1. बिहार के जनसंख्या घनत्व की विवेचना करें।
उत्तर- जनसंख्या घनत्व का अभिप्राय: किसी क्षेत्र में प्रति वर्ग किलोमीटर निवास करनेवाले व्यक्तियों की औसत संख्या से है। बिहार में जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक है। तथा विगत वर्षों के अंतर्गत इसमें बहुत तेजी से वृद्धि हुई है। 1901 में बिहार में जनसंख्या का औसत घनत्व 157 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर था जो 1951 में बढ़कर 222 हो गया था। अब 2001 की जनगणना के अनुसार, यह बढ़कर 881 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो गया है। पश्चिम बंगाल के बाद अभी बिहार देश में सबसे सघन आबादी वाला राज्य है।
लेकिन बिहार के सभी भागों में जनसंख्या का घनत्व एक जैसा नहीं है तथा इसका क्षेत्रीय वितरण बहुत असमान है। पटना, दरभंगा, वैशाली, सारण, सीवान आदि अत्यधिक घनत्ववाले क्षेत्र है तथा इन जिलों में जनसंख्या का घनत्व 1.200 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से भी अधिक है। इसके विपरीत, बाँका, जमुई, कैमूर आदि निम्न घनत्ववाले क्षेत्र हैं जहाँ जनसंख्या का घनत्व 600 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर या उससे भी बहुत कम है। राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के बीच जनसंख्या घनत्व में इस अंतर का मुख्य कारण प्राकृतिक एवं आर्थिक है। बिहार की अर्थव्यवस्था मुख्यतया कृषि-आधारित है। अतएव, राज्य के जिन भागों की भूमि समतल और उपजाऊ है, सिंचाई आदि का समुचित व्यवस्था होने के कारण खाद्य एवं व्यावसायिक फसलों की उत्पादकता अधिक है तथा परिवहन उद्योग एवं व्यापार के विकास की सुविधाएँ उपलब्ध है, उन भागों में जनसंख्या का घनत्व भी अपेक्षाकृत अधिक है।
2. बिहार की साक्षरता दर पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर- साक्षरता शिक्षा का एक सामान्य मापदंड है और यह जनसंख्या के गुणात्मक पक्ष को प्रदर्शित करती है। वस्तुतः आर्थिक एवं सामाजिक न्याय पर आधारित समाज के निर्माण में जो विभिन्न उपकरण सहायक होते हैं। उनमें शिक्षा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
परंतु शिक्षा के क्षेत्र में बिहार की स्थिति संतोषजनक नहीं है। तथा इस दृष्टि से इसकी गणना देश के सर्वाधिक पिछड़े राज्यों में की जाती है। 1951 में बिहार में साक्षरता दर लगभग 12 प्रतिशत थी जो 1991 में बढ़कर 38.48 प्रतिशत हो गई थी। विगत वर्षों के अंतर्गत बिहार की साक्षरता दर में वृद्धि हुई है, औसत से बहुत कम है। 2001 की जनगणना के अनसार, यहाँ की साक्षरता दर लगभग 47 प्रतिशत है, जबकि साक्षरता का राष्ट्रीय औसत 64.8 प्रतिशत है। बिहार में पुरुष एवं स्त्री दोनों की साक्षरता दर के अन्य सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों से कम है। 2001 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार, यहाँ पुरुषों की साक्षरता दर 59.68 प्रतिशत तथा स्त्रियों की मात्र 33.12 प्रतिशत है। पुरुषों तथा स्त्रियों की साक्षरता का राष्ट्रीय औसत लगभग 75 और 54 प्रतिशत है। इस प्रकार, साक्षरता की दृष्टि से बिहार देश का सबसे पिछड़ा राज्य है।
3. जनसंख्या की आयु-संरचना के अध्ययन का क्या महत्व है। बिहार की जनसंख्या की आयु- संरचना क्या है?
