Bharati Bhawan Class 9th Physics Chapter 4 | Attract of Gravity Long Questions Answer | भारती भवन कक्षा 9वीं भौतिकी अध्याय 4 | गुरूत्वाकर्षण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Bharati Bhawan
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Bharati Bhawan Class 9th Physics Chapter 4  Attract of Gravity Long Questions Answer  भारती भवन कक्षा 9वीं भौतिकी अध्याय 4  गुरूत्वाकर्षण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. गुरुत्वीय त्वरण के मान में किन-किन कारणों से परिवर्तन हो सकता है ? 
उत्तर- स्वतंत्रतापूर्वक गिरते हुये किसी वस्तु पर गुरुत्व बल के कारण जो त्वरण उत्पन्न होता है उसे गुरुत्वीय त्वरण कहते हैं। इसे संकेत से व्यक्त किया जाता है। इसी त्वरण के कारण पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर फेंकी गयी वस्तु के वेग में कमी और नीचे आती हुयी वस्तु अ के वेग में वृद्धि होती है, गुरुत्वीय त्वरण का मान पृथ्वी के द्रव्यमान तथा पृथ्वी के केंद्र से वस्तु की दूरी पर निर्भर करता है। यह वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता सभी वस्तुयें (भारी अथवा हल्की) समान त्वरण से पृथ्वी की ओर गिरती है। इसका संख्यात्मक मान 9.8m/s2 है। 
गुरुत्वीय त्वरण के मान में निम्नलिखित कारणों से परिवर्तन होता है—
(a) ऊंचाई का प्रभाव- पृथ्वी की सतह से h ऊंचाई पर स्थित कण (चित्र से) की पृथ्वी के केंद्र से दुरी r = R + h होगी |
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F = G.Mn/(R+h)²
यदि h ऊंचाई पर गुरुत्वीय त्वरण का मन g हो तो 
F = mg
mg = G.Mn/(R+h)²
g = GM/(R+h)²   ...(1)
समीकरण (1) से स्पस्ट है की ऊंचाई h का मन बढ़ने से g का मन घटता जाता है | परन्तु यदि h का मन कुछ किलोमीटर भी हो तो चूँकि यह पृथ्वी की त्रिज्या R=(6400km) की तुलना में नगण्य है | g का मन लगभग वही होगा जो पृथ्वी के सतह पर है, अर्थात g = g (लगभग)|
(b) पृथ्वी के आकार का प्रभाव - पृथ्वी की सतह पर भी एक स्थान से दुसरे स्थान पर जाने पर गुरुत्वीय त्वरण के मान में परिवर्तन होता है। प्रयोगों द्वारा पाया गया है कि गुरुत्वीय त्वरण का मान ध्रुवों (Poles) पर लगभग 9.83 m/s2 होता है तथा भूमध्य रेखा (Equator) पर इसका मान लगभग 9.78m/s2 होता है | 
इस परिवर्तन का कारण यह है कि पृथ्वी पूर्ण रूप से गोलाकार नहीं है। ध्रुवों पर यह चिपटी है तथा भूमध्य रेखा पर उभरी है (चित्र से) । पृथ्वी की ध्रुवीय त्रिज्या 1/2N = R (=6357 km) से भूमध्यरेखीय त्रिज्या 1/2 AB = R (=6378 km) के लगभग 21 km अधिक होती है।
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गुरुत्वीय त्वरण 8 का समीकरण इस प्रकार-
F = mg
mg = G.Mn/R²
g = GM/R²
उपरोक्त समीकरण के अनुसार,
g = GM/ 
2. गुरुत्व बल और भार किसे कहते हैं ? उनके अन्तर को स्पष्ट करें। 
उत्तर- किसी वस्तु को पृथ्वी जिस बल से अपने केंद्र की ओर आकर्षित करती है, उसे गुरुत्व बल कहते हैं।
जब हम किसी वस्तु (जैसे— ईंट) को हथेली पर रखते हैं तो वह हमें भारी लगता है। उस वस्तु को गिरने से रोकने के लिये उसपर, पृथ्वी के गुरुत्व बल के बराबर परिमाण का बल ऊपर की ओर लगाना पड़ता है, तब वस्तु भी, न्यूटन के तृतीय गति नियम से हथेली पर उतने ही परिमाण का बल नीचे की ओर लगाती है। इसे ही उस वस्तु का भार कहते हैं।"
गुरुत्व बल और भार में निम्नलिखित अन्तर है 
गुरुत्व बल
(i) जिस बल के कारण वस्तुयें एक-दूसरे को अपनी ओर आकर्षित करती हैं, उसे गुरुत्वीय बल कहते हैं।
(ii) किसी वस्तु का गुरुत्वीय बल सभी जगह पर समान रहता है।
(iii) इसे दण्डतुला की सहायता से मापा जाता है।
(iv) गुरुत्वीय बल का परिमाण ज्ञात करने का सूत्र 
F= G.M x n/d² होता है 
भार 
(i) यह वह बल है जिस बल के कारण पृथ्वी किसी वस्तु को अपनी ओर आकर्षित है।
(ii) वस्तु का भार स्थान परिवर्तन से बदलता रहता है।
(iii) इसे कमानीदार तुला से मापा जाता है।
(iv) इसे W = G - R2 से मापा जाता है।
3. गुरुत्वीय त्वरण का व्यंजक प्राप्त करें। पृथ्वी की सतह पर यह व्यंजक क्या होगा ?
