Chapter-1 मनोवैज्ञानिक गुणों में विभिन्नताएँ
प्रश्न 1. किस प्रकार मनोवैज्ञानिक बुद्धि का लक्षण और उसे परिभाषित करते हैं?
उत्तर: मनोवैज्ञानिकों द्वारा बुद्धि के स्वरूप को बिल्कुल भिन्न ढंग से समझ जाता है। अल्फ्रेडं बिने बुद्धिं के विषय पर शोधकार्य करने वाले पहले मनोवैज्ञानिकों में से एक थे। उन्होंने बुद्धि को अच्छा निर्णय लेने की योग्यता और अच्छा तर्क प्रस्तुत करने की योग्यता के रूप में परिभाषित किया। वेश्लर जिनका बनाया गया बुद्धि परीक्षण बहुत व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, ने बुद्धि को उसकी प्रकार्यात्मकता के रूप में समझा अर्थात् उन्होंने पर्यावरण के प्रति अनुकूलित होने में बुद्धि के मूल्य को महत्त्व प्रदान किया।
वेश्लर के अनुसार बुद्धि व्यक्ति की वह समग्र क्षमता है जिसके द्वारा व्यक्ति सविवेक चिंतन करने, सोद्देश्य व्यवहार करने तथा अपने पर्यावरण से प्रभावी रूप से निपटने में समर्थ होता है। कुछ अन्य मनोवैज्ञानिकों, जैसे-गार्डनर और स्टर्नबर्ग का सुझाव है कि एक बुद्धिमान व्यक्ति न केवल अपने पर्यावरण से अनुकूलन करता है बल्कि उनमें सक्रियता से परिवर्तन और परिमार्जन भी करता है।
प्रश्न 2. किस सीमा तक हमारी बुद्धि आनुवंशिकता (प्रकृति) और पर्यावरण (पोषण) का परिणाम है? विवेचना कीजिए।
उत्तर: कुछ लोग दुसरो की तुलना में अधिक बुद्धिमान होते है ऐसा उनकी अनुवांसगिकता के कारन होता है फिर पर्यावरणय कारको के प्रभाव के कारण बुद्धि पर अनुवांशिकता के प्रभाव के प्रमाण मुख्य रूप से जुड़वाँ बच्चो का अध्ययन में दिखता है साथ साथ पाले गए जुड़वाँ बच्चो की बैद्धिक में 0.90 सहबंध पाया गया है बाल्यावस्था में अलग अलग करके जुड़वाँ बच्चो की बुद्धि व्यक्तित्व तथा व्यवहार पारक विशेषताओ में प्रर्याप्त समानता दिखाई देती है अलग अलग पर्यावरण में पाले गए समरूप जुड़वाँ बच्चो की बुद्धि में 0.72 सहसबंध है साथ- साथ पाले गए भातृ जुड़वाँ बच्चो की बुद्धि में 0.60 सहसबंध, साथ साथ गए बहनो बहनो की बुद्धि में • सहसबंध तथा अलग अलग पाले गए सहोदर की बुद्धि में 0.25 सहसबंध पाया गया है इसी संबंध में अन्य प्रमाण दत्तक बच्चो के उन अध्ययनों से प्राप्त हुए है जिनमे यह पाया गया है की बच्चो की बुद्धि गोद लेने वाले मातापिता जन्म देने वाले माता पिता के अधिक समान होती है बुद्धि पर पर्यावरण के प्रभाव के संबंध में किये गए अध्ययनों से ज्ञान हुआ है की जैसे जैसे बच्चो को आयु बढ़ती जाती है उनका बौद्धिक स्तर गोद लेने वाले का माता - पिता की बुद्धि के निकट पहुंच जाते है सुवुधवंचित परिस्थितिया वाले घरो के जिन बच्चो को सामाजिक आर्थिक स्थिति के परिवारों द्वारा गोद ले लिया जाता है की बुद्धि प्राप्तांको में अधिक वृद्धि दिखाई देती है यह इस बात का प्रमाण है