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Class 12th Sociology Short Question | Bihar Board Inter 2nd Year Exam 2022 | BSEB Class XII Most VVI Question Answer

Class 12th Sociology Short Question | Bihar Board Inter 2nd Year Exam 2022 | BSEB Class XII Most VVI Question Answer
Class 12th Sociology

प्रश्न 1 से 70 तक के प्रश्नों के उत्तर के लिए क्लिक करे 

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प्रशन 71:-- पश्चिमीकरण की विशेषताएं।

 उत्तर:--पश्चिमीकरण की विशेषताएं निम्नलिखित है----

1. एक तटस्त अवधारणा

2. एक व्यापक अवधारणा

3. एक निश्चित आदर्श का  अभाव

4. नए मूल्यों का समावेश

5. एक जटिल प्रक्रिया

6. जागरूक प्रयत्नों का समावेश

इस प्रकार स्पष्ट होता है कि पश्चिमीकरण परिवर्तन की वह प्रक्रिया है जो पश्चिमी देशों की सांस्कृतिक विशेषताओं के अनुकरण की दशा को अस्पष्ट करती है।

प्रशन 72:--उदारीकरण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।

उत्तर:-- यह   भूमंडलीकरण का आर्थिक तत्व है। यह एक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत एक अत्यंत नियंत्रित अर्थव्यवस्था खुली देखने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तित की जाती है। नियंत्रण व संचालन को कम करके आंतरिक अर्थव्यवस्था को उदार बनाया जाता है। अधिकतर कार्यों में राज्य का महत्व घटाकर निजी उद्यमों और कंपनियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया जाता है। सार्वजनिक इकाइयों को समाप्त करके व्यवसाय व उद्योग का निजीकरण होता है। उदारीकरण इस बात पर निर्भर है कि यदि राज्य का हस्तक्षेप कम हो तो अर्थव्यवस्थाओं पर कम से कम सरकारी नियंत्रण रखकर उसे उदार बनाना। उदारीकरण की नीति अर्थव्यवस्था की कार्यकुशलता पर जोर डालती है। निजी उद्यमों को सार्वजनिक उद्यमों की तुलना में अधिक निपुण माना जाता है।

प्रशन 73:-- भू स्थानीकरण क्या है?

उत्तर:-- भूस्थानीकरण का अर्थ है भूमंडलीय के साथ स्थानीय का मिश्रण। यह पूर्णतः स्वत: परिवर्तित नहीं होता और ना ही भूमंडलीकरण के वाणिज्यिक हितो से इसका पूरी तरह संबंध विच्छेद किया जा सकता है। मुख्य हितों से यह दावा किया जाता है कि सभी संस्कृतियों एक समान अर्थात सजातीयां(होमो जीनस )  हो जाएगी। कुछ अन्य का यह मत है कि संस्कृति के भूस्थानीयकरण की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ती जा रही है।

यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो अक्सर विदेशी फर्मों द्वारा अपना बाजार बढ़ाने के लिए स्थानीय परंपराओं के साथ व्यवहार में लाई जाती है। भारत में हम यह देखते हैं कि स्टार, एमटीवी, ज़ी चैनल और कार्टून नेटवर्क जैसे सभी विदेशी टेलीविजन चैनल भारतीय भाषाओं का प्रयोग करते हैं। यहां तक कि मैकडॉनल्ड्स भी भारत में अपने मिरामिष और चिकन उत्पाद ही बेचता है।

प्रशन 74:-- जनजातीय आंदोलन के मुख्य आधारों को दर्शावें।

उत्तर:-- जनजातीय आंदोलन जनजातियों की विभिन्न स्तरों पर असंतोष, उत्पीड़न और शोषण पर आधारित है ‌। सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक कारणों तथा साहूकारों एवं जमींदारों के शोषण के विरुद्ध एवं भाषाई पहचान पाने आदि कारक इन आंदोलनों के मुख्य आधार रहे हैं। इस प्रकार यह संरचित असमानता, भेदभाव एवं अंतहीन उपेक्षा के खिलाफ विद्रोह माना जाता है।

प्रशन 75:-- भारत में पर्यावरण संबंधी मुख्य आंदोलनों के नाम बतावें।

उत्तर:-- स्वास्थ्य मानव जीवन के लिए पर्यावरण की सुरक्षा आवश्यक है। इससे संबंधित प्रमुख आंदोलनों में चिपको आंदोलन, एपिको आंदोलन, माधव आशीष, रियो कॉन्फ्रेंस मानव पर्यावरण समिति (1970), पर्यावरण अधिनियम (1986), केंद्रीय गंगा प्राधिकरण (1985), जल प्रदूषण निवारण और निवारण बोर्ड, बड़े बांधों का विरोध तथा नासाखोरी के खिलाफ आंदोलन आदि उल्लेखनीय हैं।

प्रशन 76:-- भारतीय संविधान से आप क्या समझते हैं?

या:-- संविधान किस प्रकार सामाजिक परिवर्तन का आधारभूत साधन है?