उत्तर- जनसंख्या की आयु- संरचना का अध्ययन कई कारणों से महत्वपूर्ण है। इस आयु-संरचना से हमें बहुत सी बातों की जानकारी मिलती है, जैसे—स्कूल जानेवाली जनसंख्या, मतदाताओं की जनसंख्या, श्रम करनेवाली अर्थात कार्यशील जनसंख्या इत्यादि ।
कार्यशील जनसंख्या के निर्धारण की दृष्टि से आयु संरचना के अध्ययन का विशेष महत्व है। यदि राज्य की कुल जनसंख्या में बच्चों और बूढ़ों की संख्या अधिक है तो इससे कार्यशील जनसंख्या अथवा श्रम शक्ति का अनुपात घट जाता है। इसका आर्थिक एवं औद्योगिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
हमारे देश में 14 वर्ष से कम तथा 60 वर्ष से अधिक आयुवर्ग के व्यक्तियों को कार्यशील जनसंख्या में सम्मिलित नहीं किया जाता है। 2001 की जनगणना के अनुसार, बिहार में 14 वर्ष तक आयुवर्ग के बच्चों की संख्या लगभग 42 प्रतिशत है जो निश्चय ही बहुत अधिक है। संपूर्ण देश में इस आयुवर्ग के बच्चों का प्रतिशत 36 है। इस आयुवर्ग की जनसंख्या अनुत्पादक उपभोक्ताओं की श्रेणी में आती है। कुल जनसंख्या में बच्चों का अनुपात अधिक होने से कार्यशील जनसंख्या पर इसका भार बढ़ जाता है।
2001 की जनगणना के अनुसार, बिहार में 60 वर्ष या इससे अधिक आयुवर्ग के लगभग 6.70 प्रतिशत व्यक्ति है और यह राष्ट्रीय प्रतिशत से बहुत अधिक नहीं है। भारत की कुल जनसंख्या में इस वर्ग के नागरिकों का अनुपात लगभग 6 प्रतिशत है।
4. बिहार में जन्म-दर और मृत्यु दर की क्या स्थिति है? जन्म-दर एवं मृत्यु दर की गणना कैसे की जाती है?
उत्तर- जन्म-दर तथा मृत्यु दर द्वारा ही किसी देश या राज्य में जनसंख्या के आकार का निर्धारण होता है। मुख्यतया, इन दोनों का अंतर ही जनसंख्या के वृद्धि दर को निर्धारित करता है। विश्व के अन्य विकसित देशों की तुलना में हमारे देश में जन्म-दर और मृत्यु दर दोनों ही अधिक है। इसके अनेक कारण हैं जिनमें हमारा आर्थिक पिछडापन, अशिक्षा एवं अज्ञानता प्रमुख हैं। विगत वर्षों के अंतर्गत देश के आर्थिक विकास तथा शिक्षा और जीवन स्तर में सुधार होने से जन्म एवं मृत्यु-दर दोनों में गिरावट आई है तथा अन्य राज्यों के समान ही बिहार में भी जन्म-दर तथा मृत्यु-दर् में कमी हुई है। 1951 में यहाँ प्रति हजार जन्म- दर 43.4 थी, जो 2001 में घटकर 30.9 हो गई है। लेकिन, यह अभी भी 26.4 प्रति हजार के राष्ट्रीय औसत से अधिक है। उसी प्रकार बिहार में मृत्यु-दर भी 8.1 के राष्ट्रीय औसत से कुछ अधिक प्रति हजार 9.2 है।
जन्म-दर तथा मृत्यु-दर की गणना किसी एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के पीछे जन्म लेनेवाले बच्चों अथवा मरनेवाले व्यक्तियों की संख्या के आधार पर की जाती है।
5. बनसंख्या के व्यावसायिक वितरण से आप क्या समझते हैं बिहार में जनसंख्या का व्यावसायिक वितरण क्या है।
