतरराष्ट्रीय व्यापार, निवेश, वेद बौद्धिक सम्पदाअधिकार एवं आर्थिक मामलों के बारे में कायदे कानून बनाने वाली सर्वोच्च संस्था के रूप में स्थापित कर लिया है। विश्व व्यापार संगठन विकासशील देशों को अन्य देशों की वस्तुओं, सेवाओं एवं पूंजी के लिए अपने बाजारों को खोलने की सलाह देता है और उनके विकास को गति प्रदान करता है। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ाना है। समानता के आधार पर सभी सदस्यों को सर्वाधिक अनुकूल देश का दर्जा दिलवाया है। इसके अतिरिक्त विश्व व्यापार संगठन के विवाद निवारण तंत्र का उद्देश्य विवाद का सकारात्मक हल निकालना भी रहता है पूर्व सदस्य देशों के बीएच उत्पन्न विवादों का सभी को स्वीकृत हल ढूंढने की कोशिश करता है। इस प्रकार वैश्वीकरण की प्रक्रिया में विश्व व्यापार संगठन एक सराहनीय भूमिका निभाता है।

प्रशन 35:-- भारत में संप्रदायिकता पर एक संक्षिप्त लेख लिखें।

या:--संप्रदायिकता के कारणों का वर्णन करें ।

या:-- सांप्रदायिकता क्या है? भारतीय राजनीति में संप्रदायिकता के परिणामों प्रभावों का वर्णन करें।

उत्तर:-- भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख , ईसाई, पारसी, इत्यादि अनेक धर्म के लोग रहते हैं। प्रत्येक धर्म में अनेक संप्रदाय पाए जाते हैं। एक धर्म के लोगों को दूसरे धर्म के लोगों पर विश्वास नहीं है। अविश्वास की भावना संप्रदायिकता को बढ़ावा देती है।

** संप्रदायिक दल:- सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने में संप्रदायिक दलों को महत्वपूर्ण हाथ है। भारत में अनेक संप्रदायिक दल पाए जाते हैं, जैसे कि मुस्लिम लीग, जमात-ए-इस्लामी, हिंदू महासभा , अकाली दल इत्यादि। इन दलों की राजनीति धर्म के इर्द-गिर्द घूमती है। भूतपूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का कहना है की यह दुर्भाग्य की बात है कि चुनावी सफलता के लिए पाटिया संप्रदायिक दलों से संबंध बनाए हुए हैं।

** राजनीति और धर्म :-­ संप्रदायिकता का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि राजनीति में धर्म घुसा हुआ है। धार्मिक स्थानों का इस्तेमाल राजनीति के लिए किया जाता है।

** संप्रदायिक शिक्षा:-- कई प्राइवेट स्कूल तथा कॉलेजों में धर्म शिक्षा के नाम पर सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया जाता है।

** पारिवारिक वातावरण:-- कई घरों में संप्रदायिकता की बातें होती रहती हैं जिनका बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। वे बड़े होकर सांप्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं। भारत में अनेक धर्म को मानने वाले लोग निवास करते हैं। जब धार्मिक पहचान के आधार पर राजनीतिक आर्थिक व सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है, तो उसे संप्रदायिकता कहते हैं। भारत में संप्रदायिकता की जगह अत्यंत गहरी है। भारत का विभाजन व स्वतंत्रता भी संप्रदायिकता की पृष्ठभूमि में संपन्न हुए हैं। राजनीति प्रक्रिया में धार्मिक तत्व के प्रवेश के कारण सांप्रदायिकता की समस्या अत्यंत जटिल हो गई है। संक्षेप में भारतीय राजनीति में संप्रदायिकता के निम्नलिखित परिणाम दिखाई देते हैं।

**प्रभाव या परिणाम:--

1. साम्प्रदायिकता लोकतंत्र को कमजोर करती है। क्योंकि मतदान का अधिकार कई क्षेत्रों में धार्मिक पहचान हो जाती हैं तथा वास्तविक मुद्दों से जनता का ध्यान हट जाता है।

2. राजनीति में संप्रदायिकता के समावेश से धार्मिक समुदायों में तनाव, दंगों व संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है ।

3. सांप्रदायिकता के कारण राजनीतिक लाभ की दृष्टि से राजनीतिक दल अल्पसंख्यकों के प्रति तुष्टीकरण व वोट की नीति अपनाते हैं जबकि उनका वास्तविक विकास नहीं हो पाता।

