प्रश्न 1. आत्म क्या है? आत्म की भारतीय अवधारणा पाश्चात्य अवधारणा से किर प्रकार भिन्न है ?
उत्तर: भारतीय सांस्कृति संदर्भ में आत्म का विश्लेषण अनेक महत्वपूर्ण पक्षों को स्पष्ट करता है जो पाश्चात्य सांस्कृतिक संदर्भ में पाए जाने वाले पक्षों से भिन्न होते हैं। भारतीय और पाश्चात्य अवधारणाओं के मध्य एक महत्वपूर्ण अंतर इस तथ्य को लेकर है की आत्म और दूसरे अन्य के बीच किस प्रकार से सीमा रेखा निर्धारित की गई है। पाश्चात्य अवधारणा में यह सीमा रेखा अपेक्षाकृत स्थिर और दृढ़ प्रतीत होती है। दूसरी तरफ, भारतीय अवधारणा में आत्म और अन्य के मध्य सीमा रेखा स्थिर ना होकर परिवर्तनीय प्रकृति की बताई गई है। इस प्रकार एक क्षण में व्यक्ति का आत्मा अन्य सब कुछ को अपने में अंतर्निहित करता हुआ ब्रह्मांड में विलीन होता हुआ प्रतीत होता है। किंतु दूसरे क्षण में आत्मा अन्य सबसे पूर्णतया विनिवर्तित होकर व्यक्तिगत हाथ में( उदाहरणार्थ, हमारी व्यक्तिगत आवश्यकताएं एवं लक्ष्य) पर केंद्रित होता हुआ प्रतीत होता है। पाश्चात्य अवधारणा आत्मा और अन्य मनुष्य और प्रकृति तथा आत्मनिष्ठा और वस्तुनिष्ठ के मध्य स्पष्ट द्वीभाजन करती हुई प्रतीत होती है। पाश्चात्य संस्कृति में आत्मा और समूह को स्पष्ट रूप से परिभाषित सीमा रेखाओं के साथ दो भिन्न इकाइयों के रूप में स्वीकार किया गया है। व्यक्ति समूह का सदस्य होते हुए भी अपनी व्यक्ति का बनाए रखता है। भारतीय संस्कृति में आत्मा को व्यक्ति के अपने समूह से पृथक नहीं किया जा सकता है, बल्कि दोनों सामंजस्य पूर्ण सहअस्तित्व के साथ बने रहते हैं। दूसरी तरफ पाश्चात्य संस्कृति में दोनों के बीच एक दूरी बनी रहती है। यही कारण है कि अनेक पाश्चात्य संस्कृतियों का प्रतिवादी और अनेक एशियाई संस्कृतियों का सामूहिकतावादी संस्कृति के रूप में विशेषीकरण किया जाता है।
प्रश्न 2. परितोषण के विलंब से क्या तात्पर्य है? इसे क्यों वयस्कों के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण समझा जाता है ? अथवा, आत्म-नियमन पर संक्षेप में एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तरः आत्म - नियमन का तात्पर्य हमारे अपने व्यवहार को संगठित और प्रिरिवीक्षण या मॉनिटर करने की योग्यता से है। जिन लोगों में बाह्य पर्यावरण की माँगो के अनुसार अपने व्यवहार को परिवर्तित करने की क्षमता होती है, वे आत्मा-परिवीक्षण में उच्च होते है।
जीवन की कई स्थितियों में स्थितिपरक दबावों के प्रति प्रतिरोध और स्वयं पर नियंत्रण की आवश्यकता होती है। यह संभव होता है उस चीज के द्वारा जिसे हम सामान्यतया 'संकल्प शक्ति' के रूप में जानते है। मनुष्य रूप में हम जिस तरह भी चाहे अपने व्यवहार को नियंत्रित कर सकते हैं। हम प्रायः अपनी कुछ आवश्यकताओं की संतुष्टि को विलंबित अथवा आस्थगित। कर देते हैं। आवश्यकताओं के परितोषण को विलंबित अथवा आस्थगित करने के व्यवहार को सोखना ही आत्मा - नियंत्रण कहा जाता है।
दीर्घावधि लक्ष्यों की संप्राप्ति में आत्म नियंत्रण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय सांस्कृतिक परंपराएँ हमें कुछ ऐसे प्रभावी उपाय प्रदान करती हैं जिससे आत्म नियंत्रण का विकास होता है।
प्रश्न 3. व्यक्तित्व को आप किस प्रकार परिभाषित करते हैं? व्यक्तित्व के अध्ययन के प्रमुख उपागम कौन-से हैं?
