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मनोविज्ञान एवं जीवन, Class 12 Psychology Chapter 8 in Hnidi, कक्षा 12 नोट्स, सभी प्रश्नों के उत्तर, कक्षा 12वीं मनोविज्ञान के सभी प्रश्न उत्तर

मनोविज्ञान एवं जीवन, Class 12 Psychology Chapter 6 in Hnidi, कक्षा 12 नोट्स, सभी प्रश्नों के उत्तर, कक्षा 12वीं मनोविज्ञान के सभी प्रश्न उत्तर

  Chapter-8 मनोविज्ञान एवं जीवन  

प्रश्न 1. आप 'पर्यावरण' पद से क्या समझते हैं? मानव पर्यावरण संबंध को समझने के लिए विभिन्न परिप्रेक्ष्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: पर्यावरण शब्द, हमारे चारों ओर जो कुछ है उसे संदर्भित करता है, शाब्दिक रूप से हमारे चारों ओर भौतिक, सामाजिक कार्य तथा सांस्कृतिक पर्यावरण में जो कुछ है वह इसमें निहित है। व्यापक रूप से, व्यक्ति के बाहर जो शक्तियाँ हैं, जिनके प्रति व्यक्ति अनुक्रिया करता है, वे सब इसमें निहित हैं। मानव पर्यावरण संबंध को समझने के लिए विभिन्न परिप्रेक्ष्य निम्नलिखित हैं-

1. अल्पमतवादी परिप्रेक्ष्य (Minimalist perspective) का यह अभिग्रह है कि भौतिक पर्यावरण मानव व्यवहार, स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम (कल्याण) पर न्यूनतम या नगण्य प्रभाव डालता है। भौतिक पर्यावरण तथा मनुष्य का अस्तित्व समांतर घटक के रूप में होता है।

2. नैमित्तिक परिप्रेक्ष्य (Instrumental perspective) - प्रस्तावित करता है कि भौतिक पर्यावरण का अस्तित्व ही प्रमुखतया मनुष्य के सुख एवं कल्याण के लिए है। पर्यावरण के ऊपर मनुष्य के अधिकांश प्रभाव इसी नैमित्तिक परिप्रेक्ष्य को प्रतिबिंबित करते हैं।

3. आध्यात्मिक परिप्रक्ष्य (Spiritual perspective) - पर्यावरण को एक सम्मान योग्य और मूल्यवान वस्तु के रूप में संदर्भित करता है न कि एक समुपयोग करने योग्य वस्तु के रूप में। इसमें मान्यता है कि मनुष्य अपने तथा पर्यावरण के मध्य परस्पर निर्भर संबंध को पहचानते हैं, अर्थात् मनुष्य का भी तभी अस्तित्व रहेगा और वे प्रसन्न रहेंगे जब पर्यावरण को स्वस्थ तथा प्राकृतिक रखा जाएगा।
प्रश्न 2. "मानव पर्यावरण को प्रभावित करते हैं तथा उससे प्रभावित होते हैं। इस कथन की व्याख्या उदाहरणों की सहायता से कीजिए।
उत्तर: पर्यावरण पर मानव प्रभाव - मनुष्य भी अपनी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए और अन्य उद्देश्यो से भी प्राकृतिक पर्यावरण के ऊपर अपना प्रभाव डालते हैं। निर्मित पर्यावरण के सारे उदाहरण पर्यावरण के ऊपर मानव प्रभाव को अभिव्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिए, मानव ने जिसे हम 'घर' कहते हैं, उसका निर्माण प्राकृतिक पर्यावरण को परिवर्तित करके ही किया जिससे की उन्हें एक आश्रय मिल सके। मनुष्यों के इस प्रकार के कुछ कार्य पर्यावरण को क्षति भी पहुँचा सकते हैं और अंततः स्वयं उन्हें भी अनेकानेक प्रकार से क्षति पहुँचा सकते हैं। उदाहरण के लिए, मनुष्य उपकरणों का उपयोग करते हैं, जैसे रेफ्रीरजेटर तथा वातानुकूलन यंत्र जो रासायनिक द्रव्य उत्पादित करते हैं, जो वायु को प्रदूषित करते हैं तथा अंततः ऐसे शारीरिक रोगों के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं, जैसे कैंसर के कुछ प्रकार । धूम्रपान के द्वारा हमारे आस पास की आयु प्रदूषित होती है तथा प्लास्टिक एवं धातु से बानी वस्तुओं को जलाने से पर्यावरण पर घोर विपदकारी प्रदूषण फैलाने वाला प्रभाव होता है। वृक्षों के कटान या निर्वनीकरण के द्वारा कार्बन चक्र एवं जल चक्र में व्यवधान उत्पत्र हो सकता है। इससे अंततः उस क्षेत्र विशेष में वर्षा के संरूप पर प्रभाव पड़ सकती है और भू-क्षरण तथा परुस्थतिकरण में वृद्धि हो सकती है। वे उघोग जो निस्सारी का बही करते है तथा इस असंसाधित गंदे पानी को नदियों में प्रवाहित करते है, इस प्रदूषण के भयावह (शारीरिक) तथा मनोवैज्ञानिक परिणामों से तनिक भी चिंतित प्रतीत नहीं होते है ।
मानव पर पर्यावरण के प्रभाव के तीन बिंदु है।

