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Bharati Bhawan Class 9th Physics Chapter 6 | Sound Long Short Questions Answer | भारती भवन कक्षा 9वीं भौतिकी अध्याय 6 | ध्वनी दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Bharati Bhawan Class 9th Physics Chapter 6  Sound Short Questions Answer  भारती भवन कक्षा 9वीं भौतिकी अध्याय 6  ध्वनी दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. ध्वनि क्या है और यह कैसे उत्पन्न होती है ? 
उत्तर- ध्वनि ऊर्जा का एक प्रकार है जो सामान्यतः कानों में सुनने की अनुभूति उत्पन्न करता है। ध्वनि विभिन्न प्रकार से उत्पन्न की जा सकती है। ये हैं—
(a) प्रहार द्वारा- उदाहरण के लिये यदि हम एक स्टेनलेस स्टील की चम्मच से एक धातु की प्लेट पर प्रहार करें और फिर धीरे से प्लेट को छुयें, तो हम उसमें हो रहा कंपन महसूस कर सकते हैं और ध्वनि भी सुन सकते हैं।
(b) खींचने द्वारा – जब हम गिटार, सितार या किसी अन्य तंत्री वाद्य के तार खींचते हैं तो उन तारों में कंपन उत्पन्न होता है, जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है। 
(c) फूंकने द्वारा – जब हम मुँह से सीटी बजाते हैं या बाँसुरी बजाते हैं तो वायु स्तंभ में उत्पन्न कंपन से ध्वनि उत्पन्न होती है।
(d) रगड़ द्वारा- जब हम अपनी हथेलियाँ रगड़ते हैं या फर्श पर रखे टेबुल को घसीटते हैं तो ध्वनि उत्पन्न होती है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि कोई वस्तु ध्वनि तभी उत्पन्न करती है जब उसमें कंपन होता है। 
2. एक स्वच्छ चित्र की सहायता से बतायें कि ध्वनि के स्रोत के निकट की वायु में संपीडन (compression) तथा विरलन (rarefaction) कैसे उत्पन्न होते हैं ?
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उत्तर- ध्वनि सबसे अधिक हवा के माध्यम में गमन करती है। वह कपित वस्तु जब आगे बढ़ती है तो वो अपने सामने वाली हवा पर बल लगाकर उसे संपीडित करती है जिससे कि उच्च दबाव का क्षेत्र बनता है। यह क्षेत्र संपीडन (C) कहलाता है (चित्र देखें)। यह क्षेत्र कपित वस्तु से दूर जाने लगता है तभी कपित वस्तु पीछे की ओर हटती है जिससे निम्न दबाव का क्षेत्र बनता है। यह क्षेत्र विरलन (R) कहलाता है (चित्र देखें)। जैसे-जैसे वस्तु कपित होता है, अर्थात तीव्रता से आगे-पीछे हिलती है, वैसे-वैसे हवा के संपीडनों और विरलनों की श्रृंखला बनती चली जाती है। इससे हवा में ध्वनि का संचरण होता है।
3. ध्वनि की प्रबलता से आप क्या समझते हैं ? यह किन-किन कारकों (factors) पर निर्भर करती है ?
उत्तर- किसी ध्वनि की प्रबलता उसकी तीव्रता है। यह उसके आयाम पर निर्भर करती है। ऐसी ध्वनि को जिसमें अधिक ऊर्जा होती है, उसकी प्रबलता कहते हैं।
कारक- यह निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है-
(i) आयाम- ध्वनि की प्रबलता ध्वनि के आयाम से जानी जा सकती है। 
(ii) ऊर्जा- ध्वनि ऊर्जा से संबंधित है, क्योंकि प्रबल ध्वनि में अधिक ऊर्जा होती है और मृदु ध्वनि में कम ऊर्जा होती है।
(iii) तीव्रता- ध्वनि की प्रबलता कान में उत्पन्न एक संवेदना है जिसके आधार पर ध्वनि को तेज (तीव्र) अथवा धीमी कहते हैं। 
(iv) तरंग के वेग- ध्वनि जब किसी ध्वनि स्रोत से निकलती है तब तरंग के रूप में तो फैल ही जाती है और इसके साथ-साथ स्रोत से दूर होने पर उसकी प्रबलता तथा आयाम दोनों ही घटते जाते हैं।
4. ध्वनि-संचरण के लिये एक द्रव्यात्मक माध्यम की आवश्यकता होती है-इसे एक प्रयोग द्वारा बतायें ।
