Header Ads Widget

New Post

6/recent/ticker-posts
Telegram Join Whatsapp Channel Whatsapp Follow

आप डूुबलिकेट वेबसाइट से बचे दुनिया का एकमात्र वेबसाइट यही है Bharati Bhawan और ये आपको पैसे पेमेंट करने को कभी नहीं बोलते है क्योंकि यहाँ सब के सब सामग्री फ्री में उपलब्ध कराया जाता है धन्यवाद !

Bhrati Bhawan Class 10th Economics Chapter 6 | Long Questions Answer | Bihar Board Class 10 Arthshastr | 6. वैश्वीकरण | भारती भवन कक्षा 10वीं अर्थशास्त्र अध्याय 6 | बिहार बोर्ड क्लास 10 अर्थशास्त्र | दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Bhrati Bhawan Class 10th Economics Chapter 6  Long Questions Answer  Bihar Board Class 10 Arthshastr  6. वैश्वीकरण  भारती भवन कक्षा 10वीं अर्थशास्त्र अध्याय 6  बिहार बोर्ड क्लास 10 अर्थशास्त्र  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. बहुराष्ट्रीय निगमों से आप क्या समझते हैं ? इन्होंने किस प्रकार विभिन्न देशों के उत्पादन को जोड़ने का कार्य किया है ?
उत्तर- बहुराष्ट्रीय कंपनी वह कंपनी है जिसका एक से अधिक देशों उत्पादन पर नियंत्रण एवं स्वामित्व होता है। ये कंपनियाँ विभिन्न देशों में पूजा का निवेश करती है। जिनको प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश कहते हैं। कोका-कोला, सैमसंग, इंफोसिस इसी श्रेणी में आते हैं। इनके द्वारा किया गया निवेश अरबों रुपयों में होता है।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने विभिन्न देशों के उत्पादन को जोड़ने का कार्य किया है। इन निगमों का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ अर्जित करना होता है। इसलिए ये कंपनियाँ या निगम उन देशों में अपने कारखाने और संयंत्र को स्थापित करते हैं जहाँ कम वेतन पर कुशल श्रमिक उपलब्ध हो, उत्पादन के कारकों की आपूर्ति सुनिश्चित हो तथा सड़क, बिजली पानी आदि जैसे आधारभूत संरचनात्मक सुविधाएँ वर्तमान हो। विदेशी उत्पादकों एवं निवेशकों के प्रति सरकार की नीति भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के स्थापित होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
कई बार बहुराष्ट्रीय निगम अन्य देशों की स्थानीय कंपनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करते हैं। बहुराष्ट्रीय निगमों के निवेश का सबसे सामान्य तरीका अन्य देशों की स्थानीय कंपनियों को खरीदना और उसके पश्चात् उत्पादन का विस्तार करना है।
इस प्रकार, बहुराष्ट्रीय निगम कई प्रकार से अपने उत्पादन कार्य का विस्तार कर रहे हैं। इनकी उत्पादक गतिविधियों से सुदूर स्थानों का उत्पादन भी प्रभावित हुआ है तथा एक-दूसरे से जुड़ता जा रहा है।
2. बहुराष्ट्रीय निगम किस प्रकार दूसरे देशों में उत्पादन पर नियंत्रण या स्वामित्व स्थापित करते हैं ?
