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Bhrati Bhawan Class 10th Economics Chapter 6 | Short Questions Answer | Bihar Board Class 10 Arthshastr | 6. वैश्वीकरण | भारती भवन कक्षा 10वीं अर्थशास्त्र अध्याय 6 | बिहार बोर्ड क्लास 10 अर्थशास्त्र | लघु उत्तरीय प्रश्न

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लघु उत्तरीय प्रश्न
1. अतीत में विश्व के विभिन्न देशों को जोड़ने का प्रमुख माध्यम क्या था ? अब वह किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर- अतीत से ही विदेश व्यापार विभिन्न देशों की परस्पर जोड़ने का माध्यम रहा है। उस समय व्यापार सामुद्रिक मार्गों से होता था। वर्तमान में विदेशी व्यापार से उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों ही लाभान्वित होते हैं। दो देशों के बीच मुक्त व्यापार होने से वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं। तथा बाजारों में एक ही वस्तु का मूल्य एकसमान होने लगता है। इस प्रकार पहले विदेश व्यापार दो देशों को जोड़ने का काम करता था परंतु आज विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने तथा एकीकरण का काम करता है।
2. विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश में अंतर स्पष्ट करें। 
उत्तर- विदेशी व्यापार में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ या निगम वस्तुओं का विभिन्न देश में व्यापार कर लाभ अर्जित करता था। इसमें उत्पादक और उपभोक्ता दोनों लाभान्वित होते हैं। विभिन्न कंपनियों में प्रतियोगिता के कारण उनकी वस्तुओं की गुणवत्ता बढ़ जाती है। तथा कीमत में कमी आती है। विदेशी व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने अथवा उनके एकीकरण में सहायक होता है।
विदेशी निवेश द्वारा बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ दूसरे देशों में उत्पादक कार्यों के निवेश करते हैं। विदेशी निवेश का मुख्य उद्देश्य कंपनियों द्वारा लाभ अर्जित करना है।
3. वैश्वीकरण प्रक्रिया में अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों की क्या भूमिका है ? 
उत्तर- वैश्वीकरण प्रक्रिया में अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों का महत्वपूर्ण योगदान है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन से उत्पादन में गुणात्मक परिवर्तन हुए हैं। आरंभ में उत्पादन मुख्यतया किसी देश की सीमाओं के भीतर ही होता था। बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एक से अधिक देशों में वस्तुओं के उत्पादन पर नियंत्रण या स्वामित्व होता है। बहुराष्ट्रीय कंपनी विश्व स्तर पर अपनी उत्पाद को बेचता है। इस प्रकार वैश्वीकरण अथवा विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था को जोड़ने में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का महत्वपूर्ण योगदान है।
4. विभिन्न देशों को जोड़ने और उनमें संबंध स्थापित करने के क्या तरीके हो सकते हैं? 
उत्तर- आर्थिक स्वतंत्रता एवं मुक्त व्यापार विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। विदेश व्यापार विभिन्न देशों को परस्पर जोड़ने का माध्यम रहा हो । विभिन्न देश इस प्रकार के तरीकों तथा अपनी नीतियों में सुधार कर विभिन्न देशों से संबंध स्थापित कर सकते हैं। इसमें उदारीकरण निजीकरण की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।
5. विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में किस प्रकार सहायक होता है? उत्तर- प्राचीनकाल से ही विदेश व्यापार विभिन्न देशों को परस्पर जोड़ने का माध्यम रहा है। विदेश व्यापार उत्पादकों को घरेलू बाजार अर्थात् अपने देश के बाजार से बाहर के बाजारों में पहुँचने का अवसर प्रदान करता है। विभिन्न देशों के उत्पादकों में प्रतियोगिता के कारण वस्तुओं की लागत अर्थात् उत्पादन व्यय में कमी होती है। इससे कम मूल्य में ऐसी वस्तुओं के उपभोग का भी अवसर मिलता है। जिनका निर्माण देश में नहीं हो सकता है। इस प्रकार विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने अथवा उनके एकीकरण में सहायक होता है।
6. सूचना प्रौद्योगिकी वैश्वीकरण से कैसे जुड़ी हुई है ? क्या इसके प्रसार के बिना वैश्वीकरण संभव था ?
