Header Ads Widget

New Post

6/recent/ticker-posts
Telegram Join Whatsapp Channel Whatsapp Follow

आप डूुबलिकेट वेबसाइट से बचे दुनिया का एकमात्र वेबसाइट यही है Bharati Bhawan और ये आपको पैसे पेमेंट करने को कभी नहीं बोलते है क्योंकि यहाँ सब के सब सामग्री फ्री में उपलब्ध कराया जाता है धन्यवाद !

अधिगम, Class 11 Psychology Chapter 6 in Hnidi, कक्षा 11 नोट्स, सभी प्रश्नों के उत्तर, कक्षा 11वीं के प्रश्न उत्तर

अधिगम, Class 11 Psychology Chapter 6 in Hnidi, कक्षा 11 नोट्स, सभी प्रश्नों के उत्तर, कक्षा 11वीं के प्रश्न उत्तर

  Chapter-6 अधिगम  

प्रश्न 1. अधिगम क्या है? इसकी प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर: प्रत्येक प्राणी के जीवन में सीखने की प्रक्रिया का विशेष स्थान होता है। यह जन्म से लेकर मृत्यु तक समय -समय पर कुछ न कुछ अवश्य सीखता रहता है। मानव जीवन में सीखने की प्रक्रिया पशुओं की अपेक्षा अधिक जटिल होती है। पशुओं की सीखने की प्रक्रिया पर्याप्त सीमित एवं सरल होती है, परन्तु मनुष्य द्वारा सीखे जाने वाले विषय एवं क्षेत्र अपेक्षाकृत अधिक विस्तृत एवं जटिल होते हैं। मनुष्य की सीखने की विधियाँ भी अनेक हैं। मानव शिशु के लिए सीखने के विषय अनन्त होते हैं, जिन्हें वह जन्म से ही कभी चेतन रूप में और कभी अचेतन रूप में सीखता रहता है। औपचारिक एवं अनौपचारिक माध्यमों से सीखने की यह प्रक्रिया जीवन-पर्यन्त चलती रहती है।
अधिगम अथवा सीखने का अर्थ एवं परिभाषा - मूल रूप से सीखना अथवा अधिगम प्राणी के व्यवहार में परिवर्तन होना है। जब एक बार बच्चे का हाथ आग से जलता है तो उसे दुखद अनुभव होता है और भविष्य में वह आग के पास हाथ ले जाने में भय का अनुभव करता है। उसके व्यवहार में होने वाला यह परिवर्तन ही 'सीखना' है। मानव जीवन में सीखने का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है। मानव द्वारा सीखी जाने वाली बातों में इतनी अधिक विभिन्नता है कि उन सब को एक सामान्य परिभाषा द्वारा व्यक्त करना संभव नहीं है ।
इस कठिनाई के होते हुए भी अनेक विद्वानों ने किसी न किसी रूप में सिखने की प्रक्रिया को परिभाषित करने के सफल प्रयास किए हैं।
 मुख्य विद्वानों द्वारा निर्धारित की गई सीखने की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं:
वुडवर्थ - वुडवर्थ ने सीखने की दो प्रकार की परिभाषाएँ प्रतिपादित की हैं। प्रथम परिभाषा के अनुसार "सीखना कोई नया कार्य करने में है बशर्ते की नई क्रिया पूष्टीकृत हो और बाद की क्रियाओं में पुनः प्रकट होती हो। "
वुडवर्थ की ही अन्य परिभाषा इस प्रकार है, "एक क्रिया सीखना कही जा सकती है जहाँ तक की वह व्यक्ति को अच्छे या बुरे किसी भी प्रकार से विकसित करती है और उसके अनुभवों तथा परिवेश को पहले से भिन्न बनाती है। "
वुडवर्थ की इन दोनों परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सीखने की प्रक्रिया का संबंध नई क्रियाओं से होता है तथा सीखने की प्रक्रिया से ग्रहण किए गए अनुभवों का प्रभाव व्यक्ति के जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी पड़ता है। सीखने की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप व्यक्ति के सामान्य व्यवहार में विभिन्न परिवर्तन तथा परिपक्क्ता देखी जा सकती है।
प्रश्न 2. प्राचीन अनुबंधन किस प्रकार साहचर्य द्वारा अधिगम को प्रदर्शित करता है?