उत्तर- बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एक से अधिक देशों में उत्पादन पर स्वामित्व और नियंत्रण होता है। बहुराष्ट्रीय निगम भिन्न-भिन्न तरीकों से दूसरे देशों में उत्पादन पर नियंत्रण या स्वामित्व स्थापित करते हैं।
(i) बहुराष्ट्रीय निगम वह पर पूँजी निवेश करते हैं जहाँ पर उत्पादन लागत कम हो तथा लाभ की अधिकतम प्राप्ति ही प्रायः वे कारखाने या संयंत्र की वहाँ स्थापना करते हैं जहाँ कुशल श्रमिकों कच्चे माल की उपलब्धता संभव है।
(ii) बहुराष्ट्रीय निगम दूसरे देशों में कई बार पूरे कार्यालय या उत्पादन इकाई की स्थापना खुद करते हैं। जिसमें भूमि, मशीन, भवन एवं उपकरण पर विदेशी निवेश करते हैं। 
(iii) कई बार बहुराष्ट्रीय निगम अन्य देशों की स्थानीय कंपनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करते हैं।
(iv) बहुराष्ट्रीय निगम अन्य देशों की स्थानीय कंपनियों को खरीदना और उसके पश्चात् उत्पादन का विस्तार करना है।
(v) कई बार बहुराष्ट्रीय निगम छोटे उत्पादकों को अपनी देख-रेख में उत्पादन करने की व्यवस्था करने के साथ हो । उत्पादित वस्तुओं के मूल्य गुणवत्ता के स्तर आदि का निर्धारण करते हैं। अंततः वे इनकी वस्तुओं को खरीदकर अपने व्यापारिक नाम से विभिन्न देशों के बाजारों में बेचते हैं।
3. वैश्वीकरणा से आप क्या समझते हैं? वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करनेवाले कारकों का उल्लेख करें।
उत्तर- वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं का एकीकरण होता है। इसके परिणामस्वरूप वस्तुओं एवं सेवाओं, प्रोद्योगिकी, पूँजी और श्रम का निर्वाह प्रवाह संभव हो पाता है। इसमें बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ या निगम विदेशों में पूँजी निवेश करके वस्तुओं का उत्पादन शुरू करती हैं तथा विभिन्न प्रकार की सेवाएँ उपलब्ध कराती है। वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करनेवाले कारकों में प्रौद्योगिकी में प्रगति विदेश व्यापार तथा विदेशी निवेशों का उदाहरीकरण है-
(i) प्रौद्योगिकी में प्रसात्ति- वैश्वीकरण को संभव बनानेवाले कारकों में प्रौद्योगिकी में प्रगति एक महत्वपूर्ण कारक है। परिवहन प्रौद्योगिकी में सुधार से अब भारी और नाशवान वस्तुओं को सुदूर स्थानों में अधिक मात्रा और कम समय में, कम खर्च में भेजना संभव हो सका है।
वैश्वीकरण को प्रभावित करनेवाले कारकों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी सबसे महत्वपूर्ण है। वर्तमान समय में दूर-संचार, कंप्यूटर और इंटरनेट के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी बहुत तेजी से विकसित हुई है तथा कई नई प्रकार के उद्योगों का विकास सूचना प्रौद्योगिकी से हुई है जो उद्योग और व्यापार को काफी सहायता पहुँचाती है।
(ii) विदेश व्यापार तथा विदेशी निवेशों मा उदारीकरणा—विभिन्न देशों के विदेश व्यापार तथा विदेशी निवेश नीतियाँ अगर उदार होती है। तो यह भी वैश्वीकरण की प्रक्रिया को बढ़ाने में सहायता प्रदान करती हैं।
4. भारत के लिए वैश्वीकरण क्यों आवश्यक है ? इसके पक्ष में तर्क दीजिए। भारत के लिए वैश्वीकरण निम्नलिखित
उत्तर- भारत सरकार की वर्तमान आर्थिक नीति का उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण के लिए इसमें विश्वस्तर की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता का विकास करना है। पूर्व में उद्योग और व्यापार पर कई प्रकार के प्रतिबंध थे इसके कारण भारत की अर्थव्यवस्था एक बंद अर्थव्यवस्था थी तथा इसमें विश्व बाजार की प्रतिस्पर्धा का सामना करने की क्षमता नहीं थी। कारणों से आवश्यक है।
(i) भारत जैसे एक विकासशील देश की आंतरिक बचत पर्याप्त नहीं है। वैश्वीकरण से पूँजी निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा।
(ii) वैश्वीकरण से भारतीय उद्योगों की कुशलता और उत्पादकता में भी वृद्धि होगी। 