उत्तर- जनसंख्या के व्यावसायिक वितरण का अभिप्राय उस कार्यशील जनसंख्या से है जो विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में लगी हुई है। ये उद्योग या व्यवसाय मुख्यतया तीन प्रकार के होते हैं—(i) प्राथमिक अथवा कृषि क्षेत्र, (ii) द्वितीय अथवा औद्योगिक क्षेत्र तथा (iii) तृतीयक अथवा सेवा क्षेत्र। प्राथमिक उद्योगों में कृषि एवं इससे संबंध व्यवसाय सम्मिलित किए जाते हैं। जिनमें पशुपालन, मत्स्यपालन तथा खनन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। द्वितीयक या औद्योगिक क्षेत्र में छोटी-बड़ी सभी प्रकार की निर्माण इकाइयाँ शामिल है। तृतीयक उद्योग या व्यवसाय में व्यापार परिवहन, संचार तथा सभी प्रकार की सरकारी एवं गैर-सरकारी सेवाएँ शामिल की जाती है। इस क्षेत्र को सेवा क्षेत्र भी कहते हैं।
बिहार की कुल जनसंख्या में मात्र 33.38 प्रतिशत ही कार्यशील जनसंख्या है तथा इसका व्यावसायिक वितरण राज्य की अर्थव्यवस्था का अविकसित रूप प्रकट करता है। 2001 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार, बिहार की कार्यशील जनसंख्या का लगभग 77 प्रतिशत कृषि अथवा उससे संबंध व्यवसाय में लगा हुआ है। इनमें लगभग 48 प्रतिशत कृषि मजदूर है। घरेलू और निर्माण उद्योगों में लगभग 4 प्रतिशत तथा अन्य उद्योग या व्यवसाय में 19 प्रतिशत व्यक्ति लगे हुए हैं।
6. "आर्थिक विकास के लिए मानवीय संसाधनों का विकास आवश्यक है। इस कथन को स्पष्ट करें।"
उत्तर- आर्थिक विकास के लिए मानवीय संसाधनों का विकास अथवा मानव-पूँजी निर्माण अत्यंत आवश्यक है। किसी देश के विकास में मानव-पूँजी निर्माण की भूमिका कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण होती है। मानवीय संसाधनों के विकास से मनुष्य की बौद्धिक योग्यता कौशल तथा शारीरिक क्षमता में सुधार होता है। एक शिक्षित, कुशल एवं स्वस्थ श्रमिक उपलब्ध संसाधनों का उचित विदोहन एवं उपयोग करता है। इससे उत्पादन अधिक होता है। तथा साधनों का अपव्यय नहीं होता। मानव-पूँजी निर्माण से खोज और अनुसंधान को प्रोत्साहन मिलता है। इसके फलस्वरूप उत्पादन की तकनीक में सुधार होता है और हमारी उत्पादकता बढ़ जाती है।
मानवीय संसाधनों के विकास एवं मानव-पूँजी निर्माण से समाज को कई अप्रत्यक्ष लाभ भी होते हैं। उत्पादन एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने से प्रतिव्यक्ति आय बढ़ती है, सामान्य जनता के जीवन-स्तर में सुधार होता है। और वे अधिक पूर्ण जीवन व्यतीत करने में सफल होते हैं। मानव-पूँजी निर्माण द्वारा सृजित ज्ञान एवं कौशल से समाज की मनोवृत्ति में भी परिवर्तन होता है। इससे लोग परंपरावादी रीति-रिवाजों एवं प्रथाओं को छोड़कर आधुनिक तरीकों को अपनाने के लिए प्रेरित होते हैं। यही कारण है कि आज हमारा अंतिम उद्देश्य जीवन-प्रत्याशा, शैक्षणिक योग्यता तथा जीवन स्तर में सुधार द्वारा मानवीय संसाधनों का विकास करना है।
7. बिहार में मानवीय संसाधनों की वर्तमान स्थिति क्या है ?