उत्तर: व्यक्तित्व शब्द प्रायः हमारी दैनंदिनी चर्चा अथवा बातचीत में प्रकट होता है। व्यक्तित्व का शाब्दिक अर्थ लैटिन शब्द परसोना से लिया गया है। परसोना उस मुखोटे को कहते हैं जिसे अपनी मुख रूपसज्जा को बदलने के लिए रोमन नाटकों में अभिनेता उपयोग में लाते थे। एक सामान्य जन के लिए व्यक्तित्व का तात्पर्य सामान्यतया व्यक्ति के शारीरिक एवं बाह्य रूप से होता है। मनोवैज्ञानिक शब्दों में व्यक्तित्व से तात्पर्य उन विशिष्ट तरीकों से है जिनके द्वारा व्यक्तियों और स्थितियों की प्रति अनुक्रिया की जाती है। शब्द व्यक्तित्व इस अर्थ में अनन्य एवं सापेक्ष रूप से स्थिर गुणों से है जो एक समयावधि में विभिन्न स्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार को विशिष्टता प्रदान करते हैं। व्यक्तियों के व्यवहारों में पाई जाने वाली भिन्नता तथा संगति को समझने के लिए और उसकी व्याख्या करने के लिए अनेक उपागम एवं सिद्धांत विकसित किए गए हैं। यह सिद्धांत मानव व्यवहार के विभिन्न मॉडलों पर आधारित है। प्रत्येक सिद्धांत व्यक्तित्व के कुछ पक्षों पर ही प्रकाश डालता है, सभी पक्षों पर नहीं।
मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व के प्ररूप और विशेषक (शीलगुण) उपागम के मध्य विभेद किया है: प्ररूप उपागम (type approach) व्यक्ति के प्रेक्षित व्यवहार परक विशेषताओं के कुछ व्यापक स्वरूपों का परीक्षण कर मानव व्यक्तित्व को समझने का प्रयास करता है। इसके विपरीत विशेषक उपागम (trait approach) विशिष्ट मनोवैज्ञानिक गुणों पर बल देता है जिसके आधार पर व्यक्ति और स्थिर रूपों में भिन्न होते हैं। अंतः क्रियात्मक उपागम (interactional approach) के अनुसार स्थितिपरक विशेषताएं हमारे व्यवहारों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
प्रश्न 4. व्यक्तित्व का विशेषक उपासक क्या है? यह कैसे प्रारूप उपागम से भिन्न है ?
