1. निर्धनता रेखा क्या है ? हमारे देश में निर्धनता रेखा का निर्धारण किस प्रकार होता है?
उत्तर - निर्धनता संबंधी अध्ययन की दृष्टि से निर्धनता रेखा की धारणा अत्यधिक महत्वपूर्ण है। निर्धनता का संबंध एक न्यूनतम जीवन स्तर से है। निर्धनता की माप के लिए मुख्यतया आय अथवा उपभोग के स्तर को आधार बनाया जाता है। किसी भी देश के नागरिकों के लिए एक न्यूनतम जीवन स्तर की व्यवस्था आवश्यक है। जिन व्यक्तियों की आय अथवा उपभोग का स्तर एक निर्धारित जीवन स्तर से नीचे है उन्हें निर्धन की संज्ञा दी जाती है। परंतु, मनुष्य की आधारभूत न्यूनतम आवश्यकताएँ भी विभिन्न समय अथवा विभिन्न देशों में एकसमान नहीं होती हैं। इसके फलस्वरूप समय और स्थान के साथ ही निर्धनता रेखा में भी परिवर्तन हो सकता है। निर्धनता की पहचान के लिए सामाजिक दशा तथा आर्थिक विकास के स्तर को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक देश एक काल्पनिक रेखा का प्रयोग करता है। यह रेखा प्रायः विभिन्न देशों के लिए अलग-अलग होती हैं। इसका कारण यह है कि निर्धनता की धारणा एक सापेक्षिक धारणा है। अमेरिका जैसे एक विकसित देश में निर्धनता या गरीबी का अर्थ भारत से सर्वथा भिन्न होगा।
निर्धनता रेखा को निर्धारित करने के लिए भारत में भोजन, वस्त्र, जलावन, रोशनी, शिक्षा - सामग्री, दवा आदि जैसी वस्तुओं की एक न्यूनतम मात्रा निश्चित कर दी जाती है जो हमारे जीवन के लिए अति आवश्यक हैं। इन सभी वस्तुओं के मूल्यों के योग से निर्धनता अथवा गरीबी रेखा का निर्धारण होता है। वर्तमान विधि के अनुसार, निर्धनता रेखा के निर्धारण तथा भोजन की ; आवश्यकताओं को जानने के लिए न्यूनतम आवश्यक कैलोरी का अनुमान लगाया जाता है। व्यक्ति की आयु, लिंग, कार्य की प्रकृति आदि के अनुसार उसकी कैलोरी की आवश्यकताओं में भी अंतर होता है। शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों को शारीरिक श्रम अधिक करना पड़ता है। अतः, उनकी कैलोरी की आवश्यकताओं के अनुसार प्रतिव्यक्ति निर्धारित मौद्रिक व्यय में भी समय-समय पर संशोधन करती रहती है ।
शहरी क्षेत्र में रहनेवाले व्यक्तियों को कम कैलोरी की आवश्यकता होती है। फिर भी उन लिए अधिक राशि निर्धारित करने का कारण यह है कि गाँव की अपेक्षा शहरी क्षेत्रों में आवश्यक उपभोक्ता पदार्थों का मूल्य अधिक होता है। एक नियत समय, प्रायः प्रत्येक पाँच वर्षों पर प्रतिदर्श सर्वेक्षण द्वारा निर्धनता रेखा का अनुमान लगाया जाता है। इस प्रकार का सर्वेक्षण राष्ट्रीय प्रतिदर्श जाँच संगठन द्वारा संपादित किए जाते हैं। योजना आयोग द्वारा वर्ष 2005 में ग्रामीण क्षेत्रों में एक व्यक्ति के लिए निर्धनता रेखा की राशि प्रतिमाह 356 रु० तथा शहरी क्षेत्रों में 538 रुपये निर्धारित की गई है।
2. बिहार में गरीबी के आयाम की विवेचना करें।
अथवा, बिहार में गरीबी के विस्तार का अनुमान बताएँ।
उत्तर- बिहार उत्तर पूर्वी भारत एक महत्वपूर्ण राज्य है। जनसंख्या के आधार पर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद इसका देश में तीसरा स्थान है। यहाँ भारत की कुल जनसंख्या के 8 प्रतिशत से भी अधिक लोग निवास करते हैं। परंतु, आर्थिक दृष्टि से यह देश के सर्वाधिक पिछड़े राज्यों में है और यहाँ गरीबी का आयाम अथवा क्षेत्र बहुत व्यापक है।