(iii) वैश्वीकरण से हमारे देश की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता को बढ़ाने में सहायता मिल सकती है। (iv) भारत देश में श्रम का बाहुल्य है अतः निर्यात की वस्तुओं में श्रमप्रधान तकनीक का प्रयोग कर श्रमिकों के पारिश्रमिक में वृद्धि हो सकती है। इसके लिए वैश्वीकरण आवश्यक है।
(v) वैश्वीकरण शोध, अनुसंधान तथा ज्ञान के प्रसार में सहायक होता है। 
(vi) वैश्वीकरण से भारत के निर्यात में वृद्धि होगी तथा रोजगार के नए अवसरों का सृजन होगा। इससे बेरोजगारी में कमी आएगी।
(vii) वैश्वीकरण से साधनों के सर्वोत्तम उपयोग की संभावना रहती है तथा इससे राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होती है।
(viii) वैश्वीकरण से बाजार का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत हो जाता है। इससे उत्पादन लागतैं कम हो जाती है और उपभोक्ताओं को सस्ती दर पर उत्तम कोटि की वस्तुएँ प्राप्त होती है।  
5. वैश्वीकरण के इतिहास का संक्षिप्त विवरण दीजिए। 
उत्तर - वैश्वीकरण की धारणा एक नई धारणा नहीं है। मध्यकालीन युग में भी विश्व के अनेक देश व्यापार के माध्यम से परस्पर जुड़े हुए थे और उनके बीच वस्तुओं, विचारों और कौशल का आदान-प्रदान होता था। परंतु उस समय परिवहन तथा संचार के साधन सीमित था।
वैश्वीकरण की प्रक्रिया का आरंभ आधुनिक युग से हुआ है। इंग्लैंड के औद्योगिक क्षेत्र में 18वीं तथा 19वीं शताब्दी में कई परिवर्तन हुए। 1769 में जैम्स वॉट द्वारा वाष्प इंजन के आविष्कार ने आधुनिक कारखाना प्रणाली को जन्म दिया। इंग्लैंड के औद्योगिक क्षेत्र में होनेवाले परिवर्तन ने कुछ ही समय में यूरोप के अन्य देशों में भी फैल गए तथा उत्पादन एवं व्यापार का क्रमशः विस्तार हो रहा था। रेलवे और वाष्पचालित जहाजों ने उत्पादित भारी और नाशवान वस्तुओं का भी एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के सुदूर स्थानों में भेजना संभव बना दिया था। व्यापारियों के लिए संदेश भेजना और एक दूसरे से संपर्क स्थापित करना टेलीग्राफ एवं मुक्त व्यापार की नीति को इंग्लैंड का भी समर्थन मिला जो 19वीं शताब्दी में विश्व का सबसे प्रभावशाली राष्ट्र था। 1914 और 1945 के बीच विश्व के दो भयंकर महायुद्धों का सामना करना पड़ा इससे देशों की उत्पादन और आर्थिक प्रणाली क्षतिग्रस्त हो गई। युद्ध के पश्चात् विश्व व्यापार को स्थापित करने में संयुक्त राष्ट्र संघ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक तथा विश्व व्यापार संगठन जैसी कई संस्थाओं की स्थापना की है जो व्यापार और वैश्वीकरण के विकास एवं विस्तार में सहायक सिद्ध हुए है।
6. वैश्वीकरण से बिहार की अर्थव्यवस्था किस प्रकार हुई है ? 
उत्तर- वैश्वीकरण का बिहार पर सकासत्मक एवं नकारात्मक दोनों ही प्रभावों को देखने को मिलता है—
वैश्वीकरण के कारण बिहार में कृषि उत्पादनों में वृद्धि, विदेशी प्रत्यक्ष निवेशों की प्राप्ति, शुद्ध राज्य घरेलु उत्पाद एवं प्रति व्यक्ति शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद में वृद्धि रोजगार के अवसरों में वृद्धि बहुराष्ट्रीय बैंक तथा बीमा कंपनियाँ का आगमन इत्यादि देखा गया है। यह वैश्वीकरण का सकारात्मक प्रभाव देखा गया है।
वैश्वीकरण का नकारात्मक प्रभाव भी बिहार की अर्थव्यवस्था में देखने को मिला है। जैसे कृषि एवं कृषि आधारित उद्योगों की अपेक्षा, कुटीर एवं लघु उद्योगों पर विपरीत प्रभाव, रोजगार पर विपरीत प्रभाव, आधारभूत संरचनाओं में निवेश में कमी ।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि यहाँ उद्योगों एवं बड़े व्यापारियों को अधिक लाभ की प्राप्ति हुई है। मॉल संस्कृति का भी जन्म हुआ हे, परन्तु कृषक एवं आम जनता आज भी इस लाभ से कम लाभ उठा रहे हैं।
7. 1991 के आर्थिक सुधारों से आप क्या समझते हैं ? भारत में इन सुधारों की आवश्यकता क्यों हुई? 
