Bihar Board Class 10th Most Important Questions Answer | Class X Biology VVI Question | बिहार बोर्ड कक्षा 10वीं बहुत महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर | क्लास 10 जीवविज्ञान प्रश्न

Bharati Bhawan
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Bihar Board Class 10th Most Important Questions Answer  Class X Biology VVI Question  बिहार बोर्ड कक्षा 10वीं बहुत महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर  क्लास 10 जीवविज्ञान प्रश्न

1. मनुष्य में पाचन क्रिया का वर्णन कीजिए। A अथवा, मनुष्यों में पाचन क्रिया को पाचन तंत्र के नामांकित चित्र के साथ समझाइए।
अथवा, मानव के आहार नाल का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाएँ।
उत्तर – मनुष्य की पाचन क्रिया निम्नलिखित चरणों में विभिन्न अंगों में पूर्ण होती है
(i) मुखगुहा में (Digestion in Mouth Cavity)—मनुष्य मुख के द्वारा भोजन ग्रहण करता है । मुख में स्थित दाँत भोजन के कणों को चबाते हैं जिससे भोज्य पदार्थ छोटे-छोटे कणों में विभक्त हो जाता है। लार - ग्रंथियों से निकली लार भोजन में अच्छी तरह से मिल जाती है। ।
लार में उपस्थित एन्जाइम भोज्य पदार्थ में उपस्थित मंड को शर्करा में बदल देता है। लार भोजन को लसदार चिकना और लुग्दीदार बना देती है, जिससे भोजन ग्रसिका द्वारा आसानी से आमाशय में पहुँच जाता है।
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(ii) आमाशय में (Digestion in Stomach)—भोजन अब आमाशय में पहुँचता है। वहाँ भोजन का मंथन होता है जिससे भोजन छोटे-छोटे कणों में टूट जाता है। भोजन में HCL माध्यम को अम्लीय बनाता है तथा भोजन को सड़ने से रोकता है। आमाशयी पाचक रस में उपस्थित एन्जाइम प्रोटीन को छोटे-छोटे अणुओं में तोड़ देते हैं।
(iii) ग्रहणी में (Digestion in Duodenum) – आमाशय में पाचन के बाद भोजन ग्रहणी में पहुँचता है। यकृत से आया पित्त रस भोजन से अभिक्रिया कर वसा का पायसीकरण करता है। भोजन का माध्यम क्षारीय बनाता है जिससे अग्न्याशय से आए पाचक रस में उपस्थित एन्जाइम क्रियाशील हो जाते हैं। इससे भोजन में उपस्थित प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट एवं वसा पच जाते हैं।
(iv) क्षुदांत्र में (Digestion in Ileum)— ग्रहणी में पाचन के बाद जब भोजन क्षुदांत्र में पहुँचता है तो वहाँ आँत्र रस में उपस्थित एन्जाइम बचे हुए अपचित प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा का पाचन कर देते हैं। आँत की विलाई (Villie) द्वारा पचे हुए भोजन का अवशोषण कर लिया जाता है। अवशोषित भोजन रक्त में पहुँचा दिया जाता है।
(v) बड़ी आँत में (Digestion in Rectum) — क्षुदांत्र में पाचन एवं अवशोषण के बाद भोजन बड़ी आँत में पहुँचता है। वहाँ पर अतिरिक्त जल का अवशोषण कर लिया जाता है। बड़ी आँत में भोजन का पाचन नहीं होता। भोजन का अपशिष्ट एकत्रित हो समय-समय पर मलद्वार से बाहर निकाल दिया जाता है।
2. गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं?