उत्तर- वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करनेवाले कारकों में परिवहन प्रौद्योगिकी से भी अधिक महत्वपूर्ण सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का विकास है। विभिन्न देशों के बीच सेवाओं के उत्पादन के प्रसार में इस प्रौद्योगिकी की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए इस प्रौद्योगिकी की उपलब्धता के कारण लंदन की प्रकाशक कंपनी अपनी प्रकाशन का सभी काम इंटरनेट के माध्यम से भारत के किसी कंपनी को देकर छपाई के कार्यों को कम कीमत में कर लाभ अर्जित कर सकता है। सूचना प्रौद्योगिकी के विकास से कई प्रकार के नई औद्योगिक इकाईयों का विकास हुआ है। तथा वैश्वीकरण के ये अंग हो गये है। सूचना प्रौद्योगिकी के बिना इस प्रकार के वैश्वीकरण का आज अभाव पाया जा सकता था।
7. विश्व व्यापार संगठन क्या है ? यह कब और क्यों स्थापित किया गया ? 
उत्तर- विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation, WTO) विश्व के प्रमुख देशों की एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जिसकी स्थापना 1994 में हुई। महान आर्थिक मंदी (1929-32) तथा द्वितीय महायुद्ध (1939-45) के समय विश्व के प्राय: सभी देशों में विदेशी व्यापार पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए गए थे। इन प्रतिबंधों के कारण अंतरराष्ट्रीय व्यापार का क्षेत्र क्रमश: संकुचित होता जा रहा था। अतः, व्यापार के विस्तार एवं इसकी सुविधाओं को बढ़ाने के लिए 1948 में जेनेवा में विश्व के 23 देशों के बीच एक समझौता हुआ जिनमें भारत भी सम्मिलित था। यह समझौता ही सामान्य प्रशुल्क एवं व्यापार समझौता, (GATT) कहा जाता है। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य व्यापारिक प्रतिबंधों को कम करना तथा अंतरराष्ट्रीय व्यापार में विभेदात्मक नीति का बहिष्कार करना था। अब इस संगठन का स्थान विश्व व्यापार संगठन ने ले लिया है। सामान्य प्रशुल्क एवं व्यापार समझौते का उद्देश्य केवल उत्पादित वस्तुओं के व्यापार का विस्तार करना था। विश्व व्यापार संगठन ने इसके अंतर्गत सेवाओं, कृषि उत्पादों तथा व्यापार से संबंधित अन्य विषयों को भी शामिल कर लिया है।
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना का उद्देश्य विदेश अथवा अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सभी प्रकार के अवरोधों से मुक्त कराना है। विभिन्न देशों के बीच होनेवाले मुक्त व्यापार के कई लाभ हैं। इससे विश्व उत्पादन एवं आय में वृद्धि होती है, विश्व व्यापार का विस्तार होता है तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार विशिष्टीकरण एवं प्रादेशिक श्रम विभाजन की सुविधा प्रदान करता है। इससे उपभोक्ताओं को भी लाभ होता है और उन्हें कम मूल्य पर ही अधिक उत्तम कोटि की वस्तुएँ प्राप्त होती है। इस प्रकार विश्व व्यापार की स्थापना का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय व्यापार के विस्तार के लिए इसे यथासंभव मुक्त एवं स्वतंत्र बनाना है।
8. राज्य-नियंत्रित उद्योगों से आप क्या समझते हैं ? इन उद्योगों का क्या उद्देश्य है ? 