उत्तर: प्राचीन अनुबंधन के निर्धारक: प्राचीन अनुबंधन में कितनी जल्दी से और कितनी मजबूती से अनुक्रिया प्राप्त होती है, यह अनेक कारकों पर निर्भर करता है। अनुबंधन अनुक्रिया के अधिगम को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:
1. उद्दीपकों के बीच समय संबंध: प्राचीन अनुबंधन प्रक्रियाँ प्रमुखतः चार प्रकार की होती हैं। इनका आधार अनुर्बोधत उद्दीपक और अननुबंधित उद्दीपक की शुरुवात के बीच समय संबंध पर आधारित होता है। प्रथम तीन प्रक्रियाँ अग्रवर्ती अनुबंधन की हैं तथा चौथी प्रक्रिया पच्चगामी अनुबंधन की है। इन प्रक्रियाओं की मूल प्रायोगिक व्यवस्थाएँ निम्न प्रकार हैं:
1. जब अनुपंधित तथा अनुबंधित उद्दीपक साथ-साथ प्रस्तुत किए जाते हैं तो इसे सहकालिक अनुबंधन कहा जाता है।
2. विलंबित अनुबंधन की प्रक्रिया में अनुबंधित उद्दीपक का प्रारंभ अननुबंधित उद्दीपक से पहले होता है। अनुबंधित उद्दीपक का अंत भी अननुबंधित उद्दीपक के पहले होता है।
3. अवशेष अनुबंधन की प्रक्रिया में अनुबंधित उद्दीपक का प्रारंभ और अंत अननुबंधित उद्दीपक से पहले होता है। लेकिन दोनों के बीच में कुछ समय अंतराल होता है। 
4. पच्चगामी अनुबंधन की प्रक्रिया में अनुबंधित उद्दीपक का प्रारंभ अनुबंधित उद्दीपक से पहले शुरू होता है। प्रायोगिक अध्ययनों से स्पष्ट हो चूका है कि विलंबित अनुबंधन की प्रक्रिया अनुबंधित अनुक्रिया प्राप्त करने की सर्वाधित प्रभावशाली विधि है। सहकालिक तथा अवशेष अनुबंधन की प्रक्रियों से भी अनुर्बोधत अनुक्रिया प्राप्त होती है, परंतु इन विधियों में विलंबित अनुबंधन प्रक्रिया की तुलना में अधिक प्रयास लगते हैं। उल्लेखनीय है कि पच्चगामी अनुबंधन प्रक्रिया से अनुक्रिया प्राप्त होने की संभावना बहुत कम होती है।
2. अननुबंधित उद्दीपकों के प्रकार : प्राचीन अनुबंधन के अध्ययनों में प्रयुक्त अननुबंधित उद्दीपक मूलतः दो प्रकार के होते हैं - प्रवृत्यात्मक तथा विमुखी प्रवृत्यात्मक अननुबंधित स्वतः सुगम्य अनुक्रियाएँ उत्पन्न करते हैं; जैसे खाना, पीना, दुलारना आदि। ये अनुक्रियाएँ संतोष और प्रसनता प्रदान करती हैं। दूसरी ओर, विमुखी अननुबंधित उद्दीपक जैसे शोर, कड़वा स्वाद, विद्युत आघात, पीड़ादायी सुई आदि दुखदायी और क्षतिकारक होते हैं। ये परिहार और पलायन की अनुक्रियाएँ उत्पन्न करते हैं। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि प्रवृत्यात्मक प्राचीन अनुबंधन अपेक्षाकृत धीमा होता है और इसकी प्राप्ति के लिए अधिक प्रयत्न करने पड़ते हैं जबकि विमुखी प्राचीन अनुबंधन दो-तीन प्रयासों में ही स्थापित हो जाता है। यह वस्तुतः विमुखी अननुबंधित उद्दीपक की तीव्रता पर निर्भर करता है।
3. अननुबंधित उद्दीपकों की तीव्रता : अननुबंधित उद्दीपकों की तीव्रता प्रवृत्यात्मक और विमुखी प्राचीन अनुबंधन दोनों की दिशा को प्रभावित करती है। अनुबंधित उद्दीपक जितना ही अधिक तीव्र होगा, अनुबंधित अनुक्रिया के अर्जन की गति उतनी ही अधिक होगी अर्थात अनुबंधित उद्दीपक जितना अधिक तीव्र होगा, उतने ही कम प्रयासों की जरुरत अनुबंधन की प्राप्ति के लिए पड़ेगी।
प्रश्न 3. क्रिया प्रसूत अनुबंधन की परिभाषा दीजिए। क्रिया प्रसूत अनुबंधन को प्रभावित करनेवाले कारकों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर: क्रिया प्रसूत अनुबंध की परिभाषा - "मानवों अथवा जानवरों द्वारा ऐच्छिक रूप से प्रकट किये जाने वाले व्यवहार या अनुक्रियाओं को जो उनके नियंत्रण में रहती है, क्रिया-प्रसूत माने जाते हैं।" या क्रिया प्रसूत नामक व्यवहार का अनुबंधन 'क्रिया प्रसूत' अनुबंधन कहा जाता है। इसमें प्राणी पर्यावरण में सक्रिय रहता है। क्रिया प्रसूत अनुबंधन का अन्वेषण सर्वप्रथम बी. एफ. स्किनर के द्वारा किया गया था जो पर्यावरण में सक्रियता प्राणियों की ऐच्छिक अनुक्रियाओं पर आधारित प्रयोगों द्वारा पूरा किया गया था। क्रिया प्रसूत अनुबंधन को प्रभावित करनेवाले कारक क्रिया प्रसूत अनुबंधन अधिगम का एक प्रमुख भेद (प्रकार) है जिसमें अनुक्रिया को प्रबलन द्वारा मजबूत बनाया जाता है।
कोई भी घटना या उद्दीपक एक प्रबलक हो सकती है जो किसी वांछित अनुक्रिया को घटित होने की संभावना को बढ़ाता है अर्थात् पूर्वगामी अनुक्रिया को बढ़ाती है। क्रिया प्रसूत अनुबंधन की हर प्रबलन के प्रकार (धनात्मक या ऋणात्मक) प्रबलित प्रयासों की संख्या, गुणवत्ता (उच्च या निम्न) प्रबलन अनुसूची (सतत अथवा आशिक) और प्रबलन में विलम्ब से प्रभावित होती है। अनुबंधित की जाने वाली अनुक्रिया अथवा व्यवहार का स्वरूप' को भी एक कारक का स्थान दिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अनुक्रिया के घटित होने और प्रबलन के बीच का अंतराल भी क्रिया प्रसूत अधिगम को प्रभावित करनेवाला कारक माना जाता है।
