प्रश्न 1. औपचारिक एवं अनौपचारिक समूह तथा अंतः एवं बाह्य समूहों की तुलना कीयिए एवं अंतर बताइए।
उत्तर: 1. औपचारिक एवं अनौपचारिक समूह एक समूह को ऐसे दो या दो से अधिक व्यक्तियों की एक संगठित व्यवस्था के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो एक दूसरे से अंतः क्रिया करते है एवं परस्पर निर्भर होते है, जिनकी एक जैसी अभिप्रेरणा होती है, सदस्यों के बिच निर्धारित भूमिका संबंध होता है और सदस्यों के व्यवहार को नियमित या नियंत्रित करने के लिए प्रतिमान या मानक होते है। औपचारिक समूह उस मात्रा में भिन्न होते है जिस मात्रा में समूह के प्रकार स्पष्ट रूप से घोषित किए जाते है। एक औपचारिक समूह, जैसे किसी कार्यालय संगठिन के प्रकार्य स्पष्ट रूप से घोषित होते है। समूह के सदस्यों द्वारा निष्पादित की जाने वाली भीमिकाएं स्पष्ट रूप से घोषित होते है। दूसरी तरफ औपचारिक समूह का निर्माण नियमो या विधि पर आधारित नहीं होता है और सदस्यों में घनिष्ठ संबंध होता है।
2. अंतः एवं बाह्य समूहों अंतः समूह' स्वय के समूह को इंगित करता है और बाह्य समूह ' दूसरे समूह को इंगित करता है। अंतः समूह में सदस्यों के लिए 'हमलोग' शब्द का उपयोग होता है जब की बाह्य समूह जो सदस्यों के लिए 'वे' शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह पाया गया है की अंतः समूह में सामान्यतया व्यक्तियों में समानता मानी जाती है, उन्हें अनुकूल दृष्टि से देखा जाता है और उनमे वांछनीय विशेषक पाए जाते है। बाह्य समूह के सदस्यों को अलग तरीके से देखा जाता है और उनका प्रत्यक्षण अंतः समूह के सदस्यों की तुलना में प्रायः नकारात्मक होता है।
प्रश्न 2. क्या आप किसी समूह के सदस्य हैं? वह क्या है जिसने आपको इस समूह में सम्मिलित होने के लिए अभिप्रेरित किया? इसकी विवेचना कीजिए । अथवा, व्यक्ति क्यों समूह में सम्मिलित होते हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर: प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी समूह का सदस्य होता है। हम अपने परिवार, कक्षा और उस समूह के सदस्य हैं जिनके साथ हम अंतःक्रिया करते हैं या खेलते हैं। इसी प्रकार किसी विशेष समय पर अन्य व्यक्ति भी अनेक समूहों के सदस्य होते हैं। अलग-अलग समूह भिन्न-भिन्न प्रकार की आवश्यकताओं को संतुष्ट करते हैं और इसलिए हम एक साथ अनेक समूहों के सदस्य होते।
यह कभी-कभी हम लोगों के साथ एक दबाव उत्पन्न करता है क्योंकि समूहों की प्रतिस्पर्धी प्रत्याशाएँ और माँगें हो सकती हैं। अधिकांश स्थितियों में हम ऐसी प्रतिस्पर्धी माँगों और प्रत्याशाओं को प्रबंधित करने में सक्षम होते हैं। लोग समूह में इसलिए सम्मिलित होते हैं क्योंकि ऐसे समूह अनेक आवश्यकताओं को संतुष्ट करते हैं। सामान्यतः लोग निम्न कारणों से समूह में सम्मिलित होते हैं -
1. सुरक्षा - जब हम अकेले होते हैं तो असुरक्षित अनुभव करते हैं। समूह इस असुरक्षा को कम करता है। व्यक्तियों के साथ रहना आराम की अनुभूति और संरक्षण प्रदान करता है परिणामस्वरूप लोग स्वयं को अधिक शक्तिशाली महसूस करते हैं और खतरों की संभावना हो जाती है।
2. प्रतिष्ठा या हैसियत-जब हम किसी ऐसे समूह के सदस्य होते हैं जो दूसरे लोगों द्वारा महत्त्वपूर्ण समझा जाता है तो हम सम्मानित महसूस करते हैं तथा शक्ति-बोध का अनुभव करते हैं। मान लीजिए कि किसी विद्यालय का छात्र किसी अंतर्विद्यालयी वाद-विवाद प्रतियोगिता का विजेता बन जाता है तो गर्व का अनुभव करता है और वह स्वयं को दूसरों से बेहतर समझता है।