उत्तर- किसी भी देश या राज्य के लिए एक दिए हुए समय एवं परिस्थितियों में मानव संसाधन, अर्थात जनसंख्या की एक अनुकूलतम मात्रा होती है। इस जनसंख्या के रहने पर प्राकृतिक एवं भौतिक संसाधानों का समुचित उपयोग संभव होता है तथा प्रतिव्यक्ति आय अधिकतम होती है।
हमारे देश की जनसंख्या में बहुत तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। यह बढ़ती हुई जनसंख्या देश के आर्थिक विकास में कई प्रकार से बाधक सिद्ध हुई है। परंतु, देश के प्रायः अन्य सभी राज्यों की अपेक्षा बिहार में जनसंख्या की वृद्धि दर अधिक है। इससे निर्धनता और बेरोजगारी बढ़ है तथा कई अन्य समस्याएँ भी उत्पन्न हुई है। जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण भूमि पर जनभार बहुत अधिक है, कृषि श्रमिकों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है तथा रोजगार के अभाव में उनका देश के अन्य भागों में पलायन हो रहा है। राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास सुविधाओं की बहुत कमी है। जनसंख्या वृद्धि के कारण सामाजिक सेवाओं पर भार बढ़ता जा रहा है। राज्य में
इस प्रकार, बिहार में मानवीय संसाधनों की वर्तमान स्थिति संतोषजनक नहीं है। इसका प्रमुख कारण बिहारवासियों की शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास आदि आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए साधनों का अभाव है।
8. मानव- पूँजी निर्माण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- आर्थिक विकास के लिए मानवीय संसाधनों का विकास अथवा मानव-पूँजी निर्माण अत्यंत आवश्यक है। जब हम मानवीय संसाधनों के विकास में पूँजी का निवेश करते हैं। तो इसे हम मानवीय पूँजी निवेश कहते हैं। इस निवेश से ही मानव- पूँजी का निर्माण होता है। भौतिक पूँजी के समान ही मानवीय पूँजी भी कुल राष्ट्रीय उत्पाद के सृजन में सहायक होती है। मानवीय पूँजी निवेश अथवा मानव-पूँजी निर्माण के कई रूप हो सकते हैं। इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं |
9. मानवीय संसाधनों के विकास में शिक्षा के महत्व का उल्लेख करें। शिक्षा के क्षेत्र में बिहार की क्या स्थिति है?
उत्तर- मानवीय संसाधनों के विकास की दृष्टि से शिक्षा एवं प्रशिक्षण की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। शिक्षा और प्रशिक्षण से ही कुशल और योग्य श्रम शक्ति का निर्माण होता है और हमारी उत्पादन-क्षमता बढ़ती है। उचित शिक्षा नागरिकों की मनोवृत्ति, ज्ञान एवं क्षमताओं का विकास कर उन्हें अधिक योग्य, सक्षम तथा बदलती हुई परिस्थितियों के अनुरूप बनाती है। केवल व्यक्ति ही नहीं, वरन समाज के विकास में भी शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान होता है। उचित शिक्षा द्वारा आर्थिक विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न होती है तथा सकल घरेलू आय एवं प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होती है।
विगत वर्षों के अंतर्गत बिहार में शिक्षा का विस्तार हुआ है। लेकिन, यह आज भी शिक्षा के क्षेत्र में बहुत पिछड़ा हुआ है। 2001 की जनगणना के अनुसार, बिहार में साक्षरता दर मात्र 47 प्रतिशत है, जबकि साक्षरता का राष्ट्रीय औसत 65 प्रतिशत है। निर्धन होने के कारण ही पिछड़े वर्ग के अधिकांश बच्चे समय पूर्व विद्यालय छोड़ देते हैं।
10. बिहार में प्राथमिक शिक्षा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर- प्राथमिक शिक्षा युवावर्ग को न्यूनतम एवं आधारभूत कौशल सिखाती है। प्रारंभिक अथवा प्राथमिक शिक्षा का हमारी उत्पादक क्रियाओं पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि इस प्रकार की शिक्षा को हमारे देश में सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की गई है। भारतीय संविधान के नीति-निर्देशक सिद्धांतों के अनुसार 14 वर्ष तक आयुवर्ग के सभी बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना राज्य का दायित्व है। देश के अन्य सभी राज्यों के समान ही बिहार में भी प्राथमिक शिक्षा के सर्वव्यापीकरण के लिए 2001 से सर्वशिक्षा अभियान लागू किया गया है। इस योजना के अग्रलिखित उद्देश्य है–(i) 6 से 14 वर्ष के आयुवर्ग के सभी बच्चों का विद्यालय में नामांकन, (ii) वर्ष 2007 तक 6-14 वर्ष आयुवर्ग के सभी बच्चों के लिए की प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित कराना तथा (iii) वर्ष 2010 तक 6-14 वर्ष आयुवर्ग के सभी बच्चों को 8 वर्ष की स्कूली शिक्षा उपलब्ध कराना।
परन्तु, बिहार में प्राथमिक शिक्षा की कई समस्याएँ है। देश के अन्य राज्यों की तुलना में यहाँ प्राथमिक नामांकन की दर बहुत कम है। हमारे राज्य के प्राथमिक विद्यालय में छात्रों के पलायन अर्थात समय के पूर्व ही विद्यालय छोड़ने की समस्या भी बहुत गंभीर है। छात्रों द्वारा असमय विद्यालय छोड़ने का प्रमुख कारण उनके अभिभावकों को निर्धनता है। राज्य में शिक्षा के विकास के लिए प्राथमिक शिक्षा से जुड़ी समस्याओं का समाधान आवश्यक है।
11. स्वास्थ्य सेवाओं का हमारी उत्पादक क्रियाओं पर क्या प्रभाव पड़ता है? बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की आपूर्ति किस प्रकार की जाती है?