प्रबलन के प्रकार: प्रबलक वे उद्दीपक होते हैं जो पूर्व में घटित होने वाली अनुक्रियाओं की दर या संभावना को बढ़ा देते हैं। प्रबलन का विभाजन दो तरह से किया गया है. -
(क) धनात्मक प्रबलक और ऋणात्मक प्रबलक तथा
(ख) प्राथमिक प्रबलक और द्वितीयक प्रबलक
प्रत्येक प्रबलन अनुसूची (व्यवस्था) अनुबंधन की दिशा को अपने-अपने ढंग से बदलती है। अर्जन प्रयास के दिये जाने के क्रम के आधार पर पता चला है कि आंशिक प्रबलन, सतत प्रबलन की अपेक्षा में विलोप के प्रति अधिक विरोध प्रदर्शित करता है। विलंबित प्रबलन- किसी भी प्रबलन की प्रबलनकारी क्षमता विलम्ब के साथ-साथ घटती जाती है। अर्थात् प्रबलन प्रदान करने में बिलम्ब से निष्पादन का स्तर निकृष्ट हो जाता है। जैसे, विलम्ब से मिलने वाले बड़े पुरस्कार की तुलना में शीघ्रता से कार्य कारक के तुरंत बाद मिलने वाला छोटा पुरस्कार अधिक पसन्द किया जाता है।
व्यवहार का स्वरूप: अधिगम के द्वारा मिलने वाले परिणाम को अच्छा या बुरा, हितकारी या हानिकारक ध्वनि में व्यवहार का स्परूप प्रभावी होता है। अच्छा व्यवहार सुन्दर परिणाम का कारण बन जाता है। प्रबलन का बीच का अंतराल-क्रिया प्रसूत अधिगम को सफलतापूर्वक समाप्त किये जाने में प्रयास के रूप प्रबलन आरोपित करने के क्रम तथा दो प्रबलन के बीच की अवधि में विस्तार प्रबलन के प्रभाव को घटा-बढ़ा सकता है। धनात्मक प्रबलक सुखद परिणाम वाले होते हैं क्योंकि ये भोजन, पानी, धन, प्रतिष्ठा, सूचना-संग्रह आदि के माध्यम से विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने में समर्थ होते हैं। फलतः एक धनात्मक प्रबलन के मिलने के पहले जो अनुक्रिया घटित होती है, उसकी दर बढ़ जाती है।
ऋणात्मक प्रबलन, परिहार अनुक्रिया अथवा पलायन अनुक्रिया सिखाते हैं, जैसे जाड़े से बचने के लिए स्वेटर पहनना, आग के डर से भाग जाना। अतः खतरनांक उद्दीपकों से दूर भागने की प्रवृत्ति को जगाना क्योंकि यह ऋणात्मक प्रबलन से जुड़ा होता है। अर्थात् ऋणात्मक प्रबलक अपने हटने या समापन से पहले घटित होनेवाली अनुक्रिया की दर को बढ़ा देता है। प्राथमिक प्रबलक जैविक रूप से महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह प्राणी के जीवन का निर्धारक होता है।
द्वितीयक प्रबलक पर्यावरण और प्राणी के बीच संबंध बनाकर प्रबलक की विशेषताओं को स्पष्ट कर देता है। इसके अन्तर्गत धन, प्रशंसा और श्रेणियों का उपयोग जैसी स्वाभाविक वृत्ति को बढ़ावा मिलता है। प्रबलन की संख्या अथवा आवृत्ति प्रबलन की संख्या अथवा आवृत्ति से उन प्रयासों का बोध होता है जो उद्दीपन की अनुक्रियता को प्रभावित करता है। उचित परिणाम में भोजन-पानी की उपलब्धता की उपस्थिति में बार-बार का प्रयास एक परिणामी निष्कर्ष को पान में समर्थ हो सकता है। अतः क्रिया-प्रसूत की गति आवृत्ति के बढ़ने से समानुपाती तौर पर बढ़ जाती है।
प्रबलन की गुणवत्ता: आवृत्ति के बढ़ने से समानुपाती तौर पर बढ़ जाती है। क्रिया-प्रसूत अथवा नैमेत्तिक अनुबंधन की गति सामान्यत: जिस अनुपात में उसकी गुणवत्ता बढ़ती है।
प्रबलन अनुसूचियों: अनुबंधन से सम्बन्धित प्रयासों के क्रम में प्रबलन उपलब्ध कराने की व्यवस्था के रूप में अनुबंधन की दिशा प्रभावित होती है।
प्रश्न 4. एक विकसित होते हुए शिशु के लिए एक अच्छा भूमिका प्रतिरूप अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है। अधिगम के उस प्रकार पर विचार-विमर्श कीजिए जो इसका समर्थन करता है।
उत्तर: प्रेक्षणात्मक अधिगम दूसरों का प्रेक्षण करने से घटित होता है। अधिगम के इस रूप को पहले अनुकरण कहा जाता था। बंदूरा और उनके सहयोगियों ने विभिन्न प्रायोगिक अध्ययनों में प्रेक्षणात्मक अधिगम की विस्तृत खोजबीन की। इस प्रकार के अधिगम में व्यक्ति सामाजिक व्यवहारों को सीखना है, इसलिए इसे कभी-कभी सामाजिक अधिगम भी कहा जाता है। मानव के समक्ष ऐसी अनेक सामाजिक स्थितियों में हम दूसरे व्यक्तिओं के व्यवहारों का प्रेक्षण करते हैं और उनके समान व्यवहार करने लगते हैं। इस प्रकार के अधिगम को मॉडलिंग कहा जाता है। छोटे शिशु घर में तथा सामाजिक उत्सवों एवं समारोहों में प्रौढ़ व्यक्तियों के अनेक प्रकार के