उत्तर: प्रारूप उपागम व्यक्ति के प्रेक्षित व्यवहारपरक विशेषताओं की कुछ व्यापक स्वरूपों का परीक्षण कर मानव व्यक्तित्व को समझने का प्रयास करता है प्रत्येक व्यवहार पर एक स्वरूप व्यक्तित्व के किसी एक प्रकार का इंगित करता है जिसके अंतर्गत उस स्वस्य की विहारपरक विशेषता की समानता के आधार पर व्यक्तियों को रखा जाता है
प्राचीनकाल से ही लोगो को व्यक्तित्व के प्रारूपों में वर्गीकृत करने का प्रयास किया गया है ग्रीक चिकित्स्क हिप्पोक्रेट्स ने एक व्यक्तित्व का प्ररूप विज्ञान प्रस्ताविक किया जो फ्लेड और ह्यूमर पर आधारित है उन्होंने लोगो को चार प्रारूपो में वर्गीकृत किया है (जैसे- उत्साही, श्लेष्मिक, विवादों तथा कोपशील) भारत में भी एक प्रसिद्द आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक संहिता ने लोगो को वात, पित, एव कफ तीन वर्गों में तीन ह्यूमरल तत्वों जिन्हे त्रिदोष कहते है, के आधार पर वर्गीकृत किया है
जबकि विशेषक उपागम मुख्यत: व्यक्तितत्व के आधारभूत घटको के वर्णन अथवा विशेषीकरण से संबंधित होता है यह सिद्धांत व्यक्तित्व का निर्माण करने वाले मूल तत्व की खोज करते है मनुष्य व्यापक रूप से मनोवैज्ञानिक गुणों में भिन्नताओं का प्रदर्शन करते है फिर भी उनको व्यक्तित्व विश्लेषकों के लघु समूह में सम्मिलित किया सकता है विशेषक उपागम हमारे दैनिक जीवन के सामान्य अनुभव के बहुत नजदीक है उदाहरण के लिए जब हम यह जान लेते है की कोई व्यक्ति सामाजिक है तब हम यह मान लेते है की वह व्यक्ति ना केवल सहयोग मित्रता और सहायता करने वाला होगा बल्कि सामाजिक घटक से युक्त व्यवहार प्रदर्शित करने में भी प्रवृत होगा
प्रश्न 5. फ्रायड ने व्यक्तित्व की संरचना की व्याख्या कैसे की है?
उत्तर: फ्राइड के अनुसार व्यक्तित्व के प्राथमिक संरचनात्मक तत्व तीन है इदम या इड, अंहा (ईगो) प्रह्म यह तत्व चेतना में ऊर्जा के रूप में होते है और इनके बारे में लोग द्वारा किए गए व्यवहार के तरीके से अनुमान लगाया जा सकता है
1. इड - यह व्यक्ति की मूलप्रवृतिक ऊर्जा का स्रोत होता है इसका संबध व्यक्ति की आदिम आवश्यकताओ कामइच्छाओ और आक्रमक आवेगो की तात्कालिक तुष्टि से होता है यह सुखपसा - सिद्धांत पर कार्य करता है जिसका यह अभिग्रह होता है सुख की तलाश करते है और कष्ट का परिहार करते है फ्राइड के अनुसार मनुष्य की अधिकांश मूलप्रवृतिक ऊर्जा कामुक होता है और शेष ऊर्जा आक्रमक होती है इड को नैतिक मूल्यों, समाज और दूसरे लोगो की कोई परवाह नहीं होती है
2. अहः इसका विकास इड से होता है और यह व्यक्ति की मूलप्रवृत्तक आवश्यकताओ की संतुष्टि वास्तविकता के घरातल पर करता है व्यक्तित्व की यह संरचना वास्तविकता सिध्दन्त से संचालित होती है और प्राय: इड को व्यवहार करने के उपयुक्त तरीको की तरफ निदिष्ट करता है
3. पराहम् - पराहम् को समझने का और इसकी विशेषता बताने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि इसको मानसिक प्रकार्यो की नैतिक शाखा के रूप में जाना जाए । पराहम् इड और अहं को बताता है की किसी विशिष्ट अवसर पर इच्छा विशेष की संतुष्टि नैतिक है अथवा नहीं। समाजीकरण की प्रक्रिया में पैतृक प्राधिकार के आंतरिकीकरण द्वारा पराहम् इड को नियंत्रित करने में सहायता प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई बालक आइसक्रीम देखकर उसे खाना चाहता है, तो वह इसके लिए अपनी माँ से पूछता है। उसका पराहम् संकेत देता है की उसका यह व्यवहार नैतिक दृष्टि से सही है। इस तरह के व्यवहार के माध्यम से आइसक्रीम को प्राप्त करने पर बालक में कोई अपराध बोध, भय अथवा दुश्चिता नहीं होगी। -