बिहार में गरीबी या निर्धनता की समस्या बहुत गंभीर है। यहाँ की कुल जनसंख्या का लगभग 41 प्रतिशत भाग निर्धनता रेखा के नीचे जीवन व्यतीत करता है जबकि निर्धनों का राष्ट्रीय औसत अब घटकर लगभग 26 प्रतिशत हो गया है। योजना आयोग द्वारा अभी हाल में जारी 2004-05 · के लिए निर्धनता संबंधी एक अनुमान के अनुसार उत्तर प्रदेश के बाद बिहार में निर्धन व्यक्तियों की संख्या सबसे अधिक है। इस अध्ययन के अनुसार, 1993-94 के बाद यहाँ निर्धनों के अनुपात में कोई कमी नहीं हुई है। बिहार के शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में निर्धनता की समस्या विद्यमान है। किंतु शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या अधिक उग्र है। योजना आयोग के अनुसार, 1999-2000 में बिहार में शहरी जनसंख्या का लगभग 32 प्रतिशत तथा ग्रामीण जनसंख्या का 44 प्रतिशत गरीबी रेखा के नीचे था।
बिहार में ग्रामीण निनिता की मात्रा ही नहीं, वरन उसकी गहराई भी अधिक है। इसका प्रमुख कारण ग्रामवासियों की कृषि पर अत्यधिक निर्भरता, कृषि का पिछड़ापन और उसकी सामयिक प्रकृति है। विगत वर्षों के अंतर्गत बिहार की अर्थव्यवस्था में कोई संरचनात्मक परिवर्तन नहीं हुआ है तथा कृषि क्षेत्र के बाहर रोजगार के बहुत सीमित अवसर उपलब्ध है। परिणामत:, ग्रामीण बिहार में अर्द्ध-बेरोजगारों की संख्या देश में सबसे अधिक है। इनमें अधिकांश भूमिहीन और सीमांत किसान हैं जो कृषि-श्रमिक के रूप में कार्य करने के लिए बाध्य है। इनकी मजदूरी प्राय: सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी की दरों से भी बहुत कम होती है और वे घोर निर्धनता में जीवन-यापन करते हैं।
इस प्रकार, बिहार में गरीबी का आयाम अथवा क्षेत्र बहुत व्यापक है तथा गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले व्यक्तियों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है।
3. बिहार में गरीबी के कारणों की विवेचना करें।
उत्तर- गरीबी या निर्धनता भारत की एक देशव्यापी समस्या है। परंतु अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में यह समस्या अधिक व्यापक और गंभीर है। बिहार की निर्धनता के कई कारण है। जिनमें अग्रांकित प्रमुख है।
(i) रोजगार के अवसरों का अभाव- देश के प्रमुख राज्यों में बिहार का औद्योगिक क्षेत्र सबसे छोटा और अल्पविकसित है। परिणामतः, राज्य की लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या अपने जीविकोपार्जन के लिए कृषि क्षेत्र में संलग्न है। ग्रामीण बिहार में कृषि क्षेत्र के बाहर रोजगार के बहुत सीमित अवसर उपलब्ध हैं। ग्रामीण जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग भूमिहीन और सीमांत किसानों का है। रोजगार के अवसरों के अभाव में अधिकांश भूमिहीन और सीमांत किसान कृषि एवं इससे संबद्ध कार्यों में ही दैनिक मजदूर के रूप में कार्य करने के लिए बाध्य होते हैं। इनकी मजदूरी की दरें अपेक्षाकृत बहुत कम होती हैं तथा ग्रामीण समाज का यह वर्ग सर्वाधिक निर्धनों की श्रेणी में शामिल है।
(ii) अर्द्ध-बेरोजगारी- ग्रामीण बिहार में अर्द्ध-बेरोजगारों की संख्या देश में सबसे अधिक है। इसका प्रमुख कारण कृषि पर अत्यधिक निर्भरता तथा कृषि कार्यों की सामयिक प्रकृति है। अर्द्ध बेरोजगार होने के कारण अधिकांश ग्रामवासियों की आय बहुत कम है और यह उनकी निर्धनता का एक प्रमुख कारण है। R -
(iii) भूमि का स्वामित्व — ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि को स्वामित्व का निर्धनता से घनिष्ठ संबंध है। भूमि किसानों के लिए आय का साधनमात्र ही नहीं है। इसके स्वामित्व से उनके सामाजिक एवं आर्थिक अवसरों में भी वृद्धि होती है। परंतु, बिहार में भूमि सुधार कार्यक्रमों का कार्यान्वयन अत्यंत दोषपूर्ण है।
(iv) पशुओं की घटिया किस्म - हमारे देश के ग्रामीण परिवारों के लिए पशुधन एक महत्त्वपूर्ण उत्पादक परिसंपत्ति होता है, बिहार के अधिकतर ग्रामीण परिवार भी कोई-न-कोई पशु पालते हैं, जो उनकी आय का अतिरिक्त स्रोत होता है। परंतु, इस पशुधन का स्तर बहुत ही निम्न कोटि का है।