उत्तर- राज्य अनेक अवसरों पर कुछ विशेष सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उद्योग-धंधों का नियंत्रण और संचालन करती है। राज्य नियंत्रित उद्योगों से अभिप्राय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों अथवा सार्वजनिक उपक्रमों से है। हमारे देश के औद्योगिकीकरण में इन उद्योगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
राज्य - नियंत्रित उद्योगों का मुख्य उद्देश्य
(i) लोकोपयोगी उद्योगों की स्थापना 
(ii) आधारभूत उद्योगों का विकास
(iii) सुरक्षा उद्योगों पर नियंत्रण तथा 
(iv) विकास संबंधी उद्योगों का विकास करना जिससे आर्थिक स्थायित्व देश या राज्य को प्रदान किया जा सके।
9. विदेशी प्रतिस्पर्धा से भारत के लोगों को कैसे लाभ हुआ है ? 
उत्तर- विदेशी प्रतिस्पर्धा के कारण भारत की बड़ी कंपनियों ने भी आधुनिक प्रौद्योगिकी द्वारा अपनी उत्पादन-प्रणाली में सुधार तथा उत्पादन मानकों को ऊँचा उठाने का प्रयास किया है। विदेशी प्रतिस्पर्धा से लोगों के आर्थिक जीवन पर व्यापक प्रभाव देखा गया है। भारतीय बाजारों में मोटरगाड़ियों, सेलफोन, पेय एवं खाद्य पदार्थों आदि उपभोक्ता वस्तुओं की पूर्ति बहुत बढ़ गई है। । आज भारत के लोग उत्कृष्ट गुणवत्तावाले अनेक उत्पादों को कम मूल्य पर ही खरीद सकते हैं।
10. वस्त्र उद्योग के श्रमिक भारतीय निर्यातक तथा विदेशी बहुराष्ट्रीय निगम प्रतिस्पर्धा से किस प्रकार प्रभावित हुए है ?
उत्तर - वैश्वीकरण से श्रमिकों का जीवन व्यापक रूप से प्रभावित हुआ है। मिकों कुशुल की आय में वृद्धि तथा अकुशल श्रमिकों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। विदेशी प्रतिस्पर्धा के कारण नियोजक स्थायी श्रमिकों के बदले अस्थायी श्रमिकों को काम पर लगाते हैं। इससे श्रमिक नियमित नहीं होने के कारण कम वेतन या पारिश्रमिक पर ही अधिक कार्य घंटे तक करते हैं। भारत सिले- सिलाए कपड़ों का एक प्रमुख निर्यातक देश है। विगत वर्षों के अंतर्गत सिले- सिलाए वस्त्रों के निर्यात में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। भारतीय वस्त्र निर्यातक बड़े पैमाने पर वस्त्रों की आपूर्ति का आदेश प्राप्त करने के लिए अपनी उत्पादन लागत को लगातार घटाने का प्रयास करते हैं।
इस प्रकार भारतीय वस्त्र निर्यातकों में प्रतिस्पर्धा से बहुराष्ट्रीय निगमों को कम कीमत पर ही अच्छे गुणवत्ता वाले वस्त्रों की उपलब्धता हो रही है ।
11. भारत सरकार द्वारा विदेशी व्यापार एवं निवेश पर अवरोधक लगाने के क्या कारण थे ? अब इन अवरोधकों को क्यों हटाया जा रहा है ?