इस प्रकार व्यक्ति के प्रकार्यों के रूप में फ्रायड का विचार था की मनुष्य का अचेतन तीन प्रतिस्पर्धा शक्तियों अथवा ऊर्जाओं से निर्मित हुआ है। कुछ लोगो में इड पराहम् से अधिक प्रबल होता है तो कुछ अन्य लोगों में पराहम् इड से अधिक प्रबल होता है। इड, अहं और पराहम् की सापेक्ष शक्ति प्रत्येक व्यक्ति की स्थितिरता का निर्धारण करती है फ्रायड इड को दो प्रकार की मूलप्रवृत्तिक शक्तियो से ऊर्जा प्राप्त होती है जिन्हे जीवन प्रवृति एवं मुमुर्षा या मृत्यु - प्रवृति के नाम से जाना जाता है। उन्होंने मृत्यु प्रवृति के स्थान पर जीवन प्रवृति को केंद्र में रखते हुए अधिक महत्व दिया है। मूलप्रवृति जीवन शक्ति जो इड को ऊर्जा प्रदान करती है कामशक्ति या लिबिडो कहलाती है। लिबिडो सुखेप्सा सिद्धांत के आधार पर कार्य करता है और तात्कालिक संतुष्टि चाहता है।
प्रश्न 6. हार्नी की अवसाद की व्याख्या अल्फ्रेड एडलर की व्याख्या से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर: एडलर के सिद्धांत को व्यष्टि या व्यक्तिक मनोविज्ञान के रूप में जाना जाता है। उनका आधारभूत अभी ग्रह यह है कि व्यक्ति का व्यवहार उद्देश्य पूर्ण होता है। हम में से प्रत्येक में चयन करने एवं सर्जन करने की क्षमता होती है। हमारे व्यक्तिगत लक्ष्य ही हमारी अभिप्रेरणा के स्रोत होते हैं। जो लक्ष्य हमें सुरक्षा प्रदान करते हैं और हमारी और पर्याप्तता की भावना पर विजय प्राप्त करने में हमारी सहायता करते हैं, वह हमारे व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एडलर के विचार से प्रत्येक व्यक्ति अपर्याप्तता और अपराध की भावनाओं से ग्रसित होता है। इसे हम हीनता मनोग्रंथि (inferiority complex) के नाम से जानते हैं। जो बाल्यावस्था में उत्पन्न होती है। इस मनोवृत्ति पर विजय प्राप्त करना इष्टतम व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक है। वही कैरेन हार्नि जो कि फ्रायड की एक अन्य अनुयायी थी, जिन्होंने फ्राइड के आधारभूत सिद्धांतों से भिन्न एक सिद्धांत विकसित किया। उन्होंने मानव समृद्धि और आत्मसिद्धि पर बल देते हुए मानव जीवन के एक आशावादी दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया। उन्होंने यह तर्क प्रस्तुत किया की मनोवैज्ञानिक विकार बाल्यावस्था की अवधि में विक्षुब्ध अन्तर्व्यक्तिक संबंधों (disturbed interpersonal relationship) के कारण उत्पन्न होते हैं। यदि माता-पिता का अपने बच्चों के प्रति व्यवहार उदासीन, हतोत्साहित करने वाला और अनियमित होता है तो बच्चा असुरक्षित महसूस करता है जिसके परिणाम स्वरूप एक ऐसी भावना जिसे मूल दुश्चिंता (basic anxiety) कहते हैं, उत्पन्न होती है। इस दुश्चिन्ता के कारण माता-पिता के प्रति बच्चे में एक गहन अमर्ष और मूल आक्रामकता घटित होती है। अत्यधिक प्रभुत्व अथवा उदासीनता का प्रदर्शन कर एवं अत्यधिक अथवा अत्यंत कम अनुमोदन प्रदान कर माता-पिता बच्चों में एकाकीपन और और सहायता की भावनाएं उत्पन्न करते हैं जो उनके स्वस्थ विकास में बाधक होती है।
प्रश्न 7. व्यक्तित्व के मानवतावादी उपागम की प्रमुख प्रतिज्ञप्ति क्या है? आत्मसिद्धि से मैस्लो का क्या तात्पर्य था?