उत्तर — श्वसन तंत्र में फुफ्फुस के अंदर अनेक छोटी-छोटी नलियों का विभाजित रूप होता है जो अंत में गुब्बारों जैसी रचना में अंलकृत हो जाता है, जिसे कूपिका कहते हैं। यह एक सतह उपलब्ध करती है जिससे गैसों का विनिमय हो सके। यदि कूपिकाओं की सतह को फैला दिया जाए तो यह लगभग 80 वर्ग मीटर क्षेत्र को ढँक सकता है। कूपिकाओं की भित्ति में रुधिर वाहिकाओं का बहुत विस्तृत जाल होता है। जब हम साँस अंदर लेते हैं तो पसलियाँ ऊपर उठ जाती हैं और हमारा डायफ्राम चपटा हो जाता है जिससे वक्षगुहिका बड़ी हो जाती है। इस कारण वायु फुफ्फुस के भीतर चूस ली जाती है। रक्त शरीर से लाई गई CO2 कूपिकाओं को दे देता है। कूपिका रक्त वाहिका के रक्त में वायु से ऑक्सीजन लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचा देती है। }
3. रक्त क्या है ? इसके संघटन का वर्णन कीजिए।
उत्तर— मानव शरीर में भोजन, ऑक्सीजन, हॉर्मोन, उत्सर्जन योग्य अवशिष्ट पदार्थ आदि रक्त के माध्यम से गति करते हैं। शरीर में रक्त कुल भार का लगभग बारहवाँ हिस्सा है।
यह एक प्रकार का तरल संयोजी ऊतक (Connective Tissue) है जो निम्नलिखित घटकों से मिलकर बना होता है
(i) लाल रक्त कणिकाएँ (R.B.C.) –इनमें हीमोग्लोबिन नाम का प्रोटीन होता है जो श्वसन क्रिया में ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन करता है।
(ii) श्वेत रक्त कणिकाएँ (W.B.C.)- क्टीरिया एवं मृत आघातों से शरीर की रक्षा करती हैं। हानिकारक कर ता हैं और संक्रमण तथा आघातों से शरीर की रक्षा करती हैं। 
(iii) प्लेटलेट्स (Platelets) — ये रक्त का थक्का जमने में सहायक होती । इस प्रकार अमूल्य रक्त को नष्ट होने से रोकती हैं। 
(iv) प्लाज्मा (Plasma ) — यह रक्त का द्रवीय भाग है जिसमें प्रोटीन, हॉर्मोन्स, ग्लूकोज, वसीय अम्ल, ऐमीनो अम्ल, खनिज लवण, भोजन के पचित भाग एवं उत्सर्जी पदार्थ होते हैं। यह रक्त के परिवहन का मुख्य माध्यम है। यह रुधिर का 2/3 भाग बनाता है।  
4. अमीबा और केंचुए में उत्सर्जन क्रिया का वर्णन कीजिए |
उत्तर – अमीबा – एक- कोशीय जीव अमीबा ताजे पानी में रहता है यह संकुचनशील धानी से उत्सर्जन क्रिया करता है। अपशिष्ट पदार्थ संकुचनशील धानी में प्रवेश करता है जिस कारण संकुचनशील धानी का आकार अपेक्षाकृत बढ़ जाता है। यह कोशिकाभित्ति के पास पहुँचकर फट जाती है और अपशिष्ट पदार्थ शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
केंचुआ— केंचुआ वृक्क (Nephridia) से उत्सर्जन करता है। यह शरीर के खण्डों में पाई जाने वाली बहुत बारीक कुण्डलित नलिकाएँ हैं। यह सिलिया से ढँकी रहती हैं और आकार में लम्बी होती है। इसके एक सिरे पर कीप जैसी संरचना होती है जिसे वृक्क मुख कहते हैं। वृक्क के दूसरे सिरे पर एक छिद्र होता है जिसे वृक्क रन्ध्र कहते हैं। ये उत्सर्जी द्रवों को बाहर निकालते हैं। द्रव में अपशिष्ट पदार्थ मिले होते हैं। ये शरीर गुहिका से वृक्क मुख में प्रवेश करते हैं। वृक्कों में अवशोषण क्रिया द्वारा ग्लूकोज, लवण आदि अलग हो जाते हैं और त्वचा में उपस्थित वृक्क व्यर्थ पदार्थों को सीधा बाहर फेंक देते हैं। पटीय वृक्क के द्वारा अपशिष्ट पदार्थ आँत में जाते हैं और वहाँ से बाहर फेंके जाते हैं।