उत्तर- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने आर्थिक विकास की जो नीति अपनाई उसके अंतर्गत सार्वजनिक क्षेत्रों को अत्यधिक महत्व दिया गया था निजी निवेश एवं आयात-निर्यात पर कई प्रकार के प्रतिबंध और नियंत्रण लगाए गये थे तथा केंद्रीय नियोजन की नीति अपनाई गई थी। विदेश व्यापार तथा विदेशी निवेश पर नियंत्रण तथा प्रतिबंध लगाये जाने के पिछे मुख्य कारण घरेलु उद्योगों को प्रोत्साहित करना तथा देश के उत्पादकों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से संरक्षण प्रदान करना था।
विदेशी व्यापार तथा विदेशी निवेश पर नियंत्रण तथा प्रतिबंध से भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा । विदेशी व्यापार की प्रतिकूलता तथा विदेशी विनिमय को गंभीर संकट उत्पन्न होने तथा सरकार के बजट और राजकोषीय घाटे में अत्यधिक वृद्धि के कारण सरकार ने जुलाई 1991 से आर्थिक नीति में सुधार की नीति अपनाई तथा उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति को अपनाया।
12. आपके विचार में विभिन्न देशों के बीच अधिकाधिक न्यायसंगत व्यापार के लिए क्या किया जा सकता है ?
उत्तर- भारत में उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीति लगभग 20 वर्ष पूर्व अपनाई गई तथा इसके परिणाम मिश्रित कहे जा सकते हैं। शिक्षित, कुशल और साधन-संपन्न लोगों ने वैश्वीकर से उत्पन्न नए अवसरों का यथोचित उपयोग किया है तथा इस वर्ग के लिए यह लाभदायक रहा है। लेकिन, दूसरी ओर, साधनविहीन व्यक्ति इसके लाभों से वंचित रहे हैं। इससे कुशल तथा अकुशल श्रम के बीच आय की असमानताएँ बढ़ गई हैं। वैश्वीकरण से क्षेत्रीय असमानताओं में भी वृद्धि हुई है। आज वैश्वीकरण एक वास्तविकता है तथा इसके परिणामों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। अतएव, यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है कि वैश्वीकरण को न्यायसंगत कैसे बनाया जा सकता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि सभी व्यक्तियों एवं क्षेत्रों को समान अवसर मिले तथा वैश्वीकरण में सभी की हिस्सेदारी सुनिश्चित हो ।
वैश्वीकरण को न्यायसंगत बनाने में सरकार की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। वैश्वीकरण फलस्वरूप अब हमारी अर्थव्यवस्था खुली अर्थव्यवस्था हो गई है। परंतु, हमारे देश के लघु उद्योगों, छोटे उत्पादकों तथा किसानों में अभी विदेशों से आयातित वस्तुओं से प्रतिस्पर्द्धा करने की क्षमता नहीं है। इन्हें सरकार से उस समय तक आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए जब तक वे इस प्रतिस्पर्द्धा का सामना करने में सक्षम नहीं हो जाते हैं।
वैश्वीकरण के प्रभाव को अनुकूल बनाने के लिए सरकार विश्व व्यापार संगठन (WTO) से भी समझौते कर सकती है। विकसित देशों द्वारा पर्यावरण तथा श्रम मानकों के आधार पर हमारे निर्यातों पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगाए गए हैं। विश्व व्यापार के सफल संचालन के लिए यह आवश्यक है कि विकसित देश ऐसी व्यापार-बाधाओं और अवरोधकों को दूर करें जो विकासशील देशों की बाजार पहुँच (Market access) में रुकावटें पैदा करती हैं। इसके लिए भारत तथा अन्य विकासशील देशों को विश्व व्यापार संगठन पर दबाव डालना होगा।
13. वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं ? 
उत्तर- वैश्वीकरण का अर्थ विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में सामंजस्य स्थापित करना और उन्हें एक-दूसरे से जोड़ना है। इस प्रक्रिया में हम आर्थिक दृष्टि से वैश्विक अथवा अंतराष्ट्रीय स्तर पर पारस्परिक रूप से निर्भर होते हैं। मुक्त व्यापार वैश्वीकरण का आधार है। इस व्यवस्था में वस्तुओं के आयात एवं निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है। इसके अंतर्गत विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाएँ एक बाजार या एक अर्थव्यवस्था हो जाती है। विश्व अर्थव्यवस्थाओं के युग्मन अथवा एकीकरण से उत्पादन के साधनों का इस प्रकार आवंटन होता है जिससे उत्पादन और कुशलता की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होते हैं।
14. वैश्वीकरण के मुख्य अंग क्या है ?