1. प्रत्यक्षण पर पर्यावरणीय प्रभाव पर्यावरण मानव के प्रत्यक्षण को प्रभावित करता है । उदाहरण के लिए अफ्रीका की एक जनजाति गोल झोपड़ियों में रहती है जिसमें कोणीय दीवारें नहीं होती है। ऐसा एक ज्यामितीय भ्रम के कारण किया जाता है। शहरों में रहने वाले लोगों के घरों में कोणीय दीवारें होती हैं।

2. संवेंगों पर पर्यावरणीय प्रभाव - संवेग की दृष्टि से, भावनाओं की दृष्टि से पर्यावरण मनुष्य पर सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों तरह से प्रभाव डालता है। एक ताजा खिला हुआ फूल, किसी पर्वत की ऊंची शांत चोटी, कल-कल करती बहती हुई नदी, एक सुंदर बगीचा, उफान खाती लहरों वाला समुद्र आदि यह प्राकृतिक गतिविधियां मनुष्य के अंदर एक प्रफुल्लता एवं प्रसन्नता भर देती हैं। उसे शांति और सुकून का अनुभव होता है। इसके विपरीत प्राकृतिक विपदायें जैसे कि भूकंप, बाढ़, आंधी, तूफान, बहुत ठंड, बहुत गरमी या बहुत बारिश आदि मनुष्य के अंदर एक तरह का अवसाद भर देती है, उसे दुख के सागर में डुबो देती हैं। मनुष्य के अंदर यह भाव उत्पन्न होता है कि उसके नियंत्रण कुछ ਮੀ नहीं है ।

3. व्यवसाय, जीवनशैली तथा अभिवृत्तियों पर पारिस्थितिक प्रभाव - किसी क्षेत्र का प्राकृतिक पर्यावरण व उसकी संरचना क्षेत्र के निवासियों के जीवनयापन के स्वरूप को निर्धारित करती है कि उनकी आजीविका कैसी होगी। उदाहरण के लिए उपजाऊ मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोग कृषि व्यवसाय को अपनाते हैं। रेगिस्तान, वनों व पहाड़ों पर रहने वाले लोग शिकार, संग्रह आदि पर निर्भर होते हैं। जबकि उन क्षेत्रों में रहने वाले लोग जहां की भूमि उपजाऊ नहीं है उद्योगों पर आश्रित होते हैं। इस प्रकार मनुष्य के क्षेत्र के पर्यावरण की संरचना उसकी जीवन को प्रभावित करती है। "
प्रश्न 3. शोर क्या है? मनुष्य के व्यवहार पर शोर के प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: कोई भी ध्वनि जो मनुष्य या किसी भी प्राणी को अप्रिय लगे। जो कानों द्वारा सुनने में अनुकूल ना लगे। जो मनुष्य के मन में झुंझलाहट, चिड़चिड़ाहट, खीज एवं तनाव पैदा करें उसे शोर कहते हैं। मनुष्य के व्यवहार पर शोर के प्रभाव निम्नलिखित हैं 
1. शोर चाहे तीव्र हो या धीमा हो, वह समग्र निष्पादन को तब तक प्रभावित नहीं करता है जब तक कि संपादित किए जाने वाला कार्य सरल हो; जैसे-संख्याओं का योग । ऐसी स्थितियों में व्यक्ति अनुकूलन कर लेता है या शोर का 'आदी' हो जाता है।