उत्तर- यदि पृथ्वी का द्रव्यमान M और त्रिज्या R मानी जाये तो पृथ्वी की सतह से नगण्य ऊँचाई पर m द्रव्यमान की वस्तु पर न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम से लगता गुरुत्व बल
F = G.Mm/R²
यदि गुरुत्वीय त्वरण 8 हो तो न्यूटन के द्वितीय गति नियम से,
F = mg
अतः mg = G.Mm/R2 
या, g = GM/R2        ...(1)
इस समीकरण से स्पष्ट है कि g का मान गुरुत्वाकर्षण नियतांक G, पृथ्वी के द्रव्यमान M तथा पृथ्वी अंत. ज्या R पर निर्भर करता है, परन्तु वस्तु के द्रव्यमान m पर निर्भर नहीं करता। " वस्तु, चाहे वह हल्की हो या भारी के लिये 8 का मान समान होता है । इस प्रकार हवा का प्रतिरोध नगण्य रहने पर गुरुत्व के अधीन गिरनेवाली सभी वस्तुओं के त्वरण समान होते हैं। 
समीकरण (1) में G, M और R का मान रखने पर पृथ्वी की सतह पर गुरुत्वीय त्वरण
g = (6.67 x 10 -² Nm²/kg²)(6.0 x 10²4 kg)/(6.4x10)
= 9.8 m/s²
4. आर्किमीडिज का सिद्धांत क्या है ? इस सिद्धांत के सत्यापन के लिये एक प्रयोग का वर्णन करें।
उत्तर - जब कोई वस्तु किसी द्रव या गैस में पूर्णत: या अंशतः डुबायी जाती है, तो उसके भार में आभासी कमी आ जाती है जो वस्तु के डूबे हुये भाग द्वारा हटाये गये द्रव या गैस के भार के बराबर होता है।
प्रयोग- एक छोटा पत्थर या धातु का टुकड़ा लिया। एक पतले धागे की सहायता से इस टुकड़े को कमानीदार तुला के काँटे से लटका दिया तथा पैमाने पर इसके भार का पठन ज्ञात कर लिया।
अब एक टोटी युक्त बर्तन लेकर उसमें टोटी तक पानी भर दिया। इसे अब कमानीदार तुला के नीचे रख दिया तथा टोटी के नीचे एक जल मापने हेतु चिन्हित बर्तन रख दिया।
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आकिमीडिज के सिद्धांत के सत्यापन हेतु एक साधारण प्रयोग 
अब उस धातु या पत्थर के टुकड़े को पानी से भरे बर्तन में डाला तथा जलमापक बर्तन में इसके द्वारा विस्थापित जल को जमा कर लिया। अब टुकड़े द्वारा विस्थापित जल का आयतन तथा टुकड़े का भार (कमानीदार तुला द्वारा ) ज्ञात कर लिया। 
वस्तु का भार ( हवा में) = w, ग्राम
वस्तु का भार ( पानी में) =W2 ग्राम
अतः वस्तु के भार में कमी = (w, w,) ग्राम
विस्थापित जल का आयतन = vmL
दिये गये तापक्रम पर जल का घनत्व = d ग्राम/मिली•
अतः विस्थापित जल की मात्रा = आयतन x घनत्व = v मिली० x d ग्राम/मिली.
प्रयोग से यह देखा जा सकता है कि
पत्थर या धातु के टुकड़े का भार में कमी = विस्थापित जल का भार ।  
5. किसी वस्तु के किसी द्रव में डूबने या तैरने की शर्तों को समझायें | द्रव की उत्प्लावकता के कुछ उपयोग भी बतायें।
उत्तर- किसी द्रव में किसी वस्तु को डूबने के लिये वस्तु का घनत्व द्रव के घनत्व से अधिक होना चाहिये ।
द्रव में पूर्णत: डूबकर वस्तु के प्लवन करने अर्थात् तैरने के लिये वस्तु का घनत्व द्रव के घनत्व के बराबर होना चाहिये ।
द्रव की उत्प्लावकता के कुछ उपयोग इस प्रकार हैं
(i) जहाज – लोहे का घनत्व पानी के घनत्व से अधिक होता है, इसलिये लोहे की सूई या काँटी पानी में डूब जाती है। यदि लोहे के एक टुकड़े को पीटकर उसे नाव का आकार दे दिया जाये तो यह पानी पर प्लवन कर सकता है। इसी सिद्धांत पर पानी में चलनेवाले जहाज बनाये जाते हैं। जहाज लोहे की चादरों से अवतल आकार के इस प्रकार बनाये जाते हैं कि इनके अन्दर खाली जगह बहुत हो। इससे जहाज इतना पानी हटा पाता है कि हटाये गये पानी का भार जहाज तथा उसमें लदे सामानों के भार से कहीं अधिक होता है। इसलिये जहाज पानी पर प्लवन यानी तैरता है।
(ii) मनुष्यों का पानी में तैरना – मनुष्य के शरीर का घनत्व पानी के घनत्व से कम होता है, किन्तु उससे सिर का घनत्व पानी के घनत्व से अधिक होता है, इसलिये मनुष्य पानी में डूबने लगता है। सिर को पानी से बाहर रखते हुये पानी में गतिशील होने को तैरना कहते हैं। 
(iii) प्लावी हिमशैल — बर्फ का घनत्व पानी के घनत्व से कम होता है, इसी कारण बर्फ का टुकड़ा पानी पर प्लवन करता है। प्लवन करते समय बर्फ का 11/12 भाग पानी के भीतर डूबा रहता है और 1/12 भाग पानी के बाहर रहता है। चूँकि समुद्र के पानी का घनत्व साधारण पानी के घनत्व से अधिक होता है, इसलिये समुद्र के पानी में बर्फ का और भी कम भाग (लगभग 8/9 भाग) पानी के भीतर रहता है।

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