उत्तर- नागरिक का स्वास्थ्य किसी भी राज्य के आर्थिक एवं सामाजिक विकास का एक अभिन्न अंग होता है। मनुष्य के विकास एवं सुखी जीवन के लिए उसका स्वस्थ रहना अत्यन्त आवश्यक है। किसी व्यक्ति की सतत् कार्य करने की क्षमता बहुत अंशों में उसके स्वास्थ्य की दशा पर निर्भर है। एक स्वस्थ व्यक्ति ही उत्पादक क्रियाओं में सक्रिय रूप से भाग लेकर उत्पादन में वृद्धि कर सकता है। अतः मानवीय संसाधनों के विकास तथा सकल उत्पाद में वृद्धि के लिए एक उपयुक्त स्वास्थ्य सेवा की व्यवस्था अत्यंत आवश्यक है।
बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य एवं उपचार सेवाओं की आपूर्ति राज्य के 150 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों, 2.200 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रो तथा 15,000 स्वास्थ्य उपकेन्द्रों द्वारा की जाती है। विगत वर्षों के अंतर्गत बिहार की स्वास्थ्य संरचना का बहुत विस्तार हुआ है। लेकिन, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता हमारी आवश्यकताओं की तुलना में अभी भी बहुत कम है। केन्द्र सरकार के जनसंख्या पर आधारित मापदंडो के अनुसार, 2002 में राज्य में 623 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों, 875 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों तथा 3.705 स्वास्थ्य उपकेन्द्रों की कमी थी। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता का स्तर भी बहुत निम्न है। अधिकांश प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर रोगियों के लिए विस्तार, जाँच-सुविधा तथा दबाएँ उपलब्ध नहीं होती हैं। परिणामतः ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की आपूर्ति बहुत सीमित एवं अपर्याप्त है।
12. आवास समस्या के मुख्य स्वरूप क्या है ?