पर्यावरण वंचन बुद्धि के विकास को घटा देता है जबकि प्रचुर एंव समृद्धि पोषण अच्छी परिवारों पृष्ठभूमि तथा गुणवक्तायुक्त शिक्षा दीक्षा बुद्धि में वृद्धि कर देती है सामान्यतय सभी मनोवैज्ञानिक की इस तथ्य पर सहमति है की बुद्धि आनुवंशिकता (प्रकृति) तथा पर्यावरण (पोषक) की जटिल अतः क्रिया का परिणाम होती है आनुवंशिकता द्वारा किसी व्यक्ति की बुद्धि की परिसीमाएं तय हो जाती है और बुद्धि का विकास उस परिसीमान के अंतर्गत पर्यावरण में उपलभ्य अवलंबी और अवसरों द्वारा निर्धारित होता है
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प्रश्न 3.गार्डनर के द्वारा पहचान की गई बहु बुद्धि की संक्षेप में व्याख्या कीजिए ।
उत्तर: बहु - बुद्धि का सिद्धांत हावर्ड गार्डनर द्वारा प्रस्तुत किया गया था उनके अनुसार बुद्धि कोई एक तत्व नहीं है बल्कि भिन्न प्रकार की बुद्धियो का अस्तित्वत होता है प्रत्येक बुद्धि एक दूसरे से स्वतंत्र रहकर कार्य करती है इसका अर्थ यह है की यदि किसी व्यक्ति में किसी एक बुद्धि की मात्रा अधिक है तो अनिवार्य रूप से इसका संकेत नहीं करना की उस व्यक्ति में किसी अन्य प्रकार की बुद्धि होगी या कितनी होगी गार्डनर ने यह भी बताया की किसी समस्या का समाधान खोजने के लिए भिन्न भिन्न प्रकार की बुद्धिया आपस में अतः क्रिया करते हुए साथ - साथ कार्य करती है अपने अपने क्षेत्र असाधरण योग्यताओ का प्रदर्शन करने वाले अत्यत प्रतिभाशाली व्यक्तियों का गार्डनर ने अध्यायन किया और इसके आधार ये निम्नलिखित है-
1. भाषागत (भाषा के उत्पादन और उपयोग के कोशल) - यह अपने विचारो को प्रकट करने तथा दूसरे व्यक्तियों के विचरो को समझने हेतु प्रवाह तथा नम्यता के साथ भाषा का उपयोग करने की क्षमता है।
2. तार्किक-गणितीय (वैज्ञानिक चितन तथा समस्या समाधान के कौशल) - इसी प्रकार की बुद्धि की अधिक मात्रा रखने व्यक्ति तार्किक तथा आलोचनात्मक चितन कर सकते है वै अमूर्त तर्कना कर लेते है और गणितीय समस्याओं के हल के लिए प्रतीकों का प्रहस्तन अच्छी प्रकार से कर लेते है।
3. दैशिक ( दश्य बिंब तथा प्रतिरूप निर्माण के कौशल) - यह मानसिक बिंबो को बनाने उनका उपयोग करने तथा उनमे मानसिक धरातल पर परिमार्जन करने की योग्यता है इस बुद्धि को अधिक मात्रा में रखने वाला व्यक्ति सरलता से देशिक सूचनाओं को मस्तिष्क में रख सकते है।
4. संगीतात्मक (सांगीतिक लय तथा अभिरचनाओ के प्रति संवेदनशीलता) - संगीतिक अभिरचनाओ को उतपन्न करने, उनका सर्जन तथा प्रहस्तन करने की क्षमता सांगीतिक योग्यता कहलाती है बुद्धि की उच्च मात्रा रखने वाले लोग ध्वनियो और स्पंदनो तथा ध्वनियों की नहीं अभिरचनाओ के सर्जन के प्रति अधिक संवेदशील होते है।
प्रश्न 4. किस प्रकार त्रिचापीय सिद्धांत बुद्धि को समझने में हमारी सहायता करता है?