अथवा, वैश्वीकरण की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करें। 
उत्तर- मुक्त व्यापार वैश्वीकरण का आधार है। मुक्त व्यापार का अभिप्राय विदेश अथवा अंतरराष्ट्रीय व्यापार की स्वतंत्रता से है। जब विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं के आवागमन पर कोई प्रतिबंध नहीं होता तब इसे मुक्त व्यापार या स्वतंत्र व्यापार की नीति कहते हैं। आर्थिक सुधारों के क्रम में भारत ने भी वैश्वीकरण या मुक्त व्यापार की नीति अपनाई है। यह आशा की जाती है कि यह नीति देश की विकास दर को अधिक तीव्र बनाने में सहायक होगी। वैश्वीकरण नीति के मुख्य अंग या इसकी विशेषताएँ निम्नांकित हैं—
(i) विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं के मुक्त प्रवाह को प्रोत्साहित करने के लिए व्यापार अवरोधों में कमी
(ii) पूँजी का मुक्त प्रवाह
(iv) श्रम एवं मानव संसाधनों की मुक्त गतिशीलता।
(iii) प्रौद्योगिकी का मुक्त प्रवाह तथा
15. वैश्वीकरण को प्रावित करनेवाले कारकों का उल्लेख करें। अथवा, प्रौद्योगिकी में हानेवाली प्रगति ने वैश्वीकरण को कैसे संभव बनाया है ? 
उत्तर- वैश्वीकरण को प्रभावित करनेवाले कारकों में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होनेवाली प्रगति महत्त्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, पिछले लगभग 50 वर्षों में परिवहन प्रौद्योगिकी में बहुत सुधार हुए हैं। इससे भारी और नाशवान वस्तुओं को भी सुदूर देशों में भेजना संभव हो गया है। इसी प्रकार, वायुपरिवहन की लागत में गिरावट आने से अब वायुमार्ग द्वारा अपेक्षाकृत अधिक मात्रा तथा बहुत कम समय में वस्तुओं को भेजा जा सकता है। लेकिन, वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करनेवाले कारकों में परिवहन प्रौद्योगिकी से भी अधिक महत्त्वपूर्ण सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का विकास है। आज विश्व के प्रायः सभी भागों के उत्पादक, विक्रता एवं ग्राहक एक-दूसरे से बहुत शीघ्र संबंध स्थापित कर सकते हैं। इससे केवल वस्तुओं के ही नहीं, वरन सेवाओं के बाजार का भी विस्तार हुआ है।
16. विश्व व्यापार संगठन का मुख्य उद्देश्य क्या है ? 
उत्तर- विश्व व्यापार संगठन की स्थापना का निर्णय अप्रैल 1994 में लिया गया तथा यह संस्था 1995 से कार्यरत है। इसका मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना तथा सभी देशों के विदेश व्यापार को मुक्त व्यापार के सिद्धांत के अनुसार संचालित करना है। विश्व व्यापार संगठन का उद्देश्य वस्तुओं के साथ ही सेवाओं के व्यापार में भी सुधार लाना है। इनमें बैकिंग, बीमा, संचार एवं जहाजरानी जैसी सेवाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। कई देशों में ऐसे नियम या प्रावधान हैं जिनके द्वारा इन सेवाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। व्यापार के विस्तार के लिए इस संगठन का उद्देश्य सेवाओं पर लगाए गए इन प्रतिबंधों को समाप्त करना है। इस प्रकार, विश्व व्यापार संगठन का मूल उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय व्यापार को यथासंभव मुक्त एवं स्वतंत्र बनाना है।  
17. विश्व व्यापार संगठन के प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख करें।
उत्तर- अंतरराष्ट्रीय व्यापार के विस्तार की दृष्टि से विश्व व्यापार संगठन के प्रावधान अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इनमें अल्पविकसित अथवा विकासशील देशों के लिए भी कई प्रावधान हैं। कृषि के विकास के लिए तीन प्रकार के प्रावधान हैं। इनमें पहला कृषि वस्तुओं के व्यापार से संबंधित है। दूसरे का संबंध अंतरराष्ट्रीय व्यापार को प्रभावित करनेवाली कृषि नीति से है। तीसरा कृषि बीजों पर विशिष्ट अधिकार का है।