उत्तर- आवास मनुष्य की एक आधारभूत आवश्यकता है। आवास का संबंध केवल रहने के मकानों से ही नहीं, वरन स्वच्छ वायु, सुरक्षित पेयजल तथा एक अच्छे पड़ोस और वातावरण से भी है। इस प्रकार के आवास की व्यवस्था मानवीय संसाधनों के विकास में सहायक होती है। परन्तु भारत में आवासीय इकाइयों की बहुत कमी है। बिहार जैसे देश के पिछड़े हुए राज्यों में आवास की समस्या और अधिक गंभीर है। जहाँ निर्धनों की संख्या अधिक है।
आवास समस्या के दो मुख्य रूप है। परिमाणात्मक एवं गुणात्मक परिमाणात्मक स्वरूप का अभिप्राय आवास, अर्थात मकानों की कमी से है। देश में करोड़ो परिवार ऐसे हैं जिन्हें आवास सुविधा उपलब्ध नहीं है। जनसंख्या में निरंतर वृद्धि होने के फलस्वरूप भविष्य में इस समस्या के और अधिक गंभीर होने की संभावना है। आवास समस्या के गुणात्मक स्वरूप का संबंध मकानों के निम्न स्तर से है। उदाहरण के लिए, हमारे राज्य के 12 प्रतिशत परिवारों को ही रहने के लिए पक्के मकान उपलब्ध है। अधिकांश ग्रामीण परिवार मिट्टी के बने कच्चे मकानों में रहते हैं जिनमें प्राय: हवा, पानी, रोशनी, शौचालय, मलवाहन आदि की व्यवस्था नहीं होती है। आवास समस्या के समाधान के लिए सरकार की 1998 की राष्ट्रीय आवास नीति का दीर्घकालीन लक्ष्य बेघरों को घर दिलाना, अपर्याप्त सुविधाओं के मकानों में रहनेवालों की आवासीय स्थिति में सुधार लाना तथा सभी लोगों को आवास-सुविधाओं का न्यूनतम स्तर उपलब्ध कराना है।
13. इंदिरा आवास योजना क्या है ?
उत्तर– ग्रामीण निर्धनों की आवास संबंधी आवश्यकताओं का पूरा करने के लिए सरकार ने मई 1985 से इंदिरा आवास योजना आरंभ की है। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र के अत्यंत निर्धन परिवारों के लिए आवास इकाइयों का निर्माण और उनके अनुपयोगी कच्चे मकानों में सुधार लाना है। इसके लिए सरकार द्वारा इन परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। अप्रैल 2004 से इंदिरा आवास योजना के अधीन नए आवासों के लिए दी जानेवाली अधिकतम सहायता राशि 20,000 रुपये से बढ़ाकर 25,000 रुपये तथा कच्चे मकानों को अर्द्ध-पक्के मकानों में बदलने के लिए 10,000 रुपये से बढ़ाकर 12,500 रुपये प्रति इकाई कर दी गई है। 14. मानव-पूँजी तथा भौतिक पूँजी में क्या अंतर है? क्या मानव-पूँजी भौतिक पूँजी से श्रेष्ठ है।
उत्तर-धन या पूँजी के निवेश से ही मानवीय एवं भौतिक पूँजी का निर्माण होता है। ये दोनों ही उत्पादन के साधन हैं जो राष्ट्रीय उत्पाद के सृजन में सहायक होते हैं। लेकिन, इनमें कुछ अंतर है। जो निम्नांकित
(1) भौतिक पूँजी उत्पादन का एक निष्क्रिय साधन है। जबकि, मानवीय, पूँजी सक्रिय होती है जो भौतिक पूँजी को उत्पादन के योग्य बनाती है।
(ii) भौतिक पूँजी के क्रेता उसके स्वामी हो जाते है, लेकिन मानव- पूँजी को उनके स्वामी से पृथक नही किया जा सकता।
(iii) भौतिक तथा मानव-पूँजी दोनों ही उत्पादन के गतिशील साधन है। लेकिन, भौतिक पूँजी की अपनी कोई इच्छा शक्ति नही होती है। अतएव, इसमें मानव-पूँजी की अपेक्षा गतिशीलता अधिक होती है।
(iv) भौतिक पूँजी उत्पादन का एक निर्जीव साधन है। एक उद्यमी अपनी इच्छानुसार उसे काम पर लगा सकता है। लेकिन, मानव-पूँजी सजीव है। उसके कार्य में मानवीय भावनाओं का भी प्रभाव पड़ता है।
आर्थिक विकास की दृष्टि से मानव-पूँजी को भौतिक पूँजी से अधिक श्रेष्ठ माना गया है। मानव संसाधनों के विकास से ही प्रकृति पर मनुष्य का नियंत्रण बढ़ा है और उत्पादन की मात्रा में इतनी वृद्धि हुई है।
Hello My Dear, ये पोस्ट आपको कैसा लगा कृपया अवश्य बताइए और साथ में आपको क्या चाहिए वो बताइए ताकि मैं आपके लिए कुछ कर सकूँ धन्यवाद |