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Class 12th Political Science Subjective Question 2022 | Bihar Board Class XII Exam 2022

Class 12th Political Science Subjective Question 2022  Bihar Board Class XII Exam 2022

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प्रशन 7:-- हरित क्रांति के भारतीय राजनीति पर प्रभाव का उल्लेख करें।

उत्तर:-- हरित क्रांति के प्रभाव ना केवल ग्रामीण स्तर की राजनीति पर ही नहीं, बल्कि शहर की राजनीति को भी प्रभावित किया है, जिसके निम्नलिखित कारण है-----

(1) हरित क्रांति से किसानों में जागृति आई। इस क्रांति से किसानों की आर्थिक दशा में सुधार हुआ है। उनका राजनीतिक महत्व भी बढ़ा है। साथ ही सामाजिक स्थिति में भी बदलाव आया है। इस प्रकार वह कृषक जो लंबे समय तक उपेक्षित एवं दीन हीन अवस्था में था, हरित क्रांति के फल स्वरुप अचानक राजनीतिक महत्व का विषय बन गए।

(2) राजनीति में किसान नेता का उदय हुआ और आज भारत की संपूर्ण राजनीति किसानों पर केंद्रित हो गई है। चौधरी चरण सिंह अपने को किसान का सबसे बड़ा नेता मानते थे। चौधरी देवीलाल, अजीत सिंह, ओम प्रकाश चौटाला, प्रकाश सिंह बादल एवं देव गौरा आदि अपने को किसानों का नेता मानते हैं और किसानों के दम पर राजनीति करते हैं । यह सब हरित क्रांति का ही प्रभाव है।

(3) हरित क्रांति के परिणाम स्वरूप ना केवल किसान, बल्कि राजनीतिक दलों, नेताओं, अधिकारियों की विचारधारा एवं दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है।

(4) सभी राजनीतिक दल अपने चुनाव घोषणापत्र में किसानों को मुफ्त बिजली, खाद, बीज, कीटनाशक इत्यादि की आपूर्ति करते हैं जिससे किसानों का वोट प्राप्त हो सके। किसान सम्मेलन और किसान रैली के माध्यम से मजदूर संघों को संगठित करने का प्रयास किया जाता है।

(5) राजनीतिक का रुख गांवों की तरफ हुआ। अतः कहा जा सकता है कि हरित क्रांति भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन लाने में मील का पत्थर साबित हुआ है।

प्रशन 8:-- योजना आयोग/नीति आयोग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें ।

या:-- भारत में योजना आयोग के संगठन एवं कार्यों का वर्णन करें। 2010,2011,2013,2015,2017,2019 Most vvi

उत्तर:-- भारत में 1950 में योजना आयोग का गठन किया गया। नेहरू का विचार था कि भारत का विकास वैज्ञानिक तरीका से किया जाना चाहिए। यही कारण है कि उन्होंने एक भिन्न संस्था योजना आयोग के गठन का निर्माण किया।

2014 के आम चुनाव के बाद योजना आयोग को समाप्त करके नीति आयोग का गठन किया गया। जिसका मुख्य कार्य सरकार के लिए सभी क्षेत्रों में नीतियों का निर्माण करना है।

** संगठन:-- योजना आयोग के पहले अध्यक्ष स्वयं प्रधानमंत्री होते हैं। इनमें एक उपाध्यक्ष का प्रावधान किया गया है, जो सामान्यतः बड़े अर्थशास्त्री होते हैं। कभी-कभी राजनेता को भी यह पद दिया जाता है। व्यवहारिक दृष्टि से योजना आयोग उपाध्यक्ष की देखरेख में ही कार्य करता है। इसके अतिरिक्त इसमें कुछ सरकारी एवं गैर सरकारी सदस्य होते हैं। कुछ मंत्री भी इसके सदस्य होते हैं।

पंडित नेहरू सोवियत संघ की व्यवस्था से अत्यधिक प्रभावित थे। वे योजना के महत्व को समझते थे। उनके अनुसार विकास के लिए क्रमबद्ध रूप से साधनों ,आवश्यकताओं, लक्ष्यों का निर्धारण अत्यावश्यक है। उन्होंने प्रारंभ से ही विकास कार्यक्रमों हेतु पंचवर्षीय योजनाओं का प्रावधान रखा था।