अथवा, ध्वनि निर्वात में गमन करती है। इसे दिखाने के लिये एक प्रयोग का वर्णन करें। 
उत्तर- ध्वनि के संचरण के लिये अर्थात् ध्वनि के स्रोत से किसी दूसरे स्थान तक जाने के लिये माध्यम की आवश्यकता होती है। ध्वनि स्रोत से निकलकर हमारे कान तक इसलिये पहुँचती है कि बीच में हवा का माध्यम है। यदि बीच में हवा नहीं रहती तो कान तक आवाज नहीं पहुँचती । इसे हम निम्नलिखित प्रयोग द्वारा दिखा सकते हैं
एक बेल जार को एक चकती पर रख दिया जाता है। बेल जार के ऊपरी भाग में कॉर्क लगा रहता है। इस कॉर्क से होकर जाते हुये तार द्वारा एक विद्युत घंटी को लटका दिया जाता है। चकती और बेल जार के कोर के बीच तथा कार्क और तार के बीच मोम लगा दिया जाता है जिससे कि बेल जार पूरी तरह से वायुरुद्ध हो जाये। चकती के बीच में एक छिद्र रहता है जिसमें एक नली लगी रहती हैं। इस नली को एक वायु सूचक पंप से जोड़ दिया जाता है (चित्र देखें)। घंटी के स्विच को दबाकर विद्युत परिपथ पूरा करने पर घंटी बजने लगती है और उसकी आवाज सुनायी पड़ती है।
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अब वायुसूचक पंप को चलाकर बेल जार के भीतर की हवा को धीरे-धीरे निकाला जाता है। क्रमश: आवाज धीमी होती जाती है और अंत में जब बेल जार की पूरी हवा लगभग निकल जाती है, तब आवाज बिल्कुल सुनायी नहीं पड़ती है, फिर, बेल जार में हवा भर देने पर आवाज सुनायी पड़ने लगती है। 
इस प्रयोग से स्पष्ट होता है कि विद्युत घंटी और कान के बीच जबतक लगातार मांध्यम रहता है तब तक आवाज सुनायी पड़ती है, किंतु जब इनके बीच कहीं पर निर्वात रहता है, अर्थात् माध्यम नहीं रहता है तो आवाज कान तक नहीं पहुँच पाती है। इससे यह विद्युत घंटी वायु सूचक पंप को
5. समतल सतह से ध्वनि के परावर्तन को दिखाने के लिये एक प्रयोग का वर्णन करें। 
उत्तर- समतल सतह से ध्वनि का परावर्तन- टेबुल पर लकड़ी का एक समतल तख्ता AB सीधा खड़ा किया जाता है। लगभग 1 मी० लंबी और 5 सेमी० व्यास की दो नलियाँ ली जाती हैं। इनमें एक नली को टेबुल पर इस प्रकार रखा जाता है कि इसका अक्ष (चित्र देखें) तख्ते के बिंदु Q पर कुछ कोण बनाये । इस नली के मुँह पर एक टेबुल घड़ी रख दी जाती है।
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अब दूसरी नली को टेबुल पर इस प्रकार रखा जाता है कि उसका अक्ष भी तख्ते के बिंदु Q पर मिले। इस नली के मुँह पर कान लगा दिया जाता है। घड़ी की टिक-टिक की ध्वनि सीधे कान तक नहीं पहुँचे, इसके लिये दोनों नलियों के बीच लकड़ी का एक पर्दा खड़ा कर दिया जाता है और उसपर पानी से भिंगोया मोटा कपड़ा लपेट दिया जाता है।
अब दूसरी नली को Q के परितः घुमाकर उसे उस स्थान पर रखा जाता है जहाँ स्पष्ट ध्वनि सुनायी पड़ती है। इससे पता चलता है कि घड़ी की ध्वनि पहली नली के भीतर से होकर चलते हुये टेबुल घड़ी लकड़ी के समतल तख्ता AB से टकराती है और चित्र वहाँ से परावर्तित होकर दूसरी नली के भीतर से चलती हुयी कान तक पहुंचती है। ऐसी स्थिति में यह पाया जाता है कि-
(1) <PQS = <RQS
अर्थात् आपतन कोण = परावर्तन कोण
(2) दोनों के अक्षर (जो आपतित ध्वनि की दिशा PQ और परावर्तित ध्वनि की दिशा QR को दर्शाते हैं) और आपतन बिंदु Q पर लकड़ी के तख्ते पर डाला गया अभिलंब SQ तीनों एक ही समतल में हैं।
6. बतायें कि किसी धातु के बर्तन (या टुकड़ों) में दोषों का पता लगाने के लिये पराश्रव्य तरंगों का उपयोग किस प्रकार किया जाता है ? 