2. जिस कार्य का निष्पादन किया जा रहा है यदि वह अत्यंत रुचिकर होता है, तब भी शोर की उपस्थिति में निष्पादन प्रभावित नहीं होता है।

3. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कार्य की प्रकृति व्यक्ति को पूरा ध्यान उसी में लगाने तथा शोर को अनसुना करने में सहायता करती है। यह भी एक प्रकार अनुकूलन हो सकता है।

4. जब शोर कुछ अंतराल के बाद आता है तथा उसके संबंध में भविष्यकथन नहीं किया जा सकता, तब वह निरंतर होनेवाले शोर की अपेक्षा अधिक बाधाकारी प्रतीत होता है।

5. जिस कार्य का निष्पादन किया जा रहा है, जब वह कठिन होता है यह उसपर पूर्ण एकाग्रता की आवश्यकता होती है, तब तीव्र, भविष्यकथन न करने योग्य तथा नियंत्रण न किया जा सकने वाला शोर निष्पादन स्तर को घटाता है।

6. जब शोर को सहन करना या बंद कर देना व्यक्ति के नियंत्रण में होता है तब कार्य निष्पादन में त्रुटियों में कमी आती है।

7. संवेगात्मक प्रभावों के संदर्भ में, शोर यदि एक विशेष स्तर से अधिक हो तो उसके कारण चिड़चिड़ापन आता है तथा इससे नींद में गड़बड़ी भी उत्पन्न हो सकती है।
प्रश्न 4. भीड़ के प्रमुख लक्षण क्या हैं? भीड़ के प्रमुख मनोवैज्ञानिक परिणामों की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर: हम जानते हैं कि भीड़ वह समूह होता है जोगी व्यक्तियों के बड़े अनौपचारिक समूह होते हैं आ जाओ आज ताई रूप से किसी विशिष्ट लक्ष्य उद्देश्य के बिना एक साथ एकत्रित होते हैं। किंतु यहाँ भीड़ का संदर्भ, उस असुस्थता की भावना से है जिसका कारण यह है कि हमारे आस पास बहुत अधिक व्यक्ति या वस्तुएं होती है जिससे हमें भौतिक बंधन की अनुभूति होती है तथा कभी कभी व्यक्तिक स्वतंत्रता में न्यूनता का अनुभव होता है। भीड़ के प्रमुख लक्षण है: -असुस्थता कि भावना। -व्यक्ति की स्वतंत्रता में न्यूनता या कमी। व्यक्ति का अपने आसपास के परिवेश के संबंध में निषेधात्मक दृष्टिकोण होना। -सामाजिक अंतःक्रिया पर नियंत्रण क्या भाव की भावना। व्यक्ति भीड़ के प्रति जो निषेधात्मक प्रभाव प्रदर्शित करते हैं, उसकी मात्रा में व्यक्तिगत भिन्नताएं होती हैं तथा उनकी प्रतिक्रियाओं की प्रकृति में भी भेद होता है। सामाजिक अंतःक्रिया की प्रकृति भी यह निर्धारित करती है कि व्यक्ति भीड़ के प्रति किस सीमा तक प्रतिक्रिया करेगा। भीड़ तथा अधिक घनत्व के परिणाम स्वरूप अपसामान्य व्यवहार तथा आक्रामकता उत्पन्न हो सकते हैं।
प्रश्न 5. मानस के लिए व्यक्तिगत स्थान का संप्रत्यय क्यों महत्त्वपूर्ण है? अपने उत्तर को एक उदाहरण की सहायता से उचित सिद्ध कीजिए।
उत्तर: व्यक्गित स्थान या वह सुविधाजनक भौतिक स्थान जिसे व्यक्ति अपने आस - पास बनाए रखना चाहता है, अधिक घनत्व वाले पर्यावरण से प्रभावित होता है। भीड़ में व्यक्तिगत स्थान प्रतिबंधित है। व्यक्तिगत स्थान का संप्रत्यय निम्नलिखित कारणों से महत्त्वपूर्ण है -