व्यवहारों का ध्यान से प्रेक्षण करते हैं; इसके बाद अपने खेल में उन्हें दुहराते हैं। जैसे-छोटे बच्चे विवाह समारोह, जन्मदिन, प्रीतिभोज, चोर और सिपाही, घर-रखाव आदि के खेल खेलते हैं। वे अपने खेलों में ऐसा सब करते हैं जैसा वे समाज में और टेलीविजन पर देखते हैं तथा पुस्तकों में पढ़ते हैं। बच्चे अधिकांश सामाजिक व्यवहार प्रौढ़ों द्वारा किया गया प्रेक्षण तथा उनकी नकल करके सीखते हैं। कपड़े पहनना, बालों को सँवारने की शैली और समाज में किस प्रकार रहा जाए यह सभी दूसरों को देखकर सीखा जाता है। विभिन्न अध्ययनों से यह भी ज्ञात हुआ है कि बच्चों में व्यक्तित्व का विकास भी प्रेक्षणात्मक अधिगम के द्वारा ही होता है। आक्रामकता, परोपकार, आदर, नम्रता, परिश्रम, आलस्य आदि गुण भी अधिगम की इसी विधि द्वारा अर्जित किए जाते हैं।
प्रश्न 5. वाचिक अधिगम के अध्ययन में प्रयुक्त विधियों की व्याख्या कीजिए। या, वाचिक अधिगम के अध्ययन में प्रयुक्त विधि का संक्षेप में वर्णन करें ।
उत्तर: वाचिक अधिगम के अध्ययन में प्रयुक्त विधियाँ
1. युग्मित सहचर अधिगम- यह विधि उद्दीपक-उद्दीपक अनुबंधन और उद्दीपक-अनुक्रिया अधिगम के समान है। इस विधि का उपयोग मातृभाषा के शब्दों के किसी विदेशी भाषा के पर्याय सीखने में किया जाता है। पहले युग्मित सहचरों की एक सूची तैयार की जाती है। युग्मों के पहले शब्द का उपयोग उद्दीपक के रूप में किया जाता है और दूसरे शब्द का अनुक्रिया के रूप में। प्रत्येक युग्म के शब्द एक ही भाषा से अथवा दो भिन्न भाषाओं से हो सकते हैं। ऐसे शब्दों की एक 
युग्मों के पहले शब्द ( उद्दीपक शब्द) निरर्थक शब्दांश (व्यंजन-स्वर-व्यंजन) हैं और दूसरे शब्द अंग्रेजी संज्ञाएँ (अनुक्रिया शब्द) हैं। अधिगमकर्ता को पहले दोनों उद्दीपक-अनुक्रिया युग्मों को एक साथ दिखाया जाता है और उसे अनुक्रिया शब्द को प्रत्येक उद्दीपक शब्द को प्रस्तुत करने के पश्चात् पुनःस्मरण करने के निर्देश दिए जाते हैं। इसके बाद सीखने का प्रयास प्रारंभ होता है। एक एक करके उद्दीपक शब्द दिखाए जाते हैं और प्रतिभागी सही -
2.अनुक्रिया शब्द देने का प्रयास करता है। असफल होने पर उसे अनुक्रिया शब्द दिखाया जाता है। पहले प्रयास में सारे उद्दीपक शब्द दिखाए जाते हैं। प्रयासों का यह क्रम तब तक जारी रहता है, जब तक कि प्रतिभागी अनुक्रिया शब्दों को बिना किसी त्रुटी के बता नहीं देता है। इस मानदंड तक पहुँचने के लिए प्रयासों की कुल संख्या युग्मित सहचर अधिगम की मापक बन जाती है।
3. क्रमिक अधिगम- वाचिक अधिगम की इस विधि का उपयोग यह जानने के लिए किया जाता है कि प्रतिभागी किसी शाब्दिक एकांशों की सूची को किस प्रकार सीखता है और सीखने में कौन-कौन सी प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं। सबसे पहले शब्दों की एक सूची तैयार कर ली जाती है। सूची में निरर्थक शब्दांश, अधिक परिचित शब्द, कम परिचित शब्द, आपस में संबंधित शब्द आदि हो सकते हैं। प्रतिभागी को सारी सूची प्रस्तुत की जाती है और उनको निर्देश दिया जाता है कि वह एकांशों को उसी क्रम में बताए जिस क्रम में वे सूची में हैं। पहले प्रयास में, सूची का सबसे पहला एकांश दिखाया जाता है और प्रतिभागी को दूसरा एकांश बताना होता है। यदि वह निर्धारित समय में बताने में असफल रहता है, तो प्रयोगकर्ता उसे दूसरा एकांश प्रस्तुत करता है। अब यह एकांश उद्दीपक बन जाता है और प्रतिभागी को तीसरा एकांश अर्थात अनुक्रिया शब्द बताना होता है। अगर वह असफल होता है तो प्रयोगकर्ता उसे सही एकांश बता देता है जो चौथे एकांश के लिए उद्दीपक बन जाता है। इस विधि को क्रमिक पूर्वाभास विधि कहा जाता है। अधिगम के प्रयास तब तक चलते रहते हैं जब तक कि प्रतिभागी सभी एकांशों का सही-सही क्रमिक पूर्वाभास न कर ले। 
4. मुक्त पुनः स्मरण - इस विधि में प्रतिभागियों को शब्दों की एक सूची प्रस्तुत की जाती है जिसे वे पढ़ते हैं और बोलते हैं। प्रत्येक शब्द एक निश्चित समय तक ही दिखाया जाता है। इसके बाद प्रतिभागियों को शब्दों को किसी भी क्रम में पुनः स्मरण करने के निर्देश दिए जाते हैं। सूची में शब्द आपस में संबंधित या असंबंधित हो सकते हैं। सूची में दस से ज्यादा शब्द शामिल किए जाते हैं। शब्दों के प्रस्तुतीकरण का क्रम एक प्रयास से दूसरे प्रयास में भिन्न होता है।
इस विधि का उपयोग यह जानने के लिए किया जाता है कि प्रतिभागी शब्दों को स्मृति में संचित करने के लिए किस तरह से संगठित करता है। अध्ययनों से पता चलता है कि सूची के आरंभ और अंत में स्थित शब्दों का पुनः स्मरण, सूची के बीच में स्थित शब्दों की तुलना में अधिक सरल होता है।
प्रश्न 6. कौशल से आप क्या समझते हैं? किसी कौशल के अधिगम के कौन-कौन से चरण होते हैं?