उत्तर- आर्थिक सुधारों के अंतर्गत वे सभी तरीके शामिल है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के लिए 1991 में अपनाए गए। इन सुधारों का मुख्य बल अर्थव्यवस्था की उत्पादकता और कुशलता में वृद्धि के लिए एक प्रतिस्पर्द्धात्मक वातावरण का निर्माण करने पर है। हमारे देश में आर्थिक सुधारों का प्रारंभ विदेशी व्यापार की प्रतिकूलता तथा विभिन्न कारणों से देश में उत्पन्न विदेशी विनिमय के गंभीर संकट की पृष्ठभूमि में हुआ था। अतएव, आर्थिक सुधार की नीतियों में व्यापार एवं पूँजी प्रवाह संबंधी सुधारों को विशेष महत्व दिया गया है। विगत वर्षों के अंतर्गत एशिया के कई कम विकसित देशों के तीव्र विकास से यह स्पष्ट हो गया है कि प्रशुल्क एवं व्यापार अवरोधों में कमी होने से निर्यात के साथ ही घरेलू बाजार के लिए उत्पादन बढ़ता है। इससे निर्यातों में वृद्धि होती है और आर्थिक संवृद्धि की दर तीव्र होती है। यही कारण है कि जुलाई 1991 से सरकार ने व्यापार के क्षेत्र में ऐसे कई सुधार किए हैं जो हमारे देश को विश्व अर्थव्यवस्था से जोड़ने में सहायक हुए हैं। इनमें रुपये का अवमूल्यन, व्यापार मंद में और इसके पश्चात चालू मद में रुपये की पूर्ण परिवर्तनशीलता, आयात प्रणाली का उदारीकरण, प्रशुल्क- दरों में कटौती तथा निर्यात वृद्धि के लिए अपनाए गए उपाय महत्वपूर्ण हैं। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (direct foreign investment) द्वारा सरकार ने पूँजी प्रवाह के अवरोधों को दूर करने का प्रयास किया है। 
इस प्रकार, भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की दृष्टि से 1991 में प्रारंभ किए गए आर्थिक सुधार अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने आर्थिक विकास के लिए जो नीति अपनाई उसमें कई दोष थे। इस नीति के अंतर्गत देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्र को आवश्यकता से अधिक महत्व दिया गया था, निजी निवेश एवं आयात-निर्यात पर कई प्रकार के नियंत्रण और प्रतिबंध लगाए गए थे तथा केंद्रीय नियोजन की नीति अपनाई गई थी। यह नीति लगभग 40 वर्षों तक लागू रही तथा बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया। इसका भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इसी समय कुछ अन्य घटनाएँ भी हुई जिनसे हमारा आर्थिक संकट और बढ़ गया। इनमें सोवियत संघ का विघटन, खाड़ी युद्ध, सरकार के बजट, राजकोषीय घाटे ने अत्यधिक वृद्धि आदि महत्वपूर्ण थे। इसके फलस्वरूप, हमारे विदेशी व्यापार की प्रतिकूलता बहुत बढ़ गई और देश के सामने विदेशी विनिमय का गंभीर संकट उत्पन्न हो गया। अतः, जुलाई 1991 में भारत सरकार द्वारा आर्थिक नीति में सुधार की रणनीति अपनाई गई। इस नीति को नवीन आर्थिक नीति की संज्ञा दी गई तथा उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण इसके प्रमुख अंग हैं। यही कारण है इस नीति को उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण (liberalisation, privatisation and globalisation, LPG) की नीति भी कहते हैं।
8. उदारीकरणा से आप क्या समझते हैं ? इस दृष्टि से भारत सरकार की वर्तमान नीति है ?