उत्तर: रॉबर्ट रउतरबर्ग (१९८५) ने बुद्धि का त्रिचापीय सिद्धंत प्रस्तुत किया स्टर्नबर्ग के अनुसार बुद्धि वह योग्यता है जिससे व्यक्ति अपने पर्यावरण के प्रति अनुकूलित होता है अपने तथा अपने समाज और संस्कृतिक के उददेश्यो की पूर्ति हेतु रेन के कुछ पक्षों का चयन करता है और उन्हें परिवर्तित करता है इस सिद्धांत के अनुसार मूल रूप से बुद्धि तीन प्रकार की होती है घटकीय, आनुभविक तथा सन्दर्भिक
1. घटकीय बुद्धि घटकीय या विश्लेषणात्मक बुद्धि द्वारा व्यक्ति किसी समस्या का समाधान करने के लिए प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण करता है इस बुद्धि का अधिक मात्रा रखने वाले लोग विश्लेषणात्मक तथा आलोचनात्मक ढंग से सोचते है इस बुद्धि के भी तीन अलगअलग घटना होते है जो अलग अलग कार्य करते है पहला घटक ज्ञानार्जन से संबधित होता है दूसरा घटक एक उच्चस्तरीय घटक होता है तीसरा घटक निष्पादक से संबंधित होता है।
2. आनुभविक बुद्धि आनुभविक या सृजनात्मक बुद्धि वह बुद्धि है जिसके द्वारा व्यक्ति नई समस्या के समाधान हेतु अपने पूर्व अनुभवो का सर्जनात्मक रूप से उपयोग करता है इस बुद्धि की उच्च मात्रा रखने वाले लोग विगत अनुभवी को मैलिक रूप से समाकलित करते है तथा समस्या के मैलिक समाधान खोजते है।
3. सन्दर्भीक बुद्धि सन्दर्भीक या व्यवहारिक बुद्धि है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने दिन प्रतिदिन के जीवन में आने वाली पर्यावरणीय मांगो से निपटता है इस बुद्धि की अधिक मात्रा रखने व्यक्ति अपने वर्तमान पर्यावरण से शीघ्र अनुकूलित हो जाते है फिर वर्तमान पर्यावरण की अपेक्षा अधिक अनुकूल पर्यावरण का चयन कर लेते है या फिर अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप पर्यावरण में चावित परिवर्तन कर लेते है स्टिनबर्ग का चित्रचापिय सिद्धांत बुद्धि को समझने के लिए सुचना प्रमाण उपयोग के अंतरगत आने वाले सिद्धंतो का एक प्रतिनिधि सिद्धंत।
प्रश्न 5. "प्रत्येक बौद्धिक क्रिया तीन तंत्रकीय तंत्रों के स्वतंत्र कार्यों को सम्मिलित करती है।" पास मॉडल के संदर्भ में उक्त कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: बुद्धि के पास मॉडल को जे० पी० दास जैक नागलीरी तथा किर्बी ने विकसित किया। इस मॉडल के अनुसार बौद्धिक क्रियाएँ अन्योन्याश्रित तीन तंत्रिकीय या स्नायुविक तंत्रों की क्रियाओं द्वारा संपादित होती है। इन तीन तंत्र को मस्तिष्क की तीन प्रकार्यात्मक इकाई कहा जाता है। ये तीन इकाई क्रमशः भाव प्रबोधन / अवधान, कूट संकेतन या प्रक्रमण और योजना निर्माण का कार्य करती हैं ।
1. भाव प्रबोधन / अवधान (Arousalattention): भाव प्रबोधन की दशा किसी भी व्यवहार के मूल में होती है क्योंकि यही किसी उद्दीपक की ओर हमारा ध्यान आकर्षित कराती है। भाव प्रबोधन तथा अवधान ही व्यक्ति को सूचना का प्रक्रमण करने के योग्य बनाता है। भाव प्रबोधन के इष्टतम स्तर के कारण हमारा ध्यान किसी समस्या के प्रासंगिक पक्षों की ओर आकृष्ट होता है। भाव प्रबोधन का बहुत अधिक होना अथवा बहुत कम होना अवधान को बाधित करता है। उदाहरण के लिए, जब अध्यापक कहते हैं कि अमुक दिन सबकी एक परीक्षा ली जाएगी तो छात्रों का भाव प्रबोधन बढ़ जाता है और वे प्रबोधन उनके ध्यान को प्रासंगिक अध्यायों की विषय-वस्तुओं को पढ़ने, दोहराने तथा सीखने के लिए अभि प्रेरित करता है।
2. सहकालिक तथा आनुक्रमिक प्रक्रमण (Simultaneous and sucessive processing): अपने ज्ञान भंडार में सूचनाओं का समाकलन सहकालिक अथवा आनुक्रमिक रूप से कर सकते हैं। विभिन्न संप्रत्ययों को समझने के लिए उनके पारस्परिक संबंधों का प्रत्यक्षण करते हुए उनको एक सार्थक प्रतिरूप में समाकलित करते समय सहकालिक प्रक्रमण होता है। उदाहरण के लिए, रैवेन्स प्रोग्रेसिव मैट्सिस (आर० पी० एम०) परीक्षण में परीक्षार्थी को एक अपूर्ण अभिकल्प या डिजाइन दिखाया जाता है और उसे दिए गए छः विकल्पों में से उस विकल्प को चुनना होता है जिससे अपूर्ण अभिकल्प पूरा हो सके। सहकालिक प्रक्रमण द्वारा दिए गए अमूर्त चित्रों के पारस्परिक संबंधों को समझने में सहायता मिलती है। आनुक्रमिक प्रक्रमण उस समय होता है ताकि उस सूचना का पुनःस्मरण की अपने बादवाली सूचना का पुनःस्मरण करा देता है। गिनती सीखना, वर्णमाला सीखना, गुणन सारणियों को सीखना आदि आनुक्रमिक प्रक्रमण के उदाहरण हैं।
3. योजना (Planning): योजना बुद्धि का एक आवश्यक अभिलक्षण है। जब किसी सूचना की प्राप्ति और उसके पश्चात् उसका प्रक्रमण हो जाता है तो योजना सक्रिय हो जाती है। योजना के कारण हम क्रियाओं के समस्त संभावित विकल्पों के बारे में सोचने लगते हैं, लक्ष्य की प्राप्ति हेतु योजना को कार्यान्वित करते हैं तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न परिणामों को प्रभाविता का मूल्यांकन करते हैं। यदि कोई योजना इष्ट फलदायक नहीं होती तो हम कार्य या स्थिति की माँग के अनुरूप उसमें संशोधन करते हैं।
प्रश्न 6. क्या बुद्धि के संप्रत्ययीकरण में कुछ सांस्कृतिक भिन्नताएँ होती हैं ?
उत्तर: संस्कृति रीति रिवाजों, विश्वासों, अभिवृत्तियों तथा कला और साहित्य में उपलब्धियों की एक सामूहिक व्यवस्था को कहते हैं। इन सांस्कृतिक प्राचालों के अनुरूप ही किसी व्यक्ति की बुद्धि के ढलने की संभावना होती है। अनेक सिद्धांतकार बुद्धि को व्यक्ति की विशेषता समझते हैं और व्यक्ति की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की अपेक्षा कर देते है परन्तु अब बुद्धि के सिद्धांतो में संस्कृति की अनन्य विशेषताओं को भी स्थान मिलने लगा है। स्टर्नबर्ग के सांदर्भिक अथवा व्यावहारिक बुद्धि का अर्थ यह है कि बुद्धि संस्कृति का उत्पादन होती है। वाईगोट्स्की का भी विश्रास था की व्यक्ति की तरह संस्कृति का भीं अपना एक जीवन होता है, संस्कृति का भी विकास होता है और उसमे परिवर्तन होता है। इसी प्रक्रिया में संस्कृति ही निर्धारित करती है की अंततः किसी व्यक्ति का बोद्धिक विकास किस प्रकार का होगा। वाईगॉटस्की के अनुसार, कुछ प्रारंभिक मानसिक प्रक्रियाएँ, (जैसेरोना माता की आवाज की ओर ध्यान देना, सूंघना, चलना, दौड़ना आदि) जैसे- समस्या का समाधान करने तथा चिंतन करने आदि की शैलिया मुख्यतः संस्कृति का प्रतिफल होती है।
तकनीकी रूप से विकसित समाज के व्यक्ति ऐसी बाल पोषण नीतियाँ अपनाते हैं जिससे बच्चों में सामान्यीकरण तथा अमूर्तकारन, गति, न्यूनतम प्रयास करने तथा मानसिक स्तर पर वस्तुओं का प्रहस्त्र करने की क्षमता विकसित हो सके। ऐसे समाज बच्चों में एक विशेष प्रकार के व्यवहार के विकास को बढ़ावा देते है जिसे हम तकनीकी बुद्धि कह सकते हैं। ऐसे समाजों में व्यक्ति अवधान देने, प्रेक्षण करने, विश्लेषण करने, अच्छा निष्पादन करने, तेज काम करने तथा उपलब्धि की ओर उन्मुख रहने आदि कौशलों की परीक्षा की जाती है।
एशिया तथा अफ्रीका के अनेक समाजो में तकनीकी बुद्धि को उतना महत्व नहीं दिया जाता। एशिया तथा अफ्रीका की संस्कृतियों में पश्चिमी देशों की अपेक्षा पूर्णतः भित्र गुणों तथा कौशलों को बुद्धि का परिचायक माना जाता है। गैर- पश्चिमी संस्कृतियों में व्यक्ति की अपनी संज्ञानात्मक सक्षमता के साथ-साथ उसमे समाज के दूसरे व्यक्तियों के साथ सामाजिक संबंध बनाने के कौशलों को भी बुद्धि का लक्षण माना जाता है। कुछ गैर पश्चिमी समाजो में समाज केंद्रित तथा सामूहिक उन्मुखता पर बल दिया जाता है।
प्रश्न 7. बुद्धि-लब्धि क्या है? किस प्रकार मनोवैज्ञानिक बुद्धि-लब्धि प्राप्तांकों के आधार पर लोगों को वर्गीकृत करते हैं?
उत्तर: 1912 में एक जर्मन मनोवैज्ञानिक विलियम स्टर्न ने बुद्धि लब्धि संप्रत्यय विकसित किया। किसी व्यक्ति की मानसिक आयु को उसकी कालानुक्रमिक आयु से भाग देने के बाद उसको 100 से गुणा करने से उसकी बुद्धि लब्धि प्राप्त हो जाती है। बुद्धि लब्धि = मानसिक आयु + कालानुक्रमिक आयु × 100 गुणा करने में 100 की संख्या का उपयोग दशमलव बिंदु समाप्त करने के लिए किया जाता है। यदि किसी व्यक्ति की मानसिक आयु तथा कालानुक्रमिक आयु बराबर हो तो उसकी बुद्धि लब्धि 100 प्राप्त होती है। यदि मानसिक आयु कालानुक्रमिक आयु से अधिक हो तो बुद्धि लब्धि 100 से अधिक प्राप्त होती है। बुद्धि लब्धि 100 से कम उस दशा में प्राप्त होती है जब मानसिक आयु कालानुक्रमिक आयु से कम हो। किसी जनसंख्या की बुद्धि लब्धि प्राप्तांक का माध्य होता है। जिन व्यक्तियों की बुद्धि लब्धि प्राप्तांक 90 से 110 के बीच होती है उन्हें सामान्य बुद्धि वाला कहा जाता है। जिनकी बुद्धि लब्धि 70 से भी कम होती है वे बौद्धिक अशक्तता से प्रभावित समझे जाते हैं और जिनकी बुद्धि लब्धि 130 से अधिक होती है असाधारण रूप से प्रतिभाशाली समझे जाते हैं। सभी व्यक्तियों की बौद्धिक क्षमता एक समान नहीं होती कुछ व्यक्ति असाधारण रूप से तीव्र बुद्धि वाले होते हैं तथा कुछ औसत से कम बुद्धि वाले।
प्रश्न 8. किस प्रकार शब्दिक और निष्पादन बुद्धि परीक्षणों में भेद कर सकते हैं? अथवा, सांवेगिक बुद्धि पर संक्षिप्त में एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: एक बुद्धि परीक्षण पूर्णतः शाब्दिक, पूर्णतः अशाब्दिक अथवा पूर्णतः निष्पादन परीक्षण हो सकता है। इसके अतिरिक्त कोई बुद्धि परीक्षण इन तीनों प्रकार के परीक्षणों के एकांशो का मिश्रित रूप भी हो सकता है। शाब्दिक परीक्षणों में परीक्षार्थी को मौखिक अथवा लिखित रूप में शाब्दिक अनुक्रिया करनी होती है। इसलिए शाब्दिक परीक्षण केवल साक्षर व्यक्तियों को ही दिया जा सकता है। जबकि निष्पादन परीक्षण में परीक्षार्थी को कोई कार्य संपादित करने के लिए कुछ वस्तुओं या अन्य सामग्रियों का प्रहस्तन करना होता है। एकांशो का उत्तर देने के लिए लिखित भाषा के उपयोग की आवश्यकता नहीं होती। उदाहरण के लिए कोह के ब्लॉक डिजाइन परीक्षण लकड़ी के कई घनाकार गुटके होते हैं। परीक्षार्थी को दिए गए समय के अंतर्गत घटकों को इस प्रकार बिछाना होता है कि उनसे दिया गया डिजाइन बन जाए। निष्पादन परीक्षण का एक लाभ यह है कि उन्हें भिन्न भिन्न संस्कृतियों के व्यक्तियों को आसानी से दिया जा सकता है।
प्रश्न 9. सभी व्यक्तियों में समान बौद्धिक क्षमता समान नहीं होती। कैसे अपनी बौद्धिक योग्यताओं में लोग एक-दूसरे से भिन्न होते हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर: बौद्धिक योग्यताओं के आधार पर लोगो की क्षमता अलग होती है और इसी आधार पर उन्हें वर्गीकृत किया जाता है। बौद्धिक योग्यताओं और क्षमताओं के आधार पर ही कोई व्यक्ति किसी काम को अंजाम देता है या किसी समस्या का समाधान करता है। जे.पी दास के अनुसार बुद्धि के अंतर्गत मानसिक प्रयास, दृढ़ निश्चय के साथ की जाने वाली क्रियाएं, अनुभूतियां तथा मत के साथ-साथ ज्ञान, निवेदन करने की योग्यता तथा समझ जैसी संज्ञानात्मक क्षमताएं भी आती हैं। अतः बुद्धि के अंतर्गत संज्ञानात्मक घटक के साथ साथ अभी प्रेरणात्मक तथा भावात्मक घटक भी होते हैं। पश्चिमी विचारक बुद्धि के अंतर्गत मात्र संज्ञानात्मक कौशलों को ही प्राथमिक महत्व का स्वीकार करते हैं। परंतु इसके विपरीत भारतीय परंपरा में अधुल बताएं बुद्धि के अंतर्गत स्वीकार की जाती हैं- संज्ञानात्मक क्षमता (cognitive capacity) संदर्भ की समझ, विभेदन क्षमता, सम्प्रेषण योग्यता और समस्या समाधान योग्यता। सामाजिक क्षमता (social competence) सामाजिक व्यवस्था के लिए सम्मान, दूसरों के प्रति प्रतिबद्धता और चिंता, दूसरो के परिप्रेक्ष्य को सम्मान देना। सांवेगिक क्षमता (emotional competence) आत्म संवेग पर नियमन और आत्म परिविक्षण, शिष्टता, ईमानदारी, आत्म मूल्यांकन और बेहतर आचरण । उद्यमी क्षमता (entrepreneurial competence) धैर्य, प्रतिबद्धता, परिश्रम, लक्ष्य निर्देशित व्यवहार और सतर्कता।
प्रश्न 10. अपने विचारों में बुद्धि-लब्धि और सांवेगिक लब्धि में से कौन-सा जीवन में सफलता से ज्यादा संबंधित होगा और क्यों? अथवा, सांवेगिक बुद्धि पर संक्षिप्त में एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: बुद्धि लब्धि व्यक्ति की बुद्धि मात्रा बताती है और सांवेगिक लब्धि किसी भी व्यक्ति की सांवेगिक बुद्धि की मात्रा बताती है सांवेगिक बुद्धि का मतलब है सांवेगिक प्रक्रमण कुशलता और सूचना परिशुद्धता बुद्धि लब्धि यह बताती है की हर इंसान की बुद्धिक क्षमता अलग अलग होती है कुछ व्यक्ति असाधारण रूप से तीव्र बुद्धि वाले होते है तथा बहुत काम बुद्धि वाले बुद्धि पारीक्षणो का यह व्यवहारिक उपयोग है की इनसे बहुत अधिक बुद्धि तथा बहुत कम बुद्धि वाले व्यक्तियों की पहचान की जा सकती है
जीवन से सफलता से सांवेगिक बुद्धि ज्यादा संबंधित है क्योंकी दुनिया की चुनौतियों से निपटना इससे कुशल हो जाता है इससे शैक्षिक उपलब्धियो में भी लाभ और प्रभाव देखने को मिलता है सांवेगिक बुद्धि का सप्रायय बुद्धि के संप्रत्यय को उसके बुद्धिक अनेक कौशल जैसे अपने तथा दूसरे व्यक्तियों के संवेगो का परिशुद्ध मूल्यांकन, प्रकटीकरण तथा संवेगो का नियमन आदि का एक समुच्चय है जीवन में सफल होने के लिए बुद्धि लब्धि और विद्यालय में अच्छा निष्पादन ही काफी नहीं है आप ऐसे अनेक लोग पाएंगे जो बुद्धि में श्रेष्ठ होते हुए भी जीवन में सफल नहीं होते है।
प्रश्न 11. अभिक्षमता' अभिरुचि और बुद्धि से कैसे भिन्न हैं? अभिक्षमता का मापन कैसे किया जाता है?
उत्तर: अभीक्षमता विशेष क्षेत्र क्रियाओ की योग्यता है अभीक्षमता को विशेषताओं के ऐसे संयोजन के रूप में देखा जाता है जिसे कोई व्यक्ति प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद विशिष्ट क्षेत्र संबंधी ज्ञान और कौशल अर्जित करके विशिष्ट क्षमता के रूप में प्रसीरत करता है बुद्धि का मापन करने की प्रक्रिया में मनोवैज्ञानिको बधाई अज्ञात होता है की समान बुद्धि रखने वाले व्यक्ति भी विशेष : ज्ञान अथवा कौशल को भिन्न भिन्न दक्षता के साथ अर्जित करते है आप अपनी कक्षा में देख सकते है की कुछ बुद्धिमान विद्द्यार्थी भी कुछ विषयों में अच्छा निष्पादन नहीं कर पते जब आपको गणित में कोई समस्या आती है तो आप सहायता चाहते है परन्तु जब आप को कविता समझने में कठिनाई आती है तो आप अविनाश के पास जाते है भिन्न भिन्न क्षेत्रों यह विशिष्ट योग्यताएं तथा कौशल ही अबहिष्मताए कहलाती है उचित प्रशिक्षण देकर इस योग्यताओ में प्रयाप्त अभिवृद्धि की जा सकती है
अभिरुचि का अर्थ है किसी व्यक्ति का किसी क्षेत्र में रुझान और सफलता प्राप्ति की रूचि होना अभिरुचि किसी विशेष कार्य को करने की वरियता को कहते है अभीक्षमता उस कार्य को करने की संभ्वयता को कहते है किसी व्यक्ति में किसी कार्य को करने की अभिरुचि हो सकती है परन्तु हो सकता है की उसे करने की अभीक्षमता हो हम तो उसमे उसकी अभिरुचि ना हो इन दोनों ही दशाओ में उसका निष्पादन संतोषजनक नहीं होगा एक ऐसे विद्यार्थी की सफल यांत्रिक अभियता बनाने की अधिक संभावना है जिसमे उच्च यांत्रिक अभीक्षमता हो और अभियांत्रिकी अभिरूचि भी हो
प्रश्न 12. किस प्रकार सर्जनात्मकता बुद्धि से संबंधित होती है ?
उत्तर: सर्जनात्मकता नूतन, उपयुक्त और उपयोगी विचारों, वस्तुओं या समस्या समाधानो को उत्पन्न करने की योग्यता है। सृजनशील होने के लिए एक निश्चित स्तर की बुद्धि का होना आवश्यक है। परंतु किसी व्यक्ति की उच्च स्तरीय बुद्धि फिर भी यह सुनिश्चित नहीं करती है क्यों अवश्य ही सृजनशील होगा। शोधकर्ताओं ने पाया है कि सृजनात्मकता तथा बुद्धि में सकारात्मक संबंध होता है प्रतिक सृजनात्मक कार्य के लिए ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक न्यूनतम स्तर की योग्यता तथा क्षमता की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए सृजनशील लेखकों को उपयोग में दक्षता की आवश्यकता होती है। अतः सृजनात्मकता के लिए एक विशेष मात्रा में बुद्धि का होना आवश्यक है परंतु उस विशेष मात्रा से अधिक बुद्धि का सृजनात्मकता सहसंबंध नहीं होता है। सृजनात्मकता के कई रूप और सम्मिश्रण होते हैं। कुछ व्यक्तियों में बौद्धिक गुण अधिक मात्रा में होते हैं कुछ व्यक्तियों में सृजनात्मकता से संबद्ध विशेषताएं अधिक मात्रा में होती हैं।
Hello My Dear, ये पोस्ट आपको कैसा लगा कृपया अवश्य बताइए और साथ में आपको क्या चाहिए वो बताइए ताकि मैं आपके लिए कुछ कर सकूँ धन्यवाद |