उत्तर: 1. सामान्यीकरण तथा विभेदन की प्रक्रियाएँ हर प्रकार के अधिगम में दिखाई देती हैं। मान में बच्चा जार को ढूँढ लेता है और मिठाई प्राप्त कर लेता है। यह भी सामान्यीकरण का एक लीजिए, एक प्राणी को अनुबंधित उद्दीपक (प्रकाश या घंटी की ध्वनि) प्रस्तुत करने पर अनुबंधित अनुक्रिया (लार स्रराव या कोई अन्य प्रतिवर्ती अनुक्रिया) प्राप्त करने के लिए अनुबंधित किया गया है। अनुबंधन स्थापित हो जाने के पश्चात जब अनुबंधित उद्दीपक के समान कोई दूसरा उद्दीपक (जैसे टेलीफोन का बजना) प्रस्तुत किया जाए तो प्राणी इसके प्रति अनुबंधित अनुक्रिया करता है। समान उद्दीपकों के प्रति समान अनुक्रिया करने के इस गोचर को सामान्यीकरण कहते हैं। मान लीजिए कि एक बच्चा एक खास आकार और आकृति वाले उस जार की जगह को जान गया है, जिसमें मिठाईयाँ रखी जाती हैं। जब माँ पास में नहीं रहती है तो भी बच्चा जार को खोज लेता है और मिठाई प्राप्त कर लेता है। यह एक अधिगत क्रियाप्रसूत है। अब मिठाईयाँ एक दूसरे जार में रख दी गईं, जो एक भिन्न आकार तथा आकृति का है और रसोईघर में दूसरी जगह रखा हुआ है। माँ की अनुपस्थिति उदाहरण है। जब एक सीखी हुई अनुक्रिया की एक नए उद्दीपक से प्राप्ति होती है तो उसे सामान्यीकरण कहते हैं।
2. एक दूसरी प्रक्रिया जो सामान्यीकरण की पूरक है, विभेदन कहलाती है। सामान्यीकरण समानता के कारण होता है, जबकि विभेदक भिन्नता के प्रति अनुक्रिया होती है।
उदाहरणार्थ, मान लीजिए, एक बच्चा काले कपड़े पहने व बड़ी मूंछोंवाले व्यक्ति से डरने की अनुक्रिया से अनुबंधित है। बाद में जब वह एक नए व्यक्ति से मिलता है, जो काले कपड़ों में है और दाढ़ी रखे हुए है तो बच्चा भयभीत हो जाता है।
3. बच्चे का भय सामान्यीकृत है। यह एक दूसरे अपरिचित से मिलता है जो धूसर कपड़ों में है और दाढ़ी मूंछ रहित है तो बच्चा नहीं डरता है। यह विभेदन का एक उदाहरण है।
सामान्यीकरण होने का तात्पर्य विभेदन की विफलता है। विभेदन की अनुक्रिया प्राणी की विभेदक क्षमता या विभेदन के अधिगम पर निर्भर करती है।
प्रश्न 7. सामान्यीकरण तथा विभेदन के बीच आप किस तरह अंतर करेंगे?
उत्तर: सामान्यीकरण तथा विभेदन की प्रक्रियाएँ हर प्रकार के अधिगम में दिखाई देती हैं। मान लीजिए, एक प्राणी को अनुबंधित उद्दीपक (प्रकाश या घंटी की ध्वनि) प्रस्तुत करने पर अनुबंधित अनुक्रिया (लार स्रराव या कोई अन्य प्रतिवर्ती अनुक्रिया) प्राप्त करने के लिए अनुबंधित किया गया है। अनुबंधन स्थापित हो जाने के पश्चात जब अनुबंधित उद्दीपक के समान कोई दूसरा उद्दीपक (जैसेटेलीफोन का बजना) प्रस्तुत किया जाए तो प्राणी इसके प्रति अनुबंधित अनुक्रिया करता है। समान उद्दीपकों के प्रति समान अनुक्रिया करने के इस गोचर को सामान्यीकरण कहते हैं। मान लीजिए कि एक बच्चा एक खास आकार और आकृति वाले उस जार की जगह को जान गया है, जिसमें मिठाईयाँ रखी जाती हैं। जब माँ पास में नहीं रहती है तो भी बच्चा जार को खोज लेता है और मिठाई प्राप्त कर लेता है। यह एक अधिगत क्रियाप्रसूत है। अब मिठाईयाँ एक दूसरे जार में रख दी गईं, जो एक भिन्न आकार तथा आकृति का है और रसोईघर में दूसरी जगह रखा हुआ है। माँ की अनुपस्थिति में बच्चा जार को ढूँढ लेता है और मिठाई प्राप्त कर लेता है। यह भी सामान्यीकरण का एक उदाहरण है। जब एक सीखी हुई अनुक्रिया की एक नए उद्दीपक से प्राप्ति होती है तो उसे सामान्यीकरण कहते हैं।
एक दूसरी प्रक्रिया जो सामान्यीकरण की पूरक है, विभेदन कहलाती है। सामान्यीकरण समानता के कारण होता है, जबकि विभेदक भिन्नता के प्रति अनुक्रिया होती है। उदाहरणार्थ, मान लीजिए, एक बच्चा काले कपड़े पहने व बड़ी मूंछोंवाले व्यक्ति से डरने की अनुक्रिया से अनुबंधित है। बाद में जब वह एक नए व्यक्ति से मिलता है, जो काले कपड़ों में है और दाढ़ी रखे हुए है तो बच्चा भयभीत हो जाता है।
बच्चे का भय सामान्यीकृत है। यह एक दूसरे अपरिचित से मिलता है जो धूसर कपड़ों में है और दाढ़ी मूंछ रहित है तो बच्चा नहीं डरता है। यह विभेदन का एक उदाहरण है। सामान्यीकरण होने का तात्पर्य विभेदन की विफलता है। विभेदन की अनुक्रिया प्राणी की विभेदक क्षमता या विभेदन के अधिगम पर निर्भर करती है।
प्रश्न 8. अधिगम अंतरण कैसे घटित होता है?
