1. गरीबी के दुष्चक्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर - भारत तथा विश्व के अन्य अल्पविकसित देशों में कई प्रकार की शक्तियाँ इस प्रकार क्रिया तथा प्रतिक्रिया करती हैं जिनके कारण एक निर्धन देश गरीबी की अवस्था से बाहर नहीं निकल पाता। एक ओर, आय कम होने के कारण हम बचत नहीं कर पाते और देश में पर्याप्त पूँजी का निर्माण नहीं हो पाता है। इससे हमारा आर्थिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। दूसरी ओर, आर्थिक विकास नहीं होने के कारण हमारी प्रतिव्यक्ति आय कम है तथा देशवासी निर्धन है। इसे ही गरीबी या निर्धनता का दुष्चक्र कहते हैं।
2. सामाजिक निषेध के रूप में निर्धनता की व्याख्या करें।
उत्तर- गरीबी अथवा निर्धनता के अनेक रूप है। यही कारण है कि समाजशास्त्रियों ने इस पर कई दृष्टियों से विचार किया है तथा इसकी व्याख्या कई प्रकार से की है। एक आधुनिक विचारधारा के अनुसार, निर्धनता एक प्रकार का सामाजिक निषेध है। एक निर्धन व्यक्ति अनेक सामाजिक सुविधाओं से वंचित रहता है। वह निर्धन व्यक्तियों के साथ ही एक ऐसे परिवेश या वातावरण में रहता है जहाँ उसे वे सुविधाएँ नहीं प्राप्त होती है जो समाज के धनी और संपन्न व्यक्तियों को प्राप्त हैं। सामाजिक निषेध निर्धनता का कारण एवं परिणाम दोनों हो सकता है। एक निर्धन व्यक्ति, परिवार या वर्ग को उन सुविधाओं, लाभों अवसरों से वंचित रहना पड़ता है जो समाज के उच्च वर्ग को उपलब्ध है। इस प्रकार, सामाजिक निषेध एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे एक निर्धन व्यक्ति या परिवार समाज में उच्च वर्ग को उपलब्ध सुविधाओं एवं असरों से वंचित रहता है। उदाहरण के लिए, हमारे देश में बहुत से लोगों को समान अवसर उपलब्ध नहीं है। निम्न आय की अपेक्षा इस प्रकार का सामाजिक निषेध इनके लिए अधिक घातक सिद्ध होता है इससे इनके भविष्य में भी निर्धन बने रहने की संभावना अधिक रहती हैं।
3. निर्धनता के प्रति भेद्यता से आप क्या समझते हैं
उत्तर- कई आधुनिक लेखकों ने भेद्यता की दृष्टि से भी निर्धनता की समस्या पर विचार किया है। निर्धनता के प्रति भेद्यता इस बात की माप है कि किन व्यक्तियों पर इसका सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है तथा समाज का सर्वाधिक असुरक्षित वर्ग कौन है ? कुछ विशेष व्यक्ति या समुदायों में निर्धन होने या भविष्य में भी निर्धन बने रहने की संभावना अधिक रहती है। उदाहरण के लिए, शारीरिक रूप से अयोग्य एवं अपंग व्यक्ति, अनाथ बच्चे, विधवाएँ अथवा दलित एवं पिछड़े वर्ग 'के लोग निर्धनता से अधिक भेद्य होते हैं तथा इनपर निर्धनता का आघात अधिक गहरा होता है । विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों में निर्धन होने की संभावना तीन गुनी अधिक होती है। ऐसे व्यक्ति, वर्ग या समुदाय गरीबी से अधिक पीड़ित होते हैं जिनके पास साधनों का अभाव है। इन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ अथवा रोजगार के वैकल्पिक अवसर उपलब्ध नहीं होते हैं। बाढ़, भूकंप, महामारी आदि जैसी प्राकृतिक विपदाओं की स्थिति में भी इस वर्ग को सबसे अधिक नुकसान होता है। इसका कारण यह है कि इनमें इन विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता नहीं होती है।
4. गरीबी अथवा निर्धनता रेखा को परिभाषित करें।
उत्तर- गरीबी के आकलन की एक सर्वमान्य विधि आम तथा उपभोग स्तरों पर आधारित है। काल और स्थान के अनुसार गरीबी रेखा भिन्न हो सकती है। अमेरिका में उस आदमी को गरीब माना जाता है जिसके पास कार नहीं है। भारत में गरीबी रेखा कैलोरी मापदंड पर आधारित है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन और शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रतिदिन नहीं प्राप्त करने वाले व्यक्ति को गरीबी रेखा से नीचे माना गया है।
5. शिक्षा और जातिगत विशेषताएँ किस प्रकार बिहार की गरीबी के लिए उत्तरदायी हैं?
उत्तर- शिक्षा मानव विकास का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। शिक्षा के स्तर में सुधार होने से गैर-कृषि क्षेत्र का विकास होता है और आर्थिक क्रियाकलापों में विविधता आती है। परंतु, बिहार के ग्रामीण परिवारों में शिक्षा की बहुत कमी है। इसके फलस्वरूप वे मुख्यतया कृषि अथवा गैर-कृषि श्रमिक के रूप में कार्य करते हैं और उन्हें बहुत कम पारिश्रमिक मिलता है।
ग्रामीण परिवारों की निर्धनता और उनकी सामाजिक स्थिति में निकट संबंध है। सामाजिक अथवा जातिगत विशेषताएँ कार्य एवं विकास में बाधक सिद्ध होती है। अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा अल्पसंख्यक समुदाय के लोग प्रायः भूमिहीन एवं अशिक्षित है। उन्हें रोजगार और व्यवसाय के बहुत कम अवसर उपलब्ध होते हैं। उदाहरण के लिए, बिहार में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लगभग 60 प्रतिशत परिवार मजदूरी की बहुत निम्न दर पर कृषि श्रमिक के रूप में कार्यरत है जबकि अन्य ग्रामीण परिवारों का केवल 30 प्रतिशत इस कार्य में संलग्न है।
इस प्रकार, राज्य के प्रतिकूल सामाजिक वातावरण के कारण बिहार में गरीबी की समस्या बहुत जटिल है। विश्व बैंक के बिहार प्रतिवेदन के अनुसार, उच्च वर्ग की अपेक्षा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों में निर्धन होने की संभावना तीन गुनी अधिक होती है।
6. बिहार में निर्धनता की समस्या के निदान के क्या उपाय हैं ?
उत्तर- राज्य के विभाजन के पश्चात बिहार खनिज एवं वन संसाधनों से वंचित हो गया है। अब कृषि हमारी अर्थव्यवस्था का आधार है। राज्य की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्यों में संलग्न है और इसके कुल घरेलू उत्पाद का लगभग 40 प्रतिशत इसी से प्राप्त होता है। परंतु, यहाँ की कृषि अनेक समस्याओं से ग्रस्त है। गरीबी की समस्या के समाधान के लिए कृषि एवं इससे संबद्ध व्यवसायों का विकास आवश्यक है। बिहार का औद्योगिक क्षेत्र बहुत छोटा और सीमित है। विभाजन के पश्चात यहाँ के अधिकांश उद्योग झारखंड राज्य में चले गए हैं। परंतु, विभाजित बिहार में भी चीनी, जूट, तंबाकू तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विकास की अपार संभावनाएँ हैं। इन उद्योगों के विकास से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी और गरीबी की समस्या के निदान में सहायता मिलेगी।
कृषि एवं उद्योगों के विकास तथा राज्य में जल प्रबंधन, परिवहन, ऊर्जा आदि आवश्यक आधार संरचना के निर्माण के लिए पर्याप्त निवेश की आवश्यकता है। लेकिन, बिहार में निजी एवं सरकारी दोनों प्रकार के निवेश का स्तर निम्न है। विकास एवं निर्धनता निवारण के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए राज्य में निवेश के अनुकूल वातावरण का निर्माण अत्यंत आवश्यक है । बाढ़ और सूखा दोनों ही बिहार की स्थायी समस्याएँ हैं। किसानों की निर्धनता को दूर करने के लिए उचित जल प्रबंधन द्वारा इस समस्या का समाधान भी आवश्यक है।
7. गरीबी को परिभाषित करें।
उत्तर- आज विश्व का लगभग दो-तिहाई भाग गरीबी या निर्धनता से ग्रसित है लेकिन, वास्तव में गरीबी किसे कहते हैं। गरीबी को परिभाषित करना सरल नहीं है। इसके लिए प्राय: जीवन की आधारभूत एवं न्यूनतम आवश्यकताओं की धारणा का प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक समाज के लिए कुछ न्यूनतम आवश्यकताएँ होती है। जिनकी पूर्ति अनिवार्य है। इसके अंतर्गत भोजन, पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास इत्यादि की सुविधाएँ आती है। जिस देश या समाज के निवासियों की इन न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती, उसे निर्धन की संज्ञा दी जाती है। इस प्रकार, निर्धनता या गरीबी का संबंध एक न्यूनतम जीवन स्तर तथा आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति से है। -
8. योजना आयोग ने किस आधार पर निर्धनता की परिभाषा दी है?
उत्तर- गरीबी या निर्धनता को निर्धारित करने के लिए भारत में भोजन, वस्त्र, जलावन, रोशनी, शिक्षा सामग्री, दवा आदि जैसी वस्तुओं की एक न्यूनतम सीमा निश्चित कर दी जाती है। जो हमारे जीवन के लिए अति आवश्यक है। इन सभी वस्तुओं के मूल्यों के योग से गरीबी का निर्धारण होता है। योजना आयोग ने निर्धनता को परिभाषा लोगों के पौष्टिक आहार के आधार पर दी है। जानने के लिए किसी व्यक्ति की न्यूनतम आवश्यक कैलोरी का अनुमान लगाया जाता है। योजना आयोग के अनुसार, भारत में यदि गाँव में किसी व्यक्ति को 2,400 कैलोरी तथा शहर में 2,100 कैलोरी नहीं मिलती तो उसे निर्धन की श्रेणी में रखा जाएगा।
9. गरीबी रेखा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- गरीबी या निर्धनता के अध्ययन की दृष्टि से गरीबी रेखा की धारणा अत्यधिक महत्वपूर्ण है। निर्धनता का संबंध एक न्यूनतम जीवन स्तर से है। किसी भी उन्नत देश के नागरिकों के लिए एक न्यूनतम जीवन-स्तर की व्यवस्था आवश्यक है। इस प्रकार, गरीबी रेखा के अंतर्गत ऐसे व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है जिनकी आय एक न्यूनतम जीवन-स्तर से नीचे रहती है। गरीबी की प्रमुख विशेषता निम्न प्रतिव्यक्ति आय है जिसके कारण कोई व्यक्ति जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करने में भी असमर्थ होता है।
10. 'निर्धनता की धारणा एक सापेक्ष धारणा है।' कैसे ?
स्तर- निर्धनता का संबंध एक न्यूनतम जीवन स्तर तथा आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति से है। जिन व्यक्तियों की आय अथवा उपभोग का स्तर एक निर्धारित जीवन-स्तर से नीचे है उन्हें निर्धन की संज्ञा दी जाती है। लेकिन, यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि निर्धनता की धारणा एक सापेक्षिक धारणा है। उदाहरण के लिए, अमेरिका जैसे एक विकसित देश में निर्धनता का अर्थ भारत से सर्वथा भिन्न होगा। इसका कारण यह है कि अमेरिका का एक औसत नागरिक भारत की तुलना में अधिक उच्च जीवन स्तर का अभ्यस्त है।
11. क्या आप समझते हैं कि निर्धनता आकलन का वर्तमान तरीका सही है ?
उत्तर - प्राय: निर्धनता का आकलन आय एवं उपभोग के स्तर के आधार पर किया जाता है। परंतु, अब निर्धनता को अन्य सामाजिक एवं जातिगत विशेषताओं से जोड़कर देखा जा रहा है। शिक्षा का स्तर, संतुलित एवं पौष्टिक आहार, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, आवास, शुद्ध पेयजल, रोजगार के उपलब्ध अवसर आदि निर्धनता के अन्य प्रमुख सूचक हैं। समाज के जिस व्यक्ति या वर्ग को ये सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं उन्हें निर्धन की संज्ञा दी जाती है। इस प्रकार, अब निर्धनता पर अधिक व्यापक दृष्टि से विचार किया जाता है जो अधिक युक्तिसंगत है।
12. यह किन बातों से सिद्ध होता है कि भारतीय निर्धन हैं ?
उत्तर- भारतीयों की निर्धनता के कई सूचक हैं जिनमें निम्नांकित प्रमुख है-
(i) निम्न प्रतिव्यक्ति आय - अन्य विकसित देशों की तुलना में भारतीयों की प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है।
(ii) व्यापक निर्धनता— भारत में निर्धनों की संख्या बहुत अधिक है तथा देश की लगभग 26 प्रतिशत जनसंख्या निर्धनता रेखा से भी नीचे जीवन यापन करती है।
(iii) संतुलित भोजन का अभाव – हमारे देश के अधिकांश नागरिकों को पर्याप्त एवं संतुलित भोजन नहीं मिल पाता है।
(iv) व्यापक बेरोजगारी— भारत में बेरोजगारी की समस्या बहुत गंभीर है तथा बेरोजगारों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है।
13. भारत में गरीबी के चार प्रमुख कारण बताएँ।
उत्तर- भारत में गरीबी के चार प्रमुख कारण निम्नांकित हैं
(i)देश में प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों की प्रचुरता है। लेकिन, पूँजी आदि के अभाव में इनका पूर्ण उपयोग नहीं हो सका है।
(ii) एक कृषि प्रधान देश होने पर भी भारतीय कृषि पिछड़ी हुई अवस्था में है। परिणामतः, अधिकांश देशवासियों की आय बहुत कम है।
(iii) हमारे देश का अभी पूर्ण उद्योगीकरण नहीं हो सका है।
(iv) राष्ट्रीय आय की अपेक्षा भारत की जनसंख्या अधिक तीव्र गति से बढ़ रही है।
14. भारत में गरीबी निवारण के लिए किए गए सरकारी प्रयासों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर- देश की बढ़ती हुई जनसंख्या भारत में गरीबी का एक प्रधान कारण है। राष्ट्रीय आय की अपेक्षा जनसंख्या की वृद्धि दर अधिक है। जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि हमारे आर्थिक विकास की गति को मंद बना देती है। यह अतिरिक्त जनसंख्या राष्ट्रीय आय का अधिकांश उपभोग कर जाती है जिसके परिणामस्वरूप विकास के लिए पर्याप्त पूँजी उपलब्ध नहीं होती। कृषि पर जनसंख्या का भार अधिक होने के कारण कृषि के क्षेत्र में प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है। इससे हमारा जीवन स्तर गिर रहा है तथा देश की गरीबी बढ़ती जा रही है ।
15. भारत में गरीबी निवारण के लिए किए गए सरकारी प्रयासों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर- गरीबी भारत की एक गंभीर समस्या है तथा इसके निवारण के लिए सरकार समय-समय पर कई कार्यक्रम आरंभ किए हैं। गरीबी का प्रमुख कारण देश में व्याप्त भीषण बेरोजगारी है। अतः, सरकार ने पाँचवीं पंचवर्षीय योजना काल से ही रोजगार के अवसरों में वृद्धि लाने पर विशेष बल दिया है। अभी गरीबी उन्मूलन के लिए जो कार्य अवसरों में वृद्धि महत्वपूर्ण हैं। स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना तथा संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना सर्वाधिक इन योजनाओं का उद्देश्य निर्धन परिवारों की आय में वृद्धि द्वारा उन्हें गरीबी रेखा से ऊपर उठाना है।
16. ग्रामीण निर्धनता से आप क्या समझते हैं ? बिहार में ग्रामीण निर्धनता की समस्या क्यों अधिक गंभीर है ?
उत्तर- ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त निर्धनता को ग्रामीण निर्धनता कहते हैं। बिहार एक ग्राम प्रधान राज्य है। 2001 की जनगणना के अनुसार, यहाँ की कुल जनसंख्या का लगभग 87 प्रतिशत भाग गाँवों में निवास करता है। यद्यपि राज्य के शहरी क्षेत्रों में भी निर्धनता की समस्या विद्यमान है, किन्तु शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या अधिक उग्र है। योजना आयोग के अनुसार, 1999-2000 में बिहार में शहरी जनसंख्या का लगभग 32 प्रतिशत तथा ग्रामीण जनसंख्या का 44% निर्धनता रेखा के नीचे था। इस ग्रामीण जनसंख्या पर निर्धनता का आघात अधिक गहरा होता है।
17. बिहार में ग्रामीण निर्धनता का क्या स्थिति है ?
उत्तर- बिहार देश के सर्वाधिक पिछड़े राज्यों में है तथा यहाँ निर्धनता की समस्या बहुत गंभीर है। बिहार में निर्धनता की एक प्रमुख विशेषता इसकी ग्रामीण प्रकृति है। शहरीकरण की गति मंद होने के कारण यहाँ की कुल जनसंख्या का लगभग 87 प्रतिशत भाग आज भी गाँवों में निवास करता है। अतएव, बिहार में शहरी निर्धनों की अपेक्षा ग्रामीण निर्धनों की संख्या बहुत अधिक है। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन के अनुसार, 1993-94 में बिहार की शहरी जनसंख्या का 26.7 प्रतिशत तथा ग्रामीण जनसंख्या का 48.6 प्रतिशत भाग निर्धनता रेखा के नीचे था। पिछले कुछ वर्षों के अंतर्गत ग्रामीण निर्धनों की संख्या में कमी हुई है, फिर भी यह राष्ट्रीय औसत से बहुत अधिक है।
18. भारत में निर्धनता के प्रमुख सूचक क्या है ?
उत्तर-निर्धनता या गरीबी भारत की मूल आर्थिक समस्या है। हमारे देश में निर्धनता के प्रमुख सूचक है-
(i) निम्न प्रतिव्यक्ति आय - भारतीयों के प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है। विश्व बैंक के एक आकलन के अनुसार, 2004 में विकसित देशों की प्रतिव्यक्ति वार्षिक आय 4,53,000 रुपये या उससे भी कुछ अधिक थी जबकि भारतवासियों की प्रतिव्यक्ति वार्षिक आय मात्र 28,000 रुपये थी। हमारी जनसंख्या का लगभग 26 प्रतिशत भाग निर्धनता रेखा से भी नीचे है।
(ii) संतुलित भोजन का अभाव- हमारे देश के अधिकांश नागरिकों को पर्याप्त एवं संतुलित भोजन नहीं मिल पाता है।
(iii) आवास की कमी— आवास मनुष्य की एक आधारभूत आवश्यकता है। परंतु, भारत में आवास की बहुत कमी है।
(iv) व्यापक बेरोजगारी- निर्धनता का बेरोजगारी से घनिष्ठ संबंध है। बेरोजगार व्यक्तियों को आय का कोई साधन नहीं होता। परिणामतः, उनका जीवन स्तर बहुत निम्न कोटि का होता है, भारत में भी बेरोजगारी एवं अर्द्ध-बेरोजगारी की समस्या अत्यंत गंभीर है। हमारी कार्यशील जनसंख्या का लगभग 8 प्रतिशत बेरोजगार एवं 21 प्रतिशत अर्द्ध-बेरोजगार है।
19. भारत में ग्रामीण निर्धनता पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर- ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे किसानों, कारीगरों तथा भूमिहीनों के बीच व्याप्त निर्धनता को ग्रामीण निर्धनता कहते हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है। हमारे देश की जनसंख्या का लगभग 75 प्रतिशत भाग गाँवों में निवास करता है। लेकिन, भारतीय कृषि अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में है। कृषि पर जनसंख्या का भार बहुत अधिक है। परिणामस्वरूप, अधिकांश ग्रामीण निर्धन हैं तथा बहुत ही दयनीय स्थिति में जीवन यापन करते हैं। भारत के शहरी क्षेत्रों में भी निर्धनता की समस्या वर्तमान है, किन्तु ग्रामीण निर्धनों की संख्या अपेक्षाकृत बहुत अधिक है। वे जीवन की आधारभूत एवं न्यूनतम आवश्यकताओं से भी वंचित रह जाते हैं, ग्रामीण निर्धनों में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के व्यक्तियों की संख्या सबसे अधिक होती है और यह समाज का सबसे वंचित वर्ग है।
परंतु, विगत वर्षों के अन्तर्गत ग्रामीण निर्धनों की संख्या में कमी हुई है। योजना आयोग के अनुसार 1977-78 में ग्रामीण क्षेत्रों के लगभग 48 प्रतिशत व्यक्ति निर्धनता रेखा के नीचें थे। वर्तमान समय में ग्रामीण निर्धनों का अनुपात लगभग 27 प्रतिशत है।
20. बिहार की ग्रामीण निर्धनता का रोजगारी की स्थिति से घनिष्ठ संबंध है। कैसे ?
उत्तर- बिहार आर्थिक दृष्टि से एक पिछड़ा हुआ राज्य है। यहाँ की ग्रामीण व्यवस्था आज भी प्राचीन परंपरावादी है। ग्रामीण जनसंख्या का 80 प्रतिशत से भी अधिक कृषि क्षेत्र में संलग्न है तथा कृषि पर जनभार बहुत अधिक है। सरकार ने ग्रामीण बिहार के गैर-कृषि क्षेत्र को भी विकसित करने का प्रयास किया है, लेकिन आवश्यक संरचना एवं पर्याप्त निवेश के अभाव में विशेष सफलता नहीं मिली है। अतः, ग्रामवासियों के लिए कृषि क्षेत्र के बाहर रोजगार के बहुत सीमित अवसर उपलब्ध हैं। इससे उनकी आय कम होती है और वे निर्धनता की स्थिति में जीवन-यापन करते हैं।
ग्रामीण जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग सामयिक कृषि श्रमिकों का है जिन्हें पूरे वर्ष काम नहीं मिलता है। इन्हें अन्य किसी व्यवसाय में कार्यरत श्रमिकों की अपेक्षा पारिश्रमिक भी कम मिलता है। राज्य के ग्रामीणों का यह वर्ग सर्वाधिक निर्धनों की श्रेणी में शामिल है। ग्रामीण निर्धनों का एक दूसरा वर्ग बहुत छोटे या सीमांत किसानों का है, जिनकी भूमि परिवार के जीवन-यापन के लिए अत्यंत अपर्याप्त होती है। रोजगार के वैकल्पिक अवसरों के अभाव में अधि कांश सीमांत किसान भी कृषि श्रमिक के रूप में कार्य करने के लिए बाध्य होते हैं।
इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि ग्रामीण निर्धनता का रोजगार एवं रोजगार की प्रकृति से संबंध है।
21. बिहार में समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम के कार्यान्वयन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-बिहार में समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP) 1979 में आरंभ हुआ था। हमारे देश के अधिकांश निर्धन व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं। बिहार में ग्रामीण निर्धनों की संख्या और भी अधिक है। अतएव, निर्धनता निवारण की दृष्टि से इस राज्य के लिए यह एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम था। इसका उद्देश्य पहचान किए गए लक्षित वर्ग के परिवारों को निर्धनता रेखा के ऊपर उठाना तथा ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार के पर्याप्त अतिरिक्त अवसरों का सृजन करना था। ग्रामीण इलाकों में सबसे निर्धन वर्ग भूमिहीन मजदूरों, छोटे किसानों, ग्रामीण शिल्पकारों तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों का है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य इसी वर्ग के व्यक्तियों को लाभ पहुँचाना था।
समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम को बिहार में पर्याप्त सफलता मिली और इससे लगभग 10 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या लाभान्वित हुई है। परंतु, लक्षित वर्ग को इस कार्यक्रम का बहुत कम लाभ मिला है। विश्व बैंक के प्रतिवेदन के अनुसार, इससे धनी वर्ग के 13 प्रतिशत परिवार लाभान्वित हुए हैं जबकि मात्र 8.3 प्रतिशत अतिनिर्धन परिवारों को इसका लाभ प्राप्त हुआ है।
Hello My Dear, ये पोस्ट आपको कैसा लगा कृपया अवश्य बताइए और साथ में आपको क्या चाहिए वो बताइए ताकि मैं आपके लिए कुछ कर सकूँ धन्यवाद |