(v) शिक्षा का अभाव – शिक्षा मानव विकास का एक महत्वपूर्ण घटक है। शिक्षा के स्तर में सुधार होने से गैर-कृषि क्षेत्र का विकास होता है और आर्थिक क्रियाकलाप में विविधता आती है। परंतु, बिहार के ग्रामीण परिवारों में शिक्षा की बहुत कमी है। इसके फलस्वरूप वे मुख्यतया कृषि अथवा गैर- कृषि - श्रमिक के रूप में कार्य करते हैं और उन्हें बहुत कम मजदूरी मिलती है।
(vi) जातिगतं विशेषताएँ - ग्रामीण परिवारों की निर्धनता और उनकी सामाजिक स्थिति में निकट संबंध है। सामाजिक तथा जातिगत विशेषताएँ कार्य एवं विकास में बाधक सिद्ध होती हैं। अतः, अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को रोजगार और व्यवसाय के बहुत कम अवसर उपलब्ध होते हैं और इनमें निर्धनों की संख्या सर्वाधिक है।
4. बिहार में गरीबी का प्रमुख कारण क्या हैं? इस समस्या के समाधान के लिए सुझाव दें।
उत्तर- निर्धनता निवारण के लिए बिहार में, विशेषतया राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इन कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य इन इलाकों में रहनेवाले निर्धन और कमजोर वर्ग के लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना है। समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम राज्य में निर्धनता निवारण का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम था। यह कार्यक्रम 1979 में प्रारंभ हुआ था। इसका उद्देश्य निर्धन ग्रामीण परिवारों की उत्पादक निवेश के लिए व्यावसायिक बैंक से कम ब्याज पर साख उपलब्ध कराना था। अब इस कार्यक्रम को स्वरोजगार के कई अन्य कार्यक्रमों के साथ स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना में समाहित कर दिया गया है।
अभी निर्धनता निवारण के लिए राज्य में जो कार्यक्रम चल रहे हैं उनमें स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY), संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (SGRY), अंत्योदय अन्न योजना (AAY), इंदिरा आवास योजना (IAY) आदि प्रमुख है। स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना अप्रैल 1999 में आरंभ की गई। इसका उद्देश्य निर्धन ग्रामीण परिवारों को निर्धनता रेखा से ऊपर लाने के लिए उन्हें स्व-सहायता समूहों के रूप में संगठित करना है। इसके लिए इस कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनों की क्षमता और स्थानीय संभावनाओं के आधार पर बहुत बड़ी संख्या में ऐसे अतिलघु उद्योगों की स्थापना पर बल दिया गया है, जो दीर्घकाल तक आय-सृजन में सहायक हो। संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना सितंबर 2001 में प्रारंभ हुई। यह एक मजदूरी रोजगार योजना है तथा इसके अंतर्गत रोजगार देने में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे परिवारों को वरीयता दी जाती है। सरकार द्वारा निर्धनों में भी निर्धनतम व्यक्तियों के लिए दिसंबर 2000 से अंत्योदय अन्न योजना आरंभ की गई है। वर्तमान में इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक निर्धन परिवार को 2 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूँ तथा 3 रुपये प्रति किलोग्राम चावल की अत्यधिक रियायती दर पर 35 किलोग्राम खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है। इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत ग्रामीण निर्धनों को आवासीय इकाइयों के निर्माण के लिए 25,000 रुपये तथा अनुपयोगी कच्चे मकानों को अर्द्ध-पक्के मकानों में बदलने के लिए 12,500 रुपये सहायता अनुदान दिया जाता है।
5. बिहार में निर्धनता के कारणों की व्याख्या करें। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार ने क्या उपाय किए हैं?