विश्व व्यापार संगठन चाहता है कि आयात और निर्यात दोनों पर से प्रतिबंध हटा दिए जाएँ। इसके साथ ही वह द्विपक्षीय के स्थान पर बहुपक्षीय समझौतों के पक्ष में है। व्यापार के विस्तार के लिए इस संगठन का उद्देश्य वस्तुओं के साथ ही सेवाओं पर लगाए गए प्रतिबंधों को समाप्त करना है। इस संगठन ने निवेश पर लगाए गए प्रतिबंध भी हटा दिए हैं।
18. उदारीकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- प्रायः, सरकारें विदेश व्यापार पर कई प्रकार के नियंत्रण या प्रतिबंध लगा देती हैं जिन्हें व्यापार अवरोधक कहते हैं। किसी भी देश की सरकार व्यापार अवरोधक का प्रयोग अपने विदेश व्यापार में कमी या वृद्धि तथा आयातित वस्तुओं की मात्रा या प्रकार को निर्धारित करने के लिए कर सकती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने भी विदेश व्यापार पर कई प्रकार के नियंत्रण और प्रतिबंध लगा दिए थे। घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए तथा उन्हें विदेशी प्रतिस्पर्धा से संरक्षण प्रदान करने के लिए यह आवश्यक माना गया था। लेकिन, कुछ समय पूर्व सरकार ने यह अनुभव किया कि अब भारतीय उत्पादकों के लिए विदेशी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करने का समय आ गया है। अतः उसने अपनी नवीन आर्थिक नीति के अंतर्गत अर्थव्यवस्था को खोलने तथा अनावश्यक नियंत्रणों को समाप्त करने का एक व्यापक कार्यक्रम अपनाया है जिसे उदारीकरण की संज्ञा दी जाती है।
19. निजीकरण का क्या अभिप्राय है ? 
उत्तर- निजीकरण की धारणा विगत वर्षों के अंतर्गत भारतीय अर्थव्यवस्था में किए जानेवाले आर्थिक सुधारों से संबंधित हैं। यह इस विचारधारा के अनुरूप है कि सरकार का कार्य व्यवसाय करना नहीं है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में सार्वजनिक क्षेत्र का बहुत विस्तार हुआ है। लेकिन, सार्वजनिक उपक्रमों का कार्य-संपादन एवं प्रदर्शन आशा के अनुरूप नहीं हो रहा है। इस क्षेत्र के अधिकांश उपक्रम घाटे में चल रहे हैं अथवा बहुत कम लाभ अर्जित करते हैं। अतएव, . अब भारत सरकार की विचारधारा एवं उसकी आर्थिक नीति निजीकरण के पक्ष में है। इसके फलस्वरूप निजी क्षेत्र को अनेक प्रतिबंधों से मुक्त कर दिया गया है। अब निजी क्षेत्र कई ऐसी औद्योगिक क्रियाओं के संचालन में प्रवेश कर सकता है जो इसके पूर्व केवल सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित थे। निजी क्षेत्र का विस्तार करने के लिए विदेशी कंपनियों को भी देश में अपने उद्यम स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है ।
20. भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की दृष्टि से वैश्वीकरण की नीति का मूल्यांकन करें।
उत्तर- भारत सरकार ने जुलाई 1991 से जो आर्थिक सुधार किए हैं उनसे हमारे देश को विश्व अर्थव्यवस्था से जोड़ने में सहायता मिली है तथा विकास की दृष्टि से इसके कुछ उत्साहवर्द्धक संकेत मिले हैं। 1992-98 की अवधि में हमारी औसत वार्षिक विकास दर 6.5 प्रतिशत रही जबकि 1950-80 के बीच यह केवल 3.5 प्रतिशत थी। 2008 में वैश्विक मंदी आरंभ होने के पूर्व के चार वर्षों में हमारी वार्षिक विकास दर बढ़कर लगभग 9 प्रतिशत हो गई थी। वैश्वीकरण से हमारी अर्थव्यवस्था को कई अन्य लाभ भी हुए हैं। वैश्वीकरण के पश्चात हमारे निर्यातों में भी निरंतर वृद्धि हो रही है और अब यह विश्व की कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से भी. अधिक है। इसी प्रकार अन्य देशों द्वारा भारत में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में किया जानेवाला निवेश अर्थात प्रत्यक्ष निवेश बढ़ा है। इससे आर्थिक विकास को बहुत प्रोत्साहन मिला है तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है।
21. वैश्वीकरण एवं विदेशी प्रतिस्पर्द्धा से भारतीय श्रमिक किस प्रकार प्रभावित हुए हैं? 