** कार्य:-- योजना आयोग के कार्य निम्नलिखित बतलाए जा सकते हैं----

(1) पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण करना

(2) आर्थिक आय के स्रोतों का अवलोकन करना

(3) योजनाओं के लिए प्राथमिकता निश्चित करना

(4) योजनाओं के लक्ष्यो को प्राप्त करना

(5) योजनाओं की प्रगति की देखरेख तथा उसका मूल्यांकन करना

(6) योजना की प्रक्रिया में आने वाली बाधाओं को दूर करना

(7) योजना तथा अन्य आर्थिक कार्यक्रमों के लिए सलाह देना

(8) राज्यों की विकास योजनाओं पर सहमति प्रदान करना तथा राज्यों को आवश्यक धन प्रबंध  करना।

** वर्तमान समय में योजना आयोग की भूमिका काफी व्यापक हो चुकी है। भारत के आर्थिक विकास में इसकी भूमिका एवं आवश्यकता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इसकी कार्य क्षमता तथा कार्य शैली भी काफी उत्कृष्ट दिखाई पढ़ती है। इसका कारण यह है कि संस्था प्रत्यक्ष प्रधानमंत्री के साथ कार्य करती है। सरकार की योजना नीतियों का प्रतिबिंब इसमें देखा जा सकता है। सरकार के आर्थिक कार्यों की सफलता असफलता योजना आयोग पर निर्भर करती है। इन सभी स्थितियों को देखते हुए निश्चित पूर्वक कहा जा सकता है कि भारतीय योजना आयोग एक महत्वपूर्ण संस्था है।

प्रशन 9:-- राष्ट्रीय विकास परिषद के क्या कार्य हैं? 2012,2014,2019 Most VVI

उत्तर:--- योजना आयोग के गठन के पश्चात प्रथम पंचवर्षीय योजना के निर्माण के समय यह अनुभव किया गया कि संघीय स्तर पर योजना निर्माण में राज्यों की सार्थक भूमिका आवश्यक है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए 6 अगस्त 1952 को राष्ट्रीय विकास परिषद का गठन किया गया। योजना आयोग की तरह राष्ट्रीय विकास परिषद का अध्यक्ष भी प्रधानमंत्री होता है। केंद्रीय मंत्री मंडल के सभी सदस्य तथा योजना आयोग के विशेषक सदस्य तथा सभी राज्यों के मुख्यमंत्री एवं केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि भी इसके सदस्य होते हैं।

** राष्ट्रीय विकास परिषद के मुख्य कार्य:-- राष्ट्रीय विकास परिषद के मुख्य कार्य को निम्न प्रकार द्वारा व्यक्त किया जा सकता है----

1. पंचवर्षीय योजनाओं के निर्माण के लिए आवश्यक दिशा निर्देश तैयार करना। इन्हीं दिशानिर्देश को आधार बनाकर योजना निर्माण का कार्य पूर्ण किया जाता है।

2. योजना आयोग द्वारा तैयार की गई योजनाओं पर विचार विमर्श करना।

3. योजना क्रियान्वयन के लिए आवश्यक संसाधनों का अनुमान लगाती है तथा उनमें वृद्धि के लिए आवश्यक उपाय सूझाती है।

4. राष्ट्र के विकास को प्रभावित करने वाली सामाजिक आर्थिक नीतियों से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार करना ।

5. पंचवर्षीय योजना के लक्ष्यों की प्राप्ति तथा सफलता इत्यादि का मूल्यांकन करना तथा आवश्यक अनुशंसाएं करना।

प्रशन 10:-- नियोजन क्या है इसके महत्व एवं आवश्यकता की विवेचना कीजिए।

उत्तर:-- नियोजन से आशय किसी कार्य को करने से पहले यह सोचना कि क्या करना है, कहां करना है ,कैसे करना है, कब करना है, किस आकार में करना है आदि का निर्धारण करना नियोजन कहलाता है।

योजना आयोग के अनुसार नियोजन एक अनिवार्य प्रक्रिया है, जो यह निर्धारित करती है कि भविष्य में किस कार्य को कब संपन्न किया जाए,भारत में योजना आयोग के द्वारा कुछ दृघ कालीन योजनाएं बनाई गई हैं। जो  निम्नलिखित है---

(1) राष्ट्रीय तथा प्रति व्यक्ति आय को बढ़ावा देना और उत्पादन को बढ़ावा देना।

(2) पूर्व रोजगार का लक्ष्य प्राप्त करना।

(3) आय  व संपदा की असमानता कम करना।

(4) समानता व न्याय पर आधारित तथा शोषण से मुक्त समाजवादी समाज स्थापित करना।

** नियोजित विकास की आवश्यकता या महत्व: नियोजित विकास की आवश्यकता मुख्यता: निम्नलिखित कारणों से अनुभव की जाती है---

(1) नियोजन से श्रमिकों तथा निर्धनों की शोषण से सुरक्षा की जाती है ।

(2) नियोजन द्वारा साधनों को उचित प्रयोग किया जा सकता है।

(3) नियोजन से कम साधनों द्वारा अधिक से अधिक उत्पादन किया जा सकता है।

(4) नियोजन से प्राकृतिक साधनों का अपव्याय  नहीं हो पाता।

(5) नियोजन से वैज्ञानिकों साधनों का प्रयोग किया जा सकता है।

(6) नियोजन से प्रत्येक वस्तु का उत्पादन आवश्यकतानुसार होता है।

प्रशन 11:-- गुटनिरपेक्ष आंदोलन की वर्तमान उपयोगिता का परीक्षण करें।

या:--गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका का वर्णन करें ।

या:-- भारत में गुटनिरपेक्षता की नीति क्यों अपनाई?

उत्तर :-- 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता के बाद भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया। भारत द्वारा इस नीति को अपनाने के मुख्य कारण अग्रलिखित है----

(1) भारत में अपने गुट संघर्ष में सम्मिलित करने की अपेक्षा देश की सामाजिक तथा राजनीतिक प्रगति की ओर ध्यान देने में अधिक लाभ समझा क्योंकि हमारे सामने अपनी प्रगति अधिक आवश्यक है ।

(2) सरकार द्वारा किसी भी गुट के साथ मिलने से यहां की जनता में भी विभाजन कारी उत्पन्न होने का भय था।

(3) किसी भी गुट के साथ मिलने और उसका पिछलग्गू बनने से राष्ट्र की स्वतंत्रता कुछ अंश तक अवश्य प्रभावित होती है।

(4) भारत स्वंय एक महान देश है, और इसे अपने क्षेत्र में अपनी स्थिति को महत्वपूर्ण बनाने के लिए किसी बाहरी शक्ति की आवश्यकता नहीं थी।

प्रशन 12:-- गुटनिरपेक्ष आंदोलन से आप क्या समझते हैं? क्या यह अब अप्रासंगिक हो गया है ?

या:-- गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रसंगिकता का मूल्यांकन करें।

  या:-- गुटनिरपेक्ष आंदोलन अब अप्रासांगिक है। वर्णन करें। (2017,2015,2019)  Most vvi Question

उत्तर:--- सामान्य शब्दों में गुटनिरपेक्षता से आशय यह है कि जब दो देशों के बीच समझौता होता है और उन दोनों में शामिल ना हो तो ऐसे देशों को गुटनिरपेक्ष देश कहते हैं। हर कोई देश गुट में शामिल नहीं होता है क्योंकि उसे गुट की प्रत्येक कार्यवाही को बतानी पड़ती है, इसलिए कुछ देश हमेशा गुटनिरपेक्ष ही रहते हैं। जैसे हमारा भारत देश गुटनिरपेक्ष देश है।

 ** गुटनिरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत 1961 में भारत के प्रधानमंत्री नेहरू युगोस्लाविया के राष्ट्रपति मार्शल टीटो तथा मिस्र के राष्ट्रपति कर्नल नासिर के संयुक्त प्रयासों से हुई थी। आरंभ में इस आंदोलन में 25 सदस्य राष्ट्र थे। वर्तमान में इसमें 118 सदस्य देश हैं। इसका शिखर सम्मेलन 3 वर्ष में एक बार होता है। अब तक इसके 15 शिखर सम्मेलन हो चुके हैं। इस आंदोलन में एशिया, अफ़्रीका व लैटिन  अमेरिका के नवोदित व विकासशील राष्ट्र शामिल है। इन देशों को तीसरी दुनिया के देश भी कहा जाता है।

** गुटनिरपेक्ष आंदोलन के मुख्य सिद्धांत निम्नलिखित हैं----

(1)  गुट बंदी से दूर रहकर गुण दोष के आधार पर अंतरराष्ट्रीय मामलों में स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करना।

(2) राष्ट्रों की संप्रभुता, समानता तथा आपसी सहयोग में विश्वास।

(3) उपनिवेशवाद तथा नव उपनिवेशवाद का विरोध।

(4) रंगभेद नीति का विरोध।

(5) सर्व भौमिक नि: शस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण का समर्थन।

(6) शांतिपूर्ण सह अस्तित्व तथा अंतरराष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण समाधान में विश्वास।

(7) दूसरे देशों में सैनिक हस्तक्षेप व सैनिक अड्डों का विरोध।

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