उत्तर- प्रायः, सरकारें विदेश व्यापार पर कई प्रकार के नियंत्रण या प्रतिबंध लगा देती हैं जिन्हें व्यापार अवरोधक कहते हैं। किसी भी देश की सरकार व्यापार अवरोधक का प्रयोग अपने विदेश व्यापार में कमी या वृद्धि तथा आयातित वस्तुओं की मात्रा या प्रकार को निर्धारित करने के लिए कर सकती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने भी विदेश व्यापार पर कई प्रकार के. नियंत्रण और प्रतिबंध लगा दिए थे। घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए तथा उन्हें विदेशी प्रतिस्पर्धा से संरक्षण प्रदान करने के लिए यह आवश्यक माना गया था। लेकिन, कुछ समय पूर्व सरकार ने यह अनुभव किया कि अब भारतीय उत्पादकों के लिए विदेशी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करने का समय आ गया है। अतः उसने अपनी नवीन आर्थिक नीति के अंतर्गत अर्थव्यवस्था को खोलने तथा अनावश्यक नियंत्रणों को समाप्त करने का एक व्यापक कार्यक्रम अपनाया है जिसे उदारीकरण की संज्ञा दी जाती है।
प्रायः, सरकारें विदेशी व्यापार पर कई प्रकार के नियंत्रण या अवरोध लगा देती है जिन्हें व्यापार अवरोधक (trade barrier) कहते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने भी विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर कई प्रकार के नियंत्रण और प्रतिबंध लगा दिए थे। घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन देने तथा देश के उत्पादकों को विदेशी प्रतिस्पर्द्धा से संरक्षण प्रदान करने के लिए यह आवश्यक माना गया था। 1950 एवं 1960 के दशक भारतीय उद्योगों के विकास के प्रारंभिक चरण थे। इस अवस्था में विदेशी प्रतियोगिता इनके लिए घातक हो सकती थी। यही कारण है कि इस काल में सरकार ने मशीनरी, पेट्रोलियम, उर्वरक आदि जैसी कुछ अति आवश्यक वस्तुओं के आयात की ही अनुमति प्रदान की थी। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि विश्व के सभी विकसित देशों ने अपने विकास के प्रारंभिक काल में घरेलू उत्पादकों को विभिन्न प्रकार से संरक्षण प्रदान किया है।
लेकिन, कुछ समय पूर्व सरकार ने यह अनुभव किया कि अब भारतीय उद्योगों के लिए विश्व प्रतिस्पर्द्धा का सामना करने का समय आ गया है। अतएव, उसने 1991 में अपनी आर्थिक नीतियों कुछ महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए जिन्हें नवीन आर्थिक नीति (New Economic Policy, NEP) की संज्ञा दी गई है। इस नीति के लागू होने के बाद अर्थव्यवस्था को अधिक उदार बनाने के लिए सरकार ने विभिन्न नियंत्रणों को समाप्त करने का एक व्यापक कार्यक्रम अपनाया है। इसके अंतर्गत निर्यात एवं आयात की अधिकांश वस्तुओं को लाइसेंस - मुक्त कर दिया गया है तथा विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर लगाए गए अधिकांश नियंत्रण और प्रतिबंध हटा दिए गए हैं।
इस प्रकार, भारत सरकार की वर्तमान नीति अर्थव्यवस्था के उदारीकरण की है। इस नीति का मूल उद्देश्य आर्थिक नियंत्रण तथा प्रतिबंधों में ढील देकर अथवा उन्हें उदार बनाकर अर्थव्यवस्था के कार्य संपादन में कुशलता को बढ़ावा देना है।
9. निजीकरण से आप क्या समझते हैं ? इसके लिए सरकार द्वारा क्या तरीके अपनाए जा सकते हैं ?
