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Bihar Board Class 10th Examination 2023 | Most VVI Question in Non-Hindi Book | अशोक का शस्त्र-त्याग, ईर्ष्या : तू न गई मेरे मन से, कबीर के पद, विक्रमशिला

Bihar Board Class 10th Examination 2023  Most VVI Question in Non-Hindi Book  अशोक का शस्त्र-त्याग, ईर्ष्या  तू न गई मेरे मन से, कबीर के पद, विक्रमशिला

  अशोक का शस्त्र - त्याग  

एकांकी- वंशीधर श्रीवास्तव 
1. पद्मा कौन थी? वह क्या चाहती थी? 
उत्तर- पद्मा कलिंग के महाराज की कन्या थी । वह कलिंग के हत्यारे अशोक की सेना से लड़ना चाहती थी। पद्मा चाहती थी कि अशोक की सेना उसकी जन्मभूमि को पद-दलित न कर सके। वह अपने देश के लिए मर मिटना चाहती थी। 
2. सैनिकों को उत्साहित करने के लिए पद्मा ने क्या कहा ?
उत्तर - अपने सैनिकों को उत्साहित करने के लिए राजकुमारी पद्मा ने अपने सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा कि तुम वीर - कन्या, वीर - भगिनी और वीर-पत्नी हो। जिस सेना ने तुम्हारे पिता, भाई, पुत्र और पति की हत्या की है, आज उसी से तुम्हें लोहा लेना है। तुम प्रण करो कि जननी जन्मभूमि को पराधीन होते देखने से पहले तुम सदा के लिए अपनी आँखें बंद कर लोगी । 
3. 'अस्त्र' और 'शस्त्र के अंतर को लिखिए।
उत्तर – अस्त्र = हथियार, फेंककर चलाए जानेवाला हथियार (बाण आदि) ।
शस्त्र = हथियार, हाथ में रखकर प्रयोग में लाए जाने वाले हथियार (तलवार आदि) 
4. 'अशोक का शस्त्र-त्याग' एकांकी से हमें क्या संदेश मिलता है? 
उत्तर –'अशोक का शस्त्र त्याग' एकांकी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि देश की रक्षा परम धर्म है। आत्मबलिदान हमारा कर्तव्य है। आत्मबलिदान के लिए स्त्रियों १ अथवा पुरुषों का समान अधिकार है।
5. पद्मा के ललकारने पर भी अशोक ने युद्ध करना स्वीकार क्यों नहीं किया?
उत्तर – पद्मा के ललकारने पर भी अशोक युद्ध करना स्वीकार नहीं किया क्योंकि उनके सामने कलिंग महाराज की वीरांगना पुत्री पद्मा अपनी स्त्रियों की सेना के साथ द्वंद्व-युद्ध करना चाहती थी। अशोक कहता है पद्मा तुम स्त्री हो तुम्हारी सेना भी स्त्रियों की है। मैं स्त्रियों पर शस्त्र नहीं चलाऊँगा।
6. अशोक का मन युद्ध से कैसे बदला?
उत्तर – कलिंग के महाराज के मारे जाने और उनके सेनापति के बंदी हो जाने के बाद युद्ध का नेतृत्व करने महाराज की कन्या पद्मा आती है। अशोक अपने सामने स्त्रियों की सेना देखकर हथियार फेंक देते हैं। पद्मा युद्ध के लिए ललकारती है, तो अशोक कहते हैं कि शास्त्र स्त्रियों से युद्ध करने की इजाजत नहीं देता। पद्मा कहती है क्या शास्त्र की आज्ञा है कि तुम निरपराधियों की हत्या करो ? अशोक सिर झुका लेते हैं। लाखों प्राणियों की हत्या से उनका मन पिघल जाता है और मन ही मन कभी युद्ध न करने का निर्णय लेते हैं।
7. उत्तर बदलाव कलिंग के युद्ध के बाद अशोक में क्या परिवर्तन आया ?
उत्तर – कलिंग के भीषण नरसंहार के बाद अशोक में बहुत बड़ा आया। वह युद्ध के मैदान में खूनी तलवार फेंक देता है और युद्ध न करने का संकल्प लेता है। वह बौद्ध भिक्षुओं के शरण में जाता है और अहिंसा का मार्ग अपनाते हुए बौद्ध धर्म को स्वीकार करता है।
8. पद्मा के चरित्र की तीन विशेषताएँ लिखिए। 
उत्तर – (क) पद्मा कलिंग महाराजा की कन्या है | 
(ख) उसमें वीरता, साहस और देशभक्ति है । 
(ग) वह युद्ध, नीति और मर्यादा के साथ करती हैं।
9. पद्मा ने अशोक को जीवित क्यों छोड़ दिया ? 
उत्तर – पद्मा स्त्री है और उसकी सेना भी स्त्रियों की है। इसलिए अशोक स्त्रियों की सेना से लड़ना अस्वीकार कर देता है और उसके सामने शस्त्र त्याग देता है। पद्मा में प्रतिशोध की भावना है । वह साहसी और देशभक्त भी है। पद्मा को अशोक से पिता की मृत्यु का बदला लेने का अच्छा अवसर था लेकिन उसने अशोक को जिन्दा छोड़ दिया क्योंकि वह निहत्था था। पद्मा एक वीर कन्या है, वह निहत्था पर वार नहीं करती है ।