उत्तर: मानवतावादी सिद्धांत मुख्यतः फ्रायड के सिद्धांत के प्रत्युत्तर में विकसित हुए। व्यक्तित्व के संदर्भ में मानवतावादी परिप्रेक्ष्य के विकास में कार्ल रोजर्स और अब्राहम मैस्लो ने विशेष रूप से योगदान किया है। रोजर्स द्वारा प्रस्तावित सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विचार एक पूर्णतः प्रकार्यशील व्यक्ति का है। उनका विश्वास है कि व्यक्तित्व के विकास के लिए संतुष्टि अभिप्रेरक शक्ति है। लोग अपनी क्षमताओं, संभाव्यताओं और प्रतिभाओं को संभव सर्वोत्कृष्ट तरीके से अभिव्यक्त करने का प्रयास करते हैं। व्यक्तियों में एक सहज प्रवृत्ति होती है जो उन्हें अपने वंशागत प्रकृति की सिद्धि या प्राप्ति के लिए निर्दिष्ट करती है।
मानव व्यवहार के बारे में रोजर्स ने दो आधारभूत अभिग्रह निर्मित किए हैं। एक यह कि व्यवहार लक्ष्योन्मुख और सार्थक होता है और दूसरा यह कि लोग (जो सहज रूप से अच्छे होते हैं) सदैव अनुकूली तथा आत्मसिद्धि वाले व्यवहार का चयन करेंगे। रोजर्स का सिद्धांत उनके निदानशाला में रोगियों को सुनते हुए प्राप्त अनुभवों से विकसित हुआ है। उन्होंने यह ध्यान दिया कि उनके सेवार्थियों के अनुभव में आत्म एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व था। इस प्रकार, उनका सिद्धांत आत्म के संप्रत्यय के चतुर्दिक संरचित है। उनके सिद्धांत का अभिग्रह है कि लोग सतत अपने वास्तविक आत्म की सिद्धि या प्राप्ति की प्रक्रिया में लगे रहते हैं।
रोजर्स ने सुझाव दिया कि प्रत्येक व्यक्ति के पास आदर्श अहं या आत्म का एक संप्रत्यय होता है। एक आदर्श आत्म वह होता है जो कि एक व्यक्ति बनना अथवा होना चाहता है। जब वास्तविक आत्म और आदर्श के बीच समरूपता होती है तो व्यक्ति सामान्यतया प्रसन्न रहता है। किन्तु दोनों प्रकार के आत्म के बीच विसंगति के कारण प्रायः अप्रसन्नता और असंतोष की भावनाएँ उत्पन्न होती हैं। रोजर्स का एक आधारभूत सिद्धांत है कि लोगों में आत्मसिद्धि के माध्यम से आत्म-संप्रत्यय को अधिकतम सीमा तक विकसित करने की प्रवृत्ति होती है। इस प्रक्रिया में आत्म विकसित, विस्तारित और अधिक सामाजिक हो जाता है।
रोजर्स व्यक्तित्व-विकास को एक सतत प्रक्रिया के रूप में देखते हैं। इसमें अपने आपका मूल्यांकन करने का अधिगम और आत्मसिद्धि की प्रक्रिया में प्रवीणता सन्निहित होती है। आत्म-संप्रत्यय के विकास में सामाजिक प्रभावों की भूमिका को उन्होंने स्वीकार किया है। जब सामाजिक दशाएँ अनुकूल होती हैं, तब आत्म-संप्रत्यय और आत्म-सम्मान उच्च होता है। इसके विपरीत, जब सामाजिक दशाएँ प्रतिकूल होती हैं, तब आत्म-संप्रत्यय और आत्म-सम्मान निम्न होता है। उच्च आत्म-संप्रत्यय और आत्म-सम्मान रखने वाले लोग सामान्यतया नम्य एवं नए अनुभवों के प्रति मुक्त भाव से ग्रहणशील होते हैं ताकि वे अपने सतत् विकास और आत्मसिद्धि में लगे रह सकें।