उत्तर: अधिगम अंतरण को प्रशिक्षण अंतरण भी माना जाता है। इसके अंतर्गत नए अधिगम पर पूर्व अधिनियम के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। अधिगम अंतरण पर आधारित एक रोचक प्रयोग दो भाषाओं (माना अंग्रेजी और फ्रांसीसी) के सीखने के लिए दो समूहों का चयन किया जाता है। प्रतिभागियों के एक समूह को प्रायोगिक दशा के लिए तथा दूसरे समूह को नियंत्रित दशा के लिए निर्धारित कर लिया जाता है। प्रायोगिक दशा वाले प्रतिभागियों को एक वर्ष का समय अंग्रेजी सीखने के लिए दिया जा रहा है जबकि दूसरे नियंत्रक समूह वाले प्रतिभागियों को फ्रांसीसी भाषा सीखने का अवसर दिया जाता है।
एक वर्ष की समाप्ति पर दोनों समूहों के द्वारा अर्जित भाषा-ज्ञान की जाँच की जाती है। एक वर्ष के बाद दूसरे वर्ष में प्रायोगिक समूह को फ्रांसीसी तथा नियंत्रक समूह को अंग्रेजी भाषा सीखने को कहा जाता है। दो वर्ष बीत जाने पर दोनों समूहों को दोनों विषयों के लिए समान समय उपलब्ध होने की बात मानी जाती है। दोनों समूहों को पुनः लब्धांक प्राप्त करना होता है। लब्धांक के आधार पर तया किया जाता है कि किस भाषा को सीखना सरल या कठिन है। अतः उद्दीपकों और अनुक्रियाओं में परस्पर अन्तर लाकर अधिगम की विशिष्टता को पहचानना अधिगम अंतरण के घटित होने का आधार होता है। इसमें समय, स्थिति, विषयों के क्रम, अनुभव एवं सुविधा में अन्तर लाकर सीखने या प्रशिक्षण प्राप्त करने का अवसर जुटाता है।
प्रश्न 9. अधिगम के लिए अभिप्रेरणा का होना क्यों अनिवार्य है?
उत्तर: जीवन-रक्षा की आवश्यकता सभी जीवित प्राणियों में होती है और मनुष्यों में जीवन रक्षा के साथ -साथ संवृद्धि की भी आवश्यकता होती है। अभिप्रेरणा से आशय प्राणी की एक ऐसी मानसिक तथा शारीरिक अवस्था से है जो प्राणी को उसकी वर्तमान आवश्यकता की पूर्ति करने के लिए प्रेरित करती है। दूसरे शब्दों में, अभिप्रेरणा प्राणी को लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रबलता से काम करने के दो भाषाओं (माना अंग्रेजी और फ्रांसीसी) के सीखने के लिए दो समूहों का चयन किया जाता है। प्रतिभागियों के एक समूह को प्रायोगिक दशा के लिए तथा दूसरे समूह को नियंत्रित दशा के लिए निर्धारित कर लिया जाता है। प्रायोगिक दशा वाले प्रतिभागियों को एक वर्ष का समय अंग्रेजी सीखने के लिए दिया जा रहा है जबकि दूसरे नियंत्रक समूह वाले प्रतिभागियों को फ्रांसीसी भाषा सीखने का अवसर दिया जाता है।
एक वर्ष की समाप्ति पर दोनों समूहों के द्वारा अर्जित भाषा-ज्ञान की जाँच की जाती है। एक वर्ष के बाद दूसरे वर्ष में प्रायोगिक समूह को फ्रांसीसी तथा नियंत्रक समूह को अंग्रेजी भाषा सीखने को कहा जाता है। दो वर्ष बीत जाने पर दोनों समूहों को दोनों विषयों के लिए समान समय उपलब्ध होने की बात मानी जाती है। दोनों समूहों को पुनः लब्धांक प्राप्त करना होता है। लब्धांक के आधार पर तया किया जाता है कि किस भाषा को सीखना सरल या कठिन है। अतः उद्दीपकों और अनुक्रियाओं में परस्पर अन्तर लाकर अधिगम की विशिष्टता को पहचानना अधिगम अंतरण के घटित होने का आधार होता है। इसमें समय, स्थिति, विषयों के क्रम, अनुभव एवं सुविधा में अन्तर लाकर सीखने या प्रशिक्षण प्राप्त करने का अवसर जुटाता है।
प्रश्न 9. अधिगम के लिए अभिप्रेरणा का होना क्यों अनिवार्य है?