उत्तर:-- वर्तमान राज्यों में केवल कुछ व्यक्तियों अथवा संगठनों के द्वारा ही सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तन लाना संभव नहीं है।वर्तमान युग नियोजन का युग है जिसमें संवैधानिक व्यवस्थाओं के अंतर्गत ही कोई राज्य लोगों के व्यवहारों तथा सामाजिक संस्थाओं में परिवर्तन ला सकता है। भारत का संविधान इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। स्वतंत्रता से पहले तक भारत की सामाजिक संस्थाओं तथा व्यक्तिगत व्यवहारों का निर्धारण धार्मिक और जातिगत नियमों के आधार पर होता था। संविधान के द्वारा जब भारत को एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष तथा क्षमता कारी राष्ट्र घोषित किया गया तो संविधान में दिए गए प्रावधानों के अनुसार दलित और पिछड़ी जातियों के जीवन में आमूल परिवर्तन हो गया।संवैधानिक प्रावधानों की सहायता से ही महिलाओं की शक्ति तथा अधिकारों में वृद्धि हुई। समता कारी व्यवस्था और सामाजिक न्याय को प्रोत्साहन मिलने से विभिन्न समुदायों के बीच विभेद समाप्त हो गए। लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के आधार पर नई पंचायती राज व्यवस्था स्थापित होने से ग्रामीण संरचना का रूप बदलने लगा। स्पष्ट है कि आज संविधान को ही सामाजिक परिवर्तन के सबसे शक्तिशाली साधन के रूप में देखा जा सकता है।

प्रशन 78:-- दबाव समूह से आप क्या समझते हैं?

उत्तर:-- समाज में अनेक संगठन/ दल विभिन्न समय में कार्य करते रहते हैं जिनके अलग अलग क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भागीदारी होती है। यह दल समूह समय-समय पर अपनी महत्ता के अनुसार राजनीतिक, आर्थिक क्षेत्रों इत्यादि में समान अवसर प्राप्त करने के लिए अपनी महत्ता का प्रयोग करते रहते हैं। उन्हें तब आप सब के नाम से जाना जाता है, जैसे--राजनीतिक में बहुमत न होने पर छोटे दल अपनी महत्ता के अनुसार अपना सहयोग देते हैं, बदले में क्षेत्र के लिए, अपने संगठन के लिए सुविधाएं प्राप्त करते हैं ।

दबाव समूह का अस्तित्व और महत्व प्रजातांत्रिक व्यवस्था में ही है, अन्ययंत्र नहीं। दबाव समूह लोगों वैसे समूह को कहते हैं जो किसी खास समस्या से जुड़े होते हैं और सरकार या समाज पर दबाव डालकर हर हाल में अपने उद्देश्य की प्राप्ति चाहते हैं। स्वतंत्र भारत में भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में हमें दबाव समूह का अस्तित्व देखने को मिलता है चाहे वह राम जन्मभूमि या बाबरी मस्जिद का मसला हो या कावेरी जल विवाद का या अलग राज्य की मांग का।वर्तमान में आंध्र प्रदेश में अलग तेलंगाना राज्य की मांग में दबाव समूह की भूमिका देखी जा सकती है। इसी तरह महिला आरक्षण के लिए महिलाओं का दबाव समूह भी कार्यरत दिखता है।

प्रशन 79:-- बाल मजदूर पर टिप्पणी लिखें।

उत्तर:-- भारत में बाल मजदूरी एक प्रमुख समस्या है। संविधान द्वारा बाल मजदूरी को गैरकानूनी घोषित किया गया है।इसके लिए कई अधिनियम बनाए गए हैं जिनके अंतर्गत 14 वर्ष तक की आयु तक बच्चों को किसी खतरनाक कार्य में लगाना दंडनीय अपराध है। इसके बावजूद हमारे देश में बाल मजदूर की संख्या सर्वाधिक है। अनेक देशों में बाल मजदूरी को प्रोत्साहित करने के लिए कड़े कानून बनाए गए हैं। भारत के कुछ उत्पादों जैसे कालीन, गलीचे आदि का आयात स्थगित कर दिया है क्योंकि इन उद्योगों में सर्वाधिक बाल मजदूर लगे हैं।सरकार ने इस दिशा में काफी प्रयास किए हैं और बच्चों को शिक्षा सुविधाएं उपलब्ध कराई है ताकि वे इधर-उधर ना भटक कर स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करें। स्वयंसेवी संगठन भी इस दिशा में अनेक सकारात्मक कार्य कर रहे हैं।

प्रशन 80:-- पंचायती राज्य की उपयोगिता तथा महत्व का वर्णन करें।

उत्तर:-- पंचायती राज प्रशासन की विकेंद्रीकरण और प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्यक्ष रुप से गणतंत्र की प्रक्रिया में शरीक करने का एक संस्थागत माध्यम है। यह वह व्यवस्था है जिसके अंतर्गत ग्रामीण समुदाय अपने गांव के स्तर पर कल्याणकारी योजनाओं के निर्माण और क्रियान्वयन में भाग लेते हैं। यह अन्याय और शोषण के विरुद्ध एक आंदोलन, विकास का संगम स्थल, समता एवं सामाजिक सामंजस्य का संदेशवाहक तथा राजनीतिक प्रक्रिया के प्रशिक्षण का गढ़ है। श्री जयप्रकाश नारायण के शब्दों में--- पंचायती राज का आरंभ एक ऐसा प्राथमिक समुदाय से होता है जो साथ साथ रहने वाले, साथ साथ कार्य करने वाले, सहयोगी आधार पर व्यवस्था करने वाले तथा कठिनाई की स्थिति में दूसरे समुदायों से सहयोग करने वाले ही पंचायती राज हैं। अतः पंचायती राज का तात्पर्य मुख्य रूप से ग्राम पंचायतों तथा जिला परिषदों द्वारा अपने अपने स्तर पर स्वंय एक सरकार के रूप में कार्य करना तथा गौण रूप  से राज्य सरकार को सहायता देना है । इससे पंचायती राज व्यवस्था की प्रकृति स्पष्ट हो जाती है।

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