5. प्रकाश-संश्लेषण क्रिया -कौन से कारक प्रभावित करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - (i) प्रकाश (Light)- प्रकाश संश्लेषण की क्रिया सूर्य प्रकाश में होती है, इसलिए प्रकाश का प्रकार तथा उसकी तीव्रता (intensity ) इस क्रिया को प्रभावित करती है। प्रकाश की लाल एवं नीली किरणें तथा 100 फुट कैण्डल से 3000 फुट कैण्डल तक की प्रकाश तीव्रता प्रकाश-संश्लेषण की दर को बढ़ाती है जबकि इससे उच्च तीव्रता पर यह क्रिया रुक जाती है। 
(ii) CO2- वातावरण में CO, की मात्रा 0.03% होती है। यदि एक सीमा तक CO2 की मात्रा बढ़ाई जाए तो प्रकाश संश्लेषण की दर भी बढ़ती है लेकिन अधिक होने से घटने लगती है। -
(iii) तापमान (Temperature)- प्रकाश-संश्लेषण के लिए 25-35°C का तापक्रम सबसे उपयुक्त होता है। इससे अधिक या कम होने पर प्रकाश-संश्लेषण दर घटती-बढ़ती रहती है।
(iv) जल (Water)—इस क्रिया के लिए जल एक महत्त्वपूर्ण यौगिक है। जल की कमी से प्रकाश-संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है। जलाभाव में जीवद्रव्य की सक्रियता घट जाती है, स्टोमेटा बन्द हो जाते हैं और प्रकाश-संश्लेषण की दर घट जाती है।
(v) ऑक्सीजन (O2)–प्रत्यक्ष रूप से ऑक्सीजन की सान्द्रता से प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया प्रभावित नहीं होती है। वायुमण्डल में 02 की मात्रा बढ़ने से प्रकाश-संश्लेषण की दर घटती है। ऐसा माना जाता है।
6. मनुष्य के ह्रदय का चित्र बनाइए और वर्णन कीजिए
उत्तर- मानव ह्रदय का चित्र इस प्रकार है-
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संरचना- मनुष्य का हृदय चार भागों या कोष्ठों में बँटा रहता है। अग्र दो भाग अलिंद (Auricle) कहलाता है। इनमें एक बायाँ अलिंद तथा दूसरा दायाँ अलिंद होता है। पश्च के दो भाग निलय (Ventricle) कहलाते हैं। जिनमें एक बायाँ निलय तथा दूसरा दायाँ निलय कहलाता है। बाएँ अलिंद एवं बाँये निलय के बीच द्विवलनी कपाट (Bicuspid valve) तथा दाएँ अलिंद एवं दाएँ निलय के बीच त्रिवलनी कपाट (Tricuspid valve) होते हैं। ये वाल्व निलय की ओर खुलते हैं। बाएँ निलय का सम्बन्ध अर्द्धचन्द्राकार कपाट द्वारा महाधमनी (Aorta) से तथा दाएँ निलय का सम्बन्ध अर्द्धचन्द्राकार कपाट द्वारा फुफ्फुसीय धमनी से होता है। दाएँ अलिंद से महाशिरा (Vena cava) आकर मिलती है तथा बाएँ अलिंद से फुफ्फुस शिरा आकर मिलती है।
हृदय की क्रियाविधि—हृदय के अलिंद व निलय में संकुचन (Systole) व शिथिलन (Diastote) दोनों क्रियाएँ होती हैं। ये क्रियाएँ एक निश्चित क्रम में निरन्तर होती हैं। हृदय की एक धड़कन या स्पंदन के साथ एक कार्डियक चक्र (Cardiac cycle) पूर्ण होता है। एक चक्र में निम्नलिखित चार अवस्थाएँ होती हैं
(1) शिथिलन (Diastole) — इस अवस्था में दोनों अलिंद शिथिलन अवस्था में रहते हैं और रुधिर दोनों अलिंदों में एकत्रित होता है। 
(ii) अलिंद संकुचन–अलिंदों के संकुचित होने को अलिंद संकुचन कहते हैं। इस अवस्था में अलिंद निलय कपाट खुल जाते हैं और अलिंदों से रुधिर निलयों में जाता है। दायाँ अलिंद बाएँ अलिंद से कुछ पहले संकृति होता है।
(iii) निलय संकुचन-निलयों के संकुचन को निलय संकुचन कहते हैं, जिसके फलस्वरूप अलिंद-निलय कपाट बंद हो जाते हैं। महाधमनियों अर्द्धचन्द्राकार कपाट खुल जाते हैं और रुधिर महाधमनियों में चला जाता है। 
(iv) निलय शिथिलन-संकुचन के पश्चात् निलयों में शिथिलन होता है और अर्द्धचन्द्राकार कपाट बंद हो जाते हैं। निलयों के भीतर रुधिर दाब कम हो जाता है जिससे अलिंद निलय कपाट खुल जाते हैं।

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