3. आत्म-सम्मान-समूह आत्म-अर्ध अनूभूति देता है और एक सकारात्मक सामाजिक अनन्यता स्थापित करता है। एक प्रतिष्ठित समूह का सदस्य होना व्यक्ति की आत्म-धारणा या आत्म-संप्रत्यय को बढ़ावा देता है।
4. व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक और सामाजिक आवश्यकताओं की संतुष्टि समूह व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक और सामाजिक आवश्यकताओं को संतुष्ट करते हैं जैसे-समूह के द्वारा आत्मीयता-भावना, ध्यान देना और पाना, प्रेम तथा शक्ति बोध का अनुभव प्राप्त करना ।
5. लक्ष्य प्राप्ति-समूह ऐसे लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है जिन्हें व्यक्तिगत रूप से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। बहुमत में शक्ति होती है।
6. ज्ञान और जानकारी या सूचना प्रदान करना- समूह सदस्यता हमें ज्ञान और जानकारी प्रदान करती है और हमारे दृष्टिकोण को विस्तृत करती है। संभव है कि वैयक्तिक रूप से हम सभी वांछित जानकारियों या सूचनाओं को प्राप्त न कर सकें। समूह इस प्रकार की जानकारी और ज्ञान की कमी को पूरा करता है।
प्रश्न 3. समूह निर्माण को समझने में टकमैन का अवस्था मॉडल किस प्रकार से सहायक है?
उत्तर: अन्य चीजों की तरह समूह का विकास भी होती है। जिस क्षण आप लोगो के संपर्क में आते है उसी समय आप समूह के सदस्य नहीं बन जाते है। समोसा मान्यता निर्माण, दवंद, स्थायीकरण, निष्पादन और अस्वीकरण की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता है। तकमैन ने बताया है की समूह पांच विकासात्मक अनुक्रमों से गुजरती है। यह पांच अनुक्रम है निर्माण या आकृतिकरण, विप्लवन या झंझावात, प्रतिमान या मानक निर्माण, निष्पादन एवं समापन।
1. जब समूह के सदस्य पहली बार मिलते है तो, लक्ष्य एवं लक्ष्य को प्राप्त करने के संबंध में अत्यधिक अनिश्चितता होती है। दूसरे को जानने का प्रयत्न करते है और यह मूल्यांकन करते है की समूह के लिए उपयुक्त रहेंगे। यहां उत्तेजना के साथ ही भय का भी निर्माण होता है। निर्माण जागृति कारण की अवस्था कहा जाता है।
2. इस अवस्था में अंतर - समूह दवंद की अवस्था दिखाई देती है, जिसमे समूह और उसके संसाधनो को कौन, कैसे कार्य निष्पादित करता है पर चर्चा होती है। इसे ही विप्लवन या अवस्था कहा जाता है।
3. विप्लव झंझावात की अवस्था के बाद एक दुसरी अवस्था आती है जिसे प्रतिमान या मानक निर्माण की अवस्था के नाम से जाना जाता है। इस अवधि में समूह के सदस्य समूह व्यवहार से संबंधित मानक विकसित करते है। यह सकारात्मक समूह अनन्यता के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।
4. चौथी अवस्था निष्पादन की होती है। इस अवस्था तक समूह की संरचना विकसित हो चुकी होती है। समूह के सदस्य से स्वीकार कर लेते है। समूह लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में समूह अग्रसर होता है। कुछ समूहों के लिए यह समूह विकास की अंतिम अवस्था होती है। 5. और कुछ समूह के लिए, विद्यालय समारोह के लिए आयोजन समिति के संदर्भ में एक अन्य अवस्था होती है जिसे समापन की अवस्था के नाम से जाना जाता है। इस अवस्था में जब समूह का कार्य पूरा हो जाता है तब समूह भंग किया जा सकता है।
प्रश्न 4. समूह हमारे व्यवहार को किस प्रकार से प्रभावित करते है?