मैस्लो ने आत्मसिद्धि की लब्धि या प्राप्ति के रूप में मनोवैज्ञानिक रूप से स्वस्थ लोगों की एक विस्तृत व्याख्या दी है। आत्मसिद्धि वह अवस्था होती है जिसमें लोग अपनी संपूर्ण संभाव्यताओं को विकसित कर चुके होते हैं। मैस्लो ने मनुष्यों का एक आशावादी और सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित किया है जिसके अंतर्गत मानव में प्रेम, हर्ष और सर्जनात्मक कार्यों को करने की आत्मसिद्धि को प्राप्त करने में स्वतंत्र माने गए हैं। अभिप्रेरणाओं, जो हमारे जीवन को नियमित करती हैं, के विश्लेषण के द्वारा आत्मसिद्धि को संभव बनाया जा सकता है। हम जानते हैं कि जैविक सुरक्षा और आत्मीयता की आवश्यकताएँ (उत्तरजीविता आवश्यकताएँ) पशुओं और मनुष्यों दोनों में पाई जाती हैं। अतएव किसी व्यक्ति का मात्र इन आवश्यकताओं को संतुष्टि में संलग्न होना उसे पशुओं के स्तर पर ले आता है। मानव जीवन की वास्तविक यात्रा आत्म-सम्मान और आत्मसिद्धि जैसी आवश्यकताओं के अनुसरण से आरंभ होती है। मानवतावादी उपागम जीवन के सकारात्मक पक्षों के महत्त्व पर बल देता है।
प्रश्न 8. व्यक्तित्व मूल्यांकन में प्रयुक्त की जाने वाली प्रमुख प्रेक्षण विधियों का विवेचन करें। इन विधियों के उपयोग में हमें किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है? अथवा, व्यवहारपरक प्रेक्षण से आपका क्या तात्पर्य है? प्रेक्षण और साक्षात्कार विधियों में पाई जाने वाली सीमाओं को भी लिखिए।
उत्तर: लोगो को जानने, समझने और उनका वर्णन करने का कार्य ऐसा है जिससे दैनदिनी जीवन में प्रत्यक व्यक्ति संबंध होता है हम अपने व्यक्तिगत जीवन में अपने पूर्व अनुभवी, प्रेक्षणो, वार्लापो और दूसरे लोगो से प्राप्त सूचनाओं पर विश्वास करते है इस उपागम के आधार पर दुसरो को समझना अनेक कारको से प्रभावित हो सकता है जो हमारे निर्णयों का अतिरंजित कर वस्तुनिष्ठ को कम कर सकते है इसलिए व्यक्तिगतत्वों का विश्लेषण करने के लिए हमें अपने प्रयासों को अधिक औपचारिक रूप से संगठित करने की आवश्यकता होती है
किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व की समझ के लिए सौद्देश्य औपचारिक प्रयास को व्यक्तित्व मूल्यांकन कहा कहा जाता है मूल्यांकन का तातपर्य उन प्रक्रियाओ से है जिनका उपयोग कुछ विशेषताओं के आधार पर लोग के मूल्यांकन या उनके मध्य विभेदन के लिए किया जाता है मूल्याकन का लक्ष्य लोगो के व्यवहारो को न्यूनतम त्रुटि और अधिकतम परिशुद्धता के साथ समझना और उनकी भविष्यवाणी करना होता है मुल्यांकन में किसी स्थिति विशेष में व्यक्ति सामान्यतया कैन सा व्यवहार करता है और कैसे करता है हम यह समझने का प्रयास करते हमारी समझ को उन्नत करने के अतिरिक्त, मूल्यांकन निदान, प्रक्षिष्ण स्थानन, परामर्श और अन्य उद्देश्यो को लिए भी बहुत उपयोगी है
मनोविज्ञानिको ने विभिन्न तरीको से व्यक्तित्व का मूल्यांकन करने का प्रयास किया है सामान्यता सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली तकनीको के अंतर्गत मनोमितिक परीक्षणो आत्म प्रतिवेदन माप प्रक्षेपि तकनीक और व्यवहारपरक विश्लेषण आते है
इन तकनीकों के मूल विभिन्न सिद्धतिक उन्मुखता में है इसीलिए यह तकनीक व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालती है
प्रश्न 9. संरचित व्यक्तित्व परीक्षणों से क्या तात्पर्य है? व्यापक रूप से उपयोग किए गए दो संरचित व्यक्तित्व परीक्षण कौन से हैं?