उत्तर: जीवन-रक्षा की आवश्यकता सभी जीवित प्राणियों में होती है और मनुष्यों में जीवन रक्षा के साथ -साथ संवृद्धि की भी आवश्यकता होती है। अभिप्रेरणा से आशय प्राणी की एक ऐसी मानसिक तथा शारीरिक अवस्था से है जो प्राणी को उसकी वर्तमान आवश्यकता की पूर्ति करने के लिए प्रेरित करती है। दूसरे शब्दों में, अभिप्रेरणा प्राणी को लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रबलता से काम करने के लिए ऊर्जा प्रदान करती है। ऐसे अभिप्रेरित व्यवहार तब तक होते रहते हैं जब तक की लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए और आवश्यकता की पूर्ति न हो जाए। अधिगम के लिए प्राणी का अभिप्रेरित होना अनिर्वाय है। जब घर में माँ नहीं होती तो बच्चे रसोईघर में घुसकर खाने-पीने की चीजें क्यों खोजतें हैं? चूँकि मिठाई खाने की उनकी वर्तमान में आवश्यकता है और इस आवश्यकता की पूर्ति हेतु वे उन बर्तनों को टटोलते हैं जिनमें मिठाई रखी जाती है। खोजने की इस क्रिया से बच्चे मिठाई के बर्तन को पाना सीख लेते हैं। जब किसी बॉक्स में किसी भूखे चूहे को बंद कर दिया जाता है तो भोजन की आवश्यकता के कारण वह बॉक्स के चारों ओर घूम-घूमकर भोजन की तलाश करता है। इसी कार्य को करने में संयोग से उससे बॉक्स की दीवार में बना एक लीवर दब जाता है और बॉक्स में भोजन का एक टुकड़ा गिर जाता है। भूखा चूहा उसे खा लेता है। बार-बार यही क्रिया दुहराते रहने से चूहा यह सीख जाता है कि लीवर दबाने से भोजन मिलता है।
प्रश्न 10. अधिगम के लिए तत्परता के विचार का क्या अर्थ है ?
उत्तर: तत्परता का साधारण अर्थ इच्छाशक्ति अथवा किसी काम के प्रति अनुराग का प्रदर्शन है। यदि कोई व्यक्ति किसी काम को पूरा कर लेने पर संतोष व्यक्त करता है अथवा अवसर पाकर काम को पूरा करने हेतु तैयार हो जाता है ता माना जाता है कि उस व्यक्ति के द्वारा तत्परता दिखाई जा रही है। प्राणियों की विभिन्न प्रजातियों में अपनी संवेदना क्षमताओं तथा अनुक्रिया करने के लिए परम लक्ष्य होता है वही दूसरों के लिए निरर्थक माना जाता है। प्राणियों के लिए उद्दीपक-उद्दीपक (S-S) अथवा उद्दीपक-अनुक्रिया (S-R) का मान साहचर्य को स्थापित करने की दृष्टि से अलग-अलग होती है।
रुचि, क्षमता, लगन, दक्षता, कुशलता आदि में से प्रत्येक मामले में सभी प्राणियों की दशा अलग-अलग होती है। सीखने की दृष्टि से यदि तत्परता पर ध्यान देने की बात चले तो स्पष्ट होगा कि सीखे जानेवाले वैसे कार्य या विषय तथा अवश्यकता या रुचि के प्रतिकूल कार्य या विषय के बीच व्यवहार में भारी अन्तर प्रकट होता है। इच्छा शक्ति और लक्ष्य के अनुकूल कार्य सरलता से अच्छे परिणाम के साथ पूरे किये जाते हैं जबकि लक्ष्यहीन कार्य कठिनाई से एवं अनियमित ढंग से किसी तरह पूर्णता तक पहुँचा दिये जाते हैं।
ईंट ढोने को यदि उदाहरण माना जाय तो यदि तत्परता के साथ ईंट लाया जाएगा तो वह पूर्व आकार में रहेंगे तथा सजाकर रखे जाएँगे लेकिन यदि तत्परता का अभाव होगा तो टूटी-फूटी ईंटों का एक बेडौल ढेर देखने को मिलेगा। दोनों हालतों में पूर्व स्थान से ईंट को हटाने का कार्य पूरा कर लिया गया प्रतीत होता है। अतः तत्परता किसी व्यक्ति की कार्यकुशलता को बढ़ाती भी है तथा अच्छे परिणाम को पाने के लिए प्रेरित भी करती है। तत्परता के साथ किसी विषय को सीखना भी सरल हो जाता है तथा तत्परता के साथ सीखा गया विषय स्थायी भी होता है।
प्रश्न 11. संज्ञानात्मक अधिगम के विभिन्न रूपों की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर: संज्ञानात्मक अधिगम को मनोवैज्ञानिक अधिगम का मूल माना जाता है। इसमें कार्यकलापों की जगह ज्ञान में परिवर्तन लाने का प्रयास शामिल है। संज्ञानात्मक अधिगम को दो विभिन्न रूपों में बाँटकर अध्ययन किया जाता है
(क) अंतर्दृष्टि अधिगम और अंतर्दृष्टि अधिगम:
(क) अंतर्दृष्टि अधिगम और अंतर्दृष्टि अधिगम- अंतर्दृष्टि से ऐसी प्रक्रिया का बोध होता है जिसके द्वारा किसी समस्या का समाधान एकाएक प्रकट हो जाता है। अंतर्दृष्टि अधिगम की व्याख्या अनुबंधन के आधार पर सरलता से नहीं की जा सकती है किन्तु इसका सामान्योकरण अन्य मिलती हुई समस्याओं की परिस्थितियों में हो सकता है। अंतर्दृष्टि अधिगम में अचानक समाधान प्राप्त होना अनिवार्य है। इसे सत्य प्रमाणित करने के लिए कोहलर ने चिम्पैंजी को माध्यम बनाकर प्रयोग को पूरा किया।
उन्होंने एक भूखे चिम्पैंजी को एक बड़े बंद खेल क्षेत्र में डाल दिया। वह भूखा था लेकिन भोज्य पदार्थ उसकी पहुँच से बाहर रख दी गई थी। बन्द क्षेत्र में बक्सा तथा छड़ी रख दिया गया। भूखा होने के कारण चिम्पैंजी भोज्य पदार्थ प्राप्त करने के लिए प्रयास करने लगा। शीघ्र ही चिम्पैंजी ने बक्सा तथा छड़ी अपने अधीन कर लिया।
वह बक्सा पर चढ़कर छड़ी की सहायता से बार-बार रोटी गिराने का प्रयास करने लगा। चिम्पैंजी अब बक्सा पर चढ़कर छड़ी से रोटी गिराना सीख चुका था। चिम्पैंजी, अब बन्द किये जाने पर तुरंत रोटी को गिरा कर खा लेता था। किसी प्रयोग से परिणाम की प्राप्ति नहीं होने पर अचानक निष्कर्ष को पाकर प्रयोगकर्ता काफी खुश होता है। सिंचाई के लिए परेशान किसान हठात् की वर्षा पाकर खुश हो जाता है। संज्ञानात्मक अधिगम में साधन और साध्य के बीच एक संबंध का होना प्रतीत होता है।
(ख) अव्यक्त अधिगम- अव्यक्त अधिगम की प्रमुख विशेषता के रूप में माना जाता है कि इसमें एक नया व्यवहार सीख लिया जाता है, किन्तु व्यवहार दर्शाया नहीं जाता है। अपवर्त्य अधिगम से संबंधित एक प्रयोग टॉलमैन के द्वारा किया गया। टॉलमैन ने चूहों के दो समूहों को भूल-भुलैया नामक कक्ष में छोड़ दिया। चूहों के एक समूह को भोज्य पदार्थ की स्थिति ज्ञात थी लेकिन वहाँ तक पहुँचने का रास्ता अज्ञात था। भोजन की लालच में चूहा बहुत भटका। कई अंधपथों में आगे बढ़कर लौट आया।
लेकिन अंत में वह भोज्य पदार्थ तक पहुँच ही गया। बार-बार किये गये प्रयास का फल उसे प्राप्त हो गया। अब वह आसानी से कम समय में द्वार से भोजन तक का रास्ता बिना भटके दौड़कर पूरा कर लेता है। दूसरा चूहा कुछ नहीं जानता था फिर भी वह पहले चूहा की तरह रास्ता तय करने लगा। प्रस्तुत प्रयोग के माध्यम से टॉलमैन अपनी खोज का एक निष्कर्ष निकाला जिसके अनुसार चूहों ने अपने अव्यक्त अधिगम के सहारे भोज्य पदार्थ तक पहुँचने का मार्ग चुन लिया। वह किस प्रकार रास्ता का सही अंदाज लगाया यह अव्यक्त ही रहा। अर्थात् अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए उन्हें, जिन दिशाओं और स्थानिक अवस्थितियों की आवश्यकता भी उनका मानस चित्रण किया।
प्रश्न 12. अधिगम अशक्तता वाले छात्रों की पहचान हम कैसे करते हैं?
उत्तर: अधिगम अशक्तता वाले छात्रों की पहचान हम निम्नलिखित लक्षणों के आधार पर करते हैं-
1. अधिगम अशक्तता वाले छात्रों को अक्षरों, शब्दों तथा वाक्यांशों को लिखने-पढ़ने में कठिनाई होती है।
2. इस श्रेणी के बच्चे सीखने के लिए कोई मनपसन्द योजना अथवा तरीका खोजने में लगभग अक्षम होते हैं।
3. ये किसी एक विषय पर देर तक ध्यान केन्द्रित नहीं रख पाते हैं।
4. ये विभिन्न आवश्यक सामानों को अनवरत रूप से इधर-उधर हटाते रहते हैं।
5. इन्हें पेशीय समन्वय तथा हस्तनिपुणता प्रकट करने में कठिनाई होती है।
6. ये बच्चे काम करने के मौखिक अनुदेशों को समझने और अनुसरण करने में असफल होते हैं।
7. सामाजिक संबंधों का मूल्यांकन करने में इनसे भूल हो जाया करती है। 8. भाषा सीखने एवं समझने में भी ये अक्षम होते हैं।
9. इनमें प्रात्यक्षिक विकार (दृष्टि, श्रवण, स्पर्श, ध्वनि, गति) भी पाए जाते हैं।
10. इनमें पठन वैकल्प के लक्षण पाए जाते हैं। अर्थात् ये शब्दों को वाक्यों के रूप में संगठित करने में अपेक्षाकृत अक्षम होते हैं।
अतः अस्वाभाविक स्वभाव तथा शारीरिक गठन की तुलना में मानसिक दुर्बलता का पाया जाना, अधिगम, अशक्तता वाले छात्रों की पहचान है।

Post a Comment

0 Comments