4. सांप्रदायिकता के कारण राजनीतिक दलों का विभाजन सांप्रदायिकता के आधार पर हो जाता है तथा राजनीतिक दलों में विभिन्न महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर मतैक्य का निर्माण नहीं हो पाता है। भारतीय राजनीति में अधिकांश दल भारतीय जनता पार्टी को संप्रदायिक दल घोषित कर आपसे आरोप प्रत्यय रूप में संकलन रहते हैं। ऐसी स्थिति देश के विकास के लिए हानिकारक है।

5. संप्रदायिकता की तीली भावना राष्ट्रीय एकता के लिए एक गंभीर खतरा है वर्तमान में आतंकवाद का मुद्दा भी कहीं ना कहीं संप्रदायिकता से जुड़ा है।

प्रशन 36:-- राजनीतिक दल बदल क्या है? इस पर रोक के लिए क्या उपाय किए गए हैं?

उत्तर:-- राजनीतिक हित की पूर्ति के लिए एक दल छोड़कर दूसरे दल की सदस्यता प्राप्त करना दलबदल कहा जाता है। भारत में दल बदल के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं----

1. दलबदल करने का सबसे महत्वपूर्ण कारण राजनीतिक सत्ता की प्राप्ति और मंत्री पद का प्रलोभन है ।

2. आर्थिक लाभ के लिए दलबदल किया जाता है ।

3. जब किसी दल के महत्वपूर्ण सदस्य और अन्य सदस्य को दिल से टिकट नहीं मिलता, तब दलबदल का सहारा लिया जाता है ।

4. विधायकों और दलीय नेताओं के बीच व्यक्तिगत संघर्ष होने से दलबदल होता है ।

5. चौथे आम चुनाव के बाद दलबदल का महत्वपूर्ण कारण कांग्रेस की एकाधिकार की समाप्ति थी।

6. राजनीतिक दलों के निश्चित सिद्धांत नहीं है। सभी गैर साम्यवादी दलों की नीतियां प्राय: एक जैसी है जिस कारण एक दल से दूसरे दल में जाना आसान है।

»» दलबदल रोकने के लिए उठाए गए कदम:-- 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने दल बदल विरोधी अधिनियम पास करवाया। इस एक्ट के अंतर्गत या व्यवस्था की गई थी कि दल बदलने पर विधायक की सदस्यता समाप्त हो जाती है उन विराम इसके अंतर्गत निम्न व्यवस्था है---

1. यदि कोई सांसद या विधायक किसी दल के टिकट पर चुने जाने के बाद अपनी इच्छा से उस दल को छोड़ दें या अपने दल के विरुद्ध मतदान करें या मतदान के समय अनुपस्थित रहे तो सदस्यता के अयोग्य समझा जाएगा और उसका स्थान रिक्त समझा जाएगा।

2. यदि कोई संसदीय विधायक सरकार द्वारा मनोनीत किया जाए तो वह 6 महीने के अंदर अंदर किसी दल का सदस्य बन सकता है, परंतु 6 महीने बीतने के बाद यदि वह किसी दल में सम्मिलित होता है तो वह सदस्य के अयोग्य होगा और उसका स्थान रिक्त कर दिया जाएगा ।

3. यदि कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाए तो उसका पद खाली समझा जाएगा ।

4.यदि किसी सदन के विधायक दल में विभाजन हो जाए और उसके कम से कम एक 1/3 सदस्य उत्तर से अलग होकर अपना अलग दल बना ले तो यह दल बदल नहीं समझा जाएगा ।

5. यदि किसी दल के 2/3 सदस्य किसी अन्य दल में सम्मिलित हो जाए तो यह दल बदल नहीं माना जाएगा।

6. सदन के सभापति द्वारा अपना पद ग्रहण करने पर अपने दल से संबंध विच्छेद करने और सभापति पद छोड़ने के बाद अपने दल में सम्मिलित होने के कार्य को दलबदल नहीं समझा जाएगा।

  ये भी पढ़े ... 

Class 12th Political Science :- Click Here

Class 12th History                :- Click Here

Class 12th Sociology            :- Click Here

Join Telegram                       :- Click Here

Join Whatsapp Group          :- Click Here

Post a Comment

0 Comments