उत्तर: प्रक्षेपी तकनीकों का विकास अचेतन अभिप्रेरणाओं और भावनाओं का मूल्यांकन करने के लिए किया गया है यह तकनीक अभीगृह पर आधारित है की कम संरचित को अथवा असंरचित उद्दीपक अथवा व्यक्तियों को उस स्थिति पर अपनी भावनाओ इच्छाओ और आवश्यकताओं को प्रक्षेपण करने का अवसर प्रदान करता है विशेषज्ञों द्वारा इन प्रक्षेपणों की व्याख्या की जाती है विभिन्न प्रकार की प्रक्षेपि तकनीकों विकसित की गई है
जिनमे व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिए विभिन्न प्रकार की उद्दीपक सामग्रियों और स्थितियों का उपयोग किया जाता है इनमे से कुछ तकनीकों में उद्दीपको के साथ प्रयोज्य को अपने को अपने साथियो को बताने की आवश्यकता है चित्रों को देखकर कहानी लिखनी होती है कुछ में आरेखों द्वारा अभिव्यक्ति अपेक्षित होता है और कुछ में उद्दीपको के एक बृहत समुच्चय में से उद्दीपको का वर्ण करने के लिए कहा जाता है व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाले दो संरचित व्यक्तित्व परीक्षण है
1. रोर्शा मसीलक्म परीक्षण
2. कथानक संप्रत्यक्षण परीक्षण
प्रश्न 10. व्याख्या कीजिए की प्रक्षेपी तकनीक किस प्रकार व्यक्तित्व का मूल्यांकन करती है? कौन से व्यक्तित्व के प्रक्षेपी परीक्षण मनोवेज्ञानक द्वारा व्यापक रूप से उपयोग में लाये गए है ?
उत्तर: व्यक्तित्व मूल्यांकन के जिन तकनीकों का वर्णन सामान्य रूप से होता है वे सब प्रत्यक्ष तकनीके हैं जिनमें व्यक्ति से सीधे उसके बारे में सूचनाएं प्राप्त करके उसके व्यक्तित्व के बारे में जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है, और वह व्यक्ति स्पष्ट रूप से जानता है कि उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जा रहा है। इन स्थितियों में लोग प्रायः आत्मचेतन का अनुभव करते हैं और अपनी निजी या अंतरंग भावनाओं, विचारों और अभिप्रेरणाओं को व्यक्त करने में हिचकिचाते हैं। वे जब भी ऐसा करते हैं तो प्रायः सामाजिक दृष्टि से वांछनीय तरीके के व्यवहार करने का प्रयास करते हैं। प्रक्षेपी तकनीकों का विकास अचेतन अभिप्रेरणाओं और भावनाओं का मूल्यांकन करने के लिए किया गया है। यह तकनीकें अभिग्रह पर आधारित है कि कम संरचित अथवा असंरचित उद्दीपक
अथवा स्थिति व्यक्तियों को उस स्थिति पर अपनी भावनाओं, इच्छाओं और आवश्यकताओं को प्रक्षेपन करने का अवसर प्रदान करता है। विशेषज्ञों द्वारा इन प्रक्षेपणों की व्याख्या की जाती है। विभिन्न प्रकार की प्रक्षेपी तकनीकें विकसित की गई है। जिनमें व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिए विभिन्न प्रकार के उद्दीपक सामग्रीयों और स्थितियों का उपयोग किया जाता है। इनमें से कुछ तकनीकों उद्दीपक के साथ प्रयोज्य को अपने साहचर्य को बताने की आवश्यकता होती है। मसिलक्ष्म परीक्षण को मनोवैज्ञानिकों द्वारा उपयोग किया गया है। रोर्शा परीक्षण में इसका इस्तेमाल हुआ है जो व्यापक रूप से प्रसिद्ध है। यह परीक्षण हर्मन रोर्शा द्वारा विकसित किया गया था।
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