1. यह भीड़ के निषेधात्मक प्रभावों को एक पर्यावरणी दबाव कारक के रूप में समझता है।

2. यह हमें सामाजिक संबंधों के बारे में बताता है। उदाहरण के लिए, दो व्यक्ति यदि एक-दूसरे से काफी निकट खड़े या बैठे हों तो उनका प्रत्यक्ष मित्र या संबंधी के रूप में होता है। जब एक छात्र विद्यालय पुस्तकालय में जाता है और यदि उसका मित्र जिस मेज पर बैठा है उसके निकट का स्थान खाली है तो वह उसके निकट के स्थान पर ही बैठता है। किन्तु यदि उस मेज पर कोई अपरिचित बैठा है और उसके निकट स्थान खाली है तो इस बात की संभावना कम है कि वह उस व्यक्ति के निकट के स्थान पर बैठेगा।

3. हमें कुछ सीमा तक यह ज्ञात होता है कि भौतिक स्थान को किस प्रकार परिवर्तित किया जा सकता है जिससे कि सामाजिक स्थितियों में दबाव अथवा असुविधा में कमी की जा सके अथवा सामाजिक अंतःक्रिया को अधिक आनंददायक तथा उपयोगी बनाया जा सके।
प्रश्न 6. 'विपदा' पद से आप क्या समझते हैं? अभिघातज उत्तर दबाव विकार के लक्षणों को सूचीबद्ध कीजिए। उसका उपचार कैसे किया जा सकता है?
उत्तर: प्राकृतिक विपदाएँ ऐसे दबावपूर्ण अनुभव हैं जो की प्रकोप के परिणाम हैं अर्थात जो प्राकृतिक पर्यावरण में अस्त व्यस्तता के परिणामस्वरूप उत्पत्र होते है। प्राकृतिक विपदाओं के सामान्य उदाहरण भूंकप, सुनामी, बढ़, तूफान, तथा ज्वालामुखीय उद्रर है। अन्य विपदाओं के भी उदाहरण मिलते हैं। जैसे युद्ध, औद्योगिक दुर्घटनाएँ (जैसे- औद्योगिक कारखानों में विषैली गैस अथवा रेडियो सक्रिय तत्वों का रिसाव) अथवा महामारी ( उदाहरण के लिए प्लेग जिसने 1994 में हमारे देश के अनेक क्षेत्रों में तबाही मचाई थी) किन्तु, युद्ध तथा महामारी मानव द्वारा रिचत घटनाएँ हैं, यधपि उनके प्रभाव भी उतने भी गंभीर हो सकते हैं जैसे की प्राकृतिक विपदाओं के। इन घटनाओं को 'विपदा' इसलिए कहते हैं क्योंकि इन्हे रोका नहीं जा सकता, प्रायः ये बिना किसी चेतावनी के आती हैं तथा मानव जीवन एवं संपत्ति को इनसे अत्यधिक क्षति पहुँचती है। अभिघतज उत्तर दबाव विकार (पी. टी. एस. डी.) एक गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्या है जो अभिघतज घटनाओं, जैसेप्राकृतिक विपदाओं के कारण उत्पत्र होती है। इस विकार के निम्लिखित लक्षण हैं: 

1. तात्कालिक प्रतिक्रियायें विपदा की तात्कालिक प्रतिक्रिया के रूप में सबसे पहले विस्मृति का अनुभव होता है अर्थात लोगों को यह अनुभव ही नहीं हो पाता कि उनके लिये इस विपदा का मतलब क्या था और यह उनके जीवन में कितनी भयानक क्षति को कर गई है । वह यह बात स्वीकार करने में बहुत समय लगा देते हैं कि उनके जीवन में एक भयंकर घटना घट चुकी है जिसने उनके जीवन को छिन्न-भिन्न कर दिया है। इस घटना से उबरने में उन्हें काफी समय लग जाता है।

2. शारीरिक प्रतिक्रियायें - तात्कालिक प्रतिक्रियाओं के बाद पीड़ित लोगों में शारीरिक प्रतिक्रियायें उत्पन्न होने लगती है जैसे कि बिना काम के थकावट का अनुभव करना, भूख ना लगना. नींद ना आना, तनाव होना, अचानक से चौंक जाना या डर जाना। अवसाद उत्पन्न होने लगता है। पीड़ित व्यक्तियों में चिड़चिड़ाहट आ जाती है। उनमें निराशा का भाव पनपने लगता है कि यह मेरे साथ ही क्यों हुआ । वो हताशा की स्थिति में आ जातें हैं और अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं। उनमें जीवन के सामान्य क्रियाकलापों के प्रति रुचि खत्म हो जाती है। 4. संज्ञानात्मक प्रतिक्रियायें पीड़ित व्यक्तियों में व्याकुलता आ जाती है। उनकी स्मृति दुर्बल होने की संभावना हो जाती है। एकाग्रता में कमी होती है और बार-बार विपदा की घटना दुःस्वप्न बन कर मानसिक रूप से परेशान करती है।

3. सांवेगिक प्रतिक्रियायें सांवेगिक प्रतिक्रियाओं में शोक, दुख, भय, निराशा,

5. सामाजिक प्रतिक्रियायें पीड़ित व्यक्ति सामाज से कट जाते हैं। अक्सर आसपास के लोगों से द्वंद्व की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अपने संबंधियों से वाद-विवाद करने लगते हैं। सामाजिक क्रिया-कलापों से अलग थलग से पड़ जाते हैं। 

उपचार - यह सारी प्रक्रियाएं बहुत लंबे समय तक चल सकती हैं। कुछ स्थितियों में यह प्रतिक्रियायें जीवन भर चलती रहती हैं। पर कुछ उपचारों द्वारा इन्हें कुछ हद तक कम किया

जा सकता है या बिल्कुल खत्म किया जा सकता है। उपयुक्त परामर्श द्वारा, मानसिक रोगों के उपचार द्वारा इनकी तीव्रता को कम किया जा सकता है तथा अभिघात उत्तर दबाब विकार ( पी टी एस डी) के स्तर में सुधार किया जा सकता है। आर्थिक, सामाजिक एवं मानसिक रूप से सांत्वना दे कर पीड़ित व्यक्तियों में दुख के आवेग को बहुत हद तक कम किया जा सकता है । उनको प्रेरणा देकर धीरे-धीरे समाज की मुख्य धारा में वापस लाया जा सकता है तथा उन्हें एक नये जीवन के आरंभ के लिये अभिप्रेरित किया जा सकता है।
प्रश्न 7. पर्यावरण-उन्मुख व्यवहार क्या है? प्रदूषण के पर्यावरण का संरक्षण कैसे किया जा सकता है? कुछ सुझाव दीजिए।
उत्तर: पर्यावरण-उन्मुख व्यवहार (Pro-environmental behaviour) के अनतर्गत वे दोनों प्रकार के व्यवहार आते हैं जिनका उद्देश्य पर्यावरण की समस्याओं से संरक्षण करना है तथा स्वस्थ पर्यावरण को उन्नत करना है। प्रदूषण से पर्यावरण का संरक्षण करने के लिए कुछ प्रोत्साहन क्रियाएँ निम्नलिखित हैं:

1. वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है, वाहनों को अच्छी हालत में रखने से अथवा ईंधन रहित वाहन चलाने से और धूम्रपान की आदत छोड़ने से

2. शोर के प्रदूषण में कमी लाई जा सकती है, यह सुनिश्चित करके कि शोर का प्रबलता स्तर मद्धिम हो। उदाहरण के लिए सड़क पर अनावश्यक हॉर्न बजाने का कम कर अथवा ऐसे नियमों का निर्माण कर जो शोर वाले संगीत को कुछ विशेष समय पर प्रतिबंधित कर सकें।

3. कूड़ा-करकट से निपटने का उपयुक्त प्रबंधन, उदाहरण के लिए जैविक रूप से नष्ट होने वाले तथा जैविक से नष्ट नहीं होने वाले अवशिष्ट कूड़े का पृथक कर या रसोईघर की अवशिष्ट सामग्री से खाद बनाकर । इस प्रकार के उपायों का उपयोग घर तथा सार्वजनिक स्थानों पर किया जाना चाहिए। औद्योगिक तथा अस्पताल की अवशिष्ट सामग्रियों के प्रबंधन के प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।

4. वृक्षारोपण करना तथा उनकी देखभाल की व्यवस्था, यह ध्यान में रखकर करने की आवश्यकता है कि ऐसे पौधे और वृक्ष नहीं लगाने चाहिए जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हों।

5. प्लास्टिक के उपयोग का किसी भी रूप में निषेध करना, इस प्रकार ऐसी विषैली अवशिष्ट सामग्रियों को कम करना जिनसे जल, वायु तथा मृदा का प्रदूषण होता है।
प्रश्न 8. "निर्धनता' 'भेदभाव से कैसे संबंधित है? निर्धनता तथा वंचन के मुख्य मनोवैज्ञानिक, प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: निर्धनता की सर्वसामान्य परिभाषा है की यह एक ऐसी दशा है जिसमे जीवन में आवश्यक वस्तुओं का आभाव होता है तथा इसका संदर्भ समाज में धन अथवा संपत्ति का आसमान वितरण होता है। जाति तथा निर्धनता के कारण सामाजिक असुविधा द्वारा सामाजिक भेदभाव या विभेदन की समस्या उत्पत्र हुई है। भेदभाव प्रायः पूर्वाग्रह से संबंधित होते हैं। निर्धनता के संदर्भ में भेदभाव का अर्थ उन व्यवहारों से है जिनके द्वारा निर्धन तथा धनी के बिच विभेद किया जाता है जिससे धनी तथा सुविधासंपन व्यक्तियों का निर्धन तथा सुविधावचित व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक पक्षपात किया जाता है। यह विभेद सामाजिक अंत: क्रिया, शिक्षा तथा रोजगार के क्षेत्रों में देखी जा सकती है। इस प्रकार, निर्धन या सुविधावचित व्यक्तियों में क्षमता होते हुए भी उन्हें उन अवसरों से दूर रखा जाता है। जो समाज के बाकी लोगों को उपलब्ध होते हैं। निर्धनों के बच्चो को अच्छे विद्यालयों में अध्ययन करने या अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं का उपयोग करने तथा रोजगार के अवसर नहीं मिलते हैं। सामाजिक असुविधा तथा भेदभाव के कारण निर्धन अपनी सामाजिक आर्थिक दशा को अपने प्रयासों से उत्रत करने में बाधित हो जाते है और इस प्रकार निर्धन और भी निर्धन होते जाते है। संक्षेप में, निर्धनता तथा भेदभाव इस प्रकार से संबद्ध हैं की भेदभाव निर्धनता का कारण तथा परिणाम दोनों ही हो जाता है। यह सुस्पष्ट है की निधनता या जाति के आधार पर भेदभाव सामाजिक रूप से अन्यायपूर्ण है तथा उसे हटाना ही होगा। निर्धनता तथा वंचन की मनोवैज्ञानिक विशेषताएँ तथा उनके प्रभाव : निर्धनता तथा वंचन हमारे समाज की सुस्पष्ट समस्याओं में से हैं। भारतीयों समाज विज्ञानियों ने जिनमें समाजशास्त्री मनोवैज्ञानिक तथा अर्थशस्त्री सभी शामिल हैं, समाज के निर्धन एवं वंचित वर्गों के ऊपर सुव्यवस्थित शोधकार्य किए हैं। उनके निष्कर्ष तथा प्रेक्षण यह प्रदर्शित करते हैं की निर्धनता तथा वंचन के प्रतिकूल प्रभाव अभिप्रेरणा, व्यक्तित्व, सामाजिक व्यवहार, संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं तथा मानसिक स्वास्थ्य पर परिलक्षित होते हैं।

1. अभिप्रेरणा के संबंध में पाया गया है निर्धन व्यक्तियों में निम्र आकांक्षा स्तर और दुर्बल उपलब्धि अभिप्रेरणा तथा निर्भरता की प्रबल आवश्यकता परिलक्षित होती हैं। वे अपनी सफलताओ की व्याख्या भाग्य के आधार पर करते हैं न की योग्यता कठिन परिश्रम के आधार पर। सामान्यतः उनका यह विश्वास होता है की उनके बाहर जो घटक हैं वे उनके जीवन की घटनाओं को नियंत्रित करते हैं, उनके भीतर के घटक नहीं ।

2. जहाँ तक व्यक्तित्व का संबंध है निर्धन एवं वंचित व्यक्तियों में आत्म सम्मान का निम्र स्तर और दुनिश्चित तथा अंतर्मुखता का उच्च स्तर पाया जाता है। वे भविष्योन्मुखता की तुलना में असत्र वर्तमान के ही विचारो में खोए रहते है। वे बड़े किन्तु सुदूर पुरस्कारों की तुलना में छोटे किन्तु तात्कालिक पुरस्कारों को अधिक वरीयता देते हैं क्योंकि उनके प्रत्यक्षण के अनुसार भविष्य बहुत ही अनिश्चित है। वे निराशा, शक्तिहीनता और अनुभूत अन्याय के बोध के साथ जीते है तथा अपनी अनन्यता के खो जाने का अनुभव करते हैं।
प्रश्न 9. ‘नैमत्तिक आक्रमण' तथा शत्रुतापूर्ण आक्रमण में अंतर कीजिए। आक्रात्मक तथा हिंसा को कम करने हेतु कुछ युक्तियों का सुझाव दीजिए।
उत्तर: 'नैमित्तिक आक्रमण' तथा 'शत्रुतापूर्ण आक्रमण' में भी भेद किया जाता है। जब किसी लक्ष्य या वस्तु को प्राप्त करने के लिए आक्रमण किया जाता है तो उन नैमित्तिक आक्रमण करते हैं। उदाहरण के लिए, एक दबंग छात्र विद्यालय में नए विद्यार्थी को इसलिए चपत लगाता है जिससे की वह उसकी चॉकलेट ले सके। शत्रुतापूर्ण आक्रमण वह कहलाता है जिसमें लक्ष्य (पीड़ित) के प्रति क्रोध की अभिव्यक्ति होती है या उसे हानि पहुँचने के आशय से किया जाता है, जबकि हो सकता है की आक्रामक का आशय पीड़ित व्यक्ति से कुछ भी प्राप्त करना न हो। उदाहरण के लिए, समुदाय के किसी व्यक्ति की एक अपराधी इसलिए पिटाई कर देता है कियोंकि उसने पुलिस के समक्ष अपराधी का नाम लिया।
आक्रामकता तथा हिंसा को कम करने की युक्तियाँ

1. माता पिता तथा शिक्षकों को विशेष रूप से सतर्क रहने की आवश्यकता है की वे आक्रामकता को किसी भी रूप में प्रोत्साहित या पुरस्कृत न करें। अनुशासित करने के लिए दंड के उपयोग को भी परिवर्तित करना होगा।

2. आक्रामकता मॉडलों के व्यवहारों का प्रेक्षण करने तथा उनका अनुकरण करने के लिए अवसरों को कम करने की आवश्यकता है। आक्रमण को वीरोचित व्यवहार के रूप में प्रस्तुत करने को विशेष रूप से परिहार करने की आवश्यकता है क्योंकि इससे प्रेक्षण द्वारा अधिगम करने के लिए उपयुक्त परिस्थिति का निर्माण होता है।

3. निर्धनता तथा सामाजिक अन्याय आक्रमण के प्रमुख कारण हो सकता हैं क्योंकि वे समाज के कुछ वर्गों में कुंठा उत्पत्र कर सकते हैं। सामाजिक न्याय तथा समानता को समाज में परिपालन करने से कुंठा के स्तर को कम करने तथा उसके द्वारा आक्रामक प्रवृत्तियों को नियंत्रित करने में कम से कम कुछ सीमा तक सफलता मिल सकती है।

4. इन उक्तियों के अतिरिक्त सामाजिक या सामुदायिक स्तर पर यह आवश्यकता है की ग्रीति के प्रति सकारात्मक अभिवृति का विकास किया जाए। हमें न केवल आक्रामकता को कम करने की आवश्यकता है बल्कि इसकी भी आवश्यकता है की हम सक्रिय रूप से शान्ति विकसित करें एवं उसे बनाए रखें। हमारे अपने संस्कृतिक मूल्य सदा शांतिपूर्ण तथा समंजस्यपूर्ण सहअस्तित्व को अधिक महत्त्व देते हैं। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने शांति का एक नया दृष्टिकोण जो की केवल आक्रमण का अभाव नहीं था, यह अहिंसा का विचार था, जिस पर उन्होंने स्वयं जीवन भर अभ्यास किया।
प्रश्न 10. मानव व्यहार पर टेलीविजन देखने के मनोवैज्ञानिक समाघात का विवेचन कीजिए। उसके प्रतिकूल परिणामों को कैसे कम किया जा सकता है? व्याख्या कीजिए |
उत्तर: मानव व्यवहार पर टेलीविजन देखने का मनोवैज्ञानिक समाघात-इसमें कोई संदेह नहीं है कि टेलीविजन प्रौद्योगिक प्रगति कार एक उपयोगी उत्पाद है, किन्तु उसके मानव पर मनोवैज्ञानिक समाघात के संबंध में दोनों सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव पाए गए हैं। अनेक शोध अध्ययनों में टेलीविजन देखने की संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं तथा सामाजिक व्यवहारों पर प्रभाव का अध्ययन किया गया, है विशेष रूप से पाश्चात्य संस्कृतियों में उनके निष्कर्ष मिश्रित (मिले-जुले) प्रभाव दिखाते हैं। अधिकांश अध्ययन बच्चों पर किए गए हैं क्योंकि ऐसा समझा जाता है कि वे वयस्कों की अपेक्षा टेलीविजन के समाघात के प्रति अधिक संवेदनशील या असुरक्षित हैं।

1. टेलीविजन बड़ी मात्र में सूचनाएँ और मनोरंजन को आकर्षक रूप से प्रस्तुत करता है तथा यह दृश्य माध्यम है, अतः यह अनुदेश देने का एक प्रभावी माध्यम बन गया। इसके साथ ही क्योंकि कार्यक्रम आकर्षक होते हैं, इसलिए बच्चे उन्हें देखने में बहुत अधिक समय व्यतीत करते हैं। इसके कारण उनके पठन-लेखन (पढ़ने-लिखने) की आदत तथा घर के बाहर की गतिविधियों जैसे-खेलने में कम आती है।

2. टेलीविजन देखने से बच्चों की एक लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने की योग्यता, उनकी सर्जनात्मकता तथा समझने की क्षमता तथा उनकी सामाजिक अंतः क्रियाएँ भी प्रभावित हो सकता है। एक ओर, कुछ श्रेष्ठ कार्यक्रम सकारात्मक अंतर्वैयक्तिक अभिवृत्तियों पर बल देते हैं तथा उपयोगी तथ्यात्मक सूचनाएँ उपलब्ध कराते हैं जो बच्चों को कुछ वस्तुओं को अभिकल्पित तथा निर्मित करने में सहायता करते हैं। दूसरी ओर, ये कार्यक्रम कम उम्र के दर्शकों का विकर्षण या चित्त-अस्थिर कर एक लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने की उनकी योग्यता में व्यवधान उत्पन्न कर सकते हैं।

3. लगभग चालीस वर्ष पूर्व अमेरिका तथा कनाडा में एक गंभीर वाद-विवाद इस विषय पर उठा कि टेलीविजन देखने का दर्शकों, विशेषकर बच्चों की आक्रामकता तथा हिंसात्मक प्रवृत्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है। जैसा कि पहले आक्रामक व्यवहारों के संदर्भ में बताया जा चुका है, शोध के परिणामों ने यह प्रदर्शित किया कि टेलीविजन पर हिंसा को देखना वस्तुतः दर्शकों में अधिक आक्रामकता से संबद्ध था।
यदि दर्शक बच्चे थे तो जो कुछ वे देखते थे उसका अनुकरण करने की उनमें प्रवृत्ति थी किन्तु उनमें ऐसे व्यवहारों के परिणामों को समझने की परिपक्वता नहीं थी। तथापि, कुछ अन्य शोध-निष्कर्ष यह भी प्रदर्शित करते हैं कि हिंसा को देखने से दर्शकों में वस्तुतः सहज आक्रामक प्रवृत्तियों में कमी आ सकती है- जो कुछ भीतर रुका हुआ है उसे निकास या निर्गम का मार्ग मिल जाता है, इस प्रकार तंत्र साफ हो जाता है, जैसे कि एक बंद निकास-नल की सफाई हो रही है। यह प्रक्रिया केथार्सिस (Catharisis) कहलाती है।

4. वयस्कों तथा बच्चों के संबंध में यह कहा जात है कि एक उपभोक्तावादी अभिवृत्ति ( प्रवृत्ति) विकसित हो रही है और यह टेलीविजन देखने के कारण है। बहुत से उत्पादों के विज्ञापन प्रसारित किए जाते हैं तथा किसी दर्शक के लिए उनके प्रभाव में आ जाना काफी स्वाभाविक प्रक्रिया है। इन परिणामों की चाहे कैसे भी व्याख्या की जाए इस बात के लिए पर्याप्त प्रमाण हैं जो असीमित टेलीविजन देखने के प्रति चेतावनी देते हैं ।

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