उत्तर- पराश्रव्य तरंगों का उपयोग धातुओं के पिंडों के भीतर बारीक दरारों या छिद्रों का पता लगाने में किया जा सकता है। धातु के टुकड़ों का उपयोग पुलों, बड़े-बड़े भवनों, मशीनों तथा वैज्ञानिक उपकरणों को बनाने में किया जाता है। यदि व्यवहार में लाये गये धातु के टुकड़ों के अंदर ऐसे दरार या छिद्र रहेंगे तो वे पुल या भवनों की संरचना की मजबूती को कम कर देंगे। ऐसे दोष बाहर से दिखायी नहीं पड़ते हैं। ऐसे दोषों का पता लगाने के लिये पराश्रव्य तरंगों का उपयोग किया जाता है।
पराश्रव्य तरंगें धातु के पिंडों से होकर गुजारी जाती हैं। यदि कोई दरार या छिद्र तरंगों के पथ में नहीं है तो ये तरंगें सीधे निकल जाती हैं, परन्तु यदि कोई दोष होता है तो पराध्वनि तरंगें परावर्तित हो जाती हैं। प्रेषित तरंगों का पता लगाने के लिये धातु के दूसरी ओर एक संसूचक रखा जाता है जो उनमें दोष की उपस्थिति को दर्शाती है। इस प्रकार प्रतिध्वनिक मापन विधि से किसी पिंड में दरारों (या छिद्रों) की सही स्थिति ज्ञात की जाती है।
साधारण ध्वनि का उपयोग हम ऐसे कार्यों के लिये क्यों नहीं कर सकते ? इसका कारण यह है कि साधारण ध्वनि दरारों या छिद्रों के स्थान के कोनों से मुड़कर संसूचक तक पहुँच जाती है। 
7. बतायें कि चमगादड़ हवा में अपने शिकार को पकड़ने के लिये पराश्रव्य तरंगों का उपयोग किस प्रकार करता है ?
उत्तर- चमगादड़ों की आँखें कमजोर होती हैं, इसलिये वे अपना शिकार देख नहीं पाते। अपनी उड़ान के दौरान वे उच्च आवृति वाली पराश्रव्य तरंगें छोड़ते हैं। ये तरंगें अवरोध या शिकार द्वारा परावर्तित होकर चमगादड़ के कान तक वापस पहुँचती है। इस परिवर्तित तरंगों की प्रकृति से चमगादड़ अवरोध या शिकार की स्थिति व आकार जान लेते हैं।
8. सोनार (SONAR) की कार्यविधि तथा इसके विभिन्न उपयोगों का वर्णन करें। 
उत्तर - सोनार एक ऐसी युक्ति है जिसे जल स्थित पिंडों की दूरी, दिशा तथा चाल मापने के लिए किया जाता है। सोनार में एक प्रेषित तथा एक संसूचक होता है। प्रेषित पराध्वनि उत्पन्न व प्रेषित करता है, ये तरंगें जल में चलती हैं तथा जल तल से टकराकर संसूचक द्वारा ग्रहण कर ली जाती हैसंसूचक पराध्वनि तरंगों को विद्युत संकेतों में बदल देता है। जिसकी उचित व्याख्या करके अनेक चीजों की जानकारी हासिल की जाती है।
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सोनार का उपयोग —(i) सोनार का उपयोग समुद्र की गहराई ज्ञात करने में किया जाता है। 
(ii) इसका उपयोग जल के अन्दर स्थित चट्टानों या घाटियों को ज्ञात करने में किया जाता है। 
(iii) इसका उपयोग डूबी हुई बर्फ या डूबे हुए जहाज आदि की जानकारी प्राप्त करने में किया जाता है।
9. मानव कान (Human ear) के कार्यविधि को समझाकर लिखें। 
उत्तर- हमारा बाह्य कर्ण आस-पास की ध्वनियाँ ग्रहण करता है। यह ध्वनि फिर श्रवण
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तंत्रिका से गुजरती है। श्रवण तंत्रिका के अंत में एक पतली झिल्ली होती है, जिसे कान का पर्दा या कर्णपट्ट कहते हैं। जब वस्तु में उत्पन्न विक्षोभ के द्वारा माध्यम का संपीडन कर्णपट्ट तक पहुँचता है, तो ये कर्णपट्ट को अंदर की ओर धकेलता है। इसी प्रकार, विरलन कर्णपट्ट को बाहर की ओर खींचता है। इस प्रकार कर्णपट्र में कंपन उत्पन्न होता है। ये कंपन मध्यवर्ती कान में स्थित तीन हड्डियों (हथौड़ा, निघात और वलयक) की सहायता से कई गुना प्रवर्धित किया जाता है। फिर ये प्रवर्धित दबाव मध्यवर्ती कान द्वारा अंदरूनी कान तक पहुँचाया जाता है। अंदरूनी कान में ये प्रवर्धित दबाव कर्णावर्त के द्वारा विद्युत संकेतों में परिवर्तित किया जाता है। फिर श्रवण नाड़ी के द्वारा ये विद्युत संकेत मस्तिष्क तक पहुँचते हैं और मस्तिष्क इन्हें ध्वनि के रूप में परिवर्तित करता है।

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