  ईर्ष्या: तू न गई मेरे मन से  

निबंध - रामधारी सिंह 'दिनकर'
1.'ईर्ष्या की बेटी' किसे और क्यों कहा जाता है?
उत्तर – ईर्ष्या की बेटी का नाम निंदा है। जो व्यक्ति ईर्ष्यालु होता है, वही व्यक्ति बुरे किस्म का निंदक भी होता है। उसे दूसरे की निंदा में मजा आता है और दूसरे की निंदा के द्वारा अपना बड़प्पन पाना चाहता है। 
2. ईर्ष्या का लाभदायक पक्ष क्या हो सकता है? 
उत्तर - ईर्ष्या से मनुष्य को तरह-तरह की हानियाँ होती हैं। लेकिन ईर्ष्या का एक पक्ष सचमुच ही लाभदायक हो सकता है जिसके अधीन हर आदमी, हर जाति और हर दल अपने को अपने प्रतिद्वंद्वी का समकक्ष बनाना चाहता है। किंतु यह तभी संभव है, जबकि ईर्ष्यालु व्यक्ति यह महसूस करता है कि कोई चीज है, जो उसके भीतर नहीं है, कोई वस्तु है, दूसरों के पास है किंतु वह यह नहीं समझ पाता है कि उस वस्तु को प्राप्त कैसे करना चाहिए।
3. ईर्ष्या का चारित्रिक दोष क्यों माना जाता है? 
उत्तर – ईर्ष्यालु व्यक्ति में चारित्रिक दोष आ जाता है। उसे कभी जीवन का सही आनंद नहीं मिलता है। हृदय में ईर्ष्या उत्पन्न होते ही सामने का सूर्य उसे मद्धिम-सा दिखता है, ईर्ष्यालु आदमी प्रकृति से आनंद नहीं उठाता। उसे पक्षियों के गीत और फूलों की खुशबू और भौरों के नृत्य में आनंद नहीं मिलता है । वह मानसिक रोगी होती है।
4. ईर्ष्यालु से बचने का क्या उपाय है? 
उत्तर – ईर्ष्यालु से बचना मानसिक अनुशासन है। ईर्ष्यालु व्यक्ति को दूसरे के बारे में फालतू बातें छोड़ने की आदत डालनी चाहिए। उसे ईर्ष्या छोड़कर रचनात्मक कार्य करना चाहिए।
5. ईर्ष्या की कौन-कौन-सी सहेलियाँ हैं?
उत्तर – निंदा, जलन, डाह, अवसाद, उदासीनता ईर्ष्या की सहेलियाँ हैं। ईर्ष्यालु व्यक्ति में मानसिक संयम और अनुशासन का अभाव होता है।