उत्तर-गरीबी या निर्धनता भारत की एक देशव्यापी समस्या है। परंतु अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में यह समस्या अधिक व्यापक और गंभीर है। बिहार की निर्धनता के कई कारण है। जिनमें अग्रांकित प्रमुख है।
(i) राष्भाट्ररिय काम के बदले अनाज कार्तयक्रम - भारत सरकार ने इसे 2004 ई० से है । यह कार्यक्रम उन सभी ग्रामीण गरिवों के लिए है, जिन्हें मजदूरी पर रोजगार की आवश्यकता है । यह कार्यक्रम केंद्र सरकार द्वारा चलाया जाता है । श्रमिकों को काम के बदले अनाज दिया जाता है ।
(ii) राज्य रोजगार गारंटी कोष- इसके अन्तर्गत अगर आवेदक को 15 दिनों के अन्दर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया तो वह बेरोजगारी भत्ता का हकदार होगा ।
(iii) मध्याह्न भोजन योजना - इस योजना के अन्तर्गत स्कूली बच्चों को भोजन दिया जाता है। इसका भार भी केन्द्र सरकार ही वहन करती है। इस योजना से प्राथमिक एवं मध्य विद्यालय के छात्र एवं छात्राएँ लाभान्वित होते हैं ।
(iv) न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम - यह कार्यक्रम सर्वप्रथम पाँचवीं पंचवर्षीय योजना काल में गरीबी निवारण के लिए लागू किया गया। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत देश की गरीब जनता को कम-से-कम न्यूनतम जरूरतों जैसे- पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं आदि की पूर्ति की जाती है ।
(v) समेकित प्रामीण विकास कार्यक्रम- यह कार्यक्रम 1980 से लागू किया गया है। यह एक स्वरोजगार कार्यक्रम है जिसमें गाँवों के गरीबों को उत्पादक परिसंपत्ति देकर उनकी आय में वृद्धि की कोशिश की जाती है ।
(vi) स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना – अप्रैल 1999 में समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम का नाम स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना कर दिया गया । केन्द्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों के लिए इस कार्यक्रम को एक महत्त्वपूर्ण स्वरोजगार कार्यक्रम के रूप में चालू रखा गया ।
(vii) जवाहर रोजगार योजना- यह एक मजदूरी आधारित रोजगार कार्यक्रम है। इस कमकार्यक्रम को अप्रैल 1989 में प्रारंभ किया गया था। इसके माध्यम से भूमिहीन परिवार के कम-से-कम एक सदस्य को वर्ष में 100 दिनों को रोजगार मुहैया कराया जाता है ।
(viii) प्रधानमंत्री रोजगार योजना- 1993-94 में यह योजना शहरी क्षेत्र में प्रकार शिक्षित युवकों को स्वरोजगार मुहैया कराने के लिए प्रारंभ की गई हैं। 1994-95 में इसे ग्रामीण क्षेत्र के लिए भी विस्तारित किया गया। 2001 के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ने 10,000 करोड़ की संपूर्ण रोजगार योजना की घोषणा की।
(ix) प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना- इस योजना को 2000-61 में ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के जीवन में गुणवत्ता के सुधार के लिए स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, पेयजल, आवास एवं ग्रामीण सड़कों में सुधार का कार्यक्रम रखा गया है।
(x) स्वर्णजयंती शहरी रोजगार योजना- यह कार्यक्रम दिसम्बर 1997 से प्रारंभ किया गया है। इसके अन्तर्गत शहरी क्षेत्र में गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करनेवाले शिक्षित बेरोजगार और कम रोजगाररत लोगों को रोजगार प्रदान किया जाता है।
6. गरीबी उन्मूलन के लिए किए जानेवाले सरकारी एवं गैर सरकारी प्रयासों की विवेचना करें।
उत्तर- गरीबी निवारण के लिए सरकार ने पिछड़े क्षेत्रों में काम के बदले अनाज का कार्यक्रम चलाया है। राज्य रोजगार गारंटी कोष से बेरोजगासरों को भत्ता दी जाती है। सरकारी प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में मध्याह्न भोजन योजना का प्रारंभ किया गया है। देश के गरीब लोगों को सरकार के द्वारा पेयजल, प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं की पूर्ति की जाती है। गरीबों को उत्पादक परिसंपत्ति देकर स्वरोजगार कार्यक्रम चलाया गया है। जवाहर रोजगार योजना के • अन्तर्गत राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम एवं ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम की व्यवस्था की गई है । शहरी क्षेत्र में बेकार शिक्षित युवकों को स्वरोजगार मुहैया किया गया प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, पेयजल, आवास और ग्रामीण सड़कों में सुधार किया गया है ।
गरीबी के निदान के लिए गैर-सरकारी प्रयास निम्नलिखित है-
(i) स्वरोजगार - गरीब व्यक्ति प्रशिक्षण प्राप्त कर बैंक की सहायता से खुद रोजगार प्रारंभ कर देते हैं। बैंक के कर्ज चुकता होने पर व्यक्ति का वह रोजगार अपना हो जाता है और वह स्वावलम्बी हो जाता है। आय बढ़ने से व्यक्ति के रहन-सहन में बदलाव आ जाता है ।
(ii) सामूहिक खेती- सामूहिक खेती के द्वारा गरीब कृषक तथा मजदूर की खेती में लगायी जानेवाली पूँजी की सुरक्षा की गारंटी हो जाती है। यहाँ पर व्यक्ति स्वतंत्र रूप से कार्य करता है और लोग एक-दूसरे के दुख और हानि आपस में बाँटते हैं। गरीब-से-गरीब व्यक्ति भी अपने इस प्रयास से जीवन शैली में बदलाव लाते हैं ।
(iii) सामुदायिक विकास कार्यक्रम- गाँवों में इसके अन्तर्गत विकास के कार्य लोग एक साथ मिलकर करते हैं। मजदूरी एवं लाभ को बराबर आपस में बाँटते हैं। इससे गरीब लोगों की आय बढ़ती है और उनकी गरीबी दूर हो जाती हैं ।
(iv) स्वयं सहायता समूह- स्वयं सहायता समूह के अन्तर्गत ग्रामीण महिला एवं पुरुष गाँव के स्तर पर काम करते हैं। उन्हें बैंक के द्वारा कर्ज देकर प्रोत्साहित किया जाता है। एक समूह में 15 से 20 लोग रहते हैं। कर्ज वापसी की जवाबदेही समूह के सभी सदस्यों को बराबरी का होता है। समूह में जो भी आमदनी होती है उसे आपस में बराबर-बराबर बाँट दिया जाता है।
7. शहरी और ग्रामीण निर्धनता के दो विशिष्ट उदाहरण दें।
उत्तर-(i) शहरी गरीबी- पैंतीस वर्षीय रामपुकार पटना के निकट गेहूँ के आटे की एक मिल में दैनिक श्रमिक के रूप में काम करता है। रोजगार मिलने पर वह एक महीने में लगभग 1500 रुपये कमा लेता है। उसके परिवार में उसकी पत्नी और 6 माह से 12 वर्ष तक की आयु के चार बच्चे हैं। उसे अपने बूढ़े माता-पिता को गाँव में पैसा भेजना पड़ता है।
रामपुकार शहर के बाहरी क्षेत्र में किराए पर एक कमरे के मकान में रहता है। यह ईंटों एवं मिट्टी के खपड़ों से बनी एक कामचलाऊ झोपड़ी है। उसकी पत्नी नौकरानी का कार्य कर 800 रु० और कमा लेती है। रामपुकार का परिवार किसी प्रकार दिन में दोबार दाल और चावल का अल्प भोजन जुटा लेता है। परन्तु यह भोजन उन सबके लिए पर्याप्त नहीं होता । उसका बड़ा बेटा चाय की दूकान में काम कर 300 रुपये और कमा लेता है। उसकी 10 साल की बेटी छोटे बच्चों की देखभाल करती है। कोई भी बच्चा स्कूल नहीं जाता । उसके परिवार में प्रत्येक के पास दो जोड़े फटे-पुराने कपड़े ही हैं। नए कपड़े तभी खरीदे जाते हैं जब पुराने बिल्कुल पहनने योग्य नहीं रहते। उनके पाँवों में जूते नहीं हैं। छोटे बच्चे अल्प-पोषित रहते हैं। बीमार पड़ने पर उन्हें चिकित्सा की सुविधा नहीं मिलती है ।
(ii) ग्रामीण गरीबी - राजेन्द्र सिंह बिहार में नालन्दा के पास एक गाँव इस्लामपुर में रहनेवाला है । वह भूमिहीन है । वह बड़े किसानों के लिए छोटे-मोटे काम करता है। काम और आय दोनों अनियमित है। कई बार उसे पूरे दिन की मेहनत के बदले 60 रु० ही मिलती है। लेकिन प्रायः खेतों में पूरे दिन मेहनत करने के बाद कुछ किलोग्राम गेहूँ, दाल या थोड़ी-सी सब्जी ही मिल पाती है । उसके परिवार में सदस्यों की संख्या आठ है जिन्हें दो वक्त का भोजन नहीं मिलता । राजेन्द्र सिंह गाँव के बाहर एक कच्ची झोपड़ी में रहता है। परिवार की महिलाएँ पूरा दिन खेतों में चारा काटने तथा खेतों से जलाने की लकड़ियाँ बीनने में ही गुजार देती है। उसके पिता यक्ष्मा के रोगी थे, चिकित्सा के अभाव में दो वर्ष पूर्व उनकी मृत्यु हो गई । उसकी माँ उसी बीमारी से ग्रस्त है और वह भी मरणासन्न की ओर अग्रसर है। यद्यपि गाँव में प्राथमिक विद्यालय है । राजेन्द्र सिंह वहाँ भी नहीं गया । उसे 10 वर्ष की उम्र से ही कमाना शुरू करना पड़ा। नए कपड़े खरीदना कुछ वर्षों में ही संभव हो पाता है। यहाँ तक कि परिवार के लिए साबुन तथा तेल भी एक विलासिता है । ऊपर के दो विशिष्ट उदाहरण गरीबी के अनेक आयामों को दर्शाते हैं। वे दर्शाते हैं कि गरीबी का अर्थ भुखमरी तथा आश्रय का न होना है।
8. भारतवासियों की निर्धनता को दूर करने के लिए कौन-से उपाय आवश्यक है ?
उत्तर- भारत की निर्धनता को दूर करने तथा यहाँ के निवासियों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए निम्नलिखित उिपाय आवश्यक हैं—
(i) प्राकृतिक संसाधनों काससुचित उपयोग – भारत में प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है। लेकिन, हम उनका पूर्ण उपयोग करने में असफल रहे हैं। अतः, निर्धनता की समस्या को समाधान के लिए देश के प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों का पूर्ण एवं समुचित उपयोग आवश्यक है।
(ii) कृषि उत्पादन में वृद्धि— हमारा देश मुख्यतः एक कृषि प्रधान देश रहा है। कृषि के विकास और उपज में वृद्धि के बिना देश की गरीबी को दूर करना संभव नहीं है। इसके लिए कृषि का आधुनिकीकरण तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि आवश्यक है।
(iii) देश का उद्योगीकरण- निर्धनता की समस्या के समाधान के लिए देश का उद्योगीकरण भी अनिवार्य है। कृषि पर जनसंख्या का बोझ बहुत अधिक होने के कारण ही ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनों की संख्या अधिक है। उद्योगीकरण से कृषि पर जनभार कम होगा, नागरिकों की प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होगी और निर्धनता के निवारण में सहायता मिलेगी।
(iv) पूँजी की व्यवस्था - कृषि एवं उद्योगों के विकास के लिए पर्याप्त पूँजी आवश्यक है। भारत में बचत एवं पूँजी निर्माण की दर बहुत कम है। पूँजी की समुचित व्यवस्था करने के लिए देश में पूँजी निर्माण की गति तेज करनी होगी साथ ही, हमें अनुकूल सुविधाएँ देकर विदेशी पूँजी को भी आकृष्ट करना चाहिए।
(v) न्यायोचित वितरण- देश में आय एवं धन का वितरण असमान होने के कारण तथा जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए देश में उत्पादित संपत्ति का समान एवं न्यायोचित अधिकांश व्यक्तियों की उत्पादन क्षमता और कुशलता कम हो जाती है। अतः निर्धनता दूर करने वितरण भी आवश्यक है। (vi) जनसंख्या का नियंत्रण- जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण हमारा जीवन स्तर गिर रहा है तथा देश की निर्धनता बढ़ती जा रही है। जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हमारे आर्थिक विकास की गति भी मंद बना देती है। अतएव, निर्धनता की समस्या के समाधान के लिए जनसंख्या संबंधी एक उपयुक्त नीति का निर्माण एवं अनुपालन आवश्यक है। यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि केवल उत्पादन का समाधान संभव नहीं है। इसके लिए राष्ट्रीय आय एवं सम्पत्ति का समान वितरण भी आवश्यक है।
9. भारत में गरीबी उन्मूलन के लिए अपनाए गए कार्यक्रमों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही निर्धनता-निवारण देश में आर्थिक नियोजन एवं विकास का मुख्य उद्देश्य रहा है। गरीबी उन्मूलन के लिए भारत सरकार ने जो नीति अपनाई है उसके दो मुख्य अंग है। एक और सरकार आर्थिक विकास की दर में वृद्धि के लिए प्रयत्नशील है दूसरी ओर, उसने विशिष्ट कार्यक्रमों द्वारा निर्धनता की समस्या पर प्रत्यक्ष प्रहार किया है। जिन्हें गरीबी उन्मूलन अथवा निर्धनता-निवारण कार्यक्रमों की संज्ञा दी गई है। इनमें अधिकांश केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम हैं जिनका समय-समय पर मूल्यांकन एवं आवश्यकतानुसार पुनर्गठन होता रहा है।
समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP) निर्धनता - निवारण अथवा गरीबी उन्मूलन का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम था। यह कार्यक्रम 1979 में प्रारंभ हुआ था। इसका उद्देश्य निर्धन ग्रामीण परिवारों को उत्पादक निवेश के लिए व्यावसायिक बैंको से कम ब्याज पर साख उपलब्ध कराना था। लेकिन, लक्षित वर्ग के व्यक्तियों को इसका बहुत कम लाभ मिला है। अब इस कार्यक्रम को स्वरोजगार योजना (SGSY) में समाहित कर दिया गया है। 1997-98 में जवाहर रोजगार योजना (JRY) तथा रोजगार आश्वासन योजना (EAS) निर्धनता-निवारण तथा रोजगार प्रदान करने की लेकिन इन कार्यक्रमों को सीमित सफलता मिली है। बहुत व्यापक योजनाएँ थी।
अभी गरीबी उन्मूलन के लिए हमारे देश तथा राज्य में जो कार्यक्रम चल रहे हैं। उनमें स्वर्ण-जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY), संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (SGRY) अंत्योदय अन्न योजना (AAY), इंदिरा आवास योजना (IAY) आदि प्रमुख हैं। स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना अप्रैल 1999 में प्रारंभ की गई। इसका उद्देश्य निर्धन ग्रामीण परिवारों को निर्धनता रेखा से ऊपर लाने के लिए उन्हें स्व-सहायता समूहों के रूप में संगठित करना है। संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना सितंबर 2001 में आरंभ हुई। यह एक मजदूरी रोजगार योजना है तथा इसके अंतर्गत रोजगार देने में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे परिवारों को वरीयता दी जाती है। सरकार द्वारा निर्धनों में भी निर्धनतम व्यक्तियों के लिए दिसंबर 2000 में अंत्योदय अन्न योजना आरंभ की गई है। वर्तमान में इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक निर्धन परिवार को 2 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूँ तथा 3 रुपये प्रति किलोग्राम चावल की अत्यधिक रियायती दर पर 35 किलोग्राम खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है। इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत ग्रामीण निर्धनों को आवासीय इकाइयों के निर्माण के लिए 25,000 रुपये तथा अनुपयोगी कच्चे मकानों को अर्द्ध-पक्के मकानों में बदलने के लिए 12,500 रुपये सहायता अनुदान दिया जाता है।
10. बिहार में निर्धनता की समस्या के समाधान के लिए क्या उपाय आवश्यक हैं ?
उत्तर- बिहार में निर्धनता की समस्या बहुत जटिल है तथा दीर्घकाल से बनी हुई है। इस समस्या के समाधान के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं
(i) कृषि का विकास- विभाजन के पश्चात बिहार राज्य खनिज एवं वन संसाधनों से वंचित हो गया है। अब कृषि हमारी अर्थव्यवस्था का आधार है। अतः, निर्धनता की समस्या के समाधान के लिए कृषि एवं इससे संबद्ध व्यवसायों का विकास आवश्यक है।
(ii) पर्याप्त निवेश— राज्य के प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों के समुचित उपयोग के लिए जल प्रबंधन, परिवहन, ऊर्जा आदि विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता है। लेकिन, बिहार में निजी एवं सरकारी दोनों प्रकार के निवेश का स्तर निम्न है। राज्य सरकार के साधन सीमित हैं। अनेक कारणों से अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में निजी निवेश भी बहुत कम हुआ है। विकास एवं निर्धनता-निवारण के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए राज्य में निवेश के अनुकूल वातावरण का निर्माण अत्यंत आवश्यक है।
(iii) भूमि का न्यायोचित वितरण- हमारे राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि का वितरण बहुत विषम है। ग्रामीण निर्धनता को दूर करने के लिए भूमि का न्यायोचित वितरण आवश्यक है।
(iv) उद्योगीकरण पर बल - विभाजन के पश्चात बिहार के अधिकांश उद्योग एवं खनिज झारखंड राज्य में चले गए हैं। परंतु, विभाजित बिहार में भी चीनी, जूट, तंबाकू तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विकास की अपार संभावनाएँ हैं। इन उद्योगों के विकास से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी और निर्धनता निवारण में सहायता मिलेगी।
(v) सामाजिक सेवाओं की उपलब्धता- शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास आदि आधारभूत सुविधाएँ लोगों की कुशलता और उत्पादन क्षमता को बढ़ाती हैं। इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। परंतु, बिहार में और मुख्यतया इसके ग्रामीण क्षेत्रों में इन सेवाओं की उपलब्धता अपर्याप्त है। निर्धनता की समस्या के समाधान के लिए इनकी उपलब्धता एवं गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है।
(vi) बाढ़-नियंत्रण एवं जल प्रबंधन- बाढ़ और सूखा दोनों ही बिहार की स्थायी समस्याएँ हैं। वस्तुतः, बाढ़ की विभीषिका उत्तर बिहार के निवासियों की निर्धनता का एक प्रमुख कारण है। अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में भूमिगत जल का उपयोग भी बहुत कम होता है। इससे यहाँ प्रायः सूखा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उचित जल प्रबंधन द्वारा ही बाढ़ और सूखा की समस्याओं का समाधान संभव है। इससे किसानों की निर्धनता को दूर करने में बहुत सहायता मिलेगी।
11. बिहार में गरीबी उन्मूलन के लिए किए जानेवाले सरकारी एवं गैर-सरकारी प्रयासों की व्याख्या करें।
उत्तर- गरीबी उन्मूलन के सरकारी प्रयास इसके लिए प्रश्न 8 का उत्तर देखें।
हमारे राज्य के गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है। लोगों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य का गरीबी से प्रत्यक्ष संबंध है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होने से नागरिकों की कुशलता एवं उत्पादन क्षमता बढ़ती है। इससे उनके रहन-सहन के स्तर में भी सुधार होता है। बिहार में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर बहुत निम्न है। बिहार में भी कुछ गैर-सरकारी संगठन शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में सुधार लाने के लिए प्रयत्नशील हैं। उदाहरण के लिए, स्थानीय प्रशासन तथा गैर-सरकारी संगठनों के सामूहिक प्रयास से मुजफ्फरपुर जिले को राष्ट्रीय साक्षरता अभियान के अन्तर्गत वयस्क शिक्षा के प्रसार में देश में सर्वाधिक सफलता मिली है।
परंतु, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा गरीबी उन्मूलन के अन्य कार्यक्रमों में गैर-सरकारी संगठनों की सहभागिता बहुत सीमित है।
Hello My Dear, ये पोस्ट आपको कैसा लगा कृपया अवश्य बताइए और साथ में आपको क्या चाहिए वो बताइए ताकि मैं आपके लिए कुछ कर सकूँ धन्यवाद |