उत्तर- निजीकरण की धारणा विगत वर्षों के अंतर्गत भारतीय अर्थव्यवस्था में किए जानेवाले आर्थिक सुधारों से संबंधित हैं। यह इस विचारधारा के अनुरूप है कि सरकार का कार्य व्यवसाय करना नहीं है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में सार्वजनिक क्षेत्र का बहुत विस्तार हुआ है। लेकिन, सार्वजनिक उपक्रमों का कार्य-संपादन एवं प्रदर्शन आशा के अनुरूप नहीं हो रहा है। इस क्षेत्र के अधिकांश उपक्रम घाटे में चल रहे हैं अथवा बहुत कम लाभ अर्जित करते हैं। अतएव, अब भारत सरकार की विचारधारा एवं उसकी आर्थिक नीति निजीकरण के पक्ष में है। इसके फलस्वरूप निजी क्षेत्र को अनेक प्रतिबंधों से मुक्त कर दिया गया है। अब निजी क्षेत्र कई ऐसी औद्योगिक क्रियाओं के संचालन में प्रवेश कर सकता है जो इसके पूर्व केवल सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित थे। निजी क्षेत्र का विस्तार करने के लिए विदेशी कंपनियों को भी देश में अपने उद्यम स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
भारत सरकार की वर्तमान आर्थिक नीति निजीकरण की है। यह इस विचारधारा के अनुरूप है कि सरकार का कार्य व्यवसाय करना नहीं है। एक समय था जब कई पूँजीवादी देशों में भी निजी उपक्रमों का राष्ट्रीयकरण कर लिया गया था। परंतु, अब स्थिति सर्वथा विपरीत है और इनका अराष्ट्रीयकरण किया जा रहा है। हमारे देश में निजीकरण का प्रश्न मुख्य रूप से सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के स्वामित्व से संबंधित है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में सार्वजनिक क्षेत्र का बहुत विस्तार हुआ है। लेकिन, सार्वजनिक उपक्रमों का कार्य-संपादन एवं प्रदर्शन आशा के अनुरूप नहीं रहा है। इस क्षेत्र के अधिकांश उपक्रम घाटे में चल रहे हैं अथवा बहुत कम लाभ अर्जित करते हैं। अतएव, अब भारत सरकार की विचारधारा भी निजीकरण के पक्ष में है।
निजीकरण के संदर्भ में एक मत है कि सरकार ऐसे अनेक उद्योग एवं व्यवसाय का संचालन कर रही थी, जो इसे नहीं करना चाहिए था। परिणामतः, इनका प्रदर्शन निर्धारित लक्ष्य के स्तर का नहीं रहा है और इन्हें बेच देना चाहिए। इसे विनिवेश (disinvestment) की संज्ञा दी गई है। सार्वजनिक उपक्रमों के कार्य संपादन में सुधार लाने के लिए निजीकरण का दूसरा स्वरूप निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी है। इसके लिए सार्वजनिक उपक्रमों की शेयर पूँजी का एक भाग निजी उधमियों के हाथों बेचा जा सकता है। निजीकरण के लिए इनमें कौन-सा विकल्प अपनाया जाए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि एक विशिष्ट उपक्रम किस प्रकार की वस्तुओं की उत्पादन करता है। पूर्ण विनिवेश ऐसे उपक्रमों के लिए उचित कहा जा सकता है जिनमें सार्वजनिक क्षेत्र के रहने का कोई औचित्य नहीं है। परंतु, यदि उत्पादित वस्तुएँ या सेवाएँ ऐसी श्रेणी में आती हैं सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित हैं तथा अतिनिर्धन वर्ग की आवश्यकताओं को पूरा करती तो सरकार को शेयर - पूँजी का कम-से-कम 51 प्रतिशत हिस्सा अपने पास रखना चाहिए । सरकारी की नवीन
आर्थिक नीति निजीकरण के पक्ष में है। निजी क्षेत्र का विस्तार करने के लिए विदेशी कंपनियों को भी देश में अपने उद्यम स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
10. "वैश्वीकरण का प्रभाव एक समान है।" इससे सामान्य व्यक्तियों का जीवन किस प्रकार प्रभावित हुआ है ?