उत्तर- वैश्वीकरण से भारतीय श्रमिकों का जीवन व्यापक रूप से प्रभावित हुआ है। इससे प्रायः कुशल श्रमिकों की आय में वृद्धि हुई है। लेकिन, अकुशल श्रमिकों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। वैश्वीकरण से प्रतिस्पर्द्धा बहुत बढ़ गई है। प्रतिस्पर्द्धा के कारण अधिकांश नियोजक रोजगार की शर्तों को लचीला बनाने के लिए प्रयासरत हैं तथा अपनी आवश्यकतानुसार श्रमिकों को नियुक्त और उनकी छँटनी करना चाहते हैं। इसका एक उदाहरण परिधान उद्योग है। भारत सिले- सिलाए कपड़ों का एक प्रमुख निर्यातक देश है। विगत वर्षों के अंतर्गत हमारे देश से सिले- सिलाए कपड़ों के निर्यात में बहुत वृद्धि हुई है। अमेरिका और यूरोप के परिधान उद्योग के अनेक बहुराष्ट्रीय निगम भारतीय उत्पादकों एवं निर्यातकों को वस्त्रों की आपूर्ति के लिए आदेश की कठिनाइयाँ बढ़ गई हैं।अधिकतम लाभ अर्जित करने के लिए विश्व व्यापार से संबद्ध बहुराष्ट्रीय निगम स्वभावतः सस्ती-से- सस्ती वस्तुओं की खोज में रहते हैं। इनसे बड़े पैमाने पर वस्त्रों की आपूर्ति का आदेश प्राप्त करने के लिए भारत के परिधान निर्यातकों ने भी अपनी उत्पादन लागत को घटाने का प्रयास किया है। इनके लिए कच्चे माल तथा अन्य लागतों में कमी लाना संभव नहीं है। अतएव, नियोजक श्रम लागत को घटाने का प्रयास करते हैं। इसके लिए वे प्रायः दो तरीकों का प्रयोग करते हैं। पहला, जहाँ वे पूर्व में स्थायी श्रमिकों को नियुक्त करते थे वहाँ अब अस्थायी श्रमिकों को काम पर लगाते हैं। इससे उन्हें श्रमिकों को पूरे वर्ष वेतन नहीं देना पड़ता है। दूसरा, अस्थायी श्रमिकों से वे कम वेतन या पारिश्रमिक पर ही अधिक कार्य-घंटों तक काम लेते हैं। सेवा नियमित और स्थायी नहीं होने के कारण इस प्रकार के श्रमिक अतिरिक्त समय में भी काम करने के लिए बाध्य होते हैं। यही कारण है कि वैश्वीकरण के पश्चात भारत की अनेक औद्योगिक इकाइयों में श्रमिकों की कठिनाइयाँ बढ़ गई है 

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