  कबीर के पद  

कविता - कबीरदास 
1. संगुण भक्तिधारा और निर्गुण भक्तिधारा किसे कहते हैं ? 
उत्तर – सामान्यतः ईश्वर भक्ति के दो रूप माने गए हैं— सगुण भक्तिधारा और निर्गुण भक्तिधारा ।
सगुण भक्तिधारा में ईश्वर के साकार रूप की आराधना की जाती है जबकि निर्गुण भक्ति-धारा में ईश्वर के निराकार (बिना आकार के) स्वरूप की आराधना की जाती है।
2. कबीरदास के अनुसार जीव कब आत्मज्ञान पाता है? 
उत्तर – कबीर के अनुसार ब्रह्म के दर्शन ही जीवन का लक्ष्य है। यह लक्ष्य आत्मज्ञान से प्राप्त होता है। आत्मज्ञान तब मिलता है जब जीव सद्गुरु के विवेक की निर्मलधारा में अपने शरीर के विकारों को धोता है । 
3. कबीर के गुरु कौन थे?
उत्तर – कबीर के गुरु रामानंद थे ।
4. कबीरदास अपने मन और संसार के मन में क्या फर्क करते हैं? 
उत्तर-कबीरदास अपने मन से संसार के मन में काफी अंतर पाते हैं। कवि कहते हैं कि हम आँखों की देखी कहते हैं, संसार किताब की देखी बात कहता है । हम ईश्वर के संबंध में सुलझाकर कहते हैं, संसार के लोग उलझा कर कहते हैं । कबीर जागने के लिए कहते हैं, संसार के लोग सोये रहते हैं। कबीर ममता रहित रहने के लिए कहते हैं और संसार के लोग मोह में फँसे रहते हैं। यही दोनों फ़र्क है।
5. कबीरदास के अनुसार ईश्वर कहाँ निवास करता है?
उत्तर - कबीर के अनुसार ईश्वर मंदिर, मस्जिद, काबा-काशी, क्रिया-कर्म अथवा योग- वैराग में नहीं है। वह सच्चे हृदय में निवास करता है। वह सच्चे मन से तलाश करने पर क्षणभर में मिलता है। ईश्वर बाहर नहीं भीतर है । 
6. ईश्वर एक क्षण की तलाश में कैसे मिलते हैं? 
उत्तर - ईश्वर प्रेम और अनुराग के साथ खोज करने से पल भर तलाश में मिल जाते हैं। उनके पाने के लिए मन में गहरी आस्था और प्रेम होना चाहिए। ईश्वर तो हमारी हर साँसों में वास करते हैं।
7. निर्गुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर – निर्गुण भक्तिधारा का अर्थ है— ज्ञान की आँख से ईश्वर को खोजना और पाना । निर्गुण ईश्वर सगुण साक्षात् नहीं होता है । कबीर ने निर्गुण भक्ति के माध्यम से ही ईश्वर को खोजा और पाया था। कबीर निर्गुण भक्तिधारा के ज्ञानमार्गी संत कवि थे जबकि मलिक मुहम्मद जायसी प्रेमाश्रयी कवि थे।  

  विक्रमशिला  

निबंध
1. विक्रमशिला की लोकप्रियता क्यों थी? 
उत्तर – विक्रमशिला दसवीं- ग्यारहवीं सदी तक पूर्वी एशिया का उत्कृष्ट शिक्षा केंद्र था। सम्यक् ज्ञानदान परम्परा में इसका कोई सानी नहीं था। विक्रमशिला में दूर-दूर से उच्च शिक्षा व शोधकार्य करने के लिए देशी-विदेशी छात्र आते थे। यह बौद्ध शिक्षा-पीठ के रूप में विख्यात था।
2. विक्रमशिला के पाठ्यक्रम में क्या-क्या शामिल था? 
उत्तर - विक्रमशिला के पाठ्यक्रम में तंत्र विद्या के अतिरिक्त व्याकरण, न्याय, सृष्टि - विज्ञान, शब्द - विद्या, शिल्प-विद्या, चिकित्सा विद्या, सांख्य, वैशेषिक, अध्यात्म विद्या, विज्ञान, जादू एवं चमत्कार विद्या शामिल था। 
3. नालंदा विश्वविद्यालय कहाँ अवस्थित है?
उत्तर – प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय राजगीर और पावापुरी के बीच अवस्थित - था । आधुनिक नालन्दा विश्वविद्यालय भी वहीं बना है जहाँ पढ़ाई प्रारम्भ हो गई है। शिक्षक भी नियुक्त किए गए हैं। अमर्त्य सेन इसके वाइस चांसलर नियुक्त हुए हैं। यहाँ विदेशों से भी छात्र आकर पढ़ाई लिखाई एवं अनुसंधान, अनुशीलन-परिशीलन कर रहे हैं।
4. विक्रमशिला नामकरण के संदर्भ में प्रचलित जनश्रुति क्या है? 
उत्तर - अपने आचार्यों के विक्रमपूर्ण आचरण, उनकी अखंडशील सम्पन्नता के कारण इसका नामकरण विक्रमशीला रखा गया । जनश्रुति के अनुसार विक्रम नामक यक्ष के दमन के स्थान पर विहार बनाने के कारण इसका नाम विक्रमशीला पड़ा। 
5. 'द्वारपंडित' का क्या काम होता था? 
उत्तर — विक्रमशिला विश्वविद्यालय में 'द्वारपंडित' नियुक्त किए जाते थे। द्वारपंडितों के समक्ष मौखिक परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले छात्र ही विश्वविद्यालय में प्रवेश पा सकते थे। द्वारपंडित भी आचार्यों की तरह ही ज्ञान के विभिन्न शाखाओं तंत्र, योग, न्याय, काव्य और व्याकरण में पारंगत होते थे। 
6. विक्रमशीला के प्रांगण में कितने विद्यालय विद्यमान थे एवं इस प्रांगण में छात्र कैसे प्रवेश पाते थे? 
उत्तर - विक्रमशीला के प्रांगण में छः विद्यालय विद्यमान थे। विद्यालय के द्वारपण्डितों के समक्ष मौखिक परीक्षा में उतीर्ण होनेवाले छात्र ही विद्यालय प्रांगण में प्रवेश पाते थे।

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