अथवा, वैश्वीकरण से आम आदमी का जीवन किस प्रकार प्रभावित हुआ है ? 
उत्तर- आम आदमी की श्रेणी में प्रायः निम्न मध्यम एवं निर्धन वर्ग के व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है जो आराम एवं विलासिता की अधिकांश वस्तुओं के उपभोग से वंचित होते हैं। इनकी आय इनती कम होती है कि ये अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को ही कठिनाई से पूरा कर पाते हैं। हमारे देश में इस प्रकार के व्यक्तियों की संख्या बहुत अधिक है तथा यह प्रश्न अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है कि इनका आर्थिक जीवन वैश्वीकरण से किस प्रकार प्रभावित हुआ है
भारत सरकार की वैश्वीकरण की नीति लगभग दो दशक पूर्व अपनाई गई। इसके फलस्वरूप, देश में अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों का आगमन हुआ है, विदेशी निवेश बढ़ा है तथा सकल राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि हुई है। लेकिन, इससे समाज के सभी वर्ग के लोग समान रूप से लाभान्वित नहीं हुए हैं। विश्व प्रतिस्पर्द्धा का सामना करने के लिए भारत की बड़ी कंपनियों ने भी अपनी उत्पादन प्रणाली में सुधार तथा उत्पादन मानकों को ऊँचा उठाने का प्रयास किया है। अब भारतीय बाजारों में मोटरगाड़ियों, दुपहिया वाहनों, इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों आदि जैसे उपभोक्ता पदार्थों की पूर्ति बहुत बढ़ गई है। आज उपभोक्ताओं के समक्ष पहले से अधिक विकल्प उपलब्ध हैं तथा वे अधिक उत्कृष्ट गुणवत्तावाले अनेक उत्पादों को कम मूल्य पर ही खरीद सकते हैं। लेकिन, इन उत्पादों के अधिकांश क्रेता धनी एवं संपन्न वर्ग के लोग हैं। इससे आम आदमी अथवा सामान्य वर्ग के उपभोक्ताओं को विशेष लाभ नहीं हुआ है।
वैश्वीकरण से भारत के धनी उपभोक्ता तथा बड़े उत्पादक लाभान्वित हुए हैं। लेकिन, बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा ने मध्यम और छोटे उत्पादकों को प्रतिकूल ढंग से प्रभावित किया है। खिलौने, बैटरी, टायर, डेयरी उत्पाद एवं खाद्य तेल के उद्योग कुछ ऐसे उदाहरण हैं जहाँ प्रतिस्पर्द्धा के कारण छोटे उत्पादकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। इसके फलस्वरूप, अनेक लघु इकाइयाँ बंद हो गई हैं और इनमें कार्यरत श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं। ऐसा अनुमान है कि पिछले कुछ वर्षों में लगभग 5 लाख लघु इकाइयाँ बंद हो चुकी हैं जिससे 25 लाख से भी अधिक श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु उद्योगों का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है तथा कृषि के बाद यह क्षेत्र देश में सबसे अधिक श्रमिकों को रोजगार प्रदान करता है।
वैश्वीकरण से श्रमिकों का जीवन व्यापक रूप से प्रभावित हुआ है। इससे प्रायः कुशल श्रमिकों की आय में वृद्धि हुई है। लेकिन, अकुशल श्रमिकों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। प्रतिस्पर्द्धा के कारण अब अधिकांश नियोजक रोजगार की शर्तों को लचीला बनाने के लिए प्रयासरत है। इसका अभिप्राय यह है कि वे अपनी आवश्यकतानुसार श्रमिकों को नियुक्त और उनकी छँटनी करने लगे हैं। इसका एक उदाहरण परिधान उद्योग हैं इसके फलस्वरूप, इस उद्योग के अनेक श्रमिक बेरोजगार हुए हैं और अस्थायी श्रमिक के रूप में कार्य करने के लिए विवश है।

Post a Comment

0 Comments