प्रश्न 1. दबाव के संप्रत्यय की व्याख्या कीजिए। दैनिक जीवन से उदाहरण दीजिए।
उत्तर: दबाव के अंग्रेजी भाषा के शब्द 'स्ट्रेस' (stress) की व्युत्पत्ति लैटिन शब्द 'स्ट्रिक्टस' (strictus) जिसका अर्थ है तंग या संकीर्ण तथा स्ट्रिंगर (stringer) जो क्रियापद है, जिसका अर्थ है कसना, से हुई है। यह मूल शब्द अनेक व्यक्तियों द्वारा दबाव अवस्था में वर्णित मांसपेशियों तथा श्वसन की कसावट तथा संकुचन की आंतरिक भावनाओं को प्रतिबिंबित करता है। प्रतीक दबाव खराब या विनाशकारी नहीं होता। दबाव के उत्तर को जो आपके लिए लाभकारी है तथा चोटी के निष्पादन स्तर की उपलब्ध छोटे संकटों के प्रबंधन के लिए व्यक्ति के सर्वोत्तम गुणों में से एक है, को के लिए यूस्ट्रेस (eustress) पद का उपयोग किया जाता है। दबाव की यह अवरोक्त अभिव्यक्ति ही हमारे शरीर के जीर्ण होने का कारण होती है। अतः दबाव का वर्णन किसी जीव द्वारा उद्दीपक घटना के प्रति की जाने वाली अनुक्रिया के प्रतिरूप के रूप में किया जा सकता है उसकी साम्यावस्था में व्यवधान उत्पन्न करता है तथा उसके सामना करने की क्षमता से कहीं अधिक होता है। उदाहरणार्थ, एक लड़का अपनी अंतिम परीक्षा, जो कल सवेरे होने वाली है के लिए अध्ययन कर रहा है। उसने रात में 1:00 बजे तक पढ़ाई की फिर वह अपना ध्यान एकाग्र करने में असमर्थ रहा प्रातः 6:00 बजे का अलार्म लगाया और सोने का प्रयास करने लगा। चुकी वह बेहद तनावग्रस्त है। अतः वह बिस्तर पर करवटें बदलते रह जाता है। उसके मन में इस प्रकार के विचार कौंधते हैं कि वह अपनी पसंद के विषय में उतने अंक पाने में असमर्थ हो गया है। जितने कि उस विषय को आगे चुनने के लिए आवश्यक हैं। वह अपने आपको मित्रों के साथ मौज मस्ती करने तथा परीक्षा के लिए पूरी तैयारी न करने के लिए दोषी ठहराता है। प्रातः काल में भारी सर लिए उठता है, नाश्ता भी नहीं कर पाता और किसी तरह परीक्षा के समय तक स्कूल पहुंचता है। वह प्रश्न पत्र खोलता है तो उसका हृदय जोर से धड़क रहा होता है, हाथ पसीने से गीले होते हैं और उसे लगता है कि उसका मन पूर्णतया खाली हो गया है। सोमवार कि व्यस्त सुबह को जवाब सड़क पार कर रहे तो कुछ देर के लिए दबाव का अनुभव कर सकते हैं। इन्हीं सभी चुनौतियां, समस्याएं तथा कठिन परिस्थितियां हमें दबाव का अनुभव कराती हैं।
प्रश्न 2. दबाव के लक्षणों तथा स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: दबाव के कारण हर व्यक्ति की दबाव के प्रति अनुक्रिया उसके व्यक्तित्व पालन-पोषण तथा जीवन के अनुभवों के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है। प्रत्येक व्यक्ति के दबाव अनुक्रियाओं के अलग-अलग प्रतिरूप होते हैं । अतः, चेतावनी देने वाले संकेत तथा उनकी तीव्रता भी भिन्न-भिन्न होती है। हममें कुछ व्यक्ति अपनी दबाव अनुक्रियाओं को पहचानते हैं तथा अपने लक्षणों की गंभीरता तथा प्रकृति के आधार पर अथवा व्यवहार में परिवर्तन के आधार पर समस्या की गहनता का आकलन कर लेते हैं। दबाव के ये लक्षण शारीरिक, संवेगात्मक तथा व्यवहारात्मक होते हैं। कोई भी लक्षण दबाव की प्रबलता को ज्ञापित कर सकता है, जिसका यदि निराकरण न किया जाए तो उसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