उत्तर: समूह व्यक्ति के व्यवहार पर बहुत मजबूती से प्रभाव डालते हैं। समूह के द्वारा हम पर डाला गया प्रभाव कैसा होगा। उस प्रभाव के कारण हमारे कार्यों का निष्पादन किस तरह से प्रभावित होगा । समूह के द्वारा डालें गये प्रभाव की प्रकृति कैसी होगी ।
दो स्थितियों में समूह व्यक्ति के व्यवहार पर प्रभाव डाल सकता है।
1. पहली स्थिति में एक व्यक्ति किसी समूह के सामने अकेले ही किसी कार्य का निष्पादन करता है जिसे सामाजिक सुकरीकरण कहा जाता है। सामाजिक सुकरीकरण में दूसरों की उपस्थिति के सामने किसी किसी कार्य का निष्पादन करते समय व्यक्ति को भावप्रबोधन का अनुभव होता है जिसका मतलब यह है कि उसका लगता है कि उसके कार्य का मूल्यांकन किया जा रहा है जो कि उसे अच्छे ढंग से अपने कार्य को निष्पादित करने की प्रेरणा देता है, क्योंकि कार्य अच्छे ढंग से कार्य करने पर प्रशंसा मिलेगी और ठीक से निष्पादन ना करने पर आलोचना । प्रशंसा पाने का भाव उसे अपने कार्य को अच्छे ढंग से करने की प्रेरणा देता है।
2. दूसरी स्थिति में व्यक्ति एक समूह में परिवर्तित हो जाता है। किसी समूह के सामने व्यक्ति एक समूह के रूप में अपने कार्य का निष्पादन करता है। इस क्रिया को स्वैराचार कहते हैं। शोध में देखा गया है कि सुकरीकरण में अकेले किसी कार्य का निष्पादन करने की अपेक्षा स्वैराचार में समूह के रूप में किसी कार्य के निष्पादन करने में व्यक्ति का प्रयास कम हो जाता है। जितनी मेहनत वो पहली स्थिति में अर्थात सुकरीकरण की अवस्था में अपने कार्य का निष्पादन करता है उतनी मेहनत स्वैराचार की अवस्था में अपने कार्य का निष्पादन करने में नहीं लगा पाता।
इस प्रकार इन दो स्थितियों में समूह हमारे व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं।
प्रश्न 5. समूहों में सामाजिक स्वैराचार को कैसे कम किया जा सकता है? अपने विद्यालय में सामाजिक स्वैराचार की किन्हीं दो घटनाओं पर विचार कीजिए। आपने इसे कैसे दूर किया?
उत्तर: सामाजिक स्वरौचार को निम्न के द्वारा कम किया जा सकता है -
1. प्रत्येक सदस्य के प्रयासों को पहचानने योग्य बनाना।
2. कठोर परिश्रम के लिए दबाव का बढ़ाना (सफल कार्य निष्पादन के लिए समूह सदस्यों को वचनबद्ध करना ) ।
3. कार्य के प्रकट महत्त्व या मूल्य को बढ़ाना।
4. लोगों को यह अनुभव कराना कि उनका व्यक्तिगत प्रयास महत्त्वपूर्ण है।
5. समूह संतक्तता को प्रबल करना जो समूह के सफल परिणाम के लिए अभिप्रेरणा को बढ़ाता है।
प्रश्न 6. आप अपने व्यवहार में प्रायः सामाजिक अनुरूपता का प्रदर्शन कैसे करते हैं? सामाजिक अनुरूपता के कौन-कौन से निर्धारक हैं? अथवा, सामाजिक अनुरूपता पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: हम अपने व्यवहार में प्रायः सामाजिक अनुरूपता का प्रदर्शन निम्न तरिके से करते हैं: ऐसा लगता है की मानक के अनुसाण करने की प्रवृति नैसर्गिक है और इसकी किसी विशेष व्याख्या की आवश्यकता नहीं है। इसके बावजूद हम यह जानना चाहते हैं की क्यों इस प्रकार की प्रवृति नैसर्गिक अथवा स्वतः स्फूर्त होती है।
1. मानक व्यवहार के नियमो के एक अलिखित तथा अनौपचारिक समुच्चय को निरूपित करता है जो एक समूह के सदस्यों को यह सुचना प्रदान करता है की विशिष्ट स्थितियों में उनसे क्या अपेक्षित है। यह संपूर्ण स्थिति को स्पष्ट बना देता है। और व्यक्ति तथा समूह दोनों को अधिक सुगमता से कार्य करने का अवसर प्रदान करता है।
2. सामान्यतया लोग असहजता का अनुभव करते हैं यदि उन्हें दुसरो से 'भित्र' समझा जाता है। व्यवहार करने का वैसा तरीका जो व्यवहार के प्रत्याशित ढंग से भिन्न होता है, तो वह दुसरो के द्वारा अनुमोदन एवं नापसंदगी को उतपन्न करता है जो सामाजिक दंड का एक रूप है। यह एक ऐसी चीज है जिससे लोग प्रायः काल्पनिक रूप से डरते हैं। इस प्रकार मानक का प्राप्त करने का सरलतम तरीका है।
3. मानक को बहुसंख्यक के विचार एवं विश्वास को प्रतिबिंबित करने वाला समझा जाता है। अधिकांश लोग मानते हैं की बहुसंख्यक के गलत होने की तुलना में सही होने की संभावना अधिक होती है। इसके एक द्दष्टांत को टेलीविजन पर दिखाई जाने वाली प्रश्रोत्तरी में प्रायः देखा जाता है। जब एक प्रतियोगी किसी प्रश्न का सही उत्तर नहीं जनता है तो वह दर्शको की राय ले सकता है और प्रायः व्यक्ति उसी विकल्प को चुनता है जिसे बहुसंख्या दर्शक चुनते हैं। इसी तर्क के आधार पर यह कहा जा सकता है की लोग मानक के प्रति अनुरूपता का प्रदर्शन करते हैं क्योंकि वे मानते हैं की बहुसंख्यक को सही होना चाहिए ।
• अनुरूपता के निर्धारक
1. समूह का आकार अनुरूपता तब अधिक पाई जाती है जब समूह बड़े से अपेक्षाकृत छोटा होता है। छोटे समूह में विसामान्य सदस्य (वह जो अनुरूपता प्रदर्शित नहीं करता है) को पहचानना आसान होता है परन्तु एक बड़े समूह में यदि अधिकांश सदस्यों के बिच प्रबल सहमति होती है तो यह बहुसंख्यक समूह को मजबूत बनाता है और इसलिए मानक भी सशक्त होते है। ऐसी स्थिति में सल्पसंख्यक सदस्यों के अनुरूपता प्रदर्शन की संभावना अधिक होती है क्योंकि समूह दबाव प्रबल होगा।
2. अल्पसंख्यक समूह का आकार मान लीजिये की रेखाओ के बारे में निर्णय के कुछ प्रयसों के बाद प्रयोज्य यह देखता है की एक दूसरा सहभागी प्रयोज्य की अनुक्रिया से सहमति प्रदर्शित करना प्रारंभ कर देता है। क्या अब प्रयोज्य की अनुक्रिया से सहमति प्रदर्शित करना प्रारंभ कर देता है। क्या अब प्रयोज्य के अनुरूपता प्रदर्शन की संभावन अधिक है या ऐसा करने की संभावना कम है? जब असहमत अथवा विसंमन्य अल्पसंख्यको का आकार बढ़ता है तो अनुरूपता की संभावना कम होती है। वास्तव में यह समूह में भिन्न मताधरियों या अनुपंथियो की संख्या बढ़ा सकता है।
3. कार्य की प्रकृति - ऐश के प्रयोग में प्रयुक्त कार्य में ऐसे उत्तर की अपेक्षा की जाती है जिसका सत्यापन किया जा सकता है और वह गलत अथवा सही हो सकता है। मान लीजिये की प्रायोगिक कार्य में किसी विषय के बारे में मत प्रकट करना निहित है। ऐसी स्थिति में कोई भी उत्तर सही या गलत नहीं होता है। किसी स्थिति में अनुरूपता के पाए जाने की संभावना अधिक है, पहली स्थिति जिसमे गलत या सही उत्तर की तरह कोई चीज हो अथवा दूसरी स्थिति जिसमे बिना किसी सही या गलत उत्तर के व्यापक रूप से उत्तर बदले जा सकते हो? संभव है की सही अनुमान लगाया होगा; दूसरी स्थिति में अनुरूपता के पाए जाने की संभावना कम है।
4. व्यवहार की सार्वजनिक या व्यक्तिगत अभिव्यक्ति ऐश की प्राविधि में समूह के सदस्यों को सार्वजनिक रूप से अपनी अनुक्रिया देने के लिए कहा जाता है अर्थात सभी सदस्य जानते है की किसी व्यक्ति ने क्या अनुक्रिया दी है। यद्यपि, एक दूसरी स्थिति भी हो सकती है (उदाहरण, गुप्त मतपत्र द्वारा मतदान करना)
5. व्यक्तित्व ऊपर वर्णित दशाएं यह प्रदर्शित करती हैं। की कैसे स्थितिपरक विशेषताएँ प्रदर्शित अनुरूपता के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण है। कुछ व्यक्तियों का व्यक्तित्व अनुरूपतापरक होता है। अधिकांश स्थितियों में दूसरे लोग जो कहते है या करते हैं। उसके अनुसार अपने व्यवहार को परिवर्तित करने की ऐसे व्यक्तियों में एक प्रवृति पाई जाती है।
प्रश्न 7. लोग यह जानते हुए भी उनका व्यवहार दूसरों के लिए हानिकारक हो सकता है, वे क्यों आज्ञापालन करते हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर: जब अनुपालन ऐसे अनुदेश या आदेश के प्रति किया जाता है जो किसी आप्त व्यक्ति, जैसे मातापिता अध्यापक या पुलिसकर्मी के द्वारा निर्गत होता है इस व्यवहार को आज्ञापालन कहा जाता है।
1. लोग ऐसा इसलिए करते है क्योकि वह अनुभव करते है की स्वय के क्रियाकलापों के लिए वे उत्तरदायी नहीं है, वे मात्र आप्त व्यक्तियों द्वारा निर्गत आदेशों का पालन कर रहे है। आप्त पिया देशो को कम से अधिक कठिन स्तर तक बढ़ते है और प्रारंभिक आज्ञापालन अनुसरणकर्ता प्रतिबद्धता के लिए बाध्य करता है।
2. अनेक बार घटनाएँ इतनी शीघ्रता से बदलती रहती है जैसे दंगे की स्थिति में, एक व्यक्ति के पास विचार विचार करने के लिए समय नहीं होता है ऊपर से मिलने वाले आदेशों का पालन करना होता है।
प्रश्न 8. सहयोग के क्या लाभ हैं?
उत्तर: जब समूह किसी साझा लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक साथ कार्य करते हैं तो हम इसे सहयोग कहते हैं। सहयोगी स्थितियों में प्राप्त होनेवाले प्रतिफल सामूहिक पुरस्कार होते हैं न कि वैयक्तिक पुरस्कार | किसी समूह में सहयोगी लक्ष्य वह है जिसमें कोई व्यक्ति तभी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है जब उसके समूह के अन्य व्यक्ति भी लक्ष्य को प्राप्त कर लें। उदाहरण के लिए, एक रिले रेस विजय टीम के सभी सदस्यों के सामूहित निष्पादन पर निर्भर करती है। यदि समूह में सहयोग होता है तो लोगों के बीच अधिक तालमेल होती है, एक-दूसरे के विचारों के लिए अधिक स्वीकृतिक होती है, जहाँ सहयोग होता है वहाँ लोगों के अधिक मित्रवत होते हैं तो वह व्यक्ति भी हमारी सहायता करता है।
प्रश्न 9. एक व्यक्ति की अनन्यता कैसे बनती है ?
उत्तर: अगर मै पूछू कौन है? तो आपका जवाब यह होगा एक परिश्रमि तथा प्रसन्नचित लड़का या लड़की यह उत्तर आपको आपकी समाजित अनन्यता, जो व्यक्ति कौन है' उसकी स्वय की परिभाषा है, के बारे में जानकारी देता है। हमारी अनन्यता के कुछ पक्ष शारीरिक विशेषताओं से निरधारित होते है, तथापि हम अन्य पक्षों को समाज में अन्य व्यक्तियों से होने वाले अतः क्रिया के परिणामस्वरूप अर्जित कर सकते है। कभी-कभी हम स्वय को अनूठे व्यक्ति के रूप में देखते है दूसरी स्थिति में हम स्वयं को समूह के सदस्य के रूप में देखते है । आत्म या स्व की अभिव्यक्ति के लिए दोनों ही समान रूप में वैध है। स्वय को एक अनूठे व्यक्ति के रूप में देखने के ष्टिकों से उतपन्न हमारी व्यक्तिगत अनन्यता और उस समूह जिसके सदस्य के रूप में हम स्वय को देखते है उससे उतपन्न सामाजिक अनन्यता दोनों ही हमारे लिए महत्वपूर्ण है।
अपने स्वयं के अनुभव से आप यह अनुभव करेंगे की आपके आत्म संप्रत्यय के लिए एक सामाजिक समूह के साथ तादात्म्य बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। जब भारत कोई क्रिकेट मैच जीतती है आप कैसे अनुभव करते है? आप स्वय को उल्लासित और गैरवनविनत अनुभव करते है। आप ऐसा इसलिए अनुभव करते है क्योकि आपकी अनन्यता एक भारतीय के रूप में है। सामाजिक अनन्यता एक बड़े सामाजिक संदर्भ में हमें यह बताती है की हम क्या है और हमारी क्या स्थिति है तथा इस प्रकार समाज में हम कहा है और इसको जानने में सहायता करती है।
प्रश्न 10. अंतर-समूह द्वंद्व के कुछ कारण क्या हैं? किसी अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष पर विचार कीजिए। इस संघर्ष की मानवीय कीमत पर विचार कीजिए।
उत्तर: अंतरसमूह द्वंद्व के कुछ मुख्य कारण निम्नांकित हैं -
1. दोनों पक्षों में परस्पर संवाद का अभाव अंतर-समूह द्वंद्व का कारण बन सकता है। दोषपूर्ण एवं मिथ्या जानकारी से युक्त संप्रेषण भी संदेह एवं अविश्वास को जन्म देता है जो अंतर-समूह द्वंद्व का कारण बनता है।
2. जब एक समूह के अंदर ईर्ष्या एवं असंतोष का भाव उत्पन्न होता है वह दूसरे समूह को देखकर यह सोचता है कि दूसरे समूह के पास जो है वो उनके पास क्यों नहीं। पारस्परिक तुलना एवं असंतुष्टि का यह भाव भी अंतर-समूह द्वंद्व को जन्म देता है।
3. दोनों पक्षों का स्वयं को दूसरे से बेहतर समझना भी अंतर-समूह द्वंद्व का कारण बनता है। हर पक्ष अपना वर्चस्व बनाना चाहता है। वह सोचता है कि वह ही बेहतर है वह जो कुछ करता है कि वही ठीक है। अपना वर्चस्व बनाने की यही भावना दो पक्षों में अंतर-समूह द्वंद्व का कारण बनती है।
4. हर समूह की अपनी-अपनी विचारधारा होती है। विचारधाराओं का टकराव दो समूहों में अंतर-समूह द्वंद्व का कारण बनता है। उनमें छोटे-छोटे मतभेद होते हैं और ये छोटे-छोटे मतभेद बड़े-बड़े अंतर - समूह द्वंद्व में बदल जाते हैं।
5. पूर्व में घटित किसी घटना के कारण एक समूह द्वारा दूसरे समूह के नुकसान के कारण उत्पन्न हुई कटुता भी दो समूहों में अंतर-समूह द्वंद्व का कारण बनती है।
6. एक दूसरे समूह के प्रति पूर्वाग्रह पाल लेना भी समूहों में अंतद्वंद्व का कारण बनता है। 7. एक शोध के अनुसार लोग अकेले की अपेक्षा समूह में जब समूह के रूप में कार्य करते हैं तो अधिक आक्रामक हो जाते हैं और उनमें प्रतिस्पर्धात्मक भावना अधिक तीव्र हो जाती है यही कारण समूहों में अंतर-समूह द्वंद्व का कारण बनता है।
8. किसी तरह किसी भी तरह की असमानता चाहे वो सामाजिक, आर्थिक या सांस्कृतिक हो, तो समूह में अंतर-समूह द्वंद्व का कारण बनती है।
द्वंद्व किसी भी समाज के एक अच्छा संकेत नहीं है। द्वंद्व कैसा ही हो, किसी भी रूप में हो उसकी कीमत सब को चुकानी पड़ती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हमने देखा है कि बड़े-बड़े युद्ध हुए हैं। प्रथम विश्वयुद्ध, द्वितीय विश्वयुद्ध आदि। लेकिन अंत में इनका परिणाम क्या हुआ, इसकी कीमत किस को चुकानी? पड़ी मानव को । आखिर इसमें जनधन की ही हानि हुई जिसकी भरपाई अभी तक नहीं हो पाई है। हम यह कह सकते हैं कि द्वंद्वों की कीमत आखिर में मानव को चुकानी पड़ती ही है। "
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