प्रशन 1 से 8 तक के लिए क्लिक करे
प्रशन 9:- क्या गुप्त काल प्राचीन भारत का स्वर्ण युग था?
उत्तर:--
हां गुप्त काल
प्राचीन भारत का स्वर्ण युग था। गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग इसलिए
कहा जाता है क्योंकि इस युग में सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक
क्षेत्रों में अत्यधिक उन्नति हुई। गुप्त काल में देशों में सुख शांति तथा साहित्य
कला विज्ञान आदि क्षेत्रों में अत्यधिक उन्नति हुई।
सामान्य शब्दों में गुप्त काल में भारत बहुत विकास किया हर क्षेत्र
में अत्यधिक उन्नति हुई इसलिए इतिहासकारों ने गुप्त काल को स्वर्ण युग की संज्ञा
दी है। अतः इसकी गिनती विश्व के पेरीकिलज, अगस्तस, एलिजाबेथ
के कालो से की गई है।
»» गुप्त काल को महान
संज्ञा देने की विशेषताएं:--- गुप्त काल को महान संज्ञा देने की विशेषताएं निम्नलिखित है------
1. महान सम्राटों का युग
2. विदेशी सत्ता का अंत
3. राजनीतिक एकता का युग
4. आंतरिक शांति तथा प्रजा की समृद्धि का युग
5. धार्मिक सहिष्णुता का युग
6. कला का उत्कर्ष युग
1. महान
सम्राटों का युग:-- किसी भी शासन तंत्र को संभालने के लिए महान
सम्राट का होना बहुत जरूरी है। गुप्त काल में हमें एक नहीं, बल्कि
अनेक महान सम्राटों के दर्शन होते हैं। जो सैनिक या सामरिक दृष्टि से अत्यंत
पराक्रमी, महान विजेता, शासन की दृष्टि से कुशल संगठनकत्रता, लोक
कल्याण की दृष्टि से अधिक प्रजावत्सल यानी प्रजा के बारे में सोचने वाला, बौद्धिक
दृष्टि से साहित्य संगीत को सहारा देने वाले थे।
2. विदेशी
सत्ता का अंत:- गुप्त सम्राट देश की सुरक्षा के प्रति सावधान
थे। उन्होंने देश की स्वतंत्रता की रक्षा तथा राजनीतिक एकता को बनाए रखने के लिए
विदेशी सत्ता का अंत कर दिया।
अतः गुप्त सम्राटों ने शकों तथा कुषाणों को पराजित करके उनका वजूद
मिटा दिया।
3. राजनीतिक
एकता का युग:- अशोक की मृत्यु के बाद तथा गुप्त वंश की
स्थापना से पहले केंद्रीय शासन के रूप में भारत का राजनीतिक मानचित्र छोटे-छोटे
राज्यों में बंटा था। जिसके कारण हमेशा आक्रमणकारी भारत के राज्यों में आक्रमण कर
लूट कर चले जाते थे। इसलिए गुप्त कालीन सम्राटों ने इस राजनीतिक का अंत करके
दिग्विजय नीति का अनुसरण किया पूरे देश में राजनीतिक एकता आ गई थी आपस में लड़ने
के बजाय आपस में एक होकर शासन तंत्र को संभालते थे।
4. आंतरिक
शांति तथा प्रजा की समृद्धि का युग:- देश के अंदर
शांति था और प्रजा भी समृद्ध थी यानि सुख शांति, धनवान था। कृषि
की उन्नति के लिए कुआं, तालाब, जलकुंडों, सरोवर
आदि का निर्माण किया गया था तथा अनेक सड़कों एवं स्वर्ण मुद्रा की व्यवस्था का
निर्माण किया गया था।
5. कुशल
प्रशासन:- गुप्त सम्राटों की शासन व्यवस्था
सुव्यवस्थित तथा सुसंगठित थी। उनकी उत्तम शासन व्यवस्था के कारण जनता आर्थिक रूप
से सुखी हो गए। उन्होंने संपूर्ण साम्राज्य में शांति व्यवस्था स्थापित की अपनी
प्रजा को आंतरिक एवं बाह्य खतरों से सुरक्षित रखते थे। गुप्त साम्राज्य प्रजावत्सल
शासक थे।
फाहियान चीनी यात्री ने गुप्तों की शासन प्रणाली की प्रशंसा करते हुए
लिखा है कि गुप्त सम्राटों का शासन बहुत अच्छा था।
6. कला
का उत्कर्ष युग:- गुप्त काल में कला के क्षेत्र में भी काफी
विकास हुआ। भारतीय वास्तुकला, चित्रकला ,मूर्तिकला , संगीत
कला , मुद्रा निर्माण कला आदि के क्षेत्र में अत्याधिक उन्नति हुई। इस काल
में अनेक मंदिरों, बौद्ध, विहारों, चैत्यों, स्तूपों तथा
राजमहलो का निर्माण हुआ।
प्रशन 10:-- गुप्त साम्राज्य के पतन के कारणों की चर्चा करें।
उत्तर:--
गुप्त साम्राज्य
के पतन के निम्नलिखित कारण थे----
1. अयोग्य उत्तराधिकारी (दुर्बल शासक)
2. उत्तराधिकारी के निश्चित नियम का अभाव
3. सीमावर्ती क्षेत्रों की अवहेलना
4. विशाल साम्राज्य
5. सैनिक दुर्बलता
6. आंतरिक विद्रोह
7. आर्थिक संकट
1. अयोग्य
उत्तराधिकारी (दुर्बल शासक):---- विशाल गुप्त
साम्राज्य को संभालने के लिए स्कंद गुप्त के बाद कोई भी सबल शासक ना हुआ जिस कारण
गुप्त साम्राज्य का पतन हो गया।
2. उत्तराधिकारी
के निश्चित नियम का अभाव:---- उत्तराधिकारी की निश्चित नियम के अभाव के कारण ही गृह युद्ध शुरू हो
गया। इस अवस्था का लाभ उठाकर सब शासक खुद को स्वतंत्र समझने लगे जिस कारण गुप्त
साम्राज्य का अंत हो गया।
3. सीमावर्ती
क्षेत्रों की अवहेलना:---- चंद्रगुप्त के
बाद किसी भी शासक ने सीमावर्ती क्षेत्रों पर ध्यान नहीं दिया जिस वजह से गुप्त
साम्राज्य का पतन हो गया।
4. विशाल
साम्राज्य:----- गुप्त साम्राज्य बहुत विशाल था। उस समय गाड़ी
का साधन ना के बराबर था। अतः इतने बड़े राज्यों पर नियंत्रण रखना कठिन था। इस प्रकार
गुप्त साम्राज्य की विशालता भी गुप्त साम्राज्य के पतन का कारण बनी।
5. सैनिक
दुर्बलता:----- गुप्त काल सूखा समृद्धि का युग था, लेकिन
लंबे समय तक युद्ध ना होने के कारण यहां के सैनिक आलसी हो गए तो हम यह कह सकते हैं
की सैनिक दुर्बलता भी गुप्त साम्राज्य के पतन का कारण बनी।
6. आंतरिक
विद्रोह:---- जब गुप्त साम्राज्य शक्तिशाली थे ,तो
अनेक भारतीय राजाओं ने उनकी अधीनता स्वीकार कर ली थी, परंतु
गुप्त साम्राज्य की सैनिक शक्ति जब कमजोर पड़ गई तो यह शासक विद्रोह करने लगे।
मालवा के राजा यशो धर्म तथा वकाटक के राजा नरेंद्र सेन विद्रोह करके खुद को आजाद
कर लिया।
7. आर्थिक
संकट:----- धन की कमी भी गुप्त साम्राज्य के पतन का कारण
बनी। इस प्रकार आर्थिक कठिनाइयां बढ़ जाने
के कारण गुप्त साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। आर्थिक संकट भी गुप्त साम्राज्य के
पतन का कारण बनी। अतः इन सभी कारणों से गुप्त साम्राज्य का पतन
हो गया।
प्रशन 11:-- अलबरूनी के भारत वर्णन की विवेचना करें।
उत्तर:--
महमूद गजनी के
आक्रमणों के वक्त भारत में आए यात्री एवं इतिहासकार अलबरूनी ने भारत के बारे में
जो वर्णन किया है ,वह इस प्रकार है-----
** सामाजिक स्थिति
** धार्मिक स्थिति
** राजनीतिक दर्शन
** न्याय व्यवस्था
** ऐतिहासिक ज्ञान
** उप संहार
** सामाजिक
स्थिति :-- सारा हिंदू समाज बुराई में जकड़ा हुआ था ।उस
समय बाल विवाह और सती प्रथा भी मौजूद थी, विधवाओं को पुनः
विवाह करने की आज्ञा नहीं थी।
** धार्मिक
स्थिति :-- सारे देश में मूर्ति पूजा प्रचलित थी लोग
मंदिरों में बहुत दान देते थे मंदिरों में बहुत सा धन जमा था जनता देवी देवताओं
में विश्वास रखती थी, जबकि सुशिक्षित एवं विद्वान केवल ईश्वर में
विश्वास रखती थी।
** राजनीतिक
दशा:--- सारा देश छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था। इनमें
से कन्नौज, मालवा, गुजरात, सिंध, कश्मीर तथा
बंगाल अधिक प्रसिद्ध थे। इन में राष्ट्रीय भावना की कमी थी यह आपस में लड़ते थे।
** न्याय
व्यवस्था:--- फौजदारी कानून नरम थे इनमें ब्राह्मणों को
मृत्युदंड नहीं दिया जाता था। बार-बार अपराध करने वाले के हाथ पैर काट दिए जाते
थे।
** ऐतिहासिक
ज्ञान:--- इतिहासिक लेखन के बारे में लिखता है कि
"भारतीयों "को लिखने का बहुत कम ज्ञान था। जब उनको सूचना के लिए अधिक
दवाब दिया जाता था तो वे कथा कहानी शुरू कर देते थे। उस समय में इतिहास लिखने का
वैज्ञानिक ज्ञान प्राप्त नहीं था।
** उप
संहार:--- भारतीय झूठा अभिमान करते हैं तथा अपना ज्ञान
दूसरों को देने को तैयार नहीं होते हैं। उसने लिखा है कि हिंदू अपना ज्ञान दूसरों
को देने में बड़ी कंजूसी करते हैं। अपनी जाति के लोगों को बड़ी कठिनाई से ज्ञान
देते हैं। हिंदू यह समझते हैं की उनके जैसा देश में कोई नहीं है, उनके
जैसा संसार में कोई धर्म नहीं है, उनके जैसा किसी के पास ज्ञान नहीं है। इस
प्रकार अलबरूनी के वर्णन से तत्कालीन भारत की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।
प्रशन 12:-- विजयनगर साम्राज्य के उत्थान एवं पतन
का वर्णन करें।
उत्तर:--
विजयनगर साम्राज्य
में कुछ बड़े-बड़े शासकों ने इस साम्राज्य को काफी उन्नत और विकसित किया, परंतु
सभी शासकों में कृष्ण देव राय को इसका सबसे अच्छा शासक माना जाता है, इसका
महत्वपूर्ण कारण यह है कि कृष्णदेव राय के शासनकाल में विजयनगर अपने चरमोत्कर्ष
प्रथा पर पहुंच गई थी।
»» विजयनगर साम्राज्य के
उत्थान के कारण:-- विजयनगर
साम्राज्य के उत्थान के कारण निम्नलिखित थे------
1. महान शासकों का उद्भव
2. साम्राज्य विस्तार
3. कला और संस्कृति में योगदान
1. महान
शासकों का उद्भव:-- विजयनगर साम्राज्य में कई महान शासक थे, परंतु
इसका परिणाम यह हुआ कि विजयनगर साम्राज्य अपनी विख्याती को
काफी लंबे समय तक बनाए रखा।
2. साम्राज्य
विस्तार:-- विजयनगर की शुरुआत तंग भद्रा और कृष्ण नदियों
के बीच के क्षेत्र से हुई थी। किंतु आगे चलकर इसका विस्तार उड़ीसा और बीजापुर तक
पहुंच गया।
3. कला
और संस्कृति में योगदान:--- विजयनगर
साम्राज्य में कला और संस्कृति को भी बढ़ावा मिला वर्तमान में दक्षिण भारत में आज
भी उनके द्वारा बनाए गए मंदिरों को देखा जा सकता है।
»» विजयनगर साम्राज्य के
पतन के कारण:-- विजयनगर
साम्राज्य के पतन के निम्नलिखित कारण थे-----
1. युद्ध में हार
2. बीजापुर, अहमदनगर तथा गोलकुंडा की संयुक्त सेनाओं से हार
3. आयोग के शासक के हाथ में सत्ता
1. युद्ध
में हार:--- विजय नगर की सेना प्रधानमंत्री राम राय के
नेतृत्व में बुरी तरह हारी जिस कारण उनका मनोबल टूट गया।
2. बीजापुर,
अहमदनगर तथा गोलकुंडा की संयुक्त सेनाओं से हार:--- संयुक्त सेनाओं ने विजय नगर की सेनाओं को हराने के बाद विजय नगर शहर
पर धावा बोल दिया और उन्हें बुरी तरह नष्ट कर दिया।
3. अयोग्य
शासक के हाथ में सत्ता:--- राजा कृष्णदेव
राय के बाद जो भी शासका आए वह अयोग्य थे ,और वह इतने बड़े
साम्राज्य को अच्छे से नहीं संभाल सके।
प्रशन 13:-- गौतम बुद्ध कि जीवन एवं उपदेशों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:--
गौतम बुद्ध का
जन्म वृत्त:----
गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ
था इनका जन्म 563 ईसा पूर्व में हुआ। इनके पिता का नाम शुद्धोधन तथा माता का नाम मायादेवी था। इनके पिता शाक्य वंश
के राजा थे, परंतु गौतम बुध की जन्म के सातवें दिन ही इनकी माता की मृत्यु हो गई।
गौतम बुध का पालन पोषण महाराजा शुद्धोधन की छोटी रानी तथा माया देवी की छोटी बहन
महा प्रजापति ने किया। इनके जन्म के कुछ दिन बाद एक साधु (बृध्द ऋषि) ने बताया कि
ये आगे चलकर सन्यासी बन सकता है। इसी कारण सिद्धार्थ की शादी 16
वर्ष की आयु में यशोधरा नामक राजकुमारी से करवा दिया तथा इनका एक पुत्र भी था
जिनका नाम राहुल था।
»» चार बड़े संकेत और
गृह त्याग:---- राजकुमार सिद्धार्थ के वैवाहिक जीवन के कुछ समय के बाद उन्होंने चार
ऐसे दृश्य देखें जिससे उनकी जीवन ही बदल गई! बुढें मनुष्य, रोगी, सन्यासी
और मृत व्यक्तियों को देखकर उन्होंने उनके पीछे का सत्य को जानने की कोशिश में
अपना घर त्याग कर बाहर चला गया। अर्थात उसने 29 वर्ष की आयु
में गृह त्याग किया।
»» ज्ञान की खोज एवं
प्राप्ति:---- गौतम
बुध के गृह त्याग के 6 वर्ष के बाद बोधगया (बौद्धि वृक्ष) बिहार में पीपल के वृक्ष के नीचे तपस्या
के बाद ज्ञान की प्राप्ति हुई तब उनकी आयु 35 वर्ष की थी।
ज्ञान की प्राप्ति के बाद उन्होंने अपने ज्ञान यानी बौद्ध धर्म का
प्रचार प्रसार किया। उनके प्रिय शिष्य आनंद थे प्रथम महिला शिष्य प्रजापति गौतमी
थी। गौतम बुध की मृत्यु 483 ईसा पूर्व
अर्थात 80 वर्ष के बाद कुशीनगर में हुआ।
»» नैतिक शिक्षाएं(चार
आर्य सत्य):--- गौतम
बुद्ध चार आर्य सत्य तथा अष्टांगिक मार्ग पर चलने का उपदेश दिया------
(1) संसार में दुख ही दुख है
(2) दुख की जननी तृष्णा (इच्छा) है
(3) तृष्णा के नाश से दुख का नाश संभव है
(4) तृष्णा का नाश अष्टांगिक मार्ग से संभव है
(1) संसार
में दुःख ही दुख है:--- इसका अर्थ है
संसार में दुःख ही भरा पड़ा है।
(2) दुख
की जननी तृष्णा(इच्छा) है:--- इसका अर्थ है किसी वस्तु को पाने की प्रबल इच्छा ही मनुष्य को दुख
देती है।
(3) तृष्णा
के नाश से दुख का नाश संभव है:--- यदि मनुष्य
तृष्णा यानी प्रबल इच्छा का नाश कर दें तो दुख का नाश संभव है
(4) तृष्णा
का नाश अष्टांगिक मार्ग से संभव है:--- गौतम बुध का कहना
था कि यदि तृष्णा का नाश करना है तो अष्टांगिक मार्ग पर चलना होगा।
»» अष्टांगिक मार्ग:---
1. सम्यक दृष्टि
2. सम्यक संकल्प
3. सम्यक वाक्
4. सम्यक कर्मात्त
5. सम्यक आजीव
6. सम्यक व्यायाम
7. सम्यक् स्मृति
8. सम्यक समाधि
1. सम्यक
दृष्टि:--- गौतम बुद्ध ने चार आर्य सत्य की घोषणा की थी।
इन चारों पर चलना सम्यक दृष्टि कहलाता है।
2. सम्यक
संकल्प:--- सभी प्रकार के भोग विलास और सांसारिक सुखो की
कामनाओं का त्याग करना तथा अपने आप को सुधारने का संकल्प लेना ही सम्यक संकल्प
कहलाता है।
3. सम्यक
वाक् :----
मनुष्य को हमेशा सत्य बोलना चाहिए। अपनी पूरी शक्ति लगाकर झूठ बोलने
से बचना ही सम्यक वाक् कहलाता है।
4. सम्यक कर्मात्त:---- इसका
अर्थ होता है कि मनुष्य को अच्छे से अच्छे कर्म करना चाहिए बुरे कर्मों से यानी
जुआ खेलना, चोरी आदि का त्याग ही सम्यक कर्मात्त कहलाता है।
5. सम्यक
अजीव:--- इसका अर्थ यह होता है कि मनुष्य को अपनी जिंदगी
में इमानदार बनकर रहना चाहिए। ईमानदारी पूर्वक जीविका कमाना चाहिए जीविका कमाते
समय ऐसे कामों से बचना चाहिए जिन से दूसरों को हानि हो।
6. सम्यक
व्यायाम:---- मनुष्य को हमेशा शांति पूर्वक कोई भी निर्णय, विचार
करना ही सम्यक व्यायाम कहलाता है।
7. सम्यक
स्मृति:---- इसका अर्थ यह होता है कि उन सभी अच्छी-अच्छी
बातों को याद रखना जिन्हें महात्मा गांधी जैसे लोगों ने किया हो महान आदमी की बात
को याद रखना ही सम्यक स्मृति कहलाता है।
8. सम्यक
समाधि:---- इसका मतलब यह है कि मन को एकाग्र कर ब्रह्म लीन
होना ही परमात्मा की प्राप्ति है।
ये भी पढ़े ...
Class 12th Political Science :- Click Here
Class 12th History :- Click Here
Class 12th Sociology :- Click Here
Hello My Dear, ये पोस्ट आपको कैसा लगा कृपया अवश्य बताइए और साथ में आपको क्या चाहिए वो बताइए ताकि मैं आपके लिए कुछ कर सकूँ धन्यवाद |