दबाव के स्रोत - दबाव के निम्नलिखित स्रोत हो सकते हैं -
1. जीवन घटनाएँ: जब से हम पैदा होते हैं, तभी से बड़े और छोटे, एकाएक उत्पन्न होने वाले और धीरे-धीरे घटित होने वाले परिवर्तन हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। हम छोटे तथा दैनिक होने वाले परिवर्तनों का सामना करना तो सीख लेते हैं किन्तु जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ दबावपूर्ण हो सकती हैं। क्योंकि वे हमारी दिनचर्या को बाधित करती हैं और उथल-पुथल मचा देती हैं। यदि इस प्रकार की कई घटनाएँ चाहे वे योजनाबद्ध हो (जैसे- घर बदलकर नए घर में जाना) या पूर्वानुमानित न हों (जैसे-किसी दीर्घकालिक संबंध का टूट जाना) कम समय अवधि में घटित होती हैं, तो हमें उनका सामना करने में कठिनाई होती है तथा हम दबाव के लक्षणों के प्रति अधिक प्रवण होते हैं।
2. परेशान करने वाली घटनाएँ: इस प्रकार के दबावों की प्रकृति होती है, जो अपने दैनिक जीवन में घटने वाली घटनाओं के कारण बनी रहती है। कोलाहलपूर्ण परिवेश, प्रतिदिन का आना-जाना, झगड़ालू पड़ोसी, बिजली-पानी की कमी, यातायात की भीड़-भाड़ इत्यादि ऐसी कष्टप्रद घटनाएँ हैं। एक गृहस्वामिनी को भी अनेक ऐसी आकस्मिक कष्टप्रद घटनाओं का अनुभव करना पड़ता है। कुछ व्यवसायों में ऐसी परेशान करने वाली घटनाओं का सामना बारंबार करना पड़ता है। कभी-कभी ऐसी परेशानियों का बहुत तबाहीपूर्ण परिणाम उस व्यक्ति के लिए होता है जो उन घटनाओं का सामना करता है क्योंकि बाहरी दूसरे व्यक्तियों को इन परेशानियों की जानकारी भी नहीं होती। जो व्यक्ति इन परेशानियों के कारण जितना ही अधिक दबाव अनुभव लरता है उतना ही अधिक उसका मनोवैज्ञानिक कुशल-क्षेम निम्न स्तर का होता है।
3. अभिघातज घटनाएँ: इनके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की गंभीर घटनाएँ जैसे-अग्निकांड, रेलगाड़ी या सड़क दुर्घटना, लूट, भूकम्प, सुनामी इत्यादि सम्मिलित होती हैं। इस प्रकार की घटनाओं का प्रभाव कुछ समय बीत जाने के बाद दिखाई देता है तथा कभी-कभी ये प्रभाव दुश्चिता, अतीतावलोकन, स्वप्न तथा अंतर्वेधी विचार इत्यादि के रूप में सतत रूप से बने रहते हैं। तीव्र अभिघातों के कारण संबंधों में भी तनाव उत्पन्न हो जाते हैं। इनका सामना करने के लिए विशेषज्ञों की सहायता की आवश्यकता पड़ सकती है, विशेष रूप से जब वे घटना के पश्चात् महीनों तक सतत रूप से बने रहें ।
प्रश्न 3. जी. ए. एस. मॉडल का वर्णन कीजिए तथा इस मॉडल की प्रासंगिकता को एक उदाहरण की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: जनरल एडेप्टेशन सिडोंम (सामान्य अनुकूलन संरक्षण), के प्रस्तुतकर्ता सेल्ये थे उन्होंने दबाव के सतत रूप से दीर्घकालिक बने रहने का असर शारीरिक रूप से क्या होता है पर अध्ययन किया उन्होंने विभिन्न ने दबाव कारक जैसे पशुओ को उच्च तापमान एक्स रे तथा इन्सुलिन की सुई लगाकर प्रयोगशाला में लम्बे समय तक रखा गया उन्होंने विभिन्न छोटो तथा बीमारी से बस्त रोगिया का अस्पतालों में जाकर प्रेक्षण भी किया सेल्ये ने सभी सामान प्रतिरूप वाली शारीरिक अनुक्रियाएँ पाई सेल्ये ने इस प्रतिरूप अलार्म रिएक्शन तथा परिश्रंति |
1. संचेत प्रतिक्रिया चरण- किसी हानिकारक उद्दीपक या दबाचकरक की उपस्थिति के कारण एडिनल - पियूष - कॉटेक्स तंत्र का सक्रियण हो जाता है यह उन अतः स्रावों को छोड़ने के लिए प्रेरित करता है जिसमे दबाव अनुक्रिया होती है तब व्यक्ति संघर्ष या के लिए तैयार हो जाता है।
2. प्रतिरोध चरण - यदि दबाव दीर्घकालिक होता है तो प्रतिरोध चरण प्रांरभ होता है परानुकंपी तंत्रिका तंत्र, शरीर के संसाधनों का अधिक सावधानी पूर्ण उपयोगी करने को उद्धृत करता है जिव खतरे का सामना करने के लिए मुकंबला करने का प्रयास करता है।
3. परीश्राती चरण - एक ही दबावकारक अन्य दबावकारको के समक्ष दीर्घकालिक उद्भाषण से शरीर के संसाधन निष्कासित हो जाते है जिसके कारण परिश्रांत का तृतीय चरण आता है संचेत प्रतिक्रिया तथा प्रतिरोध चरण में कार्यरत शरीर क्रियात्मक तंत्र अप्रभावी हो जाता है तथा दबाव संबद्धि रोगो, जैसे उच्च रक्त चाप की संभावना बढ़ जाती है।
शैली मोडल की आलोचना इसलिए की गई है की उसमे दबाव के मनोवैज्ञानिक कारको की बहुत सिमित भूमिका बताई गई है शोधकर्ताओं के अनुसार घटनाओ का मनोविज्ञानक मूल्यांकन दबाव के निर्धारण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है व्यक्ति दबाव के प्रति किया अनुक्रिया करेगा यह बहुत सिमा तक उसके प्रत्यक्षण, व्यक्तित्व तथा जैविक संरचना से प्रभावित होता है।
प्रश्न 4. दबाव का सामना करने के विभिन्न उपायों की गणना कीजिए ।
उत्तर: सामना करना दबाव के प्रति एक गत्यात्मक स्थिति विशिष्ट प्रतिक्रिया है यह दबाव पूर्ण स्थितियो या घटनाओ के प्रति कुछ निश्चित मूर्त अनुक्रियाओं का समुच्चय होता है जिसका उद्देश्य समस्या का सधारण करना तथा दबाव को काम करना होता है जैसे यदि हम किसी यातायात जाम में फंसे होते है तो हमें क्रोध आ रहा होता है क्योकि हम विश्वास करते है की यातायात को श्रीघ्रता से चलते रहना चाहिए दबाव का प्रबंधन करने के लिए हमारे लिए यह आवश्यक है की हम अपने सोचने के तरीके का पुनः मूल्यांकन करे तथा दबाव का सामना करने की युक्तियों या कौशलों को सीखे व्यक्ति दबावपूर्ण स्थितियों का सामना करने का युक्तियों के उपयोग में व्यक्तिगत भिन्नताएं प्रदर्शित करते है जिनमे लम्बे समय तक संगीति पाई जाती है इनके अंतर्गत प्रकट तथा अप्रकट दो प्रकार की क्रियाओ या कौशल निम्नलिखित है
1. कृत्य - अभिविन्यस्त युक्ति दबावपूर्ण स्थिति के संबंध में सूचनाएं एकत्रित करना, उनके प्रति क्या - क्या वैकल्पिक क्रियाये हो सकती है तथा उनके संभावित परिणाम क्या हो सकते है यह सब इसके अंतर्गत आता है -
2. आवेग - अभिविन्यस्त युक्ति इसके अंतर्गत मन के आशा बनाये रखने के प्रयास तथा अपने संवेगो पर नियंत्रण सम्मिलित हो सकते कुण्ठ तथा क्रोध की भावनाओ को अभिव्यक्ति करना या फिर यह निर्णय करना की परिस्थिति को बदलने के लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता है भी इसके अंतर्गत सम्मिलित हो सकता है
3. परिहार - अभिविन्यस्त युक्ति - इसके अंतर्गत स्थिति की गंभीरता को नकारना या कम समझना सम्मिलित होते हैं; इसमें दबावपूर्ण विचरों का सचेतन दमन तथा उनके स्थान पर आत्म - रक्षित विचारों का सचेतन दमन तथा उनके स्थान पर आत्म - रक्षित विचारों का प्रतिस्थान भी सम्मिलित होता है। लेजारस तथा फोकमैन ने दबाव का सामना करने का कल्पना - निर्धारण एक गत्यात्मक प्रक्रिया के रूप में किया है, की किसी व्यक्तिगत विशेषक के रूप में। उनके अनुसार, सामना करने की अनुक्रियाएँ दो प्रकार की होती हैंसमस्या केंद्रित तथा संवेग केंद्रित |
प्रश्न 5. मनोवैज्ञानिक प्रकार्यों पर दबाव के प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: मनोवैज्ञानिक प्रकार्यों पर दबाव के प्रभाव:
1. संवेगात्मक प्रभाव: वे व्यक्ति जो दबावग्रस्त होते हैं। प्रायः आकस्मिक मनः स्थिति परिवर्तन का अनुभव करते हैं तथा सनकी की तरह व्यवहार करते है, जिसके कारण वे परिवार तथा मित्रों से विमुख हो जाते हैं। कुछ स्थितियों में इसके कारण एक दुश्चक्र प्रारंभ होता है जिससे विश्वास में कमी होती है तथा जिसके कारण फिर और भी गंभीर संवेगात्मक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। उदाहरण के लिए, दूरिंचता तथा अवसाद की भावनाएँ, शारीरिक तनाव में वृद्धि, मनोवैज्ञानिक तनाव में वृद्धि तथा आकस्मिक मनः स्थिति परिवर्तन।
2. शरीर क्रियात्मक प्रभाव - जब शारीरिक या मनोवैज्ञानिक दबाव मनुष्य के शरीर पर क्रियाशील होते हैं तो शरीर में कुछ हार्मोन, जैसे- एडनीतिन तथा कॉर्टीशोल का स्त्राव बढ़ जाता हैं। ये हार्मोन हृदयगति, रक्तचाप स्तर, चयापचय तथा शारीरिक क्रिया में विशिष्ट परिवर्तन कर देते हैं। जब हम थोड़े समय के लिए दबावग्रस्त हो तो ये शरीरिक प्रतिक्रियाएँ कुशलतापूर्वक कार्य करने में सहायता करती हैं, किन्तु दीर्घकालीक रूप से यह शरीर को अत्यधिक नुकसान पहुँचा सकती हैं। एपिनेफरीन तथा नॉरएपिनेफरोन छोड़ना, पाचक तंत्र की धीमी गति, फेफड़ों में वायुमार्ग का विस्तार, हृदयगति में वृद्धि तथा रक्त वाहिकाओं का सिकुड़ना, इस प्रकार के शरीर क्रियात्मक प्रभावों के उदाहरण हैं।
3. संज्ञानात्मक प्रभाव - यदि दबाव के कारण दाब (प्रेशर) निरंतर रूप से बना रहता है तो व्यक्ति मानसिक अतिभार से ग्रस्त हो जाता है। उच्च दबाव के कारण उत्पन्न यह पीड़ा, व्यक्ति में ठोस निर्णयों के द्वारा तर्क वितर्क, असफलता, वित्तीय घाटा, यहाँ तक की नौकरी की क्षति भी इसके परिणामस्वरूप हो सकती है। एकाग्रता में कमी तथा न्यूनीकृत अल्पकालिक स्मृति क्षमता भी दबाव के संज्ञानात्मक प्रभाव हो सकता हैं।
4. व्यवहारात्मक प्रभाव - दबाव का प्रभाव हमारे व्यवहार पर कम पौष्टिक भोजन करने, उत्तेजित करने वाले पदार्थो, जैसे केफीन को अधिक सेवन करने में परिलक्षित होता है। उपशामक औषधियाँ व्यसन बन सकती हैं। तथा उनके अन्य प्रभाव भी हो सकते हैं। जैसेएकाग्रता में कठिनाई, समन्वय में कमी तथा पूर्णि या चक्कर आ जाना। दबाव के कुछ ठेठ या प्ररूपी व्यवहारात्मक प्रभाव, निद्रा प्रतिरूपों में व्याद्यात, अनुपस्थिता में वृद्धि तथा कार्य निष्पादन में ह्यस हैं।
प्रश्न 6. जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए जीवन कौशल कैसे उपयोगी हो सकते हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर: जीवन कौशल, अनुकूली तथा सकारात्मक व्यवहार की वे योग्यताएँ हैं जो व्यक्तियों को दैनिक जीवन की मांगों और चुनौतियों से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए सक्षम बनाती हैं। दबाव का सामना करने की हमारी योग्यता इस बात पर निर्भर करती है कि हम दैनिक जीवन की माँगों के प्रति संतुलन करने तथा उनके संबंध में व्यवहार करने के लिए कितने तैयार हैं तथा अपने जीवन में साम्यावस्था बनाए रखने के लिए कितने तैयार हैं। ये जीवन कौशल सीखे जा सकते हैं तथा उसमें सुधार, स्वयं की देखभाल के साथ-साथ ऐसी असहायक आदतों, जैसे- पूर्णतावादी होना, विलंबन या टालना इत्यादि से मुक्ति, कुछ ऐसे जीवन कौशल हैं जिनसे जीवन को चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी।
प्रश्न 7. उन कारकों का विवेचन कीजिए जो सकारात्मक स्वास्थ्य तथा कुशलक्षेम की ओर ले जाते हैं।
उत्तर: अनेक ऐसे कारक हैं जो सकारात्मक स्वास्थ्य के विकास को सुकर या सुसाध्य बनाते हैं। ये कारक निम्नलिखित हैं-
1. आहार: संतुलित आहार व्यक्ति की मन:स्थिति को ठीक कर सकता है, ऊर्जा प्रदान कर सकता है, पेशियों का पोषण कर सकता है। परिसंचरण को समुन्नत कर सकता है, रोगों से रक्षा कर सकता है, प्रतिरक्षक तंत्र को सशक्त बना सकता है तथा व्यक्ति को अधिक अच्छा अनुभव करा सकता है, जिससे वह जीवन में दबावों का सामना और अच्छी तरह से कर सके। स्वास्थ्यकर जीवन की कुंजी है, दिन में तीन बार संतुलित और विविध आहार का सेवन करना।
किसी व्यक्ति को कितने पोषण की आवश्यकता है, यह व्यक्ति की सक्रियता स्तर, आनुवंशिक प्रकृति, जलवायु नथा स्वास्थ्य के इतिहास पर निर्भर करता है। कोई व्यक्ति क्या भोजन करता है तथा उसका वजन ना है, इसमें व्यवहारात्मक प्रतिक्रियाएँ निहित होती हैं। कुछ व्यक्ति पौष्टिक आहार तथा वजन रख-रखाव सफलतापूर्वक कर पाते हैं किन्तु कुछ व्यक्ति मोटापे के शिकार हो जाते हैं। जब हम दबावग्रस्त होते हैं तो हम आराम देने वाले भोजन, जिसमें प्रायः अधिक वसा, नमक तथा चीनी होती है का सेवन करते हैं।
2. व्यायाम: बड़ी संख्या में किए गए अध्ययन शारीरिक स्वास्थ्यता एवं स्वास्थ्य के बीच सुसंगत सकारात्मक संबंधों की पुष्टि करते हैं। इसके अतिरिक्त, कोई व्यक्ति स्वास्थ्य की समुन्नति के लिए जो उपाय कर सकता है उसमें व्यायाम जीवन शैली में वह परिवर्तन है जिसके व्यापक रूप से लोकप्रिय अनुमोदन प्राप्त है। नियमित व्यायाम वजन तथा दबाव के प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, तथा तनाव, दुश्चिता एवं अवसाद को घटाने में सकारात्मक प्रभाव प्रदर्शित करता है।
अच्छे स्वास्थ्य के लिए जो व्यायाम आवश्यक है, उनमें तनने या खिंचाव वाले व्यायाम, जैसे-दौड़ना, तैरना, साइकिल चलाना इत्यादि आते हैं। जहाँ खिंचाव वाले व्यायाम शांतिदायक प्रभाव डालते हैं, वहाँ वायुजीवी व्यायाम शरीर के भाव-प्रबोधन स्तर को बढ़ाते हैं। व्यायाम के स्वास्थ्य-संबंधी फायदे दबाव प्रतिरोधक के रूप में कार्य करते हैं। अध्ययन प्रदर्शित करते हैं कि शारीरिक स्वस्थता, व्यक्तियों को सामान्य मानसिक तथा शारीरिक कुशल-क्षेम का अनुभव कराती है उस समय भी जब जीवन में नकारात्मक घटनाएं घट रही हैं।
3. सकारात्मक चिंतन: सकारात्मक चिंतन की शक्ति, दबाव का सामना करने तथा उसे कम करने में अधिकाधिक मानी जा रही है। आशावाद, जो कि जीवन में अनुकूल परिणामों की प्रत्याशा करने के प्रति झुकाव है, को मनोवैज्ञानिक तथा शारीरिक कुशल-क्षेम से संबंधित किया गया है। आशावादी व्यक्ति यह मानते हैं कि विपत्ति का सफलतापूर्वक सामना किया जा सकता है। वे समस्या केन्द्रित सामना करने का अधिक उपयोग करते हैं तथा दूसरों से सलाह और सहायता मांगते हैं।
4. सकारात्मक अभिवृत्तिः सकारात्मक स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम सकारात्मक अभिवृत्ति के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। सकारात्मक अभिवृत्ति की ओर ले जाने वाले कुछ कारक इस प्रकार हैं वास्तविकता का सही प्रत्यक्षण, जीवन में उद्देश्य तथा उत्तरदायित्व की भावना का होना, दूसरे व्यक्तियों के विभिन्न दृष्टिकोणों के प्रति स्वीकृति एवं सहिष्णुता का होना तथा सफलता के लिए श्रेय एवं असफलता के लिए दोष भी स्वीकार करना । अंत में नए विचारों के लिए खुलापन तथा विनोदी स्वभाव, जिससे व्यक्ति स्वयं अपने ऊपर भी हंस सके, हमें ध्यान केन्द्रित करने तथा चीजों को सही परिप्रेक्ष्य में देख सकने में सहायता करते हैं।
5. सामाजिक अवलंब: ऐसे व्यक्तियों का अस्तित्व तथा उपलब्धता जिन पर हम विश्वास रख सकते हैं, जो यह स्वीकार करते हैं कि हमारी परवाह है, जिनके लिए हम मूल्यवान हैं तथा जो हमें प्यार करते हैं, यही सामाजिक अवलंब की परिभाषा है। कोई व्यक्ति जो यह विश्वास करता/करती है कि वह संप्रेषण और पारस्परिक आभार के एक सामाजिक जालक्रम का भाग है, वह सामाजिक अवलंब का अनुभव करता/करती है। प्रत्यक्षित अवलंब अर्थात् सामाजिक अवलंब की गुणवत्ता स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम से सकारात्मक रूप से संबद्ध है, जबकि सामाजिक जालक्रम अर्थात् सामाजिक अवलंब की मात्रा कुशल-क्षेम से संबद्ध नहीं है क्योंकि एक बड़े सामाजिक जालक्रम को बनाए रखना अत्यधिक समय लेने वाला तथा व्यक्ति पर मांगों का दाब डालने वाला होता है।
अध्ययन प्रदर्शित करते हैं कि वे महिलाएँ जो दबावपूर्ण जीवन घटनाओं का अनुभव करती हैं, उनका यदि कोई अंतरंग मित्र या तो गर्भावस्था के दौरान वे कम अवसादग्रस्त थीं तथा उन्हें कम चिकित्सा जटिलताओं का सामना करना पड़ा। सामाजिक अवलंब दबाव के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है। वे व्यक्ति जिन्हें परिवार तथा मित्रों से अधिक सामाजिक उपलब्ध होता है, दबाव का अनुभव होने पर, कम तनाव महसूस करते हैं तथा वे दबाव का सामना अधिक सफलतापूर्वक कर सकते हैं।
प्रश्न 8. प्रतिरक्षक तंत्र को दबाव कैसे प्रभावित करता हैं?
उत्तर: दबाव के कारण प्रतिरक्षक तंत्र की कार्यप्रणाली दुर्बल हो जाती है जिसके कारण बीमारी उत्पन्न हो सकती है। प्रतिरक्षा तंत्र शरीर के भीतर तथा बाहर से होने वाले हमलों से शरीर की रक्षा करता है। मनस्तांत्रिक प्रतिरक्षा विज्ञान (psychoneuroimmunology) मन, मस्तिष्क और प्रतिरक्षक तंत्र के बीच संबंधों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह प्रतिरक्षक तंत्र पर दबाव के प्रभाव का अध्ययन करता है। प्रतिरक्षा तंत्र में श्वेत रक्त कोशिकाएं या श्वेताणु बाह्य तत्वों( एंटीजन), जैसे वायरस को पहचान कर नष्ट करता है। इनके द्वारा रोगप्रतिकारको (एंटीबॉडीज) का निर्माण होता है। प्रतिरक्षक तंत्र में ही टी-कोशिकाएँ, बी-कोशिकाएँ तथा प्राकृतिक रूप से नष्ट करने वाली कोशिकाओं सहित कई प्रकार के श्वेताणु होते हैं। टी-कोशिकाएँ हमला करने वालों को नष्ट करती हैं तथा टी-सहायक कोशिकाएँ प्रतिरक्षात्मक क्रियाओं में वृद्धि करती हैं। दबाव के कारण प्राकृतिक रूप से नष्ट करने वाली कोशिकाओं की कोशिका विषाक्तता प्रभावित हो सकती है, जो प्रमुख संक्रमण तथा कैंसर से रक्षा में अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है।
प्रश्न 9. किसी ऐसी जीवन घटना का उदाहरण दीजिए जो दबावपूर्ण हो सकती है। उन तथ्यों पर प्रकाश डालिए जिनके कारण वह घटना अनुभव करने वाले व्यक्ति के लिए भिन्न-भिन्न मात्रा में दबाव उत्पन्न कर सकती हैं?
उत्तर: अग्निकांड, रेलगाड़ी दुर्घटना आदि जीवन की ऐसी घटनाएँ हैं जो दबावपूर्ण हो सकती हैं। व्यक्ति जिन दबावों का अनुभव करते हैं, वे तीव्रता, अवधि, जटिलता तथा भविष्यकथनीयता में भिन्न हो सकी है। किसी दबाव का परिणाम इस पर किसी विशिष्ट दबावपूर्ण अनुभव का स्थान क्या है। प्रायः वे दबाव, जो अधिक तीव्र दीर्घकालिक या पुराने, जटिल तथा अप्रत्याशित होते हैं, वे अधिक नकारात्मक परिणाम उत्पन्न करते हैं, बजाय उनके जो कम तीव्र, अल्पकालिक, कम जटिल तथा प्रत्याशित होते हैं। किसी व्यक्ति द्वारा दबाव का अनुभव करना उसके शरीरक्रियात्मक बल पर भी निर्भर करता है। अतः, वे व्यक्ति जिनका शारीरिक स्वास्थ्य खराब है तथा दुर्बल शारीरिक गठन के हैं, उन व्यक्तियों की अपेक्षा, जो अच्छे स्वास्थ्य तथा बलिष्ठ शारीरकि गठन वाले हैं, दबाव के समक्ष अधिक असुरक्षित होंगे।
कुछ मनोवैज्ञानिक विशेषताएँ; जैसे-मानसिक स्वास्थ्य, स्वभाव तथा स्व-संप्रत्यय भी दबाव के लिए प्रासंगिक हैं। वह सांस्कृतिक संदर्भ जिसमें हम जीवन-यापन करते हैं किसी भी घटना के अर्थ का निर्धारण करता है तथा यह भी निर्धारित करता है कि विभिन्न परिस्थितियों में किस प्रकार की अनुक्रियाएँ अपेक्षित होती हैं। अंततः दबाव के अनुभव, किसी व्यक्ति के पास उपलब्ध संसाधन; जैसे-धन, सामाजिक कौशल, सामना करने की शैली, अवलंब का नेटवर्क इत्यादि द्वारा निर्धारित होते हैं। ये सारे कारक निर्धारित करते हैं कि किसी विशिष्ट दबावपूर्ण परिस्थिति का मूल्यांकन कैसे होगा।
प्रश्न 10. दबाव का सामना करने वाली युक्तियों की अपनी जानकारी के आधार पर आप अपने मित्रों को दैनिक जीवन में दबाव का परिहार करने के लिए क्यों सुझाव देगें ?
उत्तर: मैं अपने मित्र से दबाव के परिहार करने के लिए विभिन्न युक्तियों को अपनाने के लिए कहूँगा। दबावपूर्ण स्थिति के संबंध में सूचनाएं एकत्रित करके उनके प्रति क्या-क्या वैकल्पिक क्रियाएँ हो सकती हैं तथा उनके क्या परिणाम हो सकते हैं उसका अध्ययन करना । फिर मन में विश्वास जगाना तथा आशा को बनाए रखना तथा अपने संवेगों पर नियंत्रण रखना भी आवश्यक होगा।
इनके अतिरिक्त दबावपूर्ण विचारों का सचेतन दमन तथा उसके स्थान पर आत्म-रक्षित विचारों के प्रतिस्थापन के लिए कहूँगा। उससे कहूँगा कि किसी कार्य को करने के लिए एक योजना बनाए तथा उस योजना के मुताबिक काम करके सफलता प्राप्त करें। इन सबके अतिरिक्त मैं उसे सकारात्मक स्वास्थ्य तथा कुशलक्षेम बनाए रखने वाले विभिन्न कारकों को भी बताऊँगा जैसे- संतुलित आहार लेना, व्यायाम करना, अपनी सोच को सकारात्मक रखना, अपनी अभिवृत्ति को सकारात्मक रखना आदि शामिल है।
प्रश्न 11. उन पर्यावरणीय कारकों का वर्णन कीजिए जो (अ) हमारे ऊपर सकारात्मक प्रभाव तथा (ब) नकारात्मक प्रभाव डालते है।
उत्तर: विभिन्न पर्यावरणी कारक हमारे ऊपर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं जबकि ऐसे भी पर्यावरणी कारक हैं जो हमारे ऊपर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। वायु प्रदूषण, भीड़, शोर, ग्रीष्मकाल की गर्मी, शीतकाल की सर्दी इत्यादि आदि पर्यावरणी दबाव हमारे परिवेश की वैसी दशाएँ होती हैं जो प्रायः अपरिहार्य होती हैं। इनका हमारे ऊपर नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। कुछ पर्यावरणी दबाव प्राकृतिक विपदाएँ तथा विपाती घटनाएँ हैं और उनका हमारे ऊपर लम्बे अंतराल तक नकारात्मक प्रभाव रहता है। आग, भूकंप, बाढ़, सूखा, तूफान, सुनामी आदि इनमें शामिल हैं।
प्रश्न 12. हम यह जानते हैं कि कुछ जीवन शैली के कारक दबाव उत्पन्न कर सकते हैं तथा कैंसर तथा हृदयरोग जैसी बीमारियों को भी जन्म दे सकते हैं फिर भी हम अपने व्यवहारों में परिवर्तन क्यों नहीं ला पाते? व्याख्या कीजिए।
उत्तर: दबाव के कारण अस्वास्थ्यकर जीवन शैली या स्वस्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले व्यवहार उत्पन्न हो सकते हैं। व्यक्ति के निर्णयों तथा व्यवहारों का वह समग्र प्रतिरूप जीवन शैली कहलाता है जो व्यक्ति के स्वास्थ्य तथा जीवन की गुणवत्ता को निर्धारित करता है। दबाव से ग्रस्त व्यक्ति रोगजनकों (Pathogens), जो कि शारीरिक रोग उत्पन्न करने के अभिकर्ता होते हैं, के समक्ष अधिक आरक्षित रहते हैं। दबाव से ग्रस्त व्यक्तियों की पौष्टिक भोजन की आदत कम होती है, वे सोते भी कम हैं, तथा वे स्वास्थ्य के लिए जोखिम वाले व्यवहार, जैसे-धूमपान तथा मद्य दुरुपयोग भी अधिक करते हैं।
स्वास्थ्य को क्षति पहुंचाने वाले ये व्यवहार धीरे-धीरे विकसित होते हैं तथा अस्थायी रूप से आनंददायक अनुभवों से संबद्ध होते हैं। अपितु हम उनके दीर्घकालिक नुकसानों की अनदेखी करते हैं तथा उनके कारण हमारे जीवन में उत्पन्न होने वाले जोखिम को कम महत्त्व देते हैं। स्वास्थ्यवर्धक व्यवहार जैसे- संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, पारिवारिक अवलंब आदि अच्छे स्वास्थ्य में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जीवन शैली से जुड़ाव जिसमें सम्मिलित होते हैं, संतुलित निम्न वसायुक्त आहार, नियमित व्यायाम और सकारात्मक चिंतन के साथ क्या करते हैं।
Hello My Dear, ये पोस्ट आपको कैसा लगा कृपया अवश्य बताइए और साथ में आपको क्या चाहिए वो बताइए ताकि मैं आपके लिए कुछ